Tuesday 5 March 2013

थ्रेडिंग....


यूं तो अमूमन ऐसा माना जाता है कि अच्छा लगना या अच्छा दिखना ज़्यादातर महिलाओं के शौक होते हैं लेकिन अब ऐसा नहीं, अब तो पुरुषों के लिए भी ब्यूटी पार्लर खुल गए हैं। आज की तारिख में सभी अच्छे दिखना चाहते है चाहे बच्चे हों या बड़े या फिर स्त्री हो या पुरुष और ऐसा हो भी क्यूँ ना, आखिर अच्छे दिखने में बुराई ही क्या है। :) मेरा एक दोस्त है आनंद, उसने एक बार कहा था कि हर लड़की और लगभग हर स्त्री पार्लर में जाकर और कुछ कराये या न कराये (थ्रेडिंग) अर्थात भवों को आकार देना तो सभी करवाते हैं मैंने कहा, हाँ क्यूँ नहीं, उसमें क्या बुराई है। मैं खुद और कुछ करूँ या न करूँ पर मेरी कोशिश रहती है कि कम से कम मेरी थ्रेडिंग ठीक ठाक हो।

वैसे यदि सुंदरता की बात की जाये तो इंसान का मन ज्यादा खूबसूरत होना चाहिए तन नहीं, लेकिन यहाँ बात अंदरूनी सुंदरता अर्थात मन की नहीं हो रही है बल्कि बाहरी सुंदरता अर्थात चेहरे की हो रही है। आमतौर पर लोगों का ऐसा मानना है कि त्वचा का अच्छा होना ज्यादा मायने रखता है। क्यूंकि उसके बाद आपको किसी भी तरह के सौंदर्य प्रसाधन की कोई अवश्यकता ही नहीं होगी। आप स्वाभाविक तौर पर खूबसूरत नज़र आएंगे, बात बिलकुल सही है ऐसा हो जाये तो फिर क्या कहने। लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि त्वचा की कमी को तो फिर भी कुछ देर के लिए ही सही सौंदर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल करके छुपाया जा सकता है मगर (भवों) का क्या करेंगे आप, वो तो जैसी हैं वैसे ही नज़र आएँगी ना, हालांकी अब तो उसके लिए भी बहुत सारे जोड़ तोड़ उपलब्ध है बाज़ार में, लेकिन यदि स्वाभाविक दिखने की बात है तो फिर तो थ्रेडिंग की ही सबसे ज्यादा आवश्यकता महसूस होती है। 

खैर इस मामले में होने वाले अनुभव मुझे नजाने क्यूँ हर बार चौंका जाते हैं। शादी के बाद जब अपने ही घर के पार्लर में मैंने पहली बार एक काम वाली बाई और एक किन्नर को थ्रेडिंग करवाते देखा तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। जबकि उसमें कोई आश्चर्य वाली बात है नहीं, आखिर वह भी इंसान है और हर इंसान की तरह वह भी खूबसूरत लगना और दिखना चाहते हैं। मगर तब मुझे यह बहुत अजीब लगा था, शायद पहली बार ऐसा कुछ देखा था इसलिए, क्यूंकी ज़िंदगी में कभी न कभी हर बात पहली बार होती है लेकिन यह सब में किसी सौंदर्य पत्रिका को पढ़कर नहीं कह रही हूँ बल्कि इसलिए बता रही हूँ क्यूंकि मेरे तो घर का पार्लर है फिर भी मुझे कोई खास शौक नहीं है कुछ करने का या ज्यादा सजने सँवरने का, मैं तो उनमें से हूँ जो कॉलेज के दिनों में भी केवल वार त्यौहार ही पार्लर की शक्ल देखा करते थे, अन्यथा नहीं, उसमें भी केवल थ्रेडिंग और कुछ करवाया ही नहीं था कभी, शादी के समय जाना कि कितनी चीज़ें होती हैं करवाने के लिए :-)

