Saturday 18 September 2010

Transfer (स्थानांतरण)

अब अपने इस अनुभव के बारे में, मै आप से क्या कहूं ये भी मेरे लिए एक ऐसा विषय है कि जितना भी लिखूं मुझे शायद वो कम ही लगेगा वैसे तो (स्थानांतरण) शब्द ऐसा है जिसको सुनकर हमेशा ऐसा लगता है जैसे साधारण भाषा में सरकारी नौकरी वाले लोगों का हुआ करता है ,मेरा भी अनुभव कुछ ऐसा ही है मगर फर्क इतना है कि मेरे पतिदेव की नौकरी सरकारी नहीं रही है कभी मगर फिर भी हम लोगों के स्थानांतरण बहुत हुए हैं. यहाँ में शुरुवात करना चाहूंगी अपने स्कूल के दिनों से जब में स्कूल में पढ़ा करती थी और मेरे किसी भी सहेली के पापा का जब भी स्थानांतरण हुआ करता था और मेरी वो सहेली जब स्कूल छोड़ कर जाया करती थी तो मन ही मन बहुत बुरा भी लगता था और बहुत Excitement भी बहुत होता था, कि सब कुछ नया मिलेगा उसे, नया घर, नई जगह,  नए लोग, नया स्कूल, नए दोस्त सब कुछ कितना अच्छा लगेगा उसे और तब मन में बहुत ख्याल आता था की मेरे पापा का कभी कोई स्थानांतरण क्यूँ नहीं होता, जब कि मेरे case में तो बात यह थी कि मेरे पापा के तो पहले ही बहुत सारे स्थानांतरण हो चुके थे और हम लोगों कि पढाई के कारण पापा ने खुद ही स्थानांतरण लेना बंद कर दिया था मेरे पापा Veterinary Dr हैं और जब कि में बात कर रही हूँ अपने स्कूल days कि तो तब तो मेरे पापा ने hospital से अपना तबादला lab में करा लिया था ताकि उनको Tour पर भी न जाना पड़े क्यूँ मेरी पढाई शुरू होने से पहले पापा hospital में थे और तब उस के कारण उनको बहुत सारी जगह पर जाना पड़ा था, स्थानांतरण के कारण. पहले पचमढ़ी,  फिर खिलचीपुर, फिर अब्दुल्लागंज  और फिर भोपाल. मेरा जन्म स्थान भोपाल ही है उस के बाद पापा ने तय किया की बस अब और नहीं. इसलिए उन्होंने अपना तबादला hospital से Lab में करवा लिया था. खैर में तो बात कर रही थी मेरे अनुभवों की....


मेरा सब से पहला अनुभव था शादी, यहाँ आप को हंसी आए शायद पढ़ कर, मगर यह सच है जो हर लड़की के ज़िन्दगी का एक तरह का स्थानांतरण जैसा ही अनुभव होता है जिनकी शादी एक ही शहर में होती है उनका अनुभव कैसा और क्या होता हैं वो में नहीं बता सकती मगर हाँ जिनकी शादी अपने शहर से बाहर होती है उन सभी लड़कीयों के लिए यह एक तरह का स्थानांतरण ही होता है कम से कम मेरी समझ तो यही कहती है, हो सकता है आप सभी पढने वाले लोगों मेरे इस बात से सहमत ना हो......मगर मुझे तो ऐसा ही लगा था मेरे शादी के बाद नए लोग, नए रिश्ते,  नई जगह, सारा का सारा वातावरण एक दम नया, खाना पीना पहनना ओढना, सभी कुछ पूर्ण रूप से नया  ही अनुभव था इसलिए मैंने पहले भी कहा और अब एक बार और कह रही हूँ कि ये मेरे हिसाब से सभी लड़कियों की ज़िन्दगी का एक तरह का स्थानांतरण ही होता है. 


