Monday 25 June 2012

अपेक्षा (Expectation)



Expectation                                          

Expectation अर्थात अपेक्षा नाम में ही बहुत वज़न है सुनकर ही किसी बड़ी सी चीज़ की आकृति उभरती है आँखों में, है न !!!! वैसे मुझे ऐसा लगता है कि यह एक प्रकार का कीड़ा है जो चाहे अनचाहे हर इंसान को काटता ही रहता है। हालांकी यह कुछ इस प्रकार की बात है, जैसे एक बीमारी के कई सारे लक्षण होते है। वैसे ही यह अपेक्षा नाम के कीड़े के काटने पर इस से होने वाली बीमारी का असर हर बार अलग-अलग व्यक्ति के साथ अलग-अलग देखने को मिलता है। जैसे बच्चों की माता-पिता से, माता -पिता की बच्चों से, अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग अपेक्षाएँ होती है, विद्यार्थी की शिक्षक से, शिक्षक की विद्यार्थियों से भी एक अलग तरह की अपेक्षा होती है। ऐसे ही समाज में हर व्यक्ति की हर किसी दूसरे व्यक्ति से एक अलग प्रकार की अपेक्षा रहा करती है। कभी स्वाभाविक तौर पर, तो कभी जाने अंजाने भी यह कीड़ा काट लेता है। कभी-कभी सोचती हूँ तो लगता है वाकई इस संसार में यदि यह अपेक्षा नाम का कीड़ा न होता तो शायद इस संसार में सभी बहुत सुखी होते नहीं ? 


अक्सर आप लोगों ने भी खुद कई बार देखा होगा और हो सकता है महसूस भी किया होगा कि जब कभी हमको यह कीड़ा काटता है जिसके चलते हम सामने वाले से कोई अपेक्षा रखने लगते है और जब वो अपेक्षा पूरी नहीं होती तो मन बहुत दुःखी हो जाता है। इस तरह हम से भी जब कोई अपेक्षा रखता है और हम भी उसे किसी कारण पूरा नहीं कर पाते तो, हमको भी बुरा लगता है और उसको भी जिसने अपेक्षा रखी। कई बार यूँ भी होता है कि अपेक्षा रखने वाला तो हमेशा हर बात में अपेक्षा रखता है मगर जिससे वो अपेक्षा रख रहा होता है, उस दूसरे इंसान को यह खबर तक नहीं होती कि मुझ से किसी को उससे कोई अपेक्षा हो भी सकती है। हालाँकि अपेक्षा का होना, विषय और परस्थिति पर निर्भर करता है। मगर फिर किसी भी कारणवश यदि कोई किसी की अपेक्षा पूरी नहीं कर पाता या किसी की अपेक्षा पूरी नहीं हो पाती तब इंसान से चाहे अनचाहे किसी न किसी दूसरे व्यक्ति की भावनायें आहत हो ही जाती है।

वैसे तो यह एक प्रकार का मनोभाव है इसके बिना भी जीवन अधूरा सा ही है, क्यूंकि कई बार जीवन में कुछ बड़ा कर देखने या सफलता हांसिल करने के पीछे भी अपने आप से जुड़ी किसी अपने की अपेक्षा का बहुत बड़ा हाथ होता है। जो हमे जीवन में आगे बढ़ने के लिए बहुत प्रोत्साहित करता है। मगर कभी इस सोच के विपरीत जाकर सोचो तो ऐसा लगता है कि अगर यह भावना नहीं होती तो कोई किसी कि भावनाओं को आहत नहीं पहुँच सकता था। तो शायद सभी सुखी होते क्योंकि मेरा ऐसा मानना है कि किसी भी इंसान को जितना दर्द एक चाँटे से होता है उसे कहीं ज्यादा दर्द उसको उसकी भावनाओं को ठेस पहुंचने के कारण से होता है। बहुत ही अजीब तरह की या यूँ कहिए कि एक अलग क़िस्म की फ़ितरत है यह इंसान की, जिसमें अधिकतर सामने वाला यह चाहता है कि जिस दूसरे इंसान से उसे अपेक्षा है, वह इंसान बिना कहे ही उसकी बात समझ जाये और बस बिना बोले, बिना कुछ कहे, वो उसकी सारी अपेक्षाओं को पूरा करता चला जाये, मगर हर बार ऐसा कहाँ हो पाता है। कभी-कभी किसी विषम परस्थिति में अपेक्षाओं को समझना आसान भी होता है, तो कभी बहुत मुश्किल भी और ऐसे हालातों में जब किसी की अपेक्षाएं टूटती हैतो ऐसा लगता है, अब तो सब खत्म, अब कुछ बचा ही नहीं।  

