अभी कुछ दिनों पहले की ही बात है, हम लोग मेरे श्रीमान जी के कुछ खास दोस्तों से मिलने "रीडिंग"गए थे। खास मतलब उनके जो दोस्त यहाँ UK में रह रहे हैं, उन दोस्तों से मिलने गए थे। जाने के पहले मन में बहुत उत्साह था। इतने सालों बाद अपने कॉलेज के दोस्तों से मिलना जो होने वाला था। मुझे भी नए लोगों से मिलने की उत्सुकता हो रही थी। क्योंकि मैं भी उनके उन सभी दोस्तों में से केवल एक को ही अच्छे से जानती थी। बाकी के दो अन्य दोस्तों को मैंने न तो कभी देखा था, न ही उनके बारे में ज्यादा कुछ सुना था। मगर ख़ुशी इस बात की ज्यादा थी कि सभी अपने परिवारों के साथ मिलने वाले थे। खैर हम वहाँ सबसे पहले पहुँचे जिनके घर पहुँचना था या यूँ कहिए कि जिनके घर सभी को इकट्ठा होना था, बस उस ही परिवार को मैं अच्छे से जानती थी। हम लोगों ने उस दिन देर रात तक जागकर बातें की, पुरानी यादें ताज़ा हुई। इनके चेहरे पर एक अलग ही चमक देखने को मिल रही थी और होती भी क्यूँ नहीं, रोज़-रोज़ कहाँ मिल पाते है, ज़िंदगी में पुराने दोस्त, खास कर शादी के बाद तो दोनों ही पक्षों के लिए थोड़ा मुश्किल हो ही जाता है, न लड़कियाँ मिल पाती हैं अपनी सहेलियों से और न लड़के अपने दोस्तों से। सब अपनी-अपनी ज़िंदगी की भाग-दौड़ में ऐसे व्यस्त हो जाते हैं कि इन छोटे-छोटे ख़ुशनुमा पलों के लिए चाह कर भी समय ही नहीं मिल पाता।
खैर अगले दिन बाकी लोग भी आये सब से मुलाक़ात हुई, बात हुई सबसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। सभी दोस्त तो शामिल हो गए अपने पुराने दिनों की यादें ताज़ा करने में, अब बची सबकी बीवियाँ, पहली बार मिलने के हिसाब से हम लोगों में भी अच्छी दोस्ती हो ही गई थी। तभी चाय पीते-पीते यूँ हीं बातों ही बातों मे बात निकली, बच्चा गोद लेना उचित है या नहीं। इस बात पर सभी ने सबसे पहले यही कहा कि यदि भविष्य हमको ऐसा कोई मौक़ा मिलता है, तो हम ज़रूर एक बच्चा गोद लेना चाहेंगे। कुछ लोगों ने कहा कि जब अपना हो सकता है, तो गोद लेने की क्या जरूरत है। ऐसा कहने वाले वो लोग थे, जिनकी अभी नई शादी हुई थी, या फिर जिनके अभी एक ही बेटा-या बेटी थी। तो एक ने यह भी कहा की बच्चा गोद लेना इतना भी आसान काम नहीं जितना कि दिखता है। मैंने कहा क्यूँ यदि एक बच्चा गोद लेने से किसी एक मासूम की ज़िंदगी को सँवारा जा सकता है, तो उससे अच्छी और क्या बात हो सकती है।
अब यह विषय एक डिबेट में बदलने लगा था। कुछ लोग हाँ, तो कुछ लोग ना के पक्ष में बोलने लगे थे। मेरी इस बात के जवाब में मुझे उत्तर मिला कि आप बच्चा गोद ले, तो लो, मगर क्या आपके परिवार वाले उसे अपना पायेंगे? दूसरा सवाल था यदि मान लीजिये उन्होने अपना भी लिया, तो क्या जब एक समय ऐसा आयेगा जब आपको अपनी जमापूंजी या जायदाद जो कुछ भी है। आपने बच्चों में बाँटना होगी तो क्या तब आप उस गोद लिए हुए बच्चे को भी उसका हिस्सा दे पाओगे? तब मेरे अंदर से आवाज आई हाँ क्यूँ नहीं... बहुत सोचने पर लगा कि यदि इस बात पर समग्रता से गौर किया जाये तो शायद हम बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या और भूर्ण हत्या जैसे मसलों को कुछ हद तक कम कर सकते है। मगर सवाल यह उठता है कि ऐसी सोच रखने वाले कितने लोग होंगे समाज में मेरे एक ऐसे ही आलेख पर "वंदना गुप्ता" जी ने सुझाव दिया था कि भूर्ण हत्या से अच्छा है, किसी ऐसे दंपत्ति को अपनी संतान दे दो जिनके घर में कोई संतान नहीं हो सकती। वाकई सराहनीय सुझाव है। मगर सवाल यह कि इस समाज में कितने ऐसे लोग है,जो बच्चा गोद लेने के बारे में सोचते हैं या फिर कितने ऐसे लोग होंगे जो भूर्ण हत्या के बदले अपनी संतान दूसरे जरूरत मंद लोगों को दे सकें। जहां तक मेरी समझ कहती है बहुत कम ही लोग होंगे उँगलियों पर गिनने लायक जो इतना बड़ा दिल रखते होंगे।
