Monday, 31 October 2011

"प्रवासी भारतीय "

क्या होते हैं प्रवासी भारतीय, तो आपकी जानकारी के लिए बताना चाहूँगी कि भारतीय प्रवासी वह लोग हैं जो भारत छोड़ कर विश्व के दूसरे देशों में जा बसे हैं। प्रवासी भारतीय दिवस प्रति वर्ष भारत सरकार द्वारा ९ जनवरी को मनाया जाता है क्योंकि इस दिन महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश वापस आये थे। इस दिवस को मनाने की शुरुवात २००३ से हुई थी। प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की संकल्पना स्वर्गीय लक्ष्मीमल सिंघवी के दिमाग की उपज थी। इस अवसर पर प्रायः तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इसमें अपने क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त करने वाले भारतवंशियों को सम्मानित किया जाता है तथा उन्हें प्रवासी भारतीय सम्मान प्रदान किया जाता है। यह आयोजन भारतवंशियों से संबन्धित विषयों और उनकी समस्यायों की चर्चा का मंच भी है।

जहां-जहां भारतीय बसे हैं वहाँ उन्होने आर्थिक तंत्र को मज़बूती प्रदान की है और बहुत कम समय में अपना स्थान बना लिया है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है “लक्ष्मी मित्तल” यह भारतीय प्रवासीयों में जाना माना नाम है। जिन्होंने आज भी बाहर रहकर भी भारतीय नागरिकता नहीं छोड़ी है। यह लंदन में बसे भारतीय मूल के उद्योगपति है। उनका जन्म राजस्थान के चुरु ज़िले के शादुलपुर नामक स्थान मे हुआ है। वे दुनिया के सबसे धनी भारतीय हैं एवं ब्रिटेन के सबसे धनी एशियाई और विश्व के ५वें सबसे धनी व्यक्ति है। मित्तल एल एन एम नामक उद्योग समूह के मालिक हैं। इस समूह का सबसे बड़ा व्यवसाय इस्पात क्षेत्र में है। अन्य वह मज़दूर, व्यापारी, शिक्षक, अनुसंधानकर्ता, खोज करता, डॉक्टर, वकील इंजीनियर, प्रबन्धक प्रकाशक के रूप में दुनिया भर में स्वीकार किए गए प्रवासीयों की सफलता का श्रेय उनकी परंपरागत सोच, सांस्कृतिक मूल्यों और उनकी शैक्षणिक योग्यता को दिया जा सकता है। जिसके कारण भारत की छवि विदेशों में निखरी है। प्रवासी भारतीयों के कारण भी आज भारत विश्व में आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है।

अब जरा भारतीय संस्कृति की बात करते हैं, किसी भी राष्ट्र की उन्नति का सीधा संबंध उसकी संस्कृति से होता है। क्योंकि मेरा ऐसा मानना है कि संस्क्रती ही एक मात्र ऐसा तत्व है जो एक देश को दूसरे देश से अलग पहचान देती है और भारत प्राचीन काल से ही सांस्क्रतिक गतिविधियों और परमपराओं में पूरे विश्व में सबसे आगे रहने वाला देश रहा है। यही कारण है कि समय-समय पर तमाम आक्रमणकारियों ने भारतीय संस्कृति पर हमला करना चाहा मगर भारतीय संस्क्रती ने कभी अपना अस्तित्व नहीं खोया। विश्व प्रसिद्ध तमाम विद्वानों ने भारतीय संस्कृति की गहराई को परखने के लिए यहाँ आकर अध्ययन किया और इसकी महिमा अपने देशों तक फैलायी। इक़बाल ने यूँ ही नहीं कहा कि- “सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा……… सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, ।”

यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि जिस भारतीय संस्कृति ने विश्व को राह दिखाई एवं दुनिया के प्राचीनतम ग्रन्थ, वेदों की एक लाख श्रुतियों, महाभारत के राजनीतिक दर्शन, गीता की समग्रता, रामायण के रामराज्य, पौराणिक जीवन दर्शन एवं भागवत दर्शन से लेकर संस्कृति के तमाम अध्याय रचे, आज उस संस्कृति को पाश्चात्य संस्कृति से ख़तरा उत्पन्न होने लगा है।

