कभी-कभी कुछ बातों के लिए कैसे समय गुज़र जाता है पता ही नहीं चलता और कभी-कभी कुछ बातों को लेकर ऐसा लगता है, जैसे वक्त चल नहीं रहा रेंग रहा है। कुछ बातों में मन करता है बस वक्त यही थम कर रह जाये और हम सारी ज़िंदगी उस एक क्षण में गुज़ार दें। वक्त के बारे में भी जब कभी गहनता से सोचो तो बस विचार आपस में उलझते ही चले जाते है। वक्त जिसने सदियाँ देखी हैं, हर अच्छा बुरा पल देखा है इस आधार पर ज़िंदगी को देखने में वक्त से ज्यादा अच्छा अनुभव और किसी का नहीं हो सकता न काश वक्त के अनुभवों से भी हम कुछ सीख पाते तो शायद आज हम कहीं और ही होते। शायद इस दुनिया का नक्शा भी कुछ और ही होता। मगर हम तो उन में से हैं। जिन्हें वक्त की कद्र करना आता ही नहीं, तभी तो हम अपने अनुभवी बुज़ुर्गों की भी कद्र नहीं कर पाते।
खैर हम बात कर रहे थे वक्त की बचपन से लेकर ज़िंदगी में आने वाले हर एक पल में बस यही क्रम चला करता है। कभी किसी मोड़ पर उत्सुकता तो कभी बेहद निराशा। अब जैसे मेरे बेटे को ही ले लीजिये अभी 8 जनवरी को उसका जन्मदिन था। जिसके लिए वह इतना ज्यादा उत्साहित था कि रात भर उसे नींद ही नहीं आयी। सोचिए ज़रा मात्र 8 साल का बच्चा और खुशी के मारे उसकी नींद उड़ गई थी। रात को उठ-उठ कर पूछा उसने सुबह हो गई क्या न वो खुद सोया, न उसने हमे ही सोने दिया। उस वक्त मुझे उसकी खुशी, उत्सुकता, उतावलापन, देखकर बहुत हंसी आ रही थी और साथ ही यह भी याद आ रहा था, कि शायद हम भी बचपन में अपने जन्मदिन को लेकर इतने ही उत्साहित होते होंगे जितना की वह है। हालांकि इस बार हम उसका जन्मदिन पहले की तरह बहुत धूम-धाम से नहीं मना सके क्यूंकि यहाँ उसके ज्यादा दोस्त ही नहीं है और अंग्रेजों के बच्चे हिंदुस्तानियों के घर आना पसंद नहीं करते। इस वजह से यह तो पहले ही तय था कि इस बार उसके जन्मदिन पर किसी को बुलाया नहीं जाएगा तब भी उसका उत्साह कम नहीं था।
सुबह से उसने एक ही बात की ज़िद पकड़ रखी थी, कि बस सुबह ही केक काट लो और मुझे मेरे उपहार दे दो बस, और किसी चीज़ से मुझे मतलब नहीं है। बड़ी मुश्किल से हम लोगों ने शाम के 4 बजाए क्यूंकि सुबह से सबके फोन आ रहे थे और उस दिन काम भी बहुत था। साहबज़ादे की पसंद के पकवान जो बनाने थे मुझे, हुकुम तो पूरा करना ही था। जिसके चलते उस दिन सुबह केक काट पाना संभव ही नहीं था, मगर उसने ऐसी ज़िद पकड़ी थी कि मेरे तो कान पक गए थे सुन-सुन कर, कि मम्मा मैं पहले उपहार खोल लूँ, फिर केक काट लूँगा। सच्ची ऐसे वक्त में लगता है यह वक्त चल क्यूँ नहीं रहा है। घड़ी रुकी हुई सी नज़र आने लगती है और जब परिस्थितियाँ विपरीत हों तो लगता है इतनी जल्दी क्या है इस वक्त को, जो भागा चला जा रहा है जैसे जब छुट्टियों में किसी के घर जाते हैं तब समय का पता ही नहीं चलता और घर वापसी का दिन आ जाता है। तब ऐसा ही लगता है, अभी तो आए थे। इतनी जल्दी वापस घर लौटने का समय भी हो गया। रोज़-रोज़ किसी न किसी बात को लेकर रुकते चले वक्त के अनुभव लगभग रोज़ ही होते हैं।
