Monday 18 June 2012

करे कोई भरे कोई ...


आज कुछ भी शुरू करने से पहले ही बता दूँ, इस पोस्ट को पढ़ने के बाद हो सकता है मेरी कुछ महिला ब्लॉगर दोस्तों को बुरा लगे मगर जो मुझे लगा जो मैंने महसूस किया वही मैंने लिखा। कमाल की बात है ना, आज के  ज़माने में भी कुछ मामलों में हमारी मानसिकता ज़रा भी नहीं बदली या हम यूं कहें कि बदलती तो है मगर समय और परिस्थिति के अनुसार, अब जैसे मान लीजिये भरी सड़क पर यदि कभी कोई लड़की किसी लड़के को छेड़ दे और बाद में दुनिया को दिखाने के लिए उसी लड़के को यह कहते हुये थप्पड़ मार दे, कि उसने उसे छेड़ा कैसे तो भीड़ बने लोग भेड़चाल की तरह चलते हुए आएंगे और बिना आव ताव देखे उस लड़के को पीट डालेंगे क्यूँ? क्यूंकि आज भी लोग यह मानना ही नहीं चाहते कि कोई महिला या स्त्री भी ऐसा कुछ कर सकती है। गलती हर हाल में लड़के की ही मानी जाएगी और उसे दोषी करार देते हुए भीड़ वाली अदालत वहीं अपना फैसला सुनाते हुए उसे पीट-पीट कर सजा के रूप में अधमरा कर डालेगी या फिर सजा के रूप में अन्य गुंडों टाइप लोगों के हाथों उस लड़के को पिटवाकर कर सुजा देने का हुकुम सुना दिया जाएगा। ताकि वो दुबारा ऐसी कोई हरकत न करे या उस इलाके में भी नज़र ना आये।

वजह ! चंद लोगों के सामने खुद को बहादुर और एक औरत को बड़े आदर से देखते हैं हम का दिखावा जो करना होता है ऐसी भीड़ को, यहाँ तक कि एक बार भी लड़के से कोई यह तक नहीं पूछेगा कि तूने सच में ऐसा किया भी या नहीं और मान लीजिये किसी ने गलती से पूछ भी लिया तो लड़के की बात पर कोई विश्वास नहीं करता। कम से कम उस वक्त तो ज़रा भी नहीं बाद में भले ही कुछ हो...कमाल है न ऐसी ही बातों से संबन्धित जब भी कभी कोई किस्सा पढ़ने में या सुनने में आता है तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि ऐसे मामलों में लोग हमेशा यह क्यूँ समझते कि लड़का ही गलत होगा उसने ही पहल की होगी तभी लड़की ने उसे चांटा मारा,या फिर लड़के ही लड़कियों को हमेशा से डरते धमकाते आए हैं तो सभी लड़के एक जैसे ही होते है। जबकि आए दिन समाचार पत्रों में लड़कियों के द्वारा अपनी ही सहली या सहपाठी के गंदे MMS तक बनाने की खबरें पढ़ी है मैंने, जो काम कल तक सिर्फ लड़के किया करते थे या यह कहना शायद ज्यादा ठीक होगा कि जिस काम के लिए आज तक केवल लड़के बदनाम थे आज लड़कियां भी वही काम कर रही है, कर सकती है और करती भी हैं।

यहाँ मैं जानती हूँ बहुत लोग मुझसे सहमत नहीं होंगे, सभी यही कहेंगे कि जो मैंने लिखा वास्तव में होता उसका उल्टा है, मगर यहाँ मैं कहूँगी कि मैं मानती हूँ 90 % मामलों में ऐसी हरकतों के लिए लड़के ही जिम्मेदार होते है मगर उन 10% का क्या जो बेचारे बेगुनाह होते है इसका मतलब यह तो नहीं कि हम उन 10 प्रतिशत लड़कों को भूल ही जायें क्यूंकि कभी-कभी वो भी सच होता है जो मैंने लिखा है लेकिन फिर भी अबला समझी जाने के कारण समाज की भरपूर सहानभूति उन्हें मिलती है और बेचारे बेगुनाह लड़को को सजा आखिर यह बात कहाँ तक उचित है कि हमेशा लड़कों को ही गलत करार देकर सजा सुनाई जाये बहुत नाइंसाफ़ी है :-)

