Saturday 13 July 2013

विम्बलडन 2013 - क्या आपको जानकारी है !!!


यूं तो मुझे खेलों में कोई खास दिलचसपी नहीं है मगर ऐसा भी नहीं है कि आँखों के सामने कोई खेल चल रहा हो और मुझे बोरियत महसूस होने लगे। सबसे पहले आपको बता दूँ कि विम्बलडन(Wimbledon) लंदन में एक कस्बे का नाम है। वैसे मैंने इससे पहले कभी किसी खेल को उसके मैदान में सीधा नहीं देखा था मगर इस बार किस्मत से हमें विम्बलडन का महिलाओं द्वारा खेला जाने वाला फ़ाइनल मैच देखने को मिल ही गया यहाँ लंदन में रहकर विम्बलडन कोर्ट में जाकर खेल देखना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है. आप को जानकार आश्चर्य होगा कि जुलाई 2014 के खेलों के लिए पब्लिक बेलट (Public Ballot) 1 अगस्त 2013 से खुलेगा और आपको दिसम्बर तक फॉर्म भर कर भेजना पड़ेगा, फिर लाटरी प्रक्रिया से जो किस्मत वाले लोगों का नाम निकलेगा उनको फरवरी 2014 तक बताया जायेगा, तब आप उनकी साइट पर जाकर राशि  जमा करें और आपके घर टिकट भेज दिया जायेगा। यह प्रकिया सिर्फ Centre Court और Court no.1 के लिए है। जो लोग किसी कारण नहीं जा पाते हैं वो वापस कर देते हैं क्यूंकि टिकट किसी और को नहीं दिया जा सकता। यह टिकट फिर मैच के एक दिन पहले टिकटमास्टर.कॉम पर बेचा जाता है और कुछ मिनट में सारे बिक जाते हैं मगर उसके लिए भी जेब में अच्छे खासे पैसे और किस्मत दोनों का होना ज़रूरी है। यहाँ आपको बता दूँ इस बार पुरुषों के फ़ाइनल खेल का सबसे मंहगा टिकिट 80 हजार पाउंड का बिका है। इस बात से ही आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यहाँ इस खेल को देखने के लिए किस कदर पागल रहते है लोग।

हमें भी हमारे श्रीमान जी की कृपा से यह सुनहरा और पहला अवसर मिला इस खेले को सीधे कोर्ट में बैठकर  देखने का, जिसका अपना एक अलग ही मज़ा है। हमें दो टिकिट 250 पाउंड के मिले थे तीसरा नहीं मिल सका इसलिए अपने बेटे को मुझे अपनी एक दोस्त के घर छोड़कर जाना पड़ा और किस्मत बहुत अच्छी थी कि टिकट भी वहाँ का मिला जहां से खिलाड़ी कोर्ट में आते और जाते हैं, इस कारण हमें दोनों खिलाड़ीयों का ऑटोग्राफ भी मिल गया।





खैर खेल के कोर्ट में बड़े-बड़े खिलाड़ियों को सामने से देखना ऐसा लग रहा था मानो वो इंसान नहीं कोई अजूबे हों। पूरा कोर्ट खचाखच भरा था। आपको यहाँ यह जानकार भी शायद आश्चर्य हो कि टेनिस ही एक मात्र ऐसा खेल हैं जिसमें दूर -दूर तक कहीं भी विज्ञापन का कोई रोल नहीं है, ना ही कोर्ट में और ना ही टीवी पर ही खेल के दौरान आपने कभी कोई विज्ञापन देखा होगा। है ना आश्चर्य की बात!!! :) वहाँ हम ने यह भी देखा कि लोग एक खिलाड़ी को ज्यादा और दूसरे को कम बढ़वा दे रहे थे जबकि दोनों ही खिलाड़ी ब्रिटेन की नहीं थी फिर भी जाने क्यूँ लोगों ने सबीन को ज्यादा सपोर्ट किया जो कि जर्मनी से है। लेकिन फिर भी जीती वही महिला जिसको जनता का सपोर्ट कम मिला अर्थात Marion जो फ़्रांस से है। हालांकी खेल के दौरान जनता का झुकाव और बढ़ावा भी बहुत बड़ी चीज़ होती है। मगर फिर भी आखिर काबलियत भी कोई चीज़ होती है भई, जीतता वही है जिसमें दम हो। 

