यूँ देखो तो जीवन में हर जगह आपको सभी तरह के लोग मिल जाएँगे कुछ अच्छे, कुछ बुरे, अच्छे और बुरे लोग आखिर कहाँ नहीं होते। शायद ही इस दुनिया में कोई ऐसी जगह हो, या कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां अच्छे और बुरे लोग दोनों एक साथ न होते हों। लेकिन अच्छे और बुरे लोगों की पहचान हर इंसान अपने-अपने अनुभवों के आधार पर निर्धारित करता है। किस के लिए कौन अच्छा है, कौन बुरा यह कोई और व्यक्ति तय नहीं कर सकता। मगर मेरी सोच यह कहती है, कि जब आप किसी क्षेत्र के आधार पर किसी व्यक्ति को अच्छा या बुरा साबित करते हैं। तो वो तभी संभव है, जब आप जिस क्षेत्र से ताल्लुक रखते है, उसी क्षेत्र का कोई व्यक्ति आपके साथ कैसा व्यवहार करता है, यह बात भी उस बात पर निर्भर करती है। यदि कोई व्यक्ति आप ही के क्षेत्र में पारंगत है और जब आप उस व्यक्ति से किसी तरह कि कोई मदद या सहायता की उम्मीद करते है। मसलन मार्गदर्शन और तब यदि वो व्यक्ति आपकी खुलकर सहायता कर दे तो वह व्यक्ति आपको भला लगने लगता है और शायद यही सही भी है।
जो वक्त पर काम आये, सही राह दिखाये वही सच्चा दोस्त होता है। शुभचिंतक होता है, वही आपका सच्चा हितैषी है। मगर इसका मतलब यह नहीं कि जो आपके पक्ष में बोले वही आपका सच्चा शुभचिंतक हो, क्यूंकि वो कबीर दास जी ने कहा है।
"निंदक नियारे राखिए आँगन कुटी छवाये
बिन साबुन पानी बिना निर्मल करत सुभाये"
अर्थात निंदक को हमेशा अपने पास रखिये क्यूंकि उनका कटाक्ष ही आपको सच्चा आईना दिखा सकता है, कि आप कितने पानी में हो, क्यूंकि ऐसे लोग बिना किसी लाग लपेट के आपको, आपके अवगुण दिखा जाते हैं। जिनका आपको पता नहीं होता। इस नाते भले ही वह आपके निंदक हो मगर आपके सच्चे हितेशी भी वही बन जाते हैं। फिर क्यूँ कुछ लोग ऐसे हैं। जो किसी नये बंदे को चाहकर भी मदद नहीं करते। किस बात का अहम होता है उनको? मिली हुई सफलता का, तो क्यूँ भूल जाते है, कि वह भी तो इन्हीं सीढ़ीयों पर से चढ़कर उस सफलता की मंज़िल तक पहुंचे हैं। फिर क्यूँ जब दूसरे की बारी आती है, तो उसकी परीक्षा भी, वही लोग लेते है।
कॉलेज के समय से देखती आ रही हूँ मैं भी और आपने भी अनुभव किया ही होगा। आपने सीनीयर्स के साथ। जिस तरह की रेगिंग उनकी ली गई थी कभी, वही लोग वैसी ही रेगिंग आपके साथ भी लिया करते है क्यूँ ? माना कि सभी लोग एक से नहीं होते। कुछ अच्छे लोग भी होते हैं। मगर बात यहाँ उनकी हो रही है, जो अहम या जलन या यूँ कहना ज्यादा सही होगा कि बदले की भावना के चलते ऐसा किया करते हैं। बदले की भावना कुछ क्षेत्रों में ही देखी जा सकती है। ज्यादातर इस सबके पीछे का मुख्य कारण होता है जलन। कोई और हम से अच्छा कैसे हो सकता है। यह भावना मुख्य रूप ले लेती है। जिसके कारण साथी भी प्रतिद्वंदी जैसा नज़र आने लगता है। ऐसा केवल एक यह ही उदहारण नहीं है। ज़िंदगी के लगभग हर पडाव पर आपको एक ऐसा ही अनुभव देखने को मिल जायेगा। अब सास बहू का रिश्ता ही ले लीजिये वहाँ भी यही बात दोहराई जाती है। आमतौर पर सभी सासें अपनी-अपनी बहुओं के साथ वैसा ही व्यवहार करती है। जैसा कभी उनकी सास ने उनके साथ किया था। हाँ आज का ज़माना बदल गया है और आज की सासें भी कम से कम यह मैं, तो पूरे भरोसे के साथ कह सकती हूँ। क्यूंकि मेरी सासु माँ जैसी सास बहुत किस्मत वालों को ही मिलती है ।
