Monday 30 April 2012

पैसों पर आधारित सपनों का घर ...



"इंसान की ख्वाइश की कोई इंतहा नहीं 
दो गज़ ज़मीन चाहिए दो गज़ कफन के बाद" 

यूं तो इंसान की ख्वाइशों का कोई अंत नहीं यह तो आपको ऊपर लिखे शेर से समझ आ ही गया होगा। मगर यदि कुछ देर के लिए इंसान के लालची मन को परे रखकर सोचा जाये तो जीने के लिए मूलतः जिन चीजों की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है वह तीन चीज़ हैं रोटी, कपड़ा और मकान। अब यदि बात की जाये रोटी की यानि जीवन यापन की तो उसके लिए तो सभी भरपूर प्रयास करते हैं और अपने अपने कार्य क्षेत्र और क्षमता के हिसाब से पैसा भी कमाते हैं फिर चाहे वो दिन भर मजदूरी करने वाला मजदूर हो, या किसी बड़े से ऑफिस में बैठकर काम करने वाला कोई पढ़ा लिखा काबिल व्यक्ति, इससे रोटी और कपड़े की समस्या तो सुलझ ही जाती है।  

अब मकान की बात करें तो साधारण तौर पर यदि देखा जाये तो अपना खुद का घर हो ऐसी इच्छा हर किसी व्यक्ति की होती है खासकर घर की गृहणी की, फिर घर छोटा हो या बड़ा हो वह बात अलग है। क्यूंकि वो बात जरूरतों पर ज्यादा निर्भर करती है, कि किसके घर में कितने सदस्य है और किस आयु वर्ग के अंतर्गत आते हैं। वैसे आज के जमाने में हर कोई बैंक से उधार लेकर ही सही मगर सबसे पहले अपना घर बनाने के बारे में ही सोचता है और बनाता भी है। किन्तु पहले ऐसा नहीं था, पहले तो लोग रिटायर्ड़ होने के बाद या उससे कुछ ही समय पहले अपना खुद का का घर बनाने के बारे में सोचना शुरू किया करते थे। उसके पहले तो बच्चों की पढ़ाई और  गृहस्थी के खर्चों को लेकर, यह सब बातें सोचने का शायद मौका भी नहीं मिल पाता होगा। जिसका एक अहम कारण एक ही व्यक्ति पर पूरे परिवार का आश्रित होना भी होता होगा। मगर आज स्त्री और पुरुष दोनों ही कमाते हैं। जिसके चलते घर के लिए बैंक से लिया हुआ उधार भी पटाने में आसानी हो जाती है। 

लेकिन क्या आप बता सकते हैं एक अच्छे घर की परिभाषा क्या होनी चाहिए? मेरे हिसाब से तो एक अच्छे घर की परिभाषा का अर्थ है एक खुला हवादार घर जो थोड़ा बहुत वास्तु के हिसाब से भी ठीक ठाक हो, घर के आस पास ही रोज़ की जरूरत से संबन्धित सभी सुविधायें आसानी से उपलब्ध हो, बिजली,पानी की कोई समस्या ना हो पड़ोसी के विषय में हल्की फुल्की जानकारी हो और ज्यादा हुआ तो घर सुरक्षा की दृष्टि से, बजाय एक सुनसान इलाके के शहर के चहल पहले वाले हिस्से में हो। बस इतना सब मिल जाये तो और किसी को क्या चाहिए।

मगर आजकल ऐसा नहीं है बल्कि आजकल तो इन्हीं सब चीजों का लालच इस प्रकार दिया जाता है जैसे कोई घर न हो राजमहल दे रहे हों, मज़े की बात तो यह है कि आपके ही पैसों से आपको ही दिये जाने वाले घर के सपने दिखाता कोई और है। यदि आप सोचो भी ना कभी इस विषय में तो आपका दिमाग घूम जाता है। इतने सारे प्रॉपर्टी डवलपर्स इन्हीं सब सुविधाओं को अलग-अलग ढंग से सजा सवारकर कुछ इस प्रकार से आपके सामने रखते हैं, कि समझ ही नहीं आता किस पर विश्वास किया जाये और किस पर नहीं। क्या सही है क्या गलत है, कौन झूठा है, कौन सच्चा, कुछ समझ नहीं आता है। आजकल तो समाचार पत्र के साथ पूरा एक अलग से पेपर भी आता है जिसमें केवल प्रॉपर्टी के विषय में ही सम्पूर्ण जानकारी होती है। कहाँ कितने में कौन सी प्रॉपर्टी बिक रही है और किन-किन सुविधाओं के साथ। आपको आपके बजट के अनुसार अच्छी से अच्छी और ज्यादा से ज्यादा सुविधाओं के साथ घर आसनी से मिल सकता है इत्यादि।   

जबकि अच्छी से अच्छी सुविधाओं के नाम पर होगा क्या बिजली का पावर बैकप, कहने को 24 घंटे पानी जबकि उसी शहर में लोग पानी की कमी से त्रस्त हैं फिर भी यह सफ़ेद झूठ बोलने में ना तो उनकी ज़ुबान ही  लड़खड़ाती है, और न ही हम भी इस बात पर ध्यान देते हैं, नतीजा यह सब जानते हुए बेबकूफ़ भी हम ही बनते है। घर के सामने बच्चों को खेलने के लिए पार्क, कवर्ड कार पार्किंग, लिफ्ट की सुविधा, वुडवर्क, गैस के ऊपर चिमनी, वुडन फ़्लोर, गैस पाईप लाइन, बाथटब और आस पास कोई अच्छा स्कूल, जो कि इंडिया में घर के नज़दीक हो ना हो कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। फिर भी उनका तो काम है इसलिए वह इसे भी एक सुविधा में गिनते हैं, साथ ही आपकी सोसाइटी में क्लब का होना भी आजकल फ़ैशन बन गया है। जिसमें शामिल हैं जिम, स्विमिंग पूल, टेनिस इत्यादि खेलने की सुविधा उपलब्ध है। ऐसा आश्वासन दिया जाता है। फिर भले ही उसमें लोग नियमित जाते हो या ना जाते हो, उनकी बला से। अभी कुछ ही दिनों पहले पढ़ने में आया था कि अब एटीएम की सुविधा भी देना शुरू कर रहे हैं, इसके अतिरिक्त घर के आगे पीछे हलियाली और इन सब चीजों का मेंटनेंस भी आपसे ही ले लिया जाता है, ज़्यादातर जगहों पर हर महीने देना पड़ता है और करीब करीब आपके घर की कीमत का 0.05 % मेंटनेंस देना पड़ता है।  

बात यहीं खत्म नहीं होती और तो और सेंपल फ्लॅट भी आपको ऐसा सजाकर दिखाया जाता है कि मन करता है बस यही सजा सजाया घर यूं ही मिल जाये, बस यही सब सुविधाओं की दुहाई देते कब आपको बातों ही बातों में लूट लिया जाता है और आप लुट भी जाते हैं और आपको पता भी नहीं चलता। जब तक घर बनकर आपके हाथों में आता है तब तक वहाँ और भी लोग बस चुके होते हैं और आपका घर उन सभी घरों के बीच एक साधारण सा घर ही नज़र आता है। तब उस घर को देखकर ऐसा ज़रा भी नहीं लगता कि यह वही हमारा सपनों का घर है जिसे लेने से पहले हमने न जाने कितने सपने बुने थे। 