आजकल लंदन में पिछले कुछ दिनों से मौसम भी बहुत अच्छा चल रहा है मतलब 28 डिग्री यानि सूर्य नारायण की भरपूर कृपा बरस रही है आजकल यहाँ जो आमतौर पर बहुत ही कम होता है यहाँ, जिसके चलते बेहद गरमी है लोग हाहाकार कर रहे है। उस दौरान हमे भी यही लग रहा था कि अभी तो हम छाँव में बड़े मज़े से बैठे हैं मगर जब सूर्य नारायण की दिशा बदलेगी और उनका प्रकोप हम पर भी पड़ने लगेगा तब हमारा क्या होगा। हमारी यह चिंता शायद हमारे चहरे पर भी दिखाई देने लगी थी। इसलिए वहाँ हमारे पास खड़े गार्ड ने हमे बताया कि आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है आप बहुत ही किस्मत वाले हैं जो आपको यहाँ सीट मिली है यहाँ धूप आते ही हम ऊपर का शेड (Retractable roof ) आपके लिए खोल देंगे। पहले हमें लगा शायद वह मज़ाक कर रहा है लेकिन वो मज़ाक नहीं सच था। हम पर धूप आते ही हमारे साइड का ऊपर का कवर थोड़ा सा खोल दिया गया। यहाँ मैं आपको यह भी बताती चलूँ कि केवल सेंट्रल कोर्ट में ही यह व्यवस्था है जो खिलाड़ियों और वहाँ बैठी जनता को धूप और पानी से बचा सकता है बाकी अन्य कोर्ट में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है वहाँ यदि बारिश हो जाये तो खेल बीच में ही रोकना पड़ता है।  इसलिए इस दौरान होने वाले सभी महत्वपूर्ण मैच केवल सेंट्रल कोर्ट में ही खेले जाते है। हम ने भी गर्मी का लुफ़्त उठाते हुए वहाँ (पिम्म्स पेय) पीकर और ठंडी-ठंडी स्ट्रॉबेरी के साथ ठंडी-ठंडी क्रीम डालकर खायी, सच मज़ा आ गया था खाकर, :) वो भी HSBC बैंक की मेहरबानी थी जिसका जाइंट खाता था उसके कारण फ्री में यह स्ट्रॉबेरी और क्रीम खायी और खूब मज़ा आया खेल देखकर औ जैसा कि मैंने उपरोक्त कथन में भी लिखा है खिलाड़ियों के हस्ताक्षर (Autograph) भी लिए हमने आप में से जो-जो लोग हमारे साथ फेसबुक पर जुड़े हैं उन सभी ने फोटो भी देखे होंगे। यहाँ भी कुछ तस्वीरें लगा रही हूँ।  
Marion BartoliSabine Lisicki
Sabine Lisicki getting
runner up trophy
Marion Bartoli getting
winner trophy

