हिन्दुस्तानी हिन्दी फ़िल्में, कुछ नई, कुछ पुरानी फ़िल्में,
फ़िल्में यह मेरा सबसे ज्यादा पसंदीदा विषय रहा है। हालांकी यह बात अलग है, कि मैंने अब तक इस विषय पर कुछ खास नहीं लिखा है। अभी तक तो ज़्यादातर मैं अपनी पोस्ट पर बस कुछ एक गीतों का ही प्रयोग करती आई हूँ। मन तो बहुत हुआ कि फिल्मों के बारे में कुछ लिखूँ , वो भी किसी एक फिल्म की समीक्षा नहीं, बल्कि सभी फिल्मों का कुछ मिलाजुला सा स्वरूप। मगर पता नहीं क्यूँ लिख नहीं पाई आज कोशिश कर रही हूँ, इस उम्मीद के साथ कि शायद मेरी यह पोस्ट भी आप सभी को पसंद आये।
फ़िल्में एक आम और खास आदमी की ज़िंदगी का दूसरा रूप होती हैं। क्यूंकि फिल्मों का आधार आम जनजीवन से जुड़ा होता है। हर एक कहानी के पीछे आम जनजीवन से जुड़ी बातें ही होती है। फिर चाहे वो आम ज़िंदगी की रोज़मर्रा से जुड़ी कोई समस्या हो, या फिर कोई बड़ी घटना। शायद इसलिये फ़िल्में हमारे जीवन पर एक गहरा प्रभाव छोड़ती हैं। देखा जाये तो, "कितनी अजीब बात है अपनी ही ज़िंदगी के किस्से और कहानियों को पर्दे पर देखना सभी को कितना अच्छा लगता है" और एक व्यक्ति उससे ही मनोरंजन भी पाता है। जबकि वही फिल्मों के माध्यम से दिखाई जाने वाली बात, उसकी खुद की ज़िंदगी में जब हो रही होती है, या हो चुकी होती हैं। उस दौरान उसे फिल्मों का ख़्याल तक नहीं आता और वह उस वक्त एक अलग ही मनोदशा से गुज़र रहा होता है। जबकि असल में कोई भी व्यक्ति जाता ही फिल्म देखने इसलिए है, ताकि रोज़मर्रा की ज़िंदगी से हटकर कुछ मनोरंजन कर सके। मगर अंत में व्यक्ति को मज़ा भी ज़िंदगी को पर्दे पर देखने में ही आता है। इस तरह इंसान सदा ही ज़िंदगी से जुड़ा ही रहता है।
खैर अब जो जानकारी मैं आपको देने जा रही हूँ। वह जानकारी मैंने मेरे बड़े भाई श्री निमिष गौड़ जी के ब्लॉग "प्रतिबिंब" से उनकी अनुमति मिलने के बाद प्राप्त की है। क्या आप जानते हैं यह सामान्य जानकारी है कि हर साल हमारे यहाँ निर्मित करीब ४०० हिन्दी फ़िल्मों में से मुश्किल से ५% यानि २०-२५ फ़िल्में ही हिट हो पाती हैं या यूँ कहा जाये कि घाटे का सौदा नहीं होतीं हैं. फ़िर भी हर साल निर्मित होने वाली फ़िल्मों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसा क्यों ?
