Wednesday 7 August 2013

केवल एक सोच...


कल रात महारणा प्रताप धारावाहिक देखा। वैसे अपने बेटे को दिखाने के लिए मैं रोज़ ही यह कार्यक्रम देखती हूँ किन्तु आजकल उनकी शिक्षा से संबन्धित जानकारी दिखाई जा रही है। जो मुझे बहुत ही प्रभावशाली लग रही है। ऐसा नहीं है कि इस कार्यक्रम से पहले किसी और कार्यक्रम में ऐसा कुछ दिखाया नहीं गया है। मगर फिर भी इस धारावाहिक के पात्रों का चुनाव और उनका अभिनय अपने आप में बहुत ही अच्छा और प्रभावशाली है यह मेरी राय है, हो सकता है आपको यह बात आपके नज़रिये से सही न भी लगे, इस बात में मतभेद हो सकता है। इसके पहले जब महाभारत और रामायण जैसे सीरियल आए थे, तब भी मुझे ऐसा ही कुछ लगा था कि यदि इस प्रोग्राम में उन पात्रों को चयन नहीं किया जाता तो शायद वो बात नहीं आती जो इन पात्रों के शानदार अभिनय से आयी थी।

खैर मैं तो महाराणा प्रताप की बात कर रही थी, उनके गुरु के अभिनय ने मुझे बहुत प्रभावित किया और मन से एक आवाज़ आयी कि यदि आज के ज़माने में मुझे ऐसे गुरु और गुरुकुल मिल जाये, तो मैं बिना एक क्षण की भी देरी किए बिना अपने बेटे को वहाँ भेज दूँ। सच कितना सशक्त हुआ करता वह ज़माना, जहां से शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात बालक अपने आप को सही तरीके से पहचान कर अपने व्यक्तिव का सही मायनों में विकास कर पाता था और एक सच्चा और अच्छा नेक दिल इंसान बनकर निकलता था। फिर चाहे वो राजा का बेटा हो या रंक का सभी को एक समान शिक्षा मिला करती थी।

हाँ द्रोणाचार्य और एकलव्य का उदाहरण विरला ही है। मगर उस ज़माने में हर बात के लिए कुछ नियम और कायदे हुआ करते थे। जैसे क्षत्रिय वंश के गुरु अलग हुआ करते थे जो केवल क्षत्रियों को ही शिक्षा दिया करते थे जैसे द्रोणाचार्य जो मुख्यता राजघरानों के बालकों को ही शिक्षा दिया करते थे जिनके मना करने के पश्चात्  भी एकलव्य ने उनकी मूर्ति बनाकर विद्या हासिल की, हालांकी गुरु दक्षिणा के नाम पर जो उन्होंने किया वो गलत था, सरासर गलत। क्यूंकि सही मायने में एक गुरु की नज़रों में सभी विद्यार्थी एक समान होने चाहिए। वह भी बिना किसी भेदभाव के, मगर ऐसा हुआ नहीं था। किन्तु इस सब के बावजूद एक सच्चे और गुणी शिष्य की सच्ची श्रद्धा और निष्ठा ने अपने गुरु को उस पर गर्व करने का, उस पर अभिमान करने का अवसर प्रदान किया। यह बात अलग है कि सार्वजनिक तौर पर गुरु उसकी प्रशंसा नहीं कर सके। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है एकलव्य और कर्ण, कुंती पुत्र कर्ण जिसके गुरु परशुराम ने उसे यह कह कर शिक्षा प्रदान नहीं की थी कि उसने उनसे झूठ बोला कि वह एक ब्राह्मण पुत्र है जबकि वास्तविकता में वह एक क्षत्रिय था। जिसका पता शायद उस वक्त उसे स्वयं भी नहीं था। किन्तु फिर भी उसने उनसे शिक्षा प्राप्त कर एक योग्य योद्धा और एक उच्च सोच रखने वाला इंसान बनकर दिखाया।

