Wednesday 28 September 2011

त्यौहार के रंगों से रंगा, रंगों भरा महीना अक्टूबर 2011

 आप सभी को नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें 
भारत एक ऐसा देश है जहाँ अनेकता में एकता का होना ही उसकी पहचान रही है। यह कोई नई बात नहीं है। भारत में रहने वाले सभी भारतवासी या फिर जो लोग भारत को, यहाँ की संस्क्रती को सभ्यता को अच्छे से जानते है, मानते हैं, पहचानते हैं, उनको तो यह बात बताने की जरूरत ही नहीं है कि कितना सुंदर है हमारा भारत देश यहाँ मुझे एक हिन्दी फ़िल्म फ़ना का एक गीत याद आ रहा है जिसकी पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार हैं।

यहाँ हर कदम-कदम पर धरती बदले रंग 
यहाँ की बोली में रंगोली सात रंग
धानी पगड़ी पहने मौसम है 
नीली चादर ताने अंबर है 
नदी सुनहरी, हरा समंदर,
है यह सजीला, देस रंगीला, रंगीला, देस मेरा रंगीला"    

यह बात अलग है कि पिछले कुछ वर्षों में आतंकी हमलों के कारण यहाँ की आन-बान और शानो शौकत पर थोड़ी सी शंका की धूल गिरि है मगर इसका गौरव आज भी वैसा ही है, जैसे पहले हुआ करता था। रही सुख और दुःख की बात तो वह तो जीवन चक्र की भांति सदा ही इंसान की ज़िंदगी में चलते ही रहते है। किसी के भी जीवन में चाहे कितना ही कुछ क्यूँ ना घट जाये यह जीवन चक्र न कभी रुका था और ना ही कभी रुकेगा। शायद इसी का नाम ज़िंदगी है। वो फ़िल्म दिलवाले दुलहनिया ले जायेगे का संवाद है ना, यकीनन आपने भी ज़रूर सुना होगा 

“बड़े-बड़े शहरों में ऐसी छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं”

जिसे मैंने बदल कर दिया है कि “बड़े-बड़े देशों में ऐसी छोटी–छोटी वारदातें होती रहती हैं” :) क्योंकि भई जितना बड़ा परिवार हो उतनी ही ज्यादा बातें भी तो होगी ना, जहां प्यार होगा वहाँ लड़ाई भी होगी ही, ऐसा ही  कुछ मस्त मिज़ाज का है अपना इंडिया भी, है ना!!! :) आपको क्या लगता है इसलिए शायद इतना कुछ घट जाने के बाद भी यहाँ हर एक त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाये जाते है। हर त्यौहार का अपना एक अलग ही रंग और अपना एक अलग ही मज़ा होता है। भई अब पिछली दो-तीन पोस्ट में भी बहुत हो गई गंभीर बातें अब तो त्यौहारों का मौसम है, हमारे दिलों में भी मस्ती का, हर्ष उल्लास का, माहौल होना चाहिए और हमारे ब्लॉग में भी और इस साल तो आने वाला पूरा महीना ही त्योहारों से भरा हुआ है। तो क्यूँ ना आप और हम भी सब कुछ भुलाकर, सारे गिले शिकवे मिटा कर बातों के माध्यम से ही सही त्योहारों का लुफ़्त उठायेँ । क्या कहते हैं आप हो जाये :)

