Friday 28 October 2011

आने वाला पल जाने वाला है .....



"आने वाला पल जाने वाला है 
हो सके तो इसमें ज़िंदगी बिता दो
पल जो यह जाने वाला है"
 
टिक-टिक करती वक्त की सुईयाँ यदि आप वास्तव में व्यस्त हैं तब भी यह आपको अपनी ओर ध्यान देने के लिए मजबूर ज़रूर करती हैं, मगर परेशान नहीं करती। लेकिन यदि आप खाली हैं और आपके पास कोई खास काम नहीं तब तो यह गुज़रता हुआ एक एक लम्हा बहुत भारी लगता है और दिमाग बस यही सोचता है कि क्या किया जाये। कभी कोई वक्त ऐसा भी होता है, जब आपको लगता है कि यह वक्त बीत क्यूँ नहीं रहा है, रुका हुआ क्यूँ है और कभी किसी पल में ऐसा भी मन करता है कि बस यह लम्हा, यह पल, यह वक्त, हमेशा के लिए यहीं रुक जाय मुझे अकसर ऐसा दिवाली के समय लगता है J मगर अब क्या अब तो दिवाली भी खत्म हो गई....

लो जी सारा साल जिस त्यौहार का इंतज़ार किया वो एक ही दिन में आया और आकर चला भी गया, किसी को पता भी नहीं चला।J साल के शुरू होते ही कुछ खास व्रत, त्यौहार ऐसे होते हैं, जिन्हें नव वर्ष का कलेंडर आते ही सबसे पहले देखने कि उत्सुकता रहा करती है। जिनमें से दीपावली एक मुख्य त्यौहार हैं। हम लोग साल भर से सोच कर रखते हैं कि इस साल दीवाली पर यह करना है, वो करना है वगैरा-वगैरा... और दीवाली है कि एक ही रात में आकर चली भी जाती है और मन भी नहीं भरता। कम से कम मेरा तो नहीं भरता। जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि दीवाली पाँच दिनों का त्यौहार है और पाँचों दिनों का अपना एक अलग महत्व भी होता है। मगर सबसे ज्यादा पाँचों में से किसी दिन का इंतज़ार होता है, तो वो है बड़ी दीवाली, मगर वो इतनी जल्दी आकर चली जाती है कि मुझे तो पता भी नहीं चलता। ऐसा क्यूँ होता है ?

जिस चीज़ का हमें बेसब्री से इंतज़ार रहता है। वो चीज़ हम को मिलकर भी नहीं मिली ऐसा महसूस होती है और ऐसा लगता है जैसे वक्त भाग रहा है और जो चीज़ हमको पसंद नहीं हो, या उसके मिल जाने से हम को कोई फर्क न पड़ता हो या यूं कहना ज्यादा सही होगा शायद उस वक्त हमको उस चीज़ की जरूरत नहीं होती, इसलिए शायद उस वक्त हमें उसकी अहमियत का एहसास भी नहीं होता। जिसके चलते  हमें ऐसा लगता है कि जैसे वक्त बहुत ही धीरे-धीरे चल रहा हो, क्यूँ तब करने को हमारे पास कुछ नहीं होता या फिर किसी भी कारण से हमारा मन किसी भी काम में नहीं लगता। जीवन और समय दोनों पहाड़ की तरह लगते हैं जो काटे नहीं कटता जैसे वो कहते हैं ना

 "सुबह से यूँ हीं शाम होती है,
 उम्र यूँ हीं तमाम होती है"  

