Monday 27 May 2013

बेल्जियम और होलेण्ड ट्रिप... भाग 2


चलिये आज हम बात करेंगे उस जगह की, जिसका हमने अपने पहले भाग में भी ज़िक्र किया था अर्थात होलेण्ड का मुख्य आकर्षण केंद्र ट्यूलिप गार्डन जिसका किताबी नाम क्यूकेनोफ़(Keukenhof) है जो कि एमस्टरडम(Amsterdam) के दक्षिण में एक कस्बे लिस्से(Lisse) में स्थित है यहाँ इतने तरह के ट्यूलिप की खेती होती है कि आप सोच भी नहीं सकते।


एक बड़े बागीचे में और भी कई प्रकार के फूल खिले होते हैं और उन फूलों की सुंदरता देखते ही बनती है, वहाँ उस बागीचे मात्र में घूमने के लिए भी केवल 2 से 3 घंटे का समय भी पर्याप्त नहीं है। उस बगीचे में अंदर जाने से पहले उसका नक्शा खरीद लेना ही सबसे समझदारी का काम है यह पढ़कर शायद आप सभी को थोड़ा अजीब लगा होगा ना कि बागीचे में घूमने के लिए भला नक्शे की क्या जरूरत है। वहाँ पहुँच कर सबसे पहले मेरे मन में भी यही ख्याल आया था। लेकिन उस बगीचे में अंदर जाते ही जो नज़ारा आँखों के सामने नज़र आया, या यूं कहिए कि जहां तक नज़र गयी उस स्थान को देखते हुए हमने भी नक्शा खरीद लेने में ही अपनी भलाई समझी और ले लिया नक्शा। वहाँ भटकने के लिए जैसे ही हमने घूमना शुरू किया तो ऐसा लग रहा था मानो वहाँ लगे सभी फूल अपनी चरम खूबसूरती पर आकर मुस्कुरा-मुस्कुरा कर हमारा स्वागत कर रहे हैं।

 
कुछ फूल तो ऐसे भी थे वहाँ जिनका रंग सुर्ख लाल और रूप ऐसा की, देखने से ऐसा जान पड़ता था कि यह असली नहीं बल्कि नकली प्लास्टिक के हैं मगर ऐसा था नहीं, सभी असली थे और वहाँ आए सभी पर्यटकों के आकर्षण का कारण भी, यूं तो बागीचा इतना साफ सुंदर और आकर्षक था कि जिसे शब्दों में ब्यान नहीं किया जा सकता।

 मगर फिर भी मुझे जल्दी हो रही थी ट्यूलिप के वो खेत देखने कि जो फिल्म सिलसिला में दिखाये गए थे। न जाने क्यूँ इतने खूबसूरत नज़ारे देखने के बावजूद भी मन में रह रहकर बस यही ख़्याल आता था कि यह सब तो ठीक हैं मगर वो कहाँ है जिनकी हमें तलाश है। लेकिन बनाने वालों को भी अच्छे से पता है कि यहाँ आने वाले हर इंसान के मन में सबसे पहले उसे ही देखने की चाह होगी इसलिए उन्होंने भी उस मुख्य आकर्षण के केंद्र बिन्दु उन ट्यूलिप के फूलों की खेती को सबसे आखिर में रखा ताकि सभी पर्यटक बाकी अन्य फूलों की सुंदरता का आनंद लेते हुए उन्हें भी अपने कैमरे में कैद कर सकें।


