Thursday 23 February 2023

तुम करती ही क्या हो ...? व्यंग

 

आज सुबह सवेरे में प्रकाशित 


तुम करती ही क्या हो...?

एक औरत दूसरी से तुम क्या करती हो...? मैं एक गृहणी हूँ. हाँ वो तो ठीक है, पर तुम करती क्या हो.? ‘आई मीन यू नो...? तुम घर में कैसे रह लेती हो यार, मेरा तो जी घबराता है, बुखार आजाता है. अच्छा, तो तुम क्या जंगल में रहती हो.? व्हाट रबिश... मेरे कहने का मतलब था कि "घर के काम एंड ऑल" ओह.! तो उसमें क्या है, तुम जैसों के लिए घर को घर बनाते है और क्या. अरे घर में काम ही क्या होता है.आजकल तो सभी घरों में अधिकतर झाड़ू पोंछे और बर्तन के लिए बाई लगी होती है. बस सिर्फ खाना ही तो बनाना होता है और थोड़ी बहुत साफ सफाई, बस और तुम फ्री.अच्छा...! तुम्हें कैसे पता कि उसके बाद हम फ्री..? तो और क्या बढ़िया खाओ और सौ जाओ चैन की नींद. ओह...! तो बच्चों को लाना, उनके आने के बाद उन्हें समय से खिलाना, पढ़ना, उनके साथ समय बिताना, खेलना और समय से उन्हें सुलाना. यह सब तो अपने आप ही हो जाता है. है ना...! और कपडे भी खुद ही अपने आप चेक होकर मशीन में टेलीपोर्ट होकर खुद ही धुल जाते हैं और पता है कमाल की बात तो यह है कि खुद ही अपने आप बाहर जाके सूखकर, छटकर, प्रेस के लिए भी अपने आप ही चले जाते है. नहीं....! बताओ...! कित्ता ज़माना बदल गया है भई... मुझे तो सही में अब तक पाता ही नहीं था. एक कुटिल मुस्कान के साथ, नहीं ...?
खैर, मेरी छोड़ो तुम क्या करती हो...? मैं एक कंपनी में मैंजर हूँ. हो.....! मतलब तुम कुछ भी नहीं करती...? तुम्हारे लिए सब दूसरे ही कर के देते हैं. वाह...! क्या मतलब है तुम्हारा ? पूरी टीम को मैंनेज करती हूँ मैं, किसी से काम करवाना आसान नहीं होता. कभी करा के तो देखो, तब पता चले. कितना मुश्किल होता है इतने सारे लोगों को मैंनेज करना...ओह...! बाईयों से काम करना तो बहुत आसान होता है...वो भी जब, जब वो बहुत ही कम पढ़ी लिखी होती है. मगर दुनियादारी बखूबी जानती है और बच्चे संभालाना, वो तो चुटकीयों का काम है. क्योंकि वो तो नासमझ होते है, तो दिन भर सवाल करते हैं... और उनके सभी सवालों का सही सही जवाब देना तो....दिमाग लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ती “यू नौ” कुछ भी नहीं रखा है इसमें, नहीं...! और तुम तो पढ़े लिखे बहुत ही समझदार लोगों को संभालती हो...सही है. तो अब तुम मुझे बताओ कि तुम करती ही क्या हो...?

Sunday 19 February 2023

कुछ तो गड़बड़ है तारा ~एक व्यंग ~

~कुछ तो गड़बड़ है तारा ~ 
सुबह सवेरे में प्रकाशित मेरा लिखा एक व्यंग 


अरे सीमा तुम यहाँ रसोई में क्या कर रही हो बेटा जाओ जाके पढ़ाई करो. कितनी बार कहा है तुम से, यह जगह तुम्हारे लिए नहीं है.... एक बार पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ. फिर इस काम के लिए हज़ारों पड़े है अपने हिंदुस्तान में, पर माँ मुझे यह सब करना अच्छा लगता है, यह तड़के की खुशबु, यह फूली फूली गुब्बारे नुमा रोटियाँ मुझे बहुत आकर्षित करती हैं. मैंने कहा ना तुम से....नहीं मतलब नहीं. एक बार में बात समझ नहीं आती है क्या तुमको...? चलो जाओ अपने कमरे में, फिर थोड़ी देर बाद तुषार लाओ माँ मैं बना देता हूँ. रसोई में खाना बनाना तो मुझे भी बहुत पसंद है. पता है कल ही मैंने खाना खज़ाना वाले संजीव कपूर का वीडियो देखा. क्या लाजवाब दम आलू बनाया था उन्होंने, देखकर ही मुँह में पानी आगया. हे भगवान....! क्या होगा इस घर का सभी खाँसामा ही बनाना चाहते हैं यहाँ, यह नहीं कि कोई पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनने की बात करे.

