Saturday 11 January 2014

स्मार्ट फोन का ज़माना क्या कभी होगा पुराना...?


यह एक ऐसा विषय है जिस पर यदि बात की जाये तो बात कभी खत्म ही ना होगी। एक ऐसा विषय जिस पर "जितने मुंह उतनी बातें" इसलिए इस विषय पर मतभेद होना स्वाभाविक सी बात है। यूं तो मुझे खुद स्मार्ट फोन के विषय में कोई विशेष जानकारी नहीं है। इसलिए मैं जो भी लिख रही हूँ केवल अपनी सोच और अनुभव के आधार पर ही लिख रही हूँ। एक दौर था जब बिना फोन के भी जीवन बहुत ही सुखमय तरीके से बीत रहा था। फिर धीरे-धीरे फोन आए तो पत्रों के माध्यम से मिलने वाले सुख का भी अंत हो गया, एक तरह से देखा जाये तो जहां एक और फोन ने दूरियाँ घटा दी वहीं दूसरी ओर आपसी मेल मिलाप को बहुत कम कर दिया। इसके बाद भी लोग कहीं न कहीं संतुष्ट थे। फिर आया मोबाइल फोन इसने जैसे हमें तनाव मुक्त ही कर दिया। ऐसा हमें लगा मगर ऐसा हुआ नहीं, और फिर आए यह स्मार्ट फोन जिन्होंने पूरी दुनिया ही हमारे हाथ में रख दी।       

इस बात को यदि फायदे और नुकसान सामने रखकर देखा जाये तो शायद हमें सही नतीजे पर पहुँचने में आसानी हो सकती है। तो पहले हम फोन से होने वाले फायदे की बात करेंगे। जब से फोन आए तब से सभी की ज़िंदगी ही बदल गयी। दूर बैठे अपने अपनों से जब मर्ज़ी बात करना आसान हो गया। यहाँ हम बात कर रहें है 'लैंड लाइन' वाले फोन की, फिर आया मोबाइल। जिससे हमें अपने बच्चों की पल पल की खबर रखना आसान हो गया। जिस के कारण बहुत हद तक हम चिंता मुक्त हो गए। मोबाइल आने से न सिर्फ बच्चों और परिवार वालों की बल्कि घर में काम करने आने वाली बाई से लेकर सब्जी बेचने वाला/वाली तक के आने या ना आने की जानकारी पहले ही मिल जाने की वजह से हम और भी कई तरह के कामों से चिंता मुक्त हो गए और सब से ज्यादा जो फायदा हुआ वो यह था कि किसी को भी फोन करने से पहले समय का ध्यान रखना या ट्रंकाल बुक करके घंटो इंतज़ार करने का रोना खत्म हो गया। मोबाइल फोन के आने से जब चाहे जहां चाहे किसी भी वक्त और कहीं भी अपनों से बात करना पलक झपकाने जितना आसान हो गया। फिर आया स्मार्ट फोन का ज़माना। इसके आने से न सिर्फ फोन पर जब तब बात करना बल्कि घर में कंप्यूटर ना होते हुए भी फोन पर ही मेल चैक करने और ऑनलाइन बात करने की सुविधा भी मिल गयी। जिसे साइबर कैफ़े जाने का झंझट भी खत्म हो गया। इसके आने से लोगों का अकेलापन भी कुछ हद तक दूर हो गया। सब को अपनी पसंद और मन मर्ज़ी के मुताबिक गाने सुनने, खेल, जानकारी, रास्ते का पता, बात करने की सुविधा और मेल चैक करने तक की सभी सुविधायें हाथ में ही मिल गयी। अब न किसी से बात करने के लिए किसी का मुंह देखने की जरूरत है और न मेल चैक करने के लिए किसी कंप्यूटर की अब सब कुछ आपके हाथ में...और क्या चाहिए? 