वैसे तो यहाँ में इस विषय पर कोई महिला या पुरुष की बात करना नहीं चाहती इसलिए मैंने शुरू में ही इंसान शब्द का प्रयोग किया मगर अपने ब्लॉग परिवार में ज्यादातर काव्य रचना पढ़ने पर, मुझे ऐसा महसूस हुआ कि महिलाओं को पुरुषों से बहुत ज्यादा अपेक्षा होती है जो उनकी लिखी रचनाओं में साफ दिखाई देती है। यहाँ तक की मेरी खुद की रचनाओं में भी आपको ऐसा ही नज़र आयेगा। मगर इसका मतलब यह नहीं कि पुरुषों में अपेक्षाएँ कम होती है। उनमें भी बहुत होती है। मगर बहुत हद तक वह बोल दिया करते हैं, कि उनकी अपेक्षा क्या है अर्थात मन में बहुत कम रखते हैं। मगर महिलायें बोलती नहीं, सिर्फ चाहती है कि उनकी अपेक्षाओं को बिना बोले समझने वाला ही सच्चा जीवनसाथी या दोस्तमित्र जो भी कह लीजिये इंटोटल वही होता है, जो बिना बोले उनकी भावनाओं को समझ जाये। जो नहीं समझ सकता, वो किसी भी तरह के प्यार के क़ाबिल ही नहीं, मैंने कहीं पढ़ा था किसी लेखिका ने लिखा था प्यार करना लड़कों को बहुत अच्छे से आता है, इसलिए वो बार-बार प्यार करते है। मगर प्यार निभाना केवल एक लड़की को आता है इसलिए वो प्यार एक ही बार करती है।

लेकिन क्या प्यार से ही निभ जाती है ज़िंदगी प्यार भी तो एक तरह की अपेक्षा बन गया है आज के युग में “एक हाथ दे तो दूजे हाथ ले” जबकि प्यार तो मन की वो भावना है जिसमें अपेक्षा के लिए तो कोई स्थान ही नहीं है। मगर आज कल के बदलते परिवेश ने शायद हर चीज़ के मायने बदल दिये है यहाँ तक के भावनाओं के भी... 

खैर हम तो बात कर रहे थे अपेक्षा की तो ऐसा क्यूँ होता है, क्यूँ हम हमेशा अपने से जुड़े लोगों से और लोग हम से इतनी अपेक्षा रखते है। कभी छोटी तो कभी बहुत बड़ी अपेक्षाएँ क्या बिना किसी से कोई अपेक्षा रखे जीवन जिया नहीं जा सकता मैं खुद कई बार कई परिस्थितियों में यह सोचती हूँ कि मेरी ही गलती थी मुझे ही कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए थी। क्यूँ अपेक्षा रखी मैंने सामने वाले व्यक्ति से, कि वो मेरी भावनाओं को समझेगा आज नहीं तो कल तो ज़रूर समझेगा। मगर हर बार वो समझता ही नहीं कि मैं क्या चाहती हूँ। क्यूँ मौक़ा दिया मैंने उसे अपनी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का, अपनी भावनाओं से खेलने का, इसे तो अच्छा था कि मैंने कोई अपेक्षा की ही ना होती। तो इतना दर्द तो नहीं होता कम से कम "न रहता बाँस न बजती बाँसुरी" मगर यह मन जो है यह मानता ही नहीं है। ना चाहते हुए भी कभी-कभी यह अपेक्षा का कीड़ा काट ही जाता है मुझे और शायद हर इंसान को भी, मगर इस बेमुरौवत मन को कौन समझाये और पता है, इसे भी ज्यादा अफ़सोस तो तब होता है मुझे, जब रोज़मर्रा की छोटी-छोटी चीजों को लेकर मन एक आस एक उम्मीद लगा बैठता है, वो उम्मीद जिसके विषय में खुद पता है कि पूरी नहीं होगी या हो भी गयी तो उसके पूरा हो जाने से कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं, बस “दिल बहलाने के लिए गालिब ख़्याल अच्छा है” जैसी बात है कि चलो इतना तो समझा है सामने वाला हमें और क्या चाहिए।


