मैंने इस blog के जरिये अपने जिन्दगी के कुछ अनुभवों को लिखने का प्रयत्न किया है
Sunday 22 December 2013
फुटबाल मैच का कुछ खट्टा कुछ मीठा अनुभव...
यह बात है इंग्लैंड बनाम मोंटीग्रो के दौरान हुए फुटबाल मैच की, कहने को तो अब यह अनुभव पुराना हो चुका है। पिछले कई दिनों से सोच रही थी कि इसके बारे में लिखूँ मगर लिख ही नहीं पा रही थी। यह बात कुछ महीनों पुरानी है। जब हम लंदन के वेम्बले स्टेडियम में फ़ुटबाल का खेल देखने के लिए गए थे। यूं भी लंदन आकर यदि फुटबाल और विम्बलडन का खेल नहीं देखा तो क्या देखा। विम्बलडन के बारे में तो मैं पहले भी अपना अनुभव आपके साथ बाँट चुकी हूँ इसलिए इस बार मैं बात करूंगी फुटबाल की, हालांकी इंग्लैंड का राष्ट्रिय खेल क्रिकेट है लेकिन लोग फुटबाल खेलना और देखना बेहद पसंद करते हैं। जिसे देखो फुटबाल का दीवाना है। जब कभी कोई मैच होता है, तो बिल्कुल वैसा ही माहौल होता है यहाँ जैसे अपने भारत में क्रिकेट के मैदान में भारत पाकिस्तान के किसी मैच के दौरान हुआ करता है। लोग पूरी तरह जोश और खरोश से भरे हुए रहते है।
बाज़ार से लेकर घरों तक, आम दुकानों से लेकर बियर बार तक, सारा माहौल फुटबालमयी नज़र आता है। यहाँ तक की उन दिनों बच्चे बूढ़े जवान, जैसे सभी एक रंग में रंग जाते है। इसके पीछे भी कई कारण है, यहाँ अपने भारत की तरह बच्चों को केवल यह घोल कर नहीं पढ़ाया जाता कि यदि तुम पढ़ाई लिखाई में कमजोर हो तो तुम्हारा भविष्य अंधकारमय ही है और कुछ नहीं रखा है जीवन में केवल पढ़ाई के सिवा। बल्कि यहाँ इस बात पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है कि बच्चे की रुचि पढ़ाई के अतिरिक्त और किस श्रेणी में है और उसे उसी के रुझान की ओर बढ़ने को प्रोत्साहित किया जाता है, जो अपने आप में एक बहुत ही अच्छी बात है। हालांकी हर चीज़ के पीछे उस बात से जुड़े, अच्छे बुरे दोनों ही पहलू जुड़े होते है, इस बात के पीछे भी है। लेकिन उन पर चर्चा कभी और करेंगे।
फिलहाल विषय से न भटकते हुए, मैं उस रात की बात करती हूँ जब हमें भी यहाँ इस अद्भुत खेल को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उस दिन मैंने पहली बार देखा वह माहौल जिसकी लोग बातें करते है। जिसके विषय में मैंने केवल सुन रखा था मगर देखा कभी नहीं था, इसलिए शायद जब वहाँ जाने का कार्यक्रम बना। तब मैं मन ही मन बहुत उत्साहित थी, तेज़ बारिश और पैर में तकलीफ होने के बावजूद भी मैंने वहाँ जाना ज्यादा ज़रूरी समझा था। क्यूंकि मुझे लगा, ऐसे मौके बार बार नहीं आते। जो अभी मिल रहा है उसे ले लो, क्या पता कल हो न हो। यही सोचकर हम चले भरी बारिश में वेम्बले स्टेडियम। वहाँ पहुंचे ही थे कि लोगों की भीड़ का एक ऐसा हुजूम देखा कि आंखो को यक़ीन ही नहीं आया कि महज़ एक खेल को देखने के लिए इस कदर लोग पागल है।
यह देखकर माहौल का असर हम पर भी हुआ और हम भी थोड़ा थोड़ा जोश में आने लगे थे। तभी क्या देखते हैं कि सामने कुछ लड़के गैंग बनाए खड़े है और खुल कर बदतमिजी कर रहे हैं। हालांकी मैंने पहले भी कई बार इस तरह लोगों को गैंग रूप में घूमते देखा है, ढीली खिसकती हुई जींस पहने, टोपी(हुड) वाली जैकेट पहने, शोर मचाते, गंदगी फैलाते, धुआँ उड़ाते,एक दूसरे को अलग ही नाम से गंदी भाषा का प्रयोग करते हुए अपशब्दों का इस्तेमाल करते, मैंने पहले भी सड़कों पर कई बार देखा है। इतना ही नहीं आते जाते लोगों को भी परेशान करते हैं यह छोटे मोटे गैंग कई बार तो छोटी मोटी लूटपाट तक करते हैं।