यह इस बात का प्रमाण है कि किसी एक बालक या बालिका को एक योग्य गुरु के द्वारा शिक्षा मिल सके तो इस के अतिरिक्त भला किसी को और क्या चाहिए और उस ज़माने की यही एक बात मुझे बहुत पसंद है क्यूंकि तब हर एक को एक सी शिक्षा, एक से परिश्रम, के आधार पर अपनी-अपनी क्षमताओं के स्तर का पता चल जाया करता था, कि उन्हें अपने भावी जीवन में किस और ध्यान देकर कठिन परिश्रम करना है। उनका लक्ष्य क्या है। सच कितनी अच्छी हुआ करती थी हमारी सभ्यता और हमारी संस्कृति। मगर इन गोरों ने आकर सब खराब करके रख दिया और हम इस सो कॉल्ड आधुनिक कहे जाने वाले कंक्रीट के जंगल में विचरते हुए करने लग गए पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण जिसने हमसे हमारी ही धरोहर को छीन लिया।

काश आज भी हमारे भारत में ऐसे गुरुकुलों की परम्परा कायम होती तो शायद आज हमारे देश के हालात कुछ और ही होते। मगर अफसोस कि अब हमारे देश में शिक्षा के नाम पर, ज्ञान के नाम पर केवल रट्टू तोते बनाए जाते है जो कागजों पर ज्यादा-से ज्यादा अंक तो प्राप्त कर लेते हैं। मगर वास्तविकता में थोथे चने से ज्यादा और कुछ भी नहीं है। हमारे यहाँ शिक्षा का उदेश्य अब बच्चों का भविष्य बनाना नहीं, बल्कि केवल पैसा कैसे कमाया जाता है यह सिखाना रह गया है। व्यक्तित्व विकास जाये भाड़ में, उससे किसी को कोई वास्ता ही नहीं है। इस बात पर अधिकतर लोगों का मत यह है कि ज़माना ही प्रतियोगिता का है, यदि हम इसके साथ नहीं चले तो हमारा बच्चा पीछे रह जाएगा। क्या मुंह दिखाएगा वो समाज में, कैसे जीवन यापन करेगा वह अपना और अपने परिवार का  भविष्य में क्या सिखाएगा वह अपनी संतान को इत्यादि...कुछ हद तक यह सभी बातें सही भी हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है। मगर क्या सिर्फ पैसा कमाना ही जीवन की एकमात्र उपलब्धि है ? माना कि पैसा बहुत बड़ी चीज़ है, पैसा बहुत कुछ है मगर सब कुछ नहीं यह बात किसी प्रवचन से कम नहीं मगर है तो सच ही...

लेकिन हम यह क्यूँ नहीं सोच पाते या हमारी शिक्षा प्रणाली यह क्यूँ नहीं सोच पाती कि पहले भी पैसा उतना ही महत्वपूर्ण था इंसान के जीवन में जितना आज है। लेकिन फिर भी राजा से लेकर प्रजा तक सभी अपने बच्चों के लिए एक योग्य गुरु की शरण चाहते थे। भ्रष्टाचार और गद्दारी पहले भी हुआ करती थी, इतिहास में इस बात के कई सारे प्रमाण मिल जाएँगे मगर सभी को समान रूप से एक अच्छे गुरु से शिक्षा मिले इस बात का भी खासा ध्यान रखा जाता था। यहाँ तक कि लड़के और लड़कियों को आत्मरक्षा और देश रक्षा की खातिर शस्त्र विद्या सिखाई जाती थी। अर्थात केवल किताबी ज्ञान ही अहम नहीं समझा जाता था। मगर आज हमारी शिक्षा प्राणी का पुरज़ोर केवल बच्चों को किताबी ज्ञान देने पर आमादा है। वह भी केवल रटाकर, समझाकर नहीं, कहने को पाठ्यक्रम में अंतर्गत केरिक्युलर अक्टिविटी के नाम पर खेल कूद, गायन, चित्रकारी, नृत्य आदि कई सारी चीज़ें हैं। मगर अभिभावकों और शिक्षकों का ज़ोर आज भी केवल शिक्षा पर ज्यादा दिखाई देता है। क्यूंकि आज की तारीख में सही मायने में गुरु क्या होता है कि परिभाषा ही बदल गयी है। क्यूंकि शिक्षा प्राणी में गुरु का चयन भी तो उसके अंकों के आधार पर ही होता है या फिर पैसों के दम पर बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जिन्हें उनकी वास्तविक योग्यता के आधार पर शिक्षक का पद प्राप्त हो पाता हो।

