आज बहुत दिनों बाद मेरा ब्लॉग पर वापस आना हुआ है क्यूँकि पिछले कुछ दिनों से मेरे laptop का keyboard खराब हो गया था। खैर चलिये, आज मैं आप को अपनी एक छोटी सी मीठी सी यात्रा से अवगत कराती हूँ। अभी कुछ दिन पुरानी बात है हम लोग यहाँ Cadbury world देखने गए थे, जहां यह Cadbury Choclate बनाई जाती है या शायद यह कहना ज्यादा ठीक होगा की जहां से यह Cadbury बनने का सिलसिला शुरू हुआ था जो आज तक चला आ रहा है, उस जगह का नाम है Bournville जो कि UK के शहर Birminghan के पास है।
जहां का ज्यादा तर हिस्सा Dairy milk के कवर के रंग की तरह ही रंगा हुआ है, यहाँ तक कि रेलवे स्टेशन पर भी सब कुछ उस रंग का दिखाई देता है। अगर आप कभी जमशेदपुर (टाटा नगर) गए हों जहां सब जगह टाटा का नाम दिखता है या फिर मोदी नगर देखा हो जहां सब जगह मोदी का नाम दिखता है वैसे ही Bourneville में Cadbury का नाम दिखता है।
यहाँ आकर हमने जाना कि Choclate का इतिहास क्या है, कैसे बनती है, कहाँ से आई, किसने बनाई। तो यह बात है 1824 की, जब John Cadbury ने इसकी शुरुआत की जो कि खुद पहले चाय, कॉफी एवं हॉट चॉकलेट बेचा करते थे, उस के बाद उन्होने अपने भाई के साथ एक कंपनी खोली जिसे तब Cadbury brothers of Birmingham के नाम से जाना जाता था। क्या आप जानते है चॉकलेट का नाम आते ही जिस चॉकलेट की छवि आपके मन में सब से पहले आती है वो उन्होने कब बनाई थी। जी हाँ, मैं उसी चॉकलेट यानि Cadbury Dairy Milk की बात कर रही हूँ जिससे आप सभी की बहुत सी मीठी यादें जुड़ी हुई हैं। यह चॉकलेट सन 1905 में मार्केट में आई थी, सोचो तो यकीन ही नहीं होता ना, कि इस बात को आज 100 साल से भी ज्यादा हो गये हैं। J
आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि कोका 1000 साल से भी पहले Mexico से लाया गया था और इसकी खासियत यह है कि यह उन ही जंगलों में पैदा होता है जहां कि बहुत ही गर्म और साथ ही साथ नमी युक्त वातावरण हो। एक समय था जब कोका उपहार के रूप में दिया जाता था और Drinking Choclate एक शाही पेय हुआ करता था, आप को शायद यह जानकार भी आश्चर्य होगा कि उन दिनों कोका की कीमत सोने के जैसी हुआ करती थी, क्योंकि जब समुद्र के रास्ते से कोका लाया और ले जाया जाता था तब समुद्री डाकू कोका को लूट लिया करते थे। क्या आप यह जानते हैं कि चॉकलेट बनती कैसे है। नहीं ना, तो अब में आप को बताती हूँ। सब से पहले कोका के फलों में से कोका के बीजों को निकाल कर सुखाया जाता है, फिर फैक्टरी में लाकर उसे धोया जाता है और फिर ओवन में उसे सूखा ही भुना जाता है। फिर उसे पीस कर उसमें कोका बटर, दूध एवं शक्कर मिलाई जाती है और तब कहीं जाकर चॉकलेट तैयार होती है, फिर उसे अलग-अलग तरह के खांचों में भर कर ठंडा किया जाता है और फिर पैकिंग की जाती है।
मेरी यह यात्रा बहुत ही मजेदार और जानकारी वर्धक रही साथ ही साथ मेरे बेटे को भी बहुत मज़ा आया, और क्यूँ ना आता चॉकलेट होती ही है हर एक बच्चे की सब से पसंददीदा चीज़ है ना। आप की भी रही होगी, जब आप बच्चे हुआ करते थे। J
उस दिन तो मेरे बेटे का वो हाल था, वो कहते है ना कि “पांचों उंगलियाँ घी में और सर कढ़ाई में”। ऐसा मैं इसलिए कह रही हूँ क्यूँकि जब हमने वहाँ पहुँच कर टिकट लिया तो लेते ही उन्होने हर टिकट पर 2 चॉकलेट फ्री दी और सिर्फ इतना ही नहीं और कई जगह फ्री में चॉकलेट दी गयी और यह ना सिर्फ बच्चों के लिए, बल्कि बड़ों के लिए भी बहुत ही जानकारी वर्धक, रोचक एवं यादगार यात्रा थी।
इतना ही नहीं बल्कि स्कूल की तरफ से भी बच्चों को यहाँ लाया जाया जाता है जिसमें बच्चों को जानकारी के साथ साथ मौज मस्ती करने को भी मिल जाती है और फ्री की चॉकलेट भी। J
उम्मीद है आप सभी को मेरा यह अनुभव भी पसंद आया होगा। जय हिन्द..