कहीं दीप जले कहीं दिल.... आपको लग रहा होगा कि इतने गंभीर मसले पर बात करते हुये भी मुझे फिल्मी गाने याद आ रहें हैं। मगर मैं भी क्या करूँ बात ही कुछ ऐसी है। आपने यह विषय बहुत बार पहले भी पढ़ा, देखा, और सुना होगा। यह कोई नई बात नहीं है। आज हमारे चारों तरफ कोई न कोई जल ही रहा है। किसी का किसी की सफलता को देख कर जलना, किसी का प्यार में जलना, तो कोई आत्मदाह करके मर जाता है, तो कहीं किसी को जला कर मार दिया जाता है। सिवाय जलन के और कुछ नहीं बचा है, हमारे आस-पास न जाने यह आग कितनों को और जलायेगी। दहेज़ प्रथा के चलते न जाने कितनी मासूम बेटियों और बहुओं को अब तक जला कर मारा जा चुका है और अब भी यह मौत की आग का भयानक तांडव जारी है। ना जाने कब इस दहेज़ के घिनौने रिवाज से हमारे समाज को मुक्ति मिलेगी।
आज जो हालात हैं, उनको देखते हुए तो ज़रा भी नहीं लगता कि हमको कभी इस घिनौने रिवाज से मुक्ति मिलेगी। कहने को आज हमारे समाज ने, हमारी दुनिया ने इतनी तरक़्क़ी करली है, लोग अब चाँद पर ही नहीं बल्कि अन्य कई ग्रहों पर जाने का मंसूबा रखते हैं। मगर हमारी भारतीय नारी आज भी वहीं हैं जहां कल थी। कहने को आज औरत अपने आप में सक्षम है और किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं है। यह बात कुछ महिलाओं ने साबित भी कर दिखाई है, इसमें भी कोई दो राय नहीं है। मगर एक गाँव में रहने वाली साधारण सी महिला का क्या वो तो आज भी समाज की बनाई उस दहलीज़ पर ही खड़ी है जहां कल खड़ी थी। उससे तो आज भी दहेज़ ना मिलने के कारण या फिर माँग के अनुसार कम मिलने के कारण ज़िंदा जला दिया जाता है और आज भी जलाया जा रहा है। यही सब रोज़-रोज़ पढ़ते-पढ़ते मेरे मन में भी यह ख़्याल आया कि मुझे भी इस विषय पर कुछ लिखना चाहिए।
आज भी जब कभी आप कोई हिन्दी समाचार पत्र उठा कर देखो, तो ज्यादा नहीं तो कम से कम एक खबर तो आपको रोज़ ही पढ़ने को मिलेगी की आज फ़लाँ गाँव में फलाना औरत को मिट्टी का तेल डालकर ज़िंदा जला दिया गया। बहुत से ऐसे लोग हैं जो महिलाओं के हक़ के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं ताकि उनको इंसाफ़ मिल सके मगर कुछ लोग शायद यह भूल जाते हैं कि हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है और जैसा कि "श्री अन्ना हज़ारे" जी की सोच है, कि वह ग्राम स्वराज्य को भारत के गाँवों की समृद्दि का माध्यम मानते हैं। उनका मानना है कि ' बलशाली भारत के लिए गाँवों को अपने पैरों पर खड़ा करना होगा।' उनके अनुसार विकास का लाभ समान रूप से वितरित न हो पाने का कारण रहा, गाँवों को केन्द्र में न रखना।
व्यक्ति निर्माण से ग्राम निर्माण और तब स्वाभाविक ही देश निर्माण के गाँधी जी के मन्त्र को उन्होंने हक़ीक़त में उतार कर दिखाया और एक गाँव से आरम्भ उनका यह अभियान आज 85 गाँवों तक सफलता पूर्वक जारी है। व्यक्ति निर्माण के लिए मूल मन्त्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र, शुद्ध आचार-विचार, निष्कलंक जीवन व त्याग की भावना विकसित करने व निर्भयता को आत्म सात कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया है। जो कि अपने आप में एक बहुत ही अहम और महान कार्य की श्रेणी में आता है। लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि इस सब चीजों के साथ-साथ न केवल गाँव विकास बल्कि लोगों में भी औरतों के प्रति सम्मान और एक इंसान होने के नाते इंसानियत का भाव रखने की जागरूकता को जगाना भी एक बड़ा अजेंडा होना चाहिए।