उस वक्त हमको भी वक्त के धीरे-धीरे गुज़रने से ऐसा ही कुछ महसूस होता है और ज़िंदगी बहुत ही सुस्त, रस हीन रूखी-सूखी सी लगने लगती है। हमारे जीवन में आने वाले सुख दुःख भी ऐसे ही तो प्रतीत होते हैं, खुशियाँ आकर कब चली जाती है, इंसान को पता भी नहीं लगता और इसके पहले कि कोई इंसान उन खुशियों को पूरी तरह महसूस करके जी पाये, ज़िंदगी किसी ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है, कि जीवन में यह भी समझ में नहीं आता कि अब क्या करें और कहाँ जाये हम, क्यूँ दुःख भी उन खुशियों की तरह फटाक से आकार फटाक से चला नहीं जाता, क्यूँ वो बुरा वक्त भी जल्दी से बीत नहीं पता ? क्यूँ हम उन पलों को जी भरकर जी ही नहीं पाते जिन्हें हम जी भरकर जीना चाहते है और क्यूँ ज्यादा तर ज़िंदगी में हमे उन हालातों से समझोता करके जीना पड़ता हैं जिन्हें हम जीना ही नहीं चाहते। काश हमारे पास हमारी ज़िंदगी का कोई ऐसा रबर या computer होता जिसके जरिये हम अपनी ज़िंदगी से उन पलों को मिटा पाते या delete कर पाते जिन्हें हम जीना ही नहीं चाहते, तो कितना अच्छा होता न,J मगर फिर दूजे ही पल लगता है कि यह जीना भी कोई जीना होगा ज़िंदगी का असली मज़ा तो उसके हर उतार चढ़ाव को महसूस करते हुए जीने में ही है। वो कहते है ना

"गब्बर सिंह क्या कहकर गया 
जो डर गया वो मर गया" J     

खैर आपने अक्सर यह भी देखा होगा कि ऐसा ही उत्साह कभी-कभी किसी खास इंसान या रिश्तेदार की शादी को लेकर भी रहा करता है और उस से जुड़ी तैयारियाँ करते-करते कब शादी वाला दिन आ जाता है और कब शादी हो जाती है, यह भी पता नहीं चलता और रह जाती है बस यादें... जब कभी यह सब सोचती हूँ या ऐसे कोई विचार मेरे मन में आते हैं। तो लगता है कितनी अजीब होती है न हम इन्सानों की ज़िंदगी पूरी तरह मन के हव-भाव पर आधारित यदि मन खुश है तो सब अच्छा है, आसपास का हर्ष उल्लास से सज़ा माहौल भी कितना ख़ुशनुमा लगता है मन कहता है यही तो है ज़िंदगी, जीना इसी का नाम है और जब यदि मन उदास है तो वही माहौल इतना बुरा लगता है कि अंदर से एक खीज सी उठने लगती है। यह सब सोच कर लगता है इंसान की ज़िंदगी शायद कभी इंसान की रही हो। कभी वक्त, तो कभी हालातों के हाथों हमेशा इंसान बंधा ही रहा है। फिर चाहे वो खुशियों के पल हों या दुखों के हाँ मगर वो कहते है न कि

“अच्छे वक्त की एक बुरी आदत यह होती है, 
कि वो बहुत जल्दी बीत जाता है 
मगर बुरे वक्त भी एक अच्छी आदत यह होती है, 
कि वो भी बीत ही जाता है” 

तो आइये उस अच्छे और बुरे वक्त की अच्छी आदतों को मद्देनज़र रखते हुए हम सभी अपने-अपने जीवन में गए वक्त को भूल कर आगे बढ़ते है और आने वाले वक्त में कुछ ऐसा ढूँढने का और उसे पाने का प्रयास करते है कि जिसे पा लेने के बाद यह बुरा वक्त कम से कम हमारे जीवन में आये और ज्यादा-से ज्यादा अच्छा वक्त हमारे जीवन में आकर ठहर सके .... जय हिन्द .....J

52 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्‍तुति।
    वक्‍त तो किसी के लिए नहीं ठहरता... सही और सफल वो ही है जो समय की कद्र करे और इसका सदुपयोग करे....

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. सकारात्मक सोंच लिए सार्थक पोस्ट अच्छी लगी आभार

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  4. भई आपका नज़रिया तो इसमें दार्शनिक हो गया है वह भी गंभीर दर्शन के साथ.
    "आने वाले वक्त में कुछ ऐसा ढूँढने का और उसे पाने का प्रयास करते हैं कि जिसे पा लेने के बाद यह बुरा वक्त कम से कम हमारे जीवन में आये और ज्यादा-से ज्यादा अच्छा वक्त हमारे जीवन में आकर ठहर सके"
    इसे ही सकारात्मक सोच कहते हैं. अति उत्तम. मज़ा आ गया.

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  5. व्यस्त और मस्त का समय तेज निकलता है।

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  6. बिलकुल सही बात काही आपने। भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

    सादर

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  7. बेहतरीन प्रस्‍तुति।
    .....भाईदूज की शुभकामनाएं.

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  8. सुन्दर प्रस्तुति!
    भइयादूज की शुभकामनाएँ!

