Tuesday, 5 July 2011

हिन्दी की दशा और दिशा

आज अपने इस लेख को शुरू करने से पहले में यह कहना चाहती हूँ कि भाषा चाहे कोई भी हो अपने आप में इतनी महान होती है कि कोई चाह कर भी उसका मज़ाक  नहीं बना सकता और इसलिए मुझे उम्मीद है कोई भी मेरे इस लेख को अपनी आत्मीय भावनाओं से नहीं जोड़ेगा। क्योंकि किसी भी भाषा का मजाक बनाना मेरा उदेश्य नहीं है।

अब बात करते हैं हिन्दी की दशा कि तो मुझे नहीं लगता कि हिन्दी की दशा कुछ खास अच्छी है। हाँ यह बात जरूर है कि कुछ न समझ लोग हिन्दी में लिखने वाले लोगों को, या चार लोगों के बीच में हिन्दी बोलने वाले व्यक्ति को इस प्रकार से देखते हैं, कि बोलने वाले व्यक्ति को खुद में शर्म महसूस होने लगती जो कि बहुत ही बुरी बात है। ठीक इस ही तरह मुझे यह बात भी बहुत बुरी लगती है कि हिंदुस्तानी ही हिंदुस्तान में रहकर हिन्दी भाषा का सम्मान नहीं करते,  जो कि उनको करना चाहिए और केवल हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि बहार आकार भी एक दूसरे को इस मामले में नीचा दिखाने से नहीं चूकते। इस से ज्यादा और शरम नाक बात क्या हो सकती है।
आज भी जब यहाँ में यह देखती हूँ की जहाँ कहीं भी चार हिंदुस्तानी आपस में खड़े होकर बात कर रहे होते हैं, तो वो भी अँग्रेज़ी में ही बात करते दिखाई एवं सुनाई पढ़ते है। या फिर यदि वह सभी एक ही प्रांत के हों तो अपनी मात्र भाषा में बात करते मिलते हैं। यहाँ मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि यदि वह लोग स्वयं अपनी मात्र भाषा में बात करते हैं तो कुछ गलत करते हैं क्योंकि अपनी भाषा में बात करना तो सभी को अच्छा लगता है और लगना भी चाहिए, लेकिन मुझे समस्या इस बात से नहीं होती की वह लोग अपनी भाषा में बात क्यूँ कर रहे हैं, बल्कि इस बात से होती है कि जब वह लोग ऐसा कर रहे होते हैं तो वह यह भी भूल जाते हैं कि अगर उनके बीच कुछ ऐसा भारतीय लोग खड़े है, जो उनकी मात्र भाषा से अंजान है और उनकी भाषा को समझ नहीं सकते तब तो कम से कम उन्हे हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए,  मगर अफसोस की ऐसा कभी नहीं होता फिर चाहे भारत वर्ष हो या UK और जब कभी ऐसा होता है तो मुझे बहुत बुरा लगता है।
खास कर इन अँग्रेज़ों के देश में लोग पता नहीं क्यूँ हमेशा यह बात भूल जाते हैं,  कि सब से पहले हम भारतीय हैं, और उसके बाद उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम की बात आती है, मगर यहाँ आकार तो हर हिन्दुस्तानी अपने आप को पूर्णरूप से अँग्रेज़ बनाने कि होड़ में शामिल हो जाता है। उन ही कि तरह का खान-पान, बोल चाल सब और यदि उनके बीच आप ने हिन्दी बोलना आरंभ किया तो आप को ऐसा महसूस करा दिया जायेगा जैसे आप ने उनके सामने हिन्दी बोल कर कोई महापाप कर दीया हो और आप उनके बीच में खड़े होने लायक या बैठने लायक भी नहीं हो, अब आप ही बताएं किसी भी सच्चे हिन्दुस्तानी के लिए इस से ज्यादा शरम की बात और क्या हो सकती है।
खैर अब बात आती है दिशा कि तो उसे लेकर कम से कम मुझे इस बात कि तसल्ली है कि अपने हिन्दी ब्लॉग जगत में हिन्दी बोलने वालों कि हिन्दी में लिखने वालों कि कोई कमी नहीं है। मैं स्वयं एक हिंदुस्तानी हूँ और मेरे लिए हिन्दी का क्या और कितना महत्व है यह में कभी शब्दों में बयान नहीं कर सकती। आप को शायद पता हो कि मैंने खुद अँग्रेज़ी साहित्य में M.A  किया है। लेकिन उस के बावजूद भी मैंने अपना ब्लॉग लिखने के लिए हिन्दी भाषा को ही चुना क्यूँ ? क्योंकि मेरा ऐसा मानना है, कि हिन्दी भाषा में जो अपना पन है, जो गहराई है, जो सरलता है, वो शायद ही किसी और भाषा में हो।
मेरे विचार से ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि आज कल हमारे देश में हर चीज़ को standard कि द्रष्टी से देखा जाता है, जिस प्रकार यदि पड़ोसी के घर में कार हो और यदि हमारे यहाँ ना हो तो लगने लगता है कि उनका रुतबा हम से ज्यादा बढ़ गया है, हम से यहाँ मेरा तात्पर्य एक आम हिंदुस्तानी से है, और हम खुद को उन पड़ोसियों से कम समझ ने लगते हैं और वैसे भी हम हिंदुस्तानियों को खुद से पहले हमेशा से ही समाज कि फिक्र ज्यादा रहा करती है कि लोग क्या कहेंगे और हर बार हम यही भूल जाते है कि लोग का काम है कहना। कुछ अच्छा होगा तो भी लोग कहेंगे और कुछ बुरा होगा तो भी लोगों को तो कहना ही है,

