कल यानी 8 अक्तूबर को यहाँ मेंचेस्टर में विजयदशमी और दीवाली महोत्सव मनाया गया जिसका नाम दशहरा दीवाली महोत्सव मेला 2011 था, यहाँ पहली बार हम लोगों ने विजयदशमी पर्व का इतना हँगामा देखा। इसे पहले दीवाली महोत्सव के बारे में तो बहुत सुना, पढ़ा और देखा था और इस पूरे महोत्सव में मुझे जो सबसे अच्छी बात लगी वो यह थी कि इस पूरे महोत्सव का पूरा ख़र्चा वहाँ की काउंसिल ने उठाया था।
विदेश में भारतीय पर्व पर यहाँ की कोई काउंसिल हर साल पूरा ख़र्चा उठाती है, सुनकर ही मुझे तो बहुत हैरानी हुई थी और न सिर्फ खर्च बल्कि अँग्रेज़ बच्चों के द्वारा बनाये हुए कागज़ के केंडल की परेड के द्वारा प्रदर्शनी भी थी। अँग्रेज़ों ने हमारे पर्व के लिए इतना कुछ किया, सोचो तो यक़ीन नहीं होता। आप भी यक़ीन न करें शायद मगर यह सच है उस पूरी परेड में पूरे अँग्रेज़ बच्चे ही थे। एक भी हिंदुस्तानी नहीं था। कम से कम मुझे तो कोई नहीं दिखा।
पहले तो जब हम यह मेला देखने उस मैदान में पहुँचे तो लग रहा था कि मौसम खराब होने के कारण शायद पूरे मेले का मज़ा किरकिरा हो जाएगा। मगर वहाँ मौजूद आर्केस्टा वालों ने और खाने पीने के स्टाल वाले लोगों ने ऐसा समा बाँधना शुरू किया कि लोग बारिश बिजली पानी सब भूल गए और देखते-ही देखते इतनी भीड़ जमा हो गयी कि पूछो मत और इतनी तेज़ बारिश के बावजूद भी लोगों ने खुल कर पूरे उत्साह के साथ एक मेले और इस पर्व का भरपूर आनंद उठाया, जिसमें से हम भी एक थे।
जैसा कि मैंने आपको बताया कि जब हम मैदान (Platt Fields Park) में पहुँचे तो सबसे पहले हम सबकी निगाहें रावण को देखने के लिए उत्सुक हो रही थी कि इतनी बारिश में कैसा बना है यहाँ का रावण और इतनी बारिश के चलते जल भी पायेगा या नहीं, रह-रह कर बस हम सब के दिमाग में यही प्रश्न घूम रहा था। मगर जिस दूरी पर हम थे वहाँ से हम में से किसी को भी रावण नज़र ही नहीं आया, एक ने किसी और चीज़ को ही रावण समझ कर सब को बताया कि वो देखो गुलाबी और नीले रंग का जो दिख रहा है वही रावण है। मगर जब हम वहाँ उस नीली गुलाबी से दिखने वाली छवि के पास पहुँचे तो देखा कि वो रावण नहीं बच्चों के झूलों का विभाग था। ऐसे ही घूमते-घूमते एक जगह नज़र पड़ी तब समझ आया कि इस साल recession के चलते और हमारे यहाँ जो सरकार ने गरीबी रेखा अंकित की है 32 रुपये उसको मद्दे नज़र रखते हुए तो बेचारा यहाँ का रावण भी उस ग़रीबी रेखा के नीचे आ गया और इसलिए यहाँ वालों उस बेचारे का पूरा शरीर न बनाते हुए केवल उसके दस सर ही बनाए।
जैसा कि मैंने आपको बताया कि जब हम मैदान (Platt Fields Park) में पहुँचे तो सबसे पहले हम सबकी निगाहें रावण को देखने के लिए उत्सुक हो रही थी कि इतनी बारिश में कैसा बना है यहाँ का रावण और इतनी बारिश के चलते जल भी पायेगा या नहीं, रह-रह कर बस हम सब के दिमाग में यही प्रश्न घूम रहा था। मगर जिस दूरी पर हम थे वहाँ से हम में से किसी को भी रावण नज़र ही नहीं आया, एक ने किसी और चीज़ को ही रावण समझ कर सब को बताया कि वो देखो गुलाबी और नीले रंग का जो दिख रहा है वही रावण है। मगर जब हम वहाँ उस नीली गुलाबी से दिखने वाली छवि के पास पहुँचे तो देखा कि वो रावण नहीं बच्चों के झूलों का विभाग था। ऐसे ही घूमते-घूमते एक जगह नज़र पड़ी तब समझ आया कि इस साल recession के चलते और हमारे यहाँ जो सरकार ने गरीबी रेखा अंकित की है 32 रुपये उसको मद्दे नज़र रखते हुए तो बेचारा यहाँ का रावण भी उस ग़रीबी रेखा के नीचे आ गया और इसलिए यहाँ वालों उस बेचारे का पूरा शरीर न बनाते हुए केवल उसके दस सर ही बनाए।