निरंतर घाटा होते हुये भी यह व्यापार हर वर्ष बढ़ता ही जा रहा है. आखिर इसके पीछे कौन सा Economics है? जी हाँ फ़िल्में एक सृजनात्मक कार्य होने के बावज़ूद, इसमें लगने वाले अधिक संख्या के धन के कारण इस क्षेत्र में commerce और economics का भी दखल है। हिन्दी फ़िल्मों को जो झटका टीवी और इंटरनेट के आगमन से लगा है, वह अभी तक उससे उबर नहीं पायी है. आप लोगों ने कभी न कभी किसी पुरानी फ़िल्म जैसे की "छोटी सी बात,रजनीगंधा, सावन को आने दो" आदि को देखते हुये सोचा होगा कि आज ऐसी फ़िल्में क्यों नहीं बनती हैं.इसका एक कारण टीवी का आगमन है, जिसने लोगों को घर बैठे ही फ़िल्में उपलब्ध करा दी हैं। लेकिन उसके बावजूद भी आज भी सिनेमा घर मे जाकर फिल्म देखने का अपना एक अलग ही मजा है। हालांकी यहाँ टीवी को लेकर कई सारे प्रश्न उठते हैं। जैसे टीवी तो सारी दुनिया में आया फिर hollywood और दक्षिण भारतीय फिल्में क्यूँ नहीं प्रभावित हुई वगैरह-वगैरह.. आपके इन सब सवालों का ज़वाब आपको इस लिंक पर मिल जाएगा।
हाँ तो मैं बात कर रही थी फिल्मों की, अब देखिये वैसे तो ज़िंदगी का हर पहलू अपने आप में बहुत मायने रखता है और फिल्मों में भी लगभग सभी पहलुओं पर नज़र डाली जाती है। मगर मुख्य केंद्र बिन्दु ज्यादातर एक ही होता है और वो है प्यार प्यार और सिर्फ प्यार जो लगभग हर हिन्दी फिल्म में होता ही है। फिर चाहे वो काल्पनिक दृष्टि से ही क्यूँ न दिखाया गया हो। अब आप खुद ही देख लीजिये कुछ ही दिनों बाद "वेलिंटाइन डे" आने वाला है। जिसके चलते टीवी के सारे चैनलों पर "प्रेम रस" से सराबोर फिल्मों का सिलसिला शुरू हो जाएगा, क्यूंकि यह एक आम इंसान की ज़िंदगी का एक ऐसा पहलू है। जो सभी के दिलों को छु जाता है। कोई चाहे कुछ भी क्यूँ न कहे यह हर एक इंसान की ज़िंदगी का ऐसा रंग है, जिससे आज तक कोई भी व्यक्ति अछूता नहीं रहा है। इसलिए हर प्यार पर आधारित फिल्म लोगों के दिल को छू ही जाती है और हर किसी का दिल बस यही गुनगुनाने लगता है कि
"नजाने मेरे दिल को क्या हो गया
अभी तो यहीं था अभी खो गया"
या फिर
बेचैन है मेरी नज़र है प्यार का
गहरा असर हैं होश गुम
सोचो ना तुम
हम आपके , आपके हैं कौन
मगर इस बात को भी आज हम एक नये अंदाज़ से लेकर देखते है। क्यूंकि प्यार तो हमेशा से प्यार ही रहा है मगर वक्त के साथ सब कुछ थोड़ा बहुत बदल ही जाता है। क्यूंकि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। जैसे आज प्यार पर आधारित गाने बदल गए। उपरोक्त पंक्ति में लिखा गया गीत, मध्यम श्रेणी के लोगों के लिए है। मतलब हमारा और आपका ज़माना कह लीजिये आज से 8-10 साल पहले की बात, तो अब यदि आज की बात करें तो आजकल की पीढ़ी के हिसाब से इस गीतमाला की श्रेणी मे कौन सा गाना फिट बैठेगा। सोचिए-सोचिए जहां तक मेरी अक्ल के घोड़े दौड़ते हैं, और पिछले कुछ सालों में जिस तरह की फ़िल्में आई हैं, उस हिसाब से तो यही गीत फिट बैठतें है।
"छेड़ेंगे हम तुझको, लड़की तू है
बड़ी बूमबाट, उलला-उ लाला तू है मेरी फेंटसी "
या
फिर ढिंका चिका ढिंका चिका
बारा महीने मे बारा तरीके से तुझको प्यार जताऊँगा रे
या फिर ?
कुड़ियों का नशा प्यारे,
नशा सबसे नशीला है
जिसे देखो यहाँ वो,
हुस्न की बारिश मे गीला है
इशक के नाम पर करते सभी
अब रासलीला है
मैं करूँ तो साला करेक्टर ढीला है ,
यह तो हुई नई पीढ़ी और हमारे जमाने की बात, मगर यदि इजहारे मुहोब्बत की बात की जाये तो वो शायद गुजरे जमाने में ही सबसे ज्यादा खूबसूरती से किया जाता था। गुज़रा ज़माना यानि 60 का दशक फिल्म अभिनेत्री साधना का ज़माना, ब्लैक एन व्हाइट फिल्मों का दौर जिसके गाने न सिर्फ उस जमाने के लोग बल्कि आज की पीढ़ी भी याद किया करती हैं। वही पुराने और कुछ बहुत ही चुनिन्दा और बेहतरीन गाने जिन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता। जैसे
