Sunday 6 May 2012

क्या करें और कहाँ जाएँ स्त्रियाँ

कल समाचार पत्र में एक खबर देखी थी चितौड़ के विषय में आपने भी देखी हो शायद, देखी इसलिए कहा क्यूंकि वहाँ एक वीडियो था जिसमें एक गाइड के द्वारा चितौड़ के किले का इतिहास बताया जा रहा था। मेवाड़ की पूर्व राजधानी चितौड़ आज भी अपने दामन में इतिहास की अमर कहानी समेटे हुए सैलानियों को अपनी और आकर्षित कर रहा है। वैसे तो वह सम्पूर्ण जानकारी या यूं कहिए कि वहाँ उस गाइड के द्वारा दी गई जानकारी सभी ने पहले स्कूल में पढ़ी है लेकिन उस गाइड ने बहुत ही प्रभावशाली ढंग से वहाँ के गौरवपूर्ण इतिहास को लोगों के सामने रखा। सच बहुत ही गौरवशाली रहा है हमारा इतिहास, जिसे पढ़कर देख सुनकर सर गर्व से ऊंचा हो जाता है, कि हम उस देश के वासी हैं जहां जगह-जगह का इतिहास स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उस वीडियो का लिंक नीचे दे रही हूँ।

http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=-pTrmsJoOys

लेकिन तब भी, उस वीडियो को देखने के बाद दो बातें ज़हन में घूमती रही, कि आखिर क्यूँ हमारे यहाँ हमारी सरकार हमारे इस गौरवपूर्ण एतिहासिक इमारतों को विदेशों की तरह सजह कर नहीं रख पाती। क्यूँ विदेशों में जाने अंजाने खंडहर भी पर्यटकों के अहम आकर्षण का कारण बने रहते हैं और क्यूँ हमारे यहाँ जाने पहचाने स्थल भी खंडर में तब्दील  होते जा रहे हैं। जैसे मानो उस खंडर होती इमारतों की दीवारें राहगीरों से कह रही हो, कि आओ देशवासियों खत्म होने से पहले एक नज़र देख लो हमें और जानलो हमारा वह सम्मान जनक इतिहास जो अब थोड़े ही दिनों का मेहमान हो चला है। जो अब नजर आयेगा शायद केवल बच्चों की किताबों के पन्नो पर,  इससे पहले कि ख़त्म हो जाये हमारा अस्तित्व, एक बार जान लो हमें, पहचान लो हमें।

दूसरी बात जब उस गाइड ने चितौड़ का इतिहास बताते हुए, वहाँ हुए तीन जौहर (एक तरह का सामूहिक आत्मदाह) की कहानी सुनाई तो सच में मेरी आंखे नम हो गई थी। सदियों से हर महायुद्ध का कारण स्त्री ही क्यूँ रही है। बस यही सवाल घूमता रहा मेरे अंदर क्यूँ हमेशा हर वक्त चाहे इतिहास हो या वर्तमान, स्त्री को ही दोषी दिखाता आया है यह समाज। क्यूँ ? महाभारत और रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथ भी गवाह हैं इस बात के और चितौड़ में रानियों के द्वारा किए हुये जौहर भी, कि हर महायुद्ध के पीछे कारण रही है केवल स्त्री और खासकर यहाँ जब हम चितौड़ की बात कर रहे हैं तो वहाँ तीन बार मुगल शासकों के हमलों के कारण वहाँ की रानियों को मुग़ल शासकों की गन्दी नज़र से खुद को बचाने के लिए करना पड़े वो जौहर।

वह स्थान जहां रानी पद्मिनी ने लगया था अपना जौहर  

पहला जौहर जब अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मिनी को हासिल करने के लिए आक्रमण किया तब रानी पद्मिनी ने जौहर जलाया, दूसरा जौहर जब गुजरात के बहादुर शाह ने आक्रमण किया तब राणा सांगा की रानी कर्णावती ने खुद को बचाने के लिए जौहर जलाया वो भी उन्हें अपने एक साल के बच्चे को छोड़कर जलना था, तब उन्होंने अपने एक साल के बेटे उदय सिंह को अपनी एक दायी (जिसका नाम था पन्ना दायी नाम सुना होगा आप सभी ने उनका) उनको को दे दिया, उस के बाद रानी खुद तो जल गई मगर उस दायी ने अपनी वफादारी निभाते हुए रानी के उस बेटे को एक आम के टोकरे में रखकर दूर भिजवा दिया और उस वक्त वहाँ के ही एक गद्दार सेनापति बनवीर सिंह के मन में आया कि क्यूँ न राजकुमार को भी ख़त्म कर मैं ही यहाँ का राजा बन जाऊं तब उस पन्ना दायी ने राजकुमार को बचाने की खातिर वहाँ अपने बेटे चंदन सिंह को खड़ा कर दिया और तब बनवीर सिंह ने उसे राजकुमार समझ कर उसके टुकड़े कर दिये। बहुत बड़ा दिल चाहिए ऐसी वफादारी के लिए भी, ज़रा सोचिए केवल उस राजकुमार को बचाने के लिए एक माँ ने स्वयं अपने बेटे को कटवा दिया। तब कहीं जाकर उस राजकुमार के रूप में हमें मिले महाराजा उदय सिंह जैसे राजा जिन्होंने आज के उदयपुर की स्थापना की । फिर तीसरा जौहर अकबर के आक्रमण के समय जलाया गया।