इस से जुदा मेरा दूसरा अनुभव जब हम लोग दिल्ली छोड़ करा गाज़ियाबाद की एक सोसाइटी Shipra suncity में जाके रहना पड़ा हालांकि हम लोग वहां केवल आठ (८) महीने ही रहना पड़ा. शुरू-शुरू में तो ऐसा लगा था मानो किसी शहर से उठा कर किसी गाँव में रहने के लिए बोल दीया हो. मगर धीरे-धीरे वहां अच्छा लगने लगा था, क्यूंकि वहां भी हमको पडोसी बहुत ही अच्छे मिले थे आज भी हमारी उनसे दोस्ती है और यहाँ इतनी दूर लन्दन में होने के बावजूद भी मैं उनको के बार बहुत miss किया करती हूँ तो फ़ोन पर बात कर लिया करती हूँ. मगर वो जो अनुभव था उस दिन का जब हम लोगों ने नई दिल्ली वाला अर्जुन नगर का घर छोड़ा था, उफ़ इतना सारा सामान सारा का सारा खुद पैक करना और भिजवाना. क्या रखो क्या छोड़ो कुछ समझ नहीं आ रहा था. बड़ी मुश्किलों से किसी तरह सारा सामान पैक करके भिजवाया था और जब हम वहां पहुंचे तो सोने पे सुहागा, हम सारे दिन के थके हारे हुए थे,  ऊपर से नए मकान में जब हम पहुंचे तो न तो वहां कोई लाइट के व्यवस्था थी और नहीं कोई पंखा इत्यादी, हमारा गर्मी और मच्छरों से बुरा हाल था,  ऊपर से सारा सामान भी पैक, तो ये भी नहीं पता की  कहाँ क्या रखा था क्या नहीं, वो तो ये अच्छा था की मनीष के एक दोस्त श्री मुकुट बिहारी जी वहां पहले से रहा करते थे तो उनकी महरबानी से, हमलोगों ने रात का खाना तो उनके घर में ही हो गया था. बस सोने की समस्या रह गई थी और वो एक रात हम लोगों कैसे निकाली थी, हम लोग ही जानते है और कभी भूल भी नहीं सकते. नया मकान होने के वजह से दुगने मच्छर और ऊपर से दुगनी गर्मी. हम लोगो ने पता नहीं उस रात कितनी कछुआ छाप अगरबत्तियां जला डालीं और जेट mats भी जला डालीं मगर मच्छरों से पीछा  न छुड़ा सके. फिर हार कर आधी रात को मनीष उठे, उन्होंने कूलर में पानी भर कर चलाया, तब कहीं जाके हम लोग वो एक रात निकाल पाए. उस रात हमारे उस नए घर में मात्र एक बल्ब  लग कर दिया था हमारे मकान मालिक ने, उस एक बल्ब के सहारे पूरी रात हम ने कैसे निकाली. उफ़.....

वहां आठ महीने बाद जब मनीष का selection cognizant में हो गया तो फिर न्यूज़ मिली कि हमको अब पूना शिफ्ट होना होगा,  तब भी मनीष तो बहुत खुश थे, मगर मेरा मन दो भागो में बंट गया था. पूना जाने के खुशी तो थी मगर घर छोड़ने का ज़रा भी मन नहीं था.  उन आठ महीनो में ही उस घर से ऐसी मधुर यादें जुड़ गयी थी,  कि उस आधार पर तो वहां से जाने का ज़रा भी मन नहीं हो रहा था मेरा कि मैं वो घर छोडूं ...मगर अपना सोचा हुआ हमेशा हो ही जाये ऐसा कम ही होता है और यहाँ ऐसी स्थिति में मुझे मेरे मन को वो कहावत समझनी पड़ी कि ''जाही विधि रखे राम ताही विधि रहिये'' मगर इस बार स्थानांतरण के समय समस्या और भी गंभीर लग रही थी कि इतना सारा सामान कैसे पूना पहुंचेगा. मन्नू भी बहुत छोटा था उस वक्त, उस के रहते कैसे सारा सामान पैक होगा.  हम दोनो में से किसी एक को ही लगना  पड़ेगा और एक को मन्नू को संभालना होगा और जो एक लगेगा पैकिंग में वो बहुत थक जायेगा. तब हमने तय किया कि इस बार हम खुद सामान पैक नहीं करेगे और फिर हमने Movers & Packers वालों को बुलाकार सारा सामान पैक करवाया और हमारे जाने से  एक दिन पहले ही सारा सामान पूना के लिए भेज दिया अब समस्या खडी हूई कि रात कहाँ और कैसे गुज़ारेगे हम. उस रात खाना तो हमने बाहर खा लिया था मस्त सर्दियौं के दिन थे, वो दिल्ली की कड़ाके वाली सर्दी थी उस रात 2-3 डिग्री temperature था. वो तो भला हो हमारे पड़ोसी 'वरुण मंगल' का जिन्होंने ने हमारे ऐसे समय में बहुत मदद की हमको सोने के लिए बिस्तर दिया. सर्दी से बचने के लिए heater दिया, कम्बल दिए. उस सब के लिए, आज भी उस मदद का सोच कर अच्छा ही निकलता है उन के लिए, जब सामान पैक हो रहा था तब हम ने मन्नू को उनके घर ही सुला दिया था. तब कहीं जाके हम दोनों मिल करा सामान पैक करवा पाए थे.  फिर अगले दिन हमारी फ्लाईट  थी Delhi to Pune तो उन्होंने हमको सुबह चाय नाश्ता भी करवाया, उनके उस मदद के लिए हम आज भी उनके शुक्रगुज़ार हैं. वो मेरी पहली  हवाई यात्रा थी, बहुत मज़ा आया था मुझे, उसमें मैंने बहुत मस्ती और एन्जॉय  किया था. उसके बाद हम पूना पहुंचे, वहां शुरू में हमको होटल में रुके थे करीब पन्द्रह दिन. शुरू में तो सब बहुत अच्छा लग रहा था मगर पन्द्रह दिन होटल का खाना खा-खा कर इतना बुरा हाल हो चुका था कि भूख लगना ही बंद हो गयी थी. मन ही नहीं होता था ज़रा भी, तब मुझे पता चला कि मेरी एक ममेरी बहन वहीँ रहती हैं, तब हम ने उन से contact किया, एक दिन उनका घर जाके खाना भी खाया, तो ऐसा लगा था मानो खाने के मामले में जन्नत मिल गई हो और इस दिन का एक मजेदार किस्सा और भी  है, हुआ ये था उस दिन कि जब हम को दीदी ने खाने पर बुलाया था न तब मैंने सोचा कि चलो मैं दीदी की मदद करवा देती हूँ खाना परोसने मैं, तो मैंने दीदी से पूछा कि बताइए कि कहाँ क्या रखा है में परोस देती हूँ. अब यहाँ मजेदार बात यह है कि दिल्ली में तो हमको आदत थी पंजाबी खान पान की और पूना में तो सारा का सारा culture ही बदल चुका था, तो स्वाभाविक है की खानपान भी पूर्ण रूप से अलग ही होना था और ऐसे में हुआ यह कि जब दीदी ने बोला परांठे परोसने के लिए तो मैंने उनसे पूछा कि हैं कहाँ हैं परांठे, तो दीदी ने कहा वहीँ तो है उसी में ही, तो मैंने उत्तर दिया कहाँ हैं इस में तो मुझे सिर्फ घी लगी रोटियां ही दिख रही हैं. बस मेरे इतना कहेने कि डर थी के दीदी ने तुरत कहा यार ऐसा मत बोल तू, वो घी लगी रोटियां नहीं परांठे ही हैं.....फिर तो सब लोग जो हँसे थे कि क्या बोलूं में खैर ...यह तो था पूना का अनुभव