खैर और एक ऐसा क्षेत्र है, जो परिवार की तरह है। मगर यहाँ भी कुछ लोग बहुत ही भले और बड़े दिल के सदा सरल स्वभाव के लोग हैं और कुछ अहम में चूर, जो पता नहीं क्या समझते हैं अपने आपको, पता नहीं उनको ऐसा क्यूँ लगता है, कि यदि उन्होने किसी कि मदद कर दी तो व छोटे हो जायेंगे, या फिर उनका महत्व कम हो जाएगा। उनमें से भी कुछ तो वाक़ई सफलता के मुक़ाम पर हैं, मगर कुछ ऐसे भी हैं जो खुद तो कुछ नहीं है मगर अपने आपको किसी लार्ड गवर्नर से कम नहीं समझते। आप सोच रहे होंगे आखिर ऐसा कौन सा क्षेत्र हो सकता है, जिसकी मैं बात कर रही हूँ। तो चलिये अब सस्पेंस ख़त्म करती हूँ जी हाँ मैं बात कर रही हूँ अपने ही "ब्लॉग जगत" की यहाँ भी अच्छे से अच्छे और....बुरा तो नहीं कहूँगी। क्यूंकि यह मेरा भी परिवार है और मैं भी इसका एक हिस्सा हूँ। मगर साधारण ज़रूर कह सकती हूँ, कि यहाँ एक से एक बेहतरीन लेखकों से लेकर मेरे जैसे साधारण लेखक भी हैं जो वक्त पढ़ने पर साफ और खुले दिल से सहायता भी करते है और यदि संभव हुआ तो अपने अनुभव के आधार पर आपका मार्गदर्शन भी, हाँ कई बार यह ज़रूर होता है, कि आपको खुद आगे बढ़कर उनसे सुझाव मांगना पड़ता है।
मगर फिर उसके बाद वो आपकी मदद ज़रूर करते हैं। मगर यहाँ ऐसे लोगों की भी कोई कमी नहीं है जो मांगने पर भी, अहंकारी होने के कारण मदद नहीं करते क्यूँ ? जाने उनको ऐसा क्यूँ लगता है कि यदि वो अपना सुझाव किसी जरूरतमंद व्यक्ति अर्थात लेखक को टिप्पणी के रूप में ही सही, मगर वह यदि बिन मांगे अपना सुझाव या टिप्पणी दे देंगे तो वो छोटे हो जायेंगे या उनकी बात का महत्व कम हो जायेगा। क्यूँ भई...अगर आप किसी की कोई रचना पढ़कर उस पर दो शब्द कह देंगे, जो उस रचना से संबंध रखते हों, तो आपका क्या चला जायेगा, मगर नहीं पता नहीं क्या लगता है उनको, कि यदि दो शब्द लिख दिये तो उनका महत्व कम हो जायेगा। कहने का मतलब यह कि माना आप बहुत ही बढ़िया लेखक हो, एवं आपका लेखन बहुत ही प्रभावशाली है। सफलता आपके कदम चूमती है। मगर ऐसा भी क्या भाव खाना....कि अपने आगे किसी नये लेखक को कुछ भी न समझो, यह तो सरासर गलत बात हैं। यह केवल मेरा ही अनुभव नहीं है। मेरे ऐसे और कई मित्र हैं, यहाँ जिनका अनुभव भी यही कहता है और उसी बात को ध्यान में रखते हुए मैं यह कह रही हूँ, कि यदि किसी उभरते हुए लेखक को आप अपने सुझावों के माध्यम से उसकी लेखन प्रतिभा को बढ़ावा देंगे तो आपका ही मान बढ़ेगा, घटेगा नहीं, इसलिए मेरा उन सभी लेखकों से अनुरोध है, कि कृपया जरूरत मंद और नये लोगों को अपने महत्वपूर्ण विचार और सुझावों देकर उनका होसला बढ़ाइए और उन्हें भी एक मौका दीजिये आगे आने का और अपनी प्रतिभा दिखाने का ... जय हिन्द...