आज कल इस सब बातों पर आधारित कई कार्यक्रम में भी इस बात पर आधिक ज़ोर डाला जा रहा है कि अब बस बहुत हो चुका नारी पर यह अत्याचार अब और नहीं होना चाहिए। सोनी टीवी पर भी कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम के माध्यम से श्री “अमिताभ बच्चन जी” भी नारी को प्रोत्साहन देने की बातें किया करते है और एक कार्यक्रम जिसका नाम है "प्रायश्चित्त" उसमें भी आने वाले अंक में एक ऐसे ही शख़्स के बारे में बताया जाने वाला है। जिसने अपनी बीवी को ज़िंदा जला दिया था। एक तरफ एक पढ़ा लिखा सभ्य समाज और दूसरी तरफ संकीर्ण मानसिकता लिए यह लोग आखिर इस सब का ज़िम्मेदार कोन है? क्या इस समस्या का कभी कोई हल नहीं निकाल सकता है ? क्या हमेशा हमारे देश की मासूम बहू बेटियों के साथ यह अन्याय होता रहेगा। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो हम कभी नारी मुक्ति से जुड़े किसी भी मुद्दे को कभी खत्त्म नहीं कर पायेंगे। फिर चाहे वो दहेज़ प्रथा हो या कन्या भूर्ण हत्या।
क्यूँकि मुझे ऐसा लगता है बल्कि शायद यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि मेरा ऐसा मानना है। जब तक यह दहेज़ की प्रथा खत्म नहीं हो जाती। यह कन्या भूर्ण हत्या जैसा पाप भी हमारे देश से कभी खत्म नहीं हो सकता। क्यूँकि जब तक यह दहेज़ प्रथा चलेगी तब तक लड़कीयों के माँ-बाप अपनी कन्याओं को दहेज़ देना पड़ेगा के डर से यूँही खत्म करते रहेंगे जैसे आज कर रहे हैं। जो माता-पिता ऐसा नहीं करते उनकी बेटियों को दहेज ना दे पाने के कारण या दहेज ना मिलने के कारण आग के हवाले कर दिया जाता है। इस समस्या का सही हल क्या है यह तो कहना मुश्किल है। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि इन सब मामलों के चलते लोगों में इन बातों के प्रति जागरूकता लाना बेहद ज़रूरी है और वह तभी संभव है जब लोग इन बातों को जाने-समझे। उसके लिए सब से ज्यादा ज़रूरी है लोगों का नज़रिया बदलना, और वो तभी बदल सकेगा जब लोग शिक्षित होंगे।
व्यक्ति निर्माण से ग्राम निर्माण और तब स्वाभाविक ही देश निर्माण के गाँधी जी के मन्त्र को उन्होंने हक़ीक़त में उतार कर दिखाया और एक गाँव से आरम्भ उनका यह अभियान आज 85 गाँवों तक सफलता पूर्वक जारी है। व्यक्ति निर्माण के लिए मूल मन्त्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र, शुद्ध आचार-विचार, निष्कलंक जीवन व त्याग की भावना विकसित करने व निर्भयता को आत्म सात कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया है। जो कि अपने आप में एक बहुत ही अहम और महान कार्य की श्रेणी में आता है। लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि इस सब चीजों के साथ-साथ न केवल गाँव विकास बल्कि लोगों में भी औरतों के प्रति सम्मान और एक इंसान होने के नाते इंसानियत का भाव रखने की जागरूकता को जगाना भी एक बड़ा अजेंडा होना चाहिए।
आज कल इस सब बातों पर आधारित कई कार्यक्रम में भी इस बात पर आधिक ज़ोर डाला जा रहा है कि अब बस बहुत हो चुका नारी पर यह अत्याचार अब और नहीं होना चाहिए। सोनी टीवी पर भी कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम के माध्यम से श्री “अमिताभ बच्चन जी” भी नारी को प्रोत्साहन देने की बातें किया करते है और एक कार्यक्रम जिसका नाम है "प्रायश्चित्त" उसमें भी आने वाले अंक में एक ऐसे ही शख़्स के बारे में बताया जाने वाला है। जिसने अपनी बीवी को ज़िंदा जला दिया था। एक तरफ एक पढ़ा लिखा सभ्य समाज और दूसरी तरफ संकीर्ण मानसिकता लिए यह लोग आखिर इस सब का ज़िम्मेदार कोन है? क्या इस समस्या का कभी कोई हल नहीं निकाल सकता है ? क्या हमेशा हमारे देश की मासूम बहू बेटियों के साथ यह अन्याय होता रहेगा। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो हम कभी नारी मुक्ति से जुड़े किसी भी मुद्दे को कभी खत्त्म नहीं कर पायेंगे। फिर चाहे वो दहेज़ प्रथा हो या कन्या भूर्ण हत्या।