पता नहीं अब कभी दुबारा हम पहले जैसे हो पाएंगे या नहीं लेकिन मेरा हमेशा से यह मानना था और आज भी है कि पहले के लोग हमसे कहीं ज्यादा चतुर और समझदार होने के साथ दूरदर्शी भी हुआ करते थे। हम जो चीज़ आज कर रहे हैं वो कहीं न कहीं पुराने किसी काम को नए तरीके और तकनीक से किया जाना ही है ऐसा मैं नहीं हमारी पुरानी सभ्यता के मिले हुए अवशेष कहते है। जय हिन्द॥ 

33 comments:

  1. आपने बहुत ही अच्‍छे विषय को रेखांकित किया है। मात्र रेखांकन ही नहीं आपने पुरातन शिक्षा-प्रणाली अर्थात् आश्रम शिक्षा के प्रति आज के वर्तमान हालात में भी अपनों बच्‍चों के लिए इच्‍छा प्रदर्शित की है कि यदि ऐसी शिक्षा आज दी जाती तो आप अपने बच्‍चों को उसमें प्रवेश करा आतीं। आज का सब कुछ खोखलाहट से भरा है। शासक मूर्ख, बुदि्धहीन हैं। पहले से आज की तुलना हो ही नहीं सकती। कुल मिलाकर एक अच्‍छा आदर्श जीवन जो पहले था आज नर्क हो गया है।

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  2. आजकल घर की शिक्षा और गुरु की शिक्षा , दोनों लुप्त हो गई हैं.
    शिक्षा एक बाज़ार बन गया है. जिसके पास ज्यादा पैसा है , वह खरीद कर आगे व्यापार करने लगता है.
    सार्थक आलेख।

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  3. आज तो शिक्षक को इस नज़रिये से देखा जाता है कि जिसे कहीं कोई नौकरी नहीं मिलती वो शिक्षक बन जाता है .... फिर कैसे शिक्षा सुचारु रूप से चले ? गुरु शिष्य के संबंध भी नाम मात्र के हैं .... न गुरु में गरिमा है और न ही शिष्य के मन में गुरु के प्रति सम्मान ...
    वैसे एक बात मैंने अनुभव की है कि जो शिक्षक सच ही बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देते हैं उनके प्रति पढ़ाई में रुचि लेने वाले बच्चों के मन में सम्मान की भावना होती है । लेकिन ऐसा होता बहुत कम है ।

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  4. आजकल की व्यवस्था में तो गुरुकुल पढ़ने वालों को गंवार समझा जाता है ... बाबा राम देव इसका जीता जागता उधारण हैं ... सारा मीडिया और तंत् उन्हें ऐसा ही कहता है ...

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  5. पल्लवी जी
    भारत में आज भी गुरुकुल है और वहा बाकायदा बच्चो को रख कर शिक्षा दी जाती है और बड़ी संख्या में बच्चे ऐसी जगह पर जाते है , कुछ जगहों पर बकायदा आधुनिक गणित और कंप्यूटर की शिक्षा भी दी जाती है , रहन सहन वही पुराना वाला और शहर गांव की शोर शराबे से दूर बना होता है ऐसा गुरुकुल , आप इंटरनेट पर सर्च करे तो कई मिल जायेंगे , बहुत सारे इंटरनेट पर अपने होने की जानकारी रखते है । छोटे शहरों का तो नहीं पता किन्तु आज कल बढे शहरो के स्कुलो में पढाई के अलावा दुसरे क्रिया कलापों की भी शिक्षा दी जाती है , जिन स्कुलो में ये व्यक्स्था नहीं है वो माँ बाप को बाहर ये सिखाने के लिए प्रोत्साहित करते है हालत ये है की मेरी कई मित्रो के बच्चे हर रोज स्कुल के बाद किस न किसी क्लास में कुछ सिखने जाते है , ऐसे क्लासेस सप्ताह में एक या दो दिन होता है , जिसमे चेस और एबेकस जैसे दिमागी खेल , स्केटिंग , तैरना जुडो कराटे के साथ लड़कियों के लिए फुटबाल भी होते है और अब तो डांस फार्म में भारतीय के साथ ही वेस्टन डांस की भरमार है । अपनी हालत ये है की एक कोर्स पूरा नहीं होता है और बेटी नए कोर्स का नाम पहले ही बता देती है , क्योकि मै एक बार में तिन से ज्यादा चीजे नहीं सिखाती । और एक आखरी राय आप को दूंगी इस तरह के ऐतिहासिक धारावाहिको से बच्चो के दूर रख सके तो रखे , इनसे बच्चे अच्छी बात कितनी सीखेंगे पता नहीं किन्तु उनका इतिहास का ज्ञान जरुर ख़राब हो जाएगा , इन धारावाहिकों का इतिहास से कोई लेना देना नहीं होता है ये पूरी तरह से मन गढ़ंत होते है यहा तक की पात्रों को भी गलत दिखाया जता है , जिसे रानी भटानी दिखाया जा रहा है असल में वो उनके पिता की मात्र हरम में रहने वाली महिला थी रानी नहीं , उसी तरह अनेक पात्र गलत होते है , वैसे उनके गुरु का पूरा स्वरुप कमल हासन की नक़ल है , उनकी चोटी से लेकर उनके खड़े होने का अंदाज तक ।

