आज बस लिखने का मन कर रहा है. मगर क्या लिखूँ और कहाँ से शुरुवात करूँ मेरी समझ में नहीं आ रहा है। एक बार को ख़याल आया कि क्यूँ ना आप सब लोगों से ही पूछ लिया जाये कि आज कोई विषय बताओ जिस पर मैं कुछ लिख सकूँ। फिर सोचा आप लोग भी क्या सोचेंगे कैसी लड़की है, अपनी पोस्ट के लिए भी दूसरों से विषय चुनने को कहती है। तो फिर यह सब सोच कर मेरा इरादा बदल गया। मगर अब भी सवाल वही है कि लिखूँ तो आखिर क्या लिखूँ। किस विषय में लिखूँ। यूँ तो हमारे समाज में समस्याओं की कोई कमी नहीं है, एक ढूंढो हजार मिल जायेंगी। मगर वैसा कुछ लिखने का मूड नहीं है।
तो फिर वही सवाल कि आखिर क्या लिखा जाये, जिसे लिखने में भी मजा आये और पढ़ने वालों को भी मजा आये। हालाँकि यह कोई ज़रूरी नहीं है कि मुझे जिस विषय पर लिखने में मजा आये या आ रहा हो, आप सभी को भी वह विषय उतना ही पसंद आये। यही सब सोचते-सोचते आज एक बहुत पुरानी सहेली से फोन पर बात हुई। हमेशा की तरह कॉलेज के दिनों की यादें ताज़ा हुई बहुत मज़ा आया और तब याद आया की प्यार और दोस्ती से अच्छा और कौन सा विषय हो सकता है लिखने के लिए J
आज उन दिनों को याद करके लगता है, कि वो भी क्या दिन थे जब किसी बात की कोई चिंता ही नहीं थी जीवन में बस खाना पीना मौज मस्ती हँसी मज़ाक यही ज़िंदगी हुआ करती थी। हम उस वक्त कैसी-कैसी शरारतें और बेवकूफ़ियाँ किया करते थे। जिन्हें याद करके आज हँसी भी आती और कभी-कभी शर्म भी,J हमें उस वक्त ज़रा भी यह एहसास नहीं होता था, कि आगे जाकर जीवन में इन बातों को याद करके कभी हँसी भी आयेगी, क्योंकि उन दिनों तो ऐसी बातों में बहुत संजीदगी से हुआ करती थी। फिर यूँ ही बातों ही बातों में बात निकली "टीन एज" की, "टीन एज" भी क्या उम्र होती है जब अपनी गिनती उन दिनों न बच्चों में होती और ना ही बड़ों में, उस वक्त ऐसा लगता है कि अब हम बड़े हो गये है, हम अपने फ़ैसले खुद कर सकते हैं, हमको भी अच्छे बुरे का फर्क समझ आता है। मगर हमारे माता-पिता हमें कभी बड़ा समझते ही नहीं, खास कर उन दिनों में तो ज़रा भी नहीं। क्योंकि वैसे देखा जाये तो माता-पिता के लिए उनकी संतान खुद कितनी भी बड़ी क्यूँ न हो जाये, मगर उनके लिए उनके बच्चे हमेशा बच्चे ही रहते हैं।
खैर हम बात कर रहे थे "टीन एज" की मुझे ऐसा लगता है कि उन दिनों सभी के अनुभव लगभग एक से ही होते होंगे। जैसे यदि आज के दौर के हिसाब से कहा जाये तो, लड़के सब अपने आप को "सलमान खान" समझते हैं और लड़कियाँ खुद को एश्वर्या राय J या यूँ कहिए कि अपने-अपने दौर के हिसाब से जो भी जिसका पसंदीदा सितारा हो, वो खुद को उन दिनों उनसे कम नहीं समझते पहली बार जब प्यार का एहसास होता है, जो कहने भर के लिए महज़ प्यार हो, मगर वास्तविकता में केवल एक दूसरे के प्रति आकर्षण मात्र ही होता है। क्योंकि उन दिनों किसी में प्यार को समझ पाने की समझ ही कहाँ होती है। पता ही नहीं होता कि प्यार किस चिड़िया का नाम है। फिल्मों में दिखाया गया प्यार ही उस वक्त सबके दिमाग में घुसा होता है और उस ही को सभी लोग सच समझते है। मगर आज कल तो इस पहले-पहले मीठे से प्यार की परिभाषा और एहसास भी शायद बदल गये हैं। खैर मगर प्यार तो प्यार ही है, फिर चाहे वो दौर “एक मुसाफ़िर एक हसीना” से लेकर “हम दिल दे चुके सनम” या “कुछ-कुछ होता है” तक का सफर ही क्यूँ ना हो या आप अभी आज कल की कोई प्रेम कहानी पर आधारित फिल्म का नाम भी सोच सकते हैं।मुझे कोई आपत्ति नहीं है J मगर भावनायें सभी की एक सी ही होती है।