कल की ही बात है मेरे शहर भोपाल में मेरे घर के पास एक दवाई की दुकान है जिसे एक पिता पुत्र  मिलकर चलाते थे ,उन अंकल से अर्थात दुकान के मालिक की मेरे पापा के साथ बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी थी। कल अचानक पता चला कि उनके 22 साल के लड़के ने आत्महत्या कर ली। जानकार बेहद अफसोस हुआ। इस सारे मामले के पीछे की जो कहानी मेरे पापा को उन्होंने जो सुनाई और मेरे पापा ने जो मुझे बताया वही आपके सामने रख रही हूँ।

हुआ यूं कि उनका बेटा न जाने कैसे एक-के बाद एक कुछ स्त्रियों के चक्कर में फंस गया उसकी ज़िंदगी में आने वाली तीनों लड़कियों में से दो ने उसे प्यार में धोखा दिया तीसरी बार एक महिला जो खुद 2 बच्चों की माँ थी उसने उसके साथ सहानभूति रखते हुए संबंध बनाए और एक दिन हद पार हो जाने के बाद उसका वीडियो बना कर उस लड़के को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। बदले में मांगी 5 लाख रुपये की धनराशि, एक दिन पुत्र ने पिता के पास आकर कहा पापा मुझे 5 लाख रूपय चाहिए पिता ने कहा 5 क्या तुम 7 लाख ले लेना, मगर पहले कारण तो बताओ कि आखिर तुमको इतने पैसे क्यूँ चाहिए। तब उसने अपने पापा को सारी सच्चाई बताई अब इतने सारे पैसे आज की तारीख में कोई घर में तो रखता नहीं है सो पिता ने कहा ठीक है मुझे दो-तीन दिन का वक्त दो मैं कुछ इंतजाम करता हूँ और मन ही मन  उन्होंने सोचा इस बहाने एक दो दिन सोचने का भी समय मिल जायेगा कि इस मामले में और क्या किया जा सकता है, मगर हाय रे यह आजकल की नासबरी जनरेशन उसने उस औरत और उसके पति के दवारा दी हुई धमकियों के डर से अगले दिन ही आत्महत्या कर ली, उन अंकल के एक बेटी भी है जिसकी शादी हो चुकी है कल तक बेटा भी था जो अब नहीं रहा। ऐसे में वो बहुत टूट गए हैं उनका कहना है अब मैं कमाऊँ तो किसके लिए अब कमाई की न तो बहुत जरूरत है न कोई अरमान, ऊपर से उनकी दुकान पर आने वाले लोग उनसे मुंह छुपाकर किन्तु उन्हीं के सामने उनके बेटे के लिए अभद्र बातें करते है जिसके चलते अंकल से सहा नहीं जाता और वो दुकान बंद करके कहीं एकांत में जाकर बहुत रोते हैं।

अब आप ही कहिए इसमें उस लड़के की क्या गलती थी, मैं यह नहीं कहती वो पूरी तरह ही सही था मगर गलत भी तो नहीं था। यही किस्सा किसी लड़की के साथ हुआ होता तो महिला मुक्ति मोर्चा टाइप सोच रखने वाले सभी लोग बढ़-चढ़ कर बोलते, लिखते। यही नहीं यहाँ तक कि उस लड़की को इंसाफ दिलाने के लिए न जाने क्या-क्या करते मगर आज यह किस्सा एक लड़के के साथ हुआ है मात्र 22 साल के लड़के साथ, तब भी उसके साथ किसी को कोई सहानभूति नहीं है उल्टा लोग उसकी दुकान पर जाकर उसी के पिता के सामने उन्हें ही शर्मिंदा कर रहे हैं, ऐसे में अफसोस भी बहुत होता है और मुझे तो शर्म भी बहुत आती है आखिर कहाँ जा रहे हैं हम, वैसे बड़े आधुनिक समाज और खुली मानसिकता की बातें करते नहीं थकते और जब बात आती है किसी के साथ इंसाफ की, तो उस वक्त तो जैसे अचानक ही सबकी मानसिकता जड़ हो जाती है बिलकुल पत्थर पर खींची हुई लकीर की तरह...क्यूंकि कोई उस महिला के प्रति अपना आक्रोश ज़ाहिर नहीं करता।  क्यूँ ? लोग चोरी छुपे लड़के के चरित्र पर ही उंगली उठाते है, सिर्फ इसलिए कि वो लड़का है और ऐसे मामलों में लड़कों का नाम बदनाम है। हालांकी ऐसा भी नहीं है कि यदि इस लड़के की जगह कोई लड़की होती तो लोग बातें नहीं करते। ज़रूर करते तब तो इतनी करते कि शायद उसके पिता को भी आत्महत्या करनी पड़ जाती। मगर इसका मतलब यह तो नहीं कि सभी लड़के एक से होते हैं आखिर यह कहाँ तक उचित है कि सिर्फ इसी वजह से हम लड़कों को नज़र अंदाज़ करते हुए हमेशा महिलाओं से ही सहानुभूति जताएँ।

