Sunday 30 September 2012

दोहरी सोच


यूं तो विषय नारी विमर्श का नहीं है लेकिन जब बात हो दोहरी मानसिकता की और नारी का ज़िक्र न आए तो शायद यह विषय अधूरा रह जाएगा। नारी विमर्श एक ऐसा विषय जिस पर जितनी भी चर्चा की जाए या जितना भी विचार विमर्श किया जाए कम ही होगा। लेकिन यदि हम सब एक स्वस्थ समाज का निर्माण चाहते है तो उसके लिए लिंग भेद को मिटा कर स्त्री और पुरुष को समान अधिकार देते हुए समान भाव से देखा जाना। जब तक यह सोच हमारे अंदर विकसित नहीं हो जाती तब तक एक स्वस्थ एवं सभ्य समाज की कल्पना करना भी व्यर्थ है। बेशक आज कुछ क्षेत्रों में नारी की स्थिति में पहले की तुलना में बहुत परिवर्तन आया है और नारी ने यह साबित कर दिखाया है कि वो भी एक कामयाब और आत्मनिर्भर इंसान है जो अपने बलबूते पर सब कुछ कर सकती है जो शायद एक पुरुष भी नहीं कर सकता। लेकिन इसके बावजूद भी आज भी सामाजिक स्तर पर कुछ क्षेत्र या परिवार ऐसे हैं जहां सिर्फ कहने का परिवर्तन आया है वास्तव में नहीं, मुझे यह समझ नहीं आता कि लोग दिखावे के लिए कुछ चीजों क्यूँ मानते है। लड़की के अधिकारों के विषय में सोचते -सोचते हम लड़कों को भूल गए है। ऐसा क्यूँ ? जबकि लड़का और लड़की तो स्वयं एक दूसरे के पूरक है तो फिर लड़की के चक्कर में हम लड़कों के साथ दोगला व्यवहार क्यूँ करने लगते हैं ??

मैं जानती हूँ आपको पढ़कर शायद अजीब लग रहा होगा कि लड़कों के साथ दोगला व्यवहार, यह दोगला पन तो खुद इस पुरुष प्रधान देश के महापुरुषों का इजाद किया हुआ शब्द है फिर उन्हीं के प्रति यह शब्द कैसे इस्तेमाल हो सकता है या फिर शायद इसलिए भी क्यूंकि हमारे कानों को आदत पड़ चुकी है इस तरह की बातें या शब्द केवल लड़कियों के लिए पढ़ने और सुनने की, मगर सिक्के का एक दूसरा पहलू यह भी है कि अंजाने में ही सही, मगर कहीं न कहीं हम लड़कों के साथ नाइंसाफ़ी कर रहे हैं या फिर अंजाने में हम से उनके प्रति यह नाइंसाफ़ी हो रही है, जो सरासर गलत है। आजकल लड़की के माता-पिता बड़े गर्व के साथ यह कहते हुए नज़र आते हैं कि अरे मैं आपको क्या बताऊँ मेरी लड़की में तो लड़कियों वाले कोई गुण ही नहीं है। एकदम लड़का है मेरी लड़की, उसे तो कपड़े भी लड़कियों वाले ज़रा भी नहीं पसंद, ना कपड़े, ना खिलौने, यहाँ तक कि उसके आधे से ज्यादा दोस्त भी लड़के ही हैं। जाने क्यूँ लड़कियों से उसकी बहुत कम बनती हैं।

भई मुझे तो समझ नहीं आता कि इसमें शान दिखाने जैसी कौन सी बात है, बल्कि मेरे हिसाब से तो ऐसी लड़की के अभिभावकों को अपने बच्ची के ऐसे व्यवहार के प्रति थोड़ा अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। क्यूंकि जब हम किसी लड़के के मुंह से यह सब सुनते हैं कि उसको नेल पोलिश लगाने का शौक है या उसका मन फ्रॉक पहनने का करता है या गुड़ियों से खेलने का करता है तो हमारा दिमाग घूमने लगता है फिर भले ही वो कोई छोटा सा बच्चा ही क्यूँ न हो, हमें उसके मुंह से यह सब बातें अजीब लगने लगती है। फिर भले ही हमने उसे खुद छोटे में अपने मनोरंजन के लिए फ्रॉक क्यूँ न पहनाई हो :-) मगर जब हम उसके मुंह से ऐसी कोई ख्वाइश सुनते है तो हम उसे समझाने का प्रयास करने लगते है। यहाँ तक यदि वह लड़का ज्यादा रोता है या बात-बात पर रोता है तो हम उसे समझाने के लिए यह तक कह देते हैं "अरे रो मत बेटा लड़के रोते नहीं" आख़िर यह दोगला व्यवहार या दोहरी सोच क्यूँ बसी है हमारे दिमाग में ?