पहली-पहली बार जब कोई किसी के सामने अपने प्यार का प्रस्ताव रखता है, जो भले ही क्षण मात्र का क्यूँ ना हो, मगर उस एक पल में लड़की खुद को दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की और लड़का खुद को दुनिया का सबसे दिलेर और दबंग लड़का महसूस करता है।जिसके चलते दोस्तों में शान बढ़ जाती है। लड़कीयों में कुछ इस प्रकार की बातें होती हैं, कि आज किस को कितने लोगों ने प्रपोज़ किया। तो वहीं दूसरी और लड़कों में भी कुछ इस ही प्रकार की बातें होती हैं, आज किसने कितनी लड़कीयों को प्रपोज़ किया। J फिर कहीं, कभी भूले-भटके, कभी किसी प्यार के प्रस्ताव को सुनकर ऐसा लगता है कि अब बस यही है वो और कोई दूसरा हो ही नहीं सकता, जो हम से इतना प्यार कर सके। उस प्यार के आगे सारी दुनिया झूठी और सिर्फ एक वो इंसान ही सच्चा लगने लगता है। यहाँ तक कि खुद के परिवार वाले भी सब दुश्मन नज़र आने लगते है। J
दिन रात उठते- बैठते बस उसी का ख़्याल, आज उसने क्या किया, क्या बोला, क्या कहा, चारों और बस वही एक इंसान नज़र आता है। उसके द्वारा की हुई तारीफ़ ही कानों में गूँजती रहती है। अपने आप पर ही लोग फ़िदा रहते हैं।J उस वक्त ऐसा लगता है जैसे हमसे ज्यादा और कोई खूबसूरत इस दुनिया में है ही नहीं, वो कागज़ पर और हथेलियों पर अपने उस प्रेमी या प्रेमिका का नाम लिख-लिख कर निहारना, तो कभी यूँ ही सब के साथ होते हुये भी दूसरी दुनिया में खोए रहना, दुनिया नई-नई सी लगने लगती है। पैर ज़मीन पर नहीं पड़ते, पढ़ाई में मन नहीं लगता। भूख प्यास जैसे खत्म ही हो जाती है।
मगर तब भी कभी यह एहसास नहीं होता कि यह प्यार नहीं केवल एक आकर्षण है। हाँ माना कि प्यार की पहली सीढ़ी भी आकर्षण ही होती है। मगर बहुत कम लोग होते हैं, जिन्हें उन दिनों सच्चा प्यार मिल पाता है। अधिकांश लोगों के लिए तो बस मौज मस्ती के दिन ही होते हैं। मगर तब उनको खुद भी इस बात का एहसास नहीं होता कि यह सब मौज मस्ती है, और सब कुछ ऐसा लगता है कि बस यही जिंदगी है यदि अपना -अपना जीवन साथी वही नहीं मिला जिसे पसंद किया है तो बस दुनिया खत्म, उस समय जाने क्यूँ यह बात दिमाग में आती ही नहीं कि "और भी ग़म है ज़माने में मोहब्बत के सिवा"J वो चुपके-चुपके घर वालों से झूठ बोलकर मिलने जाना, कॉलेज से छुट्टी मारना, डरते-डरते बाज़ार में साथ-साथ घूमना कि कहीं कोई देख ना ले, गाड़ी चलाते वक्त पूरा चेहरा दुपट्टे से ढाँक कर चश्मा लगा कर जानबूझ कर घूमना ताकि गलती से भी यदि कोई देख भी ले तो पहचान न पाये और यदि पकड़े गए तो फिर अच्छी तरह "धूल झड़ती है" अर्थात जम के डांट पड़ती है और कभी-कभी नौबत मार तक भी आ जाती है। J खुद की सफ़ाई देते-देते या तो सामने वाले पर सारा दारोमदार डाल दिया जाता है या फिर बेचारे दोस्तों की भी शामत आती है। क्योंकि ऐसी मुसीबत की घड़ी में यदि कोई ख़ुदा से भी पहले याद आता है तो वो होते हैं दोस्त।