लेकिन फिर भी यह धंधा आज की तारिख में ज़ोरों पर हैं लोग लूट रहे हैं और लोग लुट भी रहे हैं। आपने वो कहानी तो सुनी ही होगी शायद वो एक राजकुमार और चार बुढ़ियों की कहानी जिसमें चारों का नाम था  आस, प्यास, भूख, नींद वो जिसमें जब राजकुमार सबसे उनका नाम पूछता है तो पहली कहती है मेरा नाम आस है और राजकुमार कहता है अरे आस मैया के तो क्या कहने उनके सामने तो सारी दुनिया सर नवाती है, फिर दूसरी से पूछता है आपका नाम क्या है वह कहती प्यास तो फिर वो कहता है अरे प्यास का क्या है चाँदी या सोने के गिलास में पानी पियो तो भी प्यास बुझ जाती है और यदि हाथ से चुल्लू बनाकर पियो तो भी प्यास बुझ ही जाती है। इसी प्रकार तीसरी जब अपना नाम बताती है भूख तभी वो वही कहता है भूख का क्या है छप्पन भोग खाओ तो भी खत्म हो जाती है और यदि सूखे टुकड़े भी खाओ तो भी भूख मिट तो जाती ही है। ऐसे ही चौथी बुढ़िया से पूछने पर जब वह अपना नाम बताती है नींद तब भी वह वही कहता है अरे नींद का क्या है सैर सोपौदी और मखमल के बिस्तर भी नींद आजाती है और यदि आँगन में ज़मीन पर सो जाओ तब भी नींद आही जाती है। 

ऐसा ही कुछ तो है मानव स्वभाव भी इंसान अपनी जरूरतों को कम करके भी एक खुशहाल जीवन जी सकता है मगर आज की तारिख में जीना नहीं चाहता। क्यूंकि आज कल पैसे की कमी नहीं है और यदि है भी तो दिखावा जिसे अंग्रेजी में स्टेटस सिंबल कहा जाता है। वह आपको अपनी कमी दिखाने का मौका नहीं देता वरना रहने को पहले भी लोग कच्चे घरों में रहा ही करते थे, मगर आज महल जैसे घर भी छोटे या किसी न किसी वजह से असुविधा जनक ही लगते हैं।अन्तः कहने का तात्पर्य यह है की यदि आप भी घर खरीदने के बारे में सोच रहे हों तो ज़रा सोचिए कहीं आपको भी तो लूटा नहीं जा रहा है न :)....  जय हिन्द

मेरे जो मित्र मेरी facebook पर नहीं है अपने उन मित्रों की जानकारी के लिए बता रही हूँ मेरा यह आलेख आज ज़ी न्यूज़ में प्रकाशित हुआ है जिसका लिंक मैं आपको नीचे दे रही हूँ। 
  
आज ज़ी न्यूज़ में प्रकाशित मेरा दूसरा आलेख... :)

Sunday 22 April 2012

स्कॉटलैंड यात्रा - तीसरा और अंतिम भाग

Snake model at Clansman Harbour
तो आज के इस भाग में होगी हमारी वापसी अर्थात इनवरनेस(Inverness) से वापस एडिनबर्ग(Edinburgh) तक का सफर लेकिन एक अलग रास्ते और अलग मंज़िलों और नज़रों के साथ। अगले दिन इनवरनेस के होटल से सुबह का नाश्ता कर हम निकले लोकनेस(Loch Ness) नामक झील की ओर, जहां से जेकोबाइट(Jacobite) नामक क्रूज चलता है जो कि आपको Clansman harbour से Urquhart Castle ले जाता है। लोकनेस झील के विषय में यह कहा जाता है कि बहुत साल पहले वहाँ उस झील में एक दैत्याकार आकार का सांप पाया जाता था जिसके स्मृति चिन्ह आपको स्कॉटलैंड कि लगभग सभी दुकानों में आसनी से देखने को मिल जाएँगे और जहां से वो क्रूज चलता वहाँ भी एक पानी में चलती हुई बोट कि तरह उस साँप के आकार का एक मॉडल रखा है जो बच्चों को बहुत आकर्षित करता है और बड़ों को भी उस आभासी या यूं कहा जाये कि बच्चों सी काल्पनिक दुनिया में ले जाता है और यह सोचने पर मजबूर करता है कि कैसा रहा होगा वो समय जब वह साँप यहाँ इस झील में देखा जाता होगा। यह कहानी जानने के बाद मेरे बेटे को भी उस झील को देखने की बहुत उत्सुकता थी हांलांकी उसको कई बार समझाया कि बेटा यह तो बहुत पुरानी बात है अब वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है लेकिन फिर भी उसका बाल मन केवल वो पानी देखने को भी उतना ही उत्साहित था, जितना कि यह कहानी सुनने के बाद था जैसे उसे आज भी वह साँप देखने को मिल ही जाएगा।

Urquhart Castle from Loch Ness Lake

खैर बाल मन तो बाल मन ही होता है, उसके आगे तो स्वयं भगवान भी नतमस्तक हो जाते हैं तो हम तो फिर भी इंसान ही हैं, फिर हम क्रूज में भी प्राकृतिक नज़रों का आनंद लेते हुए पहुंचे Urquhart castle जो देखने में कोई खास तो नहीं लगा क्यूंकि ऐसे छोटे मोटे किले अपने इंडिया में न जाने कितने होंगे, किन्तु फिर भी प्राकृतिक नज़ारों से घिरे होने के कारण यह यहाँ का यह छोटा सा खंडहर भी पर्यटकों के मुख्य आकर्षणों का एक हिस्सा बन जाता है।

गोदी हुई दीवार यहाँ भी
 वहाँ मैंने पाया कि लोग खामोखाँ ही इंडिया को बदनाम करते हैं कि अपने यहाँ लोग ऐतिहासिक स्थल पर दीवारों को खरोच करोच कर उन पर नाम लिख कर उन्हें बर्बाद किया करते हैं ,तो जनाब ऐसा नहीं है कि यह सब इंडिया में ही होता है यह सब यहाँ विदेशों में भी होता है और इसका सबूत है यह तस्वीर।



खैर यह सब देखकर हम वापस लौटे Clansman harbour और फिर वहाँ से रवाना हुए Glenfiddich Distillery जो कि Dufftown में स्थित है, जिसका अर्थ है The velly of the Dear इसके नाम में fiddich एक नदी का नाम है यहाँ मैं आपकी जानकारी के लिए एक महत्वपूर्ण बात और बताना चाहूंगी कि विसकी का सबसे अहम तत्व है पानी और ज़्वार(Barley) होता है। जहां तक मेरी जानकारी है आप सभी लोगों को नाम से ही पता चल गया होगा कि डिस्टिलरी किसे कहते हैं। फिर भी हो सकता है कि आप में से कुछ लोगों को ना भी पता हो इसलिए आपकी जानकारी के लिए मैं यहाँ एक छोटा सा परिचय देना चाहूंगी डिस्टिलरी यानी विसकी बनाने का कारख़ाना और स्कौच मतलब स्कॉटलैंड में बनाई जाने वाली, जैसे शेम्पेन(champagne) वो वाइन होती हैं जो फ़्रांस के Champagne नामक इलाके में बनाई जाती है। हम बात कर रहे थे Glenfiddich Distillery की, इस कारखाने की स्थापना सन 1887 में विलियम ग्रांट नामक व्यक्ति के द्वारा की गई थी। उनहोंने अपने सात पुत्रों के साथ अपने ही हाथों से इस कारखाने को बनाया। उनके व्यवसाय को बढ़ाने के लिए उनके दामाद का महत्वपूर्ण योगदान रहा, उनके दामाद ने एक साल देश विदेश घूम घूमकर यह पता लगया कि कहाँ और किस शहर में यह व्यसाय मुनाफे के तौर पर फैलाया जा सकता है। आज भी उनकी पीढ़ी अपने इस व्यवसाय को आगे बढ़ा रही है।

