अब बारी थी अगले दिन के कार्यक्रम को बनाने की, पहले दिन जब गाउडी की बनी शानदार इमारत देखी। तब जाकर मन में स्पेन घूमने का थोड़ा उत्साह जागा। हालांकी मुझे तो इतनी शानदार इमारत देखने के बाद भी, मन में हल्की सी निराशा हुई थी। क्योंकि स्पेन जाने से पहले जैसा मैंने इस इमारत के विषय में पढ़ा था और जैसी मेरे मन ने कल्पना की थी, वैसा वहाँ कुछ भी नहीं था। लेकिन जो था, वह शायद मेरी कल्पना से ज्यादा बेहतर था। खैर उस दिन देर रात तक घूमने के बाद जब हम वापस होटल पहुँचे तो पैर जवाब दे रहे थे कि बस अब बहुत हुआ। अब और नहीं चला जाएगा हम से, अगले दिन के लिए कोई छोटी मोटी सी यात्रा का ही चयन करना। वरना हम चलने से इंकार कर देंगे। अब भला ऐसे में हम अपने पैरों की कही हुई बात को नज़र अंदाज़ कैसे कर सकते थे। आखिर हमारे लिए तो सभी एक बराबर है न। क्या दिल क्या दिमाग और क्या पैर, सबकी सुननी पड़ती है भई...
सो अगले दिन “ला रांबला” जाना तय हुआ। सुबह आराम से उठकर नहा धोकर जब स्पेन की गरमागरम धूप में बैठकर नाश्ता किया तो जैसे दिल बाग़-बाग़ हो गया। फिर तरो ताजे मन से हम चले अपनी मंजिल की और “वहाँ पहुँच कर क्या देखते है” कि अरे यह तो यहाँ का लोकल मार्किट है। अर्थात सड़क के एक छोर से दूर कहीं दूसरे छोर तक लगा हुआ बाज़ार है। जैसे अपने दिल्ली का सरोजनी मार्केट या करोल बाग है ना, ठीक वैसा ही। यह “ला रांबला” नाम की सड़क भी स्पेन के मुख्य आकर्षण में से एक है। जहां पर्यटकों को लुभाने के लिए साज सज़्जा से लेकर खाने पीने की कई तरह की दुकानें थी। छोटे मोटे कई रेस्टोरेन्ट थे। मगर अधिकांश लोग मदिरा (बियर) का सेवन करते हुए ही नज़र आए। मुख्यता इस सड़क पर हमने देखा कि वहाँ “बार्सिलोना” के मुख्य स्थलों की तसवीरों से सज़ा, साज़ो समान बिक रहा था। महिलाएं और बच्चे कपड़ों और खिलौनों की ख़रीदारी में व्यस्त थे। वहाँ सभी इमारते नंबर से जानी जाती है। वहीं पास में एक भारतीय रेस्टोरेन्ट भी था जिसका नाम "बोलीवुड" था, तीन दिन हम लोगों ने वहीं खाना खाया था तब एक दिन उस रेस्टोरेन्ट में काम करने वाले एक कर्मचारी ने हम से पूछा कि आपने वो डांस देखा क्या जो उस फिल्म में "ज़िंदगी न मिलेगी दुबारा" में दिखाया गया था। यह सुनकर हमारे दिमाग में एकदम से वह गाना आया नहीं तो वह बोला "अरे वही गाना सेनियोरिटा वाला" तब अचानक से याद आया अच्छा-अच्छा हाँ वो गीत ... तो "उसने कहा हाँ वही वाला डांस, यहाँ पास ही एक जगह है जहां होता है"। यह सुनकर हमारे मन भी बड़ी इच्छा हो आई कि हम भी वो डांस देखें। मगर जब टिकिट का दाम जाना तो इरादा रद्द करना ही उचित समझा। तीनों का मिलकर दो सो पचास यूरो हो रहा था वह भी यदि कोई अपना टिकट रद्द कर दे तब, उसके लिए 45 मिनट इंतज़ार करना।