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  6. आपकी बात से सहमत हैं हम!
    हम भी आजकल कोशिश करते हैं ये धारावाहिक देखने की... कुछ तो है इसमें जो अच्छा लगा... हालाँकि युद्ध वगैरह वाला भाग हमें उतना पसन्द नहीं!
    आजकल महाराणा प्रताप की शिक्षा का प्रकरण सच में रोचक है! गुरु जी भी उनके धैर्य, बुद्धि व शक्ति की परीक्षा ले रहे हैं! कल हम भी यही सोच रहे थे...कि उन दिनों में शिक्षा इतनी देर से शुरू होती थी क्या? और शिक्षा की शुरुआत संस्कृत के श्लोकों से होती थी.... जो 'योग' से अपने-आप ही जुड़ जाते थे! आजकल सब जगह 'योग' को बढ़ावा तो दिया जा रहा है...मगर उसका सही उपयोग पूरी तरह नहीं हो पा रहा शायद....

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  7. सही कहा..हमारे पूर्वज हम से ज्यादा दूरदर्शी थे..बढिया आलेख..

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  8. बालक या बालिका को एक योग्य गुरु के द्वारा शिक्षा मिल सके तो इस के अतिरिक्त भला किसी को और क्या चाहिए ,,, विचारणीय पोस्ट,,,,
    RECENT POST : तस्वीर नही बदली

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  9. अंग्रेज़ों के आने के पहले, १८५० तक एक गाँव में एक गुरुकुल हुआ करता शा। अंग्रेज़ों की कुदृष्टि लगी है, अपनी संस्कृति और शिक्षा को।

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  10. आज न तो पहले जैसे गुरु हैं और न शिष्य...गुरु के लिए यह सिर्फ एक जीवनयापन का जरिया है और शिष्य का एक मात्र उद्देश्य शिक्षा प्राप्त कर उच्च से उच्च नौकरी पाकर धन कमाना...ऐसे वातावरण में नैतिक और चारित्रिक जागृति को कोई स्थान नहीं है...बहुत विचारणीय आलेख...

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  11. सच अब बहुत कुछ पहले जैसा नहीं रहा ..... जाने ये बदलाव समय की ज़रुरत हैं या हम यूँ ही उलझ बैठे हैं ....

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  12. आपने एक सही विषय पर दृष्टि डाली है . आजकल शिक्षा का मतलब केवल एक अदद नौकरी पानी रह गई है .जहाँ तक एतिहासिक धारावाहिकों की बात है , उनमे कही न कही काल्पनिकता का सहारा तो लेना हो पड़ता है लेखक को . एतिहासिक धारावाहिक देखने के लिए बच्चो को प्रोत्साहित करने में कोई बुराई तो नहीं दिखती मुझे , खासकर वो बच्चे जो अपने गौरव पूर्ण इतिहास से एकदम अनभिग्य है . मानता हूँ की इन धारावाहिकों से प्रमाणिक इतिहास की जानकारी नहीं होती लेकिन मूल तथ्य और घटनाओ और व्यक्ति के बारे में बच्चो को पता तो चल ही जाता है . विकिपीडिया तो यही कहता है की महारानी भटियानी , उदय सिंह के २० रानियों में सब से छोटी थी और जगमल की मां. अगर इस बात में सच्चाई नहीं है तो विकिपीडिया से विश्वास उठने का सबब होगा . प्रमाणिकता के लिए कोई और उपयुक्त पुस्तक के बारे में जानकारी मिले तो कितना अच्छा हो.