लेकिन उस दिन सड़क पर कुछ ज्यादा ही बुरा हाल था। शराब के नशे में धुत कुछ लड़के सड़क के बीचों बीच खुले आम (सुसू) कर रहे थे और गंदगी फैला रहे थे। यह देखकर मेरा मन मैदान में अंदर जाने से पहले ही थोड़ा खट्टा हो गया। भीड़ की तादाद ज्यादा होने के कारण पुलिस भी इन्हें रोक पाने में नाकाम नज़र आ रही थी। उस दिन मैच देखने की चाहत में लोगों की भीड़ के जत्थे ऐसे जान पड़ रहे थे, मानो यहाँ कोई मैच नहीं बल्कि कोई क्रांति की शुरुआत होने वाली है। जिसमें लोग जी-जान से भाग लेने किए उतावले हुए जा रहे हैं। लोगों की ऐसी शर्मनाक हरकत देखने बाद मेरे मन में एक पछतावा सा होने लगा था। यूं लगा नाहक ही इतना कष्ट उठाया यहाँ आने का, इस सब से तो घर बैठे टीवी पर ही ज्यादा अच्छे से इस खेल का आनंद लिया जा सकता था और एक बात मन में यह भी आई कि जब भीड़भाड़ वाला माहौल हो तो देश चाहे कोई भी हो, कितना भी विकसित क्यूँ न कहलाता हो। लेकिन जनता का व्यवहार सभी जगह एक सा ही नज़र आता है। सभी जैसे अपनी-अपनी सभ्यता को ताक पर रखकर वही सब करते है जो उन्हें नहीं करना चाहिए।
खैर पछताने से कुछ होने जाने वाला तो था नहीं, अब आ ही चुके थे और टिकिट भी खरीद ही चुके थे तो वापस लौटने से तो रहे। सो तय हुआ कि अब जो होगा देखा जाएगा चलो, सो अंदर पहुँचने के बाद मन को थोड़ी शांति मिली कि माहौल कुछ काबू में दिखने लगा था। हम लोगों की सीट फेमिली स्टैंड में थी, इस कारण आस पास कई सारे परिवार और छोटे बड़े बच्चे हर्ष और उल्लास से उत्साहित होकर शोर मचा रहे थे और माहौल का मज़ा ले रहे थे। साथ ही भारी बारिश के बावजूद खेल के मैदान और दोनों खिलाड़ियों की टीम की लाल पीली वेषभूषा दोनों ने मिलकर खेल के मैदान को और भी रंगीन बना दिया था, बच्चों के हाथ में ताली की जगह लाल रंग के गत्ते से बनने जापानी पंखे नुमा पंखे थे। जो वहीं सभी को सीटों पर रखे मिले थे। जिनका उपयोग ताली बजाने के लिए किया जाना था क्यूंकि उनसे शोर ज्यादा निकल रहा था।
जिसे वहाँ बैठे सभी लोग कभी अपने हाथ पर मार कर बजाते थे, तो कभी कुर्सियों पर मारकर। स्टेडियम की व्यवस्था करने वालों के द्वारा वहाँ बैठने की व्यवस्था और कुर्सियों का रंग साथ ही गत्ते से बने पंखों का रख रखाव भी वहाँ कुछ इस तरह से किया गया था कि जब जनता जोश में आकर उसका प्रयोग करे तो वहाँ लगे बड़े बड़े कैमरे पर वह सब कुछ इंग्लैंड के झंडे के रूप में उभर कर नज़र आए। जैसे लाल पर सफ़ेद प्लस का निशान उभरे जो टीवी पर मैच देख रही जनता को भी जोश से भर दे। इसलिए आधी सीटों पर लाल रंग था और आधी पर सफ़ेद कुल मिलकार सभी चीजों के लाल पीले, हरे नीले, रंगों ने मिलकर वहाँ के माहौल को न सिर्फ रंगीन बल्कि जोशीला भी बना दिया था। यही नहीं स्टेडियम की व्यवस्था दवारा जनता के लिए बीच-बीच में सफ़ेद पर्दे नुमा झंडे भी फेंके गए थे। जिसे गोल होने पर खोलते हुए लहरिया तरीके से हिलाया जाना था। इंग्लैंड का गोल होते ही सारा स्टेडियम शोर शराबे से गूंज उठता था। मोंटीग्रो की टीम हार ज़रूर गयी थी यह मैच किन्तु इंग्लैंड के लिए भी यह मैच जीतना आसान नहीं था। उन्होने इंग्लैंड को बहुत कड़ी टक्कर दी थी लेकिन ज़मीन इंग्लैंड की, जनता इंग्लैंड की, तो जोश और प्रोत्साहन भी ज्यादा इंग्लैंड की टीम को ही मिला। शायद इस वजह से भी मोंटीग्रो की टीम यह मैच हार गयी। मगर जो माहौल बनता था बस वही खेल की जान होता है।
हम भी मज़ा ले ही रहे थे कि अचानक हम से ज्यादा असर शायद हमारे आगे बैठे व्यक्ति के सर चढ़कर बोला और फिर उसने जो किया....उसके विषय में मैं क्या कहूँ।
