Monday 26 March 2012

इंटरनेट और आपके बच्चे ....


यूं तो अपने शहर से सभी को लगाव होता है। जो इंसान जहां रह कर पला बढ़ा होता है, उसे वहीं की मिट्टी से प्यार होना स्वाभाविक बात है। ठीक इसी तरह मुझे भी मेरे भोपाल से प्यार है। हालांकी यह बात अलग है, कि जबसे मैंने अपना देश छोड़ा है, तब से मुझे पूरे देश से ही प्यार होगया है। मगर फिर भी भोपाल से जुड़ी हर बात मुझे अपनी ओर खींच ही लेती हैं। वैसे तो साधारण तौर पर मुझे समाचार पत्र पढ़ने कि आदत अब नहीं रही लेकिन फिर भी कभी कभी ऑनलाइन समाचार पत्र या टीवी पर समाचार देख सुन लेती हूँ, अच्छा लगता है।  देश दुनिया की खबरों के साथ-साथ अपने शहर की खबर भी पढ़ने को मिल जाती है और इस बात का सारा क्रेडिट में इंटरनेट को देना चाहती हूँ और देती भी हूँ। घर बैठे सभी सुविधाओं की उपलब्धि बिना किसी झंझट के आसानी से उपलब्ध जो हो जाती है। अब तो इंटरनेट मेरी रोज़ मर्रा की ज़िंदगी का वो अहम हिस्सा बन गया है, कि उसके बिना जीना मुश्किल हो गया है। जिस दिन नेट काम न करे तो पूरा दिन बेचैनी रहती है। जब तक नेट का कनैक्शन ठीक न हो जाये ऐसा लगता है, जैसे दुनिया ही ख़त्म अब कुछ है ही नहीं करने के लिए। क्या करें कहाँ जाये। यह भी एक प्रकार का नशा है जैसे ब्लोगिंग 

इसी सिलसिले में एक दिन मैंने हिन्दी समाचार पत्र दैनिक भास्कर का ई-पेपर पढ़ा जहां इंटरनेट और चेटिंग से जुड़ा एक वाक्या देखा और पढ़ा भी ,सच कहूँ तो वह सब देखने और पढ़ने के बाद मुझे बहुत हँसी आयी। यह सोच-सोच कर जहां आज की तारिख़ में इंटरनेट पर फेसबुक, जीमेल, स्काइप और चेटिंग बहुत ही आम बात है वहाँ आज भी कुछ लोग खासकर छात्र छात्राएँ इतने बेवकूफ़ हैं कि चेटिंग के दौरान किसी अजनबी से हुई बातों को इतना अहमीयत देते हैं कि बात बिगड़ने कि नौबत आ जाये। मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ कि आज भी छोटे शहरों में यह सब होता है या यह सब होना संभव है। आज के आधुनिक युग में जहां बच्चा-बच्चा इंटरनेट की सभी सुविधाओं से और उसके गुण-अवगुण से बखूबी परिचित है। वहाँ इस प्रकार के किस्से हँसी ही दिलाते हैं। वह भी छात्र छात्रों के द्वारा किया गया कारनामा अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा क्या देख लिया मैंने या पढ़ लिया मैंने जिसके कारण इतनी लंबी चौड़ी भूमिका बना डाली। तो चलिए अब इस सस्पेंस को यही ख़त्म करते हुए आपके सामने उस वीडियो का व्याख्यान करती हूँ।