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  13. दुर्भाग्य से मैं उअह धारावाहिक नहीं देखता इसलिए इसकी मेरिट के बारे में बहुत कुछ नहीं बता सकता। लेकिन आपने जिन आदर्श गुरुकुलों और गुरुओं की चर्चा की है उनका लाभ समाज के कितने प्रतिशत बच्चों को मिल पाता था यह जरूर ध्यान रखना चाहिए। समाज का एक बड़ा वर्ग जन्म से ही अनर्ह होता था इनकी शिक्षा पाने के लिए। राज-परिवारों के बच्चे तो इन राजगुरुओं की विद्वता का लाभ पा जाते थे लेकिन एक बहुत बड़ी संख्या साक्षर भी नहीं हो पाती थी। यह पक्षपात या सामाजिक गैर-बराबरी बहुत पुराने इतिहास की चीज नहीम है बल्कि हमारी आँखों के सामने तक दिखायी देती है। स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रीय स्तर पर बड़े-बड़े अभियान चलाये जाने के बावजूद हमारे देश में शत-प्रतिशत साक्षरता नहीं आ पायी है। शिक्षा को मौलिक अधिकार अभी हाल ही में बनाया जा सका है। गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की बात तो अभी कोसो दूर है।

    एक बात और महत्वपूर्ण है। किसी विद्यार्थी द्वारा अपने अध्ययन में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए केवल अच्छे गुरू का होना ही पर्याप्त नहीं होता बल्कि शिष्य का मेधावी होना और परिश्रमी होना भी उतना ही आवश्यक और महत्वपूर्ण है। पुराने जमाने में भी अच्छे से अच्छे गुरू के गुरुकुल के सभी विद्यार्थी समान रूप से उत्कृष्ट प्रदर्शन नहीं करते थे। यही स्थिति आज भी है। अन्तर यह है कि शिक्षा का प्रसार बहुत बढ़ गया है। संख्या बहुत अधिक है। गुणवत्ता की कमी इसीलिए कुछ अधिक दिख रही है। लेकिन आज भी प्रतिभाशाली और मेधावी छात्रों के लिए अवसर पहले की तुलना में कहीं अधिक है। अच्छे स्कूलों और संस्थानों की संख्या भी पहले से अधिक होती जा रही है।

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  14. एक विचारणीय विषय , जिस पर निश्चित बहस होनी चहिये . शिक्षा बेहद बुरे दौर से गुजर रही है मगर ये कहना उचित नहीं की पौराणिक शिक्षा पद्धति से ही सुधार संभव है . बहुत से सोपान आये गए मगर शिक्षा का महत्व वही रहा ,परिवेश बदलते गए ,परिवर्तन होते गए. आज के कम्पुटर युग में शिक्षा अलग तरह की हो गयी , धनुष तलवार से अलग . हां मूल्यों की बात करैं तो बेहद अफ़्सोश होगा .मूल्य आधारित शिक्षा कही नहीं रह गयी बल्कि भौतिकता से कदम मिलाती हो गयी . पौराणिक धारावाहिक हमें मूल्यों का पाठ पढ़ाते है मगर मूल्य तो हम स्वयं निर्धारित करते है .

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  15. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-08-2013 के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें
    धन्यवाद

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  16. मैं अंशुमाला जी से सहमत नहीं हूँ फिक्शन के लिए थोड़े परिवर्तन हो सकते हैं। महाराणा प्रताप का केरेक्टर इतना दिलचस्प है कि वो वास्तविक पुस्तकों को पढ़ने के लिए बच्चों को प्रेरित करेगा, उनके जीवन की दिशा ही बदल जाएगी।

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  17. मैं भी आप से सहमत हूँ ....इस से बच्चों में अपने इतिहास में क्या हो चुका है जानने की इच्छा जगी है

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  18. मेरे जैसे पीढ़ी के लोगो को ये पढ़ कर,सुन कर अच्छा लगेगा कि
    आज भी आप जैसे कुछ हैं ..जो पुराणी सभ्यता की कद्र करते है और कुछ देखने को मिल जाये
    तो उसमें अच्छा ढूंढने की कोशिश करते हैं ..न कि खामियां निकालने की ...
    मैं शत प्रतिशत आपसे और "मैं और मेरा परिवेश" के सौरभ जी से सहमत हूँ !
    बाकि सब को अपने विचार रखने का हक है ..आप सब का स्वागत है !
    सब खुश और स्वस्थ रहें!

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  19. इस समय अध्ययनऔर अध्यापन दोनों कमर्सिअल हो गया है
    पता नहीं हम किधर जा रहे हैं……… बढ़िया आलेख !!

