मैंने इस blog के जरिये अपने जिन्दगी के कुछ अनुभवों को लिखने का प्रयत्न किया है
Friday, 24 March 2023
नवरात्र और मैं ~
Thursday, 23 February 2023
तुम करती ही क्या हो ...? व्यंग
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आज सुबह सवेरे में प्रकाशित |
तुम करती ही क्या हो...?
एक औरत दूसरी से तुम क्या करती हो...? मैं एक गृहणी हूँ. हाँ वो तो ठीक है,
पर तुम करती क्या हो.? ‘आई मीन यू नो’...? तुम घर में कैसे रह लेती हो यार, मेरा तो जी घबराता है, बुखार आजाता है. अच्छा, तो तुम क्या जंगल में रहती हो.? व्हाट रबिश... मेरे कहने का मतलब था कि "घर के काम एंड ऑल" ओह.! तो उसमें क्या है, तुम जैसों के
लिए घर को घर बनाते है और क्या. अरे घर में काम ही क्या होता है.आजकल तो सभी
घरों में अधिकतर झाड़ू पोंछे और बर्तन के लिए बाई लगी होती है. बस सिर्फ खाना ही तो
बनाना होता है और थोड़ी बहुत साफ सफाई, बस और तुम फ्री.अच्छा...! तुम्हें कैसे पता कि उसके बाद हम फ्री..? तो और
क्या बढ़िया खाओ और सौ जाओ चैन की नींद. ओह...! तो बच्चों को लाना, उनके आने के बाद उन्हें समय से खिलाना, पढ़ना,
उनके साथ समय बिताना, खेलना और समय से उन्हें
सुलाना. यह सब तो अपने आप ही हो जाता है. है ना...! और कपडे भी खुद ही अपने आप चेक
होकर मशीन में टेलीपोर्ट होकर खुद ही धुल जाते हैं और पता है कमाल की बात तो यह है
कि खुद ही अपने आप बाहर जाके सूखकर, छटकर, प्रेस के लिए भी अपने आप ही चले जाते है. नहीं....! बताओ...! कित्ता
ज़माना बदल गया है भई... मुझे तो सही में अब तक पाता ही नहीं था. एक कुटिल मुस्कान
के साथ, नहीं ...?
खैर, मेरी छोड़ो तुम क्या करती हो...? मैं एक कंपनी में
मैंजर हूँ. हो.....! मतलब तुम कुछ भी नहीं करती...? तुम्हारे
लिए सब दूसरे ही कर के देते हैं. वाह...! क्या मतलब है तुम्हारा ? पूरी टीम को मैंनेज करती हूँ मैं, किसी से काम
करवाना आसान नहीं होता. कभी करा के तो देखो, तब पता चले.
कितना मुश्किल होता है इतने सारे लोगों को मैंनेज करना...ओह...! बाईयों से काम
करना तो बहुत आसान होता है...वो भी जब, जब वो बहुत ही कम पढ़ी
लिखी होती है. मगर दुनियादारी बखूबी जानती है और बच्चे संभालाना, वो तो चुटकीयों का काम है. क्योंकि वो तो नासमझ होते है, तो दिन भर सवाल करते हैं... और उनके सभी सवालों का सही सही जवाब देना
तो....दिमाग लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ती “यू नौ” कुछ भी नहीं रखा है इसमें, नहीं...! और तुम तो पढ़े लिखे बहुत ही समझदार लोगों को संभालती हो...सही
है. तो अब तुम मुझे बताओ कि तुम करती ही क्या हो...?