जैसा की आप सब जानते ही हैं कि रक्षाबंधन के बाद से तो त्यौहारों का सिलसिला शुरू हो ही जाता है। बस अब तो बहुत जल्द एक और रंगों भरा त्यौहार आपका इंतज़ार कर रहा है। जिसका नाम है नवरात्री, क्या माहौल होता है इन नवरात्र के नौ (9)दिनों का सच, अभी लिखते वक्त जैसे आँखों के सामने एक चल चित्र सा चल रहा है। चारों और बस माँ के नाम का जयकारा पूरा माहौल भक्ति रस में डूबा हुआ जगह-जगह माँ की सुंदर मूर्तियों से सुशोभित मनमोहक झाँकियाँ, मेले, गाना-बजाना, खाना-पीना, जागरण सभी कुछ, जैसे मानो इन नौ दिनों मे दुनिया अपना सारा दुःख दर्द भूल कर सिर्फ माँ के भक्ति रस में भाव विभोर रहा करती हैं, मेलों में बच्चे भरपूर मज़ा उठाते हैं। बुज़ुर्गों को जागरण के माध्यम से भजनों का आनंद प्राप्त होता है।

जगह-जगह गरबा प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता जहाँ घर परिवार के सभी लोग गरबा खेलने जाते हैं। छोटे बच्चों के लिए माला बनाओ प्रतियोगिता, तो कहीं रंगोली प्रतियोगिता, तो कभी मेहँदी प्रतियोगिता, चारों तरफ बस मस्ती ही मस्ती, मज़ा ही मज़ा और भक्ति रस में डूबे गीत संगीत का जोश भरा माहौल, आह! कितने आनंददायक होते हैं यह नवरात्र के दिन, फिर आता है दशहरा यानी बुराई पर अच्छी की जीत का पर्व, इस दिन माँ दुर्गा का मूर्ति विसर्जन भी किया जाता है और ऐसी मान्यता है कि इस दिन माँ दुर्गा भगवान श्री राम को विजय होने का आशीर्वाद देती हुई पानी में विसर्जन के माध्यम से लुप्त हो जाती हैं और उसके बाद ही दशहरे का पर्व शुरू होता है। दशहरा इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इस दिन भगवान श्री राम ने रावण को मारा था। जहाँ तक मेरी जानकारी है, यही एक मात्र ऐसा त्यौहार है जिसे हिन्दू संस्क्रती में लड़कों का त्यौहार माना जाता है। वैसे तो किसी भी त्यौहार के लिए यह कहना उचित नहीं कि यह लड़कीयों का है और यह लड़कों का, क्योंकि त्यौहार तो त्यौहार ही है और उसे सभी माना सकते हैं। मगर फिर भी हमारे देश की सभ्यता और संस्क्रती में अब भी कुछ त्यौहार ऐसे हैं जिन्हें ऐसा ही समझा जाता है। जैसे रक्षाबंधन लड़कीयों का त्यौहार माना जाता है। वैसे ही दशहरा लड़कों का त्यौहार माना हाता है।

यह बातें तो हो गई लड़के और लड़कीयों के त्यौहार की, अब बारी आती है औरतों की, तो उनका भी इस त्यौहार के मौसम में इस साल यह अक्टूबर का महीना त्यौहार का रंगों भरा महीना बन कर आया है। जिसमें आती है अपने आप में चाँद की महिमा लीये करवाचौथ भी, जिसे अखंड सुहाग का त्यौहार भी माना जाता है। इस दिन सभी सुहागिन औरतें अपने-अपने पति की दीर्घ आयु के लिए करवा चौथ का उपवास रखती हैं। जिसके अंतर्गत दिन भर बिना अन्न जल लिए रात को चाँद देखने के बाद पति का चेहरा देख कर ही व्रत खोला जाता है। पहले यह त्यौहार इतनी धूम-धाम से नहीं मनाया जाता था। मेरी मम्मी का कहना है, कि मेरी दादी ऐसा बताया करती थीं कि यह सब ग्रहस्थी की पूजा हैं। जो पहले के ज़माने में घर की औरतें आपस में मिल जुल कर ही कर लिया करती थी। मगर अब फ़िल्म वालों की मेहरबानी से सभी औरतों के पतियों को भी इस व्रत के महत्व की सम्पूर्ण जानकारी भी मिल गई है और महत्व भी पता चल गया है। अब तो पति भी अपनी पत्नी के लिए यह व्रत करते देखे जा सकते हैं। :)

