“तारे हैं बराती
चाँदनी है, यह बारात
सातों फेरे होंगे अब हाथों में लेकर हाथ
जीवन साथी हम, दिया और बाती हम”
जाने क्यूँ आज सुबह से ही यह गीत मेरी ज़ुबान पर चढ़ा हुआ था और में बस यही गुनगुनाए जा रही थी। तब मन में यूंहीं एक ख्याल आया कि क्यूँ ना इस पर भी एक पोस्ट लिखी जाये सो लिख डाली।Jजैसा कि इस पोस्ट के शीर्षक से ही पता चल रहा है कि यह मेरी पोस्ट का नाम होने के साथ-साथ एक टीवी सिरियल का नाम भी है। पिछले दिनों टीवी पर आने वाले दो कार्यक्रम काफी चर्चा में रहे एक “कौन बनेगा करोड़ पति” और दूजा “बड़े अच्छे लगते है”। वैसे देखा जाये तो यह दोनों यानी मेरी पोस्ट का शीर्षक“दीया और बाती हम” और “बड़े अच्छे लगते हैं” यह दोनों ही कार्यक्रमों के नाम हिन्दी फ़िल्म के गीतों पर आधारित है। खैर इस सप्ताह के अंत में इस बार में कहीं भी बहार नहीं गई। यहाँ तक बाज़ार भी नहीं, जब की यह हमारे हफ़्ते के अंतिम दो दिन का फिक्स प्रोग्राम होता है। मगर इस बार शायद मौसम में आये बदलाव के कारण इतनी ठंड बढ़ गई कि मेरा कहीं भी बाहर जाने का मन ही नहीं हुआ। तब मैंने घर में टाइम पास के लिए यह कार्यक्रम देखा जिसका नाम था "दिया और बाती हम" जो कि स्टार प्लस पर आता है, आप लोगों ने भी शायद देखा होगा।
इस प्रोग्राम के अंतर्गत यह दिखाने की कोशिश की गई है,कि यदि कोई पुरुष आपने परिवार के वीरुध जाकर अपनी पत्नी का आगे पढ़ने मे साथ देता है, ताकि वो अपनी पढ़ाई जारी रख सके और अपनी मन चाही मंजिल को पासके, तो लोग उसे ना जाने क्यूँ इस मूहवारे से जोड़ने लगते है और उसे "जोरु का गुलाम" कहने लगते हैं। इस सीरियल ने मेरे मन के अंदर कई सवाल उठाये, कि आखिर ऐसा क्यूँ ? जब विवाह के वक्त दोनों पति-पत्नी एक दूसरे को जीवन के हर मोड़ पर साथ निभाने का वचन देते हैं और लेते है, फिर क्यूँ आम ज़िंदगी में आमतौर पर इस वचन का अधिकतर पालन करती केवल महिलायें ही नज़र आती हैं। बहुत कम ही यह वचन निभाते पुरुष नज़र आते है क्यूँ ?
आज तो "सदा जी" ने भी अपनी कविता में औरत को दूसरों के सुख में सुखी होने के भाव को बड़ी ही खूबसूरती के साथ उकेरा है, तो वहीं दूसरी और "प्रियंका जी" ने भी "गुड मॉर्निंग" कविता के माध्यम से औरत के दिन की शुरुवात को बड़े ही खूबसूरत अंदाज़ में प्रस्तुत किया। मगर बात यहाँ औरत या मर्द की नहीं है, बात है उस वचन की, उस वादे की, जो दो लोग विवाह के बंधन में बँधते वक्त एक दूसरे से करते है और जब निभाने की बारी है तो निभाती केवल स्त्री ही है, यदि कोई पुरुष अपने उस वचन को, उस वादे को निभाना भी चाहे, तो यह पुरुष प्रधान समाज उसे निभाने नहीं देता और "जोरु का गुलाम" कहकर उसका मज़ाक बना दिया जाता है क्यूँ ?