खैर मुझे लगता है, शायद मैं विषय से भटक गई हूँ क्योंकि हम तो बात कर रहे थे भारतीय प्रवासीयों की, जैसे कुछ प्रख्यात नामों के बारे तो आपको जानकारी होगी ही मगर मैं बात कर रही हूँ उन साधारण लोगों की जिनका नाम मशहूर नहीं है किन्तु फिर भी यह लोग यहाँ रह कर भी भारतीय लोग की सेवा करने से नहीं चूकते। जैसे यहाँ के कुछ एक डॉक्टर को ही ले लीजिये जो की भारतीय है। यहाँ रहने वाले अन्य भारतवासी जब कभी किसी रोग की चिकित्सा हेतु अस्पताल जाते हैं या यहाँ के किसी clinic में जाते है जिसे आम तौर पर यहाँ surgery कहा जाता है। तब कोई अपने मुँह से कहें ना कहें मगर उसकी पहली पसंद एवं मंशा यही होती है कि यदि कोई भारतीय डॉक्टर मिल जाये तो अच्छा होगा। क्योंकि ज्यादा तर हिंदुस्तानियों की सोच यही है कि भारतीय डॉक्टर होगा तो उस से वह अपनी बात ज्यादा स्पष्ट रूप से समझा सकेंगे और वो भी उनकी बात को और डॉक्टरों के मुकाबले ज्यादा अच्छे से समझने में सक्षम होगा।

दूसरा आप ले सकते हैं यहाँ रहने वाले व्यापारियों को जिन्होंने यहाँ रह कर भी भारतीय संस्कृति को अपने व्यापार के माध्यम से ज़िंदा रखा हुआ है और साथ ही यहाँ रह रहे प्रवासीयों को भी अपने वतन के क़रीब रखने में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जैसे यहाँ के लंदन क्षेत्र में साउथ हाल यह एक ऐसा क्षेत्र है कि यदि आप वहाँ जाकर खड़े हो जाये तो आपको इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं होगा कि आप भारत से बाहर हो। इस क्षेत्र में ज्यादा तर आपको गुजराती और पंजाबी समाज की सभ्यता देखने को मिलेगी। कपड़ों से लेकर खाने-पीने की हर तरह की सामग्री आपको यहाँ वही मिलेगी जैसी भारतवर्ष में मिला करती है, यहाँ तक की चाट भी मौजूद है यहाँ। J यह भी तो एक तरह का बहुत बड़ा योगदान या फिर यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि यह भी तो एक प्रकार की भारतीय प्रवासीयों की उन्नति ही है जो बाहर रह कर भी उन लोगों ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता को बख़ूबी ज़िंदा रखा हुआ है और उतना ही उन्नत भी।

यहाँ एक Leicester शहर है, जहां की दीपावली बहुत मशहूर है यहाँ भी भारतवंशियों का एक बड़ा समूह रहता है और खास कर दीपावली का 3-4 दिन का कार्यक्रम यहाँ आयोजित किया जाता है बिलकुल इंडिया में जैसे मनाया जाता है ताकि UK में बसे अन्य प्रवासी भारतीयों को किसी तरह की कोई कमी न खले। इसके अलावा और भी कई शहर हैं जहां बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं। जैसे लंदन का Wembley क्षेत्र यहाँ आपको गुजराती समाज की सभ्यता देखने को मिलेगी, लंदन के पास ही एक Neasdon नामक स्थान है जहां गुजराती समाज का ही एक भव्य मंदिर भी है, यहाँ आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि इस मंदिर में हर साल दीपावली के समय Prince Charles को आमंत्रित किया जाता है । जिस संस्था ने यह मंदिर बनाया था उन्ही की शाखा का एक मंदिर दिल्ली में अक्षरधाम मंदिर के नाम से जाना जाता है। ऐसे कई और भी जगह हैं जैसे Birmingham, Southall अब आप इसे योगदान का नाम देना चाहेंगे या उन्नति का यह आप की आपकी सोच पर और आपके नज़रिये पर निर्भर करता है। क्योंकि मेरा ऐसा मानना है और जहां तक मेरी जानकारी है योगदान से ही उन्नति का मार्ग भी खुलता है। अभी कुछ दिनों पहले सारे समाचार पत्रों में यहाँ हो रहे दंगे और फ़साद सुर्खियों में थे। हो सकता है शायद उस का एक अहम कारण आपसी जलन भी रही हो और जलन हमेशा उन्नति से पैदा होती है। साधारण शब्दों में यदि कहा जाये तो हमको या किसी एक जन साधारण को किसी दूसरे व्यक्ति से जलन कब होती है जब उसे आप से ज्यादा सफलता प्राप्त होगी हो ऐसा ही कुछ-कुछ यहाँ रह रहे लोगों के मन में भी जिसने उस दिन एक वारदात को अंजाम दिया और फिर वही वारदात दंगों में तबदील हो गई।

