Sunday 27 March 2011

हादसे


कई बार हमारी  ज़िन्दगी पर हमारे आस पास हुए हादसों का भी बहुत प्रभाव पड़ता है भले ही हमारा अनुभव उन हादसों से ना जुड़ा हुआ हो मगर उन हादसों का प्रभाव हमारी ज़िन्दगी पर कई सालों तक रहता है. जैसे भोपाल की गैस त्रासदी हो या यहाँ लन्दन का अग्नि कांड जिससे अंग्रेजी में Great fire of London के नाम से भी जाना जाता है यह दोनों हादसे ही ऐसे हैं कि इन कि भयानक छाप आज भी लोगों के दिलों पर से मिटी नहीं है मेरे ज़हन में यह ख्याल इसलिए आया क्यूँकि कल मैंने मेरे बेटे को यह लन्दन के अग्निकांड वाले हादसे की किताब पढ़ाई थी तो सोचा क्यूँ ना आप लोगों को भी बताऊँ. वैसे तो यह भोपाल गैस त्रासदी की तरह ही बहुत बड़ा कांड था और जैसे सब सारी दुनिया में लोग भोपाल गैस त्रासदी के बारे में जानते हैं. वैसे ही इस लन्दन के अग्नि कांड के बारे में भी जानते होंगे. भोपाल गैस त्रासदी की ही तरह इस कांड में भी हज़ारों लोग की मौत हो गई थी.


 खैर  उसके बार में हम बाद में बात करेंगे पहले एक नजर डाले हम देश में हुए ऐसे ही कुछ हादसों पर जिनका मैंने ऊपर पहले भी जिक्र किया है जैसे भोपाल गैस कांड ,बाबरी मस्जिद को लेकर हुए फसाद इत्यादि. मैं भोपाल गैस कांड की बात इसलिए कर रही हूँ क्यूँकि मैं खुद भी भोपाल से ही हूँतो यदि मैं बात करूँ भोपाल गैस त्रासदी की जो कि सन 1984 , 3 dec को Union carbide India ltd  में गैस लीक हो जानने के कारण हुआ था हालांकि मैंने उस हादसे को अपनी आँखों से देखा नहीं है, किन्तु अपनी माता-पिता से बहुत सुना और पढ़ा है क्यूँकि जिस वक़्त यह हादसा हुआ था उस वक़्त मेरी उम्र केवल ४ वर्ष थी इसलिए मुझे कुछ खास याद नहीं है. मगर हाँ जो कुछ सुना और पढ़ा उसे यही महसूस किया जा सकता है कि कितना बड़ा कांड था यह जिसमें एक नहीं दो नहीं बल्कि पूरे 15 हजार लोगों की मौत हुई थी वैसे आंकड़ों के हिसाब से मरने वालों की संख्या 2,259  थी. 
जिसे मध्य प्रदेश की सरकार ने बढ़ा कर 3,787 बताया और उसके बाद सरकार ने करीब 15,000 बताई और बाकी के अन्य आँकड़ों के मुताबिक 3,000 लोगों कि मौत तो कुछ हफ़्तों में ही हो गयी थी और बाकी के 8000 लोगों की मौतें गैस से लग जाने के कारण हुई बीमारियों कि वजह से हुई थी .