क्यूँकि मुझे ऐसा लगता है बल्कि शायद यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि मेरा ऐसा मानना है। जब तक यह दहेज़ की प्रथा खत्म नहीं हो जाती। यह कन्या भूर्ण हत्या जैसा पाप भी हमारे देश से कभी खत्म नहीं हो सकता। क्यूँकि जब तक यह दहेज़ प्रथा चलेगी तब तक लड़कीयों के माँ-बाप अपनी कन्याओं को दहेज़ देना पड़ेगा के डर से यूँही खत्म करते रहेंगे जैसे आज कर रहे हैं। जो माता-पिता ऐसा नहीं करते उनकी बेटियों को दहेज ना दे पाने के कारण या दहेज ना मिलने के कारण आग के हवाले कर दिया जाता है। इस समस्या का सही हल क्या है यह तो कहना मुश्किल है। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि इन सब मामलों के चलते लोगों में इन बातों के प्रति जागरूकता लाना बेहद ज़रूरी है और वह तभी संभव है जब लोग इन बातों को जाने-समझे। उसके लिए सब से ज्यादा ज़रूरी है लोगों का नज़रिया बदलना, और वो तभी बदल सकेगा जब लोग शिक्षित होंगे।
अंत में चलते-चलते बस इतना ही कहना चाहूँगी कि ऐसा नहीं है, कि केवल अशिक्षित परिवारों मे ही ऐसी घटनायें देखने और सुनने को मिलती है। अपितु पढ़े लिखे वर्ग में भी ऐसी शर्मनाक घटनायें आपको बड़ी आसानी से पढ़ने को मिल सकती हैं। लेकिन इन समस्याओं का मुख्य दायरा आज की तारीख में निम्नवर्ग में ज्यादा सुनने को मिलता है। इसलिए मेरा ऐसा मत है कि शिक्षा ही एक मात्र वो हथियार है जो लोगों की सोच में परिवर्तन ला सकता है। क्योंकि
"किताबें ज्ञान का वो खज़ाना होती हैं जो दिमाग की बहुत सी बुझी हुई बत्ततियों को खोल देती हैं और इंसान के सोचने का नज़रिया बदल जाता है।"
इसलिए जहां तक सम्भव को लोगों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें जय हिन्द.....
दहेज कुप्रथा का अशिक्षा से इतना सम्बन्ध नहीं जितना कि हमारी मानसिकता और लालच से है. यह सही है कि शिक्षा इस सोच में बदलाव ला सकती है और हमारी शिक्षित युवा पीढ़ी को इसके विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए. बहुत सार्थक आलेख
ReplyDeletekitaabi shiksha se kuch nahi hoga , naitik shiksha zaruri hai
ReplyDeleteभ्रूण हत्या का बड़ा कारण वंश चलाने की सनकी इच्छा भी है। यह समस्या नारी ही सुलझाएगी। खुद से ठीक करना होगा जलाने की समस्या को।
ReplyDeleteAapse sahmat.
ReplyDeleteअब दहेज़ हत्याए पहले जितनी नहीं होती है क्योकि अब तो लोग बेटी के पिता के वादे पर शादी करते ही नहीं है पहले ही सारा दहेज़ लेते फिर शादी करते है या अपने बराबर के हैसियत वाले जो उन्हें उनकी इच्छा अनुसार दहेज़ दे सके उसी से विवाह का सम्बन्ध बनाते है | शिक्षा से इसको हम नहीं मिटा सकते है क्योकि इसका शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं है बल्कि लड़का जितना ज्यादा पढ़ा लिखा है योग्य है दहेज़ उतना ही ज्यादा मागा जाता है | लड़किया इसके लिए कुछ नहीं कर सकती वो दहेज़ ना देने की ठान ले तो शःयद जीवन भर उनका विवाह ही नहीं हो या फिर उनके योग्य लडके से विवाह नहीं होगा हा लडके आगे बढ़ कर कहे की उन्हें दहेज़ चाहिए ही नहीं तब कुछ बात बन सकती है क्योकि ऐसे मामलों में भाई के विवाह के समय लोग बहनों की भी बात नहीं सुनते है और दहेज़ लेते ही है |
ReplyDeleteहमको अपनी मानसिकता बदलने की ज़रूरत है इस समस्या का हल निकालने के लिए.....
ReplyDeleteसब से पहले तो आप सभी यहाँ आए और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं से मुझे आनुग्रहित किया इसके लिए आप सभी पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया... आप सभी कि बात से सहमत हूँ मगर मानसिकता बदलने के लिए क्या करना होगा ?
ReplyDeleteबहुएँ जलाने के पीछे लालच है और कन्या भ्रूण हत्या के पीछे झूठा सम्मान. दहेज हत्या के लिए तो मुत्यु दंड दिया जा सकता है लेकिन कन्या भ्रूण हत्या के लिए आज तक किसी अपराधी डॉक्टर को मृत्यु दंड मिला हो ऐसा नहीं सुना. शायद इसका प्रावधान भी नहीं है जबकि गर्भस्थ कन्या भ्रूण भला-पूरा व्यक्ति होता है.