Sunday, 19 February 2023
कुछ तो गड़बड़ है तारा ~एक व्यंग ~
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सुबह सवेरे में प्रकाशित मेरा लिखा एक व्यंग |
Friday, 10 February 2023
कहानी लेलो कहानी ~व्यंग
भोपाल से निकलने "सुबह सवेरे" समाचार पत्र में प्रकाशित मेरा लिखा एक व्यंग
कहानी ले लो भाई साहब, कितने की दी ? भईया एक कहानी मात्र ढाइसो कि है। अरे
बाप रे ! यह तो बड़ी महंगी है। थोड़ी सस्ती में देते हो तो बताओ। अच्छा कितना दाम
लगाओ गे आप बताओ ? डेढ़सौ में दे रहे तो बात करो। अरे नहीं
नहीं...। इतने में तो केवल लघु कथा ही मिल सकती है, यह नहीं।
यह तो बड़ी कहानी है, इतने में तो नहीं पड़ेगी। अच्छा तो ठीक
है फिर, रहने दो कभी ओर देखेंगे। अच्छा ठीक है भाई साहब, कहानी लेलो भई कहानी छोटी बड़ी सभी तरह कि कहानियाँ...! आगे चलकर फिर किसी
ने आवाज दी अरे भईया जरा सुनना तो सही, एक कहानी कितने में
दी ? अरे दीदी ज्यादा नहीं बस ढाईसौ । क्या ....! इतनी महंगी
? कहाँ दीदी, यह तो केवल महनतना ही
मांग रहे हैं। वरना असल कीमत तो हमने अभी तक लगायी ही नहीं है।
अरे नहीं भईया तब भी बहुत मंहगी है। हाँ तो दीदी
बड़ी भी तो है, ऊपर से आप लोग शब्दों का प्रतिबंद अलग लगा
देते हो, कभी सोचा है कि स्व्छंद लिखने वाले को कितनी
कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और एक आप हो उसमें भी मोल-भाव कर रही हो। लेलो न
एक कहानी दीदी, आपका क्या जाएगा। आप तो खुद भी इतना लिखती हो
कि आपके हाथ के नीचे से निकलने वाली छोटी मोटी
पत्रिका वह भी वो वाली जो अखबार के साथ अलग से आती है, तक
में केवल दो पन्ने तो आपके ही होते हैं। ऐसे में हमारा लिखा भी थोड़ा सा लेलोगी तो
आप क्या बिगड़ जाएगा।
बस बस ज्यादा बकवास करने कि जरूरत नहीं है।
जितना पूछा जाए उतना ही बताओ और हाँ ठीक ठीक भाओ लगाओ वरना और भी बहुत लोग हैं
लाइन में, जिन्हें अपनी कहानियाँ और कवितायें बेचनी है हमें। एक तुम ही अकेले नहीं हो। हाँ हाँ...! दीदी यह बात तो हम
बहुत अच्छे से जानते है। आप यह लघु कथा लेलो मात्र डेढ़सौ कि है। नहीं भाई तुम अब
तक मेरी बात का सही अर्थ नहीं समझे। लघु कथा वह भी डेढ़सौ कि बहुत महगी है। ऐसा करो
एक बड़ी कहानी के साथ एक लघु कथा नहीं तो एक व्यंग या फिर एक कविता मुफ्त दे दो तो
हम यह कहानी अभी खरीद लेते हैं। नहीं दीदी, यह न हो पाएगा।
सोच लो भईया...! जो मैंने कहाँ वही सबसे अच्छा सौदा है कम से
कम कुछ नहीं से कुछ तो मिल रहा है। नहीं दीदी, ना हो पाएगा।
आगे चलेते हुए फिर कहानी ले लो कहानी...
सुनो भईया मेरे पास तुम्हारे लिए एक योजना है कहो
तो बताऊँ ? अरे साहब सुबह से कहानियाँ बेचने निकला हूँ
अब तक बौनी नहीं हुई और आप एक और नयी योजना ले आए हो, न ना
मेरे पास टेम ना है। अरे कम से कम योजना सुन तो लो, नहीं जमे
तो ना लेना। अच्छा ठीक है, बताओ क्या है आपकी योजना। द्खो
मैं भी यही रहता हूँ और एक अखबार चलता हूँ। जिस तरह तुम्हारी कहानियाँ नहीं बिक
रही उसी तरह मेरा अखबार भी कोई खास नहीं बिक रहा है। तो क्यूँ ना साथ में मिलकर
धंधा किया जाये। तुम हमारे अखबार कि सदस्यता लेलो हम तुम्हारी कहानियाँ वहाँ छाप
दिया करेंगे जिससे थोड़े ही दिनों में तुम्हारा नाम भी हो जाएगा और हमें भी कंटेन्ट
मिल जाएगा। अरे बाबू जी, तो इसमें मेरा क्या भला होगा। सारी
मलाई तो आपको मिल जाएगी। अरे तुम्हारा भी तो भला हो रहा है,
रोज़ छपोगे और यदि प्राइम मेम्बर शिप लोगे तो एक ही पेज पर तुम्हारी एक से अधिक
रचनाओं को स्थान दिया जाएगा।
अरे वाह रे बाबू जी आपको हमारे माथे पे क्या
लिखा दिखा जो आप यह योजना हमारे पास लेकर आए हैं। हमारी ही कहानी हम से ही पैसा
लेकर, यदि आपने छाप भी दी तो कौना सा बड़ा अहसान किया बात तो तब होती जब आप मुझे
मेरे महंताने के साथ मेरी कहानी को अपने अखबार में स्थान देते। रहने दो बाबू जी
रहने दो।
कहानी ले लो कहानी एक कहानी के साथ एक कविता, एक कविता के था एक लघु कथा, और एक लघु कथा के साथ
एक व्यंग मुफ्त .....