महिलाओं के खेल का तो हमने भरपूर मज़ा लिया और ज़िंदगी भर के लिए इन मीठी यादों को अपने दिल में सजा लिया। लेकिन पुरुषों के खेल का मज़ा हमने घर बैठकर टीवी पर ही लिया जबकि मन पुरुषों के खेल को देखने का ही ज्यादा था मगर टिकिट मिली महिलाओं वाले खेल की, फिर भी हम बहुत खुश थे। मगर पुरुषों वाले खेल के खत्म हो जाने के बाद जब यह जाना कि यह ट्रॉफी ब्रिटेन में 77 साल के बाद आयी है  यह सोचकर लोग ज्यादा खुश हो रहे हैं और लोगों की तो छोड़ो जीतने वाला Andy Murray वो भी ऐसा ही सोचता है यह जानकार बहुत अफसोस हुआ क्यूंकि महिलाओं के साथ हमेशा हर जगह दुनिया के किसी भी कोने में दोगला व्यवहार ही होता आया है और शायद हमेशा ही होता रहेगा। जब भी यह बात ज़ेहन में आती है एक आग सी लग जाती है दिल के अंदर की खेल में भी दोगला पन क्यूँ क्या महिलाओं को कम मेहनत लगती है टैनिस खेलने में जो उनकी विनर को सिर्फ एक सुनहरी प्लेट दी जाती है और पुरुषों को पूरा कप क्यूँ ? अभी तक लगता था यह दोगलापन केवल हमारे यहाँ ही ज्यादा देखने को मिलता है। मगर अब यहाँ ऐसा देखकर लगा सभी जगह महिलाओं की स्थिति एक सी ही है कहीं कोई फर्क नहीं है। जबकि Murray से पहले एक महिला खिलाड़ी 1977 में भी यह Wimbledon जीत चुकी है तो 77 साल बाद नहीं बल्कि पहले भी यह जीत ब्रिटेन को एक महिला(Virginia Wade) दिला चुकी है। मगर उसका कहीं किसी ने नाम तक नहीं लिया आप चाहे तो इस लिंक पर पूरी जानकारी पढ़ सकते है http://ftw.usatoday.com/2013/07/andy-murray-virginia-wade-first-brit-wimbledon/

जहां तक पुरुषों के फाइनल को देखने की बात है कि लोग उसके पीछे इतना पागल क्यूँ थे कि इतना महंगा बिका उसका टिकिट तो वो सिर्फ इसलिए कि इस बार केवल यह ही दो प्रसिद्ध खिलाड़ी टिक पाये बाकी सब मशहूर लोग इस बार जल्दी बाहर हो गए थे। जब उनके खेल देखे रहे थे तब ऐसा लग रहा था जैसे इस बार सभी मशहूर खिलाड़ियों ने यह मन बना लिया है कि इस बार नए खिलाड़ियों को आगे आने का मौका देंगे। जबकि वास्तविकता यह नहीं होगी, मगर लग ऐसा ही रहा था और यही वजह थी कि पुरुषों का खेल देखने के लिए लोग ज्यादा पागल थे। मगर इस सब के बीच यह देखकर मन को तसल्ली हुई थी कि और कुछ हो न हो महिलाओं के खेल को देखने के लिए भी उतने ही लोग पागल थे मतलब जनता ने खेल देखने के मामले में दोगलापन न दिखाते हुए इंसाफ किया क्यूंकि महिलों के खेल वाले दिन भी पूरे कोर्ट में कहीं पैर रखने की जगह नहीं थी पूरा कोर्ट खचाखच भरा हुआ था यकीन ना आए तो खुद ही देख लिए इस तस्वीर में...:)

29 comments:

  1. Sargarbhit lekh...isi mein Pinki smile ke Toss ne iss saal badal dee Britain ki kismat

    ReplyDelete
  2. दुनिया में जितना क्रेज "महिला बिम्बल्डन टेनिस" का है शायद और किसी का नहीं.लोग पागल रहते हैं टेनिस की इन महिला सितारों को देखने के लिए.जब एक ब्रिटेन की महिला ने १९९७ में इसे जीता था खुशियाँ तब भी मनाई गईं थीं. हो सकता है कुछ कम मनाई गईं हों:) वह वोमेन सिंगल था. और मरे ने मैंन सिंगल ७७ साल बाद जीता है.
    बरहाल जो भी हो यह खेल बहुत पोपुलर है और आपने इसे लाइव देखा ..तो एन्जॉय :).

    ReplyDelete
  3. nice information nice reporting and nice arrangement .thanks

    ReplyDelete
  4. शिखा जी - सभी जगह यही बोला जा रहा है कि 77 साल बाद किसी ब्रिटिश ने विम्बलडन जीता है ना कि पुरुष एकल में 77 बाद जीता है। विवाद उठने पर सभी ने गलती सुधारी।

    ReplyDelete
  5. टैनिस का खेल बहुत रोमांचक होता है .... महिला विम्बलडन का फाइनल मैच आपने देखा ॥ बहुत बहुत बधाई ... ट्रॉफी ट्रॉफी होती है चाहे वो कप हो या प्लेट :)

    ReplyDelete
  6. जानकारी से पूर्ण लेख..