हुआ यूं कि एक 20-22 साल का लड़का और लड़की आपस में चेटिंग कर रहे हैं पहले hi ,hello से बात शुरू होती है और बातों ही बातों में मुलाक़ात तक बात पहुँच जाती है। लड़का लड़की से मिलने के लिए ज़ोर डालता है और लड़की से फिल्मी स्टाइल में संवाद मारते हुए कहता है, कि हनी तुम्हारे ख़यालों में मेरी रातों की नींद उड़ गयी है, मैं तुम्हारा खूबसूरत सा चेहरा देखना चाहता हूँ, हनी जिसकी कल्पना में, मैं न जाने कितने हसीन ख़्वाब बुन चुका हूँ। जब तुम मिलोगी और मैं तुम्हें देखुंगा तब कैसा होगा वो मंज़र वो हसीन नज़ारा। तब उधर से वह लड़की पूछती है अच्छा क्या करोगे मुझसे मिलकर? लड़का कहता है पहले तुम्हारे करीब आऊँगा और .....लड़की पूछती है और ??? लड़का कहता है और फिर तुमको अपनी बाहों में भरूँगा और ....लड़की लिखती है blush .....इस तरह बातों-बातों में मुलाक़ात का समय और स्थान तय हो जाता है। शाम के पाँच बजे फलां-फलां साइबर कैफ़ में कैबिन नंबर 5 में मिलते हैं तभी लड़के की माँ दरवाज़े खटखटाती हुई चाय का कप लिए अंदर आती है। लड़का, लड़की से थोड़ी देर रुकने को कहता है और चेट विंडो बंद कर देता है। ठीक ऐसा ही लड़की के साथ भी होता है। माँ के जाने बाद दोनों फिर से चेटिंग शुरू करते हैं और मिलने के प्रोग्राम के अनुसार तैयार होना शुरू कर देते हैं। लड़की बहुत सज संवरकर साइबर कैफ़े पहुँचती है। जैसा कि स्वाभाविक है, उस उम्र में लड़कियों को दूसरों का आकर्षण पाना वैसे ही बहुत अच्छा लगता है, तो हर लड़की दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की दिखना चाहती है।

खैर लड़का भी बेहद अच्छे से तैयार होता है, इत्र से लेकर जितना बेचारे लड़के जो कुछ लगा सकते है सब लगा लगू कर बाइक पर स्टाइल के साथ सवार होकर साइबर कैफ़े पहुंचता है। इधर कैबिन में लड़की का दिल भी ज़ोरों से धडक रहा है.....उधर लड़के का दिल भी ज़ोरों से धड़का रहा है!!!! ना जाने क्या होगा सोच-सोच कर दोनों  अंदर ही अंदर बेहद बेचैन हैं। लड़का साइबर कैफ़े पहुंचता है, अंदर जाने से पहले खुद को बहुत नर्वस महसूस करता है। उसके हाथ ठंडे पड़े जा रहे है दिल ज़ोरों से धड़क रहा है। लगता है जैसे अभी बाहर आ जायेगा, अंदर जाने से पहले लड़का खुद को ढाढस बंधाते हुये एक बार अपने चेहरे पर हाथ फेरता है बाल संवारता है और अपनी शर्ट ठीक करता है और हिम्मत कर साइबर कैफ़े के अंदर कैबिन नंबर पाँच की ओर बढ़ता है जैसे ही दरवाज़ा खोलता है ....बता सकते है आप क्या हुआ होगा....सोचिए-सोचिए क्या हो सकता है ? दरवाज़ा खुलते ही....अंदाज़ा लगाइए वो हुआ जो कोई सोच भी नहीं सकता है। चलिये मैं ही बता देती हूँ, जैसे ही दरवाज़ा खुलता है दोनों एक दूसरे को देखकर अवाक रह जाते हैं और लड़की के मुंह से निकलता है ...भईया आप.....और यह सब सुनते ही दोनों को ऐसा लगता है यह धरती फट क्यूँ नहीं जाती। ताकि हम इसमें समा जाएँ।