Distillation process of Whiskey
वहाँ पहुँचकर यह सारी जानकारी पहले एक फिल्म की तरह हमें अर्थात वहाँ आए सभी पर्यटकों को पर्दे पर दिखायी गयी, साथ ही एक उस कारखाने की एक छोटी सी किन्तु अपने आप में  बहुत बड़ी और जानकारी पूर्ण  यात्रा करवाई गई जिसमें हमने देखा कि विसकी कैसे बनती है या बनाई जाती है। उस यात्रा के दौरान हमने जाना कि जिस तरह चाय के कारखानों में वहाँ के विशेषज्ञ चाय चख कर उसकी विशेषता का पता लगाते हैं ठीक वैसे ही विसकी के विशेषज्ञ मात्र विसकी सूंघ कर उसकी विशेषता का पता लगाते है क्यूंकि भई सीधी सी बात बात है यदि वो पीकर पता लगाने लगे तो चल चुका उनका कारोबार :) उस यात्रा के दौरान हमने बहुत कुछ जाना जैसे विसकी हमेशा ओक(Oak) लकड़ी के ड्रम्स में और अंधेरे कमरों में रखी जाती है ताकि कम से कम उड़े क्यूंकि विसकी की विशेषता ही यही है कि वह जितनी पुरानी होगी उतनी ही महंगी भी होगी। हम सभी लोगों को भी विसकी के तीन ड्रम्स सूंघ कर पता लगाने को कहा गया था कि सूंघ कर बताइये कि इनमें से कोन सी कितनी पुरानी है मगर उस दौरान कोई भी सही उत्तर न दे सका। इसी दौरान हमने यह भी जाना कि 50 साल पुरानी विसकी की कीमत £15,000(12 लाख रुपये) है फिर सफर के अंत में सभी को वह तीन विसकी का स्वाद भी चखाया गया फिर क्या औरतें और क्या पुरुष। बच्चों में तो केवल एक मात्र मेरा बेटा ही था तो उसके लिए ख़ास तौर पर संतरे के रस का इंतजाम किया गया था :)

Trail session 
बहुत से पीने के शौकीन लोगों को यह सब पढ़कर यह लग रहा होगा ना, कि काश हम वहाँ होते मगर यकीन मानिये यदि जानकारी को एक तरफ कर दिया जाये ना तो वहाँ इतनी बुरी बदबू आती है कि पूरा कारख़ाना घूम पाना बर्दाश्त के बाहर होने लगता है हांलांकी कुछ लोगों को वह खुशबू लगेगी और pure whisky को चखना यानि केवल ज़ुबान से छूना भर ऐसा लगता है कि शायद जहर भी इतना कड़वा नहीं लगता होगा जितना कि यह pure  विसकी लगती है :) अब हम लोग वहाँ से निकल कर चले अपनी मंज़िल की ओर यानी वापस एडिनबर्ग की और मगर उस दौरान रास्ता इतना लंबा हो गया कि चलते-चलते ऐसा महसूस होने लगा था कि कहीं हम भटक तो नहीं गए हैं मगर भटके बिना ही रास्ता था कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। वापस लौटते-लौटते रात हो चुकी थी इसलिए तय हुआ खाना खाने के बाद ही होटल जाया जाएगा, भूख भी सभी को बहुत लग रही थी इसलिए एक अच्छा सा हिन्दुस्तानी खाना जहाँ मिल सके ऐसा एक भोजनालय ढूंढ कर हमने जम कर खाना खाया। बिलकुल ऐसे जैसे बरसों बाद खाना मिला हो और फिर होटल पहुँच कर जो सोये हैं कि बस पूछिये ही मत, लेकिन सफर अभी ख़त्म नहीं हुआ अभी तो पूरा एडिनबर्ग घूमना बाकी है।

आईने की भूल भुलैया
अगली सुबह तैरने का भी प्रोग्राम था सो सुबह उठकर हम सभी लोग होटल के swimming pool में तैरने के लिए पहुँच गए, 2 घंटे तैरने के बाद तैयार होकर नाश्ता किया और निकल पड़े बचा हुआ एडिनबर्ग घूमने जहां हमने केमरे की अद्भुत दुनिया का भरपूर मज़ा लिया उस स्थान का नाम था Camera Obscura जिसकी विशेषता है उस इमारत की छत पर लगा एक लेंस जिसके माध्यम से एक अंधेरे कमरे में बैठ कर भी पूरे शहर का मुआयना किया जा सकता है, कि शहर के किस कोने में क्या हो रहा है ज़रा सोचिए इतने साल पहले ही किले की सुरक्षा हेतु कैमरे का ऐसा प्रयोग अपने आपमें कितना महत्व रखता है। आज भी वहाँ सबसे ऊपरी मंज़िल पर एक शॉ किया जाता है जिसमें एक अंधेरे कमरे में बिठाकर एक पाइप की सहायता से उस लेंस को चारों और घुमा कर पूरा शहर एक सफेद रंग की टेबल पर दिखा दिया जाता है कि शहर के किस कोने में क्या गतिविधियां चल रही है। इसके अलावा बच्चों के मनोरंजन हेतु भी वहाँ कई सारे अलग अलग प्रकार के आईने और कई सारी अद्भुत  चीज़ें लगाई गई हैं जिसे देखकर विज्ञान के चमत्कारों का आभास होता है। वहाँ पहुँच कर आप भी एक अलग ही दुनिया को महसूस कर सकते हैं बिलकुल एक अलग तरह की चमत्कारिक एवं आलौकिक दुनिया, वहाँ से निकल कर हम सीधा पहुंचे स्टेशन घर वापसी के लिए।

रॉयल माइल (Royal Mile)
यह था मेरा पूरा स्कॉटलैंड का यात्रा वृतांत आपको कैसा लगा अनुभव के साथ जानकारी भी भरपूर मिली या नहीं ज़रूर बताइयेगा :) जय हिन्द       