    ReplyDelete
  7. बढिया जानकारी। लाईव देखने का मजा ही कुछ और है।

    ReplyDelete
  8. बहुत बढिया जानकारी।...

    ReplyDelete
  9. lucky you!!!!!

    हम तो बरसों से टी वी पर देख कर ही खुश होते रहे हैं...
    खेल टेनिस है ही बढ़िया मगर Wimbledon का मज़ा और है...वहां का discipline भी काबिले तारीफ़ है...
    ऑटोग्राफ भी ले पायीं इस बात पर तो थोडा ईर्ष्या हो आयी :-)

    अनु

    ReplyDelete
  10. बहुत रोचक प्रस्तुति....

    ReplyDelete
  11. अच्छी जानकारी मिली .....आभार

    ReplyDelete
  12. विषय का चुनाव अच्छा है

    ReplyDelete
  13. i enjoyed your post very much .thanks to share

    ReplyDelete
  14. Excellent.... Bahut achche se aapne pura vistar me likkha ... Great

    ReplyDelete
  15. पूरी रिपोर्टिंग पढ़ कर अच्छा लगा

    ReplyDelete
  16. लाइव मैच देखने की बधाई.रोचक लेखन ने ड्र्श्यों को जीवंत कर दिया.

    ReplyDelete
  17. :) vistar purn vivran...
    badhiya laga, .....

    ReplyDelete
  18. रोमांचकारी खेल की रोचक जानकारी ... सामने से देखने का मज़ा कुछ और ही होता है ...

    ReplyDelete
  19. खिलाड़ियों को देखकर ऐसे लग रहा था जैसे कि वे इंसान नहीं पता नहीं क्‍या हों.............रोचक।

    ReplyDelete
  20. सेन्ट्रल कोर्ट और महिला फाइनल -- और बढ़िया टिकेट --क्या बात है। बधाई।
    हम तो टेनिस में महिलाओं के मैच क्रिस एवर्ट और मार्टिना के ज़माने से देखते आ रहे हैं। :)

    ReplyDelete
  21. साक्षात खेल देखना, एक रोमांचक अनुभव होता है, बधाई।

    ReplyDelete
  22. बहुत सुंदर रिपोर्टिंग.... मजा आया धन्यवाद

    ReplyDelete
  23. रोमांचक अनुभव .......बांटने का शुक्रिया।

    ReplyDelete
  24. achchhi jankari prapt hui ......aabhar.

    ReplyDelete
  25. रोचक दास्ताँ खेल , खिलाडी और मैदान की !

    ReplyDelete
  26. विंबलडन पर टेनिस मैच देखना बडा रोमांचकारी लगा होगा. हम तो टीवी पर देखकर ही आनंद लेते रहते हैं. आपने बेहतरीन अनुभव लिखे. शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  27. आज दैनिक भास्कर में आपकी इसी पोस्ट का जिक्र है. बहुत बधाई.

    रामराम.

    ReplyDelete
  28. आप सभी पाठकों एवं मित्रों का हार्दिक आभार कृपया यूं ही संपर्क बनाए रखें...:))

    ReplyDelete
  29. Didi...hum bhi jabardast fan hain tennis ke...lekin sirf mahila wimbledon tennis ke nahi, purush wimbledon tennis ke...ye alag baat hai ki i just adore maria sharapova...aur martina navratalova meri all time fave hain....:)
    purush mein pete sampras, andre agasi...

    Pallavi ji, bahut achhi rahi ye post...aapne live dekha hai wimbledon...humara ye sapna hai...live dekhne ka...dekhen kab poora hota hai! :)

    ReplyDelete

अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए यहाँ लिखें