सभी पाठकों से अनुरोध है कि कहानी लिखने का प्रयास किया है कृपया अपने सुझावों से मेरा मार्ग दर्शन करें
सदगुण संपन्न होने का अर्थ होता है जिस व्यक्ति में सारे गुण हों उसे सदगुण संपन्न व्यक्ति कहा जाता है। वैसे तो यह शब्द प्रायः महिलाओं के संदर्भ में बोला जाता है, लेकिन यह शब्द पुरुषों के विषय में भी बोला जा सकता है। मगर क्या आज के युग में किसी व्यक्ति का सदगुण सम्पन्न होना संभव हो सकता है ? आज के युग कि ही क्यूँ यदि हम अतीत में जाकर देखें तब भी कहाँ यह बात संभव थी। यदि होती तो शायद द्रोपदी को एक ही व्यक्ति में वो सारे गुण मिल गए होते जो उसे पाँच अलग-अलग व्यक्तियों के रूप में मिले तो यह तो फिर भी कलियुग है। इस धरती पर शायद ही ऐसा कोई इंसान हो जिस में सारे गुण हो जो गुणों की खान हों, सारे गुणों का होना एक ही इंसान में तो संभव नहीं है। किन्तु कई सारे गुणों का होना एक इंसान में संभव है। यह कहानी एक ऐसी ही लड़की के जीवन पर आधारित है जिसका नाम तो था संस्क्रती मगर उस के करीबी लोग जैसे उस के मित्र-गण या संगी-साथी उसे क़रीब से जाने वाले सभी लोग जब किसी तीसरे व्यक्ति से उस की बात किया करते थे, तो उसे सदगुण सम्पन्न लड़की के नाम से ही संबोधित कर करते थे
।
।
कॉलेज के दिनों कि बात है एक लड़की हुआ करती थी। जिसका नाम था संस्क्रती जो कि एक पढ़े लिखे सभ्य एवं अमीर परिवार की बेहद खूबसूरत दिखने वाली हंसमुख स्वभाव कि भोली भली एक लड़की थी। जो देखने में जितनी सुंदर थी। स्वभाव से भी उतनी ही मीठी भी थी। भगवान ने जैसे क़ुदरत की पूरी खूबसूरती को उसके ही के रूप में ही गड दिया हो, घने काले लंबे बाल, गोरा रंग, नीली आँखें,तीखे-तीखे नयन नक़्श मानो जैसे कवि की कोई कलपना हो, हस्ती थी तो ऐसा लगता था मानो सेंकड़ों मोती बिखर गए हो जितनी मोहक उसकी मुसकान थी उतना ही सुरीला उसका गला भी, गाती थी तो उस के गायन में खो जाया करते थे लोग गायन ही क्या न्रत्य करने भी उतनी ही माहिर थी वो जितना की संगीत मे, संगीत और न्रत्य प्रतियोगिता में हमेशा सब से प्रथम आना तो जैसे उसका नियम सा बन गया था। बी.ए प्रथम वर्ष में दाख़िला मिलने पर ही उसने अपनी खूबसूरती और अपने मीठे स्वभाव और मोहक संगीत के गुणों के कारण(मिस नूतन) बनने का पुरस्कार अर्जित कर लिया था और इतना ही नहीं इस सब गुणों के साथ-साथ एक और सबसे अहम गुण भी था उस में वो है, एक अच्छा इंसान होने का गुण, जो हर किसी में नहीं होता। पंजाबी परिवार की होने कारण उसका का रहन-सहन भी कुछ वैसा ही था जैसा कि अकसर पंजाबी लोगों में देखने को मिलता है तडकीला भड़कीला क़िस्म का, ऊपर से वो खुद भी सुंदर थी। साथ ही बेहद FASIONABLE भी उस की तीन मुख्य सहेलियां हुआ करती थी। जिनके नाम थे मिताली और भावना जो हमेशा उस के साथ रहा करती थी तीनों के सारे विषय भी एक ही थे। जिन से यह तीन बी.ए का इम्तिहान देने वाले थे। घर भी तीनों का एक दूसरे के नजदीक ही था चौबीसों घंटे एक साथ मौज मस्ती मारना, गाना बजाना, नाचना गाना, खाना पीना, लग भाग एक साथ ही हुआ करता था। तीनों भी अच्छे पढे लिखे सभ्य परिवार से ही थी। लेकिन शायद कही न कही उनके मन में प्यार के साथ एक दबी हुई चिंगारी के रूप में संस्क्रती के प्रति जलन की भावना भी थी। मगर उस भावना को कभी तीनों ने औरों के सामने जाहिर नहीं होने दिया था, ज्यादा तर सभी लोग उन को तीगडा अर्थात् तीन व्यक्तियों का समूह ही समझते थे जहां एक होगी वहाँ बाँकी की दोनों का होना तो पक्का ही होता था। चाहे वो संगीत प्रतिस्पर्धा हो या न्रत्य प्रतियोगिता मगर इनाम हमेशा मिला करता था सिर्फ संस्क्रती को तीनों एक दूसरे की सब से अच्छी सहेलियां होने पर भी कभी सामूहिक रूप से किसी कार्यक्रम में भाग नहीं लिया करती थी हमेशा सब का, सब कुछ, अकेले ही हुआ करता था चाहे फिर वो न्रत्य हो या गायन मगर वो कहते है ना की “भड़की हुई आग से ज्यादा दबी हुई चिंगारी ख़तरनाक होती है” शायद उन तीनों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ होगा क्योंकि लगती तो देखने में वो संस्क्रती की शुभ चिंतक ही थी और तीनों ही कला के क्षेत्र में माहिर भी थी लेकिन सब के पास वो नहीं था जो एक अकेली संस्क्रती के पास था रूप से लेकर गायन तक ,गायन से लेकर नाच तक और एक अच्छा इंसान होने से लेकर पढ़ाई लिखाई में भी बहुत होशियार थी वो, इसलिए शायद सब ही उस उसके नाम के बदले सदगुण सम्पन्न लड़की के नाम से संबोधित किया करते थे।
कॉलेज के दिनों में हर कोई उसके जैसा बन्ना और दिखना चाहता था। मगर नकल कर के भला कभी किसी को वो मिला है जिसकी उसे तलाश हो J मगर वो कहते है