Saturday, 16 July 2011

मुंबई ब्लास्ट

इस विषय पर क्या लिखूँ और कहाँ से शुरू करूँ मेरी समझ में ही नहीं आ रहा है। बहुत सारे लोगों ने इस विषय पर बहुत कुछ लिखा है, उनके लेख पढ़ कर मेरा भी मन किया कि मैं भी इस विषय पर कुछ लिखने का प्रयास करती हूँ। वैसे तो न्यूज़ चेनल वालों ने आँखों देखा हाल दिखा–दिखा कर यहाँ सभी को बेहाल कर दिया है और इतना कुछ कह दिया है कि अब शायद इस बारे में कहने सुनने को कुछ बचा ही नहीं है किन्तु फिर भी मैंने सोचा कि मैं भी कुछ लिख ही देती हूँ आखिर हम सभी ब्लोगर अपने मन की बातों को ब्लॉग के ज़रिये ही तो एक दूसरे के साथ बाँटते है जैसे कि एक परिवार में होता है। J है ना
खैर हम बात कर रहे थे कि मुंबई में हुए बम धमाकों की वजह से कई बेगुनाह लोगों की जाने गई, हजारों की तादाद में लोगों ने अपने अपनों को खोया किसी ने अपना जवान बेटा खोया, तो किसी मासूम बच्चे ने अपने पिता को खोया, क्या ग़लती की थी इन मासूम लोगों ने, जो भगवान ने उनको इतनी बदतर मौत दी जिसे सुन कर एक आम आदमी का दिल दहल जाता है।
चारों तरफ खून से सना इंसानी शरीर यह पहचानना भी मुश्किल कि कौन अपना है और कौन पराया, आज कल जब भी न्यूज़ देखती हूँ या किसी ब्लॉग पर जाती हूँ तब चारों और बस यही खबर है। कल रात ही जब मैं स्टार न्यूज़ देख रही थी तब एक मुकेश नाम के परिवार की दशा दिखा रहे थे कि मुकेश नाम का एक आदमी जो की औपेरा हाउस के पास रहा करता था उस रात हुए बम धमाकों में मारा गया जिसकी बीवी उस के मरने की खबर पाकर भी इस क़दर सदमे में है कि जैसे मानो पत्थर की हो गई हो, उसका मासूम छोटा सा बच्चा जो की महज़ 4 साल का है उसे तो समझ ही नहीं रहा है कि हुआ क्या है, क्यूँ उस के घर मेहमान ये हुए हैं और क्यूँ बाकी सब लोग उस की माँ को छोड़ कर रोये चले जा रहे हैं, और उसकी माँ को रुलाने की कोशिश कर रहे हैं।  
उस मासूम को तो यह भी नहीं पता कि अब उस के पापा एक ऐसी जगह जा चुके हैं कि अब लौट कर कभी वापस नहीं आयेंगे। न जाने और कितने ही परिवारों का यही हाल होगा क्या बीत रही होगी उन पर, हम लोग तो शायद उसका अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते क्यूँकि कहना बड़ा आसान होता है। मगर जिस पर बीतती है वही जानता है।

मेरी समझ मे तो यह नहीं आता की जब भगवान ने सभी इनसानों को एक जैसा बनाया है और जब हम जैसे साधारण इनसानों को इस हादसे के बारे में जान करसुन कर और टीवी पर देख–देख कर इतना दुःख हो रहा है जबकि हमारा उन सभी से कोई नाता नहीं है सिवाय इंसानियत के, तो करने वालों ने यह हादसा धमाके के रूप में किया कैसे?? क्या उनके सीने में भगवान ने दिल नहीं दिया या जज़्बात नहीं दिये या उनको उनका खुद का परिवार नहीं दिया, जो वो लोग इतनी आसानी से दूसरे मासूम बेगुनाह इनसानों की जान से खिलवाड़ कर लिया करते है। शायद सच ही कहते हैं लोग, कि कलियुग है आज की दुनिया में एक इनसान को दूसरे इनसान से ही कोई मतलब नहीं है। क्या हो गया है हमारे देश को जहां अनेकता में एकता की मिसालें दी जाया करती थी। आज वहाँ इनसानों को इनसान तक नहीं समझा जा रहा है।

ऊपर से सरकार भी चुप है लोग अपने ही देश में खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं और सरकार है कि यह सोच कर चुप बैठी है कि लोगों का क्या है लोग आज शोर मचाएंगे, कल हल्ला करेंगे, ज्यादा होगा तो हड़तालें होगी फिर थोड़े दिन बाद मुंबई वापस अपने रूटीन पर आ जाएगी फिर सब वैसा ही हो जायेगा जैसे धमाकों से पहले हुआ करता था। लोग अपने गमों को अपने दिल में लिए फिर अपनी रोज़ की दिनचर्या में आ जायेगे और सही मायने में होता भी ऐसा ही है। किसी ने सच ही कहा
ज़िंदगी एक रंग मंच की तरह है जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथों में है
कौन कब आयेगा और कौन कब जायेगा सब उस ही के हाथ में है

  किसी की ज़िंदगी में चाहे कितने भी गम क्यूँ ना आ जायें ज़िंदगी किसी के लिए न कभी रुकी थी और ना ही कभी रुकेगी

"THE SHOW MUST GO OWN"


जंग तो चंद रोज होती ज़िंदगी बरसों तलक रोती है, 
बारूद से बोझिल सारी फिजा मौत की बू फैलाती हवा, 
ज़ख़्मों पे है छाई लाचारी, ये माँओं का रोना रातों में, 
मुर्दा बस्ती, मुर्दा है नगर, चेहरे पत्थर हैं, दिल पत्थर, 
मेरे दुशमन मेरे भाई, मेरे हमसाये, 
मुझसे तुझ हम दोनों से सुन कुछ कहते है