आप सोच रहे होंगे वहाँ के लोगों को किस बात की जलन या ईर्षा हो सकती है उनका देश तो पहले ही हमारे देश के मुकाबले में काफी हद तक उन्नत है। मगर ऐसा नहीं है उनकी मानसिकता आज के हालात में यह हो गई है कि बाहर से अर्थात् दूसरे देशों से लोग आकर उनकी नौकरीयाँ छीन रहे हैं जिस नौकरी पर यहाँ का नागरिक होने के नाते उनका प्रथम अधिकार होना चाहिए, वह नौकरीयाँ भी आज की तारीख़ में उनको न मिल कर दूसरे देश के नागरिकों को आसानी से मिल रही है। उसमें भी सबसे ज्यादा भारतीय ही हैं और उसमें भी सर्वाधिक IT कंपनियाँ जैसे TCS, Infosys या Cognizant जैसी कई और साफ्टवेयर कंपनियाँ हैं जिसमें अधिकतर भारतीय लोग आप को आसानी से मिल जायेगे। जिसके चलते यहाँ के लोगों में इन्ही बातों को लेकर ख़ासा ग़ुस्सा देखने को मिलता है। यह उन्नति नहीं तो और क्या है। यह बात अलग है कि यह उन्नति किसी यहाँ रहने वाले भारतीय प्रवासी की कम और देश की ज्यादा है।

यही नहीं अमेरिकी गिरजाघरों में भी ऋग्वेद के मंत्र और भगवद्गीता के श्लोक गूंजने लगे हैं। वर्ष २००७ में ही Thanks giving day पर गिरजाघरों में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ लोगों ने मानव जीवन धन्य बनाने के लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया। इन सबसे प्रभावित होकर अमरीका के रूट्जर्स विश्वविद्यालय ने हिन्दू धर्म से सम्बन्धित छ: पाठ्यक्रम आरम्भ करने का फ़ैसला लिया है, वाचन परम्परा, हिन्दू संस्कार महोत्सव, हिन्दू प्रतीक, हिन्दू दर्शन एवं हिन्दुत्व तथा आधुनिकता जैसे पाठ्यक्रम शामिल होंगे तथा नान क्रेडिट कोर्स में योग और ध्यान तथा हिन्दू शास्त्रियों और लोक नृत्य शामिल किये जायेगे।

अंत में मैं बस इतना ही कहना चाहूँगी कि यह सब यदि आज की तारीक में संभव हो पाया है तो केवल उन्ही भारतवंशियों के योगदान के माध्यम से जिन्होंने अपने देश से बाहर रह कर भी अपने देश को उसकी संस्कृति को सभ्यता को पूरे मान सम्मान के साथ गर्व से जीवित रखा हुआ है। जो की प्रतीक है प्रवासीयों की उन्नति का और इस कार्य के लिए निश्चित ही हमें उनको सम्मानित करना ही चाहिए। जय हिन्द....

36 comments:

  1. बहुत सही कहा है आपने ..सार्थक व सटीक लेखन ...

