श्रद्धांजलि एक आम इंसान को जो आम होते भी मेरे लिए खास है। जिनकी मौत शायद ऊपर वाले ने तय कर रखी थी। बिमारी को जिनने अपनी जीवटता से तो हरा दिया किन्तु मौत को नहीं हरा पाया। वो कहते है न "ज़िंदगी तो बेवफ़ा है एक दिन ठुकरायेगी मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी"। मगर मौत एक ऐसा अटल सत्य है जिसे स्वयं ईश्वर भी नहीं बदल सकता। जिसने भी इस धरती पर जन्म लिया है उसकी मौत आनी ही है जो आया है वह जाएगा भी फिर चाहे वह हमारा कितना भी करीबी क्यूँ न हो। बस यही सब सोच कर हमको अपने मन को समझाना पड़ता है
स्व. दिलीप जोशी उर्फ पेंटर सहाब |
LIC, इंदौर के लिए कितनी ही दीवारे (LIC के wall advertise) पूरे प्रदेश में घूम घूम कर उन्होंने बनाये थे। उस जमाने में वह एलआईसी के लिए ही कार्य किया करते थे। उन्होने अपने बड़े लड़के को भी यह फ्लेक्स पोस्टर का काम सिखा कर तैयार कर लिया था। उनके तीन बच्चे हैं, दो बेटे और एक बेटी ,बेटी की शादी हो चुकी है। बेटे दोनों कॉलेज में पढ़ रहे हैं। उनकी पत्नी उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण थी। जैसे शरीर के लिए रीढ़ की हड्डी का होना आवश्यक होता है। वैसे ही उनके लिए उनके जीवन रूपी शरीर की रीढ़ की हड्डी उनकी पत्नी थी, जिन्होंने हमेशा उनके अच्छे बुरे वक्त में उनका साथ दिया और हमेशा ही उनका भरपूर होंसला बढ़ाया एक अच्छी पत्नी होने का पूरा फर्ज़ निभाया। तभी खबर मिली की वह गले के केन्सर जैसी भयावह बीमारी से ग्रस्त है। जैसे ही यह खबर उनको मिली तुरंत इलाज शुरू कर दिया गया।
यह अभी मार्च 2011 की ही बात है होली पर मेरे छोटे भाई की उनसे मुलाक़ात हुई थी। उस वक्त उन्होने वहीं इंदौर में ही मकान भी ले लिया था। तब तक उनको केन्सर है यह भी पता चल चुका था। उसके बाद भी वह बहुत ख़ुश नज़र आ रहे थे। शुरुआत में ही पता चल जाने के कारण डॉ ने भी आश्वासन दिया कि अब घबराने की कोई बात नहीं है। वह जल्द ही ठीक हो जायेगे। वह खुद भी बहुत ही सजग और हंसमुख स्वभाव के मेहनती इंसान थे इसलिए भी शायद उनकी तबीयत में और लोगों की तुलना में बहुत जल्द सुधार हो रहा था। उनका स्वभाव इतना मधुर था कि वह बच्चों के साथ बच्चा और बड़ों के साथ बड़ा बन जाया करते थे। कहने का तात्पर्य यह कि उनका स्वभाव बिलकुल जल की तरह निर्मल था जिसे जिसमें मिला दो वैसा ही हो जाता था। उनका इलाज बड़ौदा के किसी केन्सर अस्पताल में चल रहा था वही उसी अस्पताल के पास एक नदी बहती है। जिसके किनारे अकसर उस अस्पताल के ज्यादातर मरीज़ टहला करते थे। एक दिन वह भी अपनी पत्नी के साथ सुबह-सुबह उसी नदी के किनारे टहलने गए थे। यह उनका रोज़ का नियम था।
सुबह जल्दी उठ कर पहले योगा और फिर टहलना उस दिन भी वह रोज की ही भांति योगा करने के पश्चात अपनी पत्नी के साथ नदी किनारे टहलने के लिए गए थे, पर शायद उन्होंने सोचा न था कि वह आज वापस आ पाएँगे, क्यूंकि टहलते वक़्त अचानक ही कहीं से एक मगरमच्छ प्रकट हुआ जो उनके लिए काल बन कर आया था। उस मगरमच्छ ने उन पर हमला कर दिया और उन्हें अपने साथ खींच कर पानी के अंदर ले गया। यह सारा वाक़या उनकी पत्नी ने अपनी आँखों से देखा। पुलिस में खबर कि गई उनके बेटों को भी फोन से संदेश पहुंचाया गया मगर उस वक्त उनको इस हादसे की खबर नहीं दी गई थी। दो दिन बाद पुलिस को उनकी लाश मिली शरीर का कुछ हिस्सा जैसे चेहरा पैर दोनों ही पर काफी गहरे घाव के निशान थे और बहुत ही अस्तव्यस्त हालत में उनकी लाश बरामद होने के कारण उनका दाह संस्कार भी वहीं के वहीं करवा दिया गया था।