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  9. बेहद आशावादी पोस्ट ... सुन्दर प्रस्तुति है ...

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  10. गंभीर आलेख... गंभीर चिंतन... दार्शनिक अंदाज़...

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  11. लाजबाब प्रस्तुति है आपकी.
    वक्त की अहमियत दर्शाती हुई
    सार्थक चिंतन के लिए आभार,पल्लवी जी.

    दीपावली,गोवर्धन और भैय्या दूज की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    आपका इंतजार है.

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  12. अच्छे वक्त की एक बुरी आदत यह होती है,
    कि वो बहुत जल्दी बीत जाता है
    मगर बुरे वक्त भी एक अच्छी आदत यह होती है,
    कि वो भी बीत ही जाता है”


    bahut sahi.......:)
    chitragupta puja ki shubhkamnayen pallavi:)

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  13. बढ़िया अंदाज।
    स्व0 मीनाकुमारी की एक नज़्म हल्की सी याद आ रही है...

    जमाना है माजी(अतीत)
    जमाना है मुस्तकबिल(भविष्य)
    और हाल एक वाहमा है(भ्रम)
    मैने जब कभी किसी लम्हें को छूना चाहा
    फिसल कर वह खुद बन गया एक माजी।

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  14. “अच्छे वक्त की एक बुरी आदत यह होती है,
    कि वो बहुत जल्दी बीत जाता है
    मगर बुरे वक्त भी एक अच्छी आदत यह होती है,
    कि वो भी बीत ही जाता है”
    bilkul sahi

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  15. सुकून पहुंचाती पोस्ट. वाकई हर पल जीना चाहिए.

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  16. सारगर्भित आलेख्।

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  17. बहुत अच्छी पोस्ट......पढ़कर मजा आ गया ...............सानदार प्रस्तुती ......

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  18. अगर बुरा वक्त नहीं आया तो नए अच्छे वक्त का अनुभव कैसे कर पाएगे
    और अच्छा क्या है और बुरा क्या कैसे पता चलेगा |पूरा जीवन काल में अच्छा वक्त कुछ पलों के लिए ही आता है |बरना जीवन काँटों की बस्ती है |बहुत अच्छी पोस्ट |बधाई |दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएं |
    आशा

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  19. “अच्छे वक्त की एक बुरी आदत यह होती है,
    कि वो बहुत जल्दी बीत जाता है
    मगर बुरे वक्त भी एक अच्छी आदत यह होती है,
    कि वो भी बीत ही जाता है”
    ..बिलकुल सच बात ... हर किसी का एक ही पहलु नहीं होता ...
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
    दीपावली की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें

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  20. भर्तृहरि कहते हैं कि समय नहीं बीतता,हम ही बीत जाते हैं।

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  21. अच्छे वक्त की एक बुरी आदत यह होती है,
    कि वो बहुत जल्दी बीत जाता है
    मगर बुरे वक्त भी एक अच्छी आदत यह होती है,
    कि वो भी बीत ही जाता है

    क्‍या बात है ...बहुत अच्‍छी सकारात्‍मक बातें लिखी आपने !!

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  22. .
    .
    .
    “अच्छे वक्त की एक बुरी आदत यह होती है,
    कि वो बहुत जल्दी बीत जाता है
    मगर बुरे वक्त भी एक अच्छी आदत यह होती है,
    कि वो भी बीत ही जाता है”


    और इंसान की एक और अच्छी आदत होती है वह है भूत को भूल जाने की... भूत को भूलो, वर्तमान को जीओ और भविष्य के प्रति आशावान तो रहो पर उसकी चिंता न करो...जीवन जीने का यह तरीका बेहतर है!



    ...

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  23. बहुत बढ़िया प्रस्तुति

    Gyan Darpan
    RajputsParinay

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  24. बहुत सुन्दर!
    --
    कल के चर्चा मंच पर, लिंको की है धूम।
    अपने चिट्ठे के लिए, उपवन में लो घूम।

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  25. arey waah.... sir aapne itne pyar se bulaya hai to ham zarur aayenge ghumne :-) abhaar...