आपको क्या लगता है घर का काम करते वक्त या फिर ऑफिस का काम करते वक्त आपको भी ऐसा ही अनुभव होता होगा न किसी काम में मन लग गया तो पता ही नहीं चला कब सुबह से शाम हो जाती है। वरना सारा दिन बस घड़ी देख-देख कर ही गुज़रता है कि अब 1 बाजा है अब 2 अब 3 ...है ना लगता है जैसे तैसे शाम हो और दिल से निकलता है "सुबह से यूं हीं शाम होती है उम्र यूं ही तमाम होती है"। जैसे अक्सर कामकाजी महिलाओं को लगता है घर पर पूरा दिन कैसे बिताएँगे यार...उफ बहुत ही बोरिंग और असंभव काम है घर बैठना, रोज़ का वही काम ज़िंदगी में बहुत कुछ है करने के लिए, छुट्टी का नाम सुनकर ही उनको बुखार आजाता है. और मुझ जैसी ग्रहणी को घर पर रहकर भी आने वाली छुट्टियों का इंतज़ार रहा करता है। ऐसे ही कभी तब भी लगा करता था। जब हम विद्यार्थी हुआ करते थे, खास कर परीक्षा के समय जब पर्चा लिखने की नौबत आती थी, तब 3 घंटे भी कम लगते थे और परीक्षा के वक्त ऐसा लगता था और कितने लम्बे समय तक चलेंगे, यह पर्चे तब पापा अक्सर समझाते थे। बेटा हाथी निकल गया है पूँछ बाकी है, यह भी निकल ही जाएगी हा हा हा
उस दौरान ऐसा लगता था कब परीक्षा से छुटकारा मिले कब छुट्टियाँ आयें और कब जल्दी से कहीं घूमने जाने का मौका मिले।
ज़िंदगी में ऐसे ना जाने कितने ऊंचे नीचे पल आते जाते हैं
जब ऐसे अनुभवों से हम गुजरते हैं।
कुछ अनुभव अच्छी सीख देकर जाते हैं
तो कुछ बुरी भी, फिर भी हम
बहुत कम कुछ सीखकर
उसे अपनी वास्तविक ज़िंदगी में अपना पाते है
इस दौरान ना जाने कितने लोग
हमारे जीवन में आते हैं, चले जाते है
और ज़िंदगी एक रेल की तरह
वक्त कि पटरी पर दौड़ती चली जाती है
जिसमें खिड़की से बाहर देखने पर लगता है
जैसे सब कुछ पीछे छूटता चला जा रहा है
और ज़िंदगी बस रेल के स्टेशन की तरह
पड़ाव दर पड़ाव पार करके आगे ही चलती चली जा रही है
सारे रिश्ते-नाते यार-दोस्त अपने-पराये
सब पीछे छूट जाते हैं
जिसे वक्त देख रहा होता है।
और शायद जब ज़िंदगी का आखरी
स्टेशन आता होगा
तब हो न हो वक्त सवाल पूछता ज़रूर होगा
कि तुमने इस ज़िंदगी नुमा रेलगाड़ी के सफर में
क्या "खोया क्या पाया"
जो अब तुम किसी बात पर अफसोस करते हो
या खुश होते हो,
तुम खाली हाथ ही आए हो, मैंने देखा था
और खाली हाथ ही यहाँ से जाओगे
हाँ फर्क सिर्फ इतना है कि
जब तुम इस दुनिया में आए थे
तब तुम्हारी अपनी कोई इच्छा नहीं थी
खुशी और ग़म का तुम्हें एहसास नहीं था
मगर अब जब तुम इस दुनिया से जाओगे
तब ज़रूर तुम अपने साथ कुछ मीठी यादें तो कुछ कडवे अनुभव लेकर जाओगे
क्यूंकि इसी का नाम ज़िंदगी है और शायद वक्त और ज़िंदगी एक ही सिक्के के दो पहलू है.....
- पल्लवी
जन्मदिन को लेकर कुछ ऐसा ही उन्माद होता है बच्चों में।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteGyan Darpan
..
सर्वप्रथम जन्म-दिन की प्यार भरी शुभकामनायें कहिएगा.इस बहाने आलेख वक़्त से आत्मीय मुलाकात कर गया वरना वक़्त के बारे में सोचने का वक़्त कहाँ मिलता है.
ReplyDeleteबचपन ..जीवन का अभिन्न हिस्सा होता है , जितना उत्साह , इस उम्र में होता है अगर वही उत्साह और भोलापन हम जीवन भर वैसा ही रख पाए तो जीवन जीने का आनंद ही आ जाये ...आपके बेटे को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं ......!
