मैंने इस blog के जरिये अपने जिन्दगी के कुछ अनुभवों को लिखने का प्रयत्न किया है
Wednesday, 15 January 2014
एक शाम ऐसी भी..
अभी कुछ दिन पहले की बात है शाम को पीने के पानी का जग (जिसमें फिल्टर लगा हुआ है) भरने के लिए जब मैंने अपनी रसोई का नल खोला तो उस समय नल में पानी ही नहीं आ रहा था। घर में पानी का ना होना मेरे मन को विचलित कर गया कि अब क्या होगा। लंदन(या तथाकथित विकसित देशों) में रहने का और कोई फायदा हो ना हो मगर बिजली पानी की समस्या से कभी जूझना नहीं पड़ता। कम से कम इसके पहले तो मुझे यहाँ कभी ऐसा कोई अनुभव नहीं हुआ।
खैर पानी न होने के कारण एकदम से ऐसा लगा कि अब क्या होगा। घर में तो ज़रा भी पानी नहीं है। पीने का पानी तो चलो बाज़ार में मिल जायेगा किन्तु अन्य कार्य कैसे होंगे। यह सोचते-सोचते जैसे मैं कहीं गुम हो गई थी। फिर जैसे अचानक मुझे मेरे ही दिमाग ने निद्रा से जगाते हुए कहा कि अरे इतना क्या सोचना, थोड़ी देर में सब ठीक हो जाएगा। यह लंदन है कोई हिंदुस्तान नहीं है कि जहां कई जगहों पर कई-कई दिनों तक पानी ही नहीं आता।
जबकि यह तो इंसान की सबसे बड़ी जरूरत है। राजा हो या रंक पानी तो सभी को चाहिए ही। फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि यहाँ पानी ही न आए। चिंता करने से अच्छा है, पहले अपने घर का पानी का मीटर अच्छे से देख-परख लो कई बार पानी के कम ज्यादा दबाव के कारण भी पानी होते हुए भी नल में पानी आ नहीं पता है।
दिमाग की बातों से दिल को ज़रा हौसला मिला और मैंने अच्छे से जाँच पड़ताल भी की, मगर यह क्या पानी तो सच में नदारद था। अब तो मुझे चिंता हो ही गयी, क्या करुँ क्या ना करुँ कुछ समझ नहीं आ रहा था। जल्दबाज़ी में श्रीमान जी को फोन घुमा दिया और समस्या बतायी तो उन्हें भी सुनकर ज़रा अचंभा हुआ कि आज ऐसा कैसे हो गया। फिर उन्होंने कहा ज़रा देर ठहरो मैं मकान मालिक से बात करता हूँ। शायद उन्हें इस समस्या का कोई हल पता हो। उनकी बात सुनकर मैंने खुद को एक चपत लगायी कि अरे मेरे दिमाग यह बात पहले क्यूँ नहीं आयी।
लेकिन मैंने सहमति दर्शाते हुये हाँ कहकर फोन रख दिया। इधर अभी मैंने फोन रखा ही था कि घर के दरवाजे पर दस्तक हुई। देखा तो पड़ोस में रहना वाला गोरा (अँग्रेज़) पड़ोसी भी यही पूछने आया था कि आपके घर में पानी आ रहा है क्या ? मैंने कहा नहीं शायद आज यह समस्या अपने पूरे क्षेत्र की है। यह सुनकर वह धन्यवाद कहकर चला गया। किन्तु यह सुनकर मेरे मन को यह तसल्ली हुई कि यह अकेले मेरे घर की समस्या नहीं है। इतने में श्रीमान जी का फोन दुबारा आया और उन्होने बताया कि मकान मालिक से बात हो गयी है। उनका कहना है कि उनके यहाँ भी पानी नहीं आ रहा है। आमतौर पर जब कभी ऐसी कोई समस्या होती है तो पहले ही घर पर पत्र आ जाता है।
किन्तु आज अभी तक तो कोई पत्र आया नहीं, इसका मतलब है ज़रूर कोई अकस्मात आयी हुई समस्या होगी। चिंता न करें शायद थोड़ी देर में आ जाएगा।
मैंने कहा ठीक है देखते हैं कितना समय लगता है मगर मन ही मन दिमाग में यह विचार कौंध रहा था कि अरे लंदन में भी ऐसा होता हैं क्योंकि इसके पहले मैं जहां कहीं भी रही, वहाँ मैंने ऐसा कभी ना देखा न सुना। यहाँ (लंदन) यह मेरे लिए यह पहली बार था।