Wednesday 18 April 2012

स्कॉटलैंड यात्रा भाग 2

caravans 
पिछले अंक में हमने बात की थी मेकलसफील्ड से मैंचेस्टर और मैंचेस्टर से स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबर्ग तक के सफर में हुए अनुभवों की, आज हम बात करेंगे एडिनबर्ग से इनवरनेस तक के सफर की बातें, तो जैसा कि मैंने पहले भाग में कहा था, कि हम लोग सुबह का नाश्ता करके होटल से चेक आउट कर एडिनबर्ग से इनवरनेस की ओर निकल पड़े और जहां जाते वक्त हमारा पहला पड़ाव था ग्लेन कोई(Glen Coe) नामक स्थान जो देखने में बेहद खूबसूरत लग रहा था चारों तरफ पहाड़ बीच में एक झिल मिलाती सी झील और कड़ाके की ठंड के कारण हल्का सा कोहरा जो धुएँ के समान प्रतीत हो रहा था। वहाँ कुछ केरावान(Caravan) भी खड़े थे। केरावान बोले तो चलताऊ भाषा में चलते फिरते घर, वो जो स्वदेश फिल्म में दिखाया था ना जिसमें शाहरुख खान रहा करता था वही,:) मतलब बस नुमा घर जिसमें नहाने से लेकर रहने खाने बनाने की सभी सुविधायें उपलब्ध होती है।


Glen Coe
हमने देखा इतनी सर्दी में भी वहाँ लोग पिकनिक की तरह उस स्थान का मज़ा उठा रहे थे, सच में घूमने के लिए सिर्फ घूमने का कीड़ा होना चाहिए। बाकी सब अपने आप मेनेज होता चला जाता है। खैर हमने भी गाड़ी रोक कर वहाँ की कुछ तस्वीरें ली ...और निकल पड़े अगली मंज़िल की ओर प्राकृतिक सुंदरता के बीच से निकलती हुई पतली लंबी सड़क, सड़क के दोनों ओर ऊंचे-ऊंचे पाहड़ों की चोटियों पर पड़ी हुई बर्फ ऐसे मोहक दृश्य कि बस उन्हें देख-देखकर मन खिल-खिल जाता था। हमारी दूसरी मंज़िल थी फोर्ट विलियम्स(Fort Williams) नामक स्थान जहां सब कुछ था सिवाए फोर्ट के :) खैर वहाँ पहुँच कर भूख लग रही थी तो हम सभी ने वहीं रुक कर मेकडोनाल्ड में लंच किया और वहीं बैठकर आगे कहाँ और कैसे जाना है यह निर्णय लिया। वैसे यदि आप शुद्ध शाकाहारी है और यदि आपको अलग अलग जगहों के खाने को खाने का शौक नहीं है तो मैं आपकी जानकारी के लिए यहाँ बता दूँ कि यह विदेशों में सब से ज्यादा विकट समस्या है। क्यूंकि यहाँ शाकाहारी खाना मिलना ज़रा मुश्किल ही होता है। 




Loch Lubnaig (Loch Lomand) 
लेकिन यदि आप मांसाहारी है तो आपकी चाँदी है। जहां मर्ज़ी हो खा लीजिये कोई टेंशन नहीं होती है। फिर चाहे वो मेकडोनाल्ड(McDonald)  हो या फिर "सब वे"(Subway) लेकिन फिर भी आपको बीफ(Beef) यानि गाय का मांस और पोर्क(Pork) यानि सूअर का मांस खाने से परहेज है तो भी थोड़ा ध्यान रखने की जरूरत होती है। मगर हाँ शाकाहारी व्यक्तियों के लिए "सब वे" से अच्छा मुझे तो आज तक कोई और विकल्प नहीं लगा, बाकी तो "पसंद अपनी-अपनी ख्याल अपना-अपना" खैर वहाँ से खा पीकर हम निकले अपनी दूसरी मंज़िल की ओर।


Fort Augustus 
जिसका नाम था फोर्ट अगस्ट्स (Fort Augustus) जहां की विशेषता थी एक खुलने और बंद होने वाला पुल जिसमें करीब 3 द्वार थे जो कि उपर से आने वाले पानी को विभिन्न भागों में अलग अलग जल स्तर के आधार पर कम ज्यादा करते हुए बोट को आगे बढ़ाते थे। हालांकि यदि आप उसको तकनीकी नज़र से देखें तो इतने साल पहले अंग्रेजों ने ऐसा पल बना लिया था जिसमें से बोट एक तरफ से दूसरी तरफ कनाल में से होते हुए पार कराई जाती हैं, इसका बड़ा रूप आप पनामा कनाल(Panama Canal) में देखने को मिलेगा, जहां बड़े बड़े कार्गो शिप पार कराये जाते हैं। बस उसके अतिरिक्त और वहाँ कुछ भी नहीं था, सो वह भी देखते हुए हम पहुँच गए इनवरनेस जहाँ हमारा होटल था।


इनवरनेस की शाम का नज़ारा 
वहाँ पहुँचते ही मालूम हुआ कि आज उस होटल का खानसामा बोले तो शेफ छुट्टी पर गया हुआ है क्यूंकि उस दिन ईस्टर का इतवार था। अब रात के खाने का क्या होगा यही सवाल मेरे मन में घूम रहा था। खैर कुछ देर कमरे में आराम करने के बाद हम ने iphone पर भारतीय भोजनालय ढूंढा और सोचा चलो यही चलते है। रास्ते से दिखा इनवरनेस की शाम का यह खूबसूरत नज़ारा, जिसे आप इस तस्वीर में देख सकते हैं। वहाँ के लिए निकले तो रास्ते में ख़्याल आया कि चलो वहाँ फोन करके टेबल बुक कर लेते हैं और पार्किंग का भी पूछ लेंगे सो फोन किया तो पता चला वहाँ जगह ही नहीं है। पूरा भरा हुआ है लगभग 1-2 घंटो की वेटिंग चल रही है। पहले तो समझ नहीं आया कि इतनी भीड़ क्यूँ है। क्यूंकि उस वक्त याद ही नहीं था कि आज ईस्टर है। फिर याद आया कि ईस्टर इतवार होने कि वजह से सभी होटल्स के शेफ छुट्टी पर गए हुए है। 
इसलिए सारी जनता बाज़ार में भोजनालयों पर टूट पड़ी थी, इस तरह लगभग 3-4 भोजनालयों में भटकते-भटकते एक भारतीय भोजनालय में हमको स्थान मिल ही गया, तब तक सभी की भूख़ ज़ोरों से भड़क चुकी थी। सो खाने का स्वाद कैसा है, इस से किसी को कोई मतलब ही नहीं था। सब बस यह सोचकर खाये जा रहे थे कि जो मिल गया वो बहुत समझो और आज के लिए स्वाद को एक तरफ करके बस खा भर लों फिर कल की कल देखी जाएगी, सो सबने खा लिया और होटल आकर सो गए।


यह था हमारी इस स्कॉटलैंड यात्रा का दूसरा दिन और इस आलेख का दूसरा भाग 2.... तीसरे भाग के लिए अभी इंतज़ार कीजिये जल्द मिलेंगे जय हिन्द .... :)     