Friday, 13 January 2023
फेसबुक वाल और व्हाट्सप्प स्टेटस के बीच उलझी ज़िंदगी~
फेसबुक वाल और व्हाट्सप्प के स्टेटस में उलझी ज़िंदगी सुनने में अजीब लगता है है ना ! लेकिन आज की जीवन शैली का यही सर्वभोमिक सत्य है। क्यूंकि सोश्ल मीडिया आज के समय की शायद सबसे बड़ी अवश्यकता है। इंसान एक दिन बिना भोजन के रह सकता है, बिना जल के भी रह सकता है। लेकिन बिना इंटरनेट के नहीं रह सकता। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो आपको समस्त स्त्रियॉं के निर्जले वर्त और त्यौहारों पर बड़ी ही सुलभता से देखने मिल जाएंगे। इन वर्तों में या उपवासों में भले ही पूजा जरूरी हो या न हो, किन्तु फोटो खींचना और उसे सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्मों पर डालना सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य सिद्ध होगया है। दूजा आप यदि किसी भी वजह से खुश है, जो कि ईश्वर करे आप सदा खुश रहें। तो भी दुनिया को कैसे पता चलेगा कि आप आज बहुत खुश हैं। तो भई फेसबुक और व्हाट्सप्प स्टेटस से ही तो सब को पता चलेगा ना कि आज आप बहुत खुश है। वहीं दूसरी और यदि आप किसी कारण वश बहुत परेशान है या दुखी है तो यह भी तो सब को पता चलना चाहिए न है कि नहीं ? नहीं आप बताओ है ना ! तो इसके लिए भी फेसबुक की दीवार और इंसटाग्राम हैं ना दुख भरी पोस्ट सांझा करने के लिए।
तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण यदि आपको ऐसा लगे
कि आज आप बहुत ही खूबसूरत लग रहे हैं। तब तो फिर बात ही क्या जनाब...! अब इतनी
जोरदार बात भी तो सभी को पता चलनी चाहिए, है कि नहीं!
तो बस ज्यादा कुछ नहीं करना है आपको, बस सेल्फी टाइम का टेग
चिपकाकर अपनी तसवीरों कि भरमार से भर दीजिये अपनी फेसबुक की दीवार, व्हाट्सप्प स्टेटस, इंसटाग्राम आदि पर, और क्या चाहिए। वैसे इसमें कोई बुराई नहीं है। ना ना, मैं इस सब के खिलाफ नहीं हूँ। मैं तो खुद भी इस सब का हिस्सा हूँ । आखिर
मैं भी आप सब में से ही एक हूँ। हालांकि मैंने तो यहाँ बहुत ही आम उपयोग में आने
वाले केवल दो एप्स्स को ही सम्मिलित किया है। वरना आज कि तारिक में तो न जाने
कितने ऐसे प्लेटफॉर्म है सोश्ल मीडिया पर जिन पर जाकर लोग अपनी भावनाएं प्रकट किया
करते है। पर असल मुद्दा यह नहीं है कि ऐसा कुछ भी करना उचित है या अनुचित है।
बात तो यह है कि इस सोश्ल मीडिया ने हमारी
जिंदगी जितनी आसान बना दी, उतना ही कहीं न कहीं हमे
वास्तविकता से दूर कर दिया है। इतना दूर कि आज हम कैसा महसूस कर रहे है उसकी भी
तस्वीरें ले लेकर दूसरों को दिखाना पड़ रहा है। जरा सोचिए,
भावनात्मक स्तर पर जब हमारा यह हाल है तो इस आभासी दुनिया में जीते जीते हम खुद
आभास हीन होते चले जा रहे हैं और हमे पता भी नहीं चल रहा है। बस भेड़चाल में भेड़
बने, बिना कुछ सोचे, बिना कुछ समझे, बस चले जा रहे हैं। ना रस्तों का पता है, न मंजिल
का पता है। सबसे ज्यादा अफसोस तो तब होता है, जब इन्ही
माध्यमों पर हमें अपने उन लोगों कि झूठी तस्वीरें दिखाई देती है, जिनकी असल ज़िंदगी के बारे में हम बहुत करीब से जानते है कि वह व्यक्ति