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  2. आपके लेख से प्रवासियों की उपलब्धियां, दर्द और स्थिति के बारे में बहुत कुछ जानने समझने को मिला।

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  3. दरअसल,विदेशियों को पहली बार नौकरी के मामले में प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। हाल में,टाटा ने यह कहकर ब्रिटेन के लगभग डेढ़ हज़ार कर्मचारियों को चलता कर दिया कि वे नियमानुसार से अधिक काम करने के लिए राजी नहीं होते-चाहे कम्पनी की ज़रूरत जो हो। इन मामलों में भारतीयों के अधिक लचीले होने के कारण नौकरी में उन्हें प्राथमिकता मिलना स्वाभाविक है।

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  4. प्रवासी भारतीयों के बारे मे और विदेशों मे भारतीय संस्कृति के प्रसार के बारे मे इतना कुछ जानकर अच्छा लगा।

    सादर

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  5. PALLAVI JI,

    बहुत खूबसूरत प्रस्तुति , आभार .

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  6. पल्लवी ! सच बताऊँ तो मुझे इस शब्द (प्रवासी ) से ही एतराज है.आप जहाँ होते हैं, जहाँ काम करते हैं,वहां के अनुसार आचरण करते हैं. परन्तु अपनी बुनियाद नहीं छोड़ी जाती वह एक अलग मुद्दा है.बहुत से भारतीयों ने विदेशों में जाकर अपनी धाक जमाई पर उनमें से ज्यादातर अब भारतीय नागरिक नहीं हैं.परन्तु क्योंकि वे भारतीय मूल के हैं इसलिए उन्हें प्रवासी नाम दे दिया गया.
    खैर ये मुद्दा बहुत व्यापक है.
    इतना ही कहूँगी कि आपने भावपूर्ण और अच्छा लिखा है.

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  7. पल्लवी जी
    नमस्कार।
    बड़ी बात है, प्रदेश में रह देश की संस्कृति को जिंदा रखना कोई खेल नहीं। आज जब यहां रहकर हमलोग अपनी संस्कृति को भूल रहे है वैसे प्रदेश मंे इस सहेजने वालों को मेरा सलाम।
    अच्छी प्रस्तूति।
    आभार।

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  8. भावपूर्ण तरीके से वस्तुस्थिति को लिखा है!

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  9. भारतीयों ने अपनी संस्कृति से सारा विश्व सुगन्धित किया। है, उस संस्कृति को बचाना ही होगा।

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  10. आपने बहुत अच्छे ढंग से सुरुचिपूर्ण भाषा में लेख लिखा मुझे आपकी शैली भी बहुत अच्छी लगी.मुझे ये अपनी शैली सी लगती है. मैंने भी मुंशी प्रेमचंद जी की समस्त कृतियाँ पढ़ी हैं.यहाँ मैं आपको ये बताना चाहता हूँ कि मैं पिछले चार महीनों से अमेरिका के प्रवास पर हूँ.मेरे भी वही अनुभव हैं जो आपने व्यक्त किये है. जुलाय में मैंने अपने ब्लॉग में 'अटलान्तिक के उस पार ' शीर्षक से एक आर्टिकल पोस्ट किया था आप उसे पढ़ेंगी तो और अनुभव होगा. शुभाकांक्षा.

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  11. प्रवासी भारतीयों और विदेश की स्थिति संबंधी जानकारी देता आलेख

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  12. अच्छी जानकारी व लेख

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  13. देशभक्ति से ओत-प्रोत तथा प्रवासी भारतीयोँ के जीवन को दर्शाता रोचक लेख,जय हिन्द!

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  14. प्रवासी भारतीयों के बारे में सुंदर जानकारी बढ़िया लेख अच्छी प्रस्तुति....

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  15. बढिया जानकारी भरा लेख।
    आभार।

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  16. achchhi jaankari ....shukriya

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  17. अच्छा लगा जानकारी भरा आलेख पढकर

    Gyan Darpan
    RajputsParinay

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  18. भारत की सरहदों से दूर भारत की बात सुनना सच किसी सुखद एहसास से कम नहीं हैं जो केवल आप जैसे लोगों के प्रयासों से संभव है...बेहतरीन आलेख..अनंत शुभकामनायें स्वीकार करें......