Monday 16 April 2012

स्कॉटलैंड यात्रा-भाग 1



स्टेशन से बाहर आने के बाद का नज़ारा 
लो जी हम भी घूम ही आए इस बार ईस्टर की छुट्टियों में स्कॉटलैंड, वैसे स्वर्ग क्या होता है यह तो स्वर्गवासी ही जाने .... मज़ाक था यदि किसी को बुरा लगा हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ। मगर यदि प्राकृतिक सौंदर्य को ही स्वर्ग कहा जाता है तो स्वर्ग दुनियाँ के हर कोने में है फिर क्या हिंदुस्तान का कश्मीर और क्या यूरोप का स्वीटजरलैंड और क्या स्कॉटलैंड सब बराबर है खासकर मैंने जो अनुभव किया उसके आधार पर इतना कह सकती हूँ कि विदेशों में हर छोटी से छोटी जगह प्राकृतिक सौंदर्य से भरी पड़ी है मगर भारत में कुछ एक स्थानों में ही यह प्राकृतिक नज़ारे देखने को मिलते हैं। वैसे हो सकता है इस मामले में गलत भी हूँ क्यूंकि मैंने भारतवासी होते हुए भी भारत ज्यादा घूमा नहीं है इसलिए मैं इस बात का दावा तो नहीं कर सकती, लेकिन हाँ यहाँ जितना घूमा है उसके आधार पर यह ज़रूर कह सकती हूँ कि यहाँ लगभग सभी स्थानों पर  प्राकृतिक सौंदर्य भरा पड़ा है।


खैर इस बार मैं बहुत दिनों बाद अपने किसी यात्रा के अनुभवों को आप सबके साथ बाँट रही हूँ, जिसके चलते  मुझे अपनी लिखी हुई यात्राओं से संबन्धित सभी पोस्ट याद आ रही है। वैसे पहले मेरा ऐसा मानना था कि किसी भी यात्रा का वर्णन ऐसा होना चाहिए कि पढ़ने वाले को उस स्थान की सम्पूर्ण जानकारी आपकी पोस्ट से ही प्राप्त हो सके, मगर मुझे ऐसा लगता है कि उस स्थान की जानकारी देने के चक्कर में अक्सर अनुभवों का असर फीका पड़ जाता है। इसलिए इस बार मैं आपको उस स्थान की जानकारी कम और अनुभव ज्यादा बताना चाहती हूँ। मैं जानती हूँ अधिकतर लोग मेरी इस बात से सहमत नहीं होंगे, ज़रूर भी नहीं है कि हों, वैसे कोशिश तो मेरी रहेगी कि जानकारी और अनुभव दोनों ही आपको भली भांति दे सकूँ। मगर तब भी हो सकता है कि कहीं न कहीं आपको इस बात का आभास ज़रूर होगा कि मेरे इस आलेख में जानकारी कम अनुभव ज्यादा हैं इसलिए मैंने पहले ही बता दिया। वैसे आपकी जानकारी के लिए यहाँ एक बात और कहना चाहूंगी मेरी इस बार की यात्रा थोड़ी लंबी है इसलिए मैं आपको अपनी पूरी यात्रा का वर्णन एक ही पोस्ट में नहीं बल्कि दो या तीन भागों में लिखकर आपके समक्ष प्रस्तुत करूंगी इस उम्मीद के साथ कि आप सभी को मेरा यह यात्रा वर्णन भी ज़रूर पसंद आयेगा।


पहला भाग 
यहाँ मेकलसफील्ड(Macclesfield) से मैंचेस्टर(Manchester) तक का सफर और फिर वहाँ से स्कॉटलैंड(Scotland) की राजधानी एडिनबर्ग (Edinburgh) का सफर वैसे सफर आगे अभी और भी है। मगर फिलहाल इस यात्रा के पहले भाग का पहला अनुभव,यहाँ से हम लोग मैंचेस्टर तो आसानी से पहुँच गए, मगर वहाँ पहुँचकर मेरे बेटे मन्नू को शायद सुबह जल्दी उठने के कारण या सफर भागा दौड़ी के कारण थोड़ी तबीयत खराब होती सी महसूस हो रही थी, ट्रेन आ चुकी थी सामान चढ़ चुका था। मुझे भी मेरे पतिदेव ने बोल दिया था आप भी चढ़ जाओ मैं आता हूँ। क्यूंकि उस वक्त मेरे बेटे को उल्टी हो रही थी मैंने रुकना चाहा मगर मुझे आदेश पहले ही मिल चुका था तुम चढ़ जाओ मैं संभाल लूँगा, सो उनके कहे मुताबिक मैं चढ़ तो गई मगर मेरे चढ़ते ही ट्रेन के गेट बंद हो गए अब तो मुझे जो तनाव शुरू हुआ कि पूछो मत, समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूँ क्या न करूँ। यहाँ ट्रेन में चढ़ने के बाद कुछ देर के लिए फोन भी नहीं लगा। तो परेशानी और ज्यादा बढ़ रही थी कि पता नहीं यह लोग ट्रेन में चढ़े भी या नहीं, क्यूंकि भई सीधी सी बात है, यदि पहले से सब तय हो कि इस स्थान से इस स्थान तक आपको अकेले जाना है, तो बात समझ आती है। क्यूंकि फिर कोई परेशानी नहीं होती न ही किसी प्रकार का कोई तनाव होता है। लेकिन यदि परिवार साथ हो और कोई इस तरह बीच रास्ते में ही छूट जाये तो स्वाभाविक ही है कि तनाव तो होगा ही, मगर एक हमारे पतिदेव हैं जिनसे जब कुछ मिनट बाद मुलाक़ात हुई और जब मेरी जान में जान आयी तब भी उन्हें मज़ाक ही सूझ रहा था। तब उन्होने बताया कि क्यूंकि वो टायलेट में बेटे का मुँह हाथ धुला रहे थे, फोन भी नहीं उठा पाये। 
एडिनबर्ग के किले के सामने का एक दृश्य 


खैर ऐसा मेरे साथ दूसरी बार हुआ था। मुझे इतनी टेंशन हो गई थी मैं यह तक भूल गई थी कि मेरे पास मेरे पर्स में मेरा सेल(मोबाइल) भी है क्यूंकि उस वक्त एक तो मैं मानसिक रूप से बहुत ही ज्यादा परेशान थी उस पर से मेरे एक हाथ में कॉफी और दूसरे हाथ में चिप्स। क्या करूँ कैसे करूँ समझ ही नहीं आ रहा था और इतना भी कम नहीं था ऐसी स्थिति में सोने पर सुहागा मेरे पास जाने वाले टिकिट के बजाए वापस आने वाले टिकिट थे। वो तो गनीमत है कि टिकिट चेकर तुरंत नहीं आया वरना पता नहीं मेरा क्या होता, खैर मगर स्थिति संभल ही गई और कुछ देर बाद मुझे मेरा बेटा दिख गया, वरना पिछली बार स्वीटजरलैंड में तो ट्रेन ही चली ही गई थी:) खैर वो अलग बात है हम तो बात कर रहे हैं स्कॉटलैंड की, हाँ तो फिर हम लोग पहुंचे एडिनबर्ग। एक निहायत ही खूबसूरत स्थल मगर जैसे ही हम वहाँ पहुंचे हैं कि बारिश का होना शुरू, मगर हम कहाँ रुकने वाले थे। हमने वहीं स्टेशन पर क्लॉक रूम(left luggage) में अपना सामान रखा और बारिश में ही एडिनबर्ग के किले का भरपूर आनंद लिया और लगभग किले के हर कोने से नज़र आने वाले सभी प्राकृतिक नजारों की तस्वीरें भी ली, पहले ही दिन केवल एक स्थान घूमने में ही हम सभी लोग इतना थक गए कि मन किया बस अब किसी तरह होटल पहुँच जाओ, बस फिर क्या था फटाफट हमने टॅक्सी पकड़ी और होटल पहुँच कर बिस्तर पर ऐसे लमलेट हुए जैसे बरसों से ना सोये हों, जब रात के खाने का वक्त हुआ तब कहीं जाके मन मार के उठे, खाना खाया और फिर सो गए तब कहीं जाकर सुबह सुहानी लगी। :)
किले की दीवारों से लिया गया बाहरी सुंदरता का एक दृश्य 
सुबह का नाश्ता करके तय किया गया अब घूमने के लिए कहाँ निकलना है और बस सामान उठाया और उस होटल से चेक आउट कर हम निकल पड़े एक और यात्रा के लिए, मगर यहाँ आपकी जानकारी के लिए मैं इतना ज़रूर बताना चाहूंगी कि यदि आप भी स्कॉटलैंड घूमने जायें तो धूमने के लिए कार बुक करते वक्त इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि अगर आपकी उम्र 21 - 22 के बीच में है तो आपका ड्राइविंग लाइसेन्स 2 साल से ज्यादा पुराना होना चाहिए और बाकी सारे लोगों के लिए ड्राइविंग लाइसेन्स कम से कम एक वर्ष पुराना होना चाहिए। नहीं तो  आपको गाड़ी किराये पर नहीं मिलेगी क्यूंकि यहाँ कार किराये पर देने वाली कुछ कंपनियाँ ऐसी भी है जो बिना एक साल के ड्राइविंग लाइसेन्स के कार किराए पर नहीं देती। हाँ मगर सभी कंपनियों का यह नियम नहीं है कुछ बिना इस नियम के भी देती हैं मगर किस्मत की बात है कहीं आपके हाथ ऐसी कोई कंपनी लगी जिसमें यह नियम हो तो आगे आपको परेशानी का सामना करना पड़ सकता है इसलिए ध्यान रखना अनिवार्य है, क्रमश...आज के लिए बस इतना ही दूसरे भाग के साथ जल्दी ही मुलाक़ात होगी :) जय हिन्द                                      