अब बारी आती है साल के सबसे बड़े हिन्दू पर्व की यानी दीपावली, यह एक ऐसा त्यौहार है जिसके बारे में बच्चे-बच्चे तक को सम्पूर्ण जानकारी है। कि यह हिंदुओं का सब से बड़ा त्यौहार है जो की हिन्दी कलेंडर के अनुसार कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री राम अपना चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस लौट कर आये थे और उन्हीं के वापस आने की ख़ुशी में लोगों ने दीप प्रज्ज्वलित कर उनका स्वागत किया था। तब से लेकर आज तक यह दीपावली का त्यौहार दीप प्रज्ज्वलित करके ही मनाया जाता है। भले ही इस दिन अमावस्या क्यूँ ना होती हो, मगर लोगों के घरों में और आस-पास के सम्पूर्ण वातावरण में इतना ज्योतिमय माहौल रहता है, कि चाँद की कमी महसूस ही नहीं होती है। लोग महीनों पहले से इस त्यौहार के लिए तैयारियाँ किया करते हैं। यह त्यौहार बरसात के बाद आने के कारण लोग घर की रँगाई करवाते हैं। जिससे सारे घर की साफ सफ़ाई अच्छी तरह हो जाती है। क्यूँकि ऐसी मान्यता है कि जिसका घर जितना साफ सुथरा होगा उसके घर माँ लक्ष्मी का आगमन उतनी जल्दी होगा, और लक्ष्मी के आने का इंतजार तो सभी को सदा ही रहता है। :)

खैर तरह-तरह के पकवान भी बनाये जाते हैं, भोपाल में इसे जुड़ा एक और रिवाज है यहाँ दीपावली वाले दिन शाम को लक्ष्मी पूजन के बाद लोग एक दूसरे के घर जलता हुआ दिया लेकर जाते है। ताकि किसी का भी घर दिये की रोशनी के बिना सूना-सूना और अंधकारमय ना दिखाई दे फिर चाहे उस घर में कोई रहता हो या ना रहता हो, है ना अच्छी प्रथा, उसके बाद लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं, उपहार देते है, दीपावली की शुभकामनायें देते है, फटाके फोड़ते है। जिसमें सबसे ज्यादा मज़ा आता है। है ना ! :)  खैर हर नई चीज़ लेने के लिए भी दीपावली आने का इंतज़ार रहता है और दीपावली आते ही वो चीज़ ले ली जाती है। यह पाँच दिनों का उत्सव होता है पहले धन तेरस, फिर नरक चौदस और फिर दीपावली, गोवर्धन पूजा, अर्थात जिसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है फिर भाई दूज। धन तेरस वाले दिन वैसे तो सोना या चाँदी खरीदे जाने का रिवाज है, मगर आज कल के महँगाई के इस दौर में बेचारे गरीब के लिए यह सब संभव नहीं इसलिए हमारे समझदार बुज़ुर्गों ने सोने चाँदी के अलावा इस दिन कोई भी नया समान ख़रीद ने का चलन बना दिया था।  ताकि गरीब से गरीब इंसान भी इस दिन कुछ नया समान लेकर यह त्यौहार माना सके।