यह देखकर मुझे जाने क्यूँ बहुत हँसी आई हो सकता है आप मुझे पागल समझे  क्यूंकि मुझे ऐसा लगा कि आज के जमाने में नेट पर की हुई चेटिंग को लोग असल ज़िंदगी में आज भी इतना महत्व देते हैं ? दूसरी बात घर के घर में भाई बहनो के पास दो अलग-अलग सिस्टम है और तीसरा दोनों को आपस में एक दूसरे का आईडी तक नहीं पता जबकि मध्यम वर्गीये परिवारों में समान्य तौर पर लड़की को भले ही अपने भाई का ईमेल आईडी पता हो या न हो, मगर बड़े भाइयों को हमेशा अपनी बहन के विषय में सम्पूर्ण जानकारी रहा करती है। फिर चाहे वो ईमेल ही क्यूँ न हो, इसलिए यह सब देखकर यकीन ही नहीं हुआ मुझे और शायद इसलिए मैं हँसी, लेकिन इसमें गलती उन लड़के और लड़कियों से ज्यादा यहाँ मुझे उनके अभिभावकों की नज़र आयी। माना कि ज़िंदगी में सभी की अपनी एक निजी ज़िंदगी होती है बच्चों की भी, मगर इसका मतलब यह नहीं कि आपको यह भी पता न हो कि आपके बच्चे कमरा बंद करके क्या कर रहे हैं। आपने तो पढ़ाई की सुविधा को ध्यान में रखते हुए उन्हें इंटरनेट घर पर ही उपलब्ध करा दिया। मगर उसके साथ-साथ क्या आपको नहीं लगता कि आपकी यह भी ज़िम्मेदारी बनती है, कि आप यह भी देखें के कहीं आपके बच्चे दी गई सुविधा का जाने-अंजाने कहीं कोई गलत उपयोग तो नहीं कर रहे हैं या फिर आपके बच्चे आपसे झूठ बोलकर कहीं और तो नहीं जा रहे हैं। जानती हूँ एक वक्त ऐसा भी आता है सभी अभिभावकों की ज़िंदगी में जब उनको अपने बच्चों का भरोसा जीतने के लिए उन पर आँखें बंद करके विश्वास करने की जरूरत होती है।

मगर तब भी अभिभावकों को चाहिए कि वह कम से कम कुछ एक बातों का ख़्याल ज़रूर रखें जैसे उनके बच्चे उनके द्वारा दी गई ऐसी इंटरनेट जैसे सुविधाओं का कोई गलत फायदा तो नहीं उठा रहे हैं। इसके लिए ज़रूर है अपने बच्चों को दी गई इस प्रकार की सुविधा जहां जितना जानकारी का भंडार वहाँ उतनी ही सावधानी की भी जरूरत है। उस सुविधा से संबन्धित आपको भी सम्पूर्ण जानकारी हो और समय-समय पर आप भी उनके सिस्टम की जांच करते रहें। ताकि आपको उनके द्वारा किये गए कार्यों की सही जानकारी मिलती रहे और उनके मन में भी आपके प्रति हल्का सा डर भी बना रहे, ताकि वो गलत रास्ते पर न चले जायें। क्यूंकि अक्सर ऐसी उम्र में बच्चों का मन एक बे लगाम घोड़े की तरह होता है, जो ज़रा सा मौका पाते ही बस बेखबर दौड़ता चला जाता है। बिना यह जाने कि जिस राह पर वह जा रहा है वो सही है या नहीं, उसे सही वक्त पर सही दिशा दिखाना अभिभावकों की अहम ज़िम्मेदारी है। क्यूंकि यदि वक्त रहते ऐसा न किया गया तो नतीजा हानिकारक हो सकता है और आपके बच्चे आपके हाथों से बेकाबू हो सकते हैं

इसलिए ज़रा सोचिए कहीं आपके घर में भी तो ऐसा कुछ नहीं हो रहा है न  लगता है आज की पोस्ट में कुछ ज्यादा ही चिंतन और भाषण हो गया। इसलिए आज के लिए बस इतना ही, फिर मिलेंगे किसी नए विषय के साथ तब तक के लिए जय हिन्द.

50 comments:

  1. सब कुछ समझा दिया
    आपने अच्छी तरह बयाँ करके
    सोचेगे,समझेगे जिन्दगी को
    लिखा, पढेगे आपका ,ध्यान करके ||
    शुभकामनाये| सुंदर लेख !

