Saturday 2 July 2011

माँ

क्या होती है माँ,  हजारों दर्द और तकलीफ़ें सह कर अपने बच्चे की एक मासूम मुस्कुराहट को देख कर अपने सारे गम भूला देने वाली होती है माँ, या फिर अपने बच्चे की खुशी के लिए कुछ भी त्याग करने को तत्पर रहने वाली होती है माँ, या फिर अपने बच्चे के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए दिल पर पत्थर रख कर निर्णय लेने वाली होती है माँ ,माँ एक ऐसा शब्द है जिसके नाम में ही सुकून छुपा होता है प्यार छुपा होता है। जिसका नाम लेते ही हर दर्द जैसे कम हो जाता है, है ना,J किसी ने कितना सुंदर कहा है ना की हाथों की लकीरें बादल जाएगी गम की यह जंज़ीरे पिघल जाएगी हो खुदा पर भी असर तू दुआओं का है
 
कितना कुछ जुड़ा होता है हमारे इस जीवन में इस माँ शब्द के नाम के साथ जैसे प्यार, डांट यादें एक बच्चे के बचपन की यादें और एक माँ की खुद के बचपन और अपने बच्चे के बचपन दोनों की यादें, कुछ खट्टी कुछ मिट्ठी यादें। जब कोई माँ  एक बच्चे को जन्म देती है तब वह उसके बचपन में अपना खुद का बचपन देख कर जीती है। उस नन्हे से पौधे को अपनी ममता और संस्कारों से पाल पोस कर बड़ा करती है इसलिए माँ का दर्जा इस दुनिया में कोई और नहीं ले सकता। वो कहते है ना जब ईश्वर ने देखा की धरती पर उसके बनाये बंदों को उसकी कितनी जरूरत है मगर वो खुद हर जगह हर समय मौजूद तो हो नहीं सकता तब जा कर उसने माँ को बनाया।
कितनी अजीब बात है न जब भी हमको अचानक कभी कोई चोट लगती है तो हमारे मुँह से हमेशा माँ का ही नाम निकलता है मेरे मुँह से तो अकसर यही निकलता है जब भी कभी मुझे कोई चोट लगती है तो मेरे मुँह से हमेशा मम्मी ही निकलता है। J खास करके जब कभी मैं रसोई में काम करते वक्त जल जाती हूँ तब तो जरूर मुझे मेरे माँ की याद बहुत आती है इसलिए नहीं कि मुझे दर्द हो रहा होता है बल्कि इसलिए की इस से भी मेरे कुछ यादें जुडी हैं।
आइये मैं आप को अपने बचपन के उस पल से वाकिफ करवाती हूँ। बात उस वक्त की है जब में नया-नया रसोई का काम सीख रही थी। खास कर के रोटी और पराँठे बनाना तब एक बार मेरा हाथ बहुत जोर से जल गया था या यूं कहिए कि जला तो ज्यादा नहीं था।  मगर छोटी  उम्र की वजह से हाथ बहुत नाजुक थे और सहनशक्ति किस चिड़िया का नाम है यह पता ही नहीं था।  इसलिए मुझे शायद जरूरत से ज्यादा ही जलन हो रही थी, उस वक्त पता नहीं कैसे मेरी माँ का दिल पत्थर के जैसा हो गया था। मैं जलन के मारे रोये जा रही थी मेरे आंसू देख कर मेरे पापा पिघल गये थे।  उन्होने मेरे हाथ में दवा लगाई, मुझे चुप कराया, मुझे बहुत सारा प्यार दिया मगर जब मेरे पापा ने मेरी मम्मी से कहा तुम को दया नहीं आती इतनी छोटी बच्ची का हाथ जल गया और तुम ने एक बार प्यार से देखा तक नहीं, तब मेरी मम्मी ने उत्तर दिया कि अगर ऐसे छोटे मोटे जलने जलाने पर यदि हम ध्यान देते रहे तो हो गया फिर तो, आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है। अभी से सहन करना नहीं सीखेगी  तो आगे क्या होगा, ससुराल में कोई ध्यान नहीं देगा कि क्या हुआ, क्या नहीं, इतना छोटा मोटा तो हम रोज ही जलते रहते है।
आप को शायद यकीन न हो मगर मुझे उस वक्त ऐसा लगा था, कि मेरी मम्मी को तो मुझ से जरा सा भी प्यार नहीं है। बस एक पापा ही हैं जो मुझे अपना मानते है। वैसे तो मैं आज भी अपनी मम्मी की तुलना में अपने पापा के ही ज्यादा करीब हूँ। J मुझे आज भी याद है मेरी मम्मी पापा को  छेड़ने के लिए अक्सर  कहा करती थी,  तुम तो उसे कुछ मत सीखने दो शादी के बाद आप ही उसके साथ उसके ससुराल  चले जाना। J
मगर आज जब मैं खुद एक माँ हूँ तब मुझे समझ आया कि कभी-कभी माँ को खुद को कितना कठोर होने का दिखावा भी करना पड़ता है अपने बच्चों की भलाई के लिए क्योंकि कोई भी लड़की अपने पापा के चाहे जितना करीब हो मगर उसकी बेस्ट फ्रेंड हमेशा उसके लिए उसकी माँ ही होती है। जो अपने जीवन के अनुभवों से अपने बच्चों में संस्कार देती है इसलिए तो कहा जाता है कि बच्चे कि पहली पाठशाला उसकी माँ होती है और बच्चे का मुँह से निकालने वाला पहला शब्द भी माँ ही होता है। इसलिए यह माँ बनने का सौभाग्य ईश्वर ने केवल एक औरत को ही दिया है।  जो किसी वरदान से कम नहीं, नारी जीवन इस वरदान के बिना अधूरा है। कोई भी नारी तब तक कभी सम्पूर्ण नहीं हो सकती जब तक वो माँ नहीं होती।
यहाँ तक कि खुद ईश्वर ने भी माँ को अपने ऊपर का दर्जा दिया है। लेकिन बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि आज भी इतना कुछ जानने के बाद, शिक्षित होने के बावजूद आज भी हमारे देश में लड़के की चाह में छोटी-छोटी बच्चीयों की हत्या कर दी जाती है। कितनी शरम की  बात है एक साधारण सी बात लोग समझ नहीं पाते कि जब लड़की ही नहीं होगी, तो लड़का आयेगा कहाँ से। अर्थात एक विकसित देश और स्वस्थ समाज के लिए नारी और पुरुष दोनों का होना अनिवार्य  है क्योंकि स्त्री और पुरुष भी एक ही सिक्के के दो पहलू है और सदैव ही एक बिना दूसरा अधूरा है
 