हमारे लिए तो लड़का और लड़की दोनों ही बराबर है खास कर छोटे बच्चे, फिर हम उनमें इस तरह का भेद भाव क्यूँ करते हैं ??? यहाँ मैं आप सभी को एक बात और बताना चाहूंगी, यह विचार पूरी तरह मेरे नहीं है क्यूंकि मैंने इस विषय को किसी और के ब्लॉग पर पढ़ा था जहां अपने ब्लॉग जगत के बहुत कम लोग पहुंचे थे अब तो मुझे उस ब्लॉग का नाम भी याद नहीं है। मगर उन्होने  इस बिन्दु पर बहुत जोरा डाला था और जहां तक मुझे याद है उन्होंने भी इस विषय में शायद टाइम्स मेगज़ीन में कहीं पढ़ा था फिर उन से भी इस विषय पर लिखे बिना रहा नहीं गया। मुझे भी बात अच्छी लगी और ऐसा लगा कि यह भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है और इस पर भी विचार विमर्श ज़रूर होना चाहिए। इसलिए मैंने भी इस विषय को चुना और आज आप सभी के समक्ष रखा अब आप बतायें क्या मैंने जो कहा वो गलत है ?

हालांकी उन्होंने तो इस विषय पर मानसिक विकृति तक की बात की मगर मैंने वो सब यहाँ बताना ज़रूरी नहीं समझा क्यूंकि यहाँ मुझे ऐसा लगा कि लड़कियों के ऐसे शौक को जब मानसिक विकृति की दृष्टि से नहीं देखा जाता तो लड़कों के ऐसे शौक को भी नहीं देखा जाना चाहिए। क्यूंकि मेरी सोच यह कहती है कि समान अधिकार की बात अलग है, उसका मतलब यह नहीं कि लड़के और लड़कियां अपना सामान्य व्यवहार ही छोड़ दें। समाज ने, बल्कि समाज ने ही क्यूँ प्रकृति ने खुद दोनों के व्यवहार में, कार्यक्षेत्र में, कुछ भिन्नता रखी है तो ज़रूर उसके पीछे भी कोई न कोई कारण रहा ही होगा। हाँ यह बात अलग है कि आज दुनिया में लोगों ने अपनी सहूलियत के मुताबिक प्रकृति के नियम ही बदल डाले। कुछ ने मजबूरी में, तो कुछ लोगों ने महज़ शौक के लिए और कुछ लोगों ने अपने अहम के कारण, उसी का परिणाम है यह समलेंगिक विवाह पहले तो यह केवल विदेशों तक ही सीमित थे। मगर अब तो अपने देश में भी यह सुनने में आने लगा है।

हालांकी दुनिया में सभी को अपने मन मुताबिक अपनी ज़िंदगी जीने का सम्पूर्ण अधिकार है। लेकिन फिर भी यह सब है तो प्रकृति के नियम के विरुद्ध ही। लेकिन हमें क्या फर्क पड़ता है क्यूंकि हमें तो आदत पड़ चुकी है नकल करने की, फिर चाहे वो भारतीय सिनेमा हो या परिवेश। अपने संस्कारों को तो हम इस आधुनिकता की अंधी दौड़ में लगभग भुला ही चुके हैं जिसका सबसे बड़ा प्रमाण है हमारा अपना मीडिया जो सरे आम खुलकर वो सब दिखा रहा है जो कभी पहले मर्यादा में हुआ करता था। क्यूंकि ऐसा तो है नहीं जो कुछ आज दिखाया जा रहा है वो पहले नहीं होता था। होता तो वह सब तब भी था मगर तब बड़ों के प्रति सम्मान हुआ करता था आँखों में शर्म हुआ करती थी। जो अब ज़रा भी नहीं बची है जिसका असर सब पर नज़र आता है। लोग इस आधुनिकता की अंधीदौड़ में इस कदर अंधे हो चुके हैं कि आधुनिक शब्द के मायने भूल गए हैं। शायद इसलिए आज हम जब लड़कियों को लड़कों की तरह व्यवहार करने पर अचरज से नहीं देखते। वह व्यवहार हमको आज के परिवेश के मुताबिक स्वाभाविक लगता है या लगने लगा है। इसलिए अब हम लड़कियों को उनके ऐसे व्यवहार के प्रति रोकते टोकते नहीं बल्कि बढ़ावा देते है। तो फिर हमें लड़कों को भी नहीं रोकना टोकना चाहिए है ना ??? मगर वास्तव में ऐसा होता नहीं है हम लड़की को भले ही जींस या पेंट पहनने से कभी न टोके मगर यदि कोई लड़का भूल से भी अगर मात्र नेल पोलिश भी लगा ले तो हम उसे ऐसे देखते हैं जैसे पता नहीं उसने ऐसा क्या कर दिया जो उसे नहीं करना चाहिए था।

खैर मैं तो बात कर रही थी दोहरी मानसिकता की, न कि आधुनिकता की, लेकिन देखा जाये तो कहीं ना कहीं आधुनिकता का असर मानसिकता पर ही तो पड़ रहा है "तो मानसिकता बदलने की जरूरत तो है", मगर आधुनिक शब्द के सही अर्थ को समझते हुए क्यूंकि आधुनिक होने का मतलब है सोच का खुलापन, ना कि खुद की पहचान बदलकर विदेशी परिवेश को अपना कर दिखावे की होड़ करना। आप सभी को क्या लगता है ????      

