Monday 23 September 2013

ऐसा भी होता है दोस्तों ...:-)

अभी कुछ दिन पहले यहाँ के एक अखबार में एक तस्वीर देखी मगर पहली नज़र में देखकर कुछ समझ नहीं आया फिर जब दुबारा उस तस्वीर को देखा तब बात समझ आई आप भी देखिये ....


इस तस्वीर में पहली नज़र डालते ही आपको क्या लगता है ?  या क्या नज़र आता है मुझे तो यह लगा था कि आखिर इतनी सारी बोतलों में से यहाँ कुछ टूटी हुई बोतलों को रखने से भला क्या लाभ लेकिन जब बहुत ध्यान से देखा तब जाके समझ आया कि बोतले टूट हुई नहीं है बल्कि एक बंदा खड़ा है जिसने अपने ऊपर ऐसा सब पेंट किया हुआ है। बताइये हद हो गई कि नहीं मार्केटिंग की, भई कमाल है जनाब लोगों को आकर्षित करने के लिए क्या कुछ नहीं करते यह व्यापारी जिनके बड़े-बड़े माल है या सुपर मार्किट है जनता को बेवकूफ बनाकर पैसा कैसे कमाया जाता है यह इन्हीं लोगों से सीखना चाहिए हमें और यही तो चाल होती है, इन व्यापारियों की जिसे हम आकर्षण समझ लेते हैं इस न्यूज़ का अहम मुद्दा यह था कि कई बार हम भ्रमित हो जाने की वजह से भी वो देखते हैं जो हम देखना नहीं चाहते और वही खरीद भी लेते हैं और यही तो चाहती है कंपनियाँ इस आलेख में ऐसी कई सारी छोटी-छोटी बातें लिखी थी कि यदि उन बातों पर गौर किया जाये, तो हम बेवजह के खर्चों से आसानी से बच सकते है।

जैसे अपने शायद ध्यान दिया हो कभी तो यहाँ के शॉपिंग माल या सुपर मार्किट में अक्सर घुसते ही सबसे पहले आपको ताज़ा फल फूल और सब्जियाँ नज़र आती है ताकि आप ताजगी महसूस कर सके फिर हर एक चीज़ के अलग अलग भाग होते हैं (सेक्शन) जैसे मिल्क प्रॉडक्ट जहां आपको चाय कॉफी से लेकर दूध में मिलाये जाने वाले सभी तरह की चीज़ें मिलेंगी जैसे बौर्नविटा, होरलेक्स इत्यादि-इत्यादि अब आप यह सोच रहे होंगे कि लो कर लो बात अब इसमें क्या खास है, यह तो यहाँ भी ऐसा ही होता है। तो मैं यह बताती चलूँ कि यहाँ हर भाग में आपको उस भाग में रखे सामान की ऐसी महक आयेगी जैसे बिलकुल अभी ताज़ा ही बन रहा हो वहाँ, जबकि यह सारी सुगंध वहाँ डाली जाती है। यक़ीन नहीं आता न लेकिन यही सच है ठीक किसी रूम स्प्रे की भांति ताकि आपको लगे चीज़ें एकदम ताज़ा है। जैसे ब्रेड के सेक्शन में ताज़ा बेकिंग की खुशबू, चीज़ के सेक्शन में चीज़ की ख़ुशबू, बिस्कुट के सेक्शन में उसकी ख़ुशबू, इसी तरह चावल के सेक्शन तक में आपको बासमती चावल की ऐसी ख़ुशबू आयेगी कि आप लिए बिना नहीं रह पाएंगे।

इतना ही नही वाइन के सेक्शन में बेहतरीन वाइन की और इत्र के सेक्शन में बेहतरीन इत्र महकेगा वहीं महिलाओं के सौंदर्य प्रसाधन भी रखे होंगे :-) और सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि पूरे सुपर मार्किट की व्यवस्था क्लॉक की तरह की गयी होगी क्यूंकि खोज की गई थी कि क्लॉक वाइज़ खरीददारी करने वाले लोग ज्यादा खर्च करते हैं इसलिए बाईं तरफ फूल ताज़ी सब्जियाँ रंगीन फल से लेकर हर वो चीज़ जो आपकी लिस्ट में नहीं होगी उसे ऐसे सजाया गया होगा कि आप लिए बिना न रहे सकें और काम की चीज़ें जैसे दूध ब्रेड अंडे यह सब सबसे आखिर में होगा। ताकि आप पूरा घूमकर उस सेक्शन में जाये क्यूंकि जब ऐसा होगा तो स्वाभाविक है आपको रास्ते में कई और ऐसी चीज़ें दिखेंगी जिनकी आपको जरूरत नहीं होगी, मगर जिन्हें देखकर आपका मन ज़रूर करेगा कि ले लें।

