बात गंभीर है इसे हल्के में ना लिया जाये पर आज का कटु सत्य यही हैं। माना कि
इंटरनेट आज हमारी सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है इसके बिना जीवन संभव नहीं है। आज
इंटरनेट है तो हम है और उसी की कृपा से मैं आज यहाँ यह सब लिख पा रही हूँ। इंटरनेट ना होता तो पेंडमिक साल में लोग मानसिक
रूप से गंभीर बीमारियों की चपेट में आसानी से आ गए होते। लेकिन इस इंटरनेट ने ऐसा होने
से सभी को बचा लिया। बड़ी कृपा है इस इंटरनेट कि जिसके माध्यम से हमारे बच्चों की
शिक्षा छूटने से बच गयी। अगर सभी अध्यापकों ने ऑनलाइन क्लासेस ना ली होती तो दसवीं
और बारहवीं वाले बच्चों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाती। बच्चों के साल बर्बाद होते वो अलग, इसलिए सभी अध्यापकों
का आभार सहित धन्यवाद है। इंटरनेट के बिना
अपनी दुनिया की कल्पना तक नहीं की जा सकती। यदि यह ना होता तो महिलाओं के अंदर छिपा
हुनर बाहर निकल के ना आ पाता। कई लोगों को पेंडमिक के दौरान इसी इंटरनेट ने भूखों मरने से बचाया है। यूँ देखो तो आज की आधुनिक जीवन शैली का ना सिर्फ एक अहम् हिस्सा
है इंटरनेट बल्कि कइयों के लिए तो यह भगवान है इंटरनेट। यदि मैं ऐसा कह रही हूँ तो
इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए और मैं यदि इसके इस मोबाइल नामक यँत्र की
जितनी तारीफ़ करूँ कम ही होगी। लेकिन वही दूसरी ओर अब जो कुछ भी मैं कहने जा रही
हूँ, वह भी इस इंटरनेट के इस मोबाइल नामक खतरनाक यँत्र की वह
देंन है, जो इंटरनेट का एक बहुत ही घिनौना और भयावह रूप लेकर हमारे सामने आता है।
यह कोई आज की बात नहीं है, लेकिन आजकल इन बातों का प्रचलन पहले की तुलना में
इतना अधिक बढ़ गया है कि सोचते ही रोंगटे खड़े हो जाते है। आजकल जहां देखो वहाँ हर वैबसाइट
पर इस तरह के विज्ञापन आने शुरू हो जाते हैं और गलती से भी यदि मोबाइल देखते वक्त आपके
अंगुलियों के स्पर्श से ऐसे किसी लिंक पर हाथ लग जाये। तो फिर तो, कहना ही क्या।
तब जैसे इस तरह की सामग्री की तो जैसे बाढ़ ही आ जाती है। हर जगह बस उसी से संबन्धित
विडियो ही आपके सामने आकर आपको शर्मिंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। यूं तो हम देश
के विकास की बात करते है, गाँव के सुखद जीवन और ज़मीन से जुड़े
रहने की बातें करते हैं, हमारे और आपके लेखन में भी गाँव की गलियों
से लेकर गाँव की पगडंडियों तक का ज़िक्र होता है, खेत खलियानों
का ज़िक्र होता है, गाँव की शुद्ध हवा और साधारण से देखने वाले
नेक लोगों का जिक्र होता है। खेतों की बात निकलते ही हम अपने बचपन की स्मृतियों में
खो जाना चाहते है। लेकिन आज इस इंटरनेट की दुनिया ने जैसे यह सब धूमिल कर के रख दिया
है। आज वही गाँव के रहने वाले और साधारण से दिखने वाले लोग ही खेतों में जाकर ऐसे
ऐसे अश्लील विडियो बना रहे हैं कि देखते ही, सर चकराने लगता
है, आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है या फिर आँखें इस कदर चौंधिया
जाती है कि दिखाई देना बंद हो जाता है और गाँव के लोगों के संस्कारों की धज्जियां बिखर
जाती है। हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता की बातें जैसे मुंह छिपाने लगती है। और ऐसा
