वैसे तो आज मेरे इस लेख का शीर्षक एक पुरानी हिन्दी फ़िल्म के नाम पर आधारित हैJ लेकिन क्या करूँ बात ही कुछ ऐसी है, सावन का महीना शुरू हो चुका है। अन्य सभी महत्वपूर्ण त्योहारों की तरह यह भी मेरा सबसे पसंदीदा त्यौहार है। सावन का नाम आते ही मन पर बचपन की यादों का जमावड़ा सा उमड़ पड़ता है। जब हम बच्चे थे तब हर साल नये साल का कलेंडर घर में आने पर सब से पहले अपने पसंदीदा त्योहारों की तारीख़ें देखने में जुट जाया करते थे, सब से पहले अपना जन्मदिन, फिर दीवाली, होली, और फिर सावन। सावन के महीने में एक अलग ही माहौल हो जाया करता था घर का भी और बाहर के मौसम का भी, घर के आसपास चारों ओर सावन के सोमवार शुरू हो जाने के कारण मंदिरों में, लोगों के घरों में, सुबह शाम पूजा अर्चना के साथ-साथ सारा माहौल में भक्ति रस का घुला मिला होना, साथ ही साथ अलबेला सुहाना बारिश का मौसम जो गर्मी के मौसम की तपिश के बाद एक अनोखी ठंडक का एहसास दिलाया करता है। मिट्टी में बारिश की बूँदों का पड़ना और वो मन मोह लेने वाली मिट्टी की सोंधी सोंधी ख़ुशबू जिसकी सुगंध से आज भी मन में वो गीत उमड़ता है।
“रिमझिम गिरे सावन सुलग–सुलग जाये मन
भीगे आज इस मौसम लागी कैसी ये अगन”
बाज़ारों की रौनक, तरह-तरह की राखियाँ, घेवर और फेनी से सजी मिठाई की दुकानें, हर गली हर नुक्कड़ पर मेहँदी लगाने वाली औरतों की भीड़। एक बहुत ही ख़ुशनुमा महकता सा माहौल। आह J
कितना खूबसूरत हुआ करता था बचपन, वैसे तो आज भी मेरे लिए बहुत मायने रखता है यह त्यौहार, लेकिन पिछले कुछ सालों से हर राखी पर घर जाना संभव नहीं हो पा रहा है। खैर इस त्यौहार के साथ मम्मी पापा और भईया का खास तरह से मुझ पर ध्यान देना, नये–नये कपड़े उससे मिलती जुलती चूड़ीयाँ, उस समय तो जैसे जो माँगों सो पाओ वाला हिसाब हुआ करता था। खास कर को राखी पर मिलने वाले उपहार पर अपने भाइयों के साथ मीठी सी तकरार। आप को शायद पता हो कि सावन के महीने में लड़कीयों को चूड़ीयाँ पहनने और पहनाने का भी खास महत्व होता है और पूरे साल में कोई कभी चूड़ीयाँ पहने या ना पहने किन्तु सावन के महीने में हरी चूड़ियाँ जरूर सभी पहनते है क्यूंकि सावन के महीने में हरे रंग का खास महत्व होता है और अपने परिवार के लोगों को भी जरूर पहनवाते है इसे बहुत शुभ माना जाता है। जब में छोटी थी तब मेरे मम्मी और मेरी मौसी जब भी अपने लिए चूड़ीयाँ खरीदा करती थी तो सब से पहले उसे मेरे हाथ में पहना दिया करती थी ताकी सब से पहले कन्या के हाथ लग जाएं तो शुभ माना जाता है। J
सावन के महीने में सावन सोमवार का भी अपना एक अलग ही महत्व है और इस के साथ-साथ हरियाली तीज का भी, वैसे सावन के महीने की धूम तो लगभग हर जगह ही बहुत होती है किन्तु फिर भी इस त्यौहार का सही रंग आप को राजस्थान में ही देखने को मिलेगा खास कर हरियाली तीज का। हरियाली तीज का महत्व भी बहुत होता है इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा अर्चना होती है और बच्चों से लेकर बड़ों तक अर्थात् कन्या और घर की अन्य स्त्रियाँ मिल जुलकर यह पूजा किया करती हैं। पुराने ज़माने में इस त्यौहार पर ही ब्याहता लड़कियाँ अपने मायके जाया करती थीं, तब से आज तक यह प्रथा चली आ रही है। हालाँकि अब तो जमाना बदल गया है किन्तु उस ज़माने मे लड़कीयों का बाल विवाह हुआ करता था तो खास कर भाई अपनी बहनो को लेने जाया करते थे और लड़कियाँ इस ही दिन मायके आया करती थी। इसी तरह सावन के महीने में पड़ने वाले सोमवार को सावन सोमवार व्रत के नाम से जाना जाता है।
सावन मास के प्रत्येक सोमवार को शिव जी का व्रत एवं पूजन किया जाता है सावन मास में शिव जी के पूजन एवं व्रत का विशेष महत्व है ऐसी मान्यता है कि इन व्रतों को करने वाले भक्तों से शिव जी बहुत प्रसन्न होते है और मनवांछित फल प्रदान करते हैं। कुआँरी लड़कियाँ अच्छा वर पाने के लिए ज्यादातर यह व्रत किया करती हैं क्यूँकि ऐसी भी मान्यता है कि शादी को लेकर हर कोई राम जी के बदले शिव जी जैसा वर पाना चाहता है क्यूँकि भगवान शिव जितना प्रेम माता पार्वती से किया करते हैं उतना तो कभी किसी और भगवान ने अपनी पत्नी से नहीं किया। J
सावन के सोमवार पर मंदिरों में भी मिट्टी के शिवलिंग बनाने का रिवाज है सावन के मेलों में सावन के झूले झूलने का भी अपना एक अलग ही मजा है और हर दिल उस वक्त एक ही गीत गुनगुनाता है कि
“सावन का महीना पवन करे शोर
जियारर झूमे ऐसे जैसे बन माँ नाचे मोर”
और क्या कहूँ अभी मेरे आँखों के सामने जैसे सावन के महीने में होने वाली हर एक बात एक चलचित्र की तरह चल रही है और सावन की इन ही मीठी महकती यादों और मेंहदी की महकती यादों के साथ आप सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनायें..
