किसी से कभी, किसी की एक कहानी सुनी थी। आज सुबह जब एक हिन्दी समाचार पत्र देखा तो याद आई वो कहानी इसलिए सोचा की क्यूँ ना आप सबके साथ बाँटू उस क़िस्से को जिसका अंत न तो कहानी सुनाने वाले की समझ में आया की उसे क्या करना चाहिए, और ना ही मुझे की मैं उसे क्या सलाह दूँ।
वसुधा के परिवार में पिता की बीमारी के चलते उसकी शादी 20-22 साल की उम्र में ही कर दी गई। लड़का और उसका घर परिवार बहुत ही अच्छे लोग थे। शादी के बाद उसकी ज़िंदगी के दिन बहुत हँसी ख़ुशी के साथ गुज़र रहे थे और बेटी की शादी के बाद उसके पिता का स्वास्थ भी ठीक होने लगा था। शादी के 3 साल बाद वसुधा ने एक बेटे को जन्म दिया। बड़ा ही प्यार बेटा है उसका, दिन, महीना, साल, यूही बीत रहे थे। अचानक शादी के सात-आठ साल बाद वसुधा के ही एक परिवार का सदस्य उसकी ज़िंदगी में आया उस सदस्य का क्या रिश्ता था वसुधा से यह मैं यहाँ बता कर उस रिश्ते को कलंकित नहीं करना चाहती। वसुधा उसकी और खिचती चली गई। जैसे आँधी अपने साथ किसी पत्ते को उड़ा ले जाती है। ठीक वैसे ही वसुधा उसके प्यार में ना चाहते हुए भी उड़ती चली जा रही थी। उसका मन उसकी आत्मा उसे अंदर से कह भी रहे थे, कि नहीं जो तुम कर रही हो वो ठीक नहीं है, मगर प्यार के आगे दिमाग की चलती ही कहाँ है। प्यार के अंधे पन में लोग अकसर जो भूल कर बैठते हैं वही भूल वसुधा से भी हुई, इस सब के चलते वो उस सदस्य के प्यार में वो सब कुछ कर गई जो उसे नहीं करना चाहिए था। वो भी एक नहीं कई बार समय अपनी गति से बीत रहा था। एक दिन आया जब उस सदस्य की शादी किसी और लड़की से हो जाती है। तब वसुधा मन ही मन यह निश्चय करती है कि अब उसकी इस प्रेम कहानी का यही अंत है।
उसके बाद वसुधा को होश आया की उसने जो किया वो बहुत बुरा किया, गलत किया। अपने देवता समान पति को धोखा दिया है उसने, अपने उस पति के साथ विश्वासघात किया उसने, जो उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता था। आँखें बंद करके उस पर विश्वास किया करता था। ऐसे साफ दिल इंसान के साथ इतना बड़ा धोखा, इतना बड़ा विश्वासघात करके वो भी अब खुश नहीं थी। उसके भी समझ में नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करे उसकी आत्मा ने उसे अंदर-अंदर कोसना शुरू कर दिया था। कभी उसका मन करता था, कि सब कुछ जाकर अपने पति को बता दे, तो कभी दूजे ही पल ख़्याल आता था, कि अपने किए की सज़ा वो आपने परिवार को कैसे दे सकती है। उसे समझ ही नहीं आ रहा था ,कि उसके द्वारा इस किए हुए पापा का प्रायश्चित क्या हो सकता है। उसके मन पर अब इस पापा का बोझ बढ़ने लगा था। एक दिन उसके मन मे आया कि आज तो वह सब कुछ अपने पति को सच-सच बता देगी, आगे वो जो भी उसे सज़ा देगा वही उसका प्राश्चित होगा।