ठीक इसी तरह जब हमसे अपेक्षाएँ रखी जाती है तो कभी हम उनको पूरा करने की जी तोड़ कोशिश करते है, तो कभी हमें पता ही नहीं होता। तो कभी-कभी अपने-अपनों कि हम से जुड़ी अपेक्षों को पूरा करते–करते हमारी पूरी ज़िंदगी गुज़र जाती है। खास कर एक लड़की की ज़िंदगी तो अपनों की अपेक्षाओं को पूरा करते-करते ही गुजरती है। मगर कभी तारीफ के दो बोल सुनने को नहीं मिलते। तब ऐसा लगने लगता है, कि गला काट कर भी रख दो, तो भी सामने वाले के मुंह से यह कभी सुनने को नहीं मिलेगा कि हाँ बहुत अच्छा किया। उसमें भी नुक्स निकाल दिये जाएँगे यह ऐसा है तो अच्छा है। मगर यदि वैसा होता तो और भी ज्यादा अच्छा होता। हर इंसान की सबसे बड़ी अपेक्षा क्या होती है। सिर्फ यही कि लोग उसे करीब से समझे कि वो क्या है, कैसा है। खास कर वो इंसान जिसे आप अपना सबसे करीबी मानते हो। फिर वो इंसान किसी कि भी ज़िंदगी में कोई भी हो सकता है माँ, बहन भाई, दोस्त सहेली जीवनसाथी कोई भी, फिर चाहे वो महिला हो या पुरुष मगर अफसोस की लोग खुद को ही पूरी तरह नहीं समझ पाते तो दूसरों क्या समझेंगे। 

अन्तः बस यही कहूँगी कि खुश नसीब है वो "जिनको है मिली यह बहार ज़िंदगी में" क्योंकि हर किसी को नहीं मिलता यहाँ प्यार ज़िंदगी में अर्थात जिनको ऐसा कोई ,रिश्तेदार, दोस्त या जीवनसाथी मिला जो उनको पूरी तरह समझ सके। वो बहुत खुशनसीब है।  
आप सभी को क्या लगता है, है कोई इलाज इस कीड़े का? कि इसके काटने पर भी इसके जहर का असर हम पर ना हो या हो भी तो बहुत कम ....                         


29 comments:

  1. बहुत बढ़िया |
    विस्तृत विवेचना ||

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  2. वाह ... बहुत ही अच्‍छा विश्‍लेषण किया है आपने ... बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. expectation is the mother of sorrow ...

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २६/६ १२ को राजेश कुमारी द्वारा
    चर्चामंच पर की जायेगी

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  5. आपेक्षा रखना इंसानी कमजोरी है ... और खास के अगर कुछ किया हो किसी के लिए तो वो तो वैसे भी आपेक्षा रहता ही है ...
    इसका इलाज ऋषि मुनि के पास तो हो सकता है इंसान के पास शायद मुश्किल है ...

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  6. दिल तो जलता है अपेक्षा की उपेक्षा होने पर .
    लेकिन इसके बगैर जिंदगी चल भी नहीं सकती .

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  7. कहते है उम्मीद पर तो दुनिया कायम है हम दूसरो से उम्मीदे रखते है तभी तो शायद जीवित है | पत्निया पति के कहने से पहले ही उनकी सारी उम्मीदे पूरी कर देती है बची हुई हक़ से कह कर पति पुरा करा लेते है जबकि इस मामले में पत्निया शुरू में ही सोच लेती है की क्या फायदा कहने से पूरी होने वाली नहीं है :) लेकिन समस्या ये है की जब तक आप कहेंगी नहीं तब तक पता कैसे चलेगा की आप की उम्मीद क्या है तो बोलिये और अपनी उम्मीदे भी हक़ से उनसे पूरी करवाइए जो आप के अपने है |

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  8. अपेक्षा जिनसे हो उनकी उपेक्षा भाती नहीं है

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  9. अपेक्षा दुखो की जननी है ...क्या वाकई..पर अगर ये नहीं तो फिर क्या जिंदगी है???.फिर तो न दुःख ..न ही सुख..

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  10. पल्लवी बिटिया, इस समस्या को गीतों के माध्यम से सुलझाने की कोशिश करता हूँ.