बागीचा इतना बड़ा था कि उसके अंदर ही खाने पीने की कई दुकानें और छोटे-मोटे रेस्टोरेंट भी खुले हुए हैं। जहां आप अपनी थकान और भूख मिटाने के लिए कुछ देर ठहर सकते हैं, मगर वहाँ मिलेगा सभी विदेशी खान-पान और जैसा कि यूरोप के अधिकतर देशों और शहरों में होता है वैसा ही यहाँ भी हो रहा था। शाकाहारी बंदों के लिए खाने की समस्या थी। हालांकी मुझे ऐसी कोई समस्या नहीं हुई क्यूंकि मैं पूर्ण शाकाहारी नहीं हूँ। मगर जो लोग हमारे साथ थे उन्हें इस विकट समस्या से दो चार होते देखा था मैंने, हमारी बस वाले गाइड ने हमें वहाँ 2.5 घंटे का समय दिया था इसलिए सभी के मन में समय का कांटा बराबर खटक रहा था कि कहीं ऐसा न हो समय निकल जाये और हम वो नज़ारा देख ही न पाये जिसके लिए हम यहाँ आए हैं। मगर किस्मत देखिये हम वहाँ पहुँच तो गए जहां वह सुंदर खेत देखाई देना शुरू हो गए थे किन्तु वहाँ उन खेतों में उस वक्त वहाँ अंदर जाने की मनाई थी तो सभी को बस दूर से ही वो नज़ारा देखकर अपनी आँखों की प्यास बुझानी पड़ रही थी। तब कुछ वैसा ही लगा जैसे "समंदर पास होते हुए भी दो घूंट पानी की प्यास होती है"

वहीं पास ही में एक बड़ी सी पवन चक्की भी लगी है अधिकांश लोग उस पर ऊपर चढ़कर उन सुंदर फूलों की खेती की तस्वीरें ले रहे थे। हमने भी वैसा ही किया था और कर भी क्या सकते थे। फिर यह निर्णय लिया गया कि सभी तो यह सोचकर आए थे कि इस साल गर्मी न पड़ने की वजह से सभी के मन में यह आशंका थी कि पता नहीं इस साल ट्यूलिप मिलेंगे भी या नहीं, क्यूंकि यहाँ इन ट्यूलिप के फूलों की खेती केवल 3 महीने के लिए ही की जाती है मार्च से मई तक, इसलिए वहाँ का यह गार्डन केवल तीन महीनों के लिए ही खुलता है, तो इन ट्यूलिप के फूलों को लेकर सभी के मन में यही डर था कि कहीं ऐसा न हो कि मौसम में ठंडक के कारण यह ट्यूलिप खिले ही ना हो, मगर शुक्र है ऐसा हुआ नहीं था। फूल खिले तो काफी थे मगर अब भी थोड़ी कसर बाकी थी। ऊपर से यह दूर से देखने की बंदिश ने और सबका मन ज़रा भारी सा कर दिया था आमतौर पर तो मई के पहले हफ्ते में यह फूल काट ही लिए जाते हैं।



खैर हमने सोचा जिसे पाने की चाह में हम इस बागीचे के सुंदर फूलों को नज़र अंदाज़ करते चले आ रहे थे, अब वापस लौटते में उन्हीं के मज़े लेंगे और हमने शुरू की अपनी बागीचे के उस आखिरी छोर से पुनः वापस आने की शुरुआत, रास्ते में हमने दो काँच घर (Greenhouse) भी देखे जिसके अंदर उन सभी प्रकार के ट्यूलिप रखे गये थे जितने वहाँ असल में पैदा होता हैं क्यूंकि जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि ठंडे मौसम की वजह से सभी प्रकार के ट्यूलिप नहीं खिल पाये थे इसलिए उन्होंने अपने पर्यटकों के लिए खास उस शीश महल टाइप के कमरे में तापमान को नियंत्रित कर वह सभी फूलों की एक प्रदर्शनी सी लगी हुई थी जिसे देखकर खेत में न घूम पाने का मलाल काफी हद तक कम हो गया था। लेकिन फिर भी समय के अभाव के कारण हम पूरे बागीचे के सभी फूलों का आनंद वैसे नहीं ले पाये जैसे हम लेना चाहते थे। इसलिए एक बार फिर जाने का मन है दुबारा जाना हो पाएगा या नहीं वो राम ही जाने।



खैर फिलहाल आप तस्वीरों से ही काम चलाईये और ट्यूलिप के मनमोहक फूलों का आनंद उठाये, चित्र तो बहुत सारे हैं पर सारे पोस्ट पर लगाना संभव नहीं... तीसरे भाग में खिलाएँगे बेल्जियम की मशहूर चीज़, चॉकलेट और आइसक्रीम...तब तक के लिए आज्ञा दीजिये नमस्कार :)

