नमस्कार दोस्तों आज बहुत दिनों बाद आप सब के बीच उपस्थित हुई हूँ,क्यूंकि पिछले कुछ दिन पूर्व ही इंडिया से वापस आई हूँ और अब तक वहाँ की खुमारी उतरी नहीं है। इसलिए क्या लिखूँ कुछ खास समझ नहीं आ रहा है लेकिन फिर भी इतने दिनों ब्लॉग परिवार में उपस्थित ना रहने के बावजूद भी जब अधिकतर मित्रगण यह पूछते हैं कि आप बहुत दिनों से नज़र नहीं आयी, कहाँ है आप, आज कल बहुत दिनों से आपके अनुभव पढ़ने को नहीं मिल रहे हैं। तो जानकर बहुत अच्छा लगता है कि अनुपस्थिति के बावजूद भी लोगों ने मुझे याद रखा और इतने दिनों के बाद वापसी पर बिलकुल एक परिवार के सदस्य की तरह ही मेरी खैर ख़बर ली और मुझे याद किया, इसके लिए मैं आप सभी की आभारी हूँ और तहे दिल से आप सबका शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ। जाने से पहले मैं बता ही नहीं पायी थी कि मैं इंडिया आ रही हूँ और वहाँ भी कम दिन होने के कारण मुझे समय का पता ही नहीं चला। पलक झपकते ही जैसे सारे दिन निकल गए और अब ऐसा लग रहा है जैसे बहुत दिन हो गए सब से मिले जब की अभी तो केवल दो ही दिन हुए हैं। मगर यहाँ रहकर अपने-अपनों का और देश की मिट्टी का महत्व और कमी समझ आती है। खैर यह सब मिलना बिछुड़ना तो चलता ही रहेगा, क्यूंकि शायद इसी का नाम ज़िंदगी है।
लेकिन हर बार परिवार भले ही वही एक हो मगर रोज़ मर्रा की ज़िंदगी में भी हर बार नए अनुभव होते है। ऐसा लगता है जिन लोगों को हम बरसों से जानते है। जिनके व्यवहार को बहुत अच्छी तरह पहचानते है कभी-कभी वही लोग अचानक ही किसी बात पर अपना एक अलग और नया नज़रिया प्रकट कर देते हैं। जिसे सुनकर, देखकर एक बार, एक पल के लिए खुद पर संदेह हो जाता है कि क्या वाकई यह वही इंसान है जिसे बहुत अच्छे से जानने का दावा किया करते थे हम ,तब अक्सर मेरे मन में यह ख़याल आता है कि शायद इस दुनिया में ऐसा कोई भी इंसान है ही नहीं या होता ही नहीं, जिसे हम पूरी तरह से जानने या समझने का दावा कर सकें।
ऐसा ही एक अनुभव मुझे भी हुआ किसके लिए हुआ यह तो मैं नाम लेकर नहीं बता सकती :) मगर इतना जरूर कह सकती हूँ कि जिसके प्रति मुझे यह अनुभव हुआ उसे मुझे उम्मीद नहीं थी कि ऐसा भी वो शक्स कह सकता है या सोच सकता है। बात यहाँ देखी जाये तो मानसिकता की है, नज़रिये की है, एक ही बात को देखने, सुनने समझे और सोचने का हर एक इंसान का अपना एक अलग ही नज़रिया होता है। यह ज़रूरी नहीं कि हर एक इंसान की सोच दूसरे से मेल खाती हो। ठीक उसी तरह यह भी ज़रूरी नहीं कि हमेशा सब की सोच अलग ही हो कभी-कभी किसी विषय विषय पर लोग एक मत भी हो जाते हैं। किन्तु किसी भी व्यक्ति की सोच उसके आस पास के माहौल से बनती है जिस तरह के वातावरण में वो बचपन से पला बढ़ा है जो उसने देखा है। वही उसे समझ आता है और वही उसे सही भी लगता है। इसमें उस इंसान की कोई गलती भी नहीं, क्यूंकि सभी के साथ ऐसा ही होता है। जो जैसा देखता है, सुनता है महसूस करता है वही उसे सही नज़र आता है। वैसे भी वास्तव में यदि देखा जाये तो सही गलत कुछ नहीं होता इंसान की अपनी सोच उसे सही या गलत बना देती है। बिलकुल उसी कहावत की तरह कि गिलास आधा खाली है या आधा भरा है।