"कुछ तो गड़बड़ है तारा" मन ही मन तारा ने सोचा. चलो ना माँ आज ट्राइ करते हैं बड़ा मज़ा आएगा. मैं खाना बनाऊंगा और तुम मेरा वीडियो बनाना, ठीक है ? फिर अपन इसे यूट्यूब पर डालेंगे. पागल हो गया है क्या....? यह सब तेरे काम नहीं है. इतना भी नहीं जनता क्या कि यह सब औरतों के काम है. तेरी बीवी आएगी ना, उससे करना यह सब काम. अच्छा..? और जो उसकी रूचि ना हो इन सब कामों में तो, तो क्या, घर के काम तो बेटा तब भी करने ही पड़ते हैं हम औरतों को, छोड़ो ना माँ क्यों झूठ बोलती हो. अरे मैंने क्या झूठ बोला, सच ही तो कहा। अच्छा तो फिर दीदी को क्यों नहीं करने दिया तुमने....माँ एकदम चुप कहे तो क्या कहे...खून का घूंट पीके रह गयी। अरे दीदी तुम्हारी नेल पेंट कितनी अच्छी है, मुझे भी दो ना मैं भी लगाऊंगा...और फिर तुम्हारा दुपट्टा ओढ़कर डांस भी करूँगा। यह देखते ही अब तो जैसे तारा के पैरों तले मानो ज़मीन ही निकल गयी। यह मेरा बेटा क्या कह रहा है। अब तो पक्का कुछ गड़बड़ है तारा, इससे पहले कि सच में कुछ गड़बड़ हो, कुछ कर तारा... कुछ कर.....! हाय राम...! एकता कपूर के धारावाहिक कि तरह उसने मन ही मन तीन बार कहा नहीं....नहीं....नहीं.....ऐसा नहीं हो सकता...बेबसी के भाव लिए, तारा ने तुषार से कहा यह क्या कह रहा है बेटा, भूल मत तू लड़का है....जरा तो लड़कों जैसी हरकतें कर बेटा....लड़कों जैसी....तारा की पड़ोन शीतल ने भी यह सब अपनी आँखों से देखा और कहा... तू कर क्या रही है तारा ? एक तरफ तो अभी अभी कॉलेज में महिला दिवस पर इत्ता कुछ कह रही थी अधिकारों के हनन को लेकर और अब खुद अपने ही घर में अपने ही बच्चों के अधिकारों का हनन... “कुछ तो गड़बड़ है तारा”.... जरुर कुछ तो गड़बड़ है...

Friday 10 February 2023

कहानी लेलो कहानी ~व्यंग

 


भोपाल से निकलने "सुबह सवेरे" समाचार पत्र में प्रकाशित मेरा लिखा एक व्यंग 

कहानी ले लो भाई साहब, कितने की दी ? भईया एक कहानी मात्र ढाइसो कि है। अरे बाप रे ! यह तो बड़ी महंगी है। थोड़ी सस्ती में देते हो तो बताओ। अच्छा कितना दाम लगाओ गे आप बताओ ? डेढ़सौ में दे रहे तो बात करो। अरे नहीं नहीं...। इतने में तो केवल लघु कथा ही मिल सकती है, यह नहीं। यह तो बड़ी कहानी है, इतने में तो नहीं पड़ेगी। अच्छा तो ठीक है फिर, रहने दो कभी ओर देखेंगे। अच्छा ठीक है भाई साहब, कहानी लेलो भई कहानी छोटी बड़ी सभी तरह कि कहानियाँ...! आगे चलकर फिर किसी ने आवाज दी अरे भईया जरा सुनना तो सही, एक कहानी कितने में दी ? अरे दीदी ज्यादा नहीं बस ढाईसौ । क्या ....! इतनी महंगी ? कहाँ दीदी, यह तो केवल महनतना ही मांग रहे हैं। वरना असल कीमत तो हमने अभी तक लगायी ही नहीं है।