Monday 6 May 2013

बेल्जियम और होलेण्ड ट्रिप... भाग 1


बहुत दिन हुए कहीं घूमने जाना नहीं हुआ था। पिछले साल जब स्कॉटलैंड गए थे तब अपना वो अनुभव मैंने एक यात्रा वृतांत के रूप में आप सब के साथ बांटा था। तो चलिये इस बार भी लिए चलते हैं आपको भी अपने साथ होलेण्ड (Holland) जहां का नाम सुनते ही मेरे ज़हन में यदि सबसे पहले कोई तस्वीर उभरती है तो वह है "सिलसिला" फिल्म का वो गीत जो आप सब ने देखा सुना और पसंद किया हुआ है। वही गीत को जो अमिताभ बच्चन और रेखा पर फिल्माया गया था, जहां रंग बिरंगे ट्यूलिप के फूलों की खेती सलीके से कतार बंद तरीके से दिखाई गयी है। अब तो पक्का सभी को गाने के वो खूबसूरत दृश्य याद आ ही गए होंगे और साथ ही बोल भी है ना !!!

"देखा एक ख़्वाब तो यह सिलसिले हुए
दूर तक निगाह में हैं
गुल खिले हुए " 

तो हमने भी सोचा कि चलो इस बार हम भी वहीं चलते हैं। तो बस बन गया प्रोग्राम वहाँ जाने का लेकिन उस ट्यूलिप के बगीचे की बात विस्तार से हम अगले अंक में करेंगे। आज हम बात करेंगे बेल्जियम की राजधानी ब्रिसल्स की. वैसे हर बार तो हम खुद ही प्लान करते हैं कि कब कहाँ कैसे जाना है लेकिन इस बार हमने सोचा और पढ़ा भी कि वहाँ घूमने के लिए केवल 3 तीन से चार 4 दिन ही बहुत है तो हमने सोचा क्यूँ न इस बार टूरिस्ट बस से जाया जाये, क्यूं ना एक बार इसका भी अनुभव ले लिया जाये। तो हमने तीन दिन का स्टार टूर से जाने का टूर प्लान किया इसके दो फायदे हैं। पहला खाना पीना और रहने ठहरने की सारी चिंता उनकी, दूजा कहाँ कहाँ क्या-क्या घूमना है कैसे जाना है, कितनी देर रुकना है यह सारा सरदर्द भी उनका, अपना काम है केवल पैसा देना और घूमने के मज़े उठाना और उसे भी बड़ी बात हिन्दुस्तानी खाना मिलना। वैसे हमारे साथ खाने को लेकर अब ऐसी कोई टेंशन है नहीं मगर फिर भी यदि हिन्दुस्तानी मिल जाये तो सोने पर सुहागा टाइप बात हो जाती है।:-) तो जो लोग मेरी तरह हिन्दुस्तानी खाना पसंद करते हैं उनके लिए सबसे अच्छा विकल्प है यह स्टार टूर, वैसे और कई कंपनियों के टूर भी उपलब्ध हैं।

चित्र गूगल से साभार 
आज हम बात करेंगे ब्रिसल्स की, यूं तो वहाँ देखने को कुछ खास नहीं था। मगर जो था वह भी बुरा नहीं था। वहाँ एक एतिहासिक महल(Grand Place) था जिसके सामने एक फूलों से बना कालीन भी  होता है अर्थात असली फूलों को कुछ इस तरह से लगाया जाता है कि देखने में वह एक बड़े कालीन के रूप में नज़र आते है जैसा कि आप इस तस्वीर में देख सकते हैं। मगर यह नज़ारा हमारी किस्मत में नहीं था। क्यूंकि वहाँ इन फूलों की यह सजावट केवल अगस्त के महीने में दो साल में एक बार ही होती है। मगर फिर भी इस नज़ारे की एक तस्वीर आपके लिए (चित्र गूगल से साभार)। इस महल को यहाँ के राजा ने अपने रहने के लिए बनवाया था लेकिन कभी रहा नहीं और सिर्फ कर वसूलने के लिए यहाँ आया करता था। यहाँ की इमारतों के ऊपर कुछ कुछ मूर्ति लगी होती हैं जिस आधार पर उस घर में रहने वाले क्या कार्य करते थे पता चलता था, जैसे राजा के महल के ऊपर लगी कई सारे सैनिकों की मूर्तियाँ। या फिर टाउन हॉल पर लगी एक सैनिक की मूर्ति जिसके हाथ में आसमान की और इशारा करती हुई एक तलवार है। इत्यादि


