Sunday 26 September 2010

Temples (मंदिर)

मंदिर एक ऐसा शब्द है जिसका नाम सुनते ही या पढ़ते ही आप के मन में श्रद्धा का भाव उत्पन्न होता है, श्रद्धा जो आप के अंतरमन से उत्पन्न होती है और होनी भी चाहिये. यदि ऐसा नहीं होता तो उस श्रद्धा के कोई मायने नहीं रह जाते, वो महज़ एक दिखावा बनकर रहे जाती है और इसलिए मेरा आप सभी पाठको से निवेदन है  कि यदि आप को भी ऐसा लगता है कि आप के मन में भगवान के प्रति कोई श्रद्धा उत्पन्न नहीं हो रही है तो मंदिर जाने का दिखावा मत कीजिये, अर्थात हमेशा वही काम कीजिये जिसके  लिए आप अन्दर से तैयार हों  यानी सच्चे मन से आप उस काम को करने के लिए तयार हों तभी करिए फिर चाहे वो पूजा हो या अन्य कोई और कार्य.

जब यहाँ(UK) पहली बार मंदिर जाने का मौका आया तो मुझे लगा था, कि मंदिर तो सभी जगह के एक जैसे ही होते है उसमें क्या India या UK मगर यहाँ के मंदिरों में जाने के बाद मुझे एक अलग ही अनुभूति का अनुभव हुआ, मैं यह  सोच कर गई थी कि भारत के मंदिरों में जैसा माहौल होता है वैसा ही यहाँ भी कुछ होगा. पहले भी मैं रोज़ मंदिर जाने वालों में से नहीं थी. मगर हाँ इतना जरुर है कि मुझे मंदिर जाना हमेशा से अच्छा लगता था वहां का माहौल, मंदिर की घंटियाँ, पंडित जी का जाप, आरती, प्रसाद, इन सबसे बहुत अच्छे और पवित्र भाव मन में उत्पन्न होते थे. बचपन में जब हम अपनी नानी के घर जाया करते थे तो हमारी मम्मी और मौसी हम सब भाई बहिनों को एक साथ मंदिर ले जाया करती थी और प्रसाद के लालच में हम लोग भी हमेशा तैयार रहा करते थे,


खैर.... ये तो थी बचपन की बात और मैं बात कर रही हूँ यहाँ London के मंदिर के विषय में.  यहाँ आने के बाद मैंने सब से पहला मंदिर जो देखा वो था Neasden (london) का स्वामीनारायण मंदिर, जो कि बहुत ही भव्य मंदिर है और उतना ही विशाल और सुंदर भी, मगर वहां जाने पर मेरे मन में वो श्रद्धा के भाव उत्पन्न नहीं हुए जो भारत के मंदिर में हुआ करते हैं. शायद इसलिए कि मेरे मन पर उस वक़्त भारत के मंदिरों कि छवि बनी हुए थी मगर यहाँ LONDON के इस मंदिर ने अंग्रेज़ी कि उस कहावत को सच साबित किया है की Something is better then nothing जहाँ दूर-दूर तक मंदिर के बारे में सोचा भी ना हो वहां इतना भव्य मंदिर का मिलना या होना सच  में अपने आप में एक बहुत महत्वपूर्ण बात है और जैसा कि हम जानते हैं, आज के ज्यादातर हिंदी धारावाहिकों के चलते लोगों के मन में गुजराती समाज कि छवि ही ऐसी बन गयी है वो अन्य समाजों कि तुलना में पैसे वाली society है तो यहाँ भी वही बात देखने को मिली. यहाँ london का स्वामीनारायण मंदिर हो या crawley का apple tree center संस्था के द्वारा बनाया गया मंदिर हो.  दोनों ही गुजराती समाज द्वारा बनवाये गए मंदिर है जो कि यहाँ आपको अपने वतन से दूर होने के बावजूद भी आप को धार्मिक स्थल पर पास होने का एहसास दिलाते हैं. जैसे हर एक त्यौहार पर उस मंदिर में सभी हिन्दू जाति के लोग एक साथ होकर पूजा करते है और छोटे मोटे कार्यक्रम करके त्यौहार का मज़ा उठाते है. जैसे नवरात्रि  पर गरबा जिसके बिना शायद नवरार्त्री का मज़ा ही नहीं आता, उसका भी आयोजान मंदिर में किया जाता है और लोग वहां जाके अपने उस इच्छा को पूरा कर लेते है भले ही वो मंदिर के हॉल में ही क्यूँ न हो मगर बहुत अच्छा लगता है कि चलो उतने बड़े स्तर पर न सही मगर कुछ तो है जो आप को महसूस करता है कि आज कोई त्यौहार है  और सिर्फ इतना ही नहीं दीपावली पर Prince Charles खुद भी आते हैं london के स्वामी नारायण मंदिर में पूजा के लिए. अंग्रेजों के देश में पहले ही हिन्दुस्तानियौं का इतना बड़ा मंदिर होना उस पर इतने बड़े त्यौहार दीपावली का इतना भव्य आयोजन होना और उस पर भी यहाँ के रोयल फॅमिली का उसमें शामिल होना.  उन के देश मैं अपने त्यौहार की महत्ता को और भी ज्यादा बढ़ा देता है और यह अपने आप मैं एक बहुत ही बड़ी और महत्वपूर्ण बात है.