"हमने देखी है उन आँखों में महकती खुशबू
हाथ से छुके इसे रिश्तों का इलज़ाम न दो,
प्यार को, प्यार ही रहने दो
कोई नाम ना दो"
या
लगजा गले के फिर यह हसीन रात
हो न ,हो,शायद फिर इस जन्म
में मुलाक़ात हो न हो
और इन प्यार भरे गीतों में लोगों ने न जाने कितनी बार खुद को देखा होगा, जिया होगा, खुदके जज़्बातों को महसूस किया होगा और आज भी किया करते हैं जब भी यह गाने सामने आते है या सुनाई भी दे जाते है तो सभी को अपना-अपना ज़माना याद आ ही जाता है। फिर भले ही सुने वाले किसी भी दौर के क्यूँ न हो यही तो है फिल्मों का जादू। है ना !!! और यह फिल्मी दुनिया का वो जादू है जो सदा अपने-अपने समय के जवान दिलों के सर चढ़कर बोलता आया है। इसलिए अंत में इतना ही कहना चाहूंगी कि माना की आज के दौर में सिनेमा घरों का टिकट बहुत महंगा है और आज कल जब आपको घर बैठे ही टीवी पर कुछ ही दिनों में लगभग हर एक नई फिल्म आसानी से देखने को मिल जाती है तो भला सिनेमा घर में जाकर देखने का क्या फायदा,लेकिन तब भी मैं इतना ज़रूर कहूँगी कि यदि आपको वाकई फिल्में देखने का शौक है। यदि आपको ऐसा लगता है कि हाँ वाकई यह फिल्म देखने लायक है तो कम से कम आप वो फिल्म ज़रूर सिनेमा हाल में जाकर ही देखें। क्यूँ वो कहते है न
"अरे टीवी वीडियो बहुत हुआ,
सबके सर में दर्द हुआ
टिकट कटा के
सिनेमा जा आयेगा बड़ा मज़ा"
don't worry be happy
पुराने गानों का आज कोई मुक़ाबला नहीं ... भले ही वो उ ला ला ही क्यों न हो ॰
ReplyDeletebadhiya ..happy valentine day.
ReplyDeleteबड़ा ही रोचक विषय है, उतनी ही रोचकता से व्यक्त भी है..
ReplyDeleteफ़िल्में बनाना भी एक नशा है. बल्कि पूरी फ़िल्मी दुनिया एक नशा है ...
ReplyDeleteउम्दा पोस्ट!
ReplyDeleteप्रेम दिवस की बधाई हो!
दिल से निकले ..दिल को छू जाये ...
ReplyDeleteनया या पुराना
बस एक बहाना ...
सार्थक पोस्ट |
बधाई |
रसधार से भींगता प्यार...उम्दा..
ReplyDeleteaaj ke jamane main baith kar purani films ke gaane ki taarif karna bahut aasan hai aur aaj ki movies ki buarai bhi utni hi aasan magar sach hi kaha hai kisi ne ke burai hamesha achchhai se jadli failto hai main ek baat kahoonga purani filmo ki taarif main kaseede gadne wali PALLAVI JI se ki aaj ke zamane main jab achchha music aata hai to koi use appreciate nahin karta kyonki logon ko jitna maza burai karne main aata hai utna kisi ki taarif main kahan to aage se nayi filmo ki burai karne se pahle naye gaano ko poori shiddaat aur taassali se suna jaye aur woh bhi bina biased hua tab hum aapko batyenge ki aaj ka music purane zmane se kahin achha hai aaj ke liye itna sabak kaafi hai agli baar kuch naye chuninidda gaano ki list aapki pese nazar karoonga.
ReplyDeleteओह हो हो!!! क्या बात है बहुत ख़ुशी हुई मुझे आज पहली बार आपका कमेंट देखा है मैंने अपनी पोस्ट पर इसलिए सबसे पहले आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि आप यहाँ आए और आपने इस विषय में अपने महत्वपूर्ण विचार यहाँ प्रस्तुत किए। लेकिन जहां तक मुझे लगता है, मैंने इस आलेख में कहीं भी नए गानों की कोई बुराई नहीं की है मैंने तो सिर्फ इजहारे मोहब्बत के विषय में गानों के द्वारा आए हुए परिवर्तनों को बताने की कोशिश की है।
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteकई फिल्में केवल अच्छे गानों की बदौलत हिट होती रहीं। हर गाना कभी न कभी पुराना होता है। इसलिए,मैं हमेशा अच्छे की तलाश करता हूं-चाहे वह जब का हो।
ReplyDeletesach है ! अब न वो फ़िल्में बनती हैं , न वो गाने । पुराने गानों में पोयट्री होती थी , अब खाली शोर ।
ReplyDeleteइंतजार रहेंगा काव्यात्मक गीत वाली फिल्मो के दौर का..