अरे नहीं भईया तब भी बहुत मंहगी है। हाँ तो दीदी बड़ी भी तो है, ऊपर से आप लोग शब्दों का प्रतिबंद अलग लगा देते हो, कभी सोचा है कि स्व्छंद लिखने वाले को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और एक आप हो उसमें भी मोल-भाव कर रही हो। लेलो न एक कहानी दीदी, आपका क्या जाएगा। आप तो खुद भी इतना लिखती हो कि आपके हाथ के नीचे  से निकलने वाली छोटी मोटी पत्रिका वह भी वो वाली जो अखबार के साथ अलग से आती है, तक में केवल दो पन्ने तो आपके ही होते हैं। ऐसे में हमारा लिखा भी थोड़ा सा लेलोगी तो आप क्या बिगड़ जाएगा। 

बस बस ज्यादा बकवास करने कि जरूरत नहीं है। जितना पूछा जाए उतना ही बताओ और हाँ ठीक ठीक भाओ लगाओ वरना और भी बहुत लोग हैं लाइन में, जिन्हें अपनी कहानियाँ और कवितायें बेचनी है हमें। एक तुम ही  अकेले नहीं हो। हाँ हाँ...! दीदी यह बात तो हम बहुत अच्छे से जानते है। आप यह लघु कथा लेलो मात्र डेढ़सौ कि है। नहीं भाई तुम अब तक मेरी बात का सही अर्थ नहीं समझे। लघु कथा वह भी डेढ़सौ कि बहुत महगी है। ऐसा करो एक बड़ी कहानी के साथ एक लघु कथा नहीं तो एक व्यंग या फिर एक कविता मुफ्त दे दो तो हम यह कहानी अभी खरीद लेते हैं। नहीं दीदी, यह न हो पाएगा। सोच लो भईया...! जो मैंने कहाँ वही सबसे अच्छा सौदा है कम से कम कुछ नहीं से कुछ तो मिल रहा है। नहीं दीदी, ना हो पाएगा। आगे चलेते हुए फिर कहानी ले लो कहानी...

सुनो भईया मेरे पास तुम्हारे लिए एक योजना है कहो तो बताऊँ ? अरे साहब सुबह से कहानियाँ बेचने निकला हूँ अब तक बौनी नहीं हुई और आप एक और नयी योजना ले आए हो, न ना मेरे पास टेम ना है। अरे कम से कम योजना सुन तो लो, नहीं जमे तो ना लेना। अच्छा ठीक है, बताओ क्या है आपकी योजना। द्खो मैं भी यही रहता हूँ और एक अखबार चलता हूँ। जिस तरह तुम्हारी कहानियाँ नहीं बिक रही उसी तरह मेरा अखबार भी कोई खास नहीं बिक रहा है। तो क्यूँ ना साथ में मिलकर धंधा किया जाये। तुम हमारे अखबार कि सदस्यता लेलो हम तुम्हारी कहानियाँ वहाँ छाप दिया करेंगे जिससे थोड़े ही दिनों में तुम्हारा नाम भी हो जाएगा और हमें भी कंटेन्ट मिल जाएगा। अरे बाबू जी, तो इसमें मेरा क्या भला होगा। सारी मलाई तो आपको मिल जाएगी। अरे तुम्हारा भी तो भला हो रहा है, रोज़ छपोगे और यदि प्राइम मेम्बर शिप लोगे तो एक ही पेज पर तुम्हारी एक से अधिक रचनाओं को स्थान दिया जाएगा।

अरे वाह रे बाबू जी आपको हमारे माथे पे क्या लिखा दिखा जो आप यह योजना हमारे पास लेकर आए हैं। हमारी ही कहानी हम से ही पैसा लेकर, यदि आपने छाप भी दी तो कौना सा बड़ा अहसान किया बात तो तब होती जब आप मुझे मेरे महंताने के साथ मेरी कहानी को अपने अखबार में स्थान देते। रहने दो बाबू जी रहने दो।

कहानी ले लो कहानी एक कहानी के साथ एक कविता, एक कविता के था एक लघु कथा, और एक लघु कथा के साथ एक व्यंग मुफ्त .....