ReplyDeleteतुम खाली हाथ ही आए हो, मैंने देखा था
ReplyDeleteऔर खाली हाथ ही यहाँ से जाओगे
हाँ फर्क सिर्फ इतना है कि
जब तुम इस दुनिया में आए थे
तब तुम्हारी अपनी कोई इच्छा नहीं थी
खुशी और ग़म का तुम्हें एहसास नहीं था
मगर अब जब तुम इस दुनिया से जाओगे
तब ज़रूर तुम अपने साथ कुछ मीठी यादें तो कुछ कडवे अनुभव लेकर जाओगे
क्यूंकि इसी का नाम ज़िंदगी है
बिल्कुल सही कहा है आपने, जन्मदिन का उत्साह बच्चों में बेहद होता है ... साथ में उपहार खोलकर देखने का .. किसने क्या दिया ..
ReplyDeleteशुभकामनाओं सहित बधाई ।
जन्मदिन की शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteआशीर्वाद!
:) janmdin maran din sabka apna utsaah.aur sabke apne anubhav...sach hai mere papa bhi ase hi samjhte the exam time me....
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रवारीय चर्चा मंच पर
charchamanch.blogspot.com
जन्म दिन के मामले में तो खैर सभी बच्चे एक से होते हैं.हाँ रही समय की बात तो एक और चीज़ है जिसमें समय का पता ही नहीं चलता ...न दिन होती है न रात..और वो है "ब्लोगिंग " :):)
ReplyDeleteआज -कल बच्चे जन्मदिन को लेकर काफी उत्साह में रहते हैं ...एक तरह से अच्छा भी लगता है ,उनके साथ -साथ हम भी आनंदित हो जाते हैं .आपके बेटे को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं ....
ReplyDeleteदोस्त को जन्मदिन की हार्दिक बधाई। (belated)
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपका यह आलेख।
सादर
आपको लोहड़ी हार्दिक शुभ कामनाएँ।
ReplyDelete----------------------------
कल 13/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
इसीलिए लगता है --हम भी अगर बच्चे होते !
ReplyDeleteवक्त भी जैसे गियर बदलता है ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteजन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जन्मदिन की बहुत२ बधाई शुभकामनाए,....
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,आलेख अच्छा लगा,....
ReplyDeletewelcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार।
ReplyDeleteलोहड़ी की शुभकामनाएं।
दोस्त को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं ......!
ReplyDeleteएक अच्छे भाव की सफल प्रस्तुति - सुन्दर
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
बिलकुल जी .. वक्त वक्त की बात है ... बेटे को जन्मदिन की शुभकामनायें .. जिंदगी का फलसफा अच्छा लगा .
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपके blog पर आना हुआ.
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट,
लोहड़ी की ढेर सारी शुभकामनायें
जन्मदिन उपहारों, पकवानों और धूम-धमाल का संगम होता है. बच्चों के लिए यह दिन किसी त्योहार से कम नहीं होता. हमारे नन्हें मित्र को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeleteआप सभी आदरणीय पाठकों और मित्रों को मेरे बेटे के जन्मदिन पर आशीर्वाद और शुभकामनयें देने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार... :)
ReplyDeleteकल 14/1/2012को आपकी पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
आजकल बच्चें के जन्मदिन को इतना महत्व दिया गया है कि उसके लिए वही सबसे बड़ा त्योहार बन गया है। इसलिए सभी बच्चों को इतनी उत्सुकता रहती है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बेटे के जन्म दिन की बहुत२ बधाई सस्नेह प्यार
ReplyDeletenew post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
बेहतरीन काव्यमयी अबिव्यक्ति , मुबारकबाद्।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteisi ka to naam zindagi hai...
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसही कहा आपने, वक्त और जिंदगी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
ReplyDeleteवक्त की बात ही निराली है, कभी धीमा चलता है और कभी तेज !
बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट " हो जाते हैं क्यूं आद्र नयन पर ": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .
ReplyDeletewaqt aur zindgee
ReplyDeleteek gaadi doosraa pahiyaa
sahee kahaa aapne
sachmuch..........ek bahaav sa ...bahaa le gaya apne sang...is bhaavpoorna prastuti ke liye aabhaar
ReplyDeleteबेटे को जन्म-दिन की ढेर सारी बधाईयाँ। बहुत समय बाद देखा ब्लॉग अच्छा लगा आपका लेखन। धन्यवाद आपने अपने ब्लॉग का लिंक दिया मै नई-पुरानी हचल पर रविवार की हलचल में इसे अवश्य लूँगी।
ReplyDeleteशानू
बच्चे कब बडे हो जाते पता ही नहीं चलता... बडे हो जाते है, शादीशुदा हो जाते हैं.... तब अहसास होता है कि हम बूढे हो जते हैं॥
ReplyDeletebadhiya aalekh.... aapke bete ko janm din kee shubhkaamnaayen
ReplyDeleteबेटे को जन्म दिन की बधाई। मुझे तो अपना बचपन याद आ गया।
ReplyDeleteहमारा बचपन इसी रूप में लोटकर आता है. और हम पूरे होशो हवाश में उसका दुवारा लुफ्त उठा सकतें हैं. यदि हम बोअरिंग हो रहे तो लाइफ में तो एक नए आनंद का अनुभव कर सकतें हैं आध्यात्म की दुनिया में उतर कर.