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  20. मनोरंजन के लिए यदि थोड़े बहुत परिवर्तन होते तो मै उनका विरोध नहीं करती किन्तु पूरी की पूरी कहानी ही फिक्शन हो तो क्या इसे इतिहास से खिलवाड़ नहीं कहेंगे , आप लोगो ने इसके पहले पृथ्वीराज चौहान और झासी की रानी देखा होगा, जहा इतिहास से दूर दूर तक कोई नाता नहीं था बाल कलाकारों के नाम पर टी आर पी मिल रही थी तो उन्होंने किरदारों को बड़ा ही नहीं किया और नई नई झूठी कहानी बना कर दिखाते रहे कृष्णा में तो जो लीलाए उन्होंने किशोरावस्था में की थी उसे भी टी आर पी के लालचा में बाल रूप में ही दिखा दिया यहाँ तक की पृथ्वी राज चौहान में कहानी को चंद्रकांता से भी ज्यादा फिक्शन बना दिया था, जिसमे तिलस्मी खजाने और न जाने क्या क्या था उसमे पृथ्वीराज चौहान की असली कहानी थी ही नहीं क्या आप सभी बच्चो को ये बताना चाहते है की पृथ्वी राज चौहान सारा जीवन तिलस्मी खजाने खोजने में बिता दिए , और उसका क्या अभी जोधा अकबर भी चल रहा है वहा भी महाराणा प्रताब का प्रसंग आएगा तो वहा एक नहीं कहानी दिखाई जाएगी उनका एक अलग ही रूप दिखाया जाएगा वो भी सच नहीं होगी तो बच्चो को क्या लगेगा की कौन सी कहानी सच है , फिर तो उन्हें महाराणा प्रताप ही सच नहीं लगेंगे अनिमेशन की तरह वो भी बस एक चरित्र ही लगेंगे । और खुल कर कहूँ तो जिस तरह से मुगलों को खलनायक की तरह दिखाया जाता है उनका पक्ष नहीं दिखाया जाता है उससे बच्चो के मन में किसी खास समुदाय के प्रति क्रोध घृणा भर गया तो उसे आप जिनदगी भर नहीं निकाल सकेंगे , और इतिहास की गलत जानकारी देश का भविष्य ख़राब करेगी , बच्चो की सोच ख़राब करेगी । कहते है की गलत ज्ञान से अज्ञानी होना ज्यादा अच्छा होता है , इतिहास का गलत ज्ञान तो बहुत ही भयानक होता है , बाकि सभी की अपनी सोच बच्चे सभी के अपने है ।

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  21. aalekh bahut acha likha hai par kaam ki vyastata ke karan mai nahi dekh pati

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  22. जी बिलकुल सही कह रहे हैं आप सभी लोग किन्तु वर्तमान हालातों में बच्चे आजकल के फिल्मी गीत देखें जिस पर अंकुश लगा पाना लगभग असंभव सी बात है परंतु फिर भी उससे तो अच्छा है इस तरह के सीरियल ही देखलें। माना के सीरियल में दिखाई जाने वाली सभी बाते सच नहीं है। क्यूंकि सीरियल बनाने वालों के पास भी तो एक निर्धारित समय सीमा है। जिसके अंतर्गत उन्हें सब कुछ दिखाना है तो ऐसे में यदि थोड़ा बहुत कम ज्यादा हो भी जाता है, तो उसमें मेरी नज़र में तो कोई बुराई नहीं है। क्यूंकि उसमें दिखाई गयी बात जो आपको गलत लगती है, उसे आप अपने ज्ञान के बल पर सरलता से बच्चों को समझा सकते है। यह गानो के अर्थ को समझाने से तो कहीं ज्यादा आसान होगा। रही बात मूल्यों की तो यह भी बात सही है कि मूल्य तो हम स्वयं ही निधारित करते हैं। मगर अपने इतिहास के बल पर अपने अनुभवों के बल पर ही ना, जो हमने पढ़ा, जो हमने जाना, जो हमने सीखा, उस ही के आधार पर तो हमारे मूल्य बने ना...वैसा ही हमारे बच्चे भी जो देखेंगे, जो समझेंगे उसी के आधार पर उनके मूल्य बनेंगे हमे बस उनका सही मार्ग दर्शन करना होगा।