इन सब विचारों ने जैसे मेरे अंदर भी प्रश्नों का एक मकड़ जाल सा फैला दिया कि लोगों की ऐसी सोच क्यूँ है। यह मैं भी मानती हूँ, कि यह कोई आसान काम नहीं है। किसी की पूरी ज़िंदगी का सवाल है। कोई मज़ाक नहीं कि गए और बाज़ार से दाम देकर कुछ भी ख़रीद लाये और पसंद नहीं आया तो फेंक दिया। यह बहुत ही जिम्मेदारी का काम है। जिसमें हर कदम शायद आपको फूँक-फूँक कर भी रखना पड़ सकता है। मगर जब आप किसी भी कार्य को करने का एक बार मन बना लो, तो फिर वो कार्य कैसे न कैसे हो ही जाता है। इसी तरह जब आप इस विषय पर गंभीरता से सोचते हुए कोई कदम उठाते हो, तो आगे भी सब ठीक हो ही जाएगा। ऐसा मेरा मानना है। क्योंकि जब आप किसी बच्चे को गोद लोगे, तो यह सोच कर ही लोगे ना, कि अब से यह भी आपके परिवार का ही एक हिस्सा है। उसके प्रति भी आपकी वही ज़िम्मेदारियाँ हैं, जो घर के बाकी बच्चों के प्रति है। तभी आप उसके साथ, उसकी ज़िंदगी के साथ इंसाफ़ कर पाओगे वरना नहीं, और यदि आप ऐसा नहीं कर सकते तो फिर आपको इस विषय में सोचना भी नहीं चाहिए।
क्योंकि आपको कोई अधिकार नहीं कि आप किसी की ज़िंदगी के साथ खिलवाड़ करो, मगर यदि आपने या किसी भी दंपति ने यह कदम उठाया है, तो मुझे नहीं लगता कि आगे जाकर जब संपत्ति वितरण का समय आयेगा, तब आपको किसी तरह की कोई धर्मसंकट जैसी किसी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। हाँ अकसर फिल्मों में यही दिखाया जाता है, कि बच्चा गोद लेने के बाद यदि उस दंपत्ति का अपना कोई बच्चा हो जाता है तो वो उस गोद ली हुई संतान को अनदेखा कर देते हैं। मगर असल ज़िंदगी में भी ऐसा होता है या नहीं, मेरे लिए कह पाना मुश्किल है। क्यूंकि मैं आज तक ऐसे किसी परिवार से मिली नहीं हूँ। शायद होता भी हो क्योंकि सोच तो वही है कि अपना-अपना ही होता है। जबकि यह सोच गलत है,फिर भी मैं यह कहना चाहूँगी जब हम किसी जानवर को भी अपने घर में रख कर पालते हैं। तो हमको भी उस जानवर से इतना प्यार, इतना लगाव हो जाता है, कि वो जानवर हमारे लिए हमारे परिवार के एक सदस्य की जगह ले सकता है। तो फिर क्या एक गोद लिए हुए बच्चे से हमें वो लगाव, वो प्यार नहीं होगा या नहीं हो सकता कि वो हमारे परिवार का एक अहम हिस्सा बन सके ?
मेरे इन सवालों के जवाब में केवल बहस होती रही कटाक्ष होते रहे, मगर कोई नतीजा न निकल सका। लोगों का कहना था कि यदि आपको किसी बच्चे की ज़िंदगी इस तरह सँवारना ही है, तो आप वैसी ही उसका खर्च उठाओ मगर उसे अपने घर में लाकर आपने साथ रखने की जिम्मेदारी न लो, तो ही अच्छा है। अतः अब आप लोग ही बतायें कि इस विषय में क्या सही है और क्या गलत.... क्या किसी मासूम बच्चे कि ज़िंदगी सँवारने के लिए केवल रुपया ही काफी हैं ? क्या उसे केवल रुपयों कि ही जरूरत है ? क्या आपके मन को शांति मिल सकती है रूपये के माध्यम से कि आपने किसी की ज़िंदगी में कोई सुधार किया ? माना कि पैसा एक बहुत बड़ी चीज़ है, उसके बिना इस दुनिया में कुछ भी संभव नहीं। पैसा सब कुछ नहीं मगर बहुत कुछ है। लेकिन इस सबके बावजूद भी मुझे नहीं लगता, कि यह कागज़ी नोट किसी की ज़िंदगी कि अहम कमियों को पूरा कर सकते हैं। क्योंकि यदि कर सकते होते तो प्यार, रिश्ते, परिवार, समाज इन सब चीजों की शायद कोई आवश्यकता ही नहीं होती। आपको क्या लगता है ???