अब यदि हम बात करे फोन से होने वाले नुकसान की तो वो भी कम नहीं है। पहला नुकसान अपने आस पास की दुनिया से संपर्क खत्म हो जाना, दूजा संयम का खत्म हो जाना, नतीजा तनाव जैसे रोग से चौबीसौं घंटे घिरे रहना। क्यूंकि जब से यह स्मार्ट फोन आए लोगों का जैसे सारा संयम ही ख़त्म हो गया। जहां एक ओर पहले शांति पूर्ण संतुष्ट जीवन की पहली शिक्षा संयम और धैर्य रखना सिखाया जाता था, वहीं आज इन स्मार्ट फोन के उपयोग ने इस बात को हमारे अंदर से पूरी तरह ख़त्म कर दिया है। आलम यह है कि टीवी देखते वक्त या फोन पर कोई वीडियो देखते वक्त भी हम कुछ क्षणों का सब्र भी नहीं कर पाते और विलम्ब होने पर ज़रा में परेशान हो जाते हैं। तीजा पूरा समय उसी में लगे रहने के कारण आँखों और कानो पर बुरा प्रभाव पड़ना। क्यूंकि आमतौर पर लोग ज़्यादातर फोन पर गाने सुनते हुए गेम खेलते रहते है या किसी न किसी से ऑनलाइन बात करते रहते है। जिसके कारण उनकी आँखों पर ज्यादा ज़ोर पड़ता है और कानो में लंबे समय तक इयर फोन लगे रहने कि वजह से कानों को नुकसान पहुंचता है सो अलग। इतना ही नहीं मोबाइल फोन के आ जाने से लोगों की याददाश्त पर भी बुरा असर पड़ा है। पहले लोगों को अपने प्रिय जनो के नंबर मुंह जवानी याद रहते थे। समय देखने से लेकर समाचार पढ़ने तक, लोग समाचार पत्र और घड़ी का इस्तमाल करते थे। मगर अब सब कुछ हाथ में ही है। इसका मतलब आपकी दुनिया का सुकड़कर छोटा हो जाना नहीं है, तो और क्या है। आम मोबाइल की तुलना में स्मार्ट फोन बेट्री भी ज्यादा खाते है। तो जब तब बेट्री खत्म होने का डर अलग लगा रहता हैं। चौथा और सब से महत्वपूर्ण कारण या नुकसान, कुछ भी कह लीजिये। फोन पर इन्टरनेट का होना। मेरी नज़र में इंटरनेट एक ब्रह्मास्त्र की तरह है। यदि सही हाथों में है तो फायदा ही फायदा और यदि गलत हाथों में पड़ जाये तो सर्वनाश निश्चित है।

जैसा कि मैंने उपरोक्त कथन में भी कहा, जहां एक और हम अपने बच्चों की पल पल की खबर रख कर खुद को चिंता मुक्त समझते हैं वहीं दूसरी और बच्चे इंटरनेट का गलत फायदा उठाते हुए उस पर वो सब देखते, सुनते और करते हैं, जो उनके लिए सही नहीं है। उसी का परिणाम है MMS का दुरुपयोग जो आजकल आए दिन लड़के लड़कियां अपने स्कूल कॉलेज में एक दूसरे का वीडियो बना बनाकर एक दूसरे को भेजते रहते हैं। जब तक यह स्मार्ट फोन नहीं आए थे। तब तक मोबाइल में केवल बात करने, संदेश भेजने, रिंगटोन सेट करने और गेम खेलने, तक ही सब कुछ सीमित था। जो शायद ज्यादा अच्छा था। मगर अब ऐसा नहीं जो एक बेहद गंभीर और चिंता जनक बात है। ऐसा मुझे लगता है। हो सकता है आप सब इस बात से सहमति न भी रखते हो। 

अब सवाल यह उठता है कि इतनी समस्याओं के बावजूद भी ऐसी क्या वजह है जो हम अपनी इतनी मेहनत से कमाई हुई गढ़ी कमाई को पानी की तरह बहाने पर मजबूर हो जाते हैं और फिर भी खुश नहीं होते। जबकि पहले फोन के बिना ही क्या, मोबाइल फोने के बिना भी हम बहुत खुश रहा करते थे।