हमारे आगे वाली सीट पर एक अँग्रेज़ व्यक्ति अपने दो बच्चों के साथ मैच देखने आया हुआ था। अपनी टीम का हौंसला बढ़ाना, उसके लिए ज़ोर ज़ोर से चिल्ला चिल्लाकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करना और विपक्ष की टीम को गरियाना यह सब समझ आता है। आखिर यह सब न हो तो भला खेल के मैदान में माहौल ही न बने। मगर खेल के मध्यांतर में जैसे ही इंग्लैंड की टीम ने दूसरा गोल किया, उसने जोश में अपनी पतलून उतार दी थी और इतनी जनता के बीच नग्न खड़ा होकर अपनी तशरीफ़ को ठोक-ठोक कर विपक्ष के लोगों को गरिया रहा था। मैं तो वह देखकर सन्न रह गयी थी जबकि उस व्यक्ति के बच्चे मेरे बेटे से भी छोटे थे। यह सब देखकर तो मुझे ऐसा लगा कि मैं क्या करू, कहाँ जाऊँ। उसके अपने बच्चे यह सब बड़े आश्चर्य से देख रहे थे। सारे मैच का तो जैसे मज़ा ही किरकिरा हो गया। उस दिन से मैंने कान पकड़े कि फिर कभी कोई मैच देखने जाने के विषय में सोचूँगी तक नहीं। जाना तो बहुत दूर की बात है। तौबा :)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
फुटबाल खेलता रहा हूँ तो बता सकता हूँ कि इससे अधिक दमखम का कोई खेल नहीं। दर्शकों के उन्माद को फिर भी नहीं समझ सका।
ReplyDeleteवाह गए थे फुटबाल का खेल देखने और देख लिए तमाम तरह के गंदे दृश्य जो कुछ पछताने और कुछ हैरान करने पर विवश कर गए,लेकिन चलो इस सब के बीच आपको मैच की कई बातों के बारे में पता चला होगा। आपके लिए कुछ-कुछ खुशी और ज्यादा समय दुख का अनुभव रहा होगा यह मैच। बढ़िया संस्मरण।
ReplyDeleteखेल के जोश में, विशेष कर फुटबॉल के मैच में,यह हरकतें/जोश अक्सर दिखाई देता है, जो निश्चय ही सभ्य समाज में स्वीकृत नहीं होना चाहिए.
ReplyDeleteआंखों देखा हाल रोचक है ..
ReplyDeleteचलो आपने कम से कम अंग्रेजों की असभ्यता तो देख ली। नहीं तो हम उन्हें सभ्य कहने से ही थकते नहीं है।
ReplyDeleteजूनून में इन्सान जो न करे वो कम है ... पर कई बार लगता है ऐसा जूनून किस काम का जो सहयात्री का ख्याल न साख सके ...
ReplyDeleteइंसानी जुनून और जज्बा क्या न करवाए ..........
ReplyDeletejosh me log hosh kho baithate hain ye to sabit ho hi gaya ..hal sunane ka shukriya isase ye bhi pata chala duniya ke har hisse me har tarh ke log hai ye ham hi hai jo bahr sirf achchha aur ghar me sirf bura dekhate hai ...sundar bayan..
ReplyDeleteबढ़िया संस्मरण। आपको हमेशा याद रहेगा :)
ReplyDeleteआँखों देखे मैच का रोचक विवरण .... जूनून में लोग असभ्य भी हो जाते हैं ये आपके लेखन से पता चला ...
ReplyDeleteमुझे तो उत्सुकता यह जानने में है कि वह व्यक्ति गिरफ्तार हुआ या नहीं. खुलेआम नग्नता तो कई विकसित देशों में जेल जाने लायक अपराध है.
ReplyDeleteरोचक संस्मरण साझा किया .....
ReplyDeleteक्या बात वाह! बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteअरे! मैं कैसे नहीं हूँ ख़ास?
आप वहाँ पर खड़े Steward को किसी की अभद्रता के बारे में बोल सकते हैं और वो उस व्यक्ति को स्टेडियम से बाहर कर सकते हैं लेकिन हम से steward काफी दूर था और किसी ने भी शिकायत नहीं की।
ReplyDeleteकहते हैं कि आदिम काल में लोग खेलते थे तो फुटबाल की जगह शत्रु की खोपड़ी होती थी. उस समय की हिंसा आज इस रूप में जीवित है. आपके जो भी अनुभव हुए वह उसी आदिम प्रवृत्ति के अवशेषों के कारण थे.
ReplyDelete