फिर आती है नरक चौदस यह दिन यमराज का दिन माना जाता है और उनसे तो सभी को डर लगता है। इसलिए इस दिन को मनाना कोई नहीं भूलता :) इस दिन आधी रात को मूँग की दाल से बने पापड़ पर काली उड़द की दाल रख कर उस पर यम के नाम का चार बत्ती वाला दिया जलाकर रास्ता शांत हो जाने के बाद बीच रास्ते में रखते हैं, और फिर जब तक दीपक या दिया शांत न हो जाए वहाँ खड़े रहकर प्रतीक्षा करते है। जैसे ही दिया शांत होता है, उस स्थान पर पानी डाल कर बिना पीछे देखे बिना घर में चले जाते है। इसके पीछे मान्यता यह है कि मरणोंपरांत जब यमदूत आपको लेकर जाते है तब उन चार बत्तियों वाले दिये की चारों बतियाँ चार दिशाओं का प्रतीक होती है।जिस के कारण जब यमदूत के साथ होते हुए भी आपको उस मार्ग की चारों दिशाओं  में उस दीपक की वहज से भरपूर रोशनी मिलती है न कि अंधेरा,  मगर सभी घरों में ऐसा नहीं होता है। हर घर की अलग मान्यता होती है, जो मैंने अभी बताया वो मेरे घर की प्रथा है।

फिर आती है दीपावली और अगली सुबह गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है । शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की ।

जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा और इस के बाद आती है भाई दूज, इस दिन सभी बहने अपने भाइयों को तिलक करती है। भाई उन्हें उपहार दिया करते है। यह साधारण तौर पर सभी हिन्दू जातियों में इस त्यौहार को मनाने का तरीका है। मगर  कायस्थ समाज में इस त्योहार के मनाए जाने का कुछ अलग तरीका है। इस दिन भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा की जाती है और दूध में उंगली से पत्र लिखा जाता है।  इसे जुड़ी मान्यता यह है कि आपकी मनोकामनाओं का पत्र देव लोक तक पहुँच जाता है। पहले लड़कियों को ज्यादा पढ़ाया लिखाया नहीं जाता था।  इसलिए इस पूजा में लड़कियों को शामिल नहीं किया जाता है। किन्तु अब ऐसा नहीं है। बदलते वक्त ने लोगों कि मानसिकता तो भी थोड़ा बहुत बदला है। आजकल तो लड़कियां भी पढ़ी लिखी होती है इसलिए अब बहुत से घरों में लड़कियों को भी इस पूजा में शामिल होने दिया जाता है। मैंने भी अपने घर यह पूजा की है। :)
  
अब बारी आती है देव उठनी ग्यारस इसे बड़ी ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है। इस वक्त गन्ने  की फ़सल आती है इस दिन रात को गन्ने से झोंपड़ी बना कर भगवान को उसके अंदर रखकर पूजा की जाती है इस दिन से ही शादी विवाह, मकान घर आदि बनाने जैसे महत्वपूर्ण कार्य शुरू होते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस ग्यारस से भगवान विष्णु चार महीने बाद निंद्रा से जाग जाते है और उसके बाद ही शादी जैसे शुभ कार्य किए जाते हैं। वैसे देखा जाये तो बड़ी अजीब बात है ना! देव भी कभी सोते हैं। अगर देव सो गए तो न जाने इस संसार का क्या होगा मगर यदि मान्यताओं पर चल कर देखो तब भी बात बहुत अजीब बात लगती है नहीं ? देव सोते में हर बड़े-से बड़ा त्यौहार आकर चला जाता है और महज़ शादी भर करने के लिए लोग रुकते हैं इस ग्यारस के लिए क्यूँ ?  खैर यह अपनी-अपनी सोच और मान्यतया वाली बात है। इस बात को लेकर मेरा किसी कि भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई मक़सद नहीं है। जहाँ तक मुझे मेरे ससुर जी ने इस बात का लॉजिक दिया कि पुराने समय में गाँव में लोग रहते थे और मौसम खराब होने के कारण बहुत दिक्कते आती होगी तो इसलिए ही यह बोलकर कि देव सो गए हैं और बारिश के तीन-चार माह शादी कि रोक लगा दी और दीपावली के बाद मौसम ठंड का हो जाता है और बारिश के बहुत कम आसार होते हैं तो देवों को उठा दिया और शादियों कि अनुमति दे दी।