    ‘वफ़ा जिनसे की बेवफ़ा हो गए.....’ यह अपेक्षाएँ पूरी न होने की एक स्थिति है.

    ‘दिल को है तुम से प्यार क्यों यह न बता सकूँगा मैं.....’ इसमें अपेक्षाओं को परिभाषित न कर पाने की स्थिति है.

    ‘तू है हरजाई तो अपना भी यही तौर सही, तू नहीं और नहीं, और नहीं, और सही.....’ यह अपेक्षाएँ पूरी न होने पर अपेक्षाओं का नया आधार ढूँढने की स्थिति है.

    ‘टूटे न दिल टूटे न, साथ हमारा छूटे न.....’ यह अपेक्षाओं की उफनती नदी है.

    ‘छोड़ कर तेरे प्यार का दामन, ये बता दे के हम किधर जाएँ.....’ यह अपेक्षाओं की बाढ़ है.

    अपेक्षाओं से बचना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है.....ऐसा अपेक्षा नाम का 'डॉन' स्वयं कह गया है :))

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  11. एक दम सही कह रहे हैं अंकल आप :-) अब डॉन की बात तो माननी ही पड़ेगी॥

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  12. आज के युग में “एक हाथ दे तो दूजे हाथ ले” जबकि प्यार तो मन की वो भावना है जिसमें अपेक्षा के लिए तो कोई स्थान ही नहीं है। मगर आज कल के बदलते परिवेश ने शायद हर चीज़ के मायने बदल दिये है यहाँ तक के भावनाओं के भी,,,,,,


    बहुत ही अच्‍छा विश्‍लेषण,, बेहतरीन प्रस्‍तुति,, ।


    RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,

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  13. अपेक्षा राह बने, अंगार न बन जाये..

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  14. अपेक्षाएं हमें आपस में जोड़ती भी हैं और तोड़ती भी हैं..... बढ़िया विवेचन

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  15. अपेक्षा हमें चुनौती देती है। फिर हम और सक्रिय होते हैं उस लक्ष्य के प्रति।

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  16. सुंदर सुगढ़ विश्लेषण किया है आपने...
    सादर।

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  17. अपेक्षाएं दुखों का कारण है जब वे पूरी नहीं होतीं...लेकिन अपेक्षाओं से दूर रहना भी आम व्यक्ति के लिये संभव नहीं...बहुत सार्थक विश्लेषण....

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  18. अपेक्षाओ पर खरे उतरने के लिए दृढ निश्चयी होना भी अति महत्वपूर्ण है .

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  19. अपेक्षा रखना इन्सान की एक बड़ी कमजोरी है.. इससे बचने की कोशिश रहनी चाहिए...

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  20. मैं अक्‍सर कहती हूँ कि अपेक्षा नहीं रखने पर वह उपेक्षा में बदल जाती है। इसलिए अपेक्षा रखनी भी चाहिए लेकिन स्‍वयं को संतुलित भी रखना चाहिए।

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  21. अपेक्षाएं जरूरी भी हैं लेकिन कभी कभी बहुत खतरनाक भी होती हैं..
    मैं खुद भोग चूका हूँ, की अपेक्षाओं का बोझ कितना भारी होता है और वो आपके सामने कैसी मुश्किलें खड़ा करता है..
    बहुत ही बढ़िया पोस्ट है पल्लवी जी! :)

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  22. बढिया अनुभव है ऐसे ही बांटते रहिये

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  23. अपेक्षा उतनी ही हो जो कोई पूरा कर सके .... अत्यधिक अपेक्षा सम्बन्धों में दरार डालती है ... भारत भूषण जी ने बहुत अच्छे से समझा दिया है :):)

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  24. http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_696.html

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  25. है कोई इलाज इस कीड़े का? कि इसके काटने पर भी इसके जहर का असर हम पर ना हो या हो भी तो बहुत कम ....
    कोई इल़ाज नहीं ... इल़ाज हो जाएगा तो जीने का मज़ा नहीं आयेगा .... :D

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  26. अपेक्षा रखना दुःख का सबसे बड़ा कारण है ..या यूँ कह लीजिये दुखी रहने का मूल मंत्र है ....बहुत सुन्दर ..सटीक लेख !

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  27. जो मिलता है उसे महसूस करने की जरूरत है।

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