मगर प्रायश्चित करना इतना आसान नहीं होता जितना कि लगता है। बताने के बाद उसकी सज़ा क्या हो सकती है, इन सब बातों का अनुमान उसे बहुत अच्छी तरह था। तभी उसके दिल ने उससे कहा कि तुम्हें कोई हक़ नहीं बनता कि तुम अपने किए कुकर्मों कि सज़ा उन मासूम और बेगुनाह लोगों को दो, जिन्होंने तुम पर हमेशा सिर्फ प्यार और विश्वास दिखाया है। क्यूँकि उसके इस एक फ़ैसले से न केवल उसकी बल्कि उसे जुड़े हर सदस्य कि ज़िंदगी बगड़ सकती थी। यदि वह अपने आप को उस पाप के बोझ से मुक्त कर के अपने मन को हल्का करने के लिए, अपने पति को सब कुछ सच-सच बता कर प्रायश्चित करने जाती है, तो जाहिर सी बात है, कि उसका पति उसे तलाक देगा। क्यूंकि आखिर है तो वो भी एक इंसान ही, और जब कभी किसी इंसान के साथ इतना बड़ा विश्वासघात होता है। तो ज़हीर सी बात है उस वक्त वो देवता बन विश्वासघाती को माफ तो किसी सूरत में नहीं कर सकता है।
खैर इस सब के कारण उसके माता-पिता का सर ही नहीं बल्कि उसके ससुराल पक्ष के सभी लोगों का सर भी पूरी दुनिया के सामने शर्म से झुक जायेगा। जिसके चलते यह भी हो सकता है, कि सदमे के कारण उसके पिता की तबीयत दुबारा खराब हो जाये। या फिर उसका पति भावनाओं में बहकर कोई ऐसा कदम उठा ले जो किसी के लिए हितकर ना हो। आखिर उसका बेटा भी है, इस सबके बाद उसका क्या होगा। इस सब में उस मासूम कि तो कोई गलती नहीं फिर वह क्यूँ इस सब कि सज़ा भूकते। यह सब सोच कर हर बार उसका मन उसके पाँव में बेड़ियाँ डाल देता है और वो चुप रह जाती है।
अब आपको बताना है कि उसे क्या करना चाहिए। आप सभी को क्या लगता है ? क्या उसे सब कुछ अपने पति को बता देना चाहिए ? या फिर ज़िंदगी भर आपने द्वारा कि हुई इस भूल कि आग में जलते रहकर यह समझ कर कि यही उसका प्रायश्चित है इस आग में ज़िंदगी भर जलते रहना चाहिए ? क्यूंकि मेरा मानना तो यह है कि जिस झूठ से कई लोगों कि ज़िंदगी बर्बाद होने से बच जाये वह झूठ उस एक कड़वे सच से कहीं बेहतर है, जो अपनी कड़वाहट के कारण काइयों कि ज़िंदगी बिगाड़ सकता है।
आगे कुआं-पीछे खाई वाला प्रश्न है। वैसे मेरा मानना यही है कि इस सच को अपने मन मे ही रखना चाहिये। आखिर जो गलत हुआ उसकी सजा भी मिलनी ही चाहिये तो क्यों उस सजा मे बाकी लोगों को भागीदार बनाया जाए?प्रायश्चित की आग मे जलते रहने की सजा खुद को ही दें और आगे के लिए सबक लेना ही उचित होगा।
ReplyDeleteसादर
मगर प्रशचित करना इतना आसान नहीं होता---
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति पर --
बधाई महोदया ||
http://neemnimbouri.blogspot.com/2011/10/blog-post.html
उसे अब यह बात किसी को भी बताकर कोई लाभ या सहानुभूति नहीं मिलने वाली बल्कि वह सबकी नजरों में गिर जाएगी ... इसलिए उसका खामोश रहना ही बेहतर होगा ...।
ReplyDeleteजिस आग मे वो खुद गिरी है उसमे दूसरो को नही गिराना चाहिये बल्कि ऐसे कृत्य से तौबा करते हुए आगे के लिये सबक लेते हुये अपने पति , बच्चो और परिवार के लिये पूरी तरह से समर्पित होकर नये सिरे से जीना चाहिये यही उसका प्रायश्चित होगा।
ReplyDeleteयहां न झूट बोलना है न सच - केवल चुप रहना है। इस गलती यही सजा है जिसमें उसे जीवन भर जलना है।
ReplyDeleteपता नहीं आप सबको बुरा भी लगेगा। लेकिन हमारे समझ से चुप रहना चाहिए और इसके लिए प्रायश्चित का सवाल नहीं है। जरूरी नहीं कि प्रेम और शादी एक के साथ की जाय, ऐसा सही लगता है। इस बात में कोई बुराई ही नहीं लग रही है। प्रायश्चित करने की बात सोचना ठीक नहीं है। निश्चिंत रहना चाहिए और खुशी से जीवन गुजारा जाय, यही बेहतर।