ReplyDeleteकुछ तकनिकी खराबी के कारण शारदा जी यहाँ कमेंट नहीं कर पा रहीं थी तो उन्होने अपना कूमेंट मेल द्वारा भेजा है।
ReplyDeletePallvi ji ,
itne pyaar se bulane ka shukriya , aapke blog par comment nahi kar pa
rahi hoon ..khud hi post kar leejiye , lekh achchhha lagaa , jaise
khud se baate karte subah se sham ho jaaye ...bas padhate padhte kab
khatm ho gaya ...pata nahi chala ...ye khyaal aaya ki koi lauta de
meri vo hi arunima ....
बेटे के जन्म दिन पर बहुत बहुत हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट और कविता पढते हुए अंत आ गया ,पता ही नही चला.
सुन्दर रोचक प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
'हनुमान लीला -भाग ३'प्रकाशित की है.
सच में वक़्त की बात है ही , इस लेख के बहाने बहुत सटीक सा भी कह दिया आपने ...बेटे को शुभकामनायें, स्नेह .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर काव्यमई प्रस्तुति, सुंदर रचना,..बधाई
ReplyDeletenew post...वाह रे मंहगाई...
पल्लवी जी,आपकी प्रस्तुति को सुनीता जी की हलचल में देखकर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति का अंदाज निराला है जी.
आभार.
आपका मेरे ब्लॉग पर इंतजार है.
पल्लवी जी सबसे पहले तो आपके बेटे को बहुत स्नेह और देर से ही सही जन्मदिन की बधाईयाँ. आपने तो इस लेख में दिल की बात ही लिख डाली हैं. ऐसे अनुभव हम सभी जीवन के विभिन्न चरणों में होता है. कविता में भी गज़ब के भाव हैं.
ReplyDeleteआज 22/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति मे ) पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
Vah Pallvi ji behad akarshak post .....badhai.
ReplyDeleteधन्यवाद दोस्तों एक बार फिर आप सभी आदरणीय पाठकों एवं मित्रों को मेरे बेटे के जन्मदिन पर आशीर्वाद और शुभकामनायें देने के लिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया... कृपया यूं ही संपर्क बनाये रखें... आभार :-)
ReplyDelete"samay aur shabd" insan ke shikaari hain---Kurratul-ain-hyder.
ReplyDeleteaapne theek likha hai..samay ba syunhi guzarat jata hai aur ek din aisa aata jab ham bache khuche lamhon ka hisaab lagaane baithte hain ki kitna nafa hua aur kitna nuksaan..
अरे मैंने तो विश भी नहीं किया...:( अगर एक महीने बाद भी बिलेटेड बर्थडे
ReplyDeleteएप्लीकेबल है तो 'बिलेटेड हैप्पी बर्थडे' :) :)
वैसे मुझे तो याद है की कभी कभी जन्मदिन की इक्साइट्मन्ट मुझे भी इतनी रहती थी की
रात भर नींद ही नहीं आती थी, एक अलग ही फिलिंग थी वो..:):)
एक और बात याद आ गयी इस पोस्ट से,
ReplyDeleteअंतिम इम्तिहान के वक्त भी मुझे बड़ी इक्साइट्मन्ट रहती थी,
मुझे जल्दी जल्दी अपने पेपर खत्म कर के बाहर निकलने की उत्सुकता रहती थी...शायद येही एक कारण है की हर अंतिम इम्तिहान में मेरे नंबर भी ज्यादा अच्छे नहीं आते थे, एक दो पेपरों में अच्छे नंबर आ भी गए थे..
पुरे इंजीनियरिंग में बस दो पेपर ऐसे थे जिनमे मैं पुरे तीन घंटे बैठा हूँ...मुझे हमेशा तीन घंटे बहुत ज्यादा लगते थे..दो या हद से हद ढाई घंटे में मैं पेपर खत्म कर दिया करता था..
(नोट:इसका ये मतलब नहीं की मैं बहुत अच्छा विद्यार्थी था..ना तो मैं अपने ब्रांच का टॉपर था न ही कोई इंटेलीजेन्ट छात्र...:) )
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
ReplyDeleteऔर बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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