Thursday 5 April 2012

खबरें और उनका प्रभाव...



खबरों के नाम पर आजकल पाता नहीं क्या परोसा जा रहा है हमारे सामने, कितना सच कितना झूठ...कुछ खबरें ऐसी होती हैं जिनका वाकई हमारे ऊपर प्रभाव पड़ना चाहिए, मगर पढ़ता नहीं है। शायद इसलिए कि  अब वह एक दिन की खबर नहीं, बल्कि रोज़ मररा की जीवन शैली की एक आम बात बन चुकी है। इसलिए अब हम पर उन खबरों का कोई असर नहीं होता। जब भी कोई हिन्दी समाचार पत्र उठाकर पढ़ो तो सबसे पहले दिमाग में यही आता है कि आख़िर कहाँ जा रहे हैं हम एक तरफ देश की उन्नति और प्रगति की बातें करते हैं। जिसे देखो मुझे गर्व है अपने हिन्दुस्तानी होने पर, का नारा लागते अपने आप में बड़ा गर्व महसूस करते दिखाई देता है। मगर वास्तविकता भी क्या यही है ? आज तक हमने क्या खोया क्या पाया आज यदि गौर करके देखो तो मुझे तो यह महसूस होता है, कि हमने जितना पाया शायद कहीं ना कहीं उसे ज्यादा ही खोया है। क्यूंकि जो स्थिति आज हमारे देश की है उसे देखते हुए तो यही लगता है कि कम से कम ऐसे आज़ाद देश का सपना तो नहीं देखा होगा हमारे वीर शहीदों ,क्रांतिकारियों और देश भक्तों ने, जहां मासूम ज़िंदगियाँ तक महफूज़ नहीं है, तो औरों कि बात ही क्या।
  
यूं तो सभी समाचार पत्रों में लगभग रोज़ ही इस तरह कि खबरें आती है और इसके अतिरिक्त आता ही क्या है। मगर फिर फिर भी आज का समाचार पत्र पढ़कर मन खिन्न सा होगया। हर पृष्ट पर टूटते घर और गरीबी मजबूरी,लाचारी के कारण बर्बाद होता मासूम बचपन ,या फिर दर-दर कि ठोकरें खाने को मजबूर बुढ़ापा इसके आलाव जैसे और कोई समाचार ही नहीं था कहीं, अब यहाँ यह स्वाभाविक ही है कि इन सब खबरों को पाठनिये बनाने के लिए निश्चित ही इन खबरों में और भी ज्यादा मिर्च मसाला लगाकर छापा गया होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है ,मगर कहीं न कहीं यह सब खबरें अपने आप में थोड़ी बहुत सच्चाई भी तो रखती ही होंगी। आखिर बिना आग के धुआँ तो निकाल नहीं सकता,तो फिर यही बात उभर कर सामने बार-बार आती है कि देश के छोटे-छोटे शहरों में आम जन जीवन का यह हाल है तो महा नगरों कि बात ही क्या ....


एक खबर थी मात्र 10 रूपय के चक्कर में मासूम ने खो दिये अपने पैर, क्यूँ क्यूंकि उसके पिता प्लाम्बर का काम करते हैं और वह बच्चा आपने पिता की सहायता करने के लिए पानी के टेंकारों का पाइप लागने और खोलने का काम किया करता था जिसके लिए उसे रोज़ 10 रूपय मजदूरी मिला करती थी। एक दिन वह पाइप खोल रहा था, कि गलती से ड्राईवर ने वह पानी का टेनकर वाला ट्रक चला दिया जिसके कारण उस मासूम के पैर उस टेनकर के नीचे आ गए और कुचल गये। उसका एक ऑपरेशन हो चुका है और दो, अब भी होने बाकी हैं। उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं है कि वह ठीक हो ही जाएगा। तो वही दूसरी ओर एक खबर थी कि देह व्यपार के लिए मात्र 67 हजार में बेंच दिया गया एक मासूम बच्ची को, तो कहीं एक बुजुर्ग महिला को उसके ही बहू बेटों ने पिता की मृत्यू के बाद अपनी ही माँ के साथ मार पीटकर घर से बाहर निकाल दिया।  

मैं जानती हूँ यह सभी खबरें बेशक आपको बहुत ही आम लग रही होंगी ,हैं भी...आज कल रोज ही तो सभी समाचार पत्रों में ऐसी ही खबरें तो छपा करती हैं। इसमें भला क्या नई बात है ? वाकई इसमें कोई नयी बात नहीं है किन्तु सवाल यही उठता है, कि आख़िर कहाँ जा रहे हैं हम ? यह तो आम जन जीवन की बात है, हमने तो बेचारे मासूम बेज़ुबान जानवरों को भी नहीं बक्षा है। तभी तो वह भी मजबूर होकर अपना जंगल छोड़ हमारे नगरों में खुले आम घूमने और अपने जीवन यापन हेतु आतंक फैलाने के लिए मजबूर हैं और हम हमेशा की तरह अपनी करनी का घड़ा दूसरों के माथे फोड़ने के लिए तैयार रहते हैं। तभी तो ऐसी स्थिति में हम वनकर्मी या यूं कहें कि वन विभाग के कार्यकर्ताओं को गालियां देने में कोई कसर बाकी नहीं रखते,कि उनकी लापरवाही के कारण जंगली जानवरों के यूं खुले आम बाहर घूमने कि वजह से ही आम आदमी को जानमाल का खतरा है। मगर कोई यह नहीं सोचता की वही आम आदमी किस कदर जंगलों और पेड़ों को अपने मतलब के लिए काट रहा है। 