ReplyDeleteप्रायश्चित,hotaa hai krapyaa correct kar lein,is tarah kee baatein zindgee mein kai logon ke saath hotee hein,vivek aur sayam rishton mein zarooree hai.nahee to hameshaa "ab pachhtaaye hot kyaa jab chidiyaa chug gayee khet "log bhool bhee jaayein par man nahee bhooltaa
ReplyDeleteअब यह सच बता कर ज़िन्दगी को तबाह करने से बेहतर यही है कि उसे चुप ही रहना चाहिए। कम से कम उसे अपनी ग़लई का अहसाअस तो हो ही रहा है।
ReplyDeleteVasudha ko ye baat ab kisiko batani nhi chahiye kyuki jo aap ne kaha wo bilkul thik ha ki agar ek jhoot se kai jindagiya tabha hone se bach jati ha to phir wo ek kadwe saach se accha ha..
ReplyDeleteshe should admit her mistake and be prepared for all the consequences
ReplyDeletecheating she has done and if she does not accept it openly she will be still cheating
खामोश रह कर दिल में जलते रहना ही उसका प्रायश्चित होगा..विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeletevandanaji ki baat se poori tarah sahmat hun....
ReplyDeleteजब मन में सत्य मनन करने की शक्ति आ गयी है तो सत्य सहन करने की भी शक्ति आ जायेगी।
ReplyDeleteगलती तो उसने की... यह जानते हुए भी कि वह गलत कर रही है... पाप कर रही है... उसके इस पाप में उसके उस अनाम रिश्तेदार का भी बराबर का दोष है... यदि उसने सच कह दिया तो उसका अपना घर तो बरबाद होगा ही और उसके उस रिश्तेदार का घर भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता.....
ReplyDeleteकहानी में है कि उसकी शादी 20-22 साल में हो गई... ये उम्र कोई कम नहीं होती.... समझदार उम्र होती है और फिर उसका रिश्तेदार शादी के सात आठ साल बाद उसकी जिंदगी में आता है यानि उसकी उम्र करीब 30 साल रही होगी... ऐसे में उसने जो कुछ भी किया वो सरासर गलत था....उसकी सजा यही है कि वह मन ही मन कुंठा में जिए और अपनी इस हकीकत को किसी से बयां न करे.... यही उसकी सजा है......
NICE.
ReplyDelete--
Happy Dushara.
VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
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MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
Net nahi chal raha hai.
Jivan ki visangatiyo ko rochak riportaj .
ReplyDeleteरोचक और शिक्षाप्रद है |
ReplyDeleteआदरणीया पल्लवी जी,
ReplyDeleteयह मार्मिक कथा आज की परिस्तिथियों का सच है .
बताना या न बताना महत्वपूर्ण नहीं है.
मन से इस बात को समझना कि कुछ गलत हो गया, और दोबारा ऐसा न हो,यह महत्वपूर्ण है.
बहुत कुछ बिगड़ सकता था पर नहीं बिगड़ा.
बिना मतलब के इस मुद्दे को उछालना समझदारी नहीं हो सकती.
प्रायश्चित करना है तो अहं को छोड़ कर जीवन साथी का हर भले बुरे वक़्त में साथ देना चाहिए.
अगर फिर भी मन विचलित होता है तो अध्यात्म की और मुड़ जाना चाहिए.
प्रभु की शरणागति ही सच्चा प्रायश्चित है.