ऐसे ही वह बाबरी मस्जिद अयोध्या कांड का सीधा प्रभाव भोपाल में देखने को मिला था. क्यूँकि भोपाल में भी मुस्लिम भाइयों का, उनके रहन सहन का प्रभाव ज्यादा है या यूँ कहीये कि मुस्लिम प्रजाति का प्रभाव पुराने भोपाल में बहुत ज्यादा रहा है इसलिए उन दिनों हुए दंगे फ़सादों का सीधा असर भोपाल में देखने को मिला, यह कांड 1992 में हुआ था उस वक़्त सभी स्कूल की छुट्टियाँ कर दी गयी थी. उस वक़्त में कक्षा 8th या 9th में थी, शहर भर में कर्फ़्यू लगा हुआ था. लगभग रोज़ ही हमारे घर के पीछे पुलिस की फायरिंग हुआ करती थी और रोज़ ही समाचारों में यही समाचार सुनने को मिलता था, कि आज पुराने भोपाल में किसी के घर को दंगाइयों द्वारा फूँक दिया गया तो कहीं औरतों और बच्चों के साथ बदसलूकी की गई. हिन्दू मुसलमान एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये थे. फिल्म Bombay में जो कुछ भी दिखाया गया है ठीक वही स्थिति भोपाल की भी थी बल्कि शायद उससे भी ज्यादा बुरी, लोग रातों को उबलता हुआ पानी लाकर अपने घरों की छतों पर रात -रात भर बैठा करते थे. दंगाइयों पर डालने के लिए तो कोई kerosene Bomb का इस्तेमाल किया करता था तो चाकू छुरी रख कर घूमता करता था. किसी को सरेआम जिंदा जला दिया जाना या चाकू मार कर हत्या कर देना उन दिनों बहुत आम बात होती थी. यह सब ग़ुस्से से भरे लोग खुद का बचाव करने के लिए भी करते थे और दूसरे को मारने के लिए भी, जिसको देखो उस के दिल में बदले की आग धड़कती हुई मिला करती थी जो देखो ''खून का बदला खून'' का नारा लगता हुआ मिलता था. हम लोग उस वक़्त नये भोपाल में रहा करते थे इसलिए शायद इस तरह की दुर्घटनाओं से बच गये मगर कर्फ़्यू पूरे शहर में लगा हुआ था फिर चाहे वो नया भोपाल हो या पुराना. इसलिए कर्फ़्यू के दौरान हमारे घर के पीछे ट्रक आया करता था जिसमें दूध सब्जी वगैरह मिला करती थी. उस ट्रक की लाइन में लग कर मैंने खुद सामान लिया है उन दिनों शहर का अजीब सा ही माहौल था. लेकिन ज्यादा प्रभाव पुराने भोपाल में ही देखने को मिला था. नया भोपाल उतना प्रभावित नहीं था. मगर पूरा शहर डर हुआ सा, सहमा हुआ तो था ही, उन हादसों में जिन्होंने भी अपने करीबी रिश्तेदारों को खोया है, आज भी उनके दिल उन हादसों को याद करके कांप जाते हैं. आज भी शायद ऐसे आज भी भोपाल में ना जाने कितने लोग होंगे जिनको रात के वक़्त इस हादसे से जुड़े भयानक सपने आज भी सताते होंगे. खैर यह तो हुई भोपाल में हुए हादसों की बात, शायद मैंने कुछ ज्यादा ही कह दिया.

अब हम बात करें यहाँ की, यानी लन्दन की, यहाँ हुआ एक कांड जिसको नाम दिया गया Great fire of London. यह हादसा दिनांक 2 सितम्बर,1666  में हुआ था, एक छोटी से आग की चिंगारी से जो की शुरू हुई थी एक ब्रेड बनाने वाले के घर से जिसका नाम Thomas Faynor था जो कि Pudding Lane में रहा करता था. 2 सितम्बर की रात को एक छोटी सी आग की चिंगारी अचानक देखते ही देखते इतनी तेज़ी के साथ कब पूरे पश्चिमी लन्दन में फ़ैल गई, पता ही नहीं चला और ऐसा इसलिए हुआ क्यूँकि उन दिनों लन्दन में बने घर लकड़ी के हुआ करते थे, एक दूसरे से जुड़े हुए थे और गलियां भी बहुत सकरी होती थीं. ऊपर से गर्मियों के दिन होने कि वजह से घरों में लगी हुई लकड़ियाँ भी बहुत सूखी हुई थी. जिन के कारण आग बहुत आसानी से फैलती चली गई, लोगों ने अपने बचाव के लिए थेम्स नदी में चल रही नावों का सहारा लिया तो कुछ लोगों ने घोड़ों का और जिनके पास नाव लेने के लिए पैसा नहीं था. उन्होंने पत्थरों से बनी इमारतों के नीचे शरण ली और इस तरह दिनों दिन यह आग बढ़ने लगी. 