खैर मैं विषय से न भटकते हुए असल बिन्दु पर आती हूँ बात यह थी कि किसी भी बच्चे को अपने पापा की जॉब के विषय में कितनी जानकारी रहा करती है या किसी भी स्त्री को अपने पति की नौकरी के विषय में कितनी जानकारी रहा करती है। जैसे मेरा ही उदाहरण ले लीजिये मुझे अपने पापा की नौकरी के बारे में क्या जानकारी है बस यही कि वो एक वेटनरी डॉक्टर है अर्थात जानवरों का इलाज करते हैं सभी तरह के जानवर फिर चाहे वो कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट, हाथी, शेर,चीता कोई भी हो और ज्यादा हुआ तो इतना कि पहले पापा अस्पताल में बकायदा एक डॉ की हैसियत से काम करते थे। जहां लोग अपने-अपने जानवर लेकर आया करते थे। बिलकुल इंसानी मरीजों की तरह फिर जब पापा ने लैब जॉइन कर ली तब उनका काम पहले की तुलना में थोड़ा बदल गया। मगर वो लैब में क्या करते हैं कैसे करते इन सब बातों की जानकारी मुझे नहीं थी और ना ही मैंने कभी इस विषय में विशेष जानकारी लेना ज़रूरी समझा, उन दिनों तो उनके जॉब को लेकर मेरे लिए यही जानना काफी था की मेरे पापा एक वेटइनरी डॉ हैं बस, अब बात करूँ पतिदेव की तो उनकी नौकरी के विषय में मैं क्या और कितना जानती हूँ यही न की वो Cognizant कंपनी में एक सॉफ्टवेअर इंजीनियर हैं और पीएम लेवल पर काम करते हैं लेकिन उनका मुख्य काम क्या है और वो कैसे करते हैं यह जानने की मैंने कभी जरूरत नहीं समझी और न ही कभी ऐसी कोई जरूरत पड़ी, कि मैं इस विषय की तह तक जाकर पूरी जानकारी रखूँ कि आप कौन सा काम कैसे करते हो।
और यदि में गलत नहीं हूँ तो अधिकतर महिलाओं को अपने पिता या पति की नौकरी के विषय में शायद इस से ज्यादा जानकरी नहीं होगी। हाँ कुछ महिलाएं जो अपने पति के साथ ही काम करती हैं या वही काम करती है जैसे पति पत्नी दोनों डॉ है या दोनों इंजीनियर हैं तो बहुत हद तक आप एक दूसरे के काम को समझ सकते हैं। मगर यदि ऐसा नहीं है तो जहां तक मेरी सोच कहती है। आपको भी केवल इतनी ही जानकारी होगी जितना कि मैंने उपरोक्त कथन में कहा, मगर असल बात जो मुझे चुभी, वो यह थी कि आज की तारीख़ में भी या यूं कहें की आज के इस आधुनिक युग में भी जहां आज हर लड़की पढ़ी लिखी है तब भी लोगों की ऐसी मानसिकता की लड़की को इस बात से क्या मतलब कि लड़का क्या करता है। उसे तो केवल इस बात से मतलब होना चाहिए कि महीने में कितना कमाता है और अपनी बीवी के हाथ में कितना देता है। फिर चाहे वो डॉ, इंजीनियर हो या कोई व्यापारी उस से लड़की को फर्क नहीं पड़ना चाहिए क्यूंकि अपने पिता के समय काल में भी लड़की को केवल अपने पिता कि नौकरी के विषय में केवल एक सीमित जानकारी ही रही है तो अब पति के विषय में उसे सम्पूर्ण जानकारी क्यूँ चाहिए। यकीन मानिए यह सुनकर मुझे इतना आश्चर्य हुआ था कि जिसकी हद नहीं, आज के जमाने में एक अच्छा खासा पढ़ा लिखा खुली मानसिकता वाला इंसान जब ऐसी कोई बात करे तो उस वक्त कैसा लगता है। खासकर उस वक्त जब उस व्यक्ति विशेष के प्रति आपकी ऐसी भावना हो कि आप से ज्यादा उसे और कोई नहीं जानता।
वह भी तब जब इस विषय पर तर्क वितर्क हो रहे हों और कोई किसी को यह सीख दे रहा हो, कि तुमको लड़के की कमाई से मतलब होना चाहिए न की उसकी पोस्ट से या डिग्री से या उसके काम से ,तुम्हें क्या लेना देना की वो क्या काम करता है। आज के जमाने में कोई ऐसा सोच भी कैसे सकता। मैं तो यही सोच सोच कर हैरान हूँ। जिस लड़की ने अपने घर में हमेशा अपने पिता और भाई को नौकरी करते देखा हो,एवं वो स्वयं भी पढ़ी लिखी हो तो स्वाभाविक है कि वह अपने पति के प्रति भी यही इच्छा रखेगी कि उसका पति भी यदि इंजीनियर है तो किसी अच्छी कंपनी में जॉब करे न कि सब छोड़-छाड़कर व्यापार करने लगे सिर्फ इसलिए कि उस घर के बाकी सदस्य व्यापार से जुड़े हैं। वो भी ऐसा व्यपार जो अभी शुरू हो रहा है। जिसे बाहरी दुनिया में अभी अपने कदम जमाने में कुछ नहीं तो कुछ साल लगने वाले हैं।