खैर उसके बाद सब की नज़र गई एक सफेद लगे हुए बड़े परदे पर जिसे देख कर सको लग रहा था की हो न हो यह इसलिए लगाया गया है ताकि जो लोग दूर खड़े हैं उनको इस परदे के माध्यम से रावण दहन दूर खड़े रहकर भी दिख सके, अब खाना पीना हो जाने के बाद बारिश का पानी और तेज़ हो चुका था और हम लोग अपनी-अपनी छतरियाँ बाहर गाड़ी में ही भूल आये थे और यदि लेने जाते तो शायद तब तक रावण दहन का कार्यक्रम ही खत्म हो जाता। अब सिवाय भीग जाने के हमारे पास और कोई दूसरा चारा भी नहीं था। भीड़ भी बहुत थी यह भी एक तनाव था साथ में जो बच्चे हैं वो कहीं इधर उधर न जो जायें। मगर यह ग़नीमत थी कि सभी बच्चे वॉटर प्रूफ जेकिट्स पहने हुए थे तो कम से कम उनके भीग जाने का डर नहीं था क्यूँकि यहाँ के मौसम के हिसाब से बारिश हो जाने के वजह से कल रात को 8 बजे बहुत ज्यादा ठंड बढ़ गई थी।
खैर अब कार्यक्रम शुरू हुआ जिसमें एक महिला साड़ी पहन कर सजधज कर एक स्टेज पर आई और उसने अपना परिचय देते हुए अँग्रेज़ी में बताया कि वह कौशल्या है। राजा दशरथ की पत्नी और भगवान राम की माँ और फिर शुरू हुई, बहुत ही प्यारी और अदबुध न्रत्य-नाटिका जो की उस बड़े सफेद परदे पर न्रत्य के माध्यम से दिखाई गई। जिसके अंतर्गत दो लोगों ने भगवान राम और माता सीता के पात्र का अभिनय किया और रानी ने उस दौरान पूरी रामायण की मुख्य कथा को बहुत संक्षिप्त शब्दों में और बहुत ही कम समय में अँग्रेज़ी भाषा के माध्यम से लोगों के समक्ष बहुत ही खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया।
खैर अब कार्यक्रम शुरू हुआ जिसमें एक महिला साड़ी पहन कर सजधज कर एक स्टेज पर आई और उसने अपना परिचय देते हुए अँग्रेज़ी में बताया कि वह कौशल्या है। राजा दशरथ की पत्नी और भगवान राम की माँ और फिर शुरू हुई, बहुत ही प्यारी और अदबुध न्रत्य-नाटिका जो की उस बड़े सफेद परदे पर न्रत्य के माध्यम से दिखाई गई। जिसके अंतर्गत दो लोगों ने भगवान राम और माता सीता के पात्र का अभिनय किया और रानी ने उस दौरान पूरी रामायण की मुख्य कथा को बहुत संक्षिप्त शब्दों में और बहुत ही कम समय में अँग्रेज़ी भाषा के माध्यम से लोगों के समक्ष बहुत ही खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया।
इतना ही नहीं इस सब में जो सब से ज्यादा खूबसूरत बात मुझे जो लगी वह थी कि जब–जब रामायण की उस कथा में कुछ ऐसा क़िस्सा आता था, जिसमें जोश की भावना जागृत होती हो तब-तब आस-पास बॅक ग्राउंड संगीत के साथ आतिशबाज़ी भी चला करती थी। जैसे लंका दहन के वक्त एक छोटी सी लंका भी बनाई गई थी, जिसे बाक़ायदा जलाया गया। कहानी के खत्म होने बाद हुआ रावण का दहन, जो छोटा होते हुए भी इतनी तेज़ वर्षा के बाद भी, अपनी पूरी आन–बान और शान के साथ बड़ी खूबसूरती से जला और उसके बाद जो आतिशबाज़ी हुई है उसका तो कहना ही क्या पूरा कार्यक्रम समाप्त होने के बाद लगा कि यूँ इतनी देर पानी में भीगना भी बुरा नहीं लगा जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता। यह सारा, सब कुछ मैं कभी शब्दों में ब्यान कर ही नहीं सकती जितनी खूबसूरती से मैंने कल देखा था।
और इस तरह दशहरा और दीवाली की शुभकामनायें देने के साथ ही इस मेले का और इस महोत्सव का समापन हुआ।
और इस तरह दशहरा और दीवाली की शुभकामनायें देने के साथ ही इस मेले का और इस महोत्सव का समापन हुआ।
वाह! बहुत सुन्दर और रोचक लगा वृतांत.
ReplyDeleteनई जानकारी मिली,सुखद अनुभव भी हुआ.
शानदार आतिशबाजी देखकर दिल प्रसन्न हों गया.
अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार,पल्लवी जी.