वास्तव में अंदर से कितना दुखी है। यही से एक सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न कि उत्पत्ति
होती है कि आखिर ऐसी क्या बात है इस दुनिया में कि यह आज के समय की सबसे बड़ी
आवश्यकता बन गयी है।
जहां तक मेरी समझ कहती है, जीवन की अपूर्णता ही इस आभासी दुनिया की सबसे बड़ी जरूरत है। जब आपको अपने
निजी जीवन में ऐसे लोग नहीं मिलते, जो आपके लिए थोड़ा सा समय
निकालकर आपसे बात कर सकें, आप पर ध्यान दे सकें, आपसे दो बोल प्यार के बोल सकें। ज्यादा कुछ नहीं तो कम से कम इतना ही पूछ
लें कि आज आप कैसे हो, या आज आप बहुत अच्छे लग रहे हो, या ऐसी कोई भी बात जो आप चाहते हो कि कोई आप से पूछे, आप किसी से मिलो, तो आप उससे पूछो और बातों का
सिलसिला चले। कुछ मन बदले, यह आम जीवन की वह बातें हैं, जिसकी आशा हम अक्सर अपने आस पड़ोस वालों से या अपने घरवालों से रखते हैं।
लेकिन जब आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में जहां
किसी को किसी के लिए समय नहीं है। यहाँ तक के परिवार के सदस्यों तक के पास इतना
समय नहीं है कि वह एक साथ मिलकर खाएं, बैठें और आपस
में एक दूसरे से इस तरह कि बातें पूछें और बताएं, बात करें
और जब यही छोटी छोटी बातें हमें यह सोश्ल मीडिया के किसी प्लेटफार्म पर मिलती हैं।
तब बहुत ही आसानी से हम वास्तविक दुनिया को भूलकर इस आभासी दुनिया कि ओर मुड़ जाते
है। या यूं कहे कि इस दुनिया में खुश रहना सीख जाते हैं, तो
इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। फिर धीरे-धीरे ज़िंदगी इस फेसबुक कि दीवार और इस
व्हाट्सप्प के स्टेटस में उलझ के रह जाती
है और वास्तविक रिश्तों में दूरियाँ आती चली जाती है। इसी से यह पता चलता है कि
जीवन में इन छोटी छोटी बातों का कितना बड़ा महत्व होता है। तो इन्ही बातों का ध्यान
रखते हुए, अपने रिश्तों को बचाइए क्यूंकि रिश्ते दिखावे से
नहीं बल्कि प्यार से निभाय जाते हैं।
Wednesday, 4 January 2023
~अश्लीलता परोसता इंटरनेट ~
बात गंभीर है इसे हल्के में ना लिया जाये पर आज का कटु सत्य यही हैं। माना कि
इंटरनेट आज हमारी सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है इसके बिना जीवन संभव नहीं है। आज
इंटरनेट है तो हम है और उसी की कृपा से मैं आज यहाँ यह सब लिख पा रही हूँ। इंटरनेट ना होता तो पेंडमिक साल में लोग मानसिक
रूप से गंभीर बीमारियों की चपेट में आसानी से आ गए होते। लेकिन इस इंटरनेट ने ऐसा होने
से सभी को बचा लिया। बड़ी कृपा है इस इंटरनेट कि जिसके माध्यम से हमारे बच्चों की
शिक्षा छूटने से बच गयी। अगर सभी अध्यापकों ने ऑनलाइन क्लासेस ना ली होती तो दसवीं
और बारहवीं वाले बच्चों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाती। बच्चों के साल बर्बाद होते वो अलग, इसलिए सभी अध्यापकों
का आभार सहित धन्यवाद है। इंटरनेट के बिना
अपनी दुनिया की कल्पना तक नहीं की जा सकती। यदि यह ना होता तो महिलाओं के अंदर छिपा