आपका यह आलेख निश्चित तौर पर एक चिंतन उपस्थित करता है। खास तौर से ब्लोगिंग मे जब कोई नया नया आता है तो शुरुआत मे कई तरह की तकनीकी और व्यावहारिक समस्याएँ आती हैं। कई बार हमे अपने लिखे पर मार्गदर्शन और सुझावों की ज़रूरत भी पड़ती है जो लेखन की गुणवत्ता का स्तर बनाए रखने के लिए आवश्यक भी है। ऐसे मे पहले से स्थापित ब्लोगर्स को उनकी सहायता करनी ही चाहिए।
ReplyDeleteसादर
There is a swedish quote which i would like to share... "Den verkligen stora människor är de som gör ändra att känna sig stora!" which means वास्तव में बड़े एवं महान वो हैं जो दूसरों को उनके ही अन्दर की महानता से परिचित करवाने में सफल होते हैं, बजाय इसके कि अपनी महानता सबपर थोपते फिरें...
ReplyDeleteNice post!
bilkul sahi kaha...
ReplyDeleteसार्थक व सटीक लेखन ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteअच्छों के साथ बुरे नहीं होंगे तो चटपटापन कैसे आयेगा जीवन में।
ReplyDeleteबढ़िया लेखकों को सही लताड़ा है ।
ReplyDeleteलेकिन वे बेचारे भी क्या करें । समय के साथ सबका जोश ढीला पड़ गया है । अब वे फेसबुक या ट्विटर पर नज़र आते हैं । फिर भी , यदि लेख पढ़ा है तो टिपण्णी तो देनी ही चाहिए जब तक कि लेख बिलकुल नापसंद न हो ।
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ReplyDeleteपहले टिप्पणी की बात पर - तो एक बात मेरी मान लो :)" बिन मांगे मोती मिलें मांगे मिले न भीख" तो बस टिप्पणियों की चिंता किये बगैर लिखते रहो.
ReplyDeleteअब बात मदद और सहयोग की. तो आरम्भ में ऐसा लगता ही है कि कठिनाइयाँ हैं.परन्तु बहुत से ऐसे लोग हैं जो मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं.जब मैं नई आई थी और मुझे कुछ तकनिकी मुश्किलें आती थीं तो तुरंत ही समीर जी या पाबला जी को लिखती थी और तुरंत ही उनका जबाब भी सहायता के साथ आ जाता था.
हर तरह के लोग हर जगह होते हैं.बस सब्र करिये और लिखते रहिये ज्यादा उपदेश हो गया न ?:)
बिलकुल सही कहा आपने दराल साहब॥ :) आपकी बातों से सहमत हूँ। शुक्रिया और यह उपदेश नहीं सलाह है शिखा जी :)मार्गदर्शन के लिए आप दोनों का तहे दिल से शुक्रिया...
ReplyDeleteबिलकुल सार्थक और सटीक विश्लेषण...ब्लॉग जगत एक परिवार है, जिसमें एक दूसरे की सहायता करना फ़र्ज़ बनता है. नए लेखकों को हर संभव प्रोत्साहन देना चाहिए. जहां तक टिप्पणी की बात है, उसकी चिंता छोड़ अपना लेखन जारी रखें.
ReplyDeleteअंतिम पैरा पढ़कर मुस्कुराये बिना रहा नहीं गया।
ReplyDelete..आप अपनी बात बड़ी बेबाकी से रखती हैं, यही बात हमें अच्छी लगती है।
बिल्कुल सही कहा..अच्छे सुझाव हमेशा लेखक का हौसला बढा़ता है..
ReplyDeletekaha to sahi hai , magar ye blog jagat bhi abhasi duniya hai ...jyada dil n lagana hi theek hai ....mai to ye sochti hoon ki ek aasaan sa publisher mil gaya hai ...bas rachnaon ka proof taiyaar ho raha hai ..rachna me dam hoga to koi laut laut kar bhi padh lega , apne kaam ka parishrmik nahi maang rahe to comment kyon maange ...sab badhiya hai ...bas man thanda rahe ...