उन दिनों fire brigade तो हुआ नहीं करती थी और उस वक़्त fireman जिन चीजों का प्रयोग  कर करते थे खास कर जिस तरह के पाईप का प्रयोग होता था उसको squirts कहा जाता था जो कि हमारे यहाँ की पिचकारियों की तरह होता था लेकिन यह उस वक़्त लगी आग पर काबू पाने के लिए पर्याप्त नहीं था हालांकि वहां के लोगों ने भी पानी डाल कर आग को बुझाने की भरसक कोशिश की थी, मगर वह प्रयास भी काफी नहीं था. इसलिए तब वहां के राजा ने यह निर्णय लिया कि बाकी बची इमारतों को खुद तोड़ करके ही इस आग पर काबू पाया जा सकता है और तभी कर्मचारियों ने आदेश का पालन करते हुए कुछ इमारतों को तोड़ दिया. तब कहीं जाक धीरे-धीरे 5 सितम्बर तक यह आग कम होना शुरू हुई और इस तरह यह हादसा 2-5 सितम्बर तक चला. जिसमें हजारों लोगों की जाने गई. इस आग के भयानक तांडव में लोगों के घर ही नहीं उनके नौकरी, उनके व्यापार को भी खत्म कर दिया था. गरीब और लाचार लोगों को टेंट और झोंपड़ीयों में शरण दी गयी, पूरे देश से उन पीड़ितों के लिए जमापूँजी इक्कठी की गई. उस के बाद यहाँ के राजा ने मकान बनाने वाले आर्किटेक्टस से बात की और उनको लन्दन को फिर से एक नए रूप में पत्थरों से बनी इमारतों बनाने को कहा. जिसमें दो इमारतों में पर्याप्त दूरी बनाये रखने की आज्ञा दी गयी थी ताकि आगे कभी भविष्य में ऐसा हादसा हो तो आग एक घर से दूसरे घरों में न फ़ैल सके. यही कारण है कि आपको मध्य लन्दन में सभी इमारतें पत्थर की बनी मिलेंगी और गलियां भी काफी चौड़ी हैं.


अब आप को लग रहा होगा कि इस महा-अग्नि कांड के बारे में लोगों को कैसे पता चला, तो उसका जवाब यह है कि उन दिनों कुछ लोग डायरी लिखा करते थे जिसमें इस हादसे का जिक्र किया गया है और कुछ रसीदें भी मिली है जो कि इस बात का प्रमाण है कि उस हादसे में जिन लोगों ने अपने घर खो दिये थे उनके लिए Cowford sussex ने लन्दन के लोगों को सहायता के लिए पैसा दिया था. कई चित्रकारों ने उस हादसे की कई सारी तस्वीरें भी बनाई हैं जिसे देख कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वो आग का तांडव कितना भयावह रहा होगा. आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इस आग से £10 लाख का नुक्सान हुआ था और पूरे लन्दन की आय £12,000 थी. इस अग्निकांड की याद में एक टावर बनाया गया था जिसे monument  कहा जाता है और जो इस कांड का प्रतीक है जो आने वाली पीढ़ी को हमेशा याद दिलाता रहेगा. इस भयानक हादसे का यह प्रतीक monument ठीक उस जगह के पास बनाया गया है जहाँ से यह आग शुरू हुई थी.


कहने का अर्थ यह है कि हमारी ज़िन्दगी पर हमारे आस -पास हुए हादसों का कितना ज्यादा फर्क पढ़ता है. भले ही हम उन से आंतरिक रूप से जुड़े हुए हों या न हों, मगर जब भी हम उन हादसों से जुडी कोई कहानी सुनते या पढ़ते हैं, तो हमारे मन में अपने आप ही उस वक़्त हुए हादसे या घटना की काल्पनिक छवि बनने लगती है और उस हादसे से जुड़े लोगों के प्रति मन में अफसोस और बहुत दुःख महसूस होता है. क्यूँकि वह कहते है ना ''जिस तन लगे वो तन जाने'' हम कितना भी कोशिश कर लें मगर उन लोगों के दर्द को अनुभव नहीं कर सकते जो कहीं न कहीं, कैसे न कैसे, इन हादसों से जुड़े हैं. फिर चाहे अनजाने में हुआ लन्दन वाला हादसा हो या आपसी मतभेद के कारण जान बूझ कर फैलाये गये दंगे, जो अयोध्या कांड के दौरान हुए थे या लापरवाही के कारण जो भोपाल गैस त्रासदी में हुआ था. भगवान उन सभी की आत्मा को शांति प्रदान करे, कारण चाहे जो हो. सजा हमेशा मासूम और बेगुनाह लोगों को ही मिलती है. उस में भी ज्यादातर पिसता है बेचारा गरीब आदमी जिसके बारे में ना कभी किसी ने सोचा है, ना कभी कोई सोचता है और कभी कोई सोचेगा भी नहीं, चाहे कारण जो भी हो. लापरवाही या भ्रष्टाचार सभी का निशाना आम इंसान ही बनता है. भ्रष्टाचार के कारण या अपनी कुर्सी बचाने के लिए नेता दो धर्मों के बीच में फूट डाल कर, दंगे भड़का कर लोगों के घर जलाते हैं, सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने की खातिर और मारे जाते है मासूम बेकसूर लोग. न जाने कब ख़त्म होगा ये इंसानी भेद कहीं धर्मों का भेद है, तो कहीं जाति का, तो कहीं काले गोरे का, मगर भेद है ज़रूर. सारी दुनिया में कहीं कम कहीं ज्यादा न जाने कब इंसान इस सब से ऊपर उठ कर कुछ और सोच पाएगा जिस से जन कल्याण हो सके. ईश्वर करे ऐसा जल्द ही हो और हमारी नई पीढ़ी इन भेदों को मिटाने में कामयाब हो. इसी आशा और उम्मीद के साथ जय हिंद ....   