खैर विषय से ना भटकते हुए हम फिर हम फिर वहीं आते है उस बाज़ार में भटकने बाद तभी हमने वहाँ सामने सड़क के उस पार एक और बाज़ार नजर आया। जहां सिर्फ खाने के शौक़ीन लोगों के लिए ही वहाँ मौजूद था। फिर चाहे वह मुर्गा, मच्छी हो या केंकड़े या फिर तरह-तरह की मिर्चीयां और मीठे के नाम पर चॉकलेट और आइसक्रीम, जी हाँ मजे की बात तो यह थी, कि वहाँ कई जगह रंग बिरंगी आइसक्रीम भी थी ठीक वैसी ही जैसी बचपन में हम और आप खाते थे ना, नारंगी रंग वाली। जिसमें सिवाय बर्फ़ और रंग के कोई स्वाद ही नहीं होता था। आह !!! फिर भी कितनी स्वादिष्ट लगती थी न। ठीक वैसी ही आइसक्रीम यहाँ भी बिक रही थी। मुँह में पानी आरहा है ना !!! फ़िलहाल आप तस्वीरों में भी देखकर ही काम चला सकते हैं। वहाँ भी (स्पेन) में और यहाँ (लंदन) में भी आजकल अलग-अलग स्वाद वाला फ़्रोजन दही बड़े चलन में है। जो देखने में एकदम आइसक्रीम की तरह ही दिखता है, मगर होता दही है। क्या बच्चे और क्या बड़े सभी इस दही का आनंद लेते नज़र आते है।
वहाँ से घूमते-घूमते हम पहुँचे एक थिएटर (Palau de la Música Catalana) जिसकी सुंदरता देखने लायक थी। उस थिएटर की विशेषता भी वही थी कि वहाँ बने स्तंभों दीवारों और छत पर टूटे हुए टाइल्स के टुकड़ों से बहुत ही सुंदर आकृतियाँ बनाकर उन्हें सजाया गया था और यह टूटे हुए टाइल्स से बनी चीज़ें भी बार्सिलोना के प्रमुख्य आकर्षणों में से एक है। मगर अफ़सोस कि उस दिन वहाँ पहुँचने में देर हो जाने के कारण, हम वह थिएटर अंदर से नहीं देख पाये। इतने सुंदर थिएटर को अंदर से ना देख पाने का दुःख तो हुआ। मगर क्या किया जा सकता था।
वहाँ से हम गोथिक क्वाटर्स की ऐतिहासिक गलियों से घूमते हुये, हम पहुँचे वहाँ के एक प्रसिद्ध गिरजाघर (Barcelona Cathedral) के पास जिसके द्वार पर बनी मूर्तियों की नक़्क़ाशी अपने आप में अत्यंत अदबुद्ध, अत्यंत सुंदर एवं सराहनीय थी। उस वक्त शायद वह गिरजाघर (चर्च) बंद था या नहीं ठीक से याद तो नहीं है। लेकिन ज्यादातर सभी पर्यटक गिरजाघर (चर्च) के बाहर सीढ़ियों पर ही अपना-अपना डेरा जमाए बैठे थे। जिनमें से अधिकांश लोग मुख्यतः गिरजाघर (चर्च) के द्वार की तस्वीरें लेने में व्यस्त थे। तो मेरा भी मन हो गया और हमने भी वहाँ एक फोटो खिंचवा ही लिया। यह सब घूमते घामते थक के चूर हो चुके भूख से व्याकुल हम लोगों ने फिर बर्गर किंग पर धावा बोला। क्या करो विदेश में हम जैसे चुनिंदा खाने पीने वाले लोगों के साथ बड़ी समस्या हो जाती है। ऐसे में फिर “मेकडोनाल्ड” या “बर्गर किंग” ही हम जैसों का एकमात्र सहारा बचता है। खैर फिर थोड़ा बहुत खा पीकर होटल वापस लौटने का तय हुआ। मगर फिर याद आया कि जहां हम खड़े हैं “एसपानीया” में वहाँ से कुछ ही दूर पर एक और दार्शनिक फब्बारा(The Magic Fountain at Montjuic) है। जिसे देखने लोग दूर-दूर से आते है। हमने सोचा चलो अब जब यहाँ तक आ ही गए है तो देख लेते हैं। बस यही सोचकर हम लोग किसी तरह गिरते पड़ते बस से वहाँ पहुँचे। लेकिन शायद उस दिन जैसे किसी बहुत अच्छी चीज़ को देखने का मुहूर्त ही नहीं था। वहाँ जाकर पता चला यह फुब्बारा केवल हफ़्ते में केवल दो ही दिन चलते है। शनिवार और इतवार को, यह सुनकर दिमाग का दही हो गया। मगर अब हो भी क्या सकता था। वापस लौट जाने के अलावा और कोई दूजा विकल्प भी नहीं था। तो बस “एसपानिया” से ट्रेन पकड़कर छोड़ आए हम वो गलियां...