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  26. बहुत ही गहन मनोवैज्ञानिक सोच से उपजता है ऐसा लेखन.ऐसा अक्सर होता है जब लगता है कि"यह वक्त बीत क्यूँ नहीं रहा है, रुका हुआ क्यूँ है और कभी किसी पल में ऐसा भी मन करता है कि बस यह लम्हा, यह पल, यह वक्त, हमेशा के लिए यहीं रुक जाय".
    ये सारी मनःस्थितियाँ हैं जो परिस्थितिजन्य है.आपने इन सबका इतना अच्छा एवं सजीव चित्रण किया है कि मान करता है पढ़ता ही रहूँ. त्यौहार के इंतजार में ही वो सुख छिपा है जिसकी हमें तलाश होती है.यह समाज के जुड़ाव का समय होता है.यही आनंद का कारण है.सारी बातें आपने पूरी सटीकता से कही है.बहुत समय बाद कुछ अपने मान के लायक पढ़ने का मौका मिला.बधाई.

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  27. इस आलेख में जो चिन्तन है उससे असहमति की गुंजाइश तो है ही नहीं, इसलिए उस पर विशेष न कहते हुए कुछ अलग बात रखना चाहूंगा।
    बचपन से एक आदत रही है कि जो चीज़ अच्छी लगी उसे थोड़ा लम्बे समय तक खाया, चखा, स्वाद ले लेकर। यही बात दीपावली के सन्दर्भ में लागू हो सकती है। एक दिन के त्योहार को लम्बा खींच दीजिए। वैसे भी रिवाज़ है कि दो तीन दिन पहले से ही दीप पटाखे शुरु हो ही जाते हैं, आज जम का दिया निकलेगा, तो आज फलाना, आज बड़ी दिवाली तो आज छोटी दिवाली। इस तरह यह छठ तक तो पहुंच ही जाती है।

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  28. महोदया जैसा कि आपको पहले ही माननीय श्री चन्द्र भूषण मिश्र 'ग़ाफ़िल' द्वारा सूचित किया जा चुका कि आपके यात्रा-वृत्त एक शोध के लिए सन्दर्भित किए गये हैं उसको जिस रूप में प्रस्तुत किया गया है वह ब्लॉग ‘हिन्दी भाषा और साहित्य’ http://shalinikikalamse.blogspot.com/2011/10/blog-post.html पर प्रकाशित किया जा रहा है। आपसे अनुरोध है कि आप इस ब्लॉग पर तशरीफ़ लाएं और अपनी महत्तवपूर्ण टिप्पणी दें। हाँ टिप्पणी में आभार मत जताइएगा वरन् यात्रा-साहित्य और ब्लॉगों पर प्रकाशित यात्रा-वृत्तों के बारे में अपनी अमूल्य राय दीजिएगा क्योंकि यहीं से प्रिंट निकालकर उसे शोध प्रबन्ध में आपकी टिप्पणी के साथ शामिल करना है। सादर-
    -शालिनी पाण्डेय

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  29. महोदया जैसा कि आपको पहले ही सूचित किया जा चुका कि आपके यात्रा-वृत्त एक
    शोध के लिए सन्दर्भित किए गये हैं उसको जिस रूप में प्रस्तुत किया गया है
    वह ब्लॉग ‘हिन्दी भाषा और साहित्य’
    http://shalinikikalamse.blogspot.com/2011/10/blog-post.html पर
    प्रकाशित किया जा रहा है। आपसे अनुरोध है कि आप इस ब्लॉग पर तशरीफ़ लाएं
    और अपनी महत्तवपूर्ण टिप्पणी दें। हाँ टिप्पणी में आभार मत जताइएगा वरन्
    यात्रा-साहित्य और ब्लॉगों पर प्रकाशित यात्रा-वृत्तों के बारे में अपनी
    अमूल्य राय दीजिएगा क्योंकि यहीं से प्रिंट निकालकर उसे शोध प्रबन्ध में
    आपकी टिप्पणी के साथ शामिल करना है। यह शोध शालिनी पाण्डेय द्वारा ही
    किया जा रहा है अतः उन्ही को सम्बोधित करके टिप्पणी दें। सादर-
    -ghafil

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  30. अनुभूतियों /अहसास के तंतु हमारी मनोभावनाओं से सदा ही पल्लवित होते हैं ,समय तो निर्विकार हो सतत चलायमान है ,कौन क्या लिखा समय के पट्ट पर रह जाता है अमिट ,पढ़ने को दूसरों के लिए / जो बीजा ,वो काटा , सुख के क्षण वांछित हैं जो सम मात्रा में होते हुए भी अधिक प्रतीत होते हैं ,बस महसूस करने की बात है ..../विचानीय आलेख बधाईयाँ जी /

