Saturday, 1 October 2011

केवल ज़िंदा इन्सानों को ही नहीं मुरदों को भी सुरक्षा की जरूरत होती है!!!


आप सभी को क्या लगता है इस बात में कितनी सच्चाई है। कहने को हम 21 वी सदी में कब का कदम रख चुके हैं। आज विज्ञान ने भी बहुत तरक़्क़ी कर ली है। इस सब के बावजूद भी आज भी हमारे देश का हाल वैसा ही है। अंधविश्वास की सोच को लेकर हमारे देश के लोगों में कोई ख़ासा परिवर्तन नहीं आया है और ना ही सुरक्षा व्यवस्था में, सुरक्षा न तो यहाँ ज़िंदा इन्सानों को नसीब है, ना बेचारे मरे हुए लोगों को खास कर हमारे देश के बच्चे ना तो जीवित रहते हुए सुरक्षित हैं। सच जब भी कभी ऐसे घटनाएँ पढ़ने या सुने मिलती हैं तो इतना गुस्सा आता है कि समझ ही नहीं आता क्या करो क्या न करो। जब भगवान इंसान बना रहा था, तब शायद कुछ इन्सानो के अंदर वह प्रेम ,दया, माफी ,और इंसानियत जैसे जज़्बातों को भावनाओं को डालना ही भूल गया इसलिए शायद इस धरती पर आज भी कुछ ऐसे इंसान है जो दिखते तो हैं इन्सानो जैसे मगर इंसान होने का उनमें कोई गुण शेष नहीं है। पता नहीं यह तांत्रिक लोग किस मिट्टी के बनने होते हैं जिन्हे छोटे-छोटे मासूम म्रत बच्चों पर भी दया नहीं आती। जिसके चलते देश में फैले अंधविश्वास के कारण मरणोपरांत भी उनकी क़ब्रें असुरक्षित हैं। आज कल के आतंकी दौर के चलते बच्चे की सुरक्षा पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह अब भी लगा हुआ है। आये दिन बच्चों के अगवा किए जाने की खबर या मासूम लड़कीयों के साथ दुर्व्यवहार किए जाने की ख़बरें आम हो गई हैं, वही अब मरे हुए बच्चों को भी लोग शांति से सोने नहीं देते। समझ नहीं आता क्या होगा हमारे देश का कब यहाँ इतनी जागरूकता आ पायेगी कि लोग अंधविश्वास से ऊपर उठ कर सोचना शुरू करेंगे। सच ही कहा था किसी ने कि
 "देख तेरे संसार कि हालत क्या हो गई भगवान,
 कितना बदल गया इंसान
आया समय बड़ा बेढंगा 
नाच रहा नर होकर बेढंगा"  

हालांकी हमारे देश में यह अंधविश्वास कि प्रथा कोई नई नहीं है। यह तो सदियों से चली आरही परंपरा के  जैसा रूप लेचुका है, मगर फिर भी,अब यह लगता है कि अब बस बहुत हो गया अब तो जागरूकता आनी ही चाहिए।     घटना राजस्थान स्थित कोटा ज़िले की है। यहाँ एक नवजात शिशु को मरणोपरांत बच्चों के कब्रिस्तान में दफ़नाया गया। दो दिन बाद जब उस मासूम बच्चे के माता पिता बच्चे के प्यार में व्याकुल आपने बच्चे की क़ब्र को देखने वहाँ पहुँचे तो वहाँ उन्होने देखा की उनके बच्चे की क़ब्र ख़ुदी हुई है और उसमें से शव गायब है। किसी जानवर ने शायद ऐसा किया हो सोचा कर उन्होने आस-पास की झाड़ियों में काफी तलाश की मगर उन्हें उनके बच्चे का शव नहीं मिला काफी देर खोज-बीन के बाद भी केवल निराशा ही हाथ लगी, शमशान के आसपास रहने वालों से भी जानकारी लेने के लिए पूछताछ की, लेकिन कोई कुछ नहीं बता पाया। वे मायूस होकर लौट गए। अकसर ऐसी घटनायें ज्यादा तर इन नवरात्रों के दिनों में ही सामने आती है। क्यूँकि बहुत से लोग जादू-टोना, मंत्र-तंत्र जैसी चीजों में मरे हुए बच्चों के शव का इस्तेमाल करते है और काम हो जाने के बाद उन शवों को जानवरों के हवाले कर दिया जाता है। सचमुच में भावनायें मर गई हैं।

इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या बात हो सकती है एक पढे लिखे और सभ्य समाज में रहने वालों के लिए कि आज श्मशानों की यह स्थिति है कि उनमें सुरक्षा के कोई इंतज़ाम नहीं हैं। इन्ही सब कारणों से कई बार शहरवासीयों की भावनायें आहत हो चुकी हैं, बावजूद प्रशासन इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रहा। शहरवासीयों का आरोप है कि तांत्रिक उपयोग के लिए लोग बच्चों के शव निकाल ले जाते हैं अथवा फिर जानवर उन्हें बाहर निकाल कर क्षत विक्षत कर देते हैं।

इन सब घटनाओं के चलते लोगों का कहना है कि ये व्यवस्थायें होनी चाहिए
  • चारदीवारी बनाई जाए और दरवाजे लगाकर सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई जाएं। 
  • सुरक्षाकर्मी तैनात किए जाएं।
  • बच्चों के श्मशान पर जालियां लगाई जानी चाहिए। 
  • बच्चों के श्मशान पर मिट्टी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे क़ब्र को ठीक प्रकार से भरा जा सके। 



34 comments:

  1. आपके विचारों से सहमत हूँ इस तरह के शर्मनाक कृत्यों पर रोक लगाने के उपाय किए ही जाने चाहिए।

    सादर

    ReplyDelete
  2. यह तो कभी सोचा ही नहीं था | बात तो आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं |

    ReplyDelete
  3. लोग और कितना गिरेंगे।

    ReplyDelete
  4. सबसे अच्छा तो यह है कि बड़ी आयु के शवों की भाँति बच्चों के शवों का भी अग्निसंस्कार ही किया जाए. यह हिंदू परंपरा के अनुकूल होगा. यदि इससे वनों आदि की कटाई की समस्या आती हो तो विद्युत प्रणाली से शवों को जलाया जाना बेहतर होगा.

    ReplyDelete
  5. वाकेई में बहुत ही शर्मनाक स्थिति है। आपके द्वारा सुझाव कारगर हैं।

    ReplyDelete
  6. आपके विचारों से पूर्णत: सहमत हूं ... ।

    ReplyDelete
  7. अचरज होता है कि ऐसे लोग भी हैं. मरने के बाद भी नहीं छोड़ते. न जाने तंत्र मंत्र में ऐसा क्या है जो ऐसे कृत्य करने को मजबूर कर दे..

    ReplyDelete
  8. शर्मनाक स्थिति ||

    बढ़िया प्रस्तुति ||

    बहुत-बहुत बधाई ||

    ReplyDelete
  9. AAP KA SOCHNA SAARTHK HAI, PRANTU
    SHAHR ME ZINDA BHEDIE GHUMTE HAI
    UNHE NA MURDON KA MUHAFIZ CHUNO

    ReplyDelete
  10. सही कहा आपने । हमारे अंध विश्वासों के रहते क्या जिन्दा , क्या मुर्दा --सभी असुरक्षित हैं । आदमी की नीच सोच के कारण आज इंसानियत शर्मसार हो रही है ।

    ReplyDelete
  11. ekmaatra hal yahi hai ki savo ka daah sanskar kiya jaye, waise
    mujhe iss post se George sahab yaad aa gaye, unhone sayad issi karan hamare desh ke sainiko ke liye karoro ke coffin mangwa liye the...!!

    smile nahi post karunga...kyonki lajjajanak baat hai!

    ek baat aur Pallavi tumhara blog sach me aam janta ke liye bahut sarthak blog hai!!

