आज 20 मार्च 2020 कानून व्यवस्था का बड़ा दिन 7 साल बाद आज निर्भया केस के दोषियों को आखिर कार फांसी पर लटका दिया गया। इस फैसले से आज सभी बहुत खुश है। होना भी चाहिए। आज शायद निर्भया की आत्मा को शांति मिली होगी। आज शायद निर्भया की माँ और परिवार के अन्य सदस्यों ने मिलकर सच्चे दिल से निर्भया की आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की होगी।
सभी कुछ सच है, लेकिन मेरी नज़र में सही नही। क्योंकि यह न्याय तो तभी हो जाना चाहिए था जब निर्भया को इंसाफ दिलाने के लिए सारा देश एक हो गया था। सारे सबूत और दोषियों के अपना जुल्म कुबूल कर लेने के बाद इतनी बार उनकी फांसी टलनी ही नही चाहिए थी। जो कदम न्याय व्यवस्था ने आज उठाया, यदि यही कदम उन्होंने आज से 7 सात साल पहले ही उठा लिया होता, तो शायद कुछ हादसे रुक जाते। हालांकि मैं जानती हूँ कि ऐसा नही है की निर्भया कांड के पहले ऐसा कुछ नही होता था।
होता था, बिल्कुल होता था। लेकिन ऐसी बर्बरता सिर्फ निर्भया के केस से ही आम जनता के सामने आयी इसलिए इस केस को इतनी तूल मिली। यदि उसे इंसाफ तभी मिल गया होता तो शायद ऐसा करने वाले अपराधियों के मन मे थोड़ा ही सही, पर कानून के प्रति डर तो उत्पन्न होता। तब शायद ऐसा हो सकता था कि प्रियंका रेड्डी और उसके जैसी अन्य लड़कियां भी इस तरह की बर्बरता का शिकार ना हुई होती।
अब चाहे आप सब मुझे पागल कहें, या ना समझ, लेकिन मैं प्रियंका रेड्डी के समय हुए न्याय से पूर्णतः सहमत थी, हूँ ,और हमेशा रहूंगी। दोषियों को सजा जितनी जल्दी और पीड़ितों को न्याय जितनी जल्दी मिलेगा, उतना ही अपराधियों के दिल में सज़ा का खोफ बढ़ेगा। कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगता है।
ऐसा नही है कि मैं आज खुश नही हूँ। लेकिन अफसोस मुझे इस बात का है कि एक मरी हुई लड़की और उसकी जिंदा माँ को इंसाफ पाने के लिए ना जाने कितनी बार न्यायालयों में अपमान सहना पड़ा। ना जाने कितनी बार, उन दोनों को बलात्कार का दंश सहना पड़ा। ना जाने कितनी बार निर्भया की माँ को अपनी बेटी के उस दुख, उस दर्द, उस पीड़ा से गुजरना पड़ा। तब कहीं जाकर आज, उनकी बेटी को इंसाफ मिल सका। लेकिन हर कोई इतना ताकतवर नही होता, इतना निर्भीक नही होता, जितना निर्भया की माँ है। तो उन महिलाओं और उन बच्चियों का क्या...?
उनके लिए कौन लड़े और उन्हें इंसाफ दिलाये। ना जाने कितनी बहु बेटियां है जो इस दर्दनाक हादसे का शिकार हो चुकी है और आज भी हो रही हैं और उनके अपराधी खुले आम एक शरीफ और इज्जत दार इंसान के रूप में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। ऐसे एक दो नही बल्कि हज़ारों अपराधी है, जो हर रोज कभी बस में, कभी ट्रैन में, कभी आफिस में, कभी स्कूल में, यहां तक के घर में भी, हर रोज़ महिलाओं का शोषण कर रहे है। कुछ जिस्म से, तो कुछ तो आंखों से ही बलात्कार कर रहे हैं।
उन सभी अपराधियों का क्या...? रास्ते चलते ऐसे दरिंदों की आंखों में ही उनकी भूख साफ नजर आती है। उसका ही परिणाम है यह तेजाबी हमले, बलात्कार, छेड़छाड़ इत्यादि।
इन्हें कौन सजा देगा कि उनके दिल में भी कानून व्यवस्था के प्रति डर जागे और रहे। क्या आप सभी के पास है कोई जवाब इस सब का...?
विचारणीय
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ReplyDeleteनिर्भया के साथ न्याय तब तक हुआ नहीं माना जाना चाहिए जब तक किशोर समझ कर छोड़े गए बलात्कारी और सर्वाधिक क्रूर हत्यारे को फांसी पर नहीं लटकाया जाता। निर्भया की कहानी में सर्वाधिक क्रूरतम और वीभत्सता करनेवाला वो तथाकथित किशोर ही था, जिसे किशोर न होते हुए भी किशोर मानकर छोड़ दिया गया।
Deleteमैं भी तुम्हारे साथ हूँ , न्याय तभी सार्थक है जब समय पर हो । निर्भया जैसी औरभी कई शिकार हुई हैं लेकिन न्याय तो क्या मामला अदालत तक नहीं फहुँचा । अभी न्याय व्यवस्था में बहुत सुधार की जरूरत है ।
ReplyDeleteमुझसे तो पूछिए ही मत कि कानून व्यवस्था का क्या हाल रहा है इन दिनों ही नहीं हमेशा से । कोई न्याय नहीं करती अदालत सिर्फ फैसले सुनाती आई है वो भी हमेशा से । आपने सही लिखा
ReplyDeleteन्याय तो हैदराबाद में हुआ था।
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