अंततः बस इतना ही कहूँगी की यदि आप भी सच में अपनी माँ से प्रेम करते है, प्यार करते हैं उनका सम्मान करते है, या करना चाहते है, तो सब से पहले नारी का सम्मान करना सीख़िये...जय हिन्द

10 comments:

  1. माँ के बारे में कितना भी लिखा या कहा जाये वह कम ही हैं |
    मुनब्बर राणा साहेब का एक शेर देखिये
    किसी के हिस्से में मकां आया किसी के हिस्से में दुकान आयी
    घर में सबसे छोटा था मैं मेरे हिस्से में माँ आयी |
    सार्थक आलेख आभार

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  2. आपका आलेख माँ की पूरी तस्वीर देता है. माँ होती ही ऐसी है. मैं तो मानता हूँ कि ईश्वर परमेश्वर की भी कोई माँ होगी. परंतु धरती पर मिलने वाली माँ जैसी होगी कि नहीं इसका पता नहीं.

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  3. बेहद उम्दा आलेख्।

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  4. बिल्कुल सही....नारी का सम्मान सीख कर माँ का सम्मान करने का हक हासिल है.

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  5. जन-जागरण हेतु काम की जानकारी !
    मुबारकबाद !!!
    त्वचा में दर्द के अभिग्राहकः Receptors

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  6. सार्थक और यथार्थपरक बात

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  7. एक बेहतरीन लेख .बधाई

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  8. अच्छी यादें..अच्छा सा पोस्ट..
    कुछ महीनो से अलग अलग कारणों से थोडा परेसान रह रहा हूँ, और ऐसे में सही मानिए जितनी देर माँ से फोन पे बात होती है, अच्छा भी बहुत लगता है और ये भी यकीन आता है की माँ कह रही है तो सब कुछ ठीक हो जाएगा :)

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  9. माँ शब्द ही अनमोल है. माँ के क्या कहने? मुनव्वर राणा साहब कहते हैंकि -
    मेरे गुनाहों को इस कदर धो देती है
    माँ जब गुस्सा में हो तो रो देती है.

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
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