हुनर बाहर निकल के ना आ पाता। कई लोगों को पेंडमिक के दौरान इसी इंटरनेट ने भूखों मरने से बचाया है। यूँ देखो तो आज की आधुनिक जीवन शैली का ना सिर्फ एक अहम् हिस्सा
है इंटरनेट बल्कि कइयों के लिए तो यह भगवान है इंटरनेट। यदि मैं ऐसा कह रही हूँ तो
इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए और मैं यदि इसके इस मोबाइल नामक यँत्र की
जितनी तारीफ़ करूँ कम ही होगी। लेकिन वही दूसरी ओर अब जो कुछ भी मैं कहने जा रही
हूँ, वह भी इस इंटरनेट के इस मोबाइल नामक खतरनाक यँत्र की वह
देंन है, जो इंटरनेट का एक बहुत ही घिनौना और भयावह रूप लेकर हमारे सामने आता है।
यह कोई आज की बात नहीं है, लेकिन आजकल इन बातों का प्रचलन पहले की तुलना में
इतना अधिक बढ़ गया है कि सोचते ही रोंगटे खड़े हो जाते है। आजकल जहां देखो वहाँ हर वैबसाइट
पर इस तरह के विज्ञापन आने शुरू हो जाते हैं और गलती से भी यदि मोबाइल देखते वक्त आपके
अंगुलियों के स्पर्श से ऐसे किसी लिंक पर हाथ लग जाये। तो फिर तो, कहना ही क्या।
तब जैसे इस तरह की सामग्री की तो जैसे बाढ़ ही आ जाती है। हर जगह बस उसी से संबन्धित
विडियो ही आपके सामने आकर आपको शर्मिंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। यूं तो हम देश
के विकास की बात करते है, गाँव के सुखद जीवन और ज़मीन से जुड़े
रहने की बातें करते हैं, हमारे और आपके लेखन में भी गाँव की गलियों
से लेकर गाँव की पगडंडियों तक का ज़िक्र होता है, खेत खलियानों
का ज़िक्र होता है, गाँव की शुद्ध हवा और साधारण से देखने वाले
नेक लोगों का जिक्र होता है। खेतों की बात निकलते ही हम अपने बचपन की स्मृतियों में
खो जाना चाहते है। लेकिन आज इस इंटरनेट की दुनिया ने जैसे यह सब धूमिल कर के रख दिया
है। आज वही गाँव के रहने वाले और साधारण से दिखने वाले लोग ही खेतों में जाकर ऐसे
ऐसे अश्लील विडियो बना रहे हैं कि देखते ही, सर चकराने लगता
है, आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है या फिर आँखें इस कदर चौंधिया
जाती है कि दिखाई देना बंद हो जाता है और गाँव के लोगों के संस्कारों की धज्जियां बिखर
जाती है। हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता की बातें जैसे मुंह छिपाने लगती है। और ऐसा
सिर्फ गांवों में नहीं होता शहरों में भी बहुत बड़े दर्जे पर हो रहा है और शहरों की ही यह जहरीली हवा है जिसने गाँव की शुद्ध हवा को भी दूषित कर कचरे में गिरा दिया है।
अब आप सोच रहे होंगे कि मुझे यह सब कैसे पता ? है ना ! तो मैं
यहाँ यह बताती चलूँ कि मुझे ऐसी सामग्री देखने में कोई दिलचस्पी नहीं है। लेकिन आजकल
जो यह “रील” बनाने और देखने का सिलसिला चल निकला है ना ! यह बस उसी की देन है। अब
कोई माने या ना माने पर सच तो यही है कि हर कोई जब भी अकेले बैठता है तो मोबाइल पर चाहे
खुद रील बनाए या ना बनाए लेकिन समय काटने के लिए रील देखता ज़रूर है। और बस यही से उसकी
जिंदगी बर्बाद होने की शुरुआत हो जाती है। क्यूंकि जब तक आप अच्छी सामाग्री देख रहे हो, तब तक तो ठीक है। लेकिन इस बीच यदि
ऐसा कोई भी कनटेंट आ गया जिसे हम अश्लील की श्रेणी में रखते है तो बस समझ लीजिये फिर