सिर्फ गांवों में नहीं होता शहरों में भी बहुत बड़े दर्जे पर हो रहा है और शहरों की ही यह जहरीली हवा है जिसने गाँव की शुद्ध हवा को भी दूषित कर कचरे में गिरा दिया है।
अब आप सोच रहे होंगे कि मुझे यह सब कैसे पता ? है ना ! तो मैं
यहाँ यह बताती चलूँ कि मुझे ऐसी सामग्री देखने में कोई दिलचस्पी नहीं है। लेकिन आजकल
जो यह “रील” बनाने और देखने का सिलसिला चल निकला है ना ! यह बस उसी की देन है। अब
कोई माने या ना माने पर सच तो यही है कि हर कोई जब भी अकेले बैठता है तो मोबाइल पर चाहे
खुद रील बनाए या ना बनाए लेकिन समय काटने के लिए रील देखता ज़रूर है। और बस यही से उसकी
जिंदगी बर्बाद होने की शुरुआत हो जाती है। क्यूंकि जब तक आप अच्छी सामाग्री देख रहे हो, तब तक तो ठीक है। लेकिन इस बीच यदि
ऐसा कोई भी कनटेंट आ गया जिसे हम अश्लील की श्रेणी में रखते है तो बस समझ लीजिये फिर
आपका मोबाइल इस तरह की सामग्री परोसने का गढ़ बन जाएगा और आपके मान सम्मान और प्रतिष्ठा की लंका लगा देगा। कभी कभी सोचती हूँ तो लगता है जब हम जैसों का यह हाल है तो जरा उन
उम्र दराज़ व्यक्तियों के विषय में सोचिए। जिन्हें ठीक से दिखाई नहीं देता या फिर जिनकी
अगुलियाँ ठीक से काम नहीं करती। जब वह बुजुर्ग लोग इंटरनेट के माध्यम से खुद को मनोरंजित
करने का प्रयास करते हैं या समय काटना चाहते हैं, तो वह क्या
करें ? उनके हाथों से तो अक्सर ऐसी गलतियाँ हो जाया करती हैं
और हम उनके चरित्र पर तुरंत उँगलियाँ उठाने और अपशब्द कहने में देर नहीं करते।
अभी तो बात बुज़ुर्गों तक ही है। जरा युवा पीढ़ी के बारे में सोचिए। वह तो दिन
रात इंटरनेट पर ही बिताते हैं। चौबीसों घंटे उनका समय चाहे पढ़ाई से संबन्धित हो या
खेल से संबन्धित इंटरनेट पर ही बीतता है। क्या उनकी आँखों के सामने से यह सब नहीं गुज़रता
होगा ? बिलकुल गुज़रता
होगा। कई युवा तो इसी पर ध्यान देते भी होंगे, तो कई इसे नज़र
आंदज करके आगे भी निकल जाते होंगे। अब जरा उन छोटे बच्चों के विषय में सोचिए, जिनके स्कूल का बहुत सा काम इंटरनेट से जुड़ा होता है। आमतौर पर हम इतने छोटे
बच्चों को अलग से मोबाइल देना उचित नहीं समझते। तो वह या तो अपनी मम्मी या पापा के
मोबाइल पर ही अपना सारा काम देखते समझते और करते हैं। वैसे अधिकतर मम्मियों का मोबाइल
ही होता है पापा लोग अपना मोबाइल बच्चों को देना पसंद नहीं करते। शायद “चोर की दाढ़ी
में तिनका” वाली कहावत यहाँ सच बैठती हो। खैर यह तो मज़ाक वाली बात हो गयी। तो हम बात
कर रहे थे बच्चों की, तो बच्चे अपना सारा काम मम्मी के मोबाइल पर करने के बाद फिर थोड़ी
देर मोबाइल पर खेलने की ज़िद भी करते हैं। कई बार यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर अपनी पसंद की कोई कार्टून फिल्म देखना भी पसंद करते हैं और आपको गाहे बगाहे उन्हें अपना मोबाइल
देना ही पड़ता है। तो आपको क्या लगता है ऐसे में आपका बच्चा इस प्रकार की सामाग्री देखने
से कितना सुरक्षित है क्यूंकि आप एक व्यस्क है और यूट्यूब पर कब कौन से लिंक के नीचे
आपको क्या लिंक देखने को मिल जाये इस बात की गारंटी शुरू से ही यूट्यूब पर नहीं होती।