मुझे तो ऐसा लगता है कि इस मामले को नज़र अंदाज़ न करते हुए उस औरत और उसके पति के खिलाफ सख्त-से सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए और उस महिला और उसके पति को कड़ी से कड़ी सज़ा भी होनी चाहिए। इस विषय में आप सब की क्या राय है ...? क्या आप मेरी बातों से सहमत हैं ?            

41 comments:

  1. पल्लवी
    सबसे पहले मै शोक व्यक्त करना चाहूंगी उस बच्चे के लिये और इश्वर से प्रार्थना हैं की वो उसकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उसके माँ पिता को शक्ति दे इस आभाव को सहने की

    अब आप के प्रश्न पर लिखूंगी
    आप खुद बताये अगर आप के पारिवारिक सम्बन्ध ना होते तो क्या आप को कभी असलियत पता चलती ??
    मैने नारी ब्लॉग पर बहुत बार यही बात कही हैं की नारी की देह का इतना शोषण हो चुका हैं की वो अब ये समझ चुकी हैं की उसकी ये देह अर्थ प्राप्ति का साधन बन सकती हैं
    २२ साल का युवक , ३ प्रेम कहानियाँ , कुछ ज्यादा नहीं होगया ?? पढता कब था , करिएर के प्रति क्या जागरूकता थी उसकी ?
    विवाहित स्त्री से संपर्क क्यूँ रखा , क्या इतना ना समझ था ?? और अगर क़ोई २२ साल की युवती आत्म ह्त्या कर लेती किसी विवाहित पुरुष से प्रेम / शोषण / ब्लैकमेल के बाद क्या समाज की प्रतिक्रया होती यही ना की "दूसरी स्त्री थी ठीक ही हुआ , पत्नी का अधिकार छीन रही थी "
    समाज ने जो नियम बनाए हैं उनको लोग खुद ही नहीं मानते हैं . अगर हर नियम सही रूप में माना जाये तो परेशानी ना हो .
    १०० लडको में वो १० घुन की तरह पिस्ते हैं जो सही हैं कारण ९० ऐसे हैं जिनकी वजह से लडकिया बदनाम होती हैं और आज भी शील का ठेका स्त्री का ही हैं .
    १०० लडके और १०० लडकियां एक ही दशा में हो तो आचरण सही लड़की का कितना हैं बहस इस पर होती हैं
    अब वक्त हैं की हम अपने बेटो को समझाए की वो लड़की को खिलौना समझना बंद करदे क्युकी कभी भी बैक फायर हो सकता है


    मुझे तो ऐसा लगता है कि इस मामले को नज़र अंदाज़ न करते हुए उस औरत और उसके पति के खिलाफ सख्त-से सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए और उस महिला और उसके पति को कड़ी से कड़ी सज़ा भी होनी चाहिए। इस विषय में आप सब की क्या राय है ...? क्या आप मेरी बातों से सहमत हैं ? bilkul sehmat hun

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  2. आज तो रचना जी के कमेन्ट को ही सेकेंड करने का मन है.
    यूँ अपवाद हर क्षेत्र में होते हैं.
    हाँ आपकी आखिरी लाइन से मैं भी सहमत हूँ.

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  3. लड़का हो या लड़की ...आज किसी को समझाने से पहले हम खुद अपने आप को समझाएं
    या अच्छाई -बुराई के बारे में जागरूक हों तो ज्यादा बेहतर होगा ..वर्ना ये सब तो होता ही
    रहेगा .....! सब पढ़ कर दिल दुखा!
    शुभकामनाएँ हमसब को !