जिसके चलते रिश्तों में यह दूरियाँ आने लगी हैं। बेशक बहुत से लोग इस बात से सहमत नहीं होंगे। मैं जानती हूँ क्यूंकि सारी जिम्मेदारियाँ केवल औरत ही उठाय और हर वचन का पालन भी केवल औरत ही करे यह सही नहीं है। जहां औरत ने इस सबसे इंकार कर अपनी मर्जी कि बात कि वहीं से शुरुवात हो जाती है, परिवार के बिखरने कि कई बार यूं भी होता है कि इस सबके चलते "मैं"आत्मनिर्भर हूँ और अब मुझे किसी कि जरूरत नहीं वाला अहम से भरा भाव भी आज कल बड़ी आसानी से औरतों में देखने को मिलता है। हो सकता है कुछ लोग इस अहम को आत्मनिर्भरता का नाम दें, मगर मेरे हिसाब से दोनों दो अलग-अलग बातें हैं। बाकी तो जिसकी जैसी सोच होगी उसे वही सही लगेगा। यह अपनी-अपनी सोच और नज़रीय पर निर्भर करता है।
"पसंद अपनी-अपनी ख्याल अपना -अपना"
कभी गहराई से सोचती हूँ तो यह लगता है कि शायद बुज़ुर्गों ने ठीक ही कहा था, कि औरत में कुछ गुण होना स्वाभाविक है, तो कुछ का होना बेहद ज़रूर जैसे धरती के समान सहनशीलता और अंबर जितना बड़ा ह्रदय, क्यूँकि यह मर्द तो बहुत कमज़ोर होते हैं, जो अपने दिल के आस-पास उसूलों कि दीवार तो बना लेते हैं, मगर उन्हें निभा नहीं पाते। वो शायद यह भूल जाते हैं कि दिल के रिश्ते चुप रहने से नहीं, बल्कि दिल की बात कह देने से बनते है।
वाह क्या बात है, है ना J हाँ सच में यह संवाद ही है, मगर अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण सच्ची और गहरी बात लिए हुए है। इसलिए मैंने इसका प्रयोग यहाँ किया। कुल मिलकर सब कुछ कहने का मतलब यह है कि जब औरत कि दिन रात सेवा करने पर उसे पति का गुलाम नहीं समझा जाता, तो इसी प्रकार जब कोई पति आगे आकार किसी सही कार्य में अपनी पत्नी का सहयोग करना चाहे, तो उसे "जोरु का गुलाम" कहकर अपमानित नहीं करना चाहिए। बल्कि दूसरों को भी उससे सीख लेते हुए अपनी-अपनी पत्नियों का साथ देना और निभाना चाहिए तभी यह "दीया और बाती हम" वाली बात या "बड़े अच्छे लगते है" वाली बात को सही मायने मिल सकते है। J है ना !!!!!! जय हिन्द ......
सही कार्य में भी पत्नी का साथ देने वाले पती को जोरू का गुलाम कहना मूढ़ मानसिकता का लक्षण है। ऐसे पुरूषों को या समाज को खुले आम मूढ़ मति कह कर उपहास उड़ाये जाने की आवश्यकता है, ताकि वे शीघ्र ही अपने को शर्मिंदा महसूस करें।
ReplyDelete..बढ़िया लिखा है आपने।
मुझे लगता है आपके ब्लॉग में समय गलत बताता है। घड़ी सही करने की जरूरत है।
ReplyDeleteआपमें और मुझ में एक समानता है |
ReplyDeleteमैंने भी अंग्रेजी विषय में एम्.ए. किया है और उज्जैन की रहने वाली हूँ |
आपके कमेंट्स से मुझे अच्छा लगता है |अच्छा लेख बधाई |
आशा
बढ़िया लेख
ReplyDeleteब्लॉग से कमाई : अनुभव
Matrimonial Service
पति हमेशा से पत्नी का साथ देना चाहता रहा है,मगर पारिवारिक ताने-बाने के कारण इसका स्वरूप बहुत मुखर नहीं रहा है। एकल परिवार और महानगरीय परिवेश में यह अधिक स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है।
ReplyDeleteगुलामी की मानसिकता से अभी तक नही उबरे हैं लोग।
ReplyDeleteअच्छा लेख - आभार
bahut kuch sikhati rachna
ReplyDeleteइस लेख का बड़ा अच्छा शीर्षक दिया है आपने ...अति सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteयह मुद्दा बहस का नहीं आपसी समझ का है.