    ReplyDelete
  12. आप सभी पाठकों का बहुत-बहुत धन्यवाद.... कृपया यूं हीं संपर्क बनाये रखें।

    ReplyDelete
  13. अब क्या कहें इसपर? विद्युत शव दाह की व्यवस्था ठीक होगी शायद। और शैतानों का पालन-पोषण माने तांत्रिकों आदि का, हमारा समाज ही तो कर रहा है, तब उसे इन सबके लिए तैयार होना ही चाहिए। अब हम आम के पेड़ से लीची कैसे तोड़ना चाहते हैं। समस्या हमेशा जड़ से खत्म होनी चाहिए, तने से नहीं।

    ReplyDelete
  14. सही कहा आपने । हमारे अंध विश्वासों के रहते क्या जिन्दा , क्या मुर्दा सभी असुरक्षित हैं शर्मनाक स्थिति ,कृत्यों पर रोक लगाने के उपाय किए ही जाने चाहिए।

    ReplyDelete
  15. इन्सान अपनी इंसानियत ही भूलता जा रहा है ..

    ReplyDelete
  16. बेहद शर्मनाक !!
    अब तो आदमी मरने के बाद भी सुरक्षित नहीं रहा !!

    ReplyDelete
  17. जानकारी का धन्यवाद। भूषण जी का सुझाव इस समस्या का स्थायी हल बन सकता है।

    ReplyDelete
  18. बहुत सटीक और ज़रूरी विषय पर सार्थक आलेख है आपका .

    ReplyDelete
  19. शर्मनाक!
    आशीष
    --
    लाईफ़?!?

    ReplyDelete
  20. आपकी बात सही है.इसके लिए जितना हमारे समाज में व्याप्त अन्धविश्वास जिम्मेवार है ,उससे अधिक अशिक्षा जिम्मेवार है जिसके कारण अज्ञानता दूर नहीं हो पाती और ऐसी घटनाएँ होती हैं.आपका सुझाव भी सही है.लेकिन हमारे यहाँ कब्रगाहों को चाहरदीवारी से घेर कर रखने की बात शहरों तक ही सीमित है.इसके लिए लोगों में जागरूकता पैदा करना ही एक मात्र उपाय समझ में आता है.आपकी बातें गौर करने योग्य हैं.यह समाज से जुड़ा एक अहम् मुद्दा है.
    .

    ReplyDelete
  21. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो
    चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

    ReplyDelete
  22. विचारणीय पोस्‍ट।
    सच में मानवता को कलंकित करने का काम अक्‍सर खबरों में आते रहता है।
    इससे बचाव के तरीके भी आपने सुझाए।
    आभार.....

    ReplyDelete
  23. अक्सर गांवों में मैने बच्चों के शव के साथ तांत्रिक क्रिया करके उन्हे "चटिया-मटिया" बनाने के बारे में सुना है। यह अंधविश्वास है या हकीकत इसका परीक्षण करके तो देखा नहीं, पर इस विषय पर शीघ्र ही एक पोस्ट लिखुंगा।

    आभार

    ReplyDelete
  24. क्या कहा जाये..इन्सान का क्रूरतम रुप....शर्मनाक!! विचारणीय आलेख..

    ReplyDelete
  25. सही बात है अन्धविश्वास से मुर्दा और जिन्दा कोई भी सुरक्षित नहीं है.
    गंभीर आलेख.

    ReplyDelete
  26. बहुत ही शर्मनाक स्थिति है।...विचारणीय आलेख..

    ReplyDelete
  27. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  28. जितना सुन्दर आपका ब्लॉग है.आपकी सोच भी उतनी ही सुन्दर है.
    आपकी बात सही है.इसके लिए जितना हमारे समाज में व्याप्त अन्धविश्वास जिम्मेदार है.उससे अधिक अशिक्षा जिम्मेदार है

    ReplyDelete
  29. बात सही है। जबतक हम खुद जागरुक नहीं होंगे...समाज बदलेगा नहीं.... न ही इस तरह की घटनाएं....

    ReplyDelete
  30. ओह :( बहुत ही अफसोसजनक...इतना क्रूर कैसे हो सकता है इंसान?

    ReplyDelete
  31. बहुत अच्छा विषय उठाया है..हद्द है बहशीपन की.

    ReplyDelete
  32. aur saath mai ek guard gun le kar rehna chaiye ,
    jo bhi kabr se chori karta hua mile foran usko goli maar k wahi par uski bhi kabr bana di jaaye tabhi aisa karney waalo k mann mai darr hoga aisa ganda kaam na karney ka ...

    ReplyDelete

अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए यहाँ लिखें