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  4. आज तो रचना जी के कमेन्ट को ही सेकेंड करने का मन है....
    (shikha ji ki tipanni se sabhaar

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  6. maaf kijiyega pichle kament mein kuch galati ho gai tee ise sudharkar padhe
    लेख अभी ठीक से पढा नहीं हैं इसलिए बाद में आता हूँ.ऐसा लग रहा हैं जैसे आप लेख में अपनी ही बात को खुद ही काटती भी जा रही हैं.यहाँ रचना जी से बिल्कुल सहमत हूँ.वैसे मैं इस तरह के किस्सों पर टिप्पणी करना अब मैं सही नहीं समझता हूँ.पर फिर भी मुझे तो लगता हैं इस केस में उस महिला के पति की ही ज्यादा गलती हैं नहीं तो वो महिला ब्लैकमेलिंग जैसा कदम बिना पति की मर्जी के नहीं उठा सकती वह चाहता तो उसे रोक सकता था.कोई पति ये सहन नहीं करेगा कि उसकी पत्नी किसी अन्य से संबंध रखें.लेकिन जैसा इस पति ने किया ऐसा तो कोई गधे का बच्चा ही कर सकता हैं.आपने इस तरह की खबरें भी पढी होंगी कि कैसे पति ने पत्नी को अपने बॉस या दोस्तों के साथ संबंध बनाने को मजबूर किया.आपके इस केस में खुद महिला की भी सहमति थी या नहीं ये स्पष्ट नहीं हैं पर इसी बात की आशंका ज्यादा हैं कि महिला से ये काम जबरदस्ती कराया गया हैं.अब आप इसे पारंपरिक नजरिया कहें तो कहें.
    और आजतक स्कूल कॉलेज और अब नौकरी के दौरान इतनी लडकियों के बीच रह लिए लेकिन आज तक एक भी ऐसी लडकी नहीं देखी जो खुद ही किसी लडके को छेड दे,शायद आपने देखी हो!

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  7. सबसे पहले तो आपके महत्वपूर्ण कमेंट के लिए आभार, अब आते है आपकी बात पर, मैंने पहले ही लिखा की हमारी आस पास हो रही घटनाओं के कारण हमारी मानसिकता ही ऐसी बन गयी है कि हम ज्यादातर किस्सों में महिलाओं को सही और पुरुषों को गलत समझते है। बाकी रही बात कि मैंने ऐसे लड़कियों को शायद देखा हो तो उसके जवाब में मैं यही कहूँगी कि हाँ मैंने एक नहीं कई ऐसी लड़कियों को देखा है और पढ़ा है जो खुद लड़कों को छेड़ती है। और एक बात कहना चाहूंगी कि यहाँ रचना जी बात से बहुत हद तक मैं भी सहमत हूँ मगर जब आप किसी ऐसे किस्से को किसी और से सुनते हो या पढ़ते तो उस किस्से कि सम्पूर्ण जानकारी आपको नहीं मिलती है अर्थात सम्पूर्ण वास्तविकता। क्यूंकि यदि यह खबर आपने कहीं पढ़ी है तो छापने वाले उसे रोचक बनाने के लिए उसमें मिर्च मसाला डालते है और यदि सुनी है कोई भी इंसान आपने घर कि ऐसे घटना का ठीक-ठीक बखान भी नहीं करता सब बस ऊपरी बातें ही बताते है फिर चाहे वो आपके कितने भी करीबी जाने वाले क्यूँ ना हो इसलिए जो प्रश्न रचना जी ने उठाए उन सबका जवाब देना मेरे लिए संभव नहीं क्यूंकि मैंने यह घटना सिर्फ सुनी है। अंत में बस इतना ही कहना चाहूंगी कि बात सिर्फ लड़कों को समझाने कि नहीं बल्कि लड़के और लड़कियों दोनों को समझने कि है। क्यूंकि जो गलत है वो गलत है फिर चाहे लड़के करें या लड़कियां।

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  8. जो हुआ , बहुत बुरा हुआ विशेषकर लड़के के पिता के लिए . इस मामले में लड़का कमज़ोर साबित हो रहा है . गलती पर गलती करता रहा और और फिर सामना करने का साहस भी नहीं था . लेकिन दोषी को तो सजा मिलनी ही चाहिए .

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  9. Pallavi ji aapka lekh se mai purntaya sahmat hu aur badhai dena chahunga aapne bebaki se apni baat rakhi...........
    sarthak lelkhan ke liye aabhar

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  10. इस घटना में लड़के से नहीं लड़के के पिता से सहानुभूति है ..... बाकी सटीक बात रचना जी ने कह दी है ...

