बदलते समय के साथ बदलना शायद सब के बस की बात नहीं
और मैं उन्हीं में से एक हूँ| आप लोगों को जानकर शायद आश्चर्य हो, लेकिन यह सच है मैंने अपने
जीवन में आज से पहले कभी (पब) का चेहरा भी नहीं देखा था | एक तरह से देखा जाए तो
पांच साल नई दिल्ली में रहने के बाद और आठ साल लन्दन में रहने के बाद भी यदि कोई वयक्ति
यह कहे तो कि उसने कभी पब का चेहरा नहीं देखा तो आज कल के ज़माने के हिसाब से यह
बहुत ही अजीब बात है | नहीं ?
खैर वहां जाकर मुझे जीवन का एक अलग ही
अनुभव हुआ, जिसके अंतर्गत जीवन का एक ऐसा पहलू सामने आया जिसमें सिवाए अत्यधिक
बनावट और दिखावे के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था | औरों का तो मुझे पता नहीं लेकिन
मुझे तो उसके अतिरिक्त और कुछ दिखाई ही नहीं दिया | कुछ देर के लिए यदि मैं उन चंद
घंटों को एक अलग दुनिया का नाम दे दूं तो शायद गलत नहीं होगा | एक अलग ही दुनिया थी
वो जहाँ बड़े बाप के बिगड़े बच्चे पैसों के आधार पर शराब के नशे में धुत केवल अपने
पैसों की नुमाइश नहीं बल्कि अत्यधिक छोटे कपड़ों में अपने जिस्म की नुमाइश करते हुए
भी प्रतीत हो रहे थे | यहाँ मैं पहले ही बता दूँ कि यह मेरा नजरिया है, हो सकता है बहुत को मेरे
विचार दकियानूसी या महिलाओं की स्वतंत्रता विरोधी (एंटी वुमन लिबर्टी) प्रकार के
लगे | अब भई जिसको जो लगना हो सो लगे मुझे जो लगा मैं तो वही लिखने का प्रयास कर
रही हूँ |
कहने को लोग ऐसी जगह पर
मनोरंजन के लिए जाते हैं, वहां भी एक दो परिवार आये हुए थे किन्तु वहां जाकर तो
मुझे लगा जैसे लोगों को मनोरंजन की परिभाषा ही नहीं पता है बस भेड़ चाल में जो सब कर
रहे हैं वही खुद भी करते चलो हो गया मनोरंजन, फिर चाहे वह नृत्य के नाम
पर अनचाहे अंग्रेजी गीतों की धुन पर जबरन थिरकना ही क्यूँ न हो. लेकिन मनोरंजन के
नाम पर मेरी सोच अलग है | मेरे विचार में नृत्य चाहे कोई भी हो देसी या विदेशी
परन्तु जब तक आप उसे अन्दर से अर्थात अपने अंतर मन से महसूस नहीं करेंगे तब तक आप
से वह नृत्य होगा ही नहीं, रही बात पहनने ओढने और खाने पीने की तो मेरा मत कहता है
कि माना कि आपको आपना जीवन अपने ढंग से
जीने का पूर्ण अधिकार है और व्यक्ति को ऐसे ही जीना भी चाहए. लेकिन यदि आप समाज में
रहते है तो उसका भी थोड़ा ध्यान रखना आपका फ़र्ज़ बनता है और यदि आप ऐसा नहीं कर सकते
तो फिर कुछ बुरा अर्थात कुछ ऊंच नीच हो जाने पर शिकायत करनें का भी आपको कोई
अधिकार नहीं है | क्यूंकि माना की ज़माना बदल रहा है लेकिन अभी इतना भी नहीं बदला
है जितना बदलना चाहिए भारत आज भी भारत ही है यहाँ आज भी कम कपड़ों में शराब
पीती या उल्टी करती लड़कियों को लोग सहजता से हजम नहीं कर पाते और जब उन्हें यह सब
दिखाई देता है तो बस उन्हें लगता है उनका रास्ता साफ़ है, इस सब के उपर देर रात तक
बाहर रहना रही सही कसर पूरी कर देता है |
लेकिन आजकल की पीढ़ी को
देखते हुए ऐसा लगता है कि इस सब पर पाबंदी भी नहीं लगायी जा सकती, क्यूंकि आज की
युवा पीढ़ी को पैसा समय से पहले ही मिल जाता है जो शायद हमारे ज़माने में मांगने पर
भी सिर्फ उतना ही मिलता था जितने की आवशयकता हो | इसलिए कहा गया है कि “ चीटियों के पर निकलते देर नहीं लगती ”, यह सब कारस्तानी देखकर मुझे एक बार फिर वही महसूस कि हाय मैं कितने
जल्दी बुढा गयी हूँ, जो इतनी सहज चीजों को भी सहजता से पचा नहीं पा रही हूँ |
लेकिन फिर भी मुझे ख़ुशी इस बात की है कम से कम जीवन का एक नया पहलू तो देखने को
मिला और उससे भी अच्छी बात यह रही की मुझे यह शाम एक ऐसी इंसान के साथ बिताने को
मिली जिसके साथ समय बिताना, गप्पे मारना, मौज मस्ती करना मुझे बहुत अच्छा लगता है
| इस पर सोने पर सुहाग यह हुआ कि वहां चाहे और कुछ अच्छा हो या नहो मगर वहां का
खाना काफी स्वादिष्ट था | शाकाहारी खाने में भी इतना कुछ अलग- अलग बनाया जा सकता
है, यह भी एक छोटा ही सही किन्तु अच्छा अनुभव था | खासकर दही के कबाब यह अपने आप
में एक बहुत ही अद्भुत स्वाद वाली नयी चीज़ थी |
और क्या कहूँ बस इतना ही कह सकती हूँ कि वाकई ना
सिर्फ पीढ़ी दर पीढ़ी बल्कि हर एक चीजों को लेकर ज़माना बदल गया है थोड़ा बहुत ही नहीं
बल्कि बहुत कुछ बदल गया है | यदि आप भी समय रहते समय के साथ ना बदले तो ज़माना आपको
एक भूली बिसरी याद समझ कर भूल जाएगा और आपको पता भी नहीं चलेगा क्यूंकि बदलाव का दूसरा नाम ही जीवन है और मैं समय के साथ खुद को पूरा तो नहीं मगर थोडा बहुत बदलने
के प्रयास में मैं भी प्रयासरत अवश्य हूँ |