आपका मोबाइल इस तरह की सामग्री परोसने का गढ़ बन जाएगा और आपके मान सम्मान और प्रतिष्ठा की लंका लगा देगा। कभी कभी सोचती हूँ तो लगता है जब हम जैसों का यह हाल है तो जरा उन
उम्र दराज़ व्यक्तियों के विषय में सोचिए। जिन्हें ठीक से दिखाई नहीं देता या फिर जिनकी
अगुलियाँ ठीक से काम नहीं करती। जब वह बुजुर्ग लोग इंटरनेट के माध्यम से खुद को मनोरंजित
करने का प्रयास करते हैं या समय काटना चाहते हैं, तो वह क्या
करें ? उनके हाथों से तो अक्सर ऐसी गलतियाँ हो जाया करती हैं
और हम उनके चरित्र पर तुरंत उँगलियाँ उठाने और अपशब्द कहने में देर नहीं करते।
अभी तो बात बुज़ुर्गों तक ही है। जरा युवा पीढ़ी के बारे में सोचिए। वह तो दिन
रात इंटरनेट पर ही बिताते हैं। चौबीसों घंटे उनका समय चाहे पढ़ाई से संबन्धित हो या
खेल से संबन्धित इंटरनेट पर ही बीतता है। क्या उनकी आँखों के सामने से यह सब नहीं गुज़रता
होगा ? बिलकुल गुज़रता
होगा। कई युवा तो इसी पर ध्यान देते भी होंगे, तो कई इसे नज़र
आंदज करके आगे भी निकल जाते होंगे। अब जरा उन छोटे बच्चों के विषय में सोचिए, जिनके स्कूल का बहुत सा काम इंटरनेट से जुड़ा होता है। आमतौर पर हम इतने छोटे
बच्चों को अलग से मोबाइल देना उचित नहीं समझते। तो वह या तो अपनी मम्मी या पापा के
मोबाइल पर ही अपना सारा काम देखते समझते और करते हैं। वैसे अधिकतर मम्मियों का मोबाइल
ही होता है पापा लोग अपना मोबाइल बच्चों को देना पसंद नहीं करते। शायद “चोर की दाढ़ी
में तिनका” वाली कहावत यहाँ सच बैठती हो। खैर यह तो मज़ाक वाली बात हो गयी। तो हम बात
कर रहे थे बच्चों की, तो बच्चे अपना सारा काम मम्मी के मोबाइल पर करने के बाद फिर थोड़ी
देर मोबाइल पर खेलने की ज़िद भी करते हैं। कई बार यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर अपनी पसंद की कोई कार्टून फिल्म देखना भी पसंद करते हैं और आपको गाहे बगाहे उन्हें अपना मोबाइल
देना ही पड़ता है। तो आपको क्या लगता है ऐसे में आपका बच्चा इस प्रकार की सामाग्री देखने
से कितना सुरक्षित है क्यूंकि आप एक व्यस्क है और यूट्यूब पर कब कौन से लिंक के नीचे
आपको क्या लिंक देखने को मिल जाये इस बात की गारंटी शुरू से ही यूट्यूब पर नहीं होती।
चलिये एक बार को मान लेते हैं कि इतने छोटे बच्चे तो फिर भी इस सब से बचे रहते
हैं क्यूंकि उन्हें उस दौरान केवल अपने कार्टून से मतलब होता है और किसी चीज़ से नहीं।
लेकिन हमारे युवा होते बच्चों का क्या ? उनके मन में तो हार्मोनल लोचों के चलते इन
सब चीजों के प्रति वैसे ही बहुत कोतूहल और जिज्ञासा पनपती रहती है। ऐसे में बिना सही
जानकरी प्राप्त किए उन्हें यह सब इंटरनेट पर खुल्लमखुल्ला देखने को मिल रहा है। जिसके कारण
सही जानकारी के अभाव में उन्हें पथभ्रष्ठ होने में जरा समय नहीं लगता। भले ही दिखाये
जाने वाले विडियो में लड़का और लड़की किसी भी तबके या प्रांत के क्यूँ ना दिखाई दे रहे
हों, भले ही लड़की को देखकर यह साफ पता चल रहा हो कि वह सभ्य परिवार की ना होकर किसी देहव्यपार वाली जगह से लायी गयी है। कौन जाने उसकी ऐसी क्या मजबूरी
