इसी का नाम ज़िंदगी |
आज सुबह फेसबुक पर जब "कैलाश अंकल" का अपडेट देखा उस से ही मन में कुछ ख़्याल आये तो सोचा, कि क्यूँ ना उन पर ही कुछ लिखा जाये। अतः उनसे इजाज़त लेकर ही कुछ लिखने जा रही हूँ। उनहोंने जो लिखा था वो कुछ इस प्रकार था।
ज़िंदगी इतनी आसान नहीं,
जी के देखा तो समझ आया।
वाक़ई ज़िंदगी इतनी आसान नहीं, मगर मौत भी तो आसान नहीं है, मरना भी इतना आसान नहीं होता है। शायद इसलिए तो ज़िंदगी पाने वाले हर प्राणी को अपनी जान प्यारी होती है। शायद इसलिए वो कहावत भी बनी होगी कि
"जान है तो जहान है"
मुझे तो आज भी आश्चर्य होता है। जब यह सुनती हूँ, कि किसी ने किसी कारण से विवश होकर आत्महत्या कर ली। कहाँ तो कई बार हम छोटी-मोटी घटनाओं से ही सहम जाते हैं और कहाँ कब यह नौबत आ जाती है, कि इंसान खुद ही अपनी जान ले लेता है। खैर यह सब कहने का मतलब यह नहीं है कि मैं उनकी इन बातों का विरोध कर रही हूँ। बल्कि मैं तो बस अपने विचार व्यक्त करने की कोशिश कर रही हूँ। जो कुछ मैंने महसूस किया बस वही आप सबके साथ सांझा कर रही हूँ। शायद जीवन का दूसरा नाम ही कठिनाई है। क्यूंकि ज़िंदगी जीवन के हर पथ पर इंसान के लिए एक नई परीक्षा, एक नयी चुनौती लिए खड़ी होती है। जिसे पार करते हुए ही वो अपने जीवन में आगे बढ़ता है। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक ना जाने कितने अनगिनत परीक्षाओं और पड़ावों को पार करने के बाद भी इंसान कभी यह नहीं कह पाता, कि अब तो मुझे जीवन के इन इम्तहानों की आदत पड़ चुकी है। अब मुझे इन से डर नहीं लगता। बल्कि अब तो मज़ा आता है, ऐसे इम्तहान देने में, इस सबके पीछे ऐसा क्या कारण हो सकता है, जो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक का सफर तय कर लेने के बाद भी इंसान के अंदर इन जीवन रूपी परीक्षाओं के प्रति सदा, डर ही बना रहता है या इस बात के लिए डर कहना शायद उपयुक्त ना हो, परेशानी कह सकते हैं। वो एक पुरानी हिन्दी फ़िल्म "मेरी जंग" का गीत भी इसी विषय पर आधारित है आपने भी सुना होगा ज़रूर...
ज़िंदगी हर कदम एक नई जंग है ,
जीत जायेंगे हम, तू अगर संग है ....
मुझे ऐसा लगता है, इस सबके पीछे एक ही कारण हो सकता है और वह हैं हमारी जिम्मेदारियाँ, हमारे रिश्ते, क्यूंकि अकेले इंसान शायद हर मुश्किल से मुश्किल घड़ी का सामना भी बहुत आसानी से कर सकता है। मगर उसे ज्यादातर कमजोर बना देती हैं, उसकी जिम्मेदारियाँ, उस पर निर्भर उसके साथ जुड़े उसके रिश्ते, जिनके बारे में सोच कर कई भावनात्मक निर्णय उसके जीवन की दिशा ही बदल देते हैं। कई बार विपरीत परिस्थियों में इसका उल्टा भी असर होता है। यही रिश्ते उस अकेले इंसान की ताक़त भी बन जाते हैं। दोनों ही स्थितियाँ शायद एक ही सिक्के के दो पहलुओं की तरह होती हैं। जिन्हें वक्त और हालात के साथ सही सामंजस्य बिठाने का चुनाव केवल वही इंसान कर सकता है, जो इन परिस्थितियों से उस वक्त जूझ रहा हो। बिलकुल एक जुए के समान सही दांव लग गया तो बाज़ी आपके हाथ और चूक गया तो आप उस परीक्षा में फेल। वैसे देखा जाये तो ज़िंदगी भी एक तरह का जुआ ही हैं। हर कदम पर एक खेल जिसको आपको चाहे अनचाहे खेलना ही हैं। मगर परिणाम आपके हाथ में नहीं है। आपको तो बस दांव लगाना है, निर्णय आपकी किस्मत,या आपकी ज़िंदगी करेगी कि आपका दांव सही था या गलत, एक ज़िंदगी और कितने सारे रूप, कितने अलग-अलग रंग और कितने अलग-अलग नाम जैसे कभी धूप तो कभी छाँव, कभी परीक्षा तो कभी जुआ और भी ना जाने क्या-क्या इसी बात पर मुझे फिर कुछ गीत याद आ रहे हैं, आपको भी लग रहा होगा, कि क्या......मुझे भी हर बात पर कोई ना कोई गीत ज़रूर याद आ जाता है,
"हेड या टेल प्यार मोहब्बत दिल का खेल-दिल का खेल
इस खेल में कोई है पास-कोई है पास तो कोई है फेल"
या फिर
"जीने वालों जीवन छुक-छुक गाड़ी का है, खेल
कोई कहीं पर बिछड़ गया, किसी से हो गया मेल"
अंतः बस इतना ही कहूँगी कि हर एक इंसान की ज़िंदगी एक है। मगर किसके लिए ज़िंदगी क्या है, यह केवल उस इंसान के साथ जुड़ी उसकी परिस्थियाँ ही तय कर सकती हैं इंसान खुद नहीं...क्यूंकि ज़िंदगी जीना आसान नहीं यह जीने के बाद ही समझ आता है जय हिन्द
बिलकुल सही !