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  11. आपने एक बार फिर सार्थक विषय उठाकर कई बातों की ओर ध्‍यान दिलाया है ... उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए आभार

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  12. पल्लवी
    लड़कियों को हमेशा से ही समझाया जाता रहा हैं और लडको को नहीं के बराबर . जब तक बराबरी से समझाने का चलन नहीं होगा बराबरी नहीं होगी
    मैने आप से क़ोई प्रश्न नहीं किया हैं महज कुछ प्रश्न दिये हैं जो घटना क्रम से जुड़े हैं
    जब तक बेटे और बेटी को समान नहीं समझा जायेगा, जब तक दोनों के लिये नियम समान नहीं होंगे तब तक किसी बदलाव की संभावना हैं ही नहीं
    जैसे आप ने अपनी सुहाग चिन्ह वाली पोस्ट में महिला का विवाहित दिखना इस लिये जरुरी समझा क्युकी वो प्रोटेक्टेड रहे यानी आप को खुद ही लगता हैं नारी प्रोटेक्टेड नहीं हैं
    अगर नहीं हैं तो किस से नहीं हैं ???
    और क्यूँ विवाहित पुरुष बिना किसी विवाह प्रतीक पहने भी प्रोटेक्टेड हैं या ये कह ले पुरुष विवाह से इतर सम्बन्ध रख भी ले तो क्या ?? लेकिन क्या आप यही बात विवाहित स्त्री के लिये भी सही मानेगी ??? और उसको भी उसका पति उसी प्यार और विश्वास से स्वीकार कर लेगा जैसे विवाहित स्त्री अपने पति को करती हैं जिसके सम्बन्ध दूसरी स्त्री से होते हैं
    ये सब प्रश्न आप से नहीं हैं आप की पोस्ट से उपजे हैं और जो पोस्ट प्रश्नों को जन्म देती वो निसंदेह तारीफ के काबिल ही होती हैं .
    हां कुछ प्रश्न के जवाब क़ोई भी देता तो विमर्श आगे जाता .

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  13. kaafi kuch kah diya rachna ji ne hi aur aakhiri baat se to main bhi sahamat hun.

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  14. कम उम्र में बहकना अपराध नहीं , अपराध की तरफ बढ़ानेवाला क्रिमिनल होता है और आजकल ऐसी महिलाएं खुलेआम देखने को मिलती हैं ...

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  15. मुझे तो ऐसा लगता है कि इस मामले को नज़र अंदाज़ न करते हुए उस औरत और उसके पति के खिलाफ सख्त-से सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए और उस महिला और उसके पति को कड़ी से कड़ी सज़ा भी होनी चाहिए। इस विषय में आप सब की क्या राय है ..
    आपकी उपरोक्त बातों से पुर्ण रूप से सहमत हूँ,,,,,

    सार्थक विषय पर बेहतरीन लेख,,,,,,

    RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,

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  16. रचना जी ने काफी कुछ कहा दिया है , और राजन की ये बात भी ठीक है की पति भी धमकी दे रहा था तो जरुर वो भी इस खेल में शामिल हो सकता है | डा दाराल जी ने भी ठीक कहा है की लड़का गलती पर गलती करता गया और फिर उसका सामना करने में उसने साहस नहीं दिखाया | पल्लवी जी ऐसा नहीं है की हम सब मानते है की सारी महिलाए ही हमेसा पीड़ित होती है और पुरुष ही गलत, अपराध तो कोई भी वर्ग कर सकता है ये कोई सामाजिक मुद्दा है ही नहीं , यदि आप की सारी बात सही माने तो साफ दिख रहा है की पति पत्नी मिल कर अपराध कर रहे है और उसकी सजा उन दोनों को अवश्य ही मिलनी चाहिए |