इसके पीछे भी दो वजह है पहली कि पुराने जमाने में केवल घर का मुखिया धन अर्जन के लिए और समाज में सर उठा के जीने के लिए नौकरी करता था ताकि वह अपना और अपने परिवार का सही और सीमित ढंग से पालन पोषण कर सके। देखा जाये तो एक तरह से यह सही भी था इसके कारण घर के अन्य सदस्यों को पैसे की सही अहमीयत पता होती थी। जिसके चलते उन्हें अपनी जरूरत का भी ख्याल रहता था। शायद इसी वजह से उस दौर में लोगों का आचरण भी आज की तुलना में ज्यादा अच्छा रहा करता था। क्यूंकि जब हाथ में सीमित पैसा होगा तो आप स्वतः ही गलत मार्ग पर चाहकर भी नहीं चल सकते। फिर चाहे वो शोक पूरे करने वाली बात ही क्यूँ ना हो। फिर भी लोग अपनी चादर देखकर ही पैर फैलाते थे। शायद इसी वजह से तब बड़े पैमाने में अपराध भी कम होते थे। ऐसा मेरा मानना है।  


मगर आज ऐसा नहीं है। आज हर कोई जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है। आत्मनिर्भर बनाना चाहता है, जो एक तरह से बहुत ही अच्छी बात है इसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन इसका नुकसान यह है कि आज लगभग घर के सभी सदस्यों के हाथ में पैसा आगया है जिसके कारण उन्हें ऐसा लगता है कि उन्होंने दुनिया जीत ली है। अब वो अपनी मर्ज़ी के मालिक है और उनके द्वारा कमाया गया पैसा, पूरी तरह से उनका है। इसलिए उस पैसे को मन चाहे ढंग से खर्च करने का भी अधिकार केवल उनका ही है। उस पैसे पर और किसी का कोई अधिकार नहीं, इस सबके चलते लोग सबसे पहले अपने शोक पूरे करना चाहते है। महंगे-महंगे कपड़े, नयी गाड़ी और नया फोन आज के दौर की सब से ज्यादा चर्चित प्राथमिकतायें हैं। जिन्हें हर कोई जल्द से जल्द हर हालत में पूरा करना चाहता है। फिर चाहे उसके लिए लोगों को कर्जा ही क्यूँ न लेना पड़े। लेकिन फोन हाथ में आते ही फोन लेने की अहम वजह खत्म होती सी मालूम होने लगती है और लोगों का अपने आस-पास की दुनियाँ से संपर्क जुडने के बजाए पूरी तरह टूट जाता है। नतीजा के लोगों की सम्पूर्ण दुनिया केवल स्मार्ट फोन में सिमटकर ही रह जाती है। जैसा आजकल हो रहा है। जहां उस दौर में लोगों की सुबह ईश्वर के नाम के साथ या बड़ों के आशीर्वाद के साथ या फिर सुबह की सैर में प्राकृतिक सुंदरता के साथ दिन की शुरुआत किया करते थे। वही आजकल सुबह की शुरुआत फोन पर अपडेट देखकर होती है।

लेकिन मुझे आज तक यह समझ नहीं आया कि हर दिन आते नए फोन के पीछे लोग पागल ही क्यूँ है। जब से स्मार्ट फोन आए हैं तब से मैंने तो केवल एक ही चीज़ महसूस की वही तीन चार चीजों को हर बार नए ढंग से स्पीड बढ़ाकर आम जनता के सामने लाना और उन्हें लुभाना यही तो काम करती हैं यह फोन बनाने वाली कंपनियाँ और हम अक्ल के अंधे लोगों को यह बात नज़र ही नहीं आती। आप खुद ही सोचकर देखिये आज की तारीख़ में जब कभी आप फोन लेने जाते है तो सबसे पहले क्या देखते हैं। उसका वजन, आकार प्रकार, मोटा पतला, कैमरा, 3G/4G  नेटवर्क, संदेश भेजने की नयी नयी एपलिकेशन जैसे वाट एप ,वाइबर या टेंगो ज्यादा हुआ तो GPS और ज्यादा हुआ तो फोन में डाटा सेव करने की स्पेस कितनी है और इसके अतिरिक्त साधारण फोन करने और संदेश भेजने की सुविधा तो हर फोन में अहम होती ही है। इसमें से सबसे महत्वपूर्ण चीज़ तो आपकी फोन की सिम पर निर्भर करती है। जैसे आपके फोन का नेटवर्क,वो ही सही नहीं होगा तो बाकी सब बेकार ही हो जायेगा। बस केवल इन्हीं बातों के आधार पर हम फोन खरीदते है ना। फिर कुछ दिन बाद वही कंपनी या कोई नयी कंपनी इन्हीं चीजों को नए ढंग से आपके समक्ष पेश करती है। सिर्फ नए रंग रूप के साथ असलियत तो वही होती है जो आपके पास मौजूदा फोन में पहले से है। फिर भी ऐसी क्या बात होती है, जो हम नए फोन की तरफ इस कदर आकर्षित हो जाते हैं कि हमें अपना प्यारा फोन जो बिना किसी गड़बड़ी के हमारा साथ निभा रहा होता है जिसे हमने बड़े अरमानो से खरीदा था वो ही फोन बुरा और ओल्ड फैशन लगने लगता है और हम झट से जाकर खट से अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई को दिखावे की चकाचौंध में अंधे होकर फूँक आते हैं। 