आपकी यह प्रस्तुति यह जाहिर करती है कि दशहरा और दिवाली के सन्देश को पूरी दुनिया के लोग समझ रहे हैं और यह सही भी है ....आपने बहुत रोचकता से अपने विचारों और वहां के दृश्यों को प्रस्तुत किया है आपका आभार ..!
ReplyDeleteमनाइए खूब दशहरा…
ReplyDeleteबढ़िया... मजे करो अभी तो दिवाली बाकी है.
ReplyDeleteजानकर अच्छा लगा कि विदेशों में भी हमारे त्यौहारों को पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है और वो भी विदेशियों द्वारा।
ReplyDeleteऐसे समय में जब ये त्यौहार हमारे यहां ही औपचारिकता भर रह गए हैं विदेशी जमीन पर उनके द्वारा इस तरह के वृहद आयोजन की जानकारी ने मन प्रसन्न कर दिया।
तस्वीरों और शानदार आतिशबाजियों के वीडियो ने मन मोह लिया।
आभार आपका.....
मज़ा आ गया सारा सचित्र, स-विडियो विवरण पढ-देखकर, बधाई हो!
ReplyDeleteभारतीय संस्कृति का सुन्दर प्रदर्शन।
ReplyDeleteवाह आनन्द आ गया ऐसा सुन्दर विवरण पढकर्…………बहुत सुन्दर तरीका है ये भी।
ReplyDeleteइस विस्तृत जानकारी के लिये आपका बहुत-बहुत आभार ... बहुत ही अच्छा लिखती हैं आप ।
ReplyDeleteहमारे यहाँ जो सरकार ने गरीबी रेखा अंकित की है 32 रुपये उसको मद्दे नज़र रखते हुए तो बेचारा यहाँ का रावण भी उस ग़रीबी रेखा के नीचे आ गया और इसलिए यहाँ वालों उस बेचारे का पूरा शरीर न बनाते हुए केवल उसके दस सर ही बनाए।
ReplyDeleteबहुत खूब...
सार्थक प्रस्तुति , बधाई
ReplyDeletepre deewaali ke maje le rahi ho :)
ReplyDeletebadhiya hai...........:! advance me meri bhi shubhkamnayen!
itna sajeev varnan. lag raha hai jaise hum ankhon se dekh rahen ho..
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर पहली बार ही आना हुआ लेकिन आपने जिस नाटिका का वर्णन किया है, वाकयी में काबिले-तारीफ रही होगी। कार्यक्रम करने की यही दृष्टि आपको भीड़ से अलग करती है। आगे की पोस्ट को भी इंतजार रहेगा। बधाई।
ReplyDeleteबहुत मज़ा आया और अच्छा लगा वीडियो देखकर और पोस्ट के माध्यम से इस कार्यक्रम के बारे मे जान कर।
ReplyDeleteसादर
प्रिया जी ने कहा....
ReplyDeletePriya Krishnan bahut sundar!! maine pura blog padha aur enjay bhi kiya. lekin mujhe ek baat bahut bura laga ke hum bhi is karyakram me shamil the aur apni mulakaat nahi ho payi:( anyway keep bloging :))
दशहरा और दीपावली की आप सब को भी शुभकामनायें। मेरे ब्लाग पर टिप्पणी के वास्ते धन्यवाद।
ReplyDeleteआप जहां अभी हैं वह देश साम्राज्यवादी है और वहाँ साम्राज्यवादी रावण का दहन कार्यक्रम करने का मतलब है भारतीयों को गुमराह बनाए रखने का सुदृढ़ प्रयास। यदि समय मिले तो मेरे उसी ब्लाग पर 'रावण-वध एक पूर्व निर्धारित योजना'देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि राम ने किस प्रकार साम्राज्यवाद का विनाश किया था।
हमें वहां की सांस्कृतिक गतिविधियों से परिचय कराने के लिए आपका आभार!
ReplyDeleteविदेशों में भी भारतीय संस्कृति..... आनन्द आ गया
ReplyDeleteवाह!! मज़ा आया पढ के.
ReplyDeleteकिसी पात्र का रंगमंच पर आकर अपना परिचय देना कि "मैं कौशल्या हूँ" मुझे भारतीय रंगमंच की रूढ़ियों की याद दिला गया. बढ़िया लगा. रिसेशन के कारण रावण का पूरा पुतला नहीं बना. कई देशों का राष्ट्रीय बजट आजकल ऐसा हो रहा है. विजय माथुर जी के ब्लॉग पर जा कर देखता हूँ कि माजरा क्या है. वे एक बहुत सुलझे हुए इंसान हैं.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आलेख.
badhiyaa .... pardes mein apna des mil jaaye to kehnaa hee kyaa
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletebhai wah ...bahut maja aaya
ReplyDeletehappy vijaydashmi aur happy dipavali ....
अच्छा रहा विवरण..यहाँ टोरंटो में भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है...अच्छा लगता है अपनी जमीन से दूर ये सारे अनुभव!!!
ReplyDelete