Wednesday 4 January 2012

क्या खोया क्या पाया ...

यूं तो चारों ओर बस अभी नव वर्ष का ही माहौल है, जो मिलता है शुभकामनायें देता हुआ ही मिलता है। चाहे वो खुद अंदर से उतना प्रफुल्लित हो या न हो, उसका गया साल चाहे जैसा रहा हो। मगर हर कोई अपने चहरे पर एक झूठी मुस्कान लिए घूमता है। यह कहता हुआ नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें और ऐसा हो भी क्यूँ ना हर कोई यही चाहता है, कि उसकी अपनी परेशानियों का असर दूसरों पर न पड़े इसलिए सब ऐसा ही करते है। मगर मुझे हर बार नव वर्ष के आने पर एक सवाल खटकता है। नया साल आया हमने "क्या खोया क्या पाया" जिन्होंने पाया उनके लिए तो जाने वाले साल को लेकर थोड़ा बहुत अफसोस होना चाहिए। क्यूंकि पता नहीं आने वाले नए साल में उन्हें वो सब कुछ मिले ना मिले जो उन्हें गए साल में मिला, मगर ऐसा होता नहीं है। :) क्यूंकि उम्मीद पर दुनिया कायम है और आने वाले साल में जाने वाले साल के मुक़ाबले और भी ज्यादा पा लेने की उम्मीद जुड़ी होती है...जो होनी भी चाहिए। क्यूंकि जीना इसी का नाम है वक्त किसी के लिए नहीं रुकता सभी के लिए यही बेहतर होता है, कि वह पिछले समय को भुलाकर एक नई उम्मीद के साथ आगे बढ़ते रहें। फिर चाहे वो पिछला गुज़रा हुआ समय उनके लिए अच्छा रहा हो, या बुरा, मगर सभी के लिए यह उतना आसान नहीं होता जितना नज़र आता है।

जिन लोगों ने अपनों को खोया है, उनके लिए नया साल कोई मायने नहीं रखता। उनके लिए तो सभी साल अब एक बराबर ही हैं और सदैव ऐसे ही रहेंगे। क्यूंकि जो चला गया वो लौटकर दुबारा नहीं आ सकता। फिर चाहे वो वक्त हो या इंसान। साल के शुरुवात में जिनके परिवार के साथ ऐसा कोई घटना घटी वो शायद नया साल आने तक अपने दुख को सहते हुए भी ज़िंदगी जीना सीख ही जाते हैं। मगर जब भी नया साल आता है उनके ज़ख्म फिर से ताज़ा हो जाते हैं।

अभी कुछ दिनों से यहाँ ऐसा ही माहौल चल रहा है आए दिन समाचार पत्रों में कोई ना कोई दुखद समाचार पढ़ने को मिल रहा है। जिसके चलते एक इंसान होने के नाते नये साल की कोई खास खुशी महसूस नहीं हो सकी। कारण था "रंगभेद" आज के जमाने में भी यह चीज़ आज भी लोगों के दिल में बरकरार है। सोच कर भी आश्चर्य होता है। न जाने कहाँ जा रहे हैं हम यहाँ के लोगों में प्रवासियों को लेकर खासा गुस्सा है। प्रतिशोध की भावना है जिसके चलते पिछले साल अगस्त 2011 में भी मंचेस्टर में दंगे हुए थे और मामला बहुत गरमा गया था।
अभी फिर क्रिसमस के दौरान एक हिन्दुस्तानी विद्यार्थी को कुछ गोरे लड़कों ने मिलकर सारेआम गोली मार दी।  जिसके कारण उस विद्यार्थी कि घटना स्थल पर ही मौत हो गई। यही हादसा कल रात कनाडा में भी दौहराया गया और वहाँ भी एक हिंदुस्तानी विद्यार्थी को घटना स्थल पर ही गोली मार कर हत्या कर दी गई। पुलिस अभी तक कोई सबूत नहीं ढूंढ पाई है। क्या कारण था जिस वजह से यह घटना घटी यहाँ कि पुलिस ने तो 50,000 पाउंड का इनाम भी रखा है जो कि पता बताने वाले को दिया जायेगा। मगर अब तक तलाश जारी है। समझ नहीं आता हर जगह की पुलिस एक जैसी ही क्यूँ है। लेकिन जब इस विषय पर कुछ लोगों से बातचीत की तो पाया कि आज कल यहाँ की युवा पीढ़ी जान बूझकर हिंदुस्तानियों से पहले बात करते हैं, फिर बातों-हीं-बातों में उन्हें उकसाते है और बहस बढ़ जाने के बाद गोली मार देते हैं। ज्यादातर इस तरह उकसाने की घटनायें ट्रेनों में देखने और सुनने को मिल रही हैं। जहां इंसान चाहकर भी बेबस है। क्यूंकि लोगों दूसरों के मामलों में पढ़ना नहीं चाहते और दूसरा ट्रेन में पुलिस की मदद भी नहीं मिल पाती। जिसके चलते ऐसे उग्रवादी तत्व के लोगों को जुर्म करने का मौका बड़ी आसानी से मिल जाया करता है।