कहानी में जिंदगी में , किसने क्या किया , किससे क्या हो गया , इस पर बहस नहीं करूंगा क्योंकि ये बातें बहस से परे हैं , एक यथार्थ हैं , जो कटु लगे या प्रिय । हां जहां तक अब उसे क्या करना चाहिए इस बात पर अपनी राय रखनी है तो जैसा कि ऊपर पाठकों की टिप्पणियों के रूझान से लग ही रहा है कि उसे चुप रह जाना चाहिए , बेशक रह ले क्योंकि उस स्थिति में भी उसे मानसिक सज़ा तो मिल ही रही है , किंतु ये भी सोच लेना चाहिए , कि ये तय है कि उसकी चुप्पी से आगे भी गलती छुपी रहेगी ? यदि कल को ये सच सबके सामने किसी और तरीके से सामने आए तो? सोचिए कि स्थिति कितनी विकट होगी ? लेकिन इसके बावजूद मैं निश्चित को छोड कर अनिश्चित की तरफ़ जाने की कभी नहीं सोचता , इसलिए उसे चुप रहना चाहिए । और भविष्य में ऐसी स्थिति के लिए खुद को तैयार भी रखना चाहिए कि वो कल को बात सामने आने पर सब स्वीकार कर सके । सबसे बेहतर उपाय यही है कि वो अब अपने लिए नहीं अपनों के लिए सोचे करे ।
ReplyDeleteअन्य सभी टिप्पणियों के मुकाबले काफ़ी हद तक विशाल की सलाह से सहमत हूँ। अपनी भूल को पहचानना, एक बेहतर व्यक्ति बनना और ज़रूरत पड़ने पर अपनी करनी की ज़िम्मेदारी स्वीकार करके उससे मिले हर फल को भोगने की तैयारी तो हर स्थिति में रहनी ही चाहिये।
ReplyDelete...haan...mai bhi manta hun ke JIS JHOOT KO KHNA MA HAI JMANA KE BHALAI...US JHOOT KO KHNA MA NA HA KOI BURAI...!
ReplyDeleteहम विचारों के बने हुए हैं. प्रायश्चित भी एक विचार है. समाज की दृष्टि से कुछ ग़लत किया तो किया. इसे मानव सदियों से करता आया है और आगे भी करता रहेगा. यह स्थिति पर निर्भर करता है. समझने की बात इतनी है कि प्रायश्चित कितना किया जाए. थोड़ा पश्चाताप हो गया तो बहुत हो गया. एक ग़लती के लिए जीवन भर प्रायश्चित करने की कोई आवश्यकता नहीं. ऐसे प्रसंगों को प्रकट करने से लाभ कम और हानि अधिक होने की संभावना होती है. जब ऐसा प्रेम प्रसंग समाप्त हो जाए तो परिवार को बेहतर तरीके से चलाने की ओर ध्यान देना चाहिए. यही बेहतर रास्ता है और यह पश्चाताप में नहीं आता, सामान्य जीवन में आता है. आवश्यकता से अधिक पश्चाताप हो जाए तो फिर उसके के लिए भविष्य में अलग से पछताना पड़ सकता है.
ReplyDeleteआप सभी पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया एवं आप सभी को विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनायें .... कृपया यूँहीं संपर्क बनाये रखें धन्यवाद :)
ReplyDeleteगलतियाँ इंसान से ही होती हैपर गलती करके
ReplyDeleteसंभलना बडी बात होती है।सच बताना बडी बात
नही।बडी बात है अपनी गलती को महसुस
करना। विजयादशमी कि बहुत-बहुत शुभकामना।
मैं भी ज्यादातर आई टिप्पणियों से सहमत हूँ.गलती की या बेबकूफी.अब चुप रहकर उसे सहना ही ठीक है.
ReplyDeleteek bahut hi khubsurat lekh.
ReplyDeleteसभी लोगों ने टिप्पणियों में बहुत कुछ कह दिया, अब मैं क्या कहूँ.?
ReplyDeleteHappy dushahra.
ReplyDeleteBe victorious on all evils.