खैर अगले दिन बाकी लोग भी आये सब से मुलाक़ात हुई, बात हुई सबसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। सभी दोस्त तो शामिल हो गए अपने पुराने दिनों की यादें ताज़ा करने में, अब बची सबकी बीवियाँ, पहली बार मिलने के हिसाब से हम लोगों में भी अच्छी दोस्ती हो ही गई थी। तभी चाय पीते-पीते यूँ हीं बातों ही बातों मे बात निकली, बच्चा गोद लेना उचित है या नहीं। इस बात पर सभी ने सबसे पहले यही कहा कि यदि भविष्य हमको ऐसा कोई मौक़ा मिलता है, तो हम ज़रूर एक बच्चा गोद लेना चाहेंगे। कुछ लोगों ने कहा कि जब अपना हो सकता है, तो गोद लेने की क्या जरूरत है। ऐसा कहने वाले वो लोग थे, जिनकी अभी नई शादी हुई थी, या फिर जिनके अभी एक ही बेटा-या बेटी थी। तो एक ने यह भी कहा की बच्चा गोद लेना इतना भी आसान काम नहीं जितना कि दिखता है। मैंने कहा क्यूँ यदि एक बच्चा गोद लेने से किसी एक मासूम की ज़िंदगी को सँवारा जा सकता है, तो उससे अच्छी और क्या बात हो सकती है।
अब यह विषय एक डिबेट में बदलने लगा था। कुछ लोग हाँ, तो कुछ लोग ना के पक्ष में बोलने लगे थे। मेरी इस बात के जवाब में मुझे उत्तर मिला कि आप बच्चा गोद ले, तो लो, मगर क्या आपके परिवार वाले उसे अपना पायेंगे? दूसरा सवाल था यदि मान लीजिये उन्होने अपना भी लिया, तो क्या जब एक समय ऐसा आयेगा जब आपको अपनी जमापूंजी या जायदाद जो कुछ भी है। आपने बच्चों में बाँटना होगी तो क्या तब आप उस गोद लिए हुए बच्चे को भी उसका हिस्सा दे पाओगे? तब मेरे अंदर से आवाज आई हाँ क्यूँ नहीं... बहुत सोचने पर लगा कि यदि इस बात पर समग्रता से गौर किया जाये तो शायद हम बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या और भूर्ण हत्या जैसे मसलों को कुछ हद तक कम कर सकते है। मगर सवाल यह उठता है कि ऐसी सोच रखने वाले कितने लोग होंगे समाज में मेरे एक ऐसे ही आलेख पर "वंदना गुप्ता" जी ने सुझाव दिया था कि भूर्ण हत्या से अच्छा है, किसी ऐसे दंपत्ति को अपनी संतान दे दो जिनके घर में कोई संतान नहीं हो सकती। वाकई सराहनीय सुझाव है। मगर सवाल यह कि इस समाज में कितने ऐसे लोग है,जो बच्चा गोद लेने के बारे में सोचते हैं या फिर कितने ऐसे लोग होंगे जो भूर्ण हत्या के बदले अपनी संतान दूसरे जरूरत मंद लोगों को दे सकें। जहां तक मेरी समझ कहती है बहुत कम ही लोग होंगे उँगलियों पर गिनने लायक जो इतना बड़ा दिल रखते होंगे।
इन सब विचारों ने जैसे मेरे अंदर भी प्रश्नों का एक मकड़ जाल सा फैला दिया कि लोगों की ऐसी सोच क्यूँ है। यह मैं भी मानती हूँ, कि यह कोई आसान काम नहीं है। किसी की पूरी ज़िंदगी का सवाल है। कोई मज़ाक नहीं कि गए और बाज़ार से दाम देकर कुछ भी ख़रीद लाये और पसंद नहीं आया तो फेंक दिया। यह बहुत ही जिम्मेदारी का काम है। जिसमें हर कदम शायद आपको फूँक-फूँक कर भी रखना पड़ सकता है। मगर जब आप किसी भी कार्य को करने का एक बार मन बना लो, तो फिर वो कार्य कैसे न कैसे हो ही जाता है। इसी तरह जब आप इस विषय पर गंभीरता से सोचते हुए कोई कदम उठाते हो, तो आगे भी सब ठीक हो ही जाएगा। ऐसा मेरा मानना है। क्योंकि जब आप किसी बच्चे को गोद लोगे, तो यह सोच कर ही लोगे ना, कि अब से यह भी आपके परिवार का ही एक हिस्सा है। उसके प्रति भी आपकी वही ज़िम्मेदारियाँ हैं, जो घर के बाकी बच्चों के प्रति है। तभी आप उसके साथ, उसकी ज़िंदगी के साथ इंसाफ़ कर पाओगे वरना नहीं, और यदि आप ऐसा नहीं कर सकते तो फिर आपको इस विषय में सोचना भी नहीं चाहिए।