यह सब सुनने और पढ़ने के बाद तो जैसे नए साल का सारा माहौल मेरे लिए तो शांत ही हो गया था। कोई भी उत्साह नाम की चीज़ मन के अंदर से निकल कर सामने नहीं आयी बस एक ओपचारिकता का सा भाव था।  मगर कहीं कोई खुशी महसूस न हो सकी। ज़रा सोचिए कैसा लगा होगा उस विद्यार्थी के अभिभावकों को यह खबर सुनकर क्या गुज़री होगी उनके दिलों पर जब क्रिसमस जैसे बड़े और पावन दिन पर उनके बच्चे के साथ ऐसा हादसा हुआ मेरा तो सोच कर ही दिल कांप जाता है। क्या अब कभी माना पायेंगे वो किसी भी नये साल के आने का जश्न ? उनके लिए भला अब क्या मायने रह गए, साल बदलने के उनके लिए तो अब सब एक सा ही है।  गम में डूबा हुआ क्या नया क्या पुराना। इस सब के बावजूद भी, एक हमारे यहाँ के लोग हैं, जो देश छोड़कर बाहर आने के लिए बेताब है। यह सब देखकर, पढ़कर, सुनकर ऐसा लगता है जैसे आज की तारीख में दुनिया का कोई कोना सुरक्षित  नहीं है। जहाँ देखो दंगे फसाद हत्या यही सब नज़र आता है।

तो भला ऐसे माहौल में हम इंसानियत के नाते कैसे माना सकते हैं नए साल की खुशियाँ जहां हमारे ही देश के नजाने कितने ऐसे परिवार हैं जो ग़म में डूबे हुए हैं। हाँ यह बात अलग है, कि सभी का ग़म एकसा नहीं होता मगर हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्सा है, जो अपनी जरूरतों के चलते दिन रात वक्त के कड़े इम्तेहानों से गुज़ारता रहता है। मगर हममें से कभी कोई उनसे जाकर यह कहता तक नहीं की तुम को भी नया साल मुबारक हो। क्यूंकि हम खुद जानते हैं, उनके लिए क्या नया ,क्या पुराना उनके लिए तो सिर्फ संघर्ष है ज़िंदगी से, हर साल, हर पल, जिसमें कभी कोई बदलाव आता ही नहीं। जिससे उन्हें पहचान मिल सके नये और पुराने साल को लेकर परिवर्तन की, साल क्या उन्हे तो शायद परिवर्तन नाम की भी कोई चीज़ होती है। यह भी नहीं पता होता होगा। जिनकी ज़िंदगी के पल नहीं बदलते उनके लिए साल क्या बदलेगा भला!!!                                 

37 comments:

  1. मैनचेस्टर की घटना के बारे में विशेष जानकारी आप के माध्यम से मिली. बेहद दुखद स्थिति है.

    नववर्ष के लिए आपको शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  2. आज के युग में भी ऐसी हरकतें होती हैं... कभी मज़हब, कभी ज़ात, कभी नस्ल, कभी नागरिकता नफरत का कारण बन जाती हैं... इंसान इंसान का ही दुश्मन बना रहता है.... बेहद शर्मनाक है!

    ReplyDelete
  3. इन तमाम विसंगतियों के बावजूद हर कोई मुखौटे पहन कर जश्न मना रहा है, आखिर क्यों ? विचारणीय आलेख.