"करे कोई भरे कोई"वाली कहावत को पूर्णतः चित्रार्थ करती हैं यह खबरें हर कोई आज भ्रष्टाचार मिटाओ ,महंगाई हटाओ जैसे नारे लागते हुआ मिलता है। जिसे देखो सरकार की बुराई करता नज़र आता है। बेशक सही भी है, जब सरकार ही भ्रष्ट होगी तो आम जनता का यही हाल होना ही है। मगर उस सबके बावजूद भी लोग, "आइ हेट पॉलिटिक्स" कहकर इन सब मुद्दों से कन्नी काट जाते हैं। क्यूँ? क्यूंकि आज हर कोई चाहता है की भगत सिंह फिर पैदा हो मगर पड़ोसी के घर में, और जो लोग कुछ कर गुजरने का जज़्बा यदि रखते भी हैं तो उनको राजनीतिक सहयोग तो भ्रेष्टाचार के चलते, मिलने से रहा, उल्टा दवाब ही बना रहता है कि यदि वो देश के लिए कुछ करना भी चाहें तो कर नहीं पाते। क्यूंकि अपना परिवार अपनी जरूरतें इंसान को कहीं न कहीं मजबूर कर ही देती हैं। फिर देश के बारे में कौन सोचता है और कोई कुछ कहे तो हमने ही ठेका लिया है क्या और भी तो लोग हैं पहले वो सोचें फिर हमारे पास आना कहकर लोग अपनी ही बातों से मुकर जाते हैं। ऐसे ही लोग नेता कहलाते है। जबकि सबको पाता है यदि कहीं भी किसी भी विषय में सुधार लाना है तो सबसे पहले शुरुवात अपने आपसे ही करनी होगी, अपने घर से ही करनी होगी, मगर करता कोई नहीं, क्यूँ ?


हम सदा राजनीति और नेताओं को कोसकर भला बुरा कहकर अपने दिल कि भड़ास निकाल कर चुप हो जाते हैं मगर उस सबसे होता क्या है ??? कुछ भी नहीं, ना वो ही सुधारने का नाम लेते है और ना हम ,मैं कहती हूँ, राजनीतिक मामले तो दुर कि बातें हैं। मगर हमारे आस पास घट रही,छोटी-छोटी बातों से तो हम सीख लेकर उसमें परिवर्तन और सुधार ला सकते हैं ना, तो फिर हर बात के लिए सरकार का मुंह देखकर गालियां क्यूँ देते नजर आते हैं। जैसे शिक्षा कि ही बात ले लीजिये, आज कि तारीख में भी नाजाने कितने ऐसे लोग हैं। जो पढ़ना चाहते हैं मगर आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण पढ़ नहीं पाते। क्या हम आप जैसे लोग ऐसे लोगों को पढ़ने का उत्साह देते हुए पढ़ा नहीं सकते, माना कि इन लोगों में भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो मुफ़्त में भी पढ़ना ही नहीं चाहते उन्हें तो केवल पैसा कमाना होता है ,मगर उतनी ही तादाद में ऐसे लोग और परिवार भी हैं जो वाकई पढना चाहते हैं, और अपने बच्चों को पढ़ना चाहते है मगर जैसा कि मैंने पहले भी कहा आर्थिक स्थिति ठीक न होने कारण वह लोग बाल मजदूरी करने और करवाने के लिए मजबूर हैं। ज्यादा दूर क्यूँ जाये अपने घर में काम करने आने वाली बाई के बच्चों की ही बात ले लीजिए। बेशक उनके बच्चे स्कूल जाते हैं पढ़ते हैं और कभी कभी किसी मजबूरी के चलते अपनी माँ की जगह आपके घर में काम करने भी आते हैं। 


आपने भी देखा होगा उनमें से अधिकतर बच्चे किसी न किसी विषय में कमजोर भी होते हैं और उनमें से ही क्यूँ आपके अपने बच्चे भी किसी न किसी विषय में कमजोर होते ही हैं, जिसको ठीक करने के लिए आप आपने बच्चों की तिउषन लगाते हैं ताकि आपका बच्चा उस विषय में भी कमजोर न रहे। मगर उनके पास इतना पैसा नहीं होता, कि वो उस विषय की टीयूषन लगाकर अपने बच्चों को पढ़ा सकें तो क्या आप उनको मुफ़्त में वो विषय पढ़कर उनकी मदद नहीं कर सकते ? कर सकते हैं। मगर आज की तारीख में कोई मुफ़्त में कुछ करना ही कहाँ चाहता, सबको पैसा जो बनाना होता है। ऐसे ना जाने और कितने छोटे बड़े काम है, जो सामाज कल्याण के नाम पर हम और आप बड़ी आसानी से बिना किसी झंझट के कर सकते हैं। यह शिक्षा देना तो मात्र एक उदाहरण था। 

मैं जानती हूँ आज आपको मेरी बातें भाषण से कम नहीं लग रही होंगी साथ ही यह आलेख पढ़ते हुए आप सभी के दिमाग में यह खयाल भी ज़रूर आरहा होगा, कि कहना बहुत आसान हैं ज़रा खुद तो कर के देखो फिर भाषण देना, तो मैं आप सबको यह ज़रूर बताना चाहूंगी मैंने  खुद यह कार्य किया है। तभी बोल रही हूँ। जब में दिल्ली में रहा करती थी मेरे घर काम पर आने वाली बाई का एक बच्चा जो की अँग्रेजी में कमजोर था मैंने उसे मुफ़्त में पढ़या है और मैंने उससे तब यह भी कहा था कि और जो तुम्हारे ऐसे दोस्त हों जिन्हें किसी विषय में किसी तरह की कोई परेशानी हो तो मेरे पास भेजना यदि संभव हुआ तो मैं ज़रूर पढ़ा दूंगी। 

खैर यह बात मैंने अपनी तारीफ करने के लिए नहीं लिखी है। बल्कि मेरे कहने का तात्पर्य तो बस इतना है, कि जब हम अपने आस पास हो रही चीजों में सुधार लाकर समाज कल्याण के लिए बिना सरकारी मदद या सहायता के इतना कुछ कर सकते है, तो फिर करते क्यूँ नहीं क्यूँ सिर्फ सरकार के नाम पर गालियां देकर ही अपनी भड़ास निकाल नकार चुप हो जाते हैं। यदि आपको याद हो तो ऐसी ही एक पोस्ट और भी लिखी थी मैंने जिसमें भूखे गरीब बच्चों को खाना पहुंचानी वाली संस्था का ज़िक्र किया था, ऐसी नजाने कितनी आंगिनत बाते हैं जिसके आधार पर आप समाज सेवा कर सकते हैं। यह तो मात्र उदाहरण हैं।

अन्तः बस इतना ही कहना चाहूंगी कि एक बार इस विषय पर सोचकर ज़रूर देखिएगा हो सकता है आपका एक प्रयास किसी कि ज़िंदगी बदल दे यकीन मानिये ऐसे कार्यों को करने के बाद आपके दिल और आपकी अंतर आत्मा को जो सुकून मिलगा ना वो आप लाख पूजा पाठ करवालें या स्वयं करलें तभी  आपको नहीं मिल सकता। साथ ही जो एक छोटी सी मदद और सहायता के बदले में हजारों लाखों दुआएँ मिलेगी सौ अलग और दुआओं से बड़ा धन मेरी समझ से तो इस दुनिया में और कोई नहीं... जय हिन्द          


                    

               

Monday 2 April 2012

विदेशी गरमियाँ ...