ReplyDeleteअच्छा लेख.
धारावाहिक भी काम की बात कर जाते हैं।
ReplyDeleteपल्लवी जी मैने अभी आपकी कुछ ही पोस्ट्स पढ़ी हैं। लेकिन उन लेखों से ही लग रहा है कि आपके अन्दर भावनाओं और भाषा का अच्छा संगम है। मैं किसी एक लेख की बात न करके आपके पूरे ब्लाग पर प्रकाशित लेखों के आधार पर कह सकता हूं कि आप जिस विषय पर लिखेगी निश्चित रूप से पढ़ने वालों को पसन्द आयेगा। क्योंकि आपकी भाषा में जो प्रवाह,सहजता है वही आपके लेखों को रोचक बनाता है।
ReplyDeleteVery nicely written !!
ReplyDeleteVery nicely written !!
ReplyDeleteपति और पत्नी एक गाडी के दो पहिए हैं... इस तथ्य को समझना चाहिए... न सिर्फ समझना चाहिए बल्कि जीवन में उतारना चाहिए।
ReplyDeleteपत्नी की वाजिब इच्छाओं को पूरी करने वाले पति को जोरू का गुलाम कहने वालों की मानसिकता पर क्या कहा जाए.....
अच्छा लेखन।
आभार।
पति पत्नी की आपसी समझ जिसमे परिवार का भी अहित ना हो , हर पर्विआर के लिए हितकारी है , मगर क्षुद्र स्वार्थ और अहम की भावना सब गुड गोबर करती है ...
ReplyDeleteदोनों ही गीत मुझे बेहद पसंद हैं , गाने लायक सुर की जानकारी तो नहीं मगर गुनगुनाती रहती हूँ अक्सर!
सार्थक लेख.ऐसी ही कलम से धीरे-धीरे संकीर्ण मानसिकता भी बदलेगी.
ReplyDeletebahut achha laga baanch kar
ReplyDeleteaapke blog par follow ki suvidha nahin hai varna aapki har post ko padhne ka laabh mil jata
jai hind !
ज़िन्दगी दोनो पहियो के समानान्तर चलने से ही सही चलती है…………सुन्दर आलेख सीख देता हुआ।
ReplyDeleteक्या कहने, बहुत सुंदर लेख। हकीकत के बहुत करीब संदेश देती हुई रचना।
ReplyDeleteये दोनों ही सीरियल मेरी पसंद के भी हैं .
ReplyDeleteजोरू का ग़ुलाम पुरानी पीढ़ी की सोच का परिणाम है .
लेकिन अति आधुनिकता भी पति पत्नी के रिश्ते को गंभीरता से नहीं लेती .
सच तो यही है की यह रिश्ता सब रिश्तों में ज्यादा अहमियत वाला है क्योंकि इसी पर पारिवारिक सुख और ख़ुशी आधारित रहती है .
आज 03 - 11 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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अलबेला जी, मेरे ब्लॉग पर शायद भूल से आपका ध्यान नहीं गया होगा वहाँ ऊपर ही follow का option दिया हुआ है उस पर क्लिक करके आप मेरा ब्लॉग follow कर सकते हैं। धन्यवाद
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-687:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
मानसिकता बदलने की ज़रूरत है ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteविचारणीय लेख
ReplyDelete"यदि कोई पुरुष आपने परिवार के वीरुध जाकर अपनी पत्नी का आगे पढ़ने मे साथ देता है, ताकि वो अपनी पढ़ाई जारी रख सके और अपनी मन चाही मंजिल को पासके, तो लोग उसे ना जाने क्यूँ इस मूहवारे से जोड़ने लगते है और उसे "जोरु का गुलाम" कहने लगते हैं।"
ReplyDeleteअगर ऐसा है तो जोरू का गुलाम कहलाया जाना पसंद करना चाहिये। और इसे सुनने मे गर्व का अनुभव करना चाहिए।
एक बहुत सही मुद्दा उठाती पोस्ट है।
सादर
कल 04/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
अच्छा लेख...विचारोत्तेजक !!