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  31. आपकी पोस्ट की हलचल आज (29/10/2011को) यहाँ भी है

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  32. वक्त किसी बात का इंतज़ार नहीं करता ..वो तो बीत ही जाता है अच्छा या बुरा .. हर लम्हे को भरपूर जीना चाहिए ..
    सुन्दर प्रस्तुति

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  33. आमंत्रण के लिए धन्यवाद। आपका ब्लाग अच्छा लगा। इसकी सामग्री रोचक है। कितना सुखद है कि हमारे जीवन के बारे में प्रत्येक प्रश्न का उत्तर भगवद् गीता में मौजूद है। गीता का हर अध्याय हमारे भीतर उठ रहे प्रश्नों का उत्तर स्पष्ट तौर पर दे देता है।
    - विनय बिहारी सिंह

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  34. अच्छे वक्त की एक बुरी आदत यह होती है,
    कि वो बहुत जल्दी बीत जाता है
    मगर बुरे वक्त भी एक अच्छी आदत यह होती है,
    कि वो भी बीत ही जाता है
    अक्षरश: सही कहा है आपने ।

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  35. वक़्त तो अपनी गति से चलता है....
    आशावादिता के साथ लिखा गया सुन्दर आलेख!

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  36. ek sarthak nibandh..jisane samay ki keemat pahachani.preranaa dene valaa lekh bhi hai yah..

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  37. आने वाला पल,जाने वाला है---
    बस,मुठ्ठी में एक पल मोती सा,मेरा है,बस मेरा है.
    सत्य लिये हुए,आलेख.

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  38. सकारात्मक सोच को इसी तरह से आगे बढाते रहें!
    आभार!

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  39. बहुत बेहतरीन प्रस्तुति.....

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  40. लाजबाब प्रस्तुति ...

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  41. अच्छा औऱ बुरा इसी के बीच झूलता मन...तटस्थ होकर आनंदित रहने की शिक्षा.....यही तो सीखा है हमने...प्रयास इसलिए किसी न किसी मुकाम तक पहुंच ही जाते हैं....पर निर्लिप्त हो पाना आम इंसान के बस में कहां?

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  42. ये कैसी घड़ी है जिसमें दस बजे के बाद एक बजता है ?

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  43. आपने वाकई ऐसा विशाल विषय चुना है, जिसकी महिमा अपार है, मैं भी अमूमन इसे समझने की कोशिश करता रहता हूं, शुक्रिया

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  44. आपने तो ना जाने कितने लोगो के दिल की बात कह दी पल्लवी जी.महीने भर पहले से दिवाली दिवाली कर रहे थे जब आई तो जेसे चुपके से आकर चली गई.सच कहा आपने ख़ुशी वाले पल जल्दी ओझल हो जाते है हम समझ भी नहीं पाते महसूस भी नहीं कर पाते और वो चले जाते हैं....और दे जाते है इन्तेजार अगले सुन्दर पलोंका....

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  45. Pallavi ji,
    Bahut hi sakaratmak soch vala aur jivan ke liye ek behatar sandesh dene vala lekh.

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  46. Pallvi ji ,mujhey toh irshya honey lagi hai .... kaash mai bhi aap ki tarah kisi vichaar ko itney sahej taree-k se soch sakta aur likh sakta..
    aap ka bahut bahut dhannyawad .

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  47. आप सभी पाठकों और मित्रों का तहे दिल से शुक्रिया.... :-) कृपया आगे भी यूँ हीं संपर्क बनाए रखें....आभार

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  48. पता है आपको, बचपन में मुझे खासकर के तीज का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, क्यूंकि ठेकुआ और पेडाकिया खाने को मिलता है....लेकिन बहुत सालों से घर से बाहर हूँ तो अब इस त्यौहार में रहता नहीं घर पर..अब छठ का बहुत बेसबरी से इन्त्ज्ज़र रहता है...

    और ये सही कहा आपने..
    -"अच्छे वक्त की एक बुरी आदत यह होती है, कि वो बहुत जल्दी बीत जाता है मगर बुरे वक्त भी एक अच्छी आदत यह होती है, कि वो भी बीत ही जाता है"

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