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  19. कल 02/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है।

    धन्यवाद!

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  20. प्रवासी भारतीयों के विषय में अच्छी जानकारी देता लेख

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  21. प्रवासियों की यही नियती है। पहले वे दूसरी जगह के विकास में योगदान दें और जब सब कुछ ठीक-ठाक हो जाए,तो अकर्मण्य लोग भूमिपुत्र होने का हक़ जताएं!

    थॉयरायड पर कुछ उपयोगी जानकारी यहां देखिएः
    http://upchar.blogspot.com/search/label/%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A5%89%E0%A4%AF%E0%A4%A1

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  22. बहुत जानकारी परक लेख है, साथ ही मुझे खुशी इस बात की होती है कि आपकी रचनाओं में भारत का दिल धडकता है, बहुत बहुत साधुवाद, साधुवाद इस बात का भी भी आप भारतीयता को जिंदा रखने के यज्ञ में भी जुटी हुई हैं

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  23. सुन्दर लेख :
    कोई भी भारतीय चाहें जहाँ भी प्रवास कर ले पर उसका दिल हमेशा भारतीय ही रहता है...

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  24. बहुत विषद और सटीक विश्लेषण...जब हम अपने देश में अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं, तब उसे दूसरे देश में कायम रखना बहुत प्रशंशनीय है. जिस भी देश में रहें उस देश की अच्छी बातों को आत्मसात करना और वहाँ के निवासियों से घुलमिल जाना भी ज़रूरी है जिससे ईर्ष्या की भावना पैदा न हो, लेकिन अपनी जड़ों से जुड़े रहना भी निश्चय ही प्रशंशनीय है...बहुत सुंदर आलेख.

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  25. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    छठपूजा की शुभकामनाएँ!

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  26. आपके आलेख से बहुत सी नई जानकारी मिली. भारत की अस्मिता को रेखांकित करने वाली आपकी लेखनी धन्य है. आपका विषय से भटकना अच्छा लगा क्योंकि इससे ही आपके अंतर्मन की रोशनी की चमक सामने आई. बहुत बढ़िया.

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  27. बहुत बढिया लिखा आपने ..
    लोगों को हर जगह के संस्‍कृति की अच्‍छी बातें सीखनी ही चाहिए !!

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  28. प्रवासियों ने देश से दूर रह कर भी संस्कृति से रिश्ता नहीं तोडा है और थोड़े फेरबदल के साथ इसे बरक़रार रखा है , आपकी पोस्ट से जानना अच्छा लगा !

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  29. भाव पूर्ण लेख |
    बधाई |
    आशा

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  30. aapke shbd-shbd se desh prem jhar raha hai...
    brhat sundar...

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  31. वे तो वहीं बस गये कभी कभार आते हैं । असली प्रवासी तो हम है जो साल में छै महीने यहां तो छै महीने अपने देश में । ये तो मजाक की बात पर प्रवासी भारतीयों का योगदान बहुत है । जहां रहते हैं वहां की आरथिक उन्नती में और अपनी सांस्कृतिक धरोहर के जतन में भी ।

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  32. विदेशों में रह रहे भारतीयों के बारे में अच्छी जानकारी मिली|
    यह जानकार खुशी हुयी कि वे विदेशों में भी भारतीयता ज़िंदा रखे हैं|
    मेरे तरफ से उन सभी को मेरा प्रणाम!

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  33. bhartiye jaha jate hai aapni sanskiti ko sabhal kar rakhte hai. aap ki trah hum bhi pravasi hai pichale 3 saal se london mai hai .sundar lekha...............

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  34. बहुत दिल से लिखा है आपने..
    मेरे कई दोस्त रहते हैं यू.के में और अमेरिका में..उनसे बहुत सी बातें पता चलती हैं..और लन्दन और उसके नजदीकी शहर के बारे में तो बहुत कुछ पता है अब मुझे.

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  35. मेरे भाई से बातें पता चलती हैं जब भी वो यू.एस. जाता है तो कहता है कि बस यही डर रहता है कि लोगों के गुस्से का शिकार ना हो जायें।

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