ऐसे ही सस्ते सामान ज्यादातर नीचे रखे होते हैं, जहां आमतौर पर लोग ध्यान नहीं देते और महंगे सामान हमेशा आपकी आँखों के स्तर पर रखे होते हैं जिन्हें देखते ही आप सीधा उठाकर चलते बनते हैं। छोटी-छोटी दुकानों का अस्तित्व तो पहले ही ख़त्म हो चुका है। अब यदि आप अपना बजट सही रखना चाहते हैं, तो कुछ चीजों का ध्यान रखें। जैसे हमेशा घर से ही अपनी लिस्ट बनाकर ले जाये और जब तक लिस्ट में लिखी सामग्री पूरी न हो जाये, तब तक किसी और चीज़ पर ध्यान ही ना दें। शॉपिंग करते वक्त हमेशा छोटी ट्रॉली या बास्केट का इस्तेमाल करें और यदि संभव को तो रोज़मर्रा में इस्तेमाल होने वाली वस्तुएं इक्कठी ही खरीद कर रख लें जैसे रसोई में इस्तेमाल किए जाने वाले मसाले, दालें, चावल, नहाने के साबुन, सर्फ, बर्तन साफ करने का जेल या साबुन जो भी आप इस्तेमाल करते हों, वैगरा-वगैरा कुल मिलकर कहने का अर्थ यह है, कि जो भी ऐसा सामान है जो आपको लगभग हर महीने लगता हो, उसे इक्कठा ही खरीद लें। इस तरह करने से जब आप दुबारा खरीददारी करने जाएँगे, तो केवल हफ़्ते भर का ही सामान लाएँगे। जैसे दूध ब्रेड अंडे वगैरा-वैगरा..

एक बात और भी लिखी थी कि इस आलेख में यदि संभव हो तो बच्चों को घर गृहस्थी की ख़रीददारी करते वक्त न ले जायें क्यूंकि बच्चों का मन हर चीज़ के लिए ललचाता है और आपका बजट बिगाड़ देता है। फिर चाहे वह खिलौनो की ज़िद हो, या खाने पीने के किसी भी ऐसे समान की जिसकी जरूरत नहीं होती, केवल इच्छा होती है और बच्चों को मना किया नहीं जाता। वैसे भी किसी भी चीज़ की बिक्री के लिए ज्यादातर बच्चों को ही टार्गेट बनाया जाता है फिर चाहे वो टूथपेस्ट हो या कोई अन्य सामाग्री जिसे देखकर बच्चे हर चीज़ के लिए ज़िद करते हैं। फिर चाहे वो आपके बजट में हो या न हो।

तो कोशिश करके देखिये भला कोशिश करने में क्या हर्ज़ है क्या पता शायद आप लुटने से बच जायें... जय हिन्द

20 comments:

  1. गृहस्‍थों की बचत करने के लिए आपने उपयोगी बात बताई है। लेकिन व्‍यापारियों के गोपनीय व्‍यापार-तरीके को उघाड़ कर रख देने से व्‍यापारियों को तनिक आपको कोसने का मौका जरुर मिल जाएगा। वैसे हर वस्‍तु-स्‍थल विभाग में वस्‍तुओं को उनकी ताजी सुगंध के साथ रखना और उन्‍हें क्‍लॉकवाइज रखना अच्‍छा व्‍यापारिक तरीका है। इसमें हर्ज ही क्‍या है। मॉल आदि से सामान खरीदने वाले धन-कुबेर होते हैं। खाने-पीने और अन्‍य वस्‍तुओं को खरीदने में यदि उनका अतिरिक्‍त धन लग भी जाएगा तो उनकी धन खजाने पर मुझे तो लगता है कोई फर्क नहीं पड़नेवाला। हां धनकुबेर यदि अधिक वस्‍तुएं खरीदेंगे इन वस्‍तुओं का निर्माण करनेवाली कम्‍पनियों के कर्मचारियों को अवश्‍य फायदा होगा। आखिर यूरोपीय देश ऐसी ही अर्थव्‍यवस्‍था चलाने के पक्षधर तो हैं।