हालांकी कुछ महिनों पहले यहाँ बिजली भी गयी थी। तब तो मेरा दिमाग चल गया था अर्थात चिंता नहीं हुई थी। तब मुझे लगा था शायद एमसीबी गिर गया होगा वापस उठा देने से बिजली आ जाएगी। मगर तब ऐसा कुछ हुआ नहीं था। उस दिन वास्तव में अपने हिंदुस्तान की तरह यहाँ भी बिजली गयी थी। बाहर भी एकदम घुप्प अँधेरा था, क्यूँ ना होता ! यहाँ अपने यहाँ कि तरह तो होता नहीं कि बिजली गुल होते ही लोग बाहर। यहाँ तो उस वक्त चारों तरफ सन्नाटा था सिवाय आने जाने वाली गाड़ीयों के शोर के और कोई आवाज़ ही नहीं थी। लेकिन तब जल्द ही बिजली आ गयी थी। ज्यादा देर परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। यूं भी बिजली बिना तो फिर भी रात गुजारी जा सकती है। मगर पानी बिना तो बहुत ही मुश्किल है।
लेकिन सिवाय इंतज़ार के और क्या किया जा सकता था। मैंने श्रीमान जी को पहले ही पीने का पानी लाने को कह दिया था। मगर फिर भी मन ही मन रह –रहकर यह ख्याल मेरे दिमाग में खलबली मचा रहा था कि यदि पूरी रात पानी ना आया तो क्या होगा। यहाँ तो पानी जमा करके रखने का प्रचलन भी नहीं है। सो हम भी ऐसा नहीं करते और यहाँ की व्यवस्था की मेहरबानी से कभी ऐसा करने की जरूरत भी नहीं पड़ी। अशांत मन के कारण बार-बार अपने यहाँ की याद आ रही थी। सच कितनी समझदारी और सूझबूझ से चलते हैं वहाँ लोग, आज से नहीं बल्कि हमेशा से, जब अथाह पानी था तब भी पानी को बचाकर रखने की परंपरा थी और वर्तमान हालातों से तो आप सभी भली-भांति परिचित हैं ही। तब बस यूँ ही एक विचार आया कि भारत के लोग कितने भी आधुनिक क्यूँ ना हो जाये कुछ मामलों में तो ज़मीन से जुड़े रहेंगे ही।
हालांकी एक बात तो यहाँ की भी माननी ही पड़ेगी कि यहाँ की ज़िंदगी कितनी भी भौतिकतावादी क्यूँ न हो। मगर आम लोगों की सुविधा और रोज़ मररा ही की ज़िंदगी से जुड़ी जरूरतों का यहाँ भरपूर खयाल रखा जाता है। यदि उनसे पैसा लिया जाता है तो सुविधाएं भी वैसी ही दी जाती है। ताकि जनता को कम से कम परेशानी हो और इसी बात का नतीजा यह था कि हमारे क्षेत्र में जिस कंपनी के माध्यम से पानी आता है उन्होने अपनी वैबसाइट पर खेद व्यक्त करते हुये ना सिर्फ क्षमा याचना की थी बल्कि समस्या का कारण भी बताया था और समय भी कि कब तक पानी आ जाएगा और ठीक उसी वक्त पानी आ भी गया था। और क्या चाहिए...
तब जाकर मेरे मन को चैन मिला और दिल से एक बात निकली कि काश अपने यहाँ (हिंदुस्तान) में भी सरकार और प्रशासन के लिए जनता की जरूरत और उनकी सहूलियत सर्वोपरि हो जाए और वहाँ भी लोगों को रोज मररा की ज़िंदगी से जुड़ी अहम जरूरतें और ऐसी सुख सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हो सकें। तो कितना अच्छा हो...
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काश की ऐसा हो सके ... अभी तो ये बात सपनों की बात लगती है ... बेचारे कितनी बार माफ़ी मानेंगे ... किस किस के लिए मांगेंगे ...
ReplyDeleteकाश सभी ज़रुरती चीजों का सरकार ध्यान रखे ।यहाँ तो पानी बिजलिबहुत जगह मुहैया ही नहीं है
ReplyDeleteवाकई आपकी चिंता सही है कि काश भारत में भी आकस्मिक समस्याओं के अतिरिक्त बनाई या उत्पन्न की गईं समस्याएं हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाएं। बहुत बढ़िया अनुभव लिखा है आपने। एकदम रोचक और दिलचस्प तरीके से लिखा गया है।
ReplyDeleteहमारे यहाँ परेशानी यह है कि जो भी सुविधा मिलती है , हम उसका दुरूपयोग करने लगते हैं। पानी फ्री का रहे या आसानी से मिले तो हमारी गाड़ियां मोटे पाईप से धुलती है , चाहे पड़ोसी के घर में एक जग पानी भी ना जा सके।
ReplyDeleteयह जानकर अच्छा लगा कि वहां भी पड़ोसी से पूछते हैं ! :)
ReplyDeleteयहाँ तो आधी जनता बिजली पानी मुफ्त मे पा रही है . इसलिये हो तो सही , ना हो तो भी सही !
जमीन से गहराई से जुड़ा रहना ही हमारी पहचान है.. सही कहा है.. बढ़िया लिखा है .