ReplyDeleteशायद जिंदगी से बड़ा कोई और आश्चर्य हो भी नहीं सकता।
सादर
जीवन रहा तो राहें भी निकल आती हैं।
ReplyDeleteरात में जब नींद नहीं आती तो भी सुबह हो जाती है , भूखे पेट भी नींद आ जाती है - गिरकर , उठकर आदमी जी ही लेता है
ReplyDeleteना ज़िन्दगी जीना आसान ना मुश्किल …………एक बार जीने का ढंग आ जाये और इंसान उम्रभर वो ही नही सीख पाता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
ReplyDeleteजिंदगी है तो उसे जीना भी आ ही जाता है.कोई न कोई रास्ता निकल ही आता है.
ReplyDeleteजिंदगी में अनेक पड़ाव आते हैं । हर पड़ाव पर अलग अनुभव होते हैं । जिंदगी कभी स्टेटिक नहीं होती । इसीलिए एक अन्जाना सा डर हमेशा बना रहता है । अंत में जिंदगी बहुत कोम्प्लेक्स चीज़ है ।
ReplyDeleteबहुत सही कहा है ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteजिन्दगी में संघर्ष प्रतिदिन हैं, लेकिन किसी संघर्ष को कुछ लोग बहुत बड़ा मान लेते हैं और कुछ बहुत छोटा। जीवन्तता ही संघर्ष का प्रतीक है इसलिए व्यक्ति को संघर्षों से डरना नहीं चाहिए।
ReplyDeleteसार्थक आलेख, बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सही कहा ... सार्थक आलेख, बहुत बढ़िया प्रस्तुति! ...
ReplyDeletemethod to live life remains contained in "life" itself.
ReplyDeleteज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है
ReplyDeleteमुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं॥
बड़ी ही सच्चाई भरा सार्थक प्रयास है
ReplyDeleteजिंदगी एक सतत संघर्ष ही तो है ,बस जिंदादिली बनी रहे चुनौतियां सहज हो जाती हैं .....
ReplyDeleteसुन्दर,जीवनोपयोगी लेख...
ReplyDeleteरोचक रचना .....आभार
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने ......सटीक और सार्थक आलेख
ReplyDeleteमौत आनी है आएगी इक दिन
ReplyDeleteजान जानी है , जाएगी इक दिन
ऐसी बातों से क्या घबराना,
यहाँ कल क्या हो, किसे जाना...
बढ़िया आलेख.
सार्थक आलेख...आभार
ReplyDeleteसार्थक आलेख!
ReplyDeleteज़िंदगी हर कदम एक नई जंग है..........और सच्चाई भी यही है. आपने बहुत ही बेहतरीन लेख लिखा है.
ReplyDeleteशहर कब्बो रास न आईल
साहब का कुत्ता
jindagi ....behatarin post saral sbdo me bani ye post dil ko chu jati hai
ReplyDeleteमन:स्थिति को अच्छी तरह से वर्णित किया |
ReplyDeleteटिप्स हिंदी में
sach hai zindagi kabhi bhi aasaan nahin hoti, lekin koi jivan se palayan tabhi karta hai jab paristhitiyaan bilkul pratikool ho aur insaan asamarth ho jaaye. jivan se palayan nihsandesh galat hai.
ReplyDeletezindagi har kadam ek nai jang hai...
जीवन अनमोल है। जो इसे जीने का मंत्र जानेगा,वही जी पाएगा। परिवर्तन से ही जीवन में सरसता भी है।
ReplyDeleteबहुत रोचक और सारगर्भित विश्लेषण...आदमी जिम्मेदारियों से कमजोर नहीं पडता, लेकिन जैसा आपने कहा उससे जुड़े रिश्ते उसे भावनात्मक रूप से कमजोर कर देते हैं. यही आज का यथार्थ है.लेकिन जीवन जो मिला है उसे तो जीना ही है, उससे शिकायत करने से क्या फायदा...
ReplyDeleteआपका आलेख पढ़ते हुए ऐसा लगा कि जैसे मैं जीवन के समुद्र में उठती ऊँची लहरों के शिखर पर आराम से तैर रहा हूँ. जगह-जगह खड़ी स्माइलियाँ जीवन सागर में डूबने से बचाती चलती हैं.
ReplyDeleteजिंदगी जीने के लिए मिली है ...और जीना ही सबसे उत्तम है ... जो मिल उसे सहर्ष ही लेना अच्छा है ...
ReplyDeleteजिंदगी जुआ नहीं है; यदि जुआ माना जाए तो फिर उसमें परमेश्वर की क्या भूमिका हो सकती है? यदि परमेश्वर है तो वह जिंदगी देने वाला और संचालित करने वाला भी है. ऐसे में जिंदगी को जुआ कहना परमेश्वर का इनकार अथवा मखौल ही हो सकता है. आवश्यकता है सच्चे परमेश्वर को पहचानने एवं उसकी योजना के अनुसार जीवन जीने की. उसी से जिंदगी से संबन्धित इन सभी उलझनों का समाधान हो सकेगा.
ReplyDeleteधन्यवाद - संपर्कयीशु
'मेरी जंग' मेरी सबसे पसंदीदा फिल्मों में से है और वो गाना मुझे बहुत पसंद है :)
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए गुलज़ार साहब को quote करता हूँ --
'जिंदगी क्या है जानने के लिए
जिंदा रहना बहुत ज़रूरी है,
आज तक कोई रहा भी तो नहीं"
:P कितनी खतरनाक बात कही है गुलज़ार साहब ने ;)