क्योंकि आपको कोई अधिकार नहीं कि आप किसी की ज़िंदगी के साथ खिलवाड़ करो, मगर यदि आपने या किसी भी दंपति ने यह कदम उठाया है, तो मुझे नहीं लगता कि आगे जाकर जब संपत्ति वितरण का समय आयेगा, तब आपको किसी तरह की कोई धर्मसंकट जैसी किसी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। हाँ अकसर फिल्मों में यही दिखाया जाता है, कि बच्चा गोद लेने के बाद यदि उस दंपत्ति का अपना कोई बच्चा हो जाता है तो वो उस गोद ली हुई संतान को अनदेखा कर देते हैं। मगर असल ज़िंदगी में भी ऐसा होता है या नहीं, मेरे लिए कह पाना मुश्किल है। क्यूंकि मैं आज तक ऐसे किसी परिवार से मिली नहीं हूँ। शायद होता भी हो क्योंकि सोच तो वही है कि अपना-अपना ही होता है। जबकि यह सोच गलत है,फिर भी मैं यह कहना चाहूँगी जब हम किसी जानवर को भी अपने घर में रख कर पालते हैं। तो हमको भी उस जानवर से इतना प्यार, इतना लगाव हो जाता है, कि वो जानवर हमारे लिए हमारे परिवार के एक सदस्य की जगह ले सकता है। तो फिर क्या एक गोद लिए हुए बच्चे से हमें वो लगाव, वो प्यार नहीं होगा या नहीं हो सकता कि वो हमारे परिवार का एक अहम हिस्सा बन सके ?
मेरे इन सवालों के जवाब में केवल बहस होती रही कटाक्ष होते रहे, मगर कोई नतीजा न निकल सका। लोगों का कहना था कि यदि आपको किसी बच्चे की ज़िंदगी इस तरह सँवारना ही है, तो आप वैसी ही उसका खर्च उठाओ मगर उसे अपने घर में लाकर आपने साथ रखने की जिम्मेदारी न लो, तो ही अच्छा है। अतः अब आप लोग ही बतायें कि इस विषय में क्या सही है और क्या गलत.... क्या किसी मासूम बच्चे कि ज़िंदगी सँवारने के लिए केवल रुपया ही काफी हैं ? क्या उसे केवल रुपयों कि ही जरूरत है ? क्या आपके मन को शांति मिल सकती है रूपये के माध्यम से कि आपने किसी की ज़िंदगी में कोई सुधार किया ? माना कि पैसा एक बहुत बड़ी चीज़ है, उसके बिना इस दुनिया में कुछ भी संभव नहीं। पैसा सब कुछ नहीं मगर बहुत कुछ है। लेकिन इस सबके बावजूद भी मुझे नहीं लगता, कि यह कागज़ी नोट किसी की ज़िंदगी कि अहम कमियों को पूरा कर सकते हैं। क्योंकि यदि कर सकते होते तो प्यार, रिश्ते, परिवार, समाज इन सब चीजों की शायद कोई आवश्यकता ही नहीं होती। आपको क्या लगता है ???
पल्लवी ,
ReplyDeleteजानवर और इंसान को पालने में बहुत फर्क होता है ..आज कल कर्तव्यों की बात करें तो कितने लोग निबाह पाते हैं .. अपने बच्चे ही बड़े होने पर माता पिता को नहीं पूछते ..
हाँ जो लोग बच्चा गोद लेंगे तो संम्पति पर बच्चे का अधिकार बराबर का ही होना चाहिए ... उस समय अपना पराया मन में नहीं आना चाहिए .
यदि केवल किसी की ज़िंदगी को सुधारने की बात है तो गोद लेने का विचार सोच समझ कर ही लेना चाहिए ..अलग से मदद भी की जा सकती है ..
गोद लिया तो जा सकता है लेकिन हमारे यहाँ लोग बड़े विचित्र हैं। हर मुहल्ले में कई नि:संतान दम्पति हैं लेकिन वे गोद नहीं लेना चाहते और फिर लोग-समाज अभी भी गोद लिए गए बच्चे के प्रति अच्छी भावना नहीं रखते।
ReplyDeleteआपका आलेख गहरे विचारों से परिपूर्ण होता है।
ReplyDeleteएक सार्थक विमर्श कराती पोस्ट!