ऐसे हालातों में आप किसी भी पढ़ी लिखी लड़की से ऐसी उम्मीद भी कैसे रख सकते हो कि वो यह जाने बिना कि उसका पति क्या करता है और क्यूँ कर रहा है अर्थात यदि वो व्यापार भी कर रहा है तो किस चीज़ का व्यापार है कैसे होता है कितनी कमाई है और यदि आपके पास इंजीनियर की डिग्री है तो फिर व्यापार क्यूँ यह सब आम सवाल है जो हर किसी दूसरे व्यक्ति के मन में उठना स्वाभाविक है वो जब, जब जैसा कि मैंने पहले भी कहा व्यापार शुरुआती हो। ऐसे में कोई भी लड़की कैसे अपने पति को व्यापार के क्षेत्र में जाने देने के लिए राज़ी हो सकती है। क्यूंकि शुरुआती व्यापार में हमेशा ही आर्थिक रूप से असुरक्षा की संभावना अधिक रहा करती है। क्यूंकि शुरुआती दौर में पता नहीं चलता कि आगे चलकर सफलता मिलेगी भी या नहीं ज्यादा या कम तो दूर की बात है। ऐसे में कोई भी नौकरी पेशा परिवार से आयी हुई लड़की अपनी मानसिकता एकदम से कैसे बदल सकती है। क्यूंकि साधारण तौर पर नौकरी पेशा घरों में लोग व्यापार में खुद को आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस नहीं कर पाते, खासकर जब व्यापार शुरूआती दौर में हों, हाँ पहले से जमा जमाया व्यापार हो तो ओर बात है।
तब शायद किसी व्यक्ति को अपनी मानसिकता बदलने में कम समय लगे क्यूंकि तब आर्थिक रूप से असुरक्षा की भावना कम हो जाती है। मगर तब भी वक्त तो लगता ही है क्यूंकि फर्क उस बात से भी पड़ता है कि आप किन लोगों में उठते बैठते हो। यदि आपका व्यापारी वर्ग की महिलाओं में ही उठना बैठना अधिक होने लगता है। तब तो ठीक है कम से कम मन को यह तसल्ली रहती है कि चलो कोई बात नहीं अपनी अभी शुरुआत ही सही आगे अपना भी व्यापार ऐसा ही हो जाएगा जैसा आस पड़ोस वालों का है। लेकिन यदि जब आप नौकरी पेशा वाले लोगों के बीच रहते हो, तो एक अलग सी भावना आती है जब लोग अपने अपने पति के डेसिग्नेश्न को लेकर बात करते हैं बाहर रहने और आने जाने की बात करते है, कुछ हकीकत बयान करते हैं तो कुछ थोड़ी बहुत फेंकते भी है। मगर यह आप के ऊपर निर्भर करता है कि उस वक्त आप खुद को कहाँ और कैसा महसूस करते हैं हांलांकी आपकी सोच पर आपके आस-पास के वातावरण का भी खासा असर पड़ता है। इसमें कोई दो राय नहीं है।
जहां तक मेरी सोच और समझ कहती है मैं तो हमेशा नौकरी की तरफ ही रहूँगी क्यूंकि मैं पढ़ाई को ज्यादा महत्व देती हूँ मेरे अनुसार जैसी आपकी डिग्री है वैसा ही आपका काम होना चाहिए बशर्ते आपकी डिग्री आपकी मजबूरी न रही हो। क्यूंकि अक्सर हमारे समाज में लोग करना कुछ चाहते हैं और कुछ आंतरिक समस्याओं और मजबूरीयों के चलते कर कुछ और ही लेते हैं। हो सकता है आप मेरे नज़रिये से सहमत नहीं हों मगर फिर भी मेरा झुकाव व्यापार की अपेक्षा नौकरी पर अधिक है। अंतत बस यही पूछना चाहूंगी कि आज के युग में भी किसी लड़की को यह समझना कि अरे तुम इस बात से क्या मतलब कि तुम्हारा पति क्या करता है डिग्री चाहे जो हो उसकी, तुम्हें तो केवल इस बात से मतलब होना चाहिए कि हर महीने तुमको कितना पैसा देता तुम्हारा पति क्या यह सोच सही है ? आपको क्या लगता है .....