खैर यह सारी कहानी इसलिए कही क्यूंकि थ्रेडिंग के लिए लाइन लगते मैंने यहाँ पहली बार देखा इसके पहले कभी महज़ थ्रेडिंग के लिए इतनी मारा मारी मुझसे देखने को नहीं मिली क्यूंकि यहाँ पहले ही सौंदर्य से जुड़ी चीज़ें बहुत मंहगी है इसलिए हर कोई सब कुछ घर में ही करना पसंद करता है। आप को जानकार आश्चर्य होगा जहां अपने यहाँ मात्र 10-20 रूपये में बढ़िया थ्रेडिंग हो जाती हैं। वही थ्रेडिंग यहाँ यदि आप मॉल में जाकर  करवाओ तो 7 -8 पाउंड में होती है और खुले में मतलब बिना किसी दुकान के ऐसे ही कुर्सी रखकर थ्रेडिंग करने वाले मात्र 3-4 पाउंड में ही थ्रेडिंग करते नज़र आते है जिसके चलते लोग लाइन लगा कर घंटों इंतज़ार करने को भी तैयार रहते हैं।

मुझे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ, मैं तो घर में ही कर लेती हूँ यहाँ तक के घर में इस समस्या से निदान पाने के लिए बहुत सारे अच्छे-अच्छे और सस्ते टिप्स भी हैं जिनकी सहायता से अब कम दर्द के भी आसानी से थ्रेडिंग की जा सकती हैं फिर भी आजकल घर में रहकर इन सब चीजों को करने का टाइम किसके पास है। सब busy without work की तर्ज़ पर बस चले जा रहे है आँख बंद करके, कुछ तो वास्तव में व्यस्त है मगर अधिकांश केवल विंडो शॉपिंग करने में ही समय बिताते नज़र आते है इधर पति देव और बच्चा गया स्कूल उधर मैडम चली विंडो शॉपिंग करने क्यूंकि हर रोज़ तो कोई कुछ खरीदता नहीं और खाना बनाने की अब कोई टेंशन नहीं क्यूंकि यहाँ तो फास्ट फूड का ज़माना है रोटी से लेकर दाल सब्जी सब बनी बनाई उपलब्ध है बाज़ार में, बस लाओ सब्जी डालो ओवन में और रोटी डालो मिक्रोवेव में खाना तैयार है। 

अब गया वो ज़माना जब आटा है लगाना 
और दाल है पकाना 
अब न सब्जी को है धोना न काटना न पकाना 
बस पैकेड फूड लाओ ज़रा गरम कर 2 मिनट पकाओ 
खाने का लुत्फ़ उठाओ   

वही समय यदि कोई एक बार भी अपनी रसोई में जाकर देखे तो सेहत और सुंदरता दोनों का खज़ाना केवल आपकी रसोई में ही छुपा है जरूरत है तो केवल आपके अपने थोड़े से वक्त की वो भी केवल आप ही के लिए :) 

26 comments:

  1. सुन्दर दिखने की चाह हर घर में घर करती जा रही है।

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  2. शादी में पहली बार जाना की महिलाओं के लिए ब्यूटी पार्लर जरुरी है , उसके बाद अबतक की जिंदगी में भी गिनती के दिन ही देखे हैं ब्यूटी पार्लर . लेकिन आजकल स्त्रियों के दमकते चेहरे इनका असर बताते हैं , ये और है कि वही चेहरा दो तीन बाद देखो तो असलियत नजर आ जाती है :)

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  3. लुफ्ट = लुत्फ़ .......ठीक कर लें :-)

    कॉलेज के दिनों में भी केवल वार त्यौहार ही पार्लर की शक्ल देखा करते थे, अन्यथा नहीं, उसमें भी केवल थ्रेडिंग और कुछ करवाया ही नहीं था कभी..........................ज़रूरत भी क्या थी आप तो यूँ भी करिश्मा.............. :-) :-)

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  4. कहाँ गए वो दिन -वो चूल्हे की रोटी,और दाल बटलोई की,
    जामे आम की खटाई पड़ी और शुद्ध चमचा भर घी!

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  5. अपने वजट के अनुसार सभी अपने को सुंदर दिखाने की कोशिश करते है,चाहे वो मर्द हो औरत,,,,,

    Recent post: रंग,

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  6. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (06-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  7. सब कुछ फ़टाफ़ट होने लगा है .... खाना भी रेडीमेड ... पार्लर का शौक कम से कम नहीं लगा है :):)

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  8. अच्छा दिखना और बदल देना चेहरे को - दो अलग आयाम हैं
    और आजकल तो असली चेहरा असलियत में बदल जाता है ...