लो जी आखिरकार यहाँ भी गरमियाँ आ ही गयीं और हमने यहाँ भी उठाया गर्मियों के मौसम के पहले दिन का भरपूर मज़ा, यूं तो हर जगह धीरे-धीरे मौसम में बदलाव आता है। लेकिन यहाँ एक ही दिन में मौसम रंग बदल लेता है, जैसा कि आज हुआ समय का बदलाव यानि अब भारत और लंदन के बीच 4.5 घंटे का फर्क हो गया है जैसा कि हर छः महीने में बदल जाया करता है इसे (डे लाइट सेविंग) कहते हैं। इसके बारे में तो आप सबको पता ही होगा इसलिए इस विषय में ज्यादा कुछ नहीं कहूँगी। हाँ तो हम बदलाव की बात कर रहे थे, आज यहाँ समय के साथ-साथ मौसम भी बदल गया। आज बहुत लम्बे समय के बाद यहाँ तेज़ धूप देखने को मिली, धूप में गरमी की मौजूदगी का एहसास हुआ कि गरम धूप क्या होती है। एक ही शर्ट में बिना किसी जेकेट या कोट के घूमने में इतना आनंद आया कि बस पूछिये ही मत :)

ऐसे अवसर यहाँ कम ही देखने सुनने को मिला करते हैं वरना यहाँ धूप तो होती है मगर हवा में ठंडक के कारण ज़्यादातर एक आध हल्की पतली जेकेट की भी जरूरत पड़ ही जाती है। मगर आज ऐसा नहीं था आज आप कह सकते हैं, कि आज यहाँ गरमियों के मौसम की पहली शुरवात थी। यानि की पहला दिन पूरा बाजार ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेला हो, जगह-जगह सड़क के किनारे लगे खाने पीने की चीजों के साथ कपड़ों और बाकी सामानो की बिक्री के लिए लगे स्टॉल, बच्चों के वो घोड़े वाले छोटे-छोटे झूले इत्यादि। सच में देखने लायक था आज का यह नज़ारा, आज घूमने में बहुत मज़ा आ रहा था वरना तो अपने इंडिया में तेज़ धूप में लोग घरों से बाहर जाकर घूमना ज़रा भी पसंद नहीं करते। मगर यहाँ तेज़ धूप का होना जैसे जश्न के माहौल का काम करता है बाज़ारों में लगभग सभी मॉल और कपड़ों की दुकानों में गर्मियों में पहने जाने वाले कपड़ों की भरमार लगी पड़ी है,सर्दियों के कपड़ों पर सेल चालू है आइसक्रीम खाने के दिन आ गये इस सबका अंदाज़ तो आपको यहाँ लगी तसवीरों से लग ही रहा होगा है ना:)

वैसे तो मैं यहाँ के बहुत से शहरों में रही हूँ और हर एक शहर देखने में लगभग एक सा ही लगता है। मगर बदलते मौसम के साथ हर शहर का नजारा अपने आप में एक अलग ही सुंदरता रखता है। जैसे मैं यहाँ के लगभग चार शहरों में, मैं रही हूँ पहला लंदन जहां कि गरमियाँ नहीं देखी मैंने मगर वहाँ की ठंड का भरपूर मज़ा उठाया है। फिर दूसरा है बोर्नेमौथ (Bournemouth) यह एक पर्यटक स्थल है,जो की समुद्री तट और वहाँ की सफ़ेद रेत (white sand) के लिये मशहूर है। गरमियों के दिनों में वहाँ खासकर हर शनिवार और इतवार को उस समुद्री तट पर इतनी भीड़ होती है,कि बैठने तक को जगह नहीं मिलती सोच सकते है आप समुद्री तट पर इतनी भीड़ की बैठने को ढंग की जगह भी न मिल सके। वहाँ भी चारों और पूरे परिवार के साथ पिकनिक का सा लुफ़्त उठाते लोग, जगह-जगह वही खाने पीने के स्टाल, मौज मस्ती धूप सेंकते सनस्क्रीन क्रीम पोते लोग बाज़ारों और सड़कों पर जरूरत से ज़्यादा चहल-पहल गरमियों के मौसम में ही यहाँ ऐसा लगता है कि यहाँ भी लोग बस्ते हैं जिन्हें बाहर घूमने फिरने और मोजमस्ती का शौक होता है वरना कड़ाके की ठंड के कारण और उसके चलते जल्दी अंधेरा हो जाने कि वजह से इतनी तादाद में लोग बाहर सड़कों पर बहुत कम ही नज़र आते हैं।
खैर हम तो बात गर्मियों की कर रहे थे ना....ऐसा ही कुछ माहौल क्रोले(Crawley) में हुआ करता था। यह मेरा तीसरा शहर, वहाँ का मुख्य आकर्षण का कारण हुआ करती थी वहाँ लगी कारबूट सेल(Car boot sale)वैसे तो यह कारबूट सेल यहाँ के लगभग सभी शहरों में लगा करती है मगर मुझे इस विषय में यहाँ आकर ही जानकारी प्राप्त हुई थी। कार्बूटसेल जो कि सेकेंड हैंड चीजों की सेल कहलाती है, जहां आपको घर में उपयोग में आने वाली हर छोटी से छोटी चीज़ से लेकर हर बड़ी से बड़ी चीज़ तक आपको कम से कम दामों में मिल जाया करती हैं। कई लोगों कि ग्रहस्थीयाँ तक बनते देखी हैं मैंने उस सेल से खरीदे हुए सामान के जरिये। वह इसलिए क्यूंकि बाहर से आने वाले अधिकतर लोगों की यह मानसिकता रहा करती है कि भविष्य में वापस अपने देश लौटकर जाना ही है तो फिर यह सारा सामान बेकार जाएगा इसलिए अच्छा है यहीं से सेकेंड हेंड ले लो, हालांकी वैसे तो यहाँ fully furnished घर लेने का चलन है मगर फिर भी जो लोग ऐसा घर नहीं ले पाते या नहीं मिल पाता, वह अपने घरों में जरूरत के सामान की पूर्ति ऐसे ही किया करते है।

और अब यह चौथा शहर है जहां में हूँ जिसका नाम है मेकलस फील्ड(Macclesfield) और आज मैंने यहाँ की भी गर्मियों के मौसम का पहला दिन देखा और मुझे यहाँ भी कुछ अलग सा माहौल महसूस हुआ इसलिए सोचा कि यहाँ के माहौल की कुछ तस्वीरों के जरिये आपके साथ यह बातें, यह अनुभव सांझा करूँ उम्मीद करती हूँ आपको मेरी यह पोस्ट भी पसंद आयी होगी।

हमेशा की तरह आज के लिए बस इतना ही फिर किसी दिन मुलाक़ात होगी एक नये विषय के साथ तब तक के लिए आज्ञा दीजिये  जय हिन्द .... :)