ऐसा ही कुछ हिन्दी भाषा के साथ भी हो रहा है। आज कल कि तेज़ रफ्तार जिंदगी में हर कोई अपने आप को दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने कि होड़ में लगा हुआ है बच्चों कि पढ़ाई में प्रतियोगिता इस क़दर बढ़ गई है कि योगिता जाये भाड़ में उसे कोई नहीं देखता बस देखा जाता है तो केवल नंबर और यह कि अँग्रेज़ी केसी है बोलना आता है या नहीं क्योंकि जिसे अँग्रेज़ी बोलना नहीं आता वो आज कि तारीक में सब से असफल और निम्न वक्ती समझा जाता है। उसे लोग दया की नजर से देखते हैं की हाय बेचारे को अँग्रेज़ी नहीं आती। यदि उस वक्ती को खुद में इस बात के कारण की उसे अँग्रेज़ी नहीं आती शर्म ना भी महसूस हो रही हो, तो भी लोग महसूस करवा कर ही छोड़ ते है। की देखो तुम को अँग्रेज़ी नहीं आती कितने शरम की बात है तुमने यहाँ आने के बारे में ऐसा सोचा भी कैसे कई बार तो यह भी देखने को मिलता है, कि जिस वक्ती को अँग्रेज़ी नहीं आती और यदि वो ऐसे लोगों के बीच में खड़ा हो जाए जहां बाकी सब को अँग्रेज़ी बोलना आती हो तो अन्य लोगों को खुद में असुविधा महसूस होने लगती है की वो इंसान उन के बीच में क्या कर रहा है। जिसे अँग्रेज़ी नहीं आती उस के कारण वो लोग खुद को शर्मसार सा महसूस करना शुरू कर देते है। क्योंकि जिस तरह गाड़ी ,बँगला एक से एक अन्य महँगी चीज इस्तेमाल करना एक तरह का fashion बना हुआ है जिस के चलते लोग अपने living standard  को दूसरों से उचा दिखाने के प्रयास में लगे रहते हैं वैसे ही English बोलना भी इस ही fashionable दुनिया का एक बहुत ही जरूरी और महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।