36 comments:

  1. लड़का और लड़की एक दूसरे के पूरक नहीं हैं , पूरक शब्द का प्रयोग केवल और केवल पति पत्नी के लिये होता हैं .
    बच्चे दोनों बराबर होते हैं होने भी चाहिये . एक की तुलना कभी दूसरे से नहीं होनी चाहिये , मेरी बेटी बेटे जैसी हैं ये कह कर लोग बेटी को दोयम का दर्जा देते हैं और बेटे को उस से एक सीढ़ी ऊपर रखते हैं
    बच्चो को लिंग ज्ञान उनके अभिभावक देते हैं , बच्चे नक़ल करते हैं और उनकी उम्र पर ये एक खिलवाड़ हैं
    बड़े होने पर संविधान उनको अपनी पसंद का पहनावा पहनने का हक़ देता हैं , पहनावा अगर सुरुचि पूर्ण हैं तो किसी की पसंद पर आपत्ति नहीं की जा सकती हैं
    जैसे लडकियां पेंट पहन सकते हैं लडके स्कर्ट पहन सकते हैं
    अभी हॉवर्ड में ड्रेस कोड महज इस लिये ख़तम किया गया हैं क्युकी अब वहाँ ट्रांस जेंडर भी पढते हैं , अब हावर्ड में लिंग आधारित पहनावा पहनना जरुरी नहीं हैं
    और आधुनिकता और आँख की शर्म इत्यादि हर नयी पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी समझाती ही आयी हैं
    हर नयी पीढ़ी एक दिन पुरानी होती हैं और उस दिन वो अपनी नयी पीढ़ी को वही सीखती हैं जो उनकी पुरानी पीढ़ी ने उनको सिखाया था
    लिव इन , गे , लिस्बन , इत्यादि सब पहले भी था और अब भी हैं , तब चोरी छुपे था , अब कानून सही हैं
    प्रकृति के नियम के विरुद्ध कुछ हो ही नहीं सकता हैं क्युकी प्रकृति स सक्षम हैं अपने को सही रखने के लिये


    @आधुनिक होने का मतलब है सोच का खुलापन, ना कि खुद की पहचान बदलकर विदेशी परिवेश को अपना कर दिखावे की होड़ करना। आप सभी को क्या लगता है ???? पल्लवी जी आप खुद विदेश में रहती हैं , फिर भी आप कई पोस्ट पर यही लिख चुकी हैं , कई बार मन किया पूछने का मन किया हैं की आप वापस आकर भारत में रहकर , हम सब के साथ क्यूँ नहीं अपने देश को और बेहतर बनती हैं , क्यों नहीं अपने विदेशी परिवेश को तज कर अपनी भारतीय होने को भारत में रह कर एन्जॉय करती हैं
    आप को हमेशा ऐसा क्यूँ लगता हैं की हम सब विदेशियों को कॉपी करके अपनी संस्कृति भूल रहे हैं और आप जो यहाँ रह भी नहीं रही वो हम सब से ज्यादा देशी हैं और हम सबको देशी बने रहने के लिये कह सकती हैं
    आप अगर वहाँ खुश हैं तो हम भी यहाँ खुश हैं और भारतीये होने में फक्र हैं हमे और उससे भी ज्यादा फक्र हैं की हम अपने ही देश में हैं

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  2. समाज और परिवार में सबका अपना एक स्थान, एक भूमिका है | पूरे सम्मान के साथ वो बना रहे |

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  3. आधुनिकता के सही मायने क्या हैं, हमें बहुत समय तक स्वयं ही ज्ञात नहीं होते हैं, और हम औरों के बारे में धारणायें बना लेते हैं।

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  4. यह विकृति सभी में घर कर चुकी है। लड़का समाज में ज्‍यादा सम्‍मानित है तो हम वैसा ही बनने की होड़ में आ जाते हैं। यह भी सच है कि इन बातों को बारबार इंगित करने से ये ज्‍यादा दृढ़ता से स्‍थापित हो जाती हैं।