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  2. पहले तो बहुत हँसी आई घटना का विवरण पढकर. नेट ने बहुत सारे फायदे दिए हैं तो जीवन को इतना निजी बना दिया है कि घर में क्या हो रहा ये भी पता नहीं चलता. उदाहरण के द्वारा बहुत अच्छी तरह आपने समझाया है. सार्थक लेख के लिए धन्यवाद.

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  3. सबक देता गंभीर आलेख्।

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  4. ऊपर लिखी घटना तो पहले ही समझ आ गयी थी .... अभिभावक कितना भी ध्यान रख लें......जिन बच्चों को ऐसी बात करनी है उन्हें रोक पाना बहुत मुश्किल है ... फिर भी प्रयासरत तो रहना ही चाहिए ...सार्थक लेख

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  5. गजब की बाते लिखी है मैंने तो कापी कर रख ली है।

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  6. बहुत विचारणीय और सारगर्भित आलेख...

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  7. बहुत ही बढिया ...

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  8. कुल मिलाकर इंटरनेट एक रोग साबित हुआ है। कोई सेक्स ढूंढ रहा है,कोई पीएचडी की थीसिस के लिए सामग्री चेंपने की फिराक़ में है तो कोई चैट के कारण मेंटल हुआ जा रहा है। माचिस वही है। कम लोग चूल्हा जला रहे हैं,ज्यादातर घर।

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  9. आपका बेटा अभी कितने साल का है ?:):)..जरा टीन एज में आने दिजिये फिर एक बार यह लेख पढ़ना :).माता पिता कितना भी चाहें इतना आसान नहीं बच्चों के आई डी पासवर्ड आदि पर नजर रखना.

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  10. इसका भी इलाज बताना है ।

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  11. क्षमा सहित --
    दद्दा रे दद्दा गजब, अजब खेल भगवान् ।
    एक पल्लवाधार के, दो पल्लव अनजान ।

    दो पल्लव अनजान, पल्लविक भाव पनपते ।
    हो जाते कामांध, ख़्वाब में खूब दमकते ।

    पानी-पानी होंय, लगे यह कितना भद्दा ।
    अंतरजाली जाल, हाल दद्दा रे दद्दा ।।

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  12. बिलकुल सही कहा शिखा जी आपने ......
    १८ के बाद बच्चे हक़ से कहते है कि we want privacy....
    और ये सिर्फ महानगरों के बच्चों की बात नहीं.....

    जो भी हो वाकया बेहद रोचक था और पल्लवी जी का प्रस्तुतीकरण भी मस्त!!!

    सादर.

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  13. बेहद शर्मनाक और खौफनाक वाकया ।
    सही कहा -बच्चे क्या कर रहे हैं , यह ध्यान रखना चाहिए ।
    इंटरनेट ने बच्चों का बचपन ही छीन लिया है ।

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  14. बिलकुल ठीक आप सभी लोग ठीक कह रहे हैं। आज कल बच्चों पर नज़र रखना आसान बात नहीं, किन्तु जहां तक संभव हो रखनी ज़रूर चाहिए बाकी तो सभी की अपने-अपने बच्चों के साथ अपनी-अपनी एक अलग ही understanding होती है जिसके माध्यम से आपको पता होता ही है कि आपका बच्चा किस हद तक जा सकता है। कितौ फिर भी यहां आकर आपने महत्वपूर्ण विचारों को यहाँ व्यक्त करने के लिए आप सभी पाठकों एवं मित्रों का तहे दिल से शुक्रिया...कृपया यूं हीं संपर्क बनाए रखें आभार.... :)

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  15. वक़्त को इसमें जाया करेंगे तो यही होगा

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  16. kuchh dino pahle news me padha tha, aisa hi wakya ek husband aur wife me hua tha.......:))
    hone ko kuchh bhi ho sakta hai...
    par aisa ho kyon!!