ReplyDeleteविचारोत्तेजक प्रस्तुति
ReplyDeleteजीवन में आना और जीवन से जाना कोई समस्या नहीं है. बीच का जो लंबा समय है वही समस्या है. आदमी क्या करे. पढ़े-लिखे, नौकरी करे, शादी हो और जीवन की हा...हा... और झिकझिक में समय निकल जाए. यह न हो तो जीवन नीरस हो जाता है जिसे अकबर इलाहाबादी ने इस प्रकार कहा है-
ReplyDeleteक्या कहें अहबाब (पुरखे) क्या कारे नुमायां (बड़ा कार्य) कर गए
पैदा हुए, बी.ए. किया, नौकर हुए और मर गए :))
बिल्कुल सत्य कहा आपने.
ReplyDeleteबचपन में एक दोहा पढ़ा था, आपका आलेख पढ़कर याद आ गया, चिंतन करें....
सबहि सहायक सबल के, निबल न कोई सहाय
पवन बढ़ावत आग को, दीपहुँ देत बुझाय.
आपकी बातों से सहमत हूँ पल्लवी जी, नए ब्लोगर्स ही क्या अगर पुराने ब्लोगर्स को भी किसी भी तरह की कोई आवश्यकता हो तो अवश्य मदद करनी चाहिए... जहाँ तक पोस्ट पर टिपण्णी का प्रश्न है, तो अगर किसी पोस्ट को पढ़ कर कोई भाव उत्पन्न होते हैं तो उन्हें अवश्य टिप्पणियों के माध्यम से प्रकट करना चाहिए.
ReplyDeleteपल्लवी जी,.आपका आलेख पढकर अच्छा लगा,किन्तु मै कई बार आपके पोस्ट पर जाकर आपसे अपने पोस्ट आने के लिए अनुरोध किया
ReplyDeleteकिन्तु आप नही पहुची,जिसका मुझे खेद है,...खैर छोडिये....
मेरी नई रचना में...
नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
अमरशहीद मात्रभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
भूलसे हमने शासन देडाला, सरे आम दु:शाशन को
हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,
में आपका स्वागत है आइये
पल्लवी जी आपने बड़े सहज ढंग से सब के दिलों की बात अपने लेख में ला दी है. ये सच है कि आदमी या औरत की सूरत से ये जानना बहुत मुश्किल है कि उसके अन्दर कौन सा जानवर बैठा है ? पर अच्छे लोगों का अभी भी अकाल नहीं पड़ा है. बिचारोत्तेजक लेख के लिए साधुवाद.
ReplyDeletebehtarin article..aaj ke jamane ke liye ek dam satik post..
ReplyDeleteगहन चिंतन प्रस्तुत करता लेख।
ReplyDeleteपर अफसोस... निंदकों की आज के दौर में पूछ परख नहीं
।
पल्लवी जी, आपने बड़े सहज ढंग से बात अपने लेख में ला दी है।सार्थक व सटीक लेखन,बेहतरीन प्रस्तुति,आपका आभार।
ReplyDeleteयह लेख पढ़कर एक फ़िल्मी गीत याद आ गया--
ReplyDeleteऐ दोस्त मैं ने दुनिया देखी है
यहां अच्छा बुरा कौन पहचानना है मुश्किल... :)
kabeer das ke dohe aaj bhi utne hin saarthak hain jitne tab rahe honge...
ReplyDelete"निंदक नियारे राखिए आँगन कुटी छवाये
बिन साबुन पानी बिना निर्मल करत सुभाये"
sahi kaha ki hamein dusron ko badhawa dena chaahiye. saath hin sujhaav aur protsaahan bhi. lekh ke maadhyam se aapne bahuton ki baat sahajta se kah dee hai. shubhkaamnaayen.
बहुत सार्थक लेखक... :)
ReplyDeleteबहुत अच्छा और विचारणीय आलेख।
ReplyDeleteसार्थक विचार साझा किये.......
ReplyDeleteपल्लवी ,
ReplyDeleteहर जगह हर तरह के लोग होते हैं ..यह उनकी प्रकृति होती है ... आप उसे बदल नहीं सकते ... कुछ ब्लॉगर अपने आप को इतना बड़ा मान लेते हैं कि वो कहीं भी टिप्पणी देना पसंद नहीं करते .. या यह भी हो सकता है कि उनका एक निश्चित दायरा हो और वो कुछ चुने हुए लोगों के ही ब्लॉग्स पढते हों ...और यह भी हो सकता है कि बहुत से लोग पढते तो हैं पर टिप्पणियाँ देने में आलस्य कर जाते हैं ..