    ReplyDelete
  4. पर पूरी ज़िन्दगी इसी औपचारिकता में निकल जाती है - विशेषकर उनलोगों के लिए जो दूसरों के दर्द को अपने अन्दर महसूस करते हैं

    ReplyDelete
  5. आज हर चेहरे पर मुखौटा है ... मन ही मन कितना आहत हो पर औरों के लिए मुस्‍कान सजाये फिरता है ..बेहद सार्थक व सटीक लेखन ।

    ReplyDelete
  6. मनुष्‍य के अन्‍दर स्‍वयं के प्रति अंह‍कार का भाव ही दूसरों के प्रति नफरत पैदा करता है। यह नफरत से उत्‍पन्‍न हिंसा हर युग में रही है और आगे भी रहेगी। हम शिक्षित होने के बाद भी इस नफरत को बढ़ाने का कार्य करते हैं। शायद मनुष्‍य को कभी समझ आए।

    ReplyDelete
  7. आज इस इन्टोल्रेंस के दो मुख्य कारण है, बढ़ती आवादी और कम होती सुविधाएं ! हमें भी खुद इस समस्या पर ध्यान देना होगा ! इस देश में आज भी जब किसी गरीब हिन्दू या खाते-पीते मुसलमान के घरों में घुसो तो परिवार में ५ से आठ-दस बच्चे दिखाना एक आम बात सी है!

    ReplyDelete
  8. औपचारिकता जरूरी हो जाता है जीवन में।
    सुंदर और यर्थाथपरक पोस्‍ट।

    ReplyDelete
  9. मुझे आपकी ये पोस्ट पढ़कर लगा जैसे आदमी हर जगह भयग्रस्त है. अपना देश हो या विदेश.

    ReplyDelete
  10. क्या कहूँ...तब से सोच रही हूँ.यहाँ लन्दन में तो और भी बुरा हाल है.

    ReplyDelete
  11. सबका हो भला, सब रहें चौन से
    हम तो उससे यही दुआ करते हैं।

    ReplyDelete
  12. ghatnayen ghat te rahengi...!!
    bas ham koshish hi kar sakte hain ki punravirti na ho!!
    nav varsh ki dheron shubhkamnayen.... Pallavi!

    ReplyDelete
  13. दुखद घटनाएँ .. फिर भी नए का स्वागत होता ही है ..दीवार पर टंगा कलेंडर बदलता है बाकी नया क्या है ?
    संवेदनशील पोस्ट

    ReplyDelete
  14. इन घटनाओं पर गौर से सोचने की ज़रूरत है।

    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।


    सादर

    ReplyDelete
  15. बहुत दुखद घटनाएँ हैं ये ।
    वहां की सरकार को सख्ती से पेश आना चाहिए ।
    आखिर भारतीय लोग वहां की आर्थिक उन्नत्ति में पूरा योगदान दे रहे हैं ।

    ReplyDelete
  16. आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी के लिए आभार सर :) दे तो रहे हैं हम जैसे भारतीय यहाँ की आर्थिक उन्नति में पूरा योगदान मगर कहीं न कहीं यही योगदान कारण बन गया है यहाँ के नागरिकों में आए देव्श की भावना का जिसे शायद यहाँ की सरकार देखकर भी अनदेखा कर रही है।

    ReplyDelete
  17. बहुत दुखद घटनाएँ हैं, इंसान ही इंसान का दुश्मन है

    ReplyDelete
  18. सही कहा आपने आज इंसानियत बाकी रह ही नहीं गयी है मेरा एक ताज़ा और आपके इस लेख को पढकर उपजा शेर अर्ज है
    दर्दे दिल........ ज़ज्बये इमां होना
    आदमियत है यही , है यही इंसाँ होना
    आप मेरे ब्लॉग तक आई उसके लिए धन्यवाद .... अगर आप न आती तो शायद मैं इतने अच्छे लेख से वंचित रह जाता .....धन्यवाद

    ReplyDelete
  19. ये दुनिया इन नदिया है, सुख-दुख दो किनारे हैं .....॥

    ReplyDelete
  20. ऐसी घटनायें मन दुखी कर देती हैं..