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  23. ये सच है कि इतिहास के घटनाक्रम के विषय में वैचारिक विभिन्नता तो हमारे इतिहासकारों के बीच भी है . कभी कभी एक दूसरे से सहमत नहीं हैं और अपनी अपनी बात सामने रखते हैं बस ऐसे ही सीरियल भी हैं लेकिन इतिहास के इन वीरों की कहानी तो बच्चों को समझ आती है और वे इन नायकों के संघर्ष और देशप्रेम से जुड़े मूल्यों और दृढ़ प्रतिज्ञा से परिचित तो होते हैं . नहीं तो अब इतिहास से सब कुछ लुप्तप्राय होता जा रहा है . पाठ्यपुस्तकों में रानी लक्ष्मी बाई की हुक्का पीते हुए तास्वीर लगायी जा रही है और शिक्षक पढ़ा रहे हैं . भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद को आतंकवादी बताया जा रहा है

    बात गुरुकुल चली है तो आज भी कुछ स्थानों पर वैसा ही वातावरण पैदा करके , शिक्षा दी है . पिछले साल मैंने बहन के यहाँ सतना में उसके घर हवन में एक संसथान से बटुक बुलाये थे . छोटे छोटे बच्चे मन्त्रों का शुद्ध और समवेत स्वर में उच्चारण कर रहे थे और अपने गुरु के साथ अनुशासित आचरण मुझे बहुत अच्छा लगा . हो सकता है कि वे कल डॉक्टर या इंजिनियर न बन सकें लेकिन वे संस्कृत के विद्वान जरूर बनेंगे और अपनी संस्कृति में निहित वेद की ऋचाओं को जरूर औरों को सिखाने में सफल गुरु बनेंगे .

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  24. विचारनीय आलेख … सीखने लायक सीरियल है, बच्चो के लिये…
    और सच कहूँ, मेरे दोनों बेटों ने पता नहीं कब पहली बार देख ली, और वो भी हर दिन १० बजे तैयार हो जाते हैं, पापा सिर्फ आधे घंटे ……….
    और मुझे भी लगता है, सही ही है… !!

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  25. उत्तम लेख ....... हमारे घर मैं १० बजते ही बेटा कह देता हैं कि अब टी.वी सिर्फ मेरा ....... बहुत ही उत्तम धारावाहिक हैं ...एक अच्छा गुरु मिल जाए तो बच्चो की शिक्षा एवं आचरण दोनों उम्दा हो सकते हैं परन्तु न अब ऐसे गुरु रहे न अब ऐसे शिस्श्य

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  26. इतिहास को अगर विकृत किया जा रहा है तो सचमुच बुरी बात है। किसी समुदाय विशेष को खलनायक बताना एक गलत मेसेज है।

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  27. कौन धूप में,जल को लाकर
    सूखे होंठो, तृप्त कराये ?
    प्यासे को आचमन कराने
    गंगा, कौन ढूंढ के लाये ?
    नंगे पैरों, गुरु-दर्शन को , आये थे, मन में ले प्रीत !
    सच्चा गुरु ही राह दिखाए , खूब जानते मेरे गीत !

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  28. शिक्षण की शिक्षा लेते हैं ,
    गुरुशिष्टता मर्म न जाने !
    शिष्यों से रिश्ता बदला है
    जीवन के सुख को पहचाने
    आरुणि ठिठुर ठिठुर मर जाएँ,आश्रम में धन लाएं खींच !
    आज कहाँ से ढूँढें ऋषिवर, बड़े दुखी हैं, मेरे गीत !

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  29. बहुत सुंदर
    प्रभावी आलेख

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  30. prernadayk lekh ........shiksha prd ....aabhar Pallvi ji

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  31. बिलकुल सहमत हूँ आपकी इस पोस्ट से..यह बात जो आपने कही है की
    "हमारे यहाँ शिक्षा का उदेश्य अब बच्चों का भविष्य बनाना नहीं, बल्कि केवल पैसा कैसे कमाया जाता है यह सिखाना रह गया है। "
    मैं भी यही सोचता हूँ!
    पहले जैसे हम अब तो शायद नहीं हो पायेंगे, लेकिन वो ज़माना कितना अच्छा था....
    एक ग़ज़ल है सुनियेगा...आपको पसंद भी आएगी ये ग़ज़ल - http://www.youtube.com/watch?v=gnhL_KNgZaI

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  32. आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 6 अगस्त से 10 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।

    कृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा

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