एक वही होते हैं जो इन मुसीबत के क्षणों में अपनी जान पर खेल कर हमारी जान बचा पाते हैं। फिर चाहे उसके बदले में उनको भी हमारे घर वालों से अच्छी ख़ासी डाँट क्यूँ ना खानी पड़े। कितनी भी धमकियाँ क्यूँ ना सहनी पड़े। कि दुबारा ऐसा कुछ हुआ तो तुम लोगों कि दोस्ती खत्म वगैरा-वगैरा.....मगर वो उस क्षण हमें उस घड़ी से निकाल ही लाते हैं। "तभी तो दोस्ती को यूँ हीं थोड़ी उम्र भर का रिश्ता कहा जाता है"। सच्चे दोस्तों की दोस्ती हमारे जीवन का वह अनमोल खजाना है जो कभी खत्म नहीं होता और उनकी महक सदा हमारे जीवन को यूँ ही महकाती रहती है। उस आकर्षण वाले पहले-पहले प्यार में मिलने-जुलने में भी आगे आकर सहायता करने वाला भी यदि कोई होता है, तो वह हैं दोस्त। उस प्यार में दिल टूट जाने के बाद जब हम बहुत दुखी होकर खुद को बहुत अकेला तन्हा महसूस करने लगते हैं तभी भी हमारा दिल बहलाने वाला हमको हौंसला देने वाला भी अगर कोई होता है तो वो है आपका दोस्त। सच्चे प्यार को कामयाब बनाने में यदि कोई सबसे पहले आपका साथ निभाता है, तो वह भी होते हैं आपके दोस्त और वो ज़माना गुज़र जाने के बाद यदि उस वक्त की उन एहसासों की महक को ज़िंदा रखने वाला भी यदि कोई होता है, तो वो भी केवल आपके दोस्त ही तो होते है। सच कितना गहरा और प्यारा सा संबंध होता है, दोस्ती इन तीनों में जिन्हें हम इन नामों से जानते है प्यार, इश्क़, मोहब्बत और दोस्ती। J
teen age ki yadein asi hi hoti jab bhi aati hai bas khote hi chale jate hai unme....
ReplyDeleteक्या यही प्यार है.....
ReplyDeleteसच कितना गहरा और प्यारा सा संबंध होता है, दोस्ती इन तीनों में जिन्हें हम इन नामों से जानते है प्यार, इश्क़, मोहब्बत और दोस्ती।
ReplyDeleteशिखा जी से सहमत हाँ यही प्यार है , अच्छा आलेख बधाई
हाजिरी बना दिया जाय, हम पढ़ लिए…
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
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ReplyDeleteअल्हड प्यार और दोस्ती की अच्छी दास्तान ..
ReplyDeleteये भावनाएं अपने भीतर भी थीं,पर अफ़सोस कि भीतर ही रह गईं। प्रोपोज करने का नाम सुनते ही,कलेजा थर-थर कांपने लगता था। इस फील्ड में दिलेर लोग ही कुछ कर पाते हैं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विश्लेषण किया है।
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
aapki ye post padhkar bahut khushi hui .. ham sab apne apne man ke bheetar kuch na kuch saheje rahte hai ..
ReplyDeletedhanywaad. maine comics blog par cheeku ke baare me bhi likha hia , aap dekhiyenga .,
haan meri kavita ke blog par aapka swagat hai , ye kavita bhi aapke shaher se judi hai ..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
सच्ची बात कहती पोस्ट।
ReplyDeleteसादर
shandar prastuti.....ekdam alag prakar ki post...
ReplyDeletejo bhi padega.. wah apna jeewan mud kar dekhega........aur fir mand mand muskurayega......
दोस्ती के लिए! सिर्फ और सिर्फ... :)
ReplyDeletepyar pyar aur pyar..........par dosti jindabad:)
ReplyDeleteदोस्ती ऐसे रिश्ते का नाम है जी निस्वार्थ और निश्छल होता है ...
ReplyDeleteदोस्त ....दो सत्य ..दो निश्छल भावों का मिलन अगर सच्चा दोस्त किसी को मिल जाता है तो सही मायने में वह खुशनसीब होता है ....आपने दोस्ती , इश्क , प्यार और मोहब्बत को बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है ...आपका आभार
ReplyDeleteप्यार, मोहब्बत, दोस्ती का बहुत सुन्दर विश्लेषण...आलेख का प्रवाह आखिर तक बांधे रखता है..