अन्तः बस इतना ही कहना चाहूँगी कि त्यौहार हर बार सभी के लिए खुशियाँ लेकर आये यह ज़रूरी नहीं, आज न जाने कितने ऐसे परिवार हैं जिनके लिए अब शायद इन त्योहारों का कोई मोल ना बचा हो मगर चलते रहना ही ज़िंदगी है जो रुक गया उसका सफर वहीं खत्म हो जाया करता है। इसलिए यदि हो सके तो पुरानी बातों को भूल कर आगे बढ़ने का प्रयास कीजिये अगर अपनो के जाने के ग़म ने आपसे त्यौहार की ख़ुशी छीनी है तब भी आपके आपने कई और भी है, जो आपको इस त्योहारों के ख़ुशनुमा माहौल में खुश देखना चाहते है और शायद वह लोग भी जिनका वजूद भले ही आपकी ज़िंदगी में ना रहा हो, मगर चाहत उनकी भी यही होगी की आप खुश रहें। कुछ और नहीं तो अपने अपनों की ख़ुशी के लिए ही सही ज़िंदगी में दर्द और ग़म को भूलाकर आगे बढ़िये क्यूंकि..... 

"जीने वालों जीवन छूक-छूक गाड़ी का है खेल,
 कोई कहीं पर बिछड़ गया किसी हो गया मेल" ....


इन्ही पंक्तियों के साथ जय हिन्द
                                  

36 comments:

  1. मन प्रफुल्लित कर दिया आपने...

    ReplyDelete
  2. बड़े-बड़े शहरों में ऐसी छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं”
    bahut badhiya lekh hai

    ReplyDelete
  3. इन सब व्यवधानों के बाद भी जीवन बड़ा दमदार है भारत में।

    ReplyDelete
  4. चलिए बहुत अच्छा रहा , आपके इस ब्लॉग पर आज इस पोस्ट के रूप में महीने भर के लिए बहुत कुछ मिल गया अब आता रहूंगा बार बार पढने


    पल्लवी जी दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में तो इन उत्सवों का मौसम जाने एक सिहरन भी पैदा करता है ..वही बडे बडे शहरों में छोटी छोटी वारदातें ..और बडी बडी आतंकी घटनाएं भी

    ReplyDelete
  5. October Maah ke sabhi tyawaron ka sundar manohari chitran prastuti ke liye aabhar!
    NAVRATRI ke sath hi in sabhi tyawaron ke liye aapko haardik shubhkamnayen..

    ReplyDelete
  6. त्यौहारमयी पोस्ट ... यही उत्सव जीवन में उत्साह भरते रहते हैं ...नवरात्रि की शुभकामनायें

    ReplyDelete
  7. काफी सुन्दर और जानकारी से परिपूर्ण आलेख. आप सभी व आपके परिवार को नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनायें. सभी नवरात्रे का उपवास रखने वालों को माँ शेरा वाली सही सलामत रखे और सभी को सुख-समृध्दि दें.

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर पोस्ट्…………माता रानी आपकी सभी मनोकामनाये पूर्ण करें और अपनी भक्ति और शक्ति से आपके ह्रदय मे अपनी ज्योति जगायें…………सबके लिये नवरात्रि शुभ हों

    ReplyDelete
  9. जीवन के कई पक्षों को सहज स्पर्श देती रचना. बहुत खूब. MEGHnet

    ReplyDelete
  10. नवरात्रि की बहुत -बहुत शुभकामनाएँ....

    ReplyDelete
  11. जीवन अपनी राहें तलाशता रहता है।

    ReplyDelete
  12. क्या बात है ...एकदम त्योहारों को मनाने वाली भावना के साथ ही पोस्ट लिखी है आपने.
    बहुत सुन्दर.