ReplyDeleteसादर
पल्लवी जी, ऐसा न कहें कि आप किसी ऐसे परिवार से नहीं मिली हैं जिसने बच्चा गोद लिया हो । हम हैं न ! हमारे पास बच्चे को गोद लेने के समर्थन में अनेक अकाट्य तर्क हैं जो सिर्फ गणितीय न होकर भावनात्मक भी हं । जो पशोपेश में है चाहें तो मुझे ई मैल कर सकते हैं । मै विनम्रता से उनकी शंका समाधान करने का यत्न करूंगा ।
ReplyDeleteयह भी जान लें कि गोद लेने का निर्णय मधुरात्रि को ही कर लिया गया था । इसमें विचित्र कुछ भी नहीं न ही इतना अनूठा भी कि गोद लेने वाले दम्पति को प्रशंसा से अलंकृत करने ही लग जायें ।
सादर,
jo kadam uthaata hai , uthaana chahta hai - uski marzi zyaada ahmiyat rakhtihai
ReplyDeleteप्यार की कोई सीमा नहीं, जमीन जायदाद तो सीमित हैं।
ReplyDeleteगंभीर विषय पर चिंतन कराता लेख.....
ReplyDeleteधन से आप सिर्फ भौतिक सुख खरीद सकते हैं... आंतरिक और मानसिक सुख तो प्यार और समर्पण से ही आता है।
कई सारे विचारणीय पक्ष लिए पोस्ट...... सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर ऐसे निर्णय कभी आसान होते हैं तो कभी मुश्किल ...सब हमारी सोच और निर्णय क्षमता पर निर्भर है .....
ReplyDeleteआज सबसे पहले टिप्पणी दी थी ...पर अभी दिखाई नहीं दे रही ...
ReplyDeleteकाफी कुछ लिखा था ..अब तो याद भी नहीं ...
बाद में आती हूँ ...
उम्दा एवं सार्थक आलेख....
ReplyDeleteव्यक्ति की आवश्यकता और उत्साह पर निर्भर करता है कि वह इस मामले में कितना जोखिम उठा सकता है और समाज में कितना योगदान दे सकता है.
ReplyDeleteकितने मुश्किल सवाल पूछती हैं आप.
यह व्यक्ति की मनस्थिति की बात है, कुछ लोग इसे सहजता से स्वीकार करते हैं और कुछ नहीं।
ReplyDeleteसार्थक व सटीक लेखन के साथ ही विचारात्मक प्रस्तुति ।
ReplyDeletegahri baat hai.par ye har insaan ka apna nirnaya hoga.agar koi ek bacche ko god lekar use sampoorn pyar de sakta hai to aisa jaroor kiya jana chahiye....par agar nahi de sakte to kharch uthane me bhi burai nahi kam se kam ek anaath ke lie kuch to hoga...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विवेचन. किसी बच्चे को गोद लेने से पहले हमें मानसिक और आर्थिक रूप से गंभीरता से सोच लेना चाहिए. अगर हम उस बच्चे को वही प्यार, सुविधा और अधिकार देने को तैयार हैं जो अपने बच्चे को देते हैं, उसी समय हमें बच्चे को गोद लेने का निर्णय लेना चाहिए. किसी बच्चे की ज़िंदगी से खिलवाड़ करने का हमें कोई अधिकार नहीं है.
ReplyDeleteएक गंभीर मुद्दे पर विचारणीय आलेख है……………पैसो से ही सिर्फ़ किसी की ज़िन्दगी नही संवारी जा सकती यूँ तो बहुत से अनाथालय है जहाँ बडे बडे पूजीपति चंदा देते है तो क्या वहाँ से सबकी ज़िन्दगी संवर जाती है? ऐसा बहुत कम संभव है। हम पैसे से किसी की मदद कर सकते है मगर सोचिये ज़रा जब हमारे बच्चो को भावनात्मक लगाव की जरूरत होती है तो हम उन्हे किस किस तरह सहारा देते है ताकि वो अवसादग्रस्त ना हो जाये और ये काम पैसा नही कर सकता……………पैसे से सिर्फ़ पढाया लिखाया या परवरिश की जा सकती है मगर भावनात्मक या सामाजिक जुडाव नही मिल सकता जिसकी एक बच्चे को उतनी ही जरूरत होती है जितनी हमारे स्वंय के बच्चे को…………और जहाँ तक गोद लेने की बात है आज भी कुंठाये मनो मे फ़ैली हुई है चाहे हम कितने भी पढ लिख लिये हों …………आपका कहना सही है मुश्किल से गिनती के लोग होंगे जो समान व्यवहार कर सकें फिर चाहे जायदाद का बंटवारा ही क्यो ना हो …………वैसे भी आज कल अपने सगे बच्चो को तो लोग बेदखल कर देते है या उनके साथ पूरा न्याय नही कर पाते तो क्या उम्मीद की जा सकती है कि किसी गोद लिये के साथ न्याय हो पायेगा?