माना की आज की तारीक में अँग्रेज़ी आना बहुत जरूर है। उस के बिना काम भी नहीं चल सकता है और कोई भी भाषा को सीखना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन उस भाषा पर पूरी तरह निर्भर हो जाना बहुत गलत बात है। उसे अपने निजी जीवन में इस हद तक उतार लेना की अपने ही प्रियजनों के बीच खुद को उन से अलग होने का या ऊपर होने का दिखावा करना सही बात नहीं है। क्योंकि हर बात जब तक सीमित हो तब तक ही अच्छी लगती है, किसी ने ठीक ही कहा है अति हर चीज की बुरी होती है फिर चाहे वो प्यार जैसे अमूल्य चीज ही क्यूँ ना  हो, तो यह तो फिर भी भाषा है।
किन्तु ठीक इस ही तरह यह बात भी उतनी ही सच्च है कि अँग्रेज़ी भाषा की तुलना में हिन्दी सीखना ज्यादा कठिन है। और इस का प्रमाण मेरे सामने मेरा बेटा है। जिसको मैं हिन्दी सिखाने की बहुत कोशिश करती हूँ, किन्तु अब तक नाकाम हूँ। चूँकि उस कि शिक्षा यही से आरंभ हुई है इसलिए उसने यह कभी जाना ही नहीं कि हिन्दी लिखते कैसे है। बोलना तो वह जानता है, क्यूँकि घर में हम हमेशा उस से हिन्दी में ही बात करते है। लेकिन जब में उसे हिन्दी कि वर्णमाला सिखाने कि कोशिश करती हूँ, तो हमेशा मुझे यही उत्तर मिलता है कि माँ यह भाषा बहुत कठिन है। मेरे लिए English ही ठीक है। अँग्रेज़ी भाषा में पता नहीं क्यूँ मुझे सब बनावटी सा लगता है। हो सकता है कि यह मेरी ही कमजोरी हो मगर जो भी है, मुझे हिन्दी की तुलना में अँग्रेज़ी बहुत ही तुच्छ लगती है। हाँ वो बात अलग है, कि मैं खुद ऐसी जगह हूँ जहां बिना अँग्रेज़ी के कोई काम नहीं हो सकता है। लेकिन फिर भी मेरी कोशिश हमेशा यही रहती है, कि में ज्यादा से ज्यादा हिन्दी भाषा का ही प्रयोग कर सकूँ।
यहाँ तक की मैं तो सामने वाले से एक बार तो पुच्छ ही लेती हूँ, यदि वह अँग्रेज़ ना हुआ तो कि क्या आप हिन्दी जानते है, और यदि वह बोल दे हाँ,  तो फिर तो में हिन्दी में ही बात करना पसंद करती हूँ। जबर्दस्ती English आने का दिखावा नहीं करती हूँ।   
वो कहते है न जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो दूसरे के बारे में क्या बोलों बस ऐसा ही कुछ हाल है, हमारी हिन्दी भाषा का भी मेरी मम्मी अकसर कहा करती है की बेटा "अपना सम्मान  हमेशा अपने हाथ में ही होता है " अर्थात जब आप किसी को प्यार और सम्मान देंगे तभी आप को भी वही प्यार और सम्मान मिलेगा, मगर अफसोस की हमारी हिन्दी भाषा के साथ ऐसा नहीं है, उसे तो खुद हिन्दुस्तानी ही सम्मान नहीं दे पाते तो,  दूसरे देश के लोग कहाँ से देंगे।
अन्ततः बस इतना ही कि मैं सभी हिंदुस्तानियों से विनम्र निवेदन करती हूँ कि कृपया आप जहां तक हो सके अपनी मात्र भाषा का ही प्रयोग करें फिर चाहे आप देश के किसी भी कोने में क्यूँ ना रह रहे हों यह कभी मत भूलो कि आप कुछ भी होने से पहले एक भारतीय है और एक भारतीय होने के नाते आपकी सब से पहली मात्र भाषा हिन्दी है क्योंकि,
"मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तान हमारा" और उस के बाद किसी और प्रांत के जय हिन्द...... 

11 comments:

  1. aap ne sach kaha mere sath bhi yesa hi hota hai. meri beti choti hai to usako le kar roja mai playgup jati hu vaha jadatar bhartiye hai par hindi bolane vale bahot kaam hai jab mai hindi bolati hu to vo bole gae nahi to koi nahi bole gaa .Dekha kar lagta hai ki hum apne hi logo ke bicha mai aanjane hai. JAI HIND

    ReplyDelete
  2. बहुत पहले मैंने इसी विषय पे एक पोस्ट लिखी थी..., समय मिले तो देखिएगा यह पोस्ट

    ReplyDelete
  3. हिंदी का दर्द सच ही शब्दों में उतरा है ... हिंदी का विकास हो रहा है पर सच तो यह है की हम हिन्दुस्तानी ही अपनी हिंदी का सम्मान नहीं कर पा रहे ... जब तक भारत में नौकरी में अंग्रेज़ी का वर्चस्व रहेगा तब तक हिंदी वो स्थान नहीं पा सकेगी जो उसे मिलना चाहिए ...पर फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है ..