है जो उसे अपने काम के बदले में मिलने वाले पैसे के लिए यूं इस तरह, वीडियो में भी शामिल होकर देह प्रदर्शन भी करना मंजूर किया होगा।
खैर कारण चाहे जो भी हो, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि महिलाओं के प्रति बढ़ते
बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के पीछे कहीं न कहीं इस तरह के विडियो, रील्स आदि भी उतने ही जिम्मेदार हैं, जितना कि ऐसा कुकृत्य
करने वाला अपराधी। क्यूंकि कहीं न कहीं पैसा कमाने के चक्कर में आज गाँव से आया सीधा
सदा आदमी जब अपना परिवार गाँव में छोड़कर शहर आता है और जब यहाँ आकर उसके हाथ सफलता
कम और निराशा ही ज्यादा हाथ लगती है तो वह अपराधबोध का शिकार हो जाता है फिर शहर
में रहना है तो मोबाइल रोटी से अधिक अवश्यक चीज़ बन जाता है। क्यूंकि अब तो किसी कि
मेहनत का मेहनताना हो या वेतन केवल मोबाइल पर ही दी जाती है। फिर यदि मेहनत करने वाली
स्त्री हो तो फिर भी पैसा बचाकर अपना स्तर ऊपर उठाने का प्रयास करती है। लेकिन वहीं
जब कोई पुरुष हो तो वह नशे की लत में पड़ अपना पूरा वेतन नशे की सामग्री में ही उड़ा
दिया करता है और ऊपर से यह मोबाइल पर परोसे जाने वाली अश्लील सामाग्री उसे कहीं का
नहीं छोड़ती। फिर वो अपना फ्रस्टेशन मिटाने के लिए मासूम लड़कियों को अपना शिकार बना
डालता है।
वैसे तो इस प्रकार की भूख मिटाने के लिए ही शायद यह देहव्यापार के अड्डे बनाए
गए हों। लेकिन वहाँ भी पैसा ही बोलता है और नशे में पड़े व्यक्ति के पास पैसा बचता
ही कहाँ है, जो वहाँ जाकर अपनी भूख मिटा सके। फिर भूख तो भूख ही होती है जो कब इंसान को इंसान से जानवर बना दे इस बात का पता खुद
इंसान को भी नहीं चलता। अफसोस की इन भूखे भेड़ियों का शिकार बन जाती है हमारी मासूम
बेटियाँ। इसलिए मैं चाहती हूँ कि साइबर सिक्योरिटी वाले इस सिलसिले में ऐसा कोई कदम
उठाएँ कि इस तरह का वयस्क कंटैंट सभी के हाथों इतनी आसानी से ना पड़े जितनी आसानी
से आज के समय में उपलब्ध है ।
वैसे तो यह बहुत ही गंभीर विषय है पर एक स्त्री होने के नाते मैंने यह विषय उठाया है तो निश्चित ही मुझ पर बहुत से सवाल उठेंगे और मेरा इस आलेख को कहीं कोई स्थान नहीं मिलेगा। क्यूंकि इसकी सामग्री में अश्लील शब्द जुड़ा है। यूं भी हमारे देश में लोग अश्लीलता देखना पसंद कर लेते हैं लेकिन पढ़ना पढ़ना कोई पसंद नहीं करता। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं हमारी आजकल की फिल्में खैर वह एक अलग मुद्दा है। लेकिन मैं तो बस इतना चाहती हूँ कि इस आलेख को कहीं ऐसी जगह स्थान अवश्य मिले जहां से यह विषय जन जन तक पहुँच सके और लोग इस विषय को गंभीरता से सोच सकें। मेरा इस आलेख के माध्यम से खुद का प्रचार प्रसार करने का कोई इरादा नहीं है। मैं तो बस विषय कि गंभीरता को आमजन तक पहुंचाना चाहती हूँ।
तो जो कोई भी पत्र पत्रिका या समाचार पत्र मेरे ब्लॉग
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पहुंचा या नहीं। धन्यवाद