वहाँ की सबसे मशहूर मूर्ति जो एक नन्हें राजकुमार की कही जाती है जो नग्न अवस्था में लघु शंका करता रहता है इस मूर्ति को किताबी भाषा में Manneken Pis Statue कहा जाता है।




यह मूर्ति तांबे की बनी है और इतनी मशहूर है कि वहाँ की लगभग हर दुकान पर आपको इस बच्चे की यह मूर्ति देखने को मिलेगी फिर चाहे वो सजावट के समान की कोई दुकान हो या फिर खाने पीने की वहाँ हर जगह आपको इस बच्चे की यह मूर्ति अलग-अलग रंगो में दिखाई देगी। इस मूर्ति को बदल बदल कर कपड़े भी पहनाए जाते हैं।




जैसे इस तस्वीर में आप देख सकते है यह तस्वीर हमने एक Waffle की दुकान पर खींची थी, Waffles भी वहाँ की सबसे मशहूर मिठाई है। जो गरमा-गरम खाने में मुझे तो बिलकुल अपने यहाँ के मालपूए के जैसी लगी। बाकी तो पसंद अपनी-अपनी ख्याल अपना-अपना ...इसलिए यदि आप भी वहाँ जाएँ तो इस मिठाई को या मीठे पकवान को ज़रूर खाएं क्यूंकि मेरे अनुभव के हिसाब से बिना इस मिठाई के वहाँ घूमना अधूरा है। आप या तो बिना कुछ ऊपर डलवा कर भी ले सकते हैं जैसे क्रीम, या चॉकलेट या स्ट्रॉबेरी। 


 केवल इतना ही नहीं वहाँ बनी चॉकलेट और मिठाइयाँ जो देखने में पूरी तरह हमारी हिन्दुस्तानी मिठाइयों की तरह ही नज़र आती है मेरी नज़र में एक आकर्षण का केंद्र थी और रही चॉकलेट की बात तो वहाँ खुले रूप में तौल कर ली जा सकती हैं ठीक स्विट्ज़रलैंड की तरह। आप सभी को पता ही होगा बेल्जियम चॉकलेट दुनिया भर में मशहूर हैं। इस फोटो में आप जलेबी और तिल के लड्डू देख सकते हैं।


वहाँ हमने एक और चीज़ देखी मगर समय के अभाव के कारण हम उसका इतिहास ठीक से नहीं जान पाये उस चीज़ का किताबी नाम है  Atomium.. यह एक एटम को बहुत बड़े रूप में बनाया गया है। इसमें हरेक sphere 18 फीट का है और जो पाईप इनको जोड़ते हैं उनमें escalater लगे हैं हालांकि हम लोग अंदर से नहीं देख पाये।

एक और चीज़ वहाँ हमने देखी बच्चों के कार्टून का एक मशहूर किरदार "टिनटिन"की एक छोटी सी एक दुकान जहां हर चीज़ उस ही एक किरदार के रूप में बनी बिक रही थी कपड़ों से लेकर खिलौनों तक और बच्चों से जुड़ी लगभग हर वस्तु पर उभरी टिनटिन की आकृति फिर चाहे वो पेंसिल रबर हो या किताबें और कपड़े या फिर खिलौने हों या चाबी के कीरिंग जो बच्चों को बहुत ही ज्यादा आकर्षित कर रहे थे    


एक मूर्ति और भी देखी हम ने जिसके नीचे लिखा था इस पर हाथ फेर कर आप मन चाही मुराद मांग सकते हैं वो ज़रूर पूरी होगी मूर्ति को देख कर तो यह प्रतीत हो रहा है। यह मूर्ति Everard 't Serclaes की है। 



खैर आज की इस पोस्ट का यह पहला भाग यही समाप्त हुआ अगले भाग में फिर कुछ नयी तस्वीरों, अनुभवों और कुछ जानकारी के साथ आप सब से फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए आज्ञा दीजिये नमस्कार ...:)