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  17. (1) 90 और 10 के अनुपात के स्थान पर यदि 99 और 1 का ही अनुपात रखा जाय तो भी बात विचारणीय है क्योंकि यह 1 भी अस्तित्वहीन नहीं है और यह 1 संख्या भी किसी के प्रति अन्याय का कारण बन सकती है।
    (2) मैं स्वयं तीन बार अपनी किशोरावस्था में, उम्र में अपने से बड़ी लड़कियों द्वारा छेड़ा जा चुका हूँ अर्थात् लड़कियाँ भी छेड़छाड़ कर सकती हैं..इसका एक प्रमाण मैं भी हूँ।
    (3) यह भी ध्यातव्य है कि लड़के को प्रथम दो मामलों में लड़कियों द्वारा धोखा दिया गया ( सम्भव है, इसे रूल्ड आउट नहीं किया जा सकता)। धोखा खाने पर लड़के को इस मामले में कुछ चिंतन करना चाहिये था जो उसने नहीं किया और यह उसकी मानवीय त्रुटि है।
    (3) तीसरे प्रकरण में विवाहिता से प्रेम प्रकरण यह दर्शाता है कि लड़का अब तक इस दलदल को स्वीकार कर चुका था, और वह आगे भी ऐसे प्रकरणों पर विराम लगाने के मूड में नहीं था। उसे ब्लैक मेल किया जाना उसकी इसी दलदल स्वीकारने की गलती का परिणाम था। लड़के को पूर्णतः निर्दोष नहीं कहा जा सकता।
    (4) कुछ विवाहित जोड़े (अपराधी किस्म के) जानबूझकर ऐसी चारित्रिक शिथिलता दर्शाते हैं जिसका उद्देश्य केवल किसी सम्पन्न व्यक्ति को ब्लैकमेल करना ही होता है। ब्लैक मेलिंग के लिये उस दम्पति के विरुद्ध न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया जाना चाहिये ।
    (5) छेड़छाड़ के मामलों में प्रायः लड़कों को शतप्रतिशत दोष दिया जाता है पर यह पूर्ण सत्य नहीं है। बहुत कम प्रकरणों में ही शुरुआत लड़कों की ओर से होती है, अन्यथा छेड़छाड़ के लिये लड़कियाँ ही उद्दीपन की भूमिका निभाती हैं।
    (6) आज के बदले हुये सामाजिक परिदृष्य में गणितीय अनुपात भी बहुत कुछ बदले हैं। लड़कियों में लड़कों की तरह उच्छ्रंखलता की होड़ लग गयी है जिस पर पहले लड़कों का ही लगभग एकक्षत्र राज्य हुआ करता था। ध्यान दिया जाय, मैंने उच्छ्रंखलता की बात की है, छेड़छाड़ की नहीं। आज लड़कियाँ अच्छे और बुरे दोनो ही क्षेत्रों में लड़कों से प्रतिस्पर्धा कर रही हैं।
    (7) छेड़छाड़ के किसी भी मामले में भीड़ को स्वयं न्यायाधीश बन जाने की अपनी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना चाहिये और कोई वैधानिक कदम उठाने से पूर्व भी पूरी स्थिति पर गहराई से छानबीन कर लेना चाहिये। यद्यपि मैं जानता हूँ कि ऐसी बातों के लिये हमारी जनता जनार्दन के पास समय नहीं होता वे तो "तुरत दान महाकल्याण" में विश्वास करते हुये मौके पर ही अपना हाथ साफ कर लेना अधिक न्यायसंगत मानते हैं।

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  18. जिसने ख़ता की वह आत्महत्या करके मर गया लेकिन जिस औरत ने उसे ब्लेकमेल किया उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई ज़रूर करनी चाहिए हालाँकि उसके जुर्म को साबित कर पाना बड़ा मुश्किल है.
    बच्चे आत्महत्या न करें इसके लिए माँ बाप को बचपन से ही उनके सामने उन लोगों का चरित्र नहीं आने देना चाहिए जिन्होंने समस्या पड़ने पर खुद आत्महत्या कर ली.
    जिन लोगों ने आत्महत्या की है उन्हें कभी आदर्श बनाकर पेश न किया जाए. गलत लोगों को आदर्श बनाया जायेगा तो बच्चे उनके रास्ते पर चल सकते हैं.
    एक सच्चे आदर्श व्यक्ति का अनुसरण किये बिना समाज का दुःख कम होने वाला नहीं है.

    युवक के पिता के साथ हमारी संवेदनाएं हैं.

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  19. आपकी यह नसीहत भरी पोस्ट 'ब्लॉगकी ख़बरें' पर
    प्यार खेल है बदकारों के लिए 3 Ladies 1 Boy
    http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/06/3-ladies-1-boy.html

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  20. काश हमें समाज के रूप में अपनों को क्षमा करना ही आ जाये..

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  21. सहमत हूं।
    मनःस्थिति बदले, तब परिस्थिति बदले ।