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  5. पहले ये बताइये की आप को क्यों लगता है की प्रकृति ने स्त्री और पुरुष के कामो का विभाजन किया है प्रकृति ने बस शारीरिक रूप से एक को ज्यादा मजबूत बनाया है (दूसरे को कमजोर नहीं) और प्रकृति ने नहीं इंसानों ने ये विभाजन किया है और समय के साथ जब परिस्थितिया बदली और शारीरिक ताकत की आवश्यकता ख़त्म हो गई तो ये विभाजन भी ख़त्म हो रहा है | लड़का और लड़की का व्यवहार क्या होता है ये भी कुछ नहीं होता है दो बच्चे सामान्य तौर पर ही जन्म लेते है हम उनमे लड़का लड़की अमीर गरीब आदि आदि का भाव भरते है , लड़को को ना रोने को कह उन्हें कुछ हद तक असंवेदनशील बनाते चलते है और लड़कियों को जरुरत से ज्यादा संवेदनशील , ये व्यवहार का अंतर ख़त्म नहीं हो रहा है ये है आत्मविश्वास जो पहले पुरुषो में ज्यादा होता था उन्हें ज्यादा बढ़ावा दिया जाता था आज महिलाओ में भी वही आत्मविश्वास दिखाई देता है जिसे आप लड़को सा व्यवहार कह रही है , ना ही इसमे किसी बदलाव की जरुरत है और ना ही इसमे कुछ भी गलत है | समय के साथ जब लड़किया घर से बाहर निकलने लगी तो उनके पहनावे में भी वही आराम की चाह होने लगी और तकलीफ देने वाले कपड़ो को वैसे ही छोड़ दिया जैसे कभी पुरुषो ने कुर्ते पैजामे , धोती कुरता , आदि आदि को छोड़ दिया था | समझ नहीं आता की पैंट जींस शर्ट आदि तो कही से भी भारतीय पहनावा नहीं है ये पश्चिम से आया है तो उन्हें पहनने पर कभी किसी पुरुष के ऊपर ये आरोप क्यों नहीं लगाया जाता है की वो आधुनिक हो गए है भारतीय संस्कृति भूल गए है आदि आदि हमेसा महिलाओ के ऊपर ही क्यों आरोप लगाया जाता है यदि ये पश्चिमी परिधान है तो दोनों के लिए है यदि गलत है तो दोनों के लिए होना चाहिए | आज लडके भी लम्बे नाख़ून ,बाल रखते है , कानो में बलिया आदि पहनते है पार्लर जा कर वो सब कराते है जो महिलाए करती है उससे वो महिला नहीं बन जाते है , हुआ ये है की आज पुरुष भी अपनी सुन्दरता को लेकर सचेत है और वो भी अच्छा दिखाना चाहते है इसमे क्या गलत है | और बेटी को लडके जैसे काम करने पर लोग शान इसलिए बघारते है क्योकि दुनिया को ये लगता है की ये शान वाली बात है जिस दिन लोगों इसे शान वाली बात समझना बंद कर देंगे लोग ये कहना भी बंद कर देंगे |

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  6. आपके प्रश्नों को ही मैं आधुनिकता मानता हूँ. आपके द्वारा उठाई गई समस्या पर काफी विमर्ष हो रहा है आजकल. अतः इतना ही कहूँगा आपने दुनिया से लुप्तप्रायः हो रही पुरुष प्रजाति की सुरक्षा के बारे में सोचा है. अच्छा लगा :))

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  7. वैज्ञानिकों ने औरत और मर्द के शरीर और व्यवहार का गहरा अध्ययन करके बताया है कि
    इंसानी दिमाग स्त्री और पुरुषों को अलग-अलग तरीके से देखता है. स्त्रियों का दिमाग भी यह भेदभाव करता है.
    http://auratkihaqiqat.blogspot.com/2012/07/blog-post.html

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  8. रचना जी और अंशुमाला से पूरी तरह सहमत.
    सही बात है पाश्चात्य परिधान अगर आधुनिकता की निशानी हैं तो पुरुष और महिला सबके लिए हैं.फिर सिर्फ महिलाओं पर ही संस्कृति हनन का दोष क्यों.

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  9. आपकी कुछ बातों से सहमति है कि "बच्चे दोनों बराबर होते हैं होने भी चाहिये। एक की तुलना कभी दूसरे से नहीं होनी चाहिये" लेकिन आमतौर पर लोगों के घरों में ऐसा होता नहीं है। हकीकत आज भी यही है कि लोगों के दिलों से बेटे की चाहत कम नहीं हुई है चाहे वह लोग कितने ही आधुनिक हो गए हों, जिसका नतीजा यह है कि जिन घरों में बेटी पैदा होती है वह लोग भी अपनी बेटी को बेटा बना देना चाहते हैं इसलिए उसके विपरीत व्यवहार को भी प्रोत्साहित करते हैं कि वह लड़कियों की तरह नहीं लड़कों की तरह बने या व्यवहार करे। जहां तक ड्रेस कोड़ की बात है वह सिर्फ इस बात को समझाने के लिए एक उदाहरण था।

    क्यूंकी मैं विदेश में हूँ इसलिए विदेश के लोगों की मानसिकता और अपने देश के लोगों की मानसिकता में अंतर देख पा रही हूँ, जो शायद मैं वहाँ रह कर कभी नहीं देख पाती। जहाँ तक विदेशों की नकल का सवाल है वह तो आपको हरेक महानगरों में लोगों के व्यवहार, आदतों और पहनावे में रोज ही दिख जाएगा। फिर चाहे वह हिन्दी सिनेमा हो जिससे आम लोग बहुत ही प्रभावित होते हैं, जिसमें हमेशा लंदन/पेरिस का फैशन दिखाया जाता है। जिसका परिणाम है कि लड़के/लड़कियों का नाइट बार में जाना, नशा करना, धूँआं उड़ाते दिखाना, जिसमें लड़कियाँ भी लड़कों से दो कदम आगे दिखेंगी जिसका नतीजा है कि लड़कियों के कपड़े दिन-ब-दिन छोटे ही होते जा रहे हैं। यह सब नकल नहीं है तो और क्या है। आज अँग्रेजी बोलना शान मानी जाती है और हिन्दी बोलने वाला(या जिसे अँग्रेजी न बोलनी आती हो), बेकवर्ड माना जाता है। आज आधुनिकता का मतलब है विदेशों की नकल करना ना कि विचारों का खुलापन।