वैसे मैं यह ज़रूर मानती हूँ कि टिप्पणी के दो शब्द भी लिखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं ..
रही मदद कि बात तो मैंने तो ब्लॉग के सारे काम यहीं के साथियों से सीखे हैं ... हमेशा ही सबने मदद की है .. कुछ लोग होते हैं जो सोचते हैं कि दूसरों को बता देने से उनकी वैल्यू कम हो जायेगी ..तो और बहुत हैं बताने के लिए ...
आपका यह लेख सार्थक सन्देश दे रहा है ... चिंतन करने योग्य ..
@धीरेन्द्र जी सबसे पहले तो आपका बहुत-बहुत शुक्रिया की आप मेरी हर पोस्ट पर आकर अपने महत्वपूर्ण विचारों से मेरा उत्साह वर्धन करते है। मगर जहां तक रही आपके ब्लॉग पर आकर आपको टिप्पणी देने की बात तो मुझे लगता है, आपको कोई गलतफमी हुई है। कृपया आप अपने सभी ब्लोग की सभी टिप्पणिया जाँचे क्यूंकि आपने जब भी मुझे बुलाया हैं मैं भी हर बार आई हूँ। आपके ब्लॉग पर और इस बार भी आऊँगी। धन्यवाद....
ReplyDeleteबिलकुल सही संगीता जी आपकी बातों से भी मैं पूर्णतः सहमत हूँ। मुझे अपने बहूमुल्य विचारों से अनुग्रहित करने के लिए आपका आभार... :) कृपया यूं ही संपर्क बनाये रखें।
ReplyDeleteआलेख बढिया है !!
ReplyDeleteबुरा होना एक द्वेग है जो कभी कभी आता है वर्ना कोई भी बुरा नहीं होता. यदि कोई बुरा है तो उसे नमन.
ReplyDeleteसही अनुभव बांटे हैं आपने ....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
नए ब्लॉगर के साथ हमेशा ही ऐसा घटित होता है | यदि आप अच्छा लिखती हैं तो टिप्पणियो की और से ध्यान हटा लें | आपके लिखे का मकसद, आपने जो लिखा है उस लेख के मेसेज को दूसरों तक पहुँचाना होता है | यदि कोई रुक कर आप के लिखे को पढ़ कर अपने विचार रखता है तो सही मायनो में वही टिप्पणी आपके लेख का सही आकलन है | एक छोटी सी गुजारिश : प्रूफ रीडिंग की और ध्यान दें | एक उदाहरण : व्यवार को व्यवहार लिखा जाना चाहिए | कृपया इसे अन्यथा न लें |
ReplyDeleteटिप्स हिंदी में
aapse poori tarah sahmat hun...vichaarneey lekh :)
ReplyDeletemere blog par aapka swagat hai. main bhi blogger world mein nayi nayi hun aur abhi tak jo log mile hai bhut achche hai :)
आपकी बात से सहमत हूँ मैं ... किसी का मार्गदर्शन करना अच्छी बात ही है ... और अगर ऐसे लोग ये सोचें की किसी न किसी ने तो उनको भी रास्ता दिखाया होगा ... तो वो क्यों न ऐसे व्यक्ति का कर्ज ही उतार दें किसी की मदद कर के ...
ReplyDeleteह्म्म्म...बात तो सही है आपकी पल्लवी जी!!
ReplyDeleteब्लॉगजगत में टिप्पणी एक विवादास्पद विषय है। अधिकतर को इसे बहुत श्रमपूर्वक ही अर्जित करना होता है। इक्का-दुक्का अच्छे लेखक ही किसी नए को पढ़ने में रूचि रखते हैं अथवा उत्साहवर्द्धन हेतु टिप्पणी करना चाहते हैं।
ReplyDeleteन अन्यथा लेने की तो कोई बात ही नहीं है @विनीत नागपाल जी, गलती पर ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया....