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  17. AAP MERE BLOG "RUDRA "PAR AAI APNE VICHAR RAKHE ACHHA LAGA .AAPKA VISHAY AUR PRASTUTIKARAN BAHUT ACHH LAGA .

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  18. एक राज की बात आप को बता दूँ। ऐसे समाचार अक्सर संपादक की डेस्क पर ही जन्म लेते हैं और चर्चा का विषय बन जाते हैं। आप छानबीन कर के जाँच कर लें भले ही।

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  19. इस घटना को कहीं पढ़ा है, आपने बहुत ही अच्छे ढंग से प्रस्तुति दी है , इट्नेजर्स के अभिभावक जरुर इस पर गम्भीरता से सोचेंगे.

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  20. saawdhaani to baratni hi chahiye... abhibhawkon ke liye chintan ke layak post....

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  21. आपकी बातों से सहमत।
    आज ही एक समाचार पढ़ा कि एक व्यक्ति ने दूसरी से मिलने की इच्छा ज़ाहिर कर दी और उसके एकाउंट में लाखों ट्रांसफ़र कर दिया। (चैटिंग के ज़रिए दोस्ती हुई थी)

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  22. बड़े ही रोचक ढंग से आपने गंभीर मुद्दे के प्रति सचेत किया।

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  23. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
    चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्टस पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
    आपकी एक टिप्‍पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

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  24. पल्लवी जी,​
    ​आपने सही मुद्दा उठाया है, लेकिन जैसा कि शिखा ने कहा है कि ये इतना आसान नहीं है, किशोर बच्चों पर नज़र रखना...ये मानव प्रवृत्ति है कि जिस चीज़ के लिए उसे रोका जाए. वो उसे जानने के लिए और बेचैन हो जाता है...ये भी सही है कि अच्छी बातों को सीखने में बहुत वक्त लगता है लेकिन गलत बातें बड़ी जल्दी सीख ली जाती हैं...यहां मनोवैज्ञानिक तरीके से बच्चों को टैकल करने की ज़रूरत होती है...ये दोस्त बनकर ही किया जा सकता है...कच्ची उम्र में बच्चा विपरीत सेक्स के बारे में ज्यादा जानने के लिए बहुत उत्सुक होता है...घर में कोई उससे इस पर बात नहीं करता...बाहर वो दोस्तों या कहीं ओर से अधकचरी जानकारी लेता है जो घातक होती है...इस विषय पर मैंने एक पोस्ट भी लिखी थी...​
    ​​बच्चे आप से कुछ बोल्ड पूछें, तो क्या जवाब दें...खुशदीप

    ​जय हिंद...

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  25. खुशदीप जी,
    अरे वाह आप मेरे आग्रह करने पर आज पहली बार मेरी पोस्ट पर आए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया ....आपने जो कहा बिलकुल ठीक कहा, मुझे आपकी बातों से पूरी सहमति है। मगर मैं यहाँ इतना ज़रूर कहना चाहूंगी,कि मैंने कहीं भी यह नहीं कहा है कि आप अपने बच्चों को किसी बात को करने से रोकें या उन पर कोई किसी तरह कि पाबंदी लगायें। मैं तो केवल इतना कहना चाह रही थी,कि आपने बच्चों पर बस एक नज़र रखने की कोशिश करें, कि वो क्या कर रहे है। वैसे तो सभी को अपने-अपने बच्चों के विषय में जानकारी रखते ही है, कि किस का बच्चा किस हद तक जासकता है। फिर भी यदि अगर कहीं यह लगता है कि बच्चा राह भटक रहा है, तो उसे मनोवैज्ञानिक तरीके से समझाने कि जरूरत है न कि रोक टॉक लगाने कि ....वो कहते है न अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती, शायद मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हो गया है मैं लिखना अर्थ चाह रही थी मगर शायद अनर्थ लिखा गया,

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  26. very sensitive issue. parenting can't be generalised,every child needs different set of do's and dont's . this sort of incidents sometimes become an eye opener.