चलिये एक बार को मान लेते हैं कि इतने छोटे बच्चे तो फिर भी इस सब से बचे रहते
हैं क्यूंकि उन्हें उस दौरान केवल अपने कार्टून से मतलब होता है और किसी चीज़ से नहीं।
लेकिन हमारे युवा होते बच्चों का क्या ? उनके मन में तो हार्मोनल लोचों के चलते इन
सब चीजों के प्रति वैसे ही बहुत कोतूहल और जिज्ञासा पनपती रहती है। ऐसे में बिना सही
जानकरी प्राप्त किए उन्हें यह सब इंटरनेट पर खुल्लमखुल्ला देखने को मिल रहा है। जिसके कारण
सही जानकारी के अभाव में उन्हें पथभ्रष्ठ होने में जरा समय नहीं लगता। भले ही दिखाये
जाने वाले विडियो में लड़का और लड़की किसी भी तबके या प्रांत के क्यूँ ना दिखाई दे रहे
हों, भले ही लड़की को देखकर यह साफ पता चल रहा हो कि वह सभ्य परिवार की ना होकर किसी देहव्यपार वाली जगह से लायी गयी है। कौन जाने उसकी ऐसी क्या मजबूरी
है जो उसे अपने काम के बदले में मिलने वाले पैसे के लिए यूं इस तरह, वीडियो में भी शामिल होकर देह प्रदर्शन भी करना मंजूर किया होगा।
खैर कारण चाहे जो भी हो, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि महिलाओं के प्रति बढ़ते
बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के पीछे कहीं न कहीं इस तरह के विडियो, रील्स आदि भी उतने ही जिम्मेदार हैं, जितना कि ऐसा कुकृत्य
करने वाला अपराधी। क्यूंकि कहीं न कहीं पैसा कमाने के चक्कर में आज गाँव से आया सीधा
सदा आदमी जब अपना परिवार गाँव में छोड़कर शहर आता है और जब यहाँ आकर उसके हाथ सफलता
कम और निराशा ही ज्यादा हाथ लगती है तो वह अपराधबोध का शिकार हो जाता है फिर शहर
में रहना है तो मोबाइल रोटी से अधिक अवश्यक चीज़ बन जाता है। क्यूंकि अब तो किसी कि
मेहनत का मेहनताना हो या वेतन केवल मोबाइल पर ही दी जाती है। फिर यदि मेहनत करने वाली
स्त्री हो तो फिर भी पैसा बचाकर अपना स्तर ऊपर उठाने का प्रयास करती है। लेकिन वहीं
जब कोई पुरुष हो तो वह नशे की लत में पड़ अपना पूरा वेतन नशे की सामग्री में ही उड़ा
दिया करता है और ऊपर से यह मोबाइल पर परोसे जाने वाली अश्लील सामाग्री उसे कहीं का
नहीं छोड़ती। फिर वो अपना फ्रस्टेशन मिटाने के लिए मासूम लड़कियों को अपना शिकार बना
डालता है।
वैसे तो इस प्रकार की भूख मिटाने के लिए ही शायद यह देहव्यापार के अड्डे बनाए
गए हों। लेकिन वहाँ भी पैसा ही बोलता है और नशे में पड़े व्यक्ति के पास पैसा बचता
ही कहाँ है, जो वहाँ जाकर अपनी भूख मिटा सके। फिर भूख तो भूख ही होती है जो कब इंसान को इंसान से जानवर बना दे इस बात का पता खुद
इंसान को भी नहीं चलता। अफसोस की इन भूखे भेड़ियों का शिकार बन जाती है हमारी मासूम
बेटियाँ। इसलिए मैं चाहती हूँ कि साइबर सिक्योरिटी वाले इस सिलसिले में ऐसा कोई कदम
उठाएँ कि इस तरह का वयस्क कंटैंट सभी के हाथों इतनी आसानी से ना पड़े जितनी आसानी
से आज के समय में उपलब्ध है ।