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  10. "समय के साथ जब लड़किया घर से बाहर निकलने लगी तो उनके पहनावे में भी वही आराम की चाह होने लगी और तकलीफ देने वाले कपड़ो को वैसे ही छोड़ दिया जैसे कभी पुरुषो ने कुर्ते पैजामे , धोती कुरता , आदि आदि को छोड़ दिया था" - सच कहा आपने, मैंने यहाँ केवल महिलाओं की बात इसलिए कही क्यूंकि इस बदलाव में महिलाएं पुरुषों से दो कदम आगे ही निकल गयी। बेशक बदलाव दोनों में आया है इसमें कोई दो राय नहीं, विदेशी संस्कृति को दोनों ने अपनाया लेकिन पुरुष तो जींस या पैंट पर आकर रुक गए, मगर महिलाओं के कपड़े दिन-ब-दिन छोटे होते चले गए और यह सिलसिला आज भी जारी है। दुनिया जानती है कि फेशन का कारोबार केवल महिलाओं की बदौलत ही चलता है, बेचारे लड़कों के पास तो वैसे भी कोई ज़्यादा चॉइस होती ही नहीं, इसलिए मैंने ऐसा कहा था कि अपने संस्कारों को तो हम इस आधुनिकता की अंधी दौड़ में लगभग भुला ही चुके हैं। रही बात विदेशों की नकल कि तो वह तो सदियों से होता चला आ रहा है जिसका असर आप महानगरों में रहने वाले युवक/युवतियों पर आसानी से देख सकती है जैसे लड़के/लड़कियों का नाइट बार में जाना, नशा करना, धूँआं उड़ाते दिखाना, जिसमें लड़कियाँ खुद को लड़कों से कम ना दिखाने के चक्कर में लड़कों से दो कदम आगे ही दिखाई देती है। आज अँग्रेजी बोलना शान मानी जाती है और हिन्दी बोलने वाला(या जिसे अँग्रेजी न बोलनी आती हो), बेकवर्ड माना जाता है। आज आधुनिकता का मतलब है विदेशों की नकल करना ना कि विचारों का खुलापन।

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  11. मैंने तो पहले ही कहा है की विदेशी परिवेश को अपनाना आधुनिकता की निशानी नहीं है मगर लोगों को यही लगता है कि विदेशी परिधान पहना ही आधुनिकता की निशानी है जिसके चलते स्त्री और पुरुष दोनों ने ही इसे अपनाया मगर इस सब में पुरुष तो केवल जींस या पेंट तक आकर ही रुक गए मगर महिलाओं के कपड़े दिन-ब-दिन छोटे होते चले गए और यह सिलसिला अब भी जारी है इसलिए यदि इस बात को मद्दे नजर रखते हुए यह कहा भी जाये की पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने ही संस्कृति का हनन ज्यादा किया है तो इसमें मेरे हिसाब से कोई गलत बात नहीं होगी।

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  12. विचारणीय पोस्ट और उतने ही विचारणीय कम्मेंट , विचारो का खुलापन समाज के लिए हमेशा उचित होता है.

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  13. @लड़का बना देना चाहते हैं
    ये ही आप की सबसे बड़ी भ्रान्ति हैं की ये करना लडको का काम हैं और अगर वो लड़की कर रही हैं तो वो लड़का बन गयी
    काम का बंटवारा लिंग आधारित , ये सोच पुरातन पंथी हैं क्युकी बात क्षमता की होने लगी हैं
    ये सब कह कर की लोग लड़कियों को लड़का बना रहे हैं आप बार बार गलत बात को लिख रही हैं
    आप की अपनी नज़र में पुरुष सिंघासन पर आसीन हैं और अगर क़ोई स्त्री अपनी क्षमता से वहाँ पहुची हैं तो वो पुरुष बन गयी
    ये तो स्त्री के अस्तित्व और उसकी काबलियत को ख़तम करना हुआ और ये लिख लिख कर आप के आलेख केवल और केवल उसी सोच को बढ़ावा दे रहे हैं जो गलत हैं
    आप की हर दूसरी पोस्ट में पुरुष को ऊँचा और महान सिद्ध करने की पुरजोर कोशिश होती हैं और आप के आलेख बराबरी की बात को नकारते हैं
    हमारे देश के संविधान में हर किसी को बराबर माना गया