अब में आप को बताऊँ Crawley के मंदिर का मेरा अपना अनुभव मैं यहाँ UK में सिर्फ दो ही बार मंदिर गयी हूँ.  यहाँ एक और मंदिर है जो की गुजराती संस्था द्वारा बनाया गया है और उसके सभी सदस्य ज्यादातर गुजराती ही हैं. जब हम पहली बार उस मंदिर में गए तो वहां के मंदिर कि खूबसूरती और वहां विराजे भगवान् जी कि खुबसूरत मूर्तियों को देखकर मन प्रसन्न हो गया था. मगर वहां जिस तरीके से लोग व्यवहार कर रहे थे और जिस तरीके से वहां के पंडित जी ने पूजा अर्चना और आरती की तो लगा ही नहीं कि हम मंदिर में खड़े हैं. सब कुछ बनावटी महसूस हो रहा था, हालांकि यह हो सकता है कि गुजराती समाज में भारत मैंने भी इसी तरह से पूजा अर्चना की जाती हो, मगर जब यहाँ देखा तो सब औपचारिकता लगी. न पूजा में मज़ा आया, न आरती में कोई श्रद्धा आई. अर्थात मन के अंदर से जो भगवान् जी के प्रति आदर श्रद्धा और भक्ति के भाव आना चाहिये, वो ज़रा भी नहीं आये जैसे भारत के मंदिरों में जाने से आते हैं. अब पता नहीं ये मेरे साथ ही हुआ या फिर यहाँ रहने वाले सभी भारतीय हिन्दुओं के साथ भी होता है. इससे तो अच्छा मुझे अपने घर में ही स्वयं पूजा करना ज्यादा अच्छा लगता है. पहले तो एक छोटी सी जगह में बना मंदिर था, Crawley का  यह मंदिर तो बहुत बाद में बना है यूँ कहिये कि अभी-अभी ही बना है.
 अंतत  इतना ही कहूँगी कि यदि आप पहली बार UK या अन्य किसी भी और दूसरे देश में जा रहे हैं और आप बहुत ही ज्यादा धार्मिक प्रवत्ति के इन्सान है तो भारत के मदिरों की छवि लेकर मत जाइयेगा बस अपने अंतरमन की श्रद्धा  और भक्ति से पूजा अर्चना करियेगा वरना शायद आप कि धार्मिक भावना  को ठेस  भी पहुँच सकती है.

4 comments:

  1. Hi gudiya,
    Very aptly commented.
    If you see history, since eternity, religion has been used as a tool for ugly display of power and wealth in every community. All the great chapels, churches, mosques, synagogues, temples etc. have been constructed on the same philosophy.
    Even today whosoever wants to construct any religious building, they all want it to be unprecedented in their own means.
    And that's how somewhere, faith & trust dies out.
    What you felt for these two temples, I have feeling the same for many temples here in India too. Perhaps this has made me not believing in idol-worship.
    my God is in my conscience and I can pray and communicate to it everyday by keeping it clean in any circumstance.
    Keep writing.

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  2. DIDI,
    the things are getting worst here also as it seems that economically and politically superior people are trying to reserve the Indian Bhagwan for their privileged domains only..............

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  3. दिल खुश हो गया...ऐसे ही आपके पुराने पोस्ट पे ज़रा टहल रहा हूँ मैं :P

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