वैसे तो यह बहुत ही गंभीर विषय है पर एक स्त्री होने के नाते मैंने यह विषय उठाया है तो निश्चित ही मुझ पर बहुत से सवाल उठेंगे और मेरा इस आलेख को कहीं कोई स्थान नहीं मिलेगा। क्यूंकि इसकी सामग्री में अश्लील शब्द जुड़ा है। यूं भी हमारे देश में लोग अश्लीलता देखना पसंद कर लेते हैं लेकिन पढ़ना पढ़ना कोई पसंद नहीं करता। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं हमारी आजकल की फिल्में खैर वह एक अलग मुद्दा है। लेकिन मैं तो बस इतना चाहती हूँ कि इस आलेख को कहीं ऐसी जगह स्थान अवश्य मिले जहां से यह विषय जन जन तक पहुँच सके और लोग इस विषय को गंभीरता से सोच सकें। मेरा इस आलेख के माध्यम से खुद का प्रचार प्रसार करने का कोई इरादा नहीं है। मैं तो बस विषय कि गंभीरता को आमजन तक पहुंचाना चाहती हूँ।
तो जो कोई भी पत्र पत्रिका या समाचार पत्र मेरे ब्लॉग
से ब्लॉग उठाए कृपया सूचित अवश्य करें। ताकि मुझे यह पता चल सके कि मेरा विषय आमजन तक
पहुंचा या नहीं। धन्यवाद
सरकार को सुझाव दीजिये इस विषय पर शायद सरकार आपकी बात पर ध्यान दे कर कुछ कानून बना पाए |
ReplyDeleteजी मैं भी वही चाहती हूँ कि इस पर कोई ना कोई कड़े क़ानून अवश्य बनाय ही जाने चाहिए
Deleteआपका कहना बिलकुल ठीक है पर सत्य ये भी है की जितने क़ानून होंगे उनका पालन उतना ही मुश्किल होगा … इसका समाधान सामाजिक, क़ानूनी, हर व्यवस्था में बदलाव लाने से होगा …
ReplyDeleteजी बिकुल सही कह रहे हैं आप. 🙏🏼
ReplyDeleteकानून तो बहुत हैं, मगर इसे लागू करने में कई मुश्किल है। आज के युग में व्यक्तिगत स्वतंत्रता जरूरी है। मगर कानून बनाने वाले में कई इतने सजग नहीं है, या पुराने सामाजिक नियमों से चिपके हैं। इसलिए कानून व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन का माध्यम बन जाते हैं।
ReplyDeleteएक ही लाठी से सबको हांकने की आदत अब तक नहीं गई है। इसलिए कानून जो पहले से पहले से हैं उसे सही से अमल में लाते तो समस्या पर काबू पाया जा सकता है
www.boldobindaas.blogspot.com
Deleteसही बातें लिखी हैं पल्लवी जी। यह आज का विचारणीय विषय है।
ReplyDeleteजी धन्यवाद 🙏🏼
Deleteऔर लिखिए। अखिलेश मयंक
ReplyDeleteजी बिलकुल धन्यवाद 🙏🏼
DeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteVicharneeya vishay.
ReplyDeleteहाँ जी इसलिए तो इस पर विचार विमर्श होना ही चाहिए. 🙏🏼
Deleteजी बिलकुल विमर्श तो होना ही चाहिए लेकिन बलात्कार के मामलों में कहीं ना कहीं इन वीडियोस कि वजह से बढ़ोतरी तो हुई है.
ReplyDelete(रेखा श्रीवास्तव) जी द्वारा लिखी गयी टिप्पणी जो किसी तकनिकी कारण के चलते यहाँ पोस्ट ना हो सकी.
ReplyDeleteपल्लवी एक ज्वलन्त समस्या है ये , और इसका निदान भी जरूरी है। सिर्फ साइट की क्यों कहें? अब तो reel और vedio के जो विकल्प हैं लोग अपनी मानसिक व्याभिचार की प्रवृति को रूप देकर परोस रहे हैं। अभी पिछले दिनों शताब्दी से दिल्ली जा रही थी कोई यात्री वीडियो देख रहा था और आवाज कान में पड़ रही थी, इतने अश्लील शब्दों का प्रयोग किया गया था कि लग रहा था कि हम गलत जगह बैठे हैं।
बहुत ही जरूरी सवाल उठाए हैं आपने . इन्टरनेट सचमुच वरदान भी है और अभिशाप भी. आपने दोनों पर विस्तार से कहा है. पर नियंत्रण होना बहुत ज़रूरी है. सचमुच बहुत आपत्ति जनक सामग्री बिना किसी अवरोध के सामने आ जाती है नहीं आए तो खोजना आसान है. मानसिक विकृति इसी की देन है.