बढ़िया यात्रा वृतांत ......चित्र बहुत सुंदर हैं ....
ReplyDeleteस्पेन की सांस्कृतिक धरोहर, समाज, बाजार आदि के बारे में ज्ञानपरक जानकारी से पूर्ण यात्रा वृत्तांत। साथ ही चित्र भी खूबसूरत हैं।
ReplyDeleteखूबसूरत चित्रों के साथ रोचक वृतांत ....
ReplyDeleteस्पेन को जानना आपकी नज़र से ...
सचित्र स्पेन का सुंदर वर्णन ......अच्छा लगा पढ़कर .....!!
ReplyDeleteआपकी यात्रावृत्तांत शैली पसंद आयी। यात्रावृतांत में भाषा की सहजता खुद को आपके साथ सफ़र कराती है।
ReplyDeleteलग रहा है विदेश यात्रा कर ली हो। फोटोग्राफ्स ने इसमें मदद की।
शुक्रिया पल्लवी ,
ReplyDeleteस्पेन की सैर कराने के लिए , अगली ट्रिप में यहाँ अवश्य जाना है !
बहुत बढ़िया वृत्तांत......और करो सैर सपाटा....फिर अपनी कलम पर बैठा कर हमें भी घुमाओ :-)
ReplyDeleteतस्वीरें सुन्दर.....कैथेड्रल के सामने तुम और बच्चे प्यारे लग रहे हो..
सस्नेह
अनु
बहुत रोचक यात्रा वृत्तान्त........
ReplyDeleteघरबैठे बैठे घूमने का आनंद उठा लिया ....अगली किश्त के इंतज़ार में...
ReplyDeletesundar yatra vrutant ...
ReplyDeletebahut achche se aapne likha hai....sach puchiye to lagata hai aap log ghoom ke nahee aaye ho balki padhne ke baad lagta hai jaise hum hee ghoom ke aaye hai...
ReplyDelete-- Ab Spain ki trip cancel, ghar baithe hee ghoom liye :)
सुंदर यात्रा वृतांत!
ReplyDeletehamne to ghar baithe hi aapke saath yatra ka pura maja le liya..........aabhar
ReplyDeleteखूब घूमो .... तुम्हारे सैर सपाटे और उसके वर्णन पर नज़रें जमी है <3
ReplyDeleteThanks for this comprehensive details of your travel with suitable pictures. All the best. Sunil okhade
ReplyDeleteSuitably described details of the travel thanks for enrihing .
ReplyDeleteबढ़िया जी ... खूब मज़े करो! विवरण और तस्वीरें दोनों ही बहुत बढ़िया!:)
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-11-2013 को चर्चा मंच पर दिया गया है
ReplyDeleteकृपया पधारें
धन्यवाद
SUNDER ROCHAK YATRA VRITAANT KE SAATH SARAL AUR SAHAJ SANSMARAN, EK NAZARIYA JO ADHIK MAYNE RAKHTA HAI KISEE DOOSREE SANSKRITI KO DEKHNE AUR DIKHANE KA >>>>>NICE!!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति, हम घर बैठे - बैठे वहाँ घूम आए।।
ReplyDeleteनई चिट्ठियाँ : ओम जय जगदीश हरे…… के रचयिता थे पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी
नया ब्लॉग - संगणक
आपके यात्रवृत्तांत बहुत बढ़िया बन रहे हैं. इन्हें कभी आप पुस्तक रूप में छपवाना चाहेंगीं.
ReplyDeleteपल्लवी जी ,
ReplyDeleteआपकी 'यात्रा-विवरण' की शैली बांध कर रखने वाली और रोचक है । पढ़ कर मन प्रसन्न हुआ । भारत और भारतीय संस्कृति को विदेशों में किस प्रकार देखा जाता है , यह जानने की उत्सुकता सभी को होती होगी , कम-से-कम मुझे तो है । विचार कीजिये ।
हाँ अंकल, क्यूँ नहीं...कोई रुचि दिखाये तो ज़रूर छपवाना चाहूंगी।
ReplyDeleteआखिर उसमें बुराई ही क्या है :)
धन्यवाद सर...आपके सुझाव पर अमल करने की कोशिश ज़रूर करूंगी।
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