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16-01-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
ReplyDeleteआभार
हर देश की अपनी समस्या है। लेकिन यह सच है कि जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति अवश्य होनी चाहिए। पहले राजा मनुष्यों के लिए ही नहीं अपितु जानवरों के पीने के लिए भी पानी की प्रचुर व्यवस्था करते थे। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उदयपुर की झीलें मनुष्य के पानी के लिए नहीं बनी थी अपितु जानवरों के पानी पीने के लिए बनी थी, जिन्हें आज मनुष्यों के लिए प्रयोग में लिया जा रहा है। अनेक कुए, बावडियां बनवायी जाती थी। नदियों को स्वच्छ रखने के लिए उन्हें पूजा जाता था लेकिन आज जनसंख्या विश्फोट के कारण स्थितियां बदल गयी हैं।
ReplyDeleteकम से कम ज़रूरी चीज़ें तो सबके हिस्से आयें .... रोचक ढंग से प्रस्तुत प्रासंगिक विचार
ReplyDeleteबिजली की आंखमिचौली तो जरूर होती है मेरे गाँव में लेकिन पानी की समस्या कभी नहीं होती क्योंकि महज १५-२० फीट में ही पानी आ जाता है हैंडपंप में. वो भी ऋतु के अनुकूल (ठंडा या गुनगुना).
ReplyDeleteना जाने अपने देश में ऐसी व्यवस्था कब हो. सीमित संसाधन और विपुल जनधन. वही सारी व्यवस्थाएं दवाब में आ जाती हैं.
बिजली की आंखमिचौली तो जरूर होती है मेरे गाँव में लेकिन पानी की समस्या कभी नहीं होती क्योंकि महज १५-२० फीट में ही पानी आ जाता है हैंडपंप में. वो भी ऋतु के अनुकूल (ठंडा या गुनगुना).
ReplyDeleteना जाने अपने देश में ऐसी व्यवस्था कब हो. सीमित संसाधन और विपुल जनधन. वहीँ सारी व्यवस्थाएं दवाब में आ जाती हैं.
जानकर अच्छा लगा
ReplyDeleteहिंदुस्तान मे भी सारी जरूरत का खयाल सरकार रखती है, ऐसा मुझे लगता है .......
ReplyDeleteऐसा होता है कभी कभी (साल में एक बार) मेंटेनेंस के चलते. और सामान्यत: इसकी जानकारी पत्र द्वारा पहले से ही दे दी जाती है कि इस दिन इस समय अवधि में पानी नहीं आएगा..
ReplyDeleteएक बार हमारे साथ भी हुआ था ऐसा :).
Hindustan vakai abhi bahut pichhada hua desh hai yahan dimag hai dil hai kam karane ke liye hath hai sab kuchh hai pr eeman nahi hai . jis din ye aa jayega uske bad hm bhi viksit ho jayenge .
ReplyDeleteदिल्ली प्रवास के दौरान देखा कि मकान मालिक रात को वाटर पंप चला कर सो जाते थे कि जब भी पानी आए उससे टंकी भर जाए. इस प्रक्रिया में रात भर बहुत सा पानी बेकार चला जाता था. गरीबों की बस्तियों में पीने तक को पानी नहीं होता था और राजेंद्र नगर में पानी की ऐसी बर्बादी होती थी.
ReplyDeleteहमारे यहाँ सिस्टम बने ही नहीं और कहीं बने भी तो उन्हें चलाने के लिए ज़रूरी सिविक सेंस नहीं है. आपको बधाई हो कि आप वहाँ के सिस्टम देख रही हैं और भारत लौटने पर यहाँ वैसे सिस्टम देखना चाहेंगी.
मूलभूत आवश्यकताओं का ख़्याल और वह भी विनम्रता के साथ, और क्या चाहिये?
ReplyDeleteअन्त भला तो सब भला |पढ़कर पहले हैरानी हुई फिर सुकून मिला |
ReplyDeleteजानकर बहुत अच्छा लगा..आभार
ReplyDeleteकाश यहाँ भी जनता की सुविधा के बारे में व्यवस्था और प्रशासन कुछ सोचता...
ReplyDeleteAti sundar vivaran.. aur vyastha par tulanatmak tippani...
ReplyDeleteHara Bhart pahle sabhee desho se achcha thaa... desh barbaad huaa Azadi ke baad... goro ke baad kaale kauvo (neta) ne aam janta ko noch khaaya...
one day things will change is our country as well...
मुझे लगता है कि इस तरह की किसी भी समस्या का मूल कारण संस्थानों का अपव्यय है ......अच्छी विवेचना की है , सस्नेह !
ReplyDeleteमुझे लगता है कि इस तरह की किसी भी समस्या का मूल कारण संस्थानों का अपव्यय है ......अच्छी विवेचना की है , सस्नेह !
ReplyDeleteआपकी सोच के मुताबिक अच्छा लेख लिखा गया है ....कभी कभी मूल समस्या हर जगह आ ही जाती है
ReplyDeleteहर देश की अपनी समस्या है
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