फिर बारी आगई एक साल बाद पूना छोड़ने के बारी अब तो पूना ही क्या हमको देश छोड़ना था इसलिए इस अवसर पर मेरे और मनीष के परिवार आकर हमारे साथ रहे पूरे दो महीने और आखिर उसके बाद वो दिन आ ही गया जब हमको पूना छोड़ कर London के लिए निकल ना था, तब भी हमने यही तय किया कि mover and packers वालों से ही सामान Pack करवा कर जबलपुर भिजवा देंगे और हमने किया भी यही, जिस दिन हमने उनको बुलाया था उस ही दिन हमको पूना छोड़ कर  मुंबई के लिए निकलना था. शाम को इधर सामान जबलपुर गया और उधर हम लोग टेक्सी से मुंबई निकल गए. मुंबई की वो शाम भी में कभी नहीं भूल सकती उस दिन हम लोग निमिष भईया के घर रुके थे. इतनी मस्ती हुए थी उस रात के हमेशा याद रहेगी मुझे उनके सारे दोस्तों से मिलकर लगा ही नहीं मुझे कि मैं पहली बार मिली हूँ सब से. सबने इतना ध्यान रखा मेरा, कि जितनी तारीफ़ करूँ कम है हम सब लोगो ने उस दिन साथ मिलकर खाना बनाया था रोटियां बस बाहर से मंगवाई गयीं थी, फिर रात को ice -cream खाना, समुंदर के किनारे मस्ती करना बहुत अच्छा लगा था और उस मस्ती के बाद से तो मन्नू को भी निमिष मामा के साथ बहुत मज़ा आ रहा था फिर देर रात २ बजे तक गप्पे मारना, समय का पता ही नहीं चल रहा था किसी को, वो तो सुबह flight की मजबूरी थी वरना शायद उस रात कोई सोता ही नहीं, सब को मन मार कर सोना पड़ा था उस रात खैर ...अगले दिन हम Filght पकड़ कर London पहुंचे वहां का किस्सा तो और भी दिलचस्प  लगे शायद आप को, जिस रात हम वहां पहुँच उस वक़्त वहां भी तेज़ बारिश, कड़ाके की ठण्ड, सर्द हवाएं, सब एक साथ चल रहा था. कुल मिला कर मौसम  के मिजाज़ बहुत ख़राब थे, ऐसी हालत में हमको उस व्यक्ति का घर ढूँढना था, जिस के पास हमारे घर(गेस्ट हाउस) की चाबी थी और नए-नए इंडिया से आने के कारण हमको जरूरत से ज्यादा ही ठण्ड लग रही थी, तभी मनीष हमको यानि मुझे और मन्नू को हमारे ही घर कि bulding के सामने खड़ा करके चले गए उस व्यक्ति का घर ढूँढने,  जिस के पास हमारे घर की चाबियाँ थी. अब दिक्कत ये थी कि मनीष के पास ना तो UK सिम थी और न ही खुले पैसे की वो उस व्यक्ति को कॉल करके बुला सकें, उस के लिए हम दोनो को वहीँ अनजाने देश की उस सुनसान बरसाती हवा के साथ पड़ती कड़ाके की ठण्ड में छोड़ कर, पहले असद(departmental  store) जाना पडा जो की हमारे घर के ठीक सामने ही था. मगर मुझे उसकी जानकारी नहीं थी उस वक़्त पहले वो वहां गए फिर उस व्यक्ति को call किया उस का नाम वरुण था ..और उतनी देर में मन्नू को लिए ठण्ड में बाहर ही खडी और मन्नू ठण्ड के मारे मुझसे चिपका जा रहा था, यह बोल-बोल कर के मम्मा ठण्ड लगी. वो तो भला हो उस पडोसी का जिसने मुझे और मन्नू को यूँ सुनसान सड़क पर अकेला खड़ा देख कर हमारे बिल्डिंग का दरवाज़ा खोल दिया फिर मैंने उससे बताया कि हमारा घर भी इस बिल्डिंग में है मगर मेरे पास चाबी नहीं है और मेरे पतिदेव वही लेने गए हैं. उसने यह सुन कर हमारे लिए बिल्डिंग का दरवाज़ा भी खोल दिया और मेरा सामान भी बिल्डिंग के अंदर रखवा लिया.  थोड़ी देर बाद मनीष वरुण के साथ वहां पहुंचे और तब जाके हम अपने फ्लैट में पहुंचे और मैंने चैन की साँस  ली. दो महीने वहां रहने के बाद हम लोग Bournmouth पहुंचे  वहां भी काफी समय company guest house में रहने के बाद जाके हम को एक घर मिला और हम वहां शिफ्ट हुए,  फिर डेढ़ साल वहां रहने के बाद मनीष का प्रोजेक्ट फिर change  हुआ और हमको वहां से यहाँ Crawley शिफ्ट होना पड़ा. बताने के अनुभव तो इन दो जगहों के भी बहुत अच्छे-अच्छे हैं मगर यदि मैंने बताना शुरू किया तो फिर बहुत ही लम्बी कहानी हो जायेगी इसलिए फिलहाल इस विषय को में यहीं समाप्त करती हूँ और उम्मीद करती हूँ आपको मेरे यह स्थानांतरण के अनुभव भी पसंद आये होंगे और जो यदि न भी आये हों तो भी आपने अपने विचार मुझसे ज़रूर बांटीयेगा ...comments लिख कर.