लड़के की कमाई से मतलब होना चाहिए न की उसकी पोस्ट से या डिग्री से या उसके काम से ,तुम्हें क्या लेना देना की वो क्या काम करता ?
ReplyDeleteतब तो गुंडा-मवाली-जुआड़ी भी चलेगा ?
हा हा हा सही कहा दी.....
ReplyDeleteएक दूसरे के बारे में जानकारी रखने में कोई बुराई नहीं है.....बात सिर्फ पैसे की नहीं होती इज़्ज़त बहुत बड़ी चीज़ है अगर घर वालों को ही जानकारी नहीं है कि कौन क्या कर रहा है तो भला किसको होगी.....विभा दी की बात से भी सहमत हूँ।
ReplyDeleteहमारा काफी कार्य घर से भी होता है, बच्चों और पत्नी को हमारी नौकरी के बारे में बहुत कुछ आता है।
ReplyDeleteअगर कोई अपने होने वाले जीवनसंगी / संगिनी के बारे में , उसके क्रिया कलापों के बारे में और पेशागत जानकारिया करना चाहता है तो ये तो ये तो बुद्धिमानी और दूरदृष्टि है उसकी . वो ज़माने चले गए जब किसी को बस देखकर और उपरी तौर पर उसके profession को जानकर , गांठे बांध दी जाती थी. मुझे लगता है इन बातो की आलोचना अहमकता के अलावा कुछ नहीं है . रही बात व्यापर और नौकरी की तो वो अपनी अपनी पसंद.
ReplyDeleteलेकिन मै इस बात से सहमत नहीं हूँ की अभियांत्रिकी का स्नातक व्यापर करे तो वो उसकी डिग्री की अवमानना है. आप शायद जानती हो की आजकल उच्च शिक्षा संस्थानों में (सही वाले) अपने छात्रों को उद्यम और व्यापार के लिए प्रोत्साहित किया जाता है क्योंकि वो कुछ और लोगो को रोजगार मुहैया करा सकता है .
बाकि विभा जी ने कुछ शब्दों में सब कह दिया है.
जीवन के एक महत्वपूर्ण पहलू पर प्रकश डालता हुआ,सबके पढ़ने योग्य एक बेहतरीन पोस्ट |
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग आपके इन्तजार में-
"मन के कोने से..."
"अक्सर हमारे समाज में लोग करना कुछ चाहते हैं और कुछ आंतरिक समस्याओं और मजबूरीयों के चलते कर कुछ और ही लेते हैं।"
ReplyDeleteyahi problem hai.
VIBHA JI SE SAHMAT...UN LOGON SE POOCHIYEGA JARUR
ReplyDeleteपढ़े लिखे लोगों को पता तो होना चाहिए . हालाँकि ऐसा होता नहीं है . क्योंकि सब अपने ही काम में व्यस्त रहते हैं .
ReplyDeleteस्वदेश आने पर समय का पता ही नहीं चलता कब निकल जाता है .
UMDA LEKHAN
ReplyDeleteपति के काम के विषय में जानकारी होनी तो चाहिए..लेकिन कभी कभी इसमें भी बड़ी अजीब स्थिति देखने को मिली है मुझे.. एक बार ऑफिस की पार्टी में हमारे एक सहकर्मी की पत्नी हमारे कार्यालय की वेतन संरचना, प्रोन्नति-नीति और मानव संसाधन प्रबंधन के गिरते स्तर पर बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही थीं. उनकी इतनी ज़बरदस्त जानकारी पर यह सोचने लगा मैं कि भला मेरे मित्र घर पर अप्त्नी के साथ प्रेम और परिवार की बातें न कर सिर्फ ऑफिस की ही बातें करते होंगे और वो भी इतनी गहराई से. उनकी पत्नी के ओजस्वी विचार आज भी हमारी चर्चा में शामिल होते हैं.
ReplyDeleteमनोवृत्ति के अनुरूप वृत्ति मिले यह परम सौभाग्य की बात है। अक्सर ऐसा होता नहीं है और आदमी दोहरी जिंदगी जीने के लिए बाध्य होता है।
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ReplyDeleteसार्थक पोस्ट , आभार.