    ReplyDelete
  4. पल्लवी जी अच्छा लग रहा है कि आपने ब्लॉग लिखने की गति तेज़ की है. इसी से पता चलता है कि आपमें कुछ महत्वपूर्ण कार्य करने का जज़्बा है. मेरी मातृभाषा पंजाबी है परंतु सारा जीवन हिंदी को समर्पित रहा है. आपके इस आलेख से मेरी हिंदी के प्रति भावनाओं को और भी बल मिला. इस आलेख के लिए आपका विशेष आभार.

    ReplyDelete
  5. पल्लवी जी,
    आपकी भावनाओं का सम्मान करते हुए कहना चाहता हूँ कि अंग्रेजी हिन्दी से आसान है, यह एकदम बकवास है। आपको जानकारी होगी कि मैं अंग्रेजी के खिलाफ़ किताब लिख रहा हूँ। उसमें एक अध्याय ही है जो इसी पर है कि कौन सी भाषा आसान है। मैंने एक नहीं बीसियों तर्क और प्रमाण दिए हैं कि हिन्दी अंग्रेजी से आसान है। आपकी इच्छा और रुचि हो तो वह अंश भेज दूंगा। बस कुछ दिन इन्तजार करें तो पूरी किताब सामने होगी।

    आप अंग्रेजी की छात्रा होकर भी हिन्दी का पक्ष ले रही हैं, यह भी खुशी की बात है इस देश में। हाँ रोमन में लिखना खटकता है। इससे बचिए तो अच्छा रहेगा।

    ReplyDelete
  6. आदरणीय पल्लवी जी
    हिंदी भाषा के विषय में आपके विचार जानकार मन में प्रेरणा का संचार हो गया ..कुछ बातों को लेकर मन सोचने पर भी मजबूर हो गया ...आपने बहुत सटीक विचार अभिव्यक्त किये हैं ...आपका आभार

    ReplyDelete
  7. “भाषा चाहे कोई भी हो अपने आप में इतनी महान होती है कि कोई चाह कर भी उसका मज़ाक नहीं बना सकता”

    ReplyDelete
  8. पल्लवी जी ,
    आपका लेख अच्छा लगा , मुझे ऐसा लगता है कि हिंदी की ये छवि इसलिए भी बनी ...कि हमारी सारी पढाई अंग्रेजी के बिना नामुमकिन सी है ...फिर हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कहाँ खड़े होते हैं ? ये कुछ स्वाभाविक सा भी हो गया है ...जैसे मैं पंजाबी होने , अच्छे तरह बोल लेने के बावजूद हिंदी में ही सहज महसूस करती हूँ ..ऐसा इसीलिये के अपने आस पास वातावरण बोलचाल की भाषा यही रही ..कहते हैं मात्रभाषा में ही इंसान स्वाभाविक रहता है ..हाँ अंगरेजी भाषियों का हिंदी वालों को कम समझना खलता ही है , प्रतिभा या ब्रेन की कद्र की जानी चाहिए ..

    ReplyDelete
  9. very nice thought aur utne he acche tarike se persent kiya hai... jo ik ek baar soch ne per zarur majboor kar deta hai ki hum apni bhasha ko utne reespect nahi dete hain...jabki kai desh esse hain jo ki srif apni bhasha ko ke sab se zayda value dete hain aur us ka he use karte hain...

    ReplyDelete
  10. sach kahaa neha.1 2 baar mere saath bhi kuch aise anubhav hue ki language to chod mujhe to lagaaki hum hindustaani apnaa swabhimaan hi bhul gaye hey.aur jab aap khud apni izzat nahi karogeto dussro ki to choodo.interesting one.

    ReplyDelete
  11. आप लन्दन की क्यो बात करती है, यहा भारत मे ही हिन्दी की दुर्दशा देखिए. आप सवाल हिन्दी मे करिए लेकिन जवाब वो आप को मे अन्ग्रेजी मे दॆगे, भाषा पूरी तरह भ्रष्ट हो गयी है.

    ABCD तो हर एक को याद है, हिन्दी वर्ण माला कितने लोगो को याद है? अफ़सोस कि मुझे भी क्रम मे नही याद है...

    ReplyDelete

अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए यहाँ लिखें