    @क्यूंकी मैं विदेश में हूँ इसलिए विदेश के लोगों की मानसिकता और अपने देश के लोगों की मानसिकता में अंतर देख पा रही हूँ, जो शायद मैं वहाँ रह कर कभी नहीं देख पाती।
    बस यही भ्रान्ति होती हैं विदेश में बसे भारतीये लोगो की . उन्हे लगता हैं जो यहाँ हैं वो सब कुछ ना तो देख पाते हैं ना समझ पाते हैं और बस विदेशो की नक़ल करते हैं
    आप बेशक विदेश में बस गयी हो और आप को अपना देश दकियानुस लगता हो पर यहाँ आप को बहुत सी ब्लॉग लिखती महिला मिलजाएगी जो साल में ३-४ बार विदेश आती जाती हैं . क्या वो विदेशियों की नक़ल कर के ऐसा करती हैं
    आज इन्टरनेट के युग में लोगो को बिना विदेश जाए ही सब कुछ यहाँ मिल जाता हैं
    जितने इन्टरनेट के यूजर भारत में हैं शायद ही कहीं हो , जितने मोबाइल यूजर यहाँ हैं शायद ही कहीं हो

    और जो विदेश में रह कर भारत में रहने वालों को "आधुनिक " ना हो जाए कहते हैं मुझे लगता हैं वो सब डरते हैं की कहीं हर वो सुख सुविधा जो वो विदेश में रह कर पाते हैं लोग यहाँ ही ना रह कर पाने लगे और कहीं उनकी बराबरी कर के ना हो जाये

    आधुनिकता तरक्की की परिचायक भी हैं . अब आप की तरक्की तरक्की क्युकी आप विदेश में है और हमारी तरक्की आप की नक़ल क्युकी हम भारत में हैं , not acceptable

    @आज अँग्रेजी बोलना शान मानी जाती है और हिन्दी बोलने वाला(या जिसे अँग्रेजी न बोलनी आती हो), बेकवर्ड माना जाता है।

    in uk now to get visa a minimum qualification in english is required , they say indians settled there are spoiling their culture by speaking wrong english . the pronunciation of indian in uk is below the specified standards . since you are there u must be also facing this problem . most indians settled abroad are called "backwards" even if they know english .
    we in india learn english to become better in our day to day life and WE ALL ARE PROGRESSING AND WILL PROGRESS EVEN WHEN WE STAY IN INDIA

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  14. oh my god , why is all the discussion always centered on clothes

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  15. वक़्त के साथ ज़रूरत के मुताबिक जो बदलाव हो रहे हैं वे इंसानी बेहतरी के ही लिये हैं । कुदरती तौर पर देखें तो दुनिया मे सिर्फ दो ही जातियाँ है मर्द और औरत । बाकी सारे बटवारे कुदरत के खिलाफ़ है । अगर ख्याल करें तो दोनो न सिर्फ एक दूसरे की ज़रूरतों को पूरा करने के खातिर बने हैं बल्कि एक दूसरे के बिना निहायत अधूरे ही हैं । अब जिस खुलेपन की बात की जा रही है या कि ऐतराज़ किया जा रहा है उससे दुनिया को कोई हर्ज़ नही होने वाला । खुलापन खुलकर सामने आये ये ज़रूरी है वरना पर्दे की आड ने बडे बडे गुल खिलाएँ है । अब, लडकियों की अक्ल के चर्चे आम है वर्ना पर्दे ने तो उन्हे सरासर भोन्दू साबित करने मे कोई कसर नही रखी थी ।

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  16. कथनी,करनी के फर्क के ही परिणाम दृष्टिगत हो रहे हैं. बराबरी की चर्चा करते करते हम वास्तविक छवि से दूर हो गए. प्रश्न,समस्या से परे - तार्किक जिद्द ने दूसरी समस्या उत्पन्न कर दी है समाज में ... आधुनिकता - परिपक्व,दिशा निर्धारित सोच से संबंध रखती है, जो मार्ग अवरुद्ध कर दे उसे कपड़े और चाल से आधुनिकता नहीं कह सकते .

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  17. अंधी दौड़ है आधुनिकता के पीछे..... इस भाग दौड़ में मर्यादा का ख्याल किसे ? ये खुलापन नहीं कुछ लोंगों की विकृत मानसिकता है.

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  18. आधुनिक होने का मतलब है सोच का खुलापन, ना कि खुद की पहचान बदलकर विदेशी परिवेश को अपना कर दिखावे की होड़ करना।

    बिलकुल सही लिखा है आपने ....सोच का खुलापन हो तो बहुत सी समस्याएँ अपने आप ही सुलझ जातीं हैं ...

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  19. क्या इसे ही हम आधुनिक दुनिया कहते हैं। धन्यवाद।

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  20. Great discussion going on. I agree with the post and the comments both.

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  21. भेदभाव और एक दूसरे से तुलना जैसी बात होनी ही नहीं चाहिए लेकिन क्‍या करें यह लोगों की मानसिकता में बस चुकी है..... बेटी को लोग बेटा कहकर बुलाते हैं, कई बार कहते हैं मेरी बेटी बेटे से कम नहीं, यानि कि बेटी की तुलना बेटे से करते हैं, जाने, अनजाने में..... हालांकि मुझे नहीं लगता कि इसके पीछे अधिकतर लोगों का किसी प्रकार के भेद करने का भाव नहीं होता स्‍नेह का भाव होता है लेकिन होता है अक्‍सर यह।
    यही स्थिति बेटे की कई बार बेटी से तुलना करने पर होती है......
    अंदर तक घर कर गई है यह मानसिकता......
    खैर...., एक गंभीर और विचारणीय विषय पर आपने विमर्श का अवसर दिया, लोगों के विचार पढने मिले, आभार.......