    ReplyDelete
  13. बहुत सुन्दर!!!!
    Live TV देखने के लिए यंहा पर क्लिक करे
    tv.indiafun.co.in

    ReplyDelete
  14. नवरात्रि की आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

    सादर

    ReplyDelete
  15. chhoti chhoti baaton ke bich ye badi badi baton ki tarah khushiyan late hain....:)
    ye vrat, tyohar....ek nayi khushbooo see lati hai jeevan me!!
    pyari si post!!

    waise Pallavi, govardhan puja ya bhaiya duj ke din ek aur puja ham manate hain, .......tumhe yaad hai:)

    ReplyDelete
  16. ofcourse उसके बारे में भी लिखा है मैंने भईया....अगर आपका तात्पर्य चित्रगुप्त पूजा से है तो :)

    ReplyDelete
  17. आप सभी पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया ... कृपया यूँहीं समपर्क बनायें रखें धन्यवाद....

    ReplyDelete
  18. uff!! sorry!! mera dhyan unn panktiyon pe gaya hi nahi tha!!

    ReplyDelete
  19. उत्सव जीवन में उत्साह भरते रहते हैं...सुन्दर प्रस्तुति..नवरात्रि की आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
  20. बहुत सुंदर विवेचना...नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  21. हाँ...चित्रगुप्त पुजा में भी बड़ा अच्छा लगता है...बचपन में तो खुशी होती थी कि एक दिन पढ़ने लिखने से छुटकारा मिला.....।

    ReplyDelete
  22. "जीने वालों जीवन छूक-छूक गाड़ी का है खेल,
    कोई कहीं पर बिछड़ गया किसी हो गया मेल" ....sach kaha , aur vistrit jaankari di

    ReplyDelete
  23. कितना कुछ लिख दिया ... कितनी जानकारी डी है त्योहारों की इस पोस्ट में ... बधाई ...

    ReplyDelete
  24. सुंदर पोस्ट..! ...शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  25. बहुत बढ़िया!
    आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की मंगलकामनाएँ!

    ReplyDelete
  26. सुबह सुबह यह पोस्ट कुछ कमाल से कम नहीं है...
    शुरूआती पंक्ति में आपने 'फ़ना' का गाना डाला है...
    'फ़ना' का गाना मतलब 'जतिन-ललित' का संगीत...और जतिन-ललित का संगीत मतलब मेरे लिए म्यूजिक का सबसे बड़ा नाम :) :)

    और त्योहारों की इतनी अच्छी चर्चा...अभी दुर्गा-पूजा चल रही है और मैं किस कदर मिस कर रहा हूँ ये बता नहीं सकता...चार साल से भी ज्यादा हो गए, दुर्गा पूजा पे घर नहीं गया...चित्रगुप्त पूजा मेरे पसंदीदा त्योहारों में से एक है...
    और क्या कहूँ..बहुत अच्छी पोस्ट है..

    ReplyDelete
  27. भारत के बारे में तो कहा ही जाता है सात वार और नौ त्यौहार ! यानी दिन तो सात ही होते है लेकिन पूरे देश में हो रहे हर छोटे बड़े त्यौहारों को जोड़े तो वो नौ हो जायेंगे | अब तो इनमे कई नये त्यौहार भी जुड़ते जा रहे है जी पश्चिम से यहाँ आ रहे है |

    ReplyDelete
  28. बहुत बढ़िया!
    नवरात्रि की आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
  29. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-652 , चर्चाकार-दिलबाग विर्क

    ReplyDelete
  30. क्‍या बात है ... आपने तो बिल्‍कुल जीवंत कर दिया सब कुछ

    लगा ही नहीं पढ़ रहे हैं ..हर त्‍योहार के बारे में इतना कुछ विस्‍तार से

    आपके लेखन में तो जादू है ..सच बहुत ही अच्‍छा लगा ...आभार के साथ शुभकामनाएं सभी त्‍योहारों की ... ।

    ReplyDelete
  31. वहुत ही उम्दा लेखन....बधाई..