ReplyDeleteबढ़िया आलेख.
जिस घर्षण से रिश्तों की गर्माहट निकलनी थी, उससे आग की लपटें निकल रही हैं।
ReplyDeleteयह कन्या भूर्ण हत्या जैसा पाप भी हमारे देश से कभी खत्म नहीं हो सकता। क्यूँकि जब तक यह दहेज़ प्रथा चलेगी तब तक लड़कीयों के माँ-बाप अपनी कन्याओं को दहेज़ देना पड़ेगा के डर से यूँही खत्म करते रहेंगे जैसे आज कर रहे हैं।
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति ||
बहुत बहुत बधाई ||
आपने सही कहा है, दहेज प्रथा बहुत सी बुराइयों की जड़ है। इसके नाश होने से कई मुसीबतों से निजात मिल सकता है।
ReplyDeleteदहेज प्रथा... अशिक्षा... नारी प्रताडना....
ReplyDeleteइन गंभीर विषयों पर आपने बेहतरीन तरीके से चिंतन का अवसर दिया।
सच में गंभीर मसले.... और इन सब से निजात पाने का सबसे अच्छा और अचूक तरीका है शिक्षा का प्रचार।
बेहतरीन पोस्ट।
आभार और शुभकामनाएं.............
दुःखद है। कानून कारगर हो तो कुछ अपराध तो दण्ड के भयमात्र से कम हो सकते हैं लेकिन मन बदले बिना कुछ खास बदलाव आना कठिन है।
ReplyDeleteसही कहा है आपने, कुछ दिन पहले ही किसी ब्लॉग पे पढ़ा था की कैसे पढ़े लिखे परिवारों में भी भूर्णहत्या हो रही है..
ReplyDeleteNarak ...?
ReplyDeleteज़ुबां से कहूं तो है तौहीन उनकी
वो ख़ुद जानते हैं मैं क्या चाहता हूं
-अफ़ज़ल मंगलौरी
जब से छुआ है तुझको महकने लगा बदन
फ़ुरक़त ने तेरी मुझको संदल बना दिया
-अलीम वाजिद
http://mushayera.blogspot.com/2011/10/blog-post_04.html
abhi admi ko admi banane me kafi time lagega
ReplyDeleteमानसिकता वक्त और हालात से बनती है और बदलती भी उसी से है। सदियों से चली आ रही परंपराओ को नदलने मे समय लगता है। हर्ष का विषय है कि भारत ने इस दिशा मे पिछले कुछ दशको मे उल्लेखनीय तरक्की की है।
ReplyDeleteसही बात कही आपने।
ReplyDeleteसादर
आपने बिल्कुल सही कहा है ... सार्थक व सटीक लेखन आभार ।
ReplyDeleteek baar fir se jwalant mudde pe tumhari rai:)
ReplyDeletesateek lekhan! abhar!!
सही है ....दहेज़ प्रथा एक बड़ा अभिशाप है
ReplyDeleteपता नहीं कब खतम होंगी ये कुप्रथाएं.
ReplyDeleteज्वलनशील मुद्दा..सटीक लेखन..!!
ReplyDeleteअफसोस,कि ऐसे मामलों में,प्रायः स्त्री ही स्त्री की दुश्मन पाई गई है।
ReplyDeleteजब तक यह दहेज़ की प्रथा खत्म नहीं हो जाती। यह कन्या भूर्ण हत्या जैसा पाप भी हमारे देश से कभी खत्म नहीं हो सकता।
ReplyDelete...सहमत हूँ। लिंग भेद मानव मन के लोभ को दर्शाता है। एक दोहा..
बिटिया मारें पेट में, पड़वा मारें खेत
मानवता की आँख में, भौतिकता की रेत।
शहरी समाज में कुछ प्रितशत ही जागरूकता आयी है जहाँ पर औरत वर्ग में अपने अधिकारों के प्रति लड़ाई लड़ने की ललक पैदा हुई है | लेकिन ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के आभाव में व उनकि अपनी मानसिक सोच के आभाव में इस प्रकार की घटनाएं ज्यादा हैं | जरूरत है इस प्रकार की सोच को बदलने के लिए औरत वर्ग को इस बुराई के खिलाफ पूरी दृढ़ता से खड़ा होने की व लड़ने की ललक खुद में पैदा करने की |
ReplyDeleteसार्थक लेख !
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति ||
ReplyDeleteआप सभी पाठकों का हार्दिक धन्यवाद की आप यहाँ आये और आप सभी ने अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं से मुझे अनुग्रहित किया.... आभार कृपया यूं हीं समपर्क बनाये रखें ....
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