मेरी सभी पाठकों से विनती है कि इस लेख में दिये गए विडियो को एक बार जरूर सुने और हो सके तो देश के हर शख़्स तक यह सँदेसा जरूर पहुँचा ने में मेरी मदद करें। जिसका इस गीत में जि़क्र किया गया है। L जिसे सुनकर हमेशा मेरी आँखें नाम हो जाती है काश इस गीत से सब लोग सबक़ लेते पाते तो कितना अच्छा होताबल्कि यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि काश लोगों ने इस गीत को अपनी ज़िंदगी में उतार लिया होता, तो आज शायद यह धमाके नहीं हुए होते जो आज तक होते आये हैं और क्या कहुँ, मुझे जो कुछ भी कहना था वो सब इस एक गीत के गीतकार ने अपने गाने की पंक्तियों में ही कह दिया।
अंतत बस इतना ही भगवान मरने वाले सभी लोगों की आत्मा को शांति प्रदान करे और उनके परिवार वालों को इतनी शक्ति दे कि वो अपने प्रियजनो के बिना अपना जीवन आगे बढ़ा सकें

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सब को सनमती दे भगवान

11 comments:

  1. आप का ये बल्ग पढ़ा कर और ये गाना सुना कर रोना आ गया .मेरा एका सवाल है हमारी सरकार से क्या लोग एसे ही मरते रहे गए ? और हमारी सरकार कुछ नहीं कर पायेगी ? अब तो नेताओ को सोचना चाहिए की अपने वोट को छोड़ा कर देश के बारे मे सोचे . नेताओ का कोई मरे तो पता चले गा की अपनों को खोना कितना दुख देता है .मेरी भगवान से येही प्राथना है की दुखी परिवारों का हिम्मत दे .हम सब आप से दुःख मे शामिल है .


    ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सब को सनमती दे भगवान

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  2. neha officially they killed 100 but unofficially they killed 500 people. these r those people who have made their life living hell.also their rpeoplewho r fortunatley alive but either are paralaysed or r disabled.can u imagine their lifes.nobody can dear.the worst part is these terrorists are behind bars but are not punished.thanks to paliticians & their politics.jalti wahaa hey.saalo ko nanga kar ke public me chodnaa chahiye or bolnaa chahiye ki maar dalo saalo ko jaise tum chaho.yahi un logo ko sacchi shradhanjali hey.

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  3. आज मनुष्य ज़्यादा से ज़्यादा ऐश उठा लेना चाहता है और उसके लिए बहुत से लोग कुछ भी करने के लिए तैयार हैं।
    आपकी रचना अच्छी है।
    आपसे सहमत हूं।
    कुछ यही कहा गया है इस लेख में
    देश के दुश्मनों के लिए काम करने वाले ग़द्दारों को चुन चुन कर ढूंढने की ज़रूरत है और उन्हें सरेआम चैराहे पर फांसी दे दी जाए। चुन चुन कर ढूंढना इसलिए ज़रूरी है कि आज ये हरेक वर्ग में मौजूद हैं। इनका नाम और संस्कृति कुछ भी हो सकती है, ये किसी भी प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य हो सकते हैं। पिछले दिनों ऐसे कई आतंकवादी भी पकड़े गए हैं जो ख़ुद को राष्ट्रवादी बताते हैं और देश की जनता का धार्मिक और राजनैतिक मार्गदर्शन भी कर रहे थे। सक्रिय आतंकवादियों के अलावा एक बड़ी तादाद उन लोगों की है जो कि उन्हें मदद मुहैया कराते हैं। मदद मुहैया कराने वालों में वे लोग भी हैं जिन पर ग़द्दारी का शक आम तौर पर नहीं किया जाता।
    ‘लिमटी खरे‘ का लेख इसी संगीन सूरते-हाल की तरफ़ एक हल्का सा इशारा कर रहा है.
    ग़द्दारों से पट गया हिंदुस्तान Ghaddar

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  4. ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सब को सनमती दे भगवान
    इसके सिवा और क्या कहे अब

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  5. दिल दहल जाता है ऐसी घटनाओं को देखकर, ऑंखें नाम हो उठती हैं..... इंसान से हैवान बन तबाही करने वाले दरिंदें जाने कब इन्सान बनना सीखेंगे!
    बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति ...आभार!

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  6. आतंकवाद की जड़ में ग़रीबी, सामाजिक-धार्मिक घृणा और राजनीति है. यही स्थिति देश के प्रति धर्म (जो सबसे बड़ा धर्म है) को सलीके से स्थापित नहीं होने देती.
    आपका आलेख मार्मिक है.

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  7. मैं तो मुम्बई में ही रहता हूं ,दिल दहला देने वाली इस घटना के बाद कुछ बयानों नें पूरे देश को शर्मशार कर दिया ।

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  8. Samvednaon ko jhakjhorane valee ghatanaa - Lekin kyon? yah sawal uthana hi chahiye aur majbootee se uthane chahiye -

    आतंकियों का मतलब विस्तार से यारो
    शासन की कोशिशे भी संहार से यारो
    फिर भी हैं लोग खौफ में तो सोचता सुमन,
    नक्सल से अधिक डर है सरकार से यारो

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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  9. "मज़हब नही सिखाता आपस मे बेर रखना"

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  10. is tarah ki janvirodhi karyo ki jitni ninda karo kam hai. iss k alawa jo ek aam ya khaas insaan kehna chaheyga wo aap ne bakhoobi anjaam diya .

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