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  9. इन्नल्लाहा जमीलुन युहिब्बुल जमाल

    इस हदीस का भावार्थ यह है कि परमेश्वर सुंदर है और सौंदर्य से प्रेम करता है।
    परमेश्वर ने मनुष्य को भी सुंदर बनाया है और उसे भी सुंदरता का प्रेमी बनाया है।
    अपनी देखभाल अच्छी चीज़ है। अगर औरतें एसिड फ़ार्मिंग फ़ूड कम खाएं और अपनी बॉडी की अल्कलाइन नेचर को मेनटेन रखें तो वे हमेशा जवान और ख़ूबसूरत रहेंगी और मर्द करें तो मर्द भी।
    इसके लिए ज्ञान और संयम चाहिए। ये गुण हों तो आत्मा भी संतुष्ट रहती है। तन और मन की ताज़गी का यह परम गुप्त सूत्र है।

    आपके परिवेश की जानकारी मिली,
    शुक्रिया !

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  10. शुक्रिया इमरान ... :-)

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  11. बाहर से अच्छा दिखना सबसे ज्यादा ज़रूरी हो गया है..... वैसे सही भी है, रसोई में स्वास्थ्य और सुन्दरता दोनों मिलती हैं ....

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  12. पार्लर का भूत तो आज सबके सर चढ़कर नाचता है, क्‍या करें?

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  13. sundar dikhne ki lalak be-intinhan badhti hi ja rahi hai,sundar chehara sb ko bhata hai

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  14. देखे जाइये दुनिया के रंग!

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  15. हर कोई सुंदर दिखाना चाहता है किन्तु कभी कभी सोचती हूँ कि पुरानी पिक्चरो में हीरोइन बिना थ्रेडिंग के भी कितनी सुंदर दिखती थी,वक्त के साथ सोच और देखने का अंदाज़ भी बदल जाता है

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  16. बिलकुल सही लिख है,अब कोई भी पार्लर में जाएँ खाली नही मिलेंगें.

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  17. सुन्दर दिखने की लालसा हर नारी में होती है,और इसलिए आज प्रसाधन साधनों का बाज़ार इतना बढ़ गया है कि सब की जेबें हलकी होती जा रहीं हैं.इनके साथ इन साधनों के साइड इफेक्ट्स भी दिखे जा रहें हैं.पर सुन्दर दिखने की लालसा हर किसी में सदियों से रही है और रहेगी.इसलिए केवल थ्रेडिंग ही नहीं फेसिअल,,स्क्रबिंग,ब्लीचिंग,और भी न जाने क्या क्या पद्तियाँ चल पड़ी हैं,ईद दौड़ में सब शामिल हैं ,चाहे अमीर हों या गरीब मॉडल हो या कम वाली बाई .आखिर इच्छाएं सब में हैं.इस पर अब किसी को कोई अचरज नहीं होना चाहिए.

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  18. सौन्‍दर्य तो प्राकृतिक की सुहाता है.........पार्लरवाला नहीं।

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  19. सौन्‍दर्य तो प्राकृतिक ही सुहाता है, पार्लरवाला नहीं।

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  20. एक दम सटीक आकलन
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    तुम मुझ पर ऐतबार करो ।

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  21. सहमत हूँ आपकी इस बात से .....सुंदर दिखना हर किसी की पहली पसंद बन चुकी है

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  22. सुन्दर होना प्रकृति की देन है और अपने ग्राहक को सुन्दर दिखाना पार्लर का कमाल. रसोई में स्वस्थ रहने और सौंदर्य को बनाए रखने का राज छुपा है. खाना बनाने की फुर्सत न भी मिले तो कम से कम सुन्दरता बरकरार रखने के लिए फुर्सत निकालना ही चाहिए. बढ़िया लेख.

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  23. :-))).... सही कह रही हैं आप....
    ~सादर!!!

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  24. मुझे अभिज्ञान शाकुन्तलम की पंक्तियाँ याद आती हैं। दुष्यंत ने जब शकुंतला को वनप्रांतर में देखा तो कहा कि वल्कल वस्त्रों में भी ये वनबाला कितनी खूबसूरत लग रही है। सचमुच प्राकृतिक सुंदरता को बनाव-श्रृगांर की क्या जरूरत है। आपने सच कहा कि मन की खूबसूरती सबसे बड़ी है। भौंहों की खूबसूरती आपको रीतिकाल की नायिका तो बनाएगी लेकिन मन की खूबसूरती भक्ति काल का सौंदर्य प्रदान करेगी।

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  25. बहुत जरूरी है अपने लिए समय निकालना ओर फिर चाहे जैसा उपयोग करो उसका ....

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