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  22. @जिन लोगों ने आत्महत्या की है
    उन्हें कभी आदर्श बनाकर पेश न
    किया जाए. गलत
    लोगों को आदर्श
    बनाया जायेगा तो बच्चे उनके
    रास्ते पर चल सकते हैं
    जमाल साहब,यहाँ कौन ये कह रहा हैं कि आत्महत्या करने वाले को आदर्श बनाया जाए.इस बात को यहाँ डालने का मतलब?और यदि आपको सवाल उठाने ही हैं तो सीधे शब्दों में उठाइए लोग जवाब भी देंगे.मैंने एक बार पहले भी आपसे निवेदन किया था कि कम से कम महिलाओं के मुद्दों को अपने धर्म को लेकर रुटीन झगडों से दूर रखें.आप इस्लाम की अच्छी शिक्षाओं पर बात करिए न.बाकी हिंदू धर्म की तो विशेषता रही हैं अपने मिथकों और परंपराओं की तार्किक व्याख्या की.इतनी स्वतंत्रता तो हमें हैं कि हम अपने अराध्यों तक को सवालों के घेरे में ला सकते हैं और उन पर भी सवाल उठा सकते हैं इसके लिए हमें धर्मगुरुओं के फतवों का भी डर नहीं है.यही कारण हैं कि हिंदू धर्म दुनिया में सबसे कम समय में सबसे अधिक बदलावों को स्वीकार करने वाला धर्म हैं.एक नास्तिक होते हुए भी मुझे हिंदू धर्म की यह विशेषता अपने आपमें अनूठी लगती हैं.

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  23. यह एक भटके हुए युवा और उसके कई महिलाओं से प्रेम की साधारण कहानी होती यदि इसमें अपराध (ब्लैकमेल) और आत्महत्या का एंगल न होता. अब पिता की मर्ज़ी है कि समय के साथ घाव भरने दे या उस औरत को सज़ा दिलवाने के लिए अदालत में चला जाए. रचना जी ने काफी बातें कह दी हैं.

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  24. दुनिया के दस्तूर निराले - निराले ...आपकी हर बात गौर करने योग्य है .....लेकिन किसी निर्णय से पहले परिणाम जानना जरुरी है ...शायद यही गलती उस लड़के ने की, और औरत ने तो मर्यादा की सारी हदें लांघ दी ...! बेहद दुखद और शर्मनाक ...!

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  25. ऐसी घटनाएँ यकीनन दुखद हैं पर सवाल ये हैं गलत करने के मामले में हमारे समाज में महिला पुरुष फर्क है ही क्यों...... जिसकी भी गलती हो उसे सजा मिले चाहे वो महिला हो या पुरुष .....

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  26. ham sab bhi yahaan vahi kar rahe hain n ? we are giving decisions based on one party's narration of the situation - who knows what is the truth ? did we try to get the other side ?

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  27. @ राजन जी ! हमने कोई प्रश्न नहीं उठाया है बल्कि उस कारण की तरफ इशारा किया है जिसकी वजह से युवा ही नहीं बल्कि बच्चे भी आत्महत्या कर रहे हैं . आत्महत्या ही नहीं बल्कि ह्त्या भी कर रहे हैं .

    आज ज़्यादातर लोग किसी धार्मिक हस्ती को आदर्श मानकर जिंदगी नहीं गुज़ार रहे हैं . आज लोगों के रोल मॉडल फ़िल्मी एक्टर्स हैं. परदे पर ये जो कुछ करते हैं उसे युवा और बच्चे अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं. इसी चक्कर में वे सेक्स और क्राइम की दलदल में फँस जाते हैं.
    दिव्या भारती जैसे कई फ़िल्मी सितारे हैं जो ख़ुदकुशी करके अपनी जान दे चुके हैं. युवा और बच्चे आजा अपना ज्यादा वक़्त इनकी फ़िल्में देखकर ही गुज़ार रहा है . उन्हें बचाना है तो उन्हें इनके असर से निकालना ज़रूरी है और उन्हें एक सही आदर्श व्यक्ति का परिचय हमें देना ही होगा. आखिर सवाल करोड़ों जीवन बचने का है.

    इतने सादा से कमेन्ट पर भी आपने ऐतराज़ जता दिया है और ले जाकर हिन्दू धर्म से जोड़ दिया.

    हिन्दू धर्म महान है . यह सही बात है. मैं खुद भी 'यूनिक हिन्दू' हूँ. यूनिक इसलिए कि मैं मनु के धर्म को जानता हूँ और उसका पालन भी करता हूँ जोकि आप नहीं करते.