ReplyDeleteदोस्त एक प्यारा सा अह्सास है.......सुन्दर अभिव्यक्ति..बधाई
ReplyDeleteपढ़कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
'मेरे अनुभव' पर यह युवाओं की बात कहने वाली युवा पोस्ट है. इसे पढ़ने वालों को यही लगेगा कि ये 'उनके अपने अनुभव' हैं. ख़ूब कहा है जो कइयों को याद रहेगा. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteल्लवी जी अभिवादन और स्वागत आप का मेरे ब्लॉग पर पधारने हेतु ....
ReplyDeleteअल्हड मस्ती से भरे प्यार की सुन्दर कथा ...लेकिन सच कहा आप ने प्यार प्यार ही होता है ..लेकिन अच्छा हो इसे सुन्दर मायने में ले निभाया जाए और केवल परदे पर प्यार तीन घंटे तक सीमित न रखें जीवन और ही कुछ है ...और हम जन्म जन्मान्तर तक की बात करते हैं ...
सुन्दर लेख
आभार
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
फिल्मों में दिखाया गया प्यार ही उस वक्त सबके दिमाग में घुसा होता है और उस ही को सभी लोग सच समझते है। मगर आज कल तो इस पहले-पहले मीठे से प्यार की परिभाषा और एहसास भी शायद बदल गये हैं। खैर मगर प्यार तो प्यार ही है, फिर चाहे वो दौर “एक मुसाफ़िर एक हसीना” से लेकर “हम दिल दे चुके सनम” या “कुछ-कुछ होता है”
जब लिखने का मन न करे तो न लिखने पर लिख डालिये।
ReplyDeleteबचपन के बाद जवानी में कदम रखते ही एक अनुभव पहला प्यार.... वाह!
ReplyDeleteप्यार नहीं आकर्षण ही ज्यादा होता है कम से कम किशोरावस्था में प्यार की शुरुआत तो उसके कही बाद होती है | एक दोस्ती ही है जो हर उम्र में सच्ची होती है |
ReplyDeleteवो भी क्या दिन थे....
ReplyDeleteबढिया प्रस्तुति।
एक प्यारे से विषय पर बड़ा प्यारा-सा लिखा है आपने.....सच जी....!!हाँ मगर आपाधापी के इस युग में जब सब कुछ कुछ डिस्पोजेबल हो चुका है,तो प्यार भी भला क्यूँ अछूता रहे....?सो वह भी उसी दिशा में बढ़ा जा रहा है...
ReplyDeleteएक उम्र में रूमानियत की ही जगह होती है, दोस्त इसे कभी हवा देते हैं और कभी संरक्षण। लेकिन कई दोस्त चुगलखोर भी हुआ करते हैं। झट से चुगली खा आते हैं, परिवार वालों के सामने।
ReplyDeleteजी हाँ आपका कहना एकदम सही है अजित गुप्ता जी, मगर ऐसी प्यार मोहब्बत की बातें केवल करीबी दोस्तों को ही बताई जाती हैं, सभी को नहीं। हाँ यह बात ज़रूर हैं कि ऐसे चुगल खोर दोस्तों को कहीं से कभी हल्की सी भनक भी लग जाये, तो वो घरवालों को बताने से चूकते नहीं है। :)
ReplyDeleteआपका लेख पसंद आया,सुंदर पोस्ट,बधाई.....
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति...
ReplyDeleteसादर...
बहुत सुंदर प्रस्तुति.....सार्थक विश्लेषण..... आकर्षण को प्यार समझने वाली उस उम्र के दौर को बखूबी समझा और अनुभव हमारे साथ बाटने के लिए बहुत बहुत आभार...
ReplyDeleteअच्छा लगा.
ReplyDeletepyar aur dosti aisa nata hai jisase har insaan ka rishta judta hin hai. teen age pyar mein asafalta ki puri sambhaawna hai lekin teen age dosti sadaiv safal hoti hai. har sukh dukh mein dost saath dete hain, kyonki unki ummid sirf dosti tak hin simit hai, anya rishton mein aakarshan aur bhatkaav hota hai aur ummid bhi bahut badh jati hai. dono rishton par vishleshanaatmak lekh ke liye badhai.
ReplyDeleteबेहद सुन्दर !!
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