भोपाल से निकलने "सुबह सवेरे" समाचार पत्र में प्रकाशित मेरा लिखा एक व्यंग
कहानी ले लो भाई साहब, कितने की दी ? भईया एक कहानी मात्र ढाइसो कि है। अरे
बाप रे ! यह तो बड़ी महंगी है। थोड़ी सस्ती में देते हो तो बताओ। अच्छा कितना दाम
लगाओ गे आप बताओ ? डेढ़सौ में दे रहे तो बात करो। अरे नहीं
नहीं...। इतने में तो केवल लघु कथा ही मिल सकती है, यह नहीं।
यह तो बड़ी कहानी है, इतने में तो नहीं पड़ेगी। अच्छा तो ठीक
है फिर, रहने दो कभी ओर देखेंगे। अच्छा ठीक है भाई साहब, कहानी लेलो भई कहानी छोटी बड़ी सभी तरह कि कहानियाँ...! आगे चलकर फिर किसी
ने आवाज दी अरे भईया जरा सुनना तो सही, एक कहानी कितने में
दी ? अरे दीदी ज्यादा नहीं बस ढाईसौ । क्या ....! इतनी महंगी
? कहाँ दीदी, यह तो केवल महनतना ही
मांग रहे हैं। वरना असल कीमत तो हमने अभी तक लगायी ही नहीं है।
अरे नहीं भईया तब भी बहुत मंहगी है। हाँ तो दीदी
बड़ी भी तो है, ऊपर से आप लोग शब्दों का प्रतिबंद अलग लगा
देते हो, कभी सोचा है कि स्व्छंद लिखने वाले को कितनी
कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और एक आप हो उसमें भी मोल-भाव कर रही हो। लेलो न
एक कहानी दीदी, आपका क्या जाएगा। आप तो खुद भी इतना लिखती हो
कि आपके हाथ के नीचे से निकलने वाली छोटी मोटी
पत्रिका वह भी वो वाली जो अखबार के साथ अलग से आती है, तक
में केवल दो पन्ने तो आपके ही होते हैं। ऐसे में हमारा लिखा भी थोड़ा सा लेलोगी तो
आप क्या बिगड़ जाएगा।
बस बस ज्यादा बकवास करने कि जरूरत नहीं है।
जितना पूछा जाए उतना ही बताओ और हाँ ठीक ठीक भाओ लगाओ वरना और भी बहुत लोग हैं
लाइन में, जिन्हें अपनी कहानियाँ और कवितायें बेचनी है हमें। एक तुम ही अकेले नहीं हो। हाँ हाँ...! दीदी यह बात तो हम
बहुत अच्छे से जानते है। आप यह लघु कथा लेलो मात्र डेढ़सौ कि है। नहीं भाई तुम अब
तक मेरी बात का सही अर्थ नहीं समझे। लघु कथा वह भी डेढ़सौ कि बहुत महगी है। ऐसा करो
एक बड़ी कहानी के साथ एक लघु कथा नहीं तो एक व्यंग या फिर एक कविता मुफ्त दे दो तो
हम यह कहानी अभी खरीद लेते हैं। नहीं दीदी, यह न हो पाएगा।
सोच लो भईया...! जो मैंने कहाँ वही सबसे अच्छा सौदा है कम से
कम कुछ नहीं से कुछ तो मिल रहा है। नहीं दीदी, ना हो पाएगा।
आगे चलेते हुए फिर कहानी ले लो कहानी...
सुनो भईया मेरे पास तुम्हारे लिए एक योजना है कहो
तो बताऊँ ? अरे साहब सुबह से कहानियाँ बेचने निकला हूँ
अब तक बौनी नहीं हुई और आप एक और नयी योजना ले आए हो, न ना
मेरे पास टेम ना है। अरे कम से कम योजना सुन तो लो, नहीं जमे
तो ना लेना। अच्छा ठीक है, बताओ क्या है आपकी योजना। द्खो
मैं भी यही रहता हूँ और एक अखबार चलता हूँ। जिस तरह तुम्हारी कहानियाँ नहीं बिक
रही उसी तरह मेरा अखबार भी कोई खास नहीं बिक रहा है। तो क्यूँ ना साथ में मिलकर
धंधा किया जाये। तुम हमारे अखबार कि सदस्यता लेलो हम तुम्हारी कहानियाँ वहाँ छाप
दिया करेंगे जिससे थोड़े ही दिनों में तुम्हारा नाम भी हो जाएगा और हमें भी कंटेन्ट
मिल जाएगा। अरे बाबू जी, तो इसमें मेरा क्या भला होगा। सारी
मलाई तो आपको मिल जाएगी। अरे तुम्हारा भी तो भला हो रहा है,
रोज़ छपोगे और यदि प्राइम मेम्बर शिप लोगे तो एक ही पेज पर तुम्हारी एक से अधिक
रचनाओं को स्थान दिया जाएगा।
अरे वाह रे बाबू जी आपको हमारे माथे पे क्या
लिखा दिखा जो आप यह योजना हमारे पास लेकर आए हैं। हमारी ही कहानी हम से ही पैसा
लेकर, यदि आपने छाप भी दी तो कौना सा बड़ा अहसान किया बात तो तब होती जब आप मुझे
मेरे महंताने के साथ मेरी कहानी को अपने अखबार में स्थान देते। रहने दो बाबू जी
रहने दो।
कहानी ले लो कहानी एक कहानी के साथ एक कविता, एक कविता के था एक लघु कथा, और एक लघु कथा के साथ
एक व्यंग मुफ्त .....
शानदार।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ फरवरी २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteशानदार व्यंग।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर व्यंग..सामयिक भी. सही कहा पैसे दो फिर कहानी कविता छपवाओ ।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteअनूठी रचना..वाह. बहुत ही सही चित्रण किया है पल्लवी जी. आजकल यही हाल है.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद कविता जी।
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