ReplyDeleteपल्लवी ! इस विषय पर जाने कब से लिखना चाह रही हूँ पर टलता ही जाता है.गोद लेने के बारे में लोगों में शायद अब भी बहुत सी भ्रांतियां हैं .जबकि अब यह न तो मुश्किल रहा है न ही बच्चे के भविष्य को लेकर अब इसमें कहीं सवालों की गुंजाईश होती है. मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे बहुत से लोगों को जानती हूँ जिन्होंने बच्चे गोद लिए हैं और वे किसी भी तरह बाकी लोगों से भिन्न नहीं महसूस करते .न ही भावात्मक रूप से न ही जमीन जायदाद को लेकर.
ReplyDeleteबेहद गहन और विचारणीय आलेख है …………आपने जिस विषय को उठाया है उसके बारे मे जो कहा जाये कम है ………अभी पहले भी इस पर कमेंट किया था मगर कहाँ गया पता नही…………अब सिर्फ़ इतना कहूँगी कि पैसे से सब कुछ नही खरीदा जा सकता भावनात्मक लगाव जैसी अनुभुतियो की भी आवश्यकता होती है जो पैसे से नही दी जा सकती इसके अलावा आज के वक्त मे जब अपने सगे बच्चो के साथ एक जैसा व्यवहार नही कर पाते पालनहार तो गोद लिये से कर सकेंगे बहुत ही मुश्किल है। आज अपने सगे बच्चो को जायदाद से बेदखल कर देते हैं या फिर उनके पूरे हक उन्हे नही देते तो ऐसे मे क्या उम्मीद की जा सकती है कि एक गोद लिये के साथ न्याय कर सकें । हाँ अगर उनके उसके बाद कोई बच्चा ना हो सिर्फ़ वो ही हो तब तो उम्मीद की जा सकती है क्योंकि वो ही उन के लिये सब हो जायेगा मगर आज भी इस कुंठाग्रस्त समाज से ये उम्मीद नही की जा सकती कि वो उसके साथ न्याय कर पायेगा।
ReplyDelete:)... mere hisab se god wah le, jinke apne bachche na hon! nahi to na chahte hue bhi un dono me kuch na kucch fark khud bakhud aa jayega..
ReplyDeletebadhiya,sarthak lekh..
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर अधिक से अधिक पाठक पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
पल्लवी जी सटीक प्रश्न के लिये बधाई. बच्चा गोद लेना आसान है मगर उसके साथ न्याय हो सके इसका सम्पूर्ण दरोमदार मानसिक्ता पर निर्भर करता है. पैसे रुपयों की अह्मियत सम्वेद्नाओं से नहीं तोली जा सकती. और ऐसे निर्णय सोच समझ कर ही लेने चहिये जहां तक मैं सोच्ता हूं
ReplyDeleteवैसे तो हर तरह के उदाहरण हमारे इर्द-गिर्द होते हैं लेकिन वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम को करीब से देखने के बाद इस मुद्दे पर शायद बेहतर विचार कर सकें.
ReplyDeleteसबके यह अपने विचार है ...भाव गहन है इस पोस्ट के .
ReplyDeleteबहुत विषद विषय है, जिस पर विचार के साथ हमें मनुष्य के आरंभिक सामुहिक जीवन से लेकर आज के एकनिष्ठ परिवार तक के विकास के इतिहास का भी अवलोकन करना होगा। साथ ही यह भी देखना होगा कि आगे के विकास की दिशा क्या होगी?
ReplyDeleteविचारणीय एंव सटीक पोस्ट है समय कम है इसलिये कंमेट छोटा लिख रहा हुँ आपको शुभकामनाये
ReplyDeleteमैंने कल भी काफ़ी बड़ी टिप्पणी दी थी, लेकिन दिखाई नहीं दे रही. इतना ही कहा जा सकता है कि अगर आप मानसिक और आर्थिक रूप से गोद लिये बच्चे के साथ न्याय करने को तैयार हों तभी इसके लिये निर्णय लें. किसी बच्चे की ज़िंदगी से खिलवाड़ न करें..बहुत सुन्दर विचारणीय आलेख..
ReplyDeleteपल्लवी जी,
ReplyDeleteआपने बहुत गंभीर विषय को उठाया है विचारणीय प्रश्न है
गोद लेना आसान है परन्तु क्या हम और हमारा समाज
उस बच्चे के साथ न्याय कर सकेगा,बेहतरीन पोस्ट,..बधाई
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है ...