ReplyDeleteसटीक विवेचना
न तो सब पुराने अच्छे और न सब नये बुरे ..... बात बस इतनी है ,पसंद अपनी-अपनी अच्छी या बुरी..... पल्लवी जी को जो अच्छा लगा उन्हें वे अच्छा कहेंगी ही ,मुझे तो सब बहुत अच्छा लगा.... :)
ReplyDeleteआपका फिल्मों और गीतों के प्रति प्रेम इस पोस्ट में उभर कर आया है. आशा है आगे चल कर और भी पढ़ने को मिलेगा. अच्छे गीत का लिंक देने के लिए शुक्रिया. मैंने इस गीत को बहुत एंजॉय किया.
ReplyDeleteबेहतरीन व्याख्या फ़िल्मी प्रेम अभिव्यक्ति की.....विस्तृत विवेचन
ReplyDeleteCinema Hall walo ki brand ambessdor ban gayee tum to:))
ReplyDeletewaise movie hit ho ya flop ... kisi bhi tarah wo ghate ka sauda nahi raha..!
पल्लवी जी,...मेरा मानना है कि फिल्मो को सिर्फ मनोरंजन या टाईमपास के नजरिये से देखना चाहिए,...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति,
MY NEW POST ...कामयाबी...
क़रीब पांच साल बाद सिनेमा हॉल में एक फ़िल्म देखा -- अग्निपथ!
ReplyDeleteखैर वह इस आलेख का विषय नहीं है। विषय दो हैं एक .. फ़िल्में कैसी चलती हैं आज, किस तरह की। इस विषय में सोचता हूं अगर कोई उस ज़माने की सफल फ़िल्म “निशांत” या “अंकुर्” की तरह की सर्थक फ़िल्म बनाए तो कितने सेकेंड वह फ़िल्म चलेगी?
और दूसरा विषय है ... प्यार का इज़हार ... याद है गाना .. पांव छूने दो फूलों को इनायत होगी ...
बहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
हा..हा...हा..
ReplyDeleteDon't worry be happy.
अच्छी लगी आपकी यह विस्तृत प्रस्तुति.
रोचक और जानकारीपूर्ण.
मेरे ब्लॉग पर आपके आने का आभारी हूँ.
प्यार पर कुछ प्यारे-प्यारे गीत याद आ गये:-
ReplyDeleteप्यार से भी जरूरी कई काम हैं, प्यार सबकुछ नहीं ज़िंदगी के लिये.प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी, ये बता दे कि तुझे प्यार करूँ या न करूँ.जिंदगी सिर्फ मोहब्बत नहीं कुछ और भी है,जुल्फोरुखसार की जन्नत नहीं कुछ और भी है,भूख और प्यास की मारी हुई इस दुनिया में, इश्क़ ही एक हकीक़्त नहीं कुछ और भी है,इतना न मुझसे तू प्यार जता.संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पाओगे. तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं, तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी.प्यार हुआ, इकरार हुआ.दम भर जो उधर मुँह फेरे ओ चंदा,मैं उनसे प्यार कर लूंगी.हर दिल जो प्यार करेगा.किसी ने अपना बना के मुझको मुस्कुराना सिखा दिया.बेहतरीन आलेख, पुरानी यादों को तरोताजा कर गया.
फिल्मो से सम्बंधित आपकी ये रचना काफी अच्छी लगी, ज्यादा कुछ कह पाना इसलिए संभव नहीं क्योंकी फिल्मो में मेरी रुची आप इससे ही जान सकते है की सिनेमा हाल में जाकर मैंने अब तक की अपनी आख़री फिल्म "ओम शांति ओम" देखी थी वो भी तब जिस दिन रीली़स हही उसके अगले दिन. एक अच्छी रचना के लिए आपको धन्यवाद.
ReplyDeleterochatakta se pari poorn post .....parivartan to shashwat hai sadiv vartman me jeene se urja milati hai .......purani yaden rakhane se mansik sangharsh hi milata hai.....muhabbat purane jamane me bhi hota tha lekin ejhar karne me varshon lag jate the tb mobile ya enternet nahi hota tha ab jaman kuchh aur hai ...han mujhe anjum ji kuchh panktiyan yad aa gyeen
ReplyDeleteचिलमन के आस पास तमाशा कुछ और है |
लेकिन मेरी निगाह ने देखा कुछ और है ||
अंजुम कभी कभार इधर भी ध्यान कर |
वह वक्त और था ये जमाना कुछ और है ||
सुन्दर पोस्ट के लिए सादर आभार पल्लवी जी .
अनोखी और अद्भुत प्रस्तुति ..
ReplyDeleteयादों का एक कोलाज खड़ा कर दिया आँखों के सामने ...
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तितु ...