ज़रा सोचिए कैसा लगा होगा उनकी पत्नी को उस वक्त और क्या गुज़र रही होगी उनपर। सुनने में आया था कि इस हादसे से पहले भी वहाँ दो बार इस तरह के हादसे हो चुके थे। मगर किसी को कुछ पता नहीं चल पाया था कि इंसान गायब कहाँ हो गया। यह इस तरह का तीसरा हादसा था। मगर ऐसा जिसमें यह पता चल सका कि वहाँ कोई “मगरमच्छ" भी है। जब से मुझे यह समाचार मिला मेरे मन में रह-रह कर बस एक ही सवाल घूमता रहा है और अभी भी घूम रहा है कि क्या प्रतिक्रिया रही होगी उनकी पत्नी की उस वक्त यक़ीनन स्तब्ध कर देने वाली तो होगी ही, कैसा लगा होगा उनको उस वक्त इसकी तो कल्पना भी रुला देती है। परंतु फिर भी न जाने क्यूँ मेरे मन में बस यही सवाल उठता है। मुझे तो सुन कर ही ऐसा लगा दो मिनट के लिए कि जैसे कुछ पलों के लिए मेरे दिल की धड़कन ही बंद हो गई हो। यह सब कुछ सुन कर मन मानने को ही तैयार नहीं हुआ कि यह सब कुछ सच में हुआ है। ऐसा लगा जैसी यह कोई हक़ीक़त नहीं बल्कि कोई फिल्मी वाक़या हो, यक़ीन ही नहीं आता कि ऐसा सच में भी हो सकता है। अभी तक मैंने तो ऐसी घटनाएँ केवल क़िस्सों और कहानियों में ही सुनी थी और जब-जब इस दुखद घटना के बारे में मैंने जिस किसी को भी बताया उस ही के रोंगटे खड़े हो गये। सोचिये जब मेरे सुनने मात्र से यह हाल था तो भाभी का क्या हाल हुआ होगा जब उन्होने यह सब होते अपनी आँखों के सामने देखा होगा।
ना जाने हमेशा मुझे ऐसा क्यूँ लगता है कि हंसमुख और अच्छे इन्सानों के साथ ही ऐसा क्यूँ होता है। क्यूँ हमेशा अच्छे लोग को जरूरत ऊपर ईश्वर को भी हम से ज्यादा होती है, जिसके चलते वह उन्हें हम से छीन कर अपने पास बुला लेता है। अब तो बस भगवान से यही प्रार्थना है की भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उनके परिवार के सभी सदस्यों को इस गहन दुःख को सहन करने की शक्ति दे।
लगा तो सचमुच फिल्मी वाकया…अजीब हाल है…और एक बात रोगी को चिकित्सक की आवश्यकता होती है…तो अच्छे लोगों की आवश्यकता अच्छे को नहीं बुरे को होगी…
ReplyDeleteसच है, दुनिया में जो आया है उसे जाना ही होगा.... पर इस तरह का जाना अखरता है।
ReplyDeleteश्रध्दांजलि...................
दुखद घटना ...विनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteबहुत दुखद घटना है, हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteउफ़ दुखद ...विनर्म श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि!
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति। विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteबहुत दुखद और मार्मिक घटना...विनम्र श्रद्धांजलि!
ReplyDeleteबहुत ही दुखद घटना, विनम्र श्रद्धांजलि जोशी जी के लिये.
ReplyDeleteदुखद घटना...
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि!
really yah ghatna bahut marmik hai bhagvaan unki aatma ko shanti de.
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि!
ReplyDeletedukhad ghatna
ReplyDeleteus jeevat vale vyakti ko vinamr shraddhaanjali
अंदर तक हिल गया पढ़ कर!
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि!
सादर
विनम्र श्रद्धांजली!
ReplyDeleteऐसी घटनाये रुक नही पाती हैं, इसका मूल कर्ण है लोगों को गलती देखना, झेलना और किसी से शिकायत नही करना| जब पहले कुछ इस तरह कि घटना हो चुकी थी तो तन्त्र को सतर्क रहना चाहिए था| हमारे देश में फैसले और कर्यान्वयन बहुत देर से होता है...| और इस तरह कि दुखद घटनाये एक पर एक घटी जाती हैं|
ओह ..बहुत दुखद ... यूँ काल का ग्रास बन जाना व्यवस्था पर सवाल उठता है .. विनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteउफ़...
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि !!
बहुत दुखद घटना है…………… विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी.....श्रद्धांजलि !!
ReplyDeleteऐसी घटनाओं की पुनरावृति स्थानीय प्रशासन की लापरवाही दर्शाती है ...ऐसे स्थानों पर बोर्ड लगा कर सचेत किया जाना चाहिए ...
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि !
जीवन से जाने का तरीका क्या होगा यह किसी को पता नहीं होता हाँ बहाने लाख हो सकते हैं. घटना अचानक हुई उसका प्रभाव काफी देर तक रहता है. उससे उबरने में आसपास के लोग मददगार होते हैं.
ReplyDeleteऐसे मनोस्थिती को समझना बहुत ही कठिन होता है क्योंकि जिस दुख दर्द और संवेदना से पीड़ित व्यक्ति गुजर रहा होता है वह उसके लिये चरम पर होता है।
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