आज लोग राजाओं को जानते हैं मगर इन वीरांगनाओं के बारे में कितनों को पता है ? शायद इसलिए चितौड़ का इतिहास खींचता है अपनी ओर, क्यूंकि चितौड़ के किले ने अपने आँगन में यह जलते हुए जौहर तीन बार देखे हैं मगर सवाल यह उठता है कब तक दूसरे की करनी का फल भुगतती रहेगी स्त्रियाँ यह तो इतिहास की बात थी। मगर आज तो उसे भी बुरा हाल है न जाने क्या चाहते हैं लोग, जो आज की तारीख में हमारे ही देश में सुरक्षित नहीं है स्त्रियाँ, इस बात का सबूत है दिनों दिन बढ़ती स्त्रियॉं के प्रति घटती घटनाएँ, जहां अब जरा भी महफूज़ नहीं है स्त्रियाँ। यहाँ तक कि छोटी-छोटी लड़कियां भी नहीं, कब कहाँ किस के साथ क्या घट जाये आज कल कोई भरोसा नहीं, एक तरफ भूर्ण हत्या जैसे मामलों में बढ़ता इज़ाफ़ा तो दूसरी तरफ आए दिन होता बलात्कार, छेड़छाड़, बसों में होती बदसलूकी, न जाने क्या-क्या। आखिर कहाँ जाएँ और क्या करें स्त्रियाँ, क्या आज के इतने आधुनिक दौर में भी पुरुषों की गंदी नज़र से खुद को बचाने के लिए जौहर लगाना होगा स्त्रियॉं को ?आखिर क्यूँ और कब तक ......         

34 comments:

  1. स्त्रियॉं को हमेशा ही शोषित होना पड़ा है .... हमेशा से पृरुष का वर्चस्व रहा है ... सार्थक मुद्दा उठाती अच्छी पोस्ट

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  2. बहुत सार्थक गंभीर आलेख ....!प्रभावी ढंग से कही आपने अपनी बात ...!!सोचने पर आमादा कर रही है ...!!

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  3. स्त्रियों का शोषण होता ही रहा हमेशा.पर अब वक्त जोहर का नहीं डट कर सामना करने का है.मुंह तोड़ जबाब देने का है.

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  4. स्थितियां सदैव विकट ही रही हैं .... और आज भी हैं...

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  5. सभ्यताओं के आधुनिकरण के बावजूद हालात में कोई ज्यादा परिवर्तन नहीं आया ...
    सार्थक चिंतन !

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  6. चिन्तनीय स्थिति है। जब किसी वाह्य आक्रमणकारी का भय नहीं तो भी स्त्रियाँ क्यों असुरक्षित रहें?

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  7. स्त्रियों का शाश्वत सत्य- रहने को घर नहीं है, सारा जहाँ हमारा ... अपने पैरों पर खड़े हैं तो लोगों की लोलुप दृष्टि ... इस विषय पर कुछ कहना सुनना समय बिताने का मुहीम है - बस

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  8. अक्रान्ताओ से बचने के लिए राजपूतानियो का आन के लिए जोहर व्रत का महिमा मंडन होता रहा है जो की हमारी कमजोरी का प्रतीक है . जहाँ तक मुझे याद है उस सेनापति का नाम बनवीर था और जिस राजकुमार को पन्ना ने बचाया था वो कुंवर उदय सिंह थे , महाराणा प्रताप के पिताश्री. एक बार और चेक कर लीजियेगा .

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  9. बहुत सार्थक गंभीर आलेख

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  10. सार्थक गंभीर विषय पर बहुत अच्छी प्रस्तुति,....

    RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

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  11. आशीष जी आभार, आप की जानकारी सही है, मैंने सुधार कर दिया है।

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  12. मुग़लों के ज़माने में ऐसे अत्याचार तो होते ही थे . जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला हाल था .
    महिलाएं असुरक्षित तो अब भी हैं . लेकिन आधुनिक नारी में आत्म विश्वास भी है .

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  13. आपका कहना भी गलत नहीं है डॉ साहब मगर मुझे तो ऐसा लगता है जितनी तेज़ी से स्त्रियों में आत्म निर्भरता और आत्म विश्वास बढ़ा है उतनी ही तेज़ी से स्त्रियों के प्रति हो रहे आपराधों में भी वृद्धि हुई है।

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  14. बहुत गंभीर विषय है और देश को इस पर गंभीरता से विचार करना ही चाहिए. इस पीड़ा का सबसे बड़ा सत्य ये है की इस देश में अब चरित्र निर्माण नहीं होता और जब चरित्र ही नहीं होगा तो कैसे स्त्रियों को सम्मान होगा.

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  15. महत्वपूर्ण विषय पर आपने बहुत अच्छी जानकारी उपलब्ध कराई है!...सुदर प्रस्तुति, आभार!