ReplyDeletesundar aur sarthak lekh..
ReplyDeleteuff mera comment meri galti se del ho gaya sayad!!
ReplyDeletepati patni sambandh ...par sarthak aalekh...!!
हम नवविहितों के लिए अच्छा...है|
ReplyDeleteशिक्षा प्रद भी |
धन्यवाद!
पति पत्नी को एक दूजे के पूरक के रूप में ही देखना अच्छा है ...
ReplyDeleteआपने वाकई ऐसे विषय को छुआ है, जो हमारे जीवन की धूरी है, भाषा व शैली भी धराप्रवाह है, साधुवाद
ReplyDeleteएक सही मुद्दा पे लेख ... बहुत कुछ उल्लेख हो रहा है ...!
ReplyDeleteआभार ...
मेरी नई पोस्ट के लिये आपका स्वागत है ..
सही और सार्थक लेख...बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteकाफी अच्छा लेख जिसे पढ कर अच्छा लगा । और साथ ही साथ कुछ सोचने को विवश भी करता है ये लेख और यही इसकी सार्थकता भी है ...
ReplyDelete---एकदम सत्य तथ्य है....यही भाव सब सुख का सार है....
ReplyDelete------ऋग्वेद ८/३१/६६७५ में कथन है—
“या दम्पती समनस सुनूत अ च धावतः । देवासो नित्य यशिरा ॥“- जो दम्पति समान विचारों से युक्त होकर सोम अभुसुत ( जीवन व्यतीत) करते हैं, और प्रतिदिन देवों को दुग्ध मिश्रित सोम (नियमानुकूल नित्यकर्म) अर्पित करते है, वे ही सुदम्पति हैं।
---ऋग्वेद के अन्तिम मन्त्र में, समानता का अप्रतिम मन्त्र देखिये जो विश्व की किसी भी क्रिति में नहीं है— ऋग्वेद -१०/१९१/१०५५२/४---
“ समानी व आकूति: समाना ह्रदयानि वा। समामस्तु वो मनो यथा वः सुसहामति॥----हे पति-पत्नी! तुम्हारे ह्रदय मन संकल्प( भाव विचार कार्य) एक जैसे हों ताकि तुम एक होकर सभी कार्य- गृहस्थ जीवन- पूर्ण कर सको.....
sarthak lekh. mansik parivartan ki jarurat hai.
ReplyDeleteएक अच्छी प्रस्तुति | परन्तु मर्द औरत दोनों में अहम की भावना बढती जा रही है और ये रुकने का नाम भी नहीं ले रही |
ReplyDeleteआपसी समझ और सहयोग ही तो रिश्ते को जीवंत बनाता है .... सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteएक अच्छी सोच के साथ लिखा गया बेहद ज़रूरी आलेख।
ReplyDeleteबहुत सार्थक चिंतन.... सुन्दर आलेख...
ReplyDeleteसादर...
आप जिस सीरियल का जिक्र कर रही हैं, वह मैंने देखा नहीं। लेकिन आज समाज इस भाव से बहुत आगे निकल चुका है। हमारे समाज में निम्न वर्ग में दोनों ही कार्य करते हैं इसलिए यह समस्या उत्पन्न ही नहीं होती। उच्च वर्ग में लड़कियां शिक्षित ही होती हैं इसलिए समस्या बहुत कम है। यह समस्या अधिकतर मध्यम वर्ग की है। लेकिन आज मध्यम वर्ग में भी शिक्षा और नौकरी को लेकर समस्याएं अधिक नहीं हैं। लेकिन इस मुहावरे का असर सम्पूर्ण समाज में अवश्य है। हम देखते भी हैं कि अक्सर पुरुष विवाह के बाद पत्नी की गलत बातों में भी हाँ मिलाते हैं और शेष परिवार की अनदेखी करते हैं इसलिए इस मुहावरे का जन्म हुआ है। यदि कोई भी पति अपनी पत्नी का साथ देता है तो धीरे-धीरे समाज और परिवार उसकी भावनाएं समझने लगता है और इस मुहावरे से उसे छुटकारा भी मिलता है। जैसे माँ को अपना कर्तव्य पालन करना ही होता है वैसे ही पत्नी को भी करना होता है। और जैसे बेटा अपना कर्तव्य स्मरण नहीं रख पाता वैसे ही पति भी अपने वचन भूल जाते हैं।
ReplyDeletebahut accha lekh pallavi ji.main bhi dekhti hau ye serial samay milne par.muhawre ka sahi prayog kiya aapne.moodh mansikta kahi na kahi kono me chipkar aj bhi bethi hai.devendra ji ki baat se sahmat
ReplyDeletebahut hi accha lekh likha hai apne..