पल्लवी जी नमस्कार
ReplyDeleteबहुत ही उमड़ा और ज़रूरी विषय उठाया आपने चर्चा के लिए.........आपका विचार यथोचित है, केवल रुपयों के दम पर आप जीवन में आनन्द नहीं भर सकते.........परन्तु मेरे जो निजी अनुभव हैं उसके आधार पर मैंने तो ये निष्कर्ष निकाला कि गोद लेने की बात भूल ही जाएँ...........अब मैंने ऐसा क्यों कहा इसके पीछे की कहानी आपके ब्लॉग पर आकर मैं बाद में दूंगा ...अभी केवल आपका ब्लॉग देखने आया था
अच्छा लगा ............जय हिन्द !
aapne bahut khoob likha.god lena theek hai pallavi ji lekin ye kadam santosh pradaan kare ga yaa nahi ye kah nahi sakte.me re liye bachcha god lena yani os se pyaas bujhana hai .os halaki paani ka pure form hoti hai jo mata pita ki bhavnaaye hoti hai.apni apni soch hai.lekin aapne shabdo ka chayan bahut khoobsoorti se kiya hai badhai aapko
ReplyDeleteबेहद गहन और विचारणीय आलेख है,......
ReplyDeleteI must appreciate your way of thinking. As I write I find you thinking in the same manner. Keep it up and read my poem जीवंत जीवन where I said mere presence does not give life. If you spread light in others life, that is your life.
ReplyDeleteलीजिये अपने बुलाया और हम चले आए..हे हे :)
ReplyDeleteआपने इस समाज के सामने एक बिलकुल सही प्रश्न उठाया है. ऐसे नकारात्मक लोगों को शायद यह समझ नहीं आती की आज हम इतने परिपूर्ण नहीं होते अगर हमने 'वसुधैव कुटुम्बकम' का नारा नहीं दिया होता. और न ही हमारे विचार और हमारा धर्म इतने सहिष्णु होते जो किसी ने कबीर दास को गोद नहीं लिया होता.
आप सभी पाठकों और मित्रों का तहे दिल से शुक्रिया कृपया यूं हीं संपर्क बनाये रखें .....:-)
ReplyDeleteबहुत ही अलग विषय पर आपने शब्द चित्र खडा किया है, आपके लेखन की सबसे बडी विशेषता यही है कि आप ऐसे विषयों को पकडती हैं जो आम तौर पर अनछुए होते हैं, चिंतन भी मौलिक होता है, कीप इट अप
ReplyDeleteकिसी भी अनाथ बच्चे को सहारा देना बहुत ही प्रशंशनीय कार्य है. लेकिन किसी बच्चे को गोद लेने से पहले अपने आप को पूर्णतः तैयार करना बहुत ज़रूरी है. आप मानसिक और आर्थिक रूप से पूरी तरह तैयार हों तभी किसी बच्चे को गोद लें. अगर आप के पहले से बच्चा है या उसे गोद लेने के बाद हो जाता है तो गोद लिये बच्चे को वही प्यार और अधिकार देने को तैयार हों जो अपने बच्चे को देते हैं, तभी गोद लेने का निर्णय लें. किसी बच्चे की ज़िंदगी के साथ खिलवाड़ न करें.
ReplyDelete..बहुत सारगर्भित और विचारणीय आलेख..आभार
आप सभी पाठकों से निवेदन है कि आप अपनी टिप्पणियाँ पोस्ट करने के बाद थोड़ी देर ठहर कर देखलें,कि आपकी टिप्पणी वहाँ दिख रही है या नहीं,क्यूंकि ब्लॉग कि साइट पर यहाँ कुछ गड़बड़ी चल रही है। बहुत से महत्वपूर्ण लोगों कि महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ थोड़ी देर दिखकर गायब हो जा रही हैं। इसलिए यदि संभव हो तो मेरा आप सभी आदरणीय लोग से निवेदन है,कि कृपया आप सभी लोगों मुझे मेल भी,करदें ताकि मैं आपके नाम से आपकी टिप्पणी यहाँ लगा सकूँ। जैसे मैंने कैलाश अंकल कि लगाई है।धन्यवाद...
ReplyDeleteअलग से विषय पर गंभीर विषय उठाया है ... मुझे लगता है अगर खर्चा ही भेजना है तो जरूर भेजें पर घर ला कर पालने में जो वातावरण बच्चे को मिलेगा वो निश्चित ही पूर्ण विकास की तरफ ले जायगा ... बाकी जायजाद का बंटवारा आदि कोई अधिक महत्वपूर्ण बात नहीं है ...
ReplyDeletevisangatiyan swabhavik hain .samadhan manushy ki niyati hai .