    ReplyDelete
  32. बधाई हो आपको भी इस महीने के सारे त्यौहारों की। आपने बहुत सुन्दर लेख लिखा है। आप मेरे ब्लॉग पर आई उसका भी धन्यवाद। आपका हिंदी प्रेम देख कर सचमुच दिल गदगद हो गया। जिस पोस्ट पर आपने प्रतिक्रिया दी है, वह श्री जयशंकर मिश्र सव्य साची का है वे राम देव जी की पत्रिका योग-संदेश के संपादक हैं। आप उन्हे सीधे मेल करेंगी तो उन्हें ज्यादा अच्छा लगेगा। उनका ईमेल हैं jaishankermishra62@gmail.com ।

    आप अलसी जिसे आपके यहाँ फ्लेक्ससीड कहते हैं, जरूर खाना शुरू कर दीजिये। यह महान भोजन है। बहुत चमत्कारी है। मैं रोज इसके चमत्कार देखता हूँ। अलसी के बारे में अंग्रेजी में तो गूगल की गलियों में बहुत कुछ मिल जाता है लेकिन हिन्दी में मेरी साइट पर आपको बहुत कुछ मिल जायेगा। अलसी मैया की आरती तो आपने देख ही ली होती।
    अलसी वंदना

    आरती अलसी मैया की
    शशिधर रूप दुलारी की ।।
    स्वास्थ्य की देवी कहलाती
    भक्त की पीड़ा हर लेती
    मोक्ष के द्वार खोल देती
    शत्रु हो त्रस्त
    रोग हो ध्वस्त
    देह हो स्वस्थ
    दयामयी अनुरागिनी की
    शशिधर रूप दुलारी की ।।
    त्वचा में लाये कोमलता
    कनक जैसी हो सुन्दरता
    छलकता यौवन का सोता
    वदन में दमक
    केश में चमक
    बदन में महक
    मोहिनी नील कुमारी की
    शशिधर रूप दुलारी की ।।
    तुम्हीं हो करुणा का सागर
    कृपा से भर दो तुम गागर
    धन्य हो जाऊँ मैं पाकर
    तू देती शक्ति
    करूँ मैं भक्ति
    दिला दे मुक्ति
    उज्ज्वला मनोहारिणी की
    शशिधर रूप दुलारी की ।।
    ज्ञान और बुद्धि का वर दो
    तेज और प्रतिभा से भर दो
    ओम को दिव्य चक्षु दे दो
    न जाऊं भटक
    बिछाऊं पलक
    दिखादे झलक
    रुद्र प्रिय मतिवाहिनी की
    शशिधर रूप दुलारी की ।।
    क्रोध मद आलस को हरती
    हृदय को खुशियों से भरती
    चिरायु भक्तों को करती
    मची है धूम
    मन रहा घूम
    भक्त रहे झूम
    स्कंद मां पालनहारी की
    शशिधर रूप दुलारी की ।।

    और अलसी खाने वाली महिलाओं के लिए मैंने अलसी गीत भी लिखा है।

    चन्दन सा बदन चंचल चितवन
    धीरे से तेरा ये मुस्काना
    गोरा चेहरा रेशम सी लट
    का राज तेरा अलसी खाना.........
    तुझे क्रोध नहीं आलस्य नहीं
    तू नारी आज्ञाकारी है
    छल कपट नहीं मद लोभ नहीं
    तू सबकी बनी दुलारी है
    जैसी सूरत वैसी सीरत
    तुझे ममता की मूरत माना........
    तू बुद्धिमान तू तेजस्वी
    शिक्षा में सबसे आगे है
    प्रतिभाशाली तू मेघावी
    प्रज्ञा तू बड़ी सयानी है
    नीले फूलों की मलिका तू
    तुझे सब चाहें जग में पाना.......
    चन्दन सा बदन चंचल चितवन
    धीरे से तेरा ये मुस्काना
    गोरा चेहरा रेशम सी लट
    का राज तेरा अलसी खाना......

    ReplyDelete

अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए यहाँ लिखें