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  28. बहुत अच्छा पोस्ट है | इसमे एक बात तो पूर्णतया सच है कि समाज मे आज भी यही धारणा है कि गलती हमेशा लड़का ही करता है | क्या कभी किसी लड़की या औरत को आज तक बलात्कार या छेड़छाड़ के केस मे सजा मिली है ? या तो ऐसे मामले सामने ही नहीं आते या आते भी हैं तो मामले का लड़की के पक्ष मे निस्पादन हो जाता है, चाहे गलती किसी की भी रही हो | जहां तक आपके द्वारा उल्लेखित घटना की बात है तो इसमे तो गलती लड़के से भी हुई पर उसके और उसके परिवार के लिए पूर्णतया सहानुभूति है | लड़कियां और औरतें हर क्षेत्र मे आज कल बराबरी कर रही हैं ये बहुत ही खुशी की बात है पर इसी का एक दुखद पहलू ये भी है कि जूर्म, ठगी, शौसन आदि अवांछित कार्यों मे भी उनका एक वर्ग बराबरी करने को आमदा है | ये सब उसी का एक हिस्सा है | जिस तरह पुरुषों मे कुछ अच्छे कुछ बुरे होते हैं उसी तरह स्त्रियॉं मे भी यह बात लागू होती है | मेरा मानना है कि ऐसे लोगों (चाहे पुरुष हो या स्त्री ) बराबर की और कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए |

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  29. कल 20/06/2012 को आपके ब्‍लॉग की प्रथम पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    बहुत मुश्किल सा दौर है ये

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  30. आपकी पोस्ट पढ़ने के बाद बस ये ही कहा जा सकता हैं कि ...यहाँ का हर क़ानून स्त्री के हक में हैं ...मर्द सच्चा होते हुए भी हमेशा संदेह के घेरे में ही रहता हैं ....चाह का भी उस लड़के को मृत्यु के बाद भी न्याय नहीं मिल सकता ....अफ़सोस हैं यहाँ की कानून व्यवस्था पर

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  31. बुरा लगा उस लड़के के बारे में जानकार...लेकिन आपकी बातों से मैं सहमत हूँ!

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  32. ये एक सामाजिक समस्या है जिसमें शातिर औरत ने उस मासूम लड़के कों जाल में फंसाया ... पर कहीं न कहीं वो लड़का भी गुमराह था ... और उसमें हिम्मत की कमी थी ...

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  33. ज्वलंत विषय पार ध्यानाकर्षण बहस अच्छी लगी . कानून अपना कम करेगा . उम्मीद है दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा .

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  34. भोपाल में जो आजकल घटनाये हो रहीं है वह आपकी पोस्ट को बल देती हैं. यहाँ भोपाल में सबसे ज्यादा लड़के आत्महत्याएँ कर रहे हैं. पति अपनी पत्नियों से तंग आकर आत्महत्याएँ कर रहे हैं. पिछले ६ महीनो में भी ऐसी बहुत सी घटनायें यहाँ घटी है जिनमे पत्नियों ने अपने पति की हत्या करवाई. भोपाल में भेल की सुनसान roads पर रात के समय देखें लड़कियां मुंह पर कपडा बांध कर देर रात तक लड़कों के साथ बाइक पर घुमती रहती हैं. भोपाल में जो ढेर सारे कालेज खुल गये है उनके कारन नए भोपाल के अधिकतर क्षेत्र हॉस्टल सिटी में बदल गए हैं. नए भोपाल के लोग इस समस्या से बहुत त्रस्त हैं. कॉलेजेस को लड़कियों के लिए अपने ही परिसर मे हॉस्टल की सुविधा अनिवार्य रूप से देनी चाहिए. भोपाल में हर २ दिन में एक लूट की बड़ी वारदात हो ही जाती है.

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  35. बहुत देर से आयी हूं इसलिए बस संवेदना ही प्रकट करती हूं।

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  36. me dr monika sharma ke comment se sahmat hu

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  37. जो रिश्ते समाज या कानून को कुबूल नहीं होते उनको ले कर ब्लैकमेल के किस्से हमेशा सुनने में आते हैं और यह काम औरत और मर्द दोनों ही करते हैं क्यूंकि कारन होता है आसान रास्ते से धन कमाना |
    ऐसे रिश्तों से बचें | सजा अवश्य मिलनी चाहिए लेकिन केवल हां देने से कुछ नहीं होता कैसे मिले यह भी सोंचना आवश्यक है |

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  38. जो रिश्ते समाज या कानून को कुबूल नहीं होते उनको ले कर ब्लैकमेल के किस्से हमेशा सुनने में आते हैं और यह काम औरत और मर्द दोनों ही करते हैं क्यूंकि कारन होता है आसान रास्ते से धन कमाना |
    ऐसे रिश्तों से बचें | सजा अवश्य मिलनी चाहिए लेकिन केवल हां देने से कुछ नहीं होता कैसे मिले यह भी सोंचना आवश्यक है |

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