ReplyDeleteअच्छे और बुरे लोगों से ये दुनिया भरी पडी है. इसका अच्छा विश्लेषण किया है तुमने. इसके पहले भी इस ब्लॉग में आना हुआ है. तुम्हारी सुलझी हुई सोच में एक संभावना है. इसी तरह लिखते रहने से लेखन में और अधिक परिपक्वता आयेगी. अभी भी कम नहीं है. शुभकामनाये.
ReplyDeleteआप ऐसा क्यों सोच रहीं हैं आप तो टिप्पणियों की धनी हैं यहाँ कई हैं जो एक एक दो दो टिपण्णी लिए बैठे हैं .यहाँ भी हाल वही है" न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाए, टिपण्णी अपनी हमारे साथ रहने दो ."दो टूक लेखन के लिए बधाई
ReplyDeleteSarthak post ke liye aabhar
ReplyDeletemai aapke vicharo se sadaiv sehmat hu
pallavi jee..bahut hee sarthak lekh aaur bishleshan..tippadiyan manobal badhati hain..mujhe bhee lagta hai ke yadi wakai sahitya ko samriddh karna hai to bade sahityakaron ko navodit lekhkon ke baare me apni pratikriya jarur deni chahiye taki sahitya ko ek nayee disha mil sake..naye log nayee tajgi se likh sakein...jo log sahitya ke unnaya ko chahte hain wo prerit karenge jo apne haantho se aakash choona chahte hain wo janboojhkar nirash karne ke liye maun rahenge..lekin eklavya ban jayiye..teer chalate rahiye..teerandaaj banne se koi rok nahi sakta...baise lekhk aaur kavi janmjaat hote hai...bhav ka preshan hee lekh aaur kavita hai..samay ke sath bhavon ko bhi parosne ke kala logon ne seekh lee hai..jaruri hai ..guru mila, hausla mila to jaldi aa jayega ..nahi milega to der se..sadar
ReplyDeleteअच्छी लगी रचना .
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 15 -12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज... सपनों से है प्यार मुझे . .
पल्लवी जी,...
ReplyDeleteअगर कोई ब्लोगर किसी के पोस्ट पर जाकर अपनी टिप्पणी देता है तो
उसे भी शिष्टाचार निभाते हुए जबाब में (टिप्पणी) देना चाहिए,...ऐसा मेरा मानना है ,ऐसा करने से हर ब्लोगर का उत्साह बढ़ता है आगे और भी अच्छा लिखने के लिए प्रेरित होता है,..
मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
पल्लवीजी, पहले तो क्षमा चाहती हूँ कि देर से आयी हूँ। कारण था कि शहर से बाहर थी। आपकी पीड़ा का एक कारण और भी है, वो है एग्रीगेटर का अभाव। पूर्व में कई ब्लागवाणी, चिठटाजगत आदि थे तो सभी पोस्ट दिख जाती थी आज वे नहीं हैं तो केवल हमें वही पोस्ट पढ़ने को मिलती हैं जिनके हम फोलोवर हैं। इसलिए नए ब्लागरों को ही अपनी पहचान बनानी होगी। उन्हें खोज-खोजकर पुराने ब्लागर तक जाना होगा और उन्हे अपनी टिप्पणी से प्रभावित करना होगा। एक बार ब्लागर आपकी टिप्पणी से प्रभावित हो गया तो वह आपके ब्लाग पर भी आएगा और आपका फोलोवर भी बनेगा। इसलिए ब्लागजगत में जितनी आवश्यक अच्छी पोस्ट है उतनी ही आवश्यक अच्छी टिप्पणी है। इस बिन्दु पर किसी ने नहीं लिखा था तो मैंने लिख दिया, शेष बाते तो शिखा जी और संगीता जी ने कह ही दी है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी समीक्षा है
ReplyDeleteप्रेरणादायक आलेख ...!
ReplyDeleteआभार !
आपके दिल से निकले निष्कपट उद्गार बहुत अच्छे लगते हैं पल्लवी जी.
ReplyDeleteजीवन यात्रा में अच्छे लोगो का संग साथ मिल जाये तो यही प्रभु कृपा है.अजित जी ,डॉ.दराल जी और अन्य प्रबुद्ध ब्लोग्गर्स के विचार आपकी इस पोस्ट के माध्यम से जानने को मिले.
शुक्रिया .. बहुत बहुत शुक्रिया आपका.