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  16. स्थिति सचमुच चिंतनीय है।
    ऐसा लगता है प्राचीन युग से लेकर आज तक स्त्रियों के प्रति पुरुषों की सोच यथावत बनी हुई है। फिर भी अब स्त्रियों के आत्मबल में वृद्धि हो रही है।

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  17. महत्वपूर्ण विषय पर आपने बहुत अच्छी जानकारी उपलब्ध कराई है!
    स्थिति सचमुच चिंतनीय है।
    .......सुदर प्रस्तुति, आभार!.....

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  18. स्त्रिओं का सम्मान आज कल चिंता का विषय है. सच्चाई से मुँह मोडने से सच्चाई नहीं बदलती. आपकी चिंता आज हर स्त्री की चिंता है.

    आपने महत्वपूर्ण विषय पर विचार रखे और गंभीर चिंतन के लिये जानकारी दी.

    आभार.

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  19. तब से अब तक मुझे तो कोई बदलाव नहीं दिखता....ऊपरी तौर पर फर्क आया है......भीतर से इंसानी फितरत अब भी वही है...नारियाँ वहीँ की वहीँ है.......

    सादर
    अनु

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  20. कुछ तो बदलाव आया है पर पूर्ण रुप से स्त्रियां आज भी सुरक्षित नहीं है..विचा्रणीय गम्भीर आलेख....

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  21. बहुत ही विचारणीय आलेख....ऊपरी बदलाव ज़रूर आया है, लेकिन अधिकाँश स्त्रियों की दशा आज भी वही है...हमें समाज की सोच बदलने का प्रयास करना होगा...

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  22. स्त्रियों की असुरक्षा दिन ब दिन बढती जा रही है. कोई हल नहीं सूझता. जो स्त्रियाँ इतिहास के पन्नों में समा गई और जिनकी जौहर गाथा हम सूना करते हैं वो तो गिनती की हैं. लेकिन जिसको कोई नहीं जान पाया ऐसी हज़ारों स्त्रियाँ समाज के इस सोच के कारण बलि चढ गई और जिसका कही कोई जिक्र नहीं आ पता. अगर आ भी जाए तो क्या. हर हाल में ये दंश स्त्री ही झेलती है और सवाल मन में उठते हैं कि आखिर कब तक? जवाब नदारद... हर युग कि तरह. विचारनीये आलेख, बधाई.

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  23. as usual nice pallavi..... keep it up..
    agar kabhi fursat mile to aap mere blog par jarur aana..

    http://bhukjonhi.blogspot.in/

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  24. ऐतिहासिक तथ्यों के साथ आज के सन्दर्भ

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  25. आपने उपेक्षित हो रहे खंडहरों के भावों को भी शब्द दिये हैं यह अपनी धरोहर के प्रति उत्कट प्रेम को दर्शता है. विचारणीय आलेख.

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  26. हमारे देश की ये ऐतिहासिक धरोहरें अनेक गाथाएं अपने में समाहित किए हुए हैं पर पनी अज्ञानता और दुर्बुद्धि के कारण हम इनका विनाश करने पर तुले हुए हैं।
    बहुत अच्छी चित्रों के साथ आपने एक काल के इतिहास को साकार कर दिया।

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  27. कब कहाँ किस के साथ क्या घट जाये आज कल कोई भरोसा नहीं....ples visit my blogs www.sriramroy.blogspot.in

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  28. किसी देश की रानी होने के बाद आक्रांता के हाथों अपमानित होने का भय, पराजय के बाद दीन-हीन स्थिति में पड़ने का भय, सती प्रथा के महिमामंडित होने संबंधी कथाएँ, ये सभी कारण हैं सती प्रथा के पीछे. मैंने सुना है जम्मू में वहाँ की ग़रीब हिंदू औरतें प्रभावशाली लोगों द्वारा पति को मारे जाने और अपमानित होने के डर से सती होती रही हैं. चूँकी वे ग़रीब थीं अतः उनकी देहुरियाँ तो बनी हैं लेकिन उनका कोई महिमा मंडन नहीं हुआ है.
    मुख्य बात है कि महिलाओं के लिए ख़तरे बढ़े हैं. कम नहीं हुए हैं.
    बहुत ही बढ़िया आलेख दिया है आपने.

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  29. बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति.

    माँ है मंदिर मां तीर्थयात्रा है,
    माँ प्रार्थना है, माँ भगवान है,
    उसके बिना हम बिना माली के बगीचा हैं!

    संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी

    आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..
    आपका
    सवाई सिंह{आगरा }

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  30. बहुत ही सार्थक प्रस्‍तुति।

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  31. आज की स्थिति सचमुच चिंतनीय है।

    MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

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  32. those who have heart, their eyes will flow after reading this post.todays mother can do anything for her children upliftment...but we men ?..

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  33. Is baat pe Bhi gour Karne ki jaroorat hai ki itne gourav Shaali itihaas ko kyon bhulaaya ja raha hai aaj ...
    Sabhi chitr apni gaatha kah rahe hain ...

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