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  27. हाहाहाहा....बात एकदम दुरुस्त है..पर अक्सर खबरें डेस्क पर जन्म नहीं लेती.....मेरे साथ कुछ दूसरा वाकया हुआ था.....जब नया चैटिंग का शौक लगा था....रही बात बच्चों को टैकल करने की..अपने तो नहीं है पर जितने बच्चों को जाना..पढ़ाया और समझा है..अपना जीवन आप खुली किताब नहीं कर सकते....तो बच्चों के जीवन को खुली किताब की तरह नहीं पढ़ सकते..बस इतना ही है कि उसे दी गई सीख कई मोड़ पर मजबूती से खड़े होकर उसका रास्ता रोशन करती है..इससे ज्यादा आप कुछ नहीं कर सकते। यानि कि ट्रैफिक पुलिस की तरह आप नजर रख सकते हैं....ट्रैफिक कंट्रोल कर सकते है, जुर्माना कर सकते हैं..समझा सकते हैं.... पर आखिर में जिंददी की गाड़ी उसे ही चलानी है। सो बेहतर है 14 के बाद सख्ती की सीमा घटाते चलें..और कार्यों की सीखने की तरफ उसकी तव्जों ज्यादा करें

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  28. ओह,
    तकनीक से आगाह करने का इससे रोचक अंदाज भला क्या हो सकता है।
    जानकारी भी और कह लीजिए मनोरंजन भी, ना ना ना मनोरंजन नहीं हकीकत।
    बहुत बढिया

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  29. अरवीला रविकर धरे, चर्चक रूप अनूप |
    प्यार और दुत्कार से, निखरे नया स्वरूप ||

    आपकी टिप्पणियों का स्वागत है ||

    बुधवारीय चर्चा-मंच

    charchamanch.blogspot.com

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  30. हाहा... कोई फ़िल्मी किस्सा लग रहा था पर चिंतन वाला विषय है कि कैसे इस इन्टरनेट के राक्षस से बचा और बचाया जाए..

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  31. कई बच्ची इस तरह की बातों से बहक भी जाते हैं ... गलत राह भी पड़ जाते हैं ... कोई घाघ आदमी नाजायज़ फायदा भी उठा सकता है ... पर फिर भी नेट आज की जर्रूरत बनता जा रहा है ...

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  32. बच्चे रोचकता की ओर भागते हैं, इस तरह मिलना उन्हे अत्यन्त रोचक लगता है, कोई हानि भी नहीं दिखती है। पर मन में सब बस जाने से उस ओर आकर्षण बना रहता है।

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  33. ye ghatna to satya nhi hai.desk pr bni lgti hai kyunki ye ek vigyapan hai jise maine tv pr dekha hai.pr apka prastutikaran accha lga

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  34. pallavi ji sahi kaha aapne ...aapki post bahut sarthak hai dhyan dene yaugya , aajkal aisa hi ho raha hai . acchi lagi aapki baat sach me dhyan rakhna bahut jaroori hota hai aur thoda anishashn bhi .


    http://sapne-shashi.blogspot.com

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  35. काबिले-गौर टिप्पणी...

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  36. हंसी आने वाली यह घटना पुश्त में अनेक सवाल छोड़ जाती है....
    सार्थक चिंतन/आलेख।
    सादर।

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  37. बहुत ही दिलचस्प वाकया बयान किया है आपने.. ये एक शॉर्ट फिल्म की कहानी है.. कुछ महीने पहले मैंने फेसबुक पर शेयर की थी यह फिल्म..
    बहुत ही सार्थक आलेख और बहुत अच्छी सीख!!

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  38. बहुत ही गंभीर ,ध्यान देनेवाली
    बात है.....
    बढ़िया पोस्ट...