    ReplyDelete
  21. सराहनीय प्रस्तुति

    जीवन के विभिन्न सरोकारों से जुड़ा नया ब्लॉग 'बेसुरम' और उसकी प्रथम पोस्ट 'दलितों की बारी कब आएगी राहुल ...' आपके स्वागत के लिए उत्सुक है। कृपा पूर्वक पधार कर उत्साह-वर्द्धन करें

    ReplyDelete
  22. सुखी और सुरक्षित रहें वो सब ...जो अपने वतन से दूर हैं |येही कामना है ....
    शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  23. सभी कुछ negative ही तो नहीं है न ? इश्वर की रची इस सुन्दर दुनिया में positive भी तो बहुत कुछ होगा न ?

    नव वर्ष की शुभेच्छाओं के साथ | ... शिल्पा मेहता

    ReplyDelete
  24. दुखद...पर ये भी हिस्सा है इस जीवन का...

    ReplyDelete
  25. जिनकी ज़िंदगी के पल नहीं बदलते उनके लिए साल क्या बदलेगा भला!!!

    well said.

    ReplyDelete
  26. बीती ताहि बिसारि दे ...........नव वर्ष तथा आपके इस लेख पर हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  27. रात गई बात गई २०१२ में हमे क्या करना है
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर आलेख ......
    welcome to new post--जिन्दगीं--

    ReplyDelete
  28. शायद इसी का नाम जीवन है और सुख दुख के दो पहियों पर सरकती गाड़ी में सवार चलना तो होता है....संवेदनशील हृदय से बर्दाश्त करना भी मुश्किल और इस गाड़ी पर सवार न चलें, वो भी मुश्किल....

    कहीं न कहीं फिर समझौता कर लेना होता है..हालात तो बदलते नहीं...

    नववर्ष शुभ हो- यह कामना तो खुशी से की ही जा सकती है.

    ReplyDelete
  29. बहुत सुन्दर ..आभार

    ReplyDelete
  30. आप सभी पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया... कृपया यूं हीं संपर्क बनाये रखें...

    ReplyDelete
  31. nice post
    mere blog par bhi aaiyega
    umeed kara hun aapko pasand aayega
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

    ReplyDelete
  32. नववर्ष के बहाने मानवीय व्यवहार को रेखांकित करती पोस्ट प्रेरक है.

    ReplyDelete
  33. बहुत ही दुखद वाकया.....यहाँ अखबारों में इस विषय में पढ़ा था ...
    मुझे लगता है ये मामले रंगभेद से ज्यादा ईर्ष्या या धौंस ज़माने से सम्बन्धित है ...कुछ भटके हुए विदेशी युवक जो नशे और अपराध में अपनी जिंदगी ख़राब कर चुके होते है तथा अवसाद और हीन भावना से घिरे होते है .....वो ही ऐसी हरकतें करते है ...
    मेरे ब्लॉग पर आने और हौसला अफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद ...

    ReplyDelete
  34. नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ बहुत कुछ सोचने वाले मुद्दों को प्रस्तुत किया है . बहुत सुंदर प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  35. चाहे कुछ हो जाए पर यह बात तय है कि इंसान ज़मीन और रंगभेद को ले कर पृथ्वी के अंत तक लड़ता रहेगा..
    और पाटा कोई कुछ नहीं है.. सब खोता ही है... जीवन के शुरुआत से खोना सीख जाता है इंसान...
    पर वही आपने जो कहा कि उम्मीदों पर ही दुनिया कायम है तो उम्मीद करते रहेंगे और खुश रहेंगे!

    प्यार में फर्क पर आपके विचार ज़रूर दें..

    ReplyDelete
  36. ओह, दुखद घटनाएं..
    वैसे पिछले कुछ सालों से मैं 'न्यू इअर' नहीं मनाता..पता नहीं क्यों, बस नहीं मनाता..
    और उस दिन मेरा फोन भी ऑफ रहता है, बस माँ-पापा और बहन से बात करता हूँ उस दिन..और किसी से नहीं,
    सही कहा है, अधिकाँश लोगों को फर्क ही नहीं पड़ता की नया साल कब आया,पुराना साल कब गया..
    वो तो हमेशा संघर्षरत हैं...

    ReplyDelete

अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए यहाँ लिखें