ReplyDeleteआप आयी और आपने पढ़कर अपने विचार व्यक्त किये दी मेरा लिखना सार्थक हो गया. आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ. बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🏼
Deleteकटु सत्य l
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ll
तंत्र, लोग, रीतियां, नीतियां, रूटीन लाइफ कितनी विरोधाभासों से भरी हुयी है! कितनी निकृष्टतम, विसंगत नीतियों के साथ राजनीति होती है! ऐसे में समस्याओं का निदान संभव नहीं लगता। इंटरनेट इत्यादि आधारित धंधे भी ज्यादातर लोगों को ग्राहक बनाकर अपना व्यवसाय फैलाने के लिये किये जा रहे हैं। ऐसे में समस्या का पहलू और हल न तो सड़ी हुयी राजनीति, तंत्र के पास ही होगा और न ही भोगोपभोग में पूर्णतः डूब चुके व्यक्ति और उद्योगपतियों के पास ही होगा। ऐसे ही चलता रहेगा। आप ने सही विषय पकड़ा। पर इंटरनेट पर नंगई परोसनेवाले बाॅलीवुडियों पर विस्तार से लिखने की जरूरत थी। समस्याओं का निदान इसलिए भी नहीं हो पा रहा, क्योंकि हम में से अधिसंख्य जन समस्याओं के मूल कारणों को स्पष्ट बताने, बोलने, लिखने से बचते हैं......अपने स्वार्थ, स्वहित के लिये।
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (12-1-23} को "कुछ कम तो न था ..."(चर्चा अंक 4634) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
जी जरूर बहुत बहुत शुक्रिया आपका जो अपने मेरे ब्लॉग को चर्चा मंच के लिए चुना क्यूंकि मैं तो चाहती हूँ कि इस गंभीर विषय पर चर्चा अवश्य होनी ही चाहिए।
Deleteगंभीर विषय पर चिंतन परक विचार रखे हैं आपने इस लेख में , समस्या पर नियंत्रण पाने के लिए जागरूकता की आवश्यकता है ।
ReplyDeleteजी बहुत शुक्रिया 🙏🏼
Deleteहर टेक्नोलॉजी के अपने फायदे और नुक्सान होते हैं, लेकिन आजकल जैसे इस मोबाइल क्रांति में रील का जो रोल आजकल देखने को मिल रहा है वह सचमुच एक गंभीर चिंता का विषय है। शील-अश्लील में क्या फर्क है यह अधिकांश रील बनाने वाले समझ ही नहीं रहे हैं। उन्हें जैसे भी हो बस हिट होने का भूत जैसे सवार रहता है चाहे कुछ भी करना पड़े और इसी से आज की पीढ़ी ही क्या बड़े-बुजुर्ग भी इस दलदल में फंसे जा रहे हैं। इंटरनेट की पहुँच सब तक है, यह एक अच्छी बात जरूर है लेकिन इसके दुष्परिणाम आज कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहे हैं तो मन खट्टा होता है, लेकिन बुराई हमेशा नहीं रह पाती है यह हमें नहीं भूलना चाहिए।
ReplyDeleteबहुत अच्छी चिंतन प्रस्तुति हेतु धन्यवाद आपका
जी बिलकुल ठीक कहा अपने समय निकलकर यहाँ आने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🏼
Deleteबहुत ही विचारणीय आलेख ।
ReplyDeleteसचमुच इस समस्या का समाधान जल्द से जल्द ढ़ूँढ़ने की कोशिश होनी चाहिए ।वरना आने वाली पीढ़ी मतिभ्रम में अपने संस्कृति और संस्कार खो देगी ।
जी बिलकुल इस इंटरनेट नामक दो धारी तलवार का यदि सदुपयोग कम और इसी तरह दुरूपयोग अधिक हुआ तो भविष्य सचमुच खतरे में है। धन्यवाद 🙏🏼
Deleteसजग करती पोस्ट. सादर अभिवादन पल्लवी जी
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