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  39. पल्लवी बहन, मादकता नैसर्गिक है । परागण की प्रक्रिया को ध्यान से देखो तो सारी प्रकृति परागण को सहज बनाने मे जुटी सी दीख पडती है । चूंकि हमारा ढांचा सामाजिक है , हमारे सरोकार सामाजिक है, मर्यादाएँ हैं इसलिये भांति भांति के जतन करते हैं कि परदे पडे रहें । सिगमण्ड फ्रायड मादकता की चाह को मूलभूत मनोवृत्तियों मे से एक मानते रहे । अब संयोग की बात कि साधन बढ गये माध्यम जुट गये । संयम के मायने अब वे नही रहे जो कुछ दशक पहले हमे सिखाये गये । हम आउट डेटेड हैं । एक फेसबुक यूजर ने माया जाल की बडी मनोरम रचना की । उसने कई तथाकथित साहित्यसेवियों को अपनी लेखनी के बूते मित्र बनने को विवश किया फिर एक फर्ज़ी आइ डी से दूसरी ओर खींचा और अधेढ भद्रपुरुषों से मादक संवाद किय । कालांतर मे उनके संवाद अपनी प्रोफाइल पर डाल कर उन्हे उघाडने का दुस्साहस किया । अब इसे क्या कहा जाये ? बच्चों पर बन्दिश तो बाद की बात है पहले उम्रदराज़ लोग अपनी ही कुत्सित भावनाओं और नशे पर तो अंकुश लगा लें ।

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  40. सलिल चचा(सलिल वर्मा) ने वो फिल्म शेयर की थी फेसबुक पर..और यकीन मानिए पल्लवी जी, मैं खुद उसे देख के Shocked था....बहुत ही अच्छी और महत्वपूर्ण सन्देश वाली शोर्ट फिल्म थी वो..सबको देखनी चाहिए, और कुछ सीखनी चाहिए..
    और इस बात का तो मैं भी समर्थन करता हूँ की आजकल के इन्टरनेट वाले दौर में अभिवावकों को चाहिए की वो अपने बच्चों के द्वारा नेट पे किये जा रहे कामों की जांच करते रहे..बहुत जरूरी है, नहीं तो आजकल तो नेट पर हर किस्म की सामग्री मौजूद है...अच्छी से अच्छी और बुरी से बुरी!

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  41. वैसे यह घटना केवल मात्र कपोल कल्पित है। फिर भी ऐसे प्रसंग परिवारों में संवादहीनता के कारण आते हैं।

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  42. हर प्रोद्योगिकी अपने पार्श्व प्रभाव लाती है .इंटरनेट तो एक पंडोरा बोक्स है एक चीज़ में से दूसरी निकलती है .

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  43. बहुत ही सही बात उठाई है आपने अपने लेख द्वारा , मै तो मोबाईल को भी गलत मानती हूँ क्योकि मेरी गली में कम उम्र के बच्चों द्वारा होने वाले प्रेमालाप से तंग आ चुकी हूँ

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  44. आप सभी पाठकों एवं मित्रों का तहे दिल से शुक्रिया कृपया यूं हीं संपर्क बनायें रखें...आभार

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  45. है तो जबलपुर से भी हमें कुछ ऐसा ही प्यार..और देश छोड़ कर देश से...बाकी बच्चे उस उम्र से पार हैं कि उनकी चिन्ता की जाये...अब वो अपने बच्चों की चिन्ता करें..हमें तो जो करनी थी, कर चुके. :)

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  46. बहुत ही गम्भीर एवं विचारणीय विषय। ज्ञानवर्धक आलेख के लिये आभार के साथ साथ बधाई....

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  47. अच्छी सार्थक जानकारी दी है आपने.
    माँ बाप अभिभावकों को सचेत तो रहना ही चाहिए.

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  48. झटकेदार पोस्ट. लेकिन क्या हो सकता है? इंटरनेट आपने आप में अकेलापन है जो सुपरविज़न से परे चले गया है.

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