9 comments:

  1. good one
    aptly edited

    keep it up

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  2. जहाँ तक मुझे याद आ रहा है लन्दन के इस हादसे के बारे में किसी से सुना था...लेकिन इतना विस्तार से मुझे पता नहीं था...

    लेकिन आपने सही कहा है की कुछ हादसों को हम चाह के भी नहीं भुला सकते, चाहे वो हमारे सामने घटित हों या फिर दूर...
    भोपाल गैस त्रासदी के समय मैं भी कुछ दो-तीन साल का रहा हूँगा, लेकिन जब भी तस्वीरें देखता हूँ उस त्रासदी की तो मन खराब हो जाता है..

    काफी अच्छा आर्टिकल पढ़ने को मिला आज..

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  3. Very Informative, Thanks and Well Done!

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  4. हूँ.... बहुत बढ़िया चित्रात्मक शैली में लिखी गई पोस्ट है पल्लवी जी. आँखों के सामने तस्वीरें सी चलती रहीं. ऐसे हादसों को जिस मानवीय धरातल पर ला कर आपने संदेश दिया है वह अपने आप में अमूल्य है. कुछ हादसों को टाला नहीं जा सकता जैसे कि अब जापान में हुआ है. लेकिन मानव मन की फितरत से उपजे हादसों को तो टाला जा सकता है. इतनी बढ़िया पोस्ट के लिए आभार. और हाँ.....संपादन, वर्तनी पहले से बेहतर और बढ़िया रही. :))

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  5. पल्लवी जी - सबसे पहले तो इतनी पुरानी घटना का सचित्र वर्णन करने के लिए साधुवाद। हाँ यह सच है कि हादसों पर किसका नियंत्रण है? लेकिन हर हादसा हमें कुछ सीख दे जाता है ताकि हम खुद को तैयार रख सकें उन सम्भावित हादसों से रू-ब-रू होनेद के लिए। तभी तो आज इतने सुरक्षा के ऊपाय खोज किये गए हैं।

    हाँ धर्म के नाम पर जो सामाजिक विद्वेष पैदा किया जाता है, जो कि बाबरी मस्जिद के नाम पर भारत में हुआ, से हम आज भी मुक्त नहीं हो पाये हैं। यह इसलिए क्योंकि भारत के "नेता-गण" अपनी क्षुद्र राजनीति को बरकरार रखने में बहुत "चतुर" हैं। कभी मैंने लिखा था -

    मंदिर को जोड़ते जो मस्जिद वही बनाते
    मालिक है एक फिर भी जारी लहू बहाना

    मजहब का नाम लेकर चलती यहाँ सियासत
    रोटी बड़ी या मजहब हमको जरा बताना

    या फिर

    कहीं बस्ती गरीबों की कहीं धनवान बसते हैं
    सभी मजहब के मिल्लत से यहाँ इन्सान बसते हैं
    भला नफरत की चिन्गारी कहाँ से आ टपकती है
    जहाँ पर राम बसते हैं वहीं रहमान बसते हैं

    शुभकामनाएं।
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  6. लंदन के बारे में पहली बार सुना है।

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  7. ह्म्म्म आचे जानकारी दी आपने ! बहुत ही अच्छा पोस्ट है जी ! हवे अ गुड डे !
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  8. Dear Pallavi...article is nice and heart touching...Bhopal Gas tragedy was really a endless nightmare !!!
    & this is our resposibility to teach future generation the lesson of tolerance and gentleness of the mature mind to take India to a new height.

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  9. तुम्हारे ब्लॉग पर आ कर अच्छा लगा .त्वरितर पर बाँट लिया है . यह मेरे लिए एक और आकर्षण का कारण है के हममें भोपाल साझा है . अब आना जाना लगा रहेगा . आज थोड़ी जल्दी है फुर्सत में आकार पूरा देखूंगा . शुभ कामनाएं .

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