7 comments:

  1. nice this is very interesting blog..:)
    i enjoyed a lot while reading this one,
    one more thing i feel my self very much connected what ever u write so i find it more interest i reading blog... keep on writing
    Good Luck..

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  2. प्रिय गुडिया.
    यह देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है कि तुम अपने लेखन कार्य को regular अंजाम दे रही हो.

    यह जो तुमने स्थानांतरण पर अपने अनुभव लिखे हैं यह नि:संदेह बहुत दिलचस्प हैं. पर मेरे अनुसार ये सिर्फ उस पाठक को समझ आयेंगे जो तुम्हारी life history जानता है. एक नए पाठक के लिए यह संस्मरण बहुत व्यक्तिगत हैं और इसलिए शायद अरुचिकर लगें. इसलिए कोशिश करो कि आपके अनुभव को आप और ज़्यादा universalize कर सकें और हर निजी अनुभव के पहले उसकी back story अवश्य दें.

    अगर तुम एक बार अपने blog एक अनजान वक्ती के नज़रिए से देखने की कोशिश करोगी तो मेरी बात समझ जाओगी.
    दूसरी बात यह है की to become a good writer you have to be a good reader first. इसलिए ज्यादा से ज्यादा blogs और आत्मकथाएं पढ़िए. वे आपको बेहतर लेखक ही बनायेंगे.

    शेष शुभ.

    निमिष

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  3. hi didi
    yeh abhi tak ka sabse accha blog tha kyonki I too had a little bit experience of this transfer trouble

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  4. Dear madamji ,
    as the heading say its " MERE ANUBHAV " but when we read it they become "HAMAREY ANUBHAV " .

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  5. ऐसी ही बहुत सारी बातें हमें भी याद आ गईं :)

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