ReplyDeletebahut hi acchi bato ka sanyojan hai apke lekh me..
प्रभावी रचना ...बहुत सुन्दर और सार्थक लेख आप का ..काश लोग इस पर गौर कर ....ममता समता रख प्यार लुटाएं
ReplyDeleteभ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
"दीया और बाती" अर्थात एक के बिना दूसरा अधूरा है। यही तो है न मतलब शादी के बंधन का भी, फिर क्यूँ लोग यह भूल जाते है और बस अपना-अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं। मुझे तो ऐसा लगता है कि जब से नारी जागरुक हुई है और जबसे उसने अपने अस्तित्व की पहचान बनना शुरू की है, तब से यह दिया और बाती की भावनायेँ, तो जैसे मर ही गई हैं, यह रिश्तों में बढ़ती दूरियाँ, यह आये दिन होते तलाक,
पल्लवी जी, सबसे पहले तो क्षमा चाहूंगी ...आने में विलम्ब हुआ, बहुत ही अच्छा व रूचिकर आलेख, जिसकी कई बातें विचारणीय है .. शुभकामनाओं के साथ बधाई .. मेरी रचना का जिक्र आपने यहां किया आभारी हूं आपकी ।
ReplyDeleteदोनों सिरिअल मेरी माँ देखती है, तो इधर कुछ दिनों से कभी कभी नज़र पड़ जाती है.
ReplyDeleteवैसे आपने सही कहा!
सुंदर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteअरे कोई बात नहीं सदा जी आप हमेशा मेरे ब्लॉग पर आतीं हैं मेरे लिए वही काफी है। :)वैसे भी दोस्ती का उसूल है no sorry no thank you... है न
ReplyDeleteपोस्ट में
ReplyDeleteमनोरंजन के माध्यम से
कई काम की बातें भी हो गईं ...
अभिवादन .
आप सभी का तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया दोस्तों.... :-)कृपया आगे भी यूँ हीं संपर्क बनाये रखें... आभार
ReplyDeleteआपने बड़े रोचक तरीके से विश्लेषण किया है....औरतों में उनके नैसर्गिक गुण तो होते ही हैं....हाँ बदलती सामजिक परिस्थितियों के अनुसार वे गुण घटे-बढ़ते रहते हैं. पर अब पुरुष और समाज को पुरानी सोच को भी बदलना होगा...आपसी सामंजस्य ही हर समस्या का हल है..
ReplyDeleteबहुत ही मीठे गीत का जिक्र किया है....जुबान पर चढ़ ही जाता है.
आपका ब्लॉग भी बहुत ख़ूबसूरत और आकर्षक लगा । अभिव्यक्ति भी मन को छू गई । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद . ।
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति विचारोत्तेजक होती है.
ReplyDeleteआपके सार्थक विचार अच्छे लगे.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
क्या आपने मेरे ब्लॉग को भुला दिया है,पल्लवी जी.
ऐसी क्या खता हुई है मुझसे,बताईयेगा न
पर यूँ मुँह न मोड़िएगा,जी.
आपके ब्लॉग पर शायद आज पहली बार आना हुआ है इसलिये सारी पोस्टें पढ़े जा रहे हैं।
ReplyDeleteआभारी हूँ विवेक जी :-) की आप मेरी सभी पोस्ट पर आए और आपने अपने बहुमूल्य विचारों से मुझे अनुग्रहित किया धन्यवाद॥कृपया यूँ हीं संपर्क बनाये रखें....
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