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  22. जब भी कोई महिला/नारी/युवती उन विषयों पर लिखती हैं जो कहीं न कहीं खुद आधी दुनिया को छूती हैं तो न सिर्फ़ शब्द विमर्श बल्कि उन पर आई प्रतिक्रियाएं और निष्कर्श बेहद प्रभावित करने वाले होते हैं । इस पोस्ट और उसके बाद आई तमाम प्रतिक्रियाओं को पढकर बहुत कुछ सीखने समझने को मिला । अच्छी बात ये लगी कि सबने अपने अपने मन की बात अपने अपने तरीके और तर्कों से सामने रखी ।

    मैं खुद बचपन में ऐसे कई लोगों व्यक्तियों और परिवारों को देख चुका हूं जहां ठीक वैसा ही होता और किया जाता था जैसा आपने ऊपर लिखा है पोस्ट में । रही बात आधुनिकता , परिधान , पहनावे , सोच , मानसिकता की और उससे वैश्विक समाज के ढांचागत आधार या परिवर्तन की तो हर बिंदु पर बहुत बारीकी से विश्लेषण करने की जरूरत है वो भी वैश्विक परिवेश के साथ ही भारतीय परिप्रेक्ष्य में भी । नि:संदेह बहुत कुछ बदल रहा है और बहुत कुछ बदल के भी बहुत कुछ नहीं बदल पाने जैसा ही लगता है जब बहुत सारी घटनाएं , बहुत सारी बातें , सोच और नज़रिए सामने आते हैं । ये युगों में जाकर स्थापित हुए हैं और अभी इन्हें बदलने में युगों लगेंगे , सबको अपने अपने हिस्से की भागीदारी करनी होगी अय्र करनी चाहिए । विमर्श को उत्प्रेरित करती पोस्ट । शुक्रिया

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  23. सार्थक रचना !विचारणीय विषय-वस्तु !!
    कोई वस्तु अपने आप में लाभदायक या हानि कारक नहीं होता ! उसकी उपयोगिता पर निर्भर करती है कि वह लाभदायक या हानि कारक है ! जैसे ,लड़कियों के लिए जींस पहनना गलत नहीं है .... लेकिन जींस नाभि-दर्शना और उसपर पहने गए बेढंगे टॉप .... किसी के आँखों को खटक सकते हैं ,जो गलत बना देते हैं !!
    यदि हम सब एक स्वस्थ समाज का निर्माण चाहते है तो उसके लिए लिंग भेद को मिटा कर स्त्री और पुरुष को समान अधिकार देते हुए समान भाव से देखा जाना चाहिए । जब तक यह सोच हमारे अंदर विकसित नहीं हो जाती तब तक एक स्वस्थ एवं सभ्य समाज की कल्पना करना भी व्यर्थ है।
    *बेशक* !! फिर भी कुछ गुण जो प्रकृति ने केवल नारियों को प्रदान किया है ,उसे उसी रूप में बरकरार रखते हुए !!

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  24. बात तो सच है | शनै शनै यह अंतर और उपेक्षा समाप्त हो जानी चाहिए | बस प्रारम्भ हमको और आपको ही करना है |

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  25. लड़के और लड़की को अलग अलग रूप में न देखकर बस एक संतान की तरह देखना चाहिए.

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  26. विचरनीय विषय पर आपने एक संतुलित आलेख लिखा है। इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं।
    हमारे तो दो लड़के हैं। लड़की की कमी खलती है।
    घर में हमारी दो बहने रही हैं, जिन्हें हमसे ज़्यादा तरजीह दी जाती रही। इसका मुझे गर्व है।

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  27. ये दोहरी मानसिकता को हम ही बढ़ावा देते हैं , इस तरह की बात करने वालों के साथ लिहाज नहीं बल्कि वास्तविकता से परिचित करने वाले संवाद होने चाहिए. ये लड़का और लड़की के बीच की जो लक्षम रेखा मिट कभी नहीं सकती है.. किस किस की सोच को हम बदल सकेंगे. हाँ हमें अपनी सोच बदलने का अधिकार होता है. यही सोच अगर हम अपने में लाने की कोशिश करे तो ये कई हम एकत्र होकर कुछ सकारात्मक बदलाव लगा सकते हैं. मेरी बेटी ही बेटा है इसके पीछे क्या छिपा होता है? ये हमने देखने की कोशिश की. ये उत्तर होता है उन लोगों के कटाक्षों का जो जाने अनजाने इस बात का अहसास करते रहते हैं कि आपके बेटा नहीं है. कोई ये नहीं कहता कि आपको बेटी नहीं है और हम कहें कि मेरा बेटा ही हमारी बेटी है.
    सामाजिक सम्बन्ध और संस्कार दोनों के लिए ही जरूरी होते हैं और वही संस्कार सभी के लिए जरूरी होते हैं ऐसा नहीं है कि लड़की को हम बड़ों की इज्जत करने की सीख देनौर लड़के को इससे इतर. जो सत्य है, जो उचित है और जो तर्कसंगत है वो सभी के लिए बराबर है, इसलिए दोनों के बीच भेद करना उचित नहीं है.