मेरे ब्लॉग की नवीनतम पोस्ट पर आपका स्वागत है .
True and meaningful....
ReplyDeletekeep it up...
http://apparitionofmine.blogspot.in/
behtreen lekh ke liye badhai
ReplyDeleteमेरा मानना है की दोनों को एक दूसरे की जानकारी होना बहुत जरूरी है ... जब जीवन एक साथ बिताना है तो हर बात की जान्कारिक्यों न हो ... जानकारी होना भविष्य में किसी अनहोनी से समय में बहुत काम आता है ...
ReplyDeleteapani samvedanao ko aakar dene ke liye badhai... blag likhana dil ke kareeb hona... dil ki baaten likhana hi to hai...
ReplyDeleteblag ka naam bhi kya khoob rakha hai... mere anubhav... bahoot saadagi ke saath...
shayad aap bahut saral aur bhavook hain..
aapake blag se yah reflect hota hai...
bahut badiya saarthak prastuti..
ReplyDeleteaabhar!
अच्छी बातों का प्रभाव अच्छा ही पड़े - यह ज़रूरी नहीं . अपने नज़रिए से लोग अच्छाई को आडम्बर भी कहते हैं !!!
ReplyDeleteसाथ चलते हुए बातें स्पष्ट हों - सही है, ज़रूरी भी .... पर हर रिश्ते में कुछ स्पेस होना चाहिए .
ReplyDeleteसुंदर विवेचना. एक दूसरे के कार्य के बारे में जानना जरुरी है. यह जानकारी भविष्य में बहुत उपयोगी हो सकती है.
ReplyDeleteअरुण कुमार निगम जी की बात से मैं भी सहमत हूँ.
ReplyDeleteलड़का पढ़ा लिखा हो ,और अपनी पढ़ाई के अनुरूप
ठीक ठाक व्यापार कर रहा हो,तो भी कोई हर्ज नही है.
पुरानी कहावत है
उत्तम खेती,मध्यम बान
निषिद्ध चाकरी,भीख निदान
लेकिन अब ज़माना बदल गया है.
हाँ खेती यानि उत्पादन पर ध्यान न देना
केवल नौकरी पर ही आधारित हो जाना
गंभीर समस्या को जन्म देने वाला हो सकता
है.
अनुभव शेयर करने के लिए आभार,पल्लवी जी.
Beautiful analysis.
ReplyDeleteloving the post.
ReplyDeleteपति पत्नी एक अहम रिश्ता है.यहाँ कोई नियम कायदे नहीं हैं..यह विश्वास और भावनाओं की नीव पर खड़ी ईमारत है...
ReplyDeleteजब भी किसी एक के मन में कोई भी अनायास ही प्रश्न उठे, चाहे वह दूसरे के काम को लेकर हो, या दूसरे के आराम को लेकर हो..तो उसका पूरा हक भी है कि वो प्रश्न पूछे...(बल्कि सामने वाले को बिना पूछे चेहरा देख के समझ जाना चाहिए कि साथी कुछ उलझन में है...ऐसी आत्मीयता तो कम ही मिलती है..) और प्रश्न उठा है मन में, तो उसका सही ओर संतुष्टी वाला जवाब देना सामने वाले कि जिम्मेदारी भी है, और उसमे ही खुशी भी होनी चाहिए..
जीवन भर साथ रहकर एक दूसरे की सभी इच्छाओं का सम्मान करते हुए...सभी दुविधाओं, उलझनों को सुलझाते हुए,,सौहार्द पूर्ण वातावरण घर में बनाए तो सही मायने में जीवन --साथी हैं...अन्यथा तो समाज द्वारा लादी हुई जिम्मेदारी भर है...
बहुत किस्से हैं इसी तरह के,जो मैं अक्सर देखती सुनती ओर महसूस करती हूँ...किन्तु पारिवारिक होने के कारन उन्हें लिख नहीं पाती...अभी परिवार में सबसे छोटी हूँ तो राय नहीं दे पाती...लेकिन सब अंदर इकठ्ठा कर रही हूँ..ताकि इनसे सीख लेकर भविष्य में कुछ अच्छा कर पाऊ..लेकिन आपने ऐसे विषय को लिखकर काबिले-तारीफ़ काम किया है..
बधाई हो आपको....
lekhikagunj.blogspot.com
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteएक लम्बे अंतराल के बाद कृपया इसे भी देखें-
जमाने के नख़रे उठाया करो
आपके निषकर्ष से सहमत हूँ. हालाँकि प्रश्न किसी भी निष्कर्ष पर हो सकते हैं.
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