दरअसल सही क्या है, गलत क्या है यह बड़ा कठिन विषय हैं। सामाजिक स्तर पर यह अपराध है क्योंकि हम समाज में रहते हैं और हमें सामाजिक मर्यादा का पालन करना ही चाहिए। नहीं करेंगे तो जंगली हो जायेंगे। लेकिन यह भी दूसरा सच है कि प्रेम किसी मर्यादा किसी बंधन को नहीं मानता। कौन प्रेम गलत है कौन सही इसका निर्धारण करने वाले भी हम नहीं हो सकते। सामाजिकता के स्वर में स्वर मिलाकर हम कह बैठते हैं कि यह तो एक जघन्य अपराध है। लेकिन क्या यह वाकई जघन्य अपराध है? मुझे तो नहीं लगता । एक सामाजिक चूक जरूर है जो नहीं होनी चाहिए थी। मगर हो गई तो हो गई। अब उसके लिए रोना क्या..प्रायश्चित क्या। अपने प्रेम से अंकुरित होने वाले बीज की भ्रूण हत्या करते वक्त जिनके मन में अपराध बोध नहीं होता..सामाजिक रूप से स्वच्छ..निर्मल प्रेम..की सफेद चादर ओढ़ स्वच्छंद विचरने में सुख का अनुभव करते हैं..वैसा समाज न चाहते हुए भी हो गई इस चूक को किस आधार पर जघन्य अपराध साबित करना चाहता है...? कैसा प्रायश्चित..?
ReplyDeleteपति को बताना है कि नहीं यह पति के बौद्धिक स्तर पर निर्भर करता है। हो सकता है न बताने पर कल उसे मालूम हो तो वह कह बैठे कि हे प्राण प्रिये..! तुम इतने दिन तक अपराध बोध से जलती रही लेकिन मुझे एक बार बता दिया होता...लगता है तु्म्हें मेरे प्यार पर यकीन नहीं था। या यह भी हो सकता है कि कहे...कलंकिनी..निकल जा मेरे घर से।
जैसे घटना घटी वैसे ही निर्णय भी नितांत व्यक्तिगत ही लेने होंगे। दूर बैठकर कोई सलाह क्या देगा।
nahi bataya aur kabhi parivaar waalo ko kisi aur zariye se pata chala toh aur bhi bara julm ho sakta hai us k aur parivaar k saath, atah ek baar bata deney mai accha hai .. dard ka anth turant ...usko naasoor nahi honey dena chahiye .
ReplyDeleteAadarneeya bhagwati charan verma ke upanyas
ReplyDeletechitralekha ka
sar iska hal hai
‘संसार म पाप कुछ भी नहं है, वह केवल मनुय के कोण क वषमता का दूसरा नाम है। येक य एक वशेष कार क मनःवृित लेकर पैदा होता है । येक य इस संसार के रंगमंच पर एक अिभनय करने आता है। अपनी मनःवृित से ेरत होकर अपने पाठ को वह दोहराता है यह मनुय का जीवन है जो कुछ मनुय करता है वह उसके वभाव के अनुकूल होता हैऔर वभाव ाकृितकहोता है। मनुय अपना वामी नहं है वह परथितय का दास है-ववश है। कता नहं है, वह केवल साधन मा ह । फर पाप और पुय कैसा? मनुय म ममव धान होता है। येकमनुय सुख चाहता है। केवल यय के सुख के के िभन होते ह । कुछ सुख को धन म देखते ह , कुछ याग म देखतेह -पर सुख येक य चाहता है, कोई भी य संसार म अपनी इछानुसार वह काम न करेगा जसम दुःख िमले -यह मनुय क मनःवृित है औ उसके कोण क वषमता ह । संसार म इसीिलये पाप क परभाषा नहं हो सक और न हो सकती है। हम न पाप करते ह और न पुय करते ह, हम केवल वह करते ह जो हम करना पड़ता है।’ उपरो पंयां इस उपयास का सार भी ह।
link hai
http://shalinishikha.blogspot.com/2011/08/43_29.html?m=1
कहने से दर्द बढेगा...तकलीफें बढेंगी.....
ReplyDeleteअपने कर्मों से प्रायश्चित किया जाय वही सही है.
अनु