ReplyDeleteSarthak charcha shuru ki hai aapne. Jis kadam se man ko shanti miule vahi nirnay lena chahiye.
ReplyDeletePallavi di..
ReplyDeleteM agree with you,
kaafi dino se yahi soch rahi thi, jab road ke sides me aise bache ghumate dekhti hu to dil kanp jata hai...
sochti hu ki agar ho paya to 2-3 bacho ko ek aam jindagi to jarur dugi.
apka jo mudda hai wo ye ki samaj ki kya pratikriya ho?
to is par main yahi kahugi ki hamare desh me baal-shram kanunan apraadh hai, fir bhi police station me bhi yah aam baat hai ki koi bacha apko chai pakdata dikhayi de.
koi fikr nahi karta in bacho ki, balki sab 2 paise bchane ke liye inhse hi kaam karwate hain..to aise samaj se bhala ghar me palne ki ummid karna to bekaar hai, lekin khud se jitna ban sake karna chahiye.
agar aapke ghar parivaar wale is baat ko nahi swikarte to jitna aap kar sako karna chahiye..
agar thode bht samjhne-bhujhane ya sangharsh se kaam ban sake to sanghrsh bhi karna chahiye..
akhir kisi massom ke jivan ka sawal hai!
Is prakarti ne use jivan diya hai, Ham kaun hote hai usse yaha rahne or khane ka haq chinane wale?
jyada bhavnao me na bahte hue itna hi kahugi,
jitna ban sake utna jarur kare,
chahe 2 sec rukkar kachra binane wale bache ko samjha hi de ki uska haq hai padhna, or use haasil karne ke liye wo kaha jaaye, or kaise wo uske liye chal rahi ujnao ka fayda uthaye..
shayad roj 2 min rukkar kahege to kisi masoom ki jindagi sanwar jaye!
Dhanywaad ji itna acha mudda cheda apne...
or ek baat jaha tak un logo ka sawal hai ki paisa bhejna thik smjhte hain,
ReplyDeleteunhe main kahna chahugi ki ham sab insaan hai, agar apko har samay koi dutkaare or koi bhi pyar se na dekhe to apko kaisa lagega?
fir wo to balak man hai....masoom hai,
har samay kitna rota hoga wo...
Use apke paise se kahi jyada pyar or samman chahiye!
insaan ho to mera nivedan hai ki insaniyat ko paise se mat toliye!
बात सही है और वाद विवाद की भी है, प्यार तो बाँटने की चीज है और जितना बाँटा जा सकता है उतना अच्छा है। हमारे परिवार में भी एक प्यारी बिटिया गोद ली गई है और सबके आँखों की लाड़ली है, खासकर उनके माता पिता तो पुत्री को बहुत ही प्यार करते हैं और ऐसा लगता ही नहीं है कि पुत्री गोद ली हुई है।
ReplyDeleteसच आपने बहुत बड़ी बात को उठाया है
ReplyDeleteपरन्तु यह भी कटु सत्य है की पहले तो लोग गर्भ को इतने समय तक किसी दुस्सरे के लिए पालने से ही परहेज करेंगे दूसरा यदि किसी ने दे भी दिया तो अब समस्या शुरू होती है अपने बच्चों और गोद लिए बच्चों में भेदभाव का
आप लाख चाहें परन्तु अपनी खुद की दो संतानों के बीच ही अंतर हो जाता है
और यह मानव स्वाभाव है की वह अपने कर्म के समर्थन के लिए बहाने गढ़ लेता है
यदि स्वयं की संतान गलत निकल जाए तो शायद माफ़ कर दिया जाएगा परन्तु यदि गोद ली हुई की गलती होती है तो मन में भले ही थोडा देर के लिए आये पर यह आता जरुर है की हमारा खून नहीं है इस लिए ऐसा है
जब की सदैव ऐसा कुछ नहीं होता कभी कभी परिस्थितियां प्रतिकूल होती हैं
आज हम पश्चात्य्करण के कारण इस तरह की परिस्थितियों पर पहुचे हैं नहीं तो हमारा सामाजिक ढांचा इतना मजबूत था किसी को चाहे जितनी संताने होतीं सब सही सलामत हो जाती थीं
एक मुखिया होता था घर का और सब उसका अनुसरण करते थे पर क्या हुआ हमारा हाल की हम एकल परिवार से भी बुरी स्थिति में आ गए हैं बस संतान पैदा करो और खाने कमाने के लिए भेज कर बुढ़ापे में दीवारों से बातें करो
इस सबका हल यही है की हम प्रयास करें सिर्फ संयुक्त परिवारों को प्रोत्साहन के लिए ताकि लोग सयुक्त परिवार में रहें बच्चों को अछे संस्कार मिलें
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