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  28. काफी विचारणीय पोस्ट, दोहरी मानसिकता इंसानी फितरत में गहरे तक रची बसी है , मगर वक़्त के साथ
    बदलाव आएगा.

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  29. आपने सारे चिट्ठे बखूबी खोल दिए हैं..
    मेरे हिसाब से बेटी बेटी ही रहे और बेटा बेटा रहे...प्रकृति ने जो गुण इन दोनों को दिए हैं..उनसे बिना छेद-छाड किये अपनाकर ,अपने अस्तित्व को समझना जरुरी है....
    मैं बेटी के बेटा बनने ओर बेटे के बेटी बनने दोनों के ही पक्ष में नहीं हूँ..
    रही बात पहनने-ओढने की तो जो शोभा दे वो पहनना चहिये..चाहें वो लड़का हो या लड़की,,,,

    आभार....
    http://gunjkavi.blogspot.com/

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  30. शुक्रिया गुंज तुम्हारा कमेंट पढ़कर लगा की किसी ने मेरी पूरी पोस्ट पढ़कर उस पर टिप्पणी की है, वरना अभी तक तो देखने पर ऐसा लग रहा था कि अधिकतर लोगों ने केवल रचना जी की टिप्पणी के आधार पर अपनी टिप्पणियाँ दी हैं।

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  31. हर पहलू पर पूर्णत: कलम ने साथ दिया है ... सार्थकता लिए सशक्‍त लेखन ... आभार

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  32. आधुनिकता का मतलब केवल कोई न कोई नयापन जो निरर्थक
    गैरजिम्मेदार, अस्वाभाविक या अश्लील हो,नही होना चाहिये.बल्कि ऐसा नयापन
    जो सार्थक,सुरुचिपूर्ण,स्वाभाविक और सुन्दर हो,होना चाहिये.

    आपके लेख में अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है.
    सार्थक व सशक्त लेखन के लिए आभार,पल्लवी जी.

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  33. ओहो.....यहाँ तो बड़ा ज़बरदस्त टॉपिक छिड़ा हुआ है देर से आने की माफ़ी.....आपका लेख पढ़ा लोगों की टिप्पणी पढ़ी.....@ रचना जी की कुछ बाते ठीक लगीं......पर जहाँ तक मुझे लगा की जो आप काना चाह रही हैं वो लोगों तक पहुँच नहीं पाया गलत दिशा में मुड़ गया......आधुनिकता की अंधी दौड़ में लोग अपनी संस्कृति को ताक पर रख रहे हैं फिर वो किसी भी देश या समाज के हों.....सिर्फ आधुनिक कपड़े पहनने से या किसी विदेशी भाषा को धाराप्रवाह बोलने मात्र से और दिखावा करने से कोई समाज आधुनिक नहीं हो सकता.....जिस देश में उसकी अपनी मातृभाषा बोलने वालों को ही हेय दृष्टि से देखा जाता है जहाँ के लोग अपनी ही भाषा का मज़ाक बनाते हैं वो देश कभी प्रगति नहीं कर सकता.....ये मानसिक गुलामी का प्रतीक है हम आज भी उस मानसिकता से नहीं उभर पायें हैं......चीन देश इसका बहुत सुन्दर उदहारण है वो आज भी अपनी संस्कृति और भाषा का बहुत सम्मान करते हैं और वक़्त जनता है वो कितनी तेज़ी से इसके साथ ही प्रगति कर रहे हैं.....हमे सोचना होगा इस बारे में ।

    अब आपकी बात पर आता हूँ जो आपने कहा वो यही है लड़कियां भी इसी अंधी दौड़ में शामिल और काफी हद तक उनके माता पिता भी ......

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  34. समय के साथ-साथ बहुत कुछ बदलता है, परिधान भी ...विचार भी ....जीने के तरीके भी और जीने के उद्देश्य भी। समाज का एक बड़ा वर्ग नकलची होता है। नकल में विचारों के परिष्कार की कोई संभावना नहीं होती। नकल एक सामान्यीकरण का संकेत करती है। जिन्हें विशिष्टता की चाहत होती है वे कुछ नया करते हैं ...किसी परिपक्व सोच के साथ। किसी समय कपड़ों की कमी के कारण लोग कम कपड़े पहनते थे आज पर्याप्त होने पर भी उन्हें इसकी आवश्यकता महसूस नहीं होती।
    परिवार में लिंग भेद विश्वव्यापी समस्या रही है। प्रकृति में दोनों का अपना-अपना महत्व है ...दोनों के बीच कोई तुलना उचित नहीं। मेरा एक ही लड़का है,इसलिये हर लड़की बेटी जैसी लगती है....फिर वह चाहे साथ की सहकर्मी डॉ.एकता हों या डॉ.पल्लवी
    या हमारी फ़ॉर्मासिस्ट संयुक्ता।

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  35. जीवन मेँ आगे बढना है तो पहले उस प्रमात्मा पहचानो जिसने तुम्हे मनुष्या रुप मे जन्म दिया।

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