    ReplyDelete
  2. अपन लोग तो अभी भी बाज़ार से औद खरीद लाते हैं मार्किट और वो भी सुपर से ज़रा दूर हैं अभी :-)

    ReplyDelete
  3. सही कहा आपने .सुन्दर सामायिक रचना
    कभी इधर का भी रुख करें
    सादर मदन

    ReplyDelete
  4. bilkul sahi pallavi , sach kahoon, yahan par to taja sabji hamen sirph subji market men hi mil pati hai. maal men jakar vahi cheejen khareedani chahie jo ek sath aur ek baar kharedani ho mahine men ya kai mahine men.

    ReplyDelete
  5. सुन्दर समसामयिक प्रस्तुति के साथ बढ़िया जानकारी ।

    मेरी नई रचना :- चलो अवध का धाम

    ReplyDelete
  6. बहुत अच्छी जानकारी !
    ग्राहकों की मानसिकता को ये लोग बहुत अच्छी तरह समझते हैं।नहीं तो चीजों के दाम सीधे 500 या 2000 रखने की बजाए 499 या 1999 या फिर 495या 1995 ही क्यों रखे जाते हैं।सब दिमाग का खेल है।

    ReplyDelete
  7. लेख अच्छा लगा |
    आशा

    ReplyDelete
  8. आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आप का वहाँ हार्दिक स्वागत है ।

    ReplyDelete
  9. मॉल में शोपिंग अपने समझ ही नहीं आती। हमें तो आदत है कि दुकानदार सामान निकाले और करीने से उसके बारे में बताए।

    ReplyDelete
  10. बाजारीकरण के सारे सूत्र यहाँ जमकर प्रयोग किये जाते हैं, बढ़िया अवलोकन .....

    ReplyDelete
  11. एक बाद आई.
    दक्षि‍ण भारतीया खाने के रेस्‍टोरेंटों में पहले हॅारलैक्स भी मीनू में पढ़ने को मि‍लता था , आजकल बॉर्नवीटा लि‍खा मि‍लता है...

    ReplyDelete
  12. बहुत सच कहा है,,,मॉल में जाने पर आप कितनी भी कोशिश करें फिर भी कुछ अनावश्यक खरीदारी हो ही जाती है...

    ReplyDelete
  13. मॉल से जुड़े मनोविज्ञान का अच्छा उल्लेख आपने और विज्ञापन करने वाले ने किया है. आभार. कई वर्ष पूर्व एक अंग्रेज़ी गीत सुना था- Cathy don't go, don't go to the super market today....यह गीत क्रिश्चियन मिशनरी भी बजाते थे.

    ReplyDelete
  14. ये लोग काफी शोध करते हैं इस रणनीति के पहले. जैसे दूसरा जूता खरीदने पर ५०% फ्री या स्माल की कीमत ३.०० और लार्ज की कीमत ३.२५ ताकि लोग बड़ा वाला ही खरीदेंगे.

    ReplyDelete
  15. arre wah marketing guru ban gaye tum to...........kitna behtareen analysis kiya hai............too good !!
    behtareen post..

    ReplyDelete
  16. मॉल और इस तरह की अजगरों प्रवृत्ति छोटी दुकानों को निगल जायेगी।

    ReplyDelete
  17. blog post aur fb me aapke lekhon ko dekhkar lagta hai jaldee hee aap news peper se logon se bahut jaldee jud jayengee .

    ReplyDelete
  18. बहुत ही मनोविज्ञानिक तरीके सुझाए है ... सच है की माल इकठ्ठा ही खरीद लेना चाइये जिससे बार बार माल जाना न पड़े ....

    ReplyDelete

अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए यहाँ लिखें