आज शायद आप को भी लगे कि क्या हो गया है आज मुझे, जो और कुछ नहीं मिला तो हिन्दी फ़िल्मी गानों को लेकर ही लिख रही हूँ तो बात यह है कि मुझे गाने सुनना बहुत पसंद है और मैं आप को बताना चाहती हूँ कि मेरा तो रोज घर का काम भी गाने सुनते-सुनते ही होता है अगर मैं गाने न सुनूँ तो मुझे मजा नहीं आता, तो बस आज यूंही काम के दौरान गाना सुनते-सुनते मैंने जब (लता जी) का वो गीत सुना, आप ने भी शायद जरूर सुना होगा इतना खूबसूरत गीत सिर्फ (लता जी) की आवाज में ही मधुर हो सकता था।
“रुके-रुके से कदम रुक के बार-बार चले करार देके तेरे दर से बेकरार चले,
सुबह न आई कई बार नींद से जागे, थी एक रात यह जिंदगी गुंजार चले रुके-रुके से कदम...”
कितनी गहराई छुपी हुई है न इस एक गीत में और शायद कई तरह के अर्थ भी बस अपना–अपना देखने और सुनने का नजरिया है, वैसे तो जिस बात की रूप रेखा को ध्यान में रख कर यह गाना फिल्माया गया है वो अपनी जगह एक दम सही है, मगर यदि इसी गाने को एक लड़की की शादी के बाद हो रही विदाई से जोड़ कर देखो तो उस वक्त शायद एक लड़की कि मानोदशा भी कुछ इसी प्रकार की होती है ना। J वैसे तो उस वक्त कुछ नहीं सूझता मगर यदि कोई पूछे कि इस मौक़े पर आप के मन में कौन सा गीत आ रहा है, तो शायद में यही गाना बोलना पसंद करूंगी क्योंकि मेरे विचार से इस गाने से ज्यादा एक लड़की के मन कि स्थिति को और कोई गीत बयान नहीं कर सकता।
उस वक्त भी तो ऐसा ही लगता है न कि रुके-रुके से कदम रुक के बार-बार चला करते हैं मन तो जरा भी नहीं होता उस वक्त अपने घर को, अपने घर वालों को छोड़ कर जाने का मगर तब भी हर लड़की को ना चाहते हुए भी अपना घर छोड़ कर जाना ही पड़ता है। नए माहौल में तो और भी ज्यादा घर वालों की याद सताती है और मन कहता है “सुबह न आई कई बार नींद से जागे” और मन मायके जाने के लिए छट पटा जाता है। बार-बार मन में यही ख्याल आता है कि किसने बनाया है यह रिवाज की लड़की को ही अपना घर छोड़ के जाना होगा क्यूँ किसी ने लड़कों के लिए ऐसे कोई रिवाज नहीं बनाया और ससुराल में यह पंक्तियाँ याद आती है “करार देकर तेरे दर से बेकरार चले” क्योंकि बहू के घर में आ जाने से घरवालों को और लड़की की शादी के बाद लड़की के घरवालों को दोनों ही परिवार वालों को तो करार आ जाता है, और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता क्यूंकि जब तक लड़की की शादी की ज़िम्मेदारी उस के परिवार वालों पर रहती है तब तक उन्हे कभी करार नहीं मिलता वो कहते तो कभी कुछ नहीं है, मगर मन ही मन उस ज़िम्मेदारी को पूरा करना है। इस बात का एहसास उनके दिलो दिमाग पर हमेशा ही छाया रहता है और जब वो मौका आता है जब लड़की विदाई हो रही होती है तो उस वक़्त लड़कियों का मन यही गाना गा रहा होता है “करार दे कर तेरे दर से बेकरार चले”। J ऐसे में जब आप का हम सफर आप का हाथ थाम कर आप को दिलासा देते हुए यह कहे कि “एक दूजे से हम दोनों के नाम जुड़े हैं ऐसे मस्त हवाओं मे साथ उड़ें हैं ऐसे, जैसे मैं डोर हूँ और तू पतंग है”
तो जिंदगी की नई शुरूवात का मजा ही कुछ और हो जाता है और फिर आप का दिल भी कहता है कि “तू ने ही सजाये हैं मेरे होंठों पे ये गीत तेरी प्रीत से मेरे जीवन में बिखरा संगीत मेरा सब कुछ तेरी देन है मेरे मन के मीत” और बस फिर आने वाले जीवन की नई और सुखद शुरुवात हो जाती है। और सारी जिंदगी बस यही गाते गुनगुनाते गुजरती चली जाती है।
“तुम से मिल के ऐसा लगा तुम से मिल के अरमा हुए पूरे दिल के ए मेरी जाने वफा तेरी मेरी,मेरी तेरी एक जान है साथ तेरे रहगे सदा तुम से न होंगे जुदा”
उम्मीद है आप को यह गीतों भरा लेख पसंद आया होगा, यह सारे गीत मैंने एक के बाद एक सुने थे और उन्ही गीतों को जज़्बातों के साथ जोड़ने का प्रयास किया है।
उम्मीद है आप को यह गीतों भरा लेख पसंद आया होगा, यह सारे गीत मैंने एक के बाद एक सुने थे और उन्ही गीतों को जज़्बातों के साथ जोड़ने का प्रयास किया है।
लेखन का यह एक अच्छा तरीका है. स्वाभाविक भावाभिव्यक्ति जैसी कोई चीज़ नहीं होती. हम तो बहुत बना-बना कर लिखते हैं, तब भी बात नहीं बनती. 'क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने' जैसी स्थिति हो जाती है. आपने बिना बनाए बात कही और बात बन गई. सुंदर आलेख.
ReplyDeleteसबसे पहली बात तो ये मेरा भी मनपसन्द गीत है और मेरा भी यही हाल रहा है कि काम करते करते गाने सुनना और ना सुन सकूँ तो अधूरा सा लगना।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (4-7-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
sahaj abhivyakti..yahi to blogging kee khasiyat hai.
ReplyDeleteबिना किसी लाग लपेट के अच्छी पोस्ट बधाई
ReplyDeleteअपने बेशक पंक्तियाँ गीत की चुनी हैं लेकिन जीवन से जुडा विश्लेषण कर इनकी सार्थकता को और भी बढ़ा दिया ...आपका आभार
ReplyDeleteएकदम अलग सी पोस्ट और एकदम सहज तरीके से आपने कही अपनी बात...
ReplyDeleteपहली फोटो तो शानदार है..
kalam jidhar mude, mudne den, hamen to ras mil hi raha hai
ReplyDeleteसुंदर लगा गीतों भरा लेख और विश्लेषण भी
ReplyDeletesundar geet |
ReplyDeletesundar prastuti ||
aabhaar ||
aap ke gano ki mala bahota sundar hai .
ReplyDeleteब्लॉग के शीर्षक "मेरे अनुभव" को आपने अपने स्वाभाविक अनुभूति को बहुत स्वाभाविकता से शब्द देकर सार्थकता देने का प्रयास किया है. बहुत खूब. हाँ पल्लवी जी आपकी तरह मेरी भी एक आदत है की गाना सुनते सुनते काम करने की.
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
सुंदर विश्लेषण ....
ReplyDeletebhai wah ! filmi gaano ko jeewan k anubhav se aisa joda hai ki parthey samay ye gaaney background mai chal rahey hai aur ghatnaaye saamney ... bhai wah !
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