कंचन कंकन कर-कर,
ReplyDeleteमंजन अंजन भर-कर |
अंकस अंकन धर-कर
शंकर बम-बम हर हर ||
अच्छी प्रस्तुति ||
सावन की ढेर सारी बधाई ||
सावन की मनमोहक यादें - वाह पल्लवी जी - खूब उकेरा है आपने अपने अनुभव को - सचमुच तपिश के बाद बारिश की बूंदों की ठंढक - वाह क्या बात है - इसी बात से अपनी एक ग़ज़ल की याद आयी-
ReplyDeleteनव-जीवन का बोध कराने आती है बरसात
कई आशियां संग बहाने आती है बरसात
कुम्हलाये से लोग तपिश में घास-पात भी सूखे
हरियाली को पुनः सजाने आती है बरसात
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
सावन की खूबसूरत यादों को खूबसूरती से सहेजा है ... बहुत अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteश्री रविकर जी, श्यामल जी, एवं संगीता जी आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद....
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (11-7-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सावन भी आ गया , रिमझिम वर्षा भी हो रही है कुल मिला कर सब अच्छा ही है | सुंदर प्रस्तुति , आभार
ReplyDeleteमनभावन पोस्ट. आभार.
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteसावन के इतने सारे अनुभवों को समेट कर लाई आपकी पोस्ट ने भिगो दिया और ब्लॉग की पृष्ठभूमि के चित्र ने ठंडक भर दी.
ReplyDeleteभूसन जी की पोस्ट से आपके अनुभव पड़ने चले आये हम भी.....स्वागत करे या नहीं आपकी मर्ज़ी....सिर्फ सावन के अनुभव ही नहीं बल्कि हिंदी और घर की लक्ष्मी यानी की होम मिनिस्टर के बारे में भी पड़ा...सही है जी बिना घर के लक्ष्मी के घर घर नहीं होता...यह अलग बात है की मैं अकेला हु ...आर माता जी घर संभालती है...उनके काम की क़द्र हमेशा करता हु...सो सिखा है हमने तो इन्ही महिलाओ से संसार में किया अच है किया बुरा....घर में रहने वाली महलिया ही सही में पहली गुरु होती है....आपका हिंदी सिखाने का प्रयाश आज भले ही कामयाम नहीं होगा...पर बेटे को याद रहेगा न की उसकी माँ की भाषा हिंदी है..उसकी भाषा हिंदी है....आज नहीं तो कल ...इसलिए चिंता न करें...आप मन की बात लिखती है.बिना बनावट के ..सीधा सरल लिखना बेहतर होता है.....रहती आप इंग्लैंड के कानपूर यानी मानचेस्टर में है....हिंदी को दिल में बसा रखा है..काफी अच लगा जान के...वैसे मेरी एक सिस्टर है लन्दन में ३५ साल हो गए बस कामचलाऊ इंग्लिश से गुजरा आचे से कर रही है....वैसे हिंदी की दुर्दशा होने वाली नहीं है ...आखिर ६० करोड़ लोगों की भाषा है...हम है न हिंदी के दीवाने.....और मोह्बात तो जी रहती है दिल में ही ...जब मोहबत कम्जूर होती है तो टूटना और बिखरना तो होता है ही उसे...खेर चलिए ...आते रहेंगे आपकी पोस्ट पर...लिख्तरे रहेयेगा... ...
ReplyDeleteबहुत बेहतर तरीके से आपने सावन का वर्णन किया है ....!
ReplyDeleteVah..Savan ki chhata to dekhte hi banti hai.
ReplyDeleteमनभावन पोस्ट. आभार.
ReplyDeleteआप सभी का बहुत-बहुत आभार, कृपया यूहीं संपर्क बनायें रखें... धन्यवाद :-)
ReplyDeleteSawan ki manmohak prastuti ke liye aabhar!
ReplyDeleteBachhon ke jhule behad sundar lage..dhanyavaad!
सावन को आप ने बहुत ही सुन्दर तरीके से दर्शया है । सावन के झूले पडे है मान बहरो मै झूल झूल रहा है ।ये ही सावन का मजा है बरसो रे बरसो मेघ बरसो।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
ReplyDeleteआप का यह सुंदर ब्लाग ब्लाग परिवार मे शामिल कर लिया हे, पहली लाईन मे देख ले तारीख के अनुसार,आप की नयी पोस्ट आते हे सब से ऊपर होगा, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति..हम भी घूम आये अतीत के गलियारों में.
ReplyDeleteचलिये यह तो बहुत अच्छी बात हुई शिखा जी :)...और आप सभी लोगों का भी बहुत-बहुत धन्यावाद की आप सभी ने मेरी पोस्ट पर आकार अपने बहुमूल्य विचार प्रस्तुत किए तहे दिल से आप सभी पाठकों का हार्दिक ध्न्यवायद....
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