यही एक अहम वजह है कि स्मार्ट फोन का ज़माना कभी होगा न पुराना ... ज़रा सोचिए क्या यह सही है ?

इस आलेख को आप सब यहाँ इस लिंक पर क्लिक करके ज़ी न्यूज़ की साइट पर भी पढ़ सकते है।

http://zeenews.india.com/hindi/news/zee-special/what-would-be-the-oldest-set-of-smart-phone-ever/197941

12 comments:

  1. अच्छा ...बुरा ...हर बात की दोनों साइड्स होती है तभी वो सम्पूर्ण होती है ....ये बात आज की टेक्नॉलजी प भी लागू होती है और स्मार्ट फोन्स पर भी

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  2. उपभोक्तावाद किसी वास्तु को स्थायी नहीं मानता इसलिए स्मार्ट फोन भी एक दिन पुराने लगाने लगेंगे और इसकी जगह कुछ और ले लेगा.

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  3. समय सदा आगे चलता रहता है और यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं..आज स्मार्ट फ़ोन का जमाना है और कल कुछ और आ जायेगा...वैसे स्मार्ट फ़ोन के कुछ नुकसान हैं तो फायदे भी कुछ कम नहीं...मुझे तो यह बहुत सुविधाजनक लगता है..

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (12-01-2014) को वो 18 किमी का सफर...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1490
    में "मयंक का कोना"
    पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. अच्‍छा बुरा दोनों ही पहलू होते हैं, विज्ञान तो कुछ ना कुछ देगा ही, उसे किस प्रकार प्रयोग करना है वह हमारे हाथ में हैं

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  6. सब कुछ इन गैजेट्स के उपयोग पर निर्भर है ..... फायदे बहुत हैं पर नुकसान भी है ही ....

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  7. अब स्मार्ट फोन के आगे क्या ? यह भी बदल जायेगा !
    लेख थोड़ा लम्बा हो गया जी !

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  8. तकनीक की खूबियाँ और खामियां दोनों हैं ....लेकिन अगर हम तकनीक का इस्तेमाल अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए करते हैं तो जीवन सहज बन जाता है ...और इसके विपरीत करते हैं तो तो उसकी हानियाँ भी हो जाती हैं .....विचारणीय आलेख ...!!!

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  9. सन्‍तुलित बातें चलभाष उपकरणों के प्रयोग व अप्रयोग के बारे में। विज्ञान का अत्‍यधिक समर्थन भावनाशून्‍य तो मानव को कर ही चुका है।

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  10. बात वहीँ पर आती है कि आप किसी चीज को रूप से लेते हैं. पैसा हो तो उससे अच्छे और बुरे कार्य दोनों किये जा सकते हैं. फ़ोन और इन्टरनेट के कुछ बुरे पक्ष तो हैं लेकिन कई खूबियाँ भी हैं.संतुलित लेख.

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  11. तेज़ी के इस समय में हर चीज़ तेज हो रही है ... बदल रही है ... ऐसे में सोच और सोच को कंट्रोल करने वाले गेजेट भी बदल रहे हैं ... कंचे लट्टू की जगह अब नए खिलोनों ने ले ली है ...

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  12. आपने जो लिखा है वह बहुआयामी है. इन सभी बिंदुओं में मुझे जो सबसे महत्वपूर्ण लगा वह यह है कि इन गैजेट्स के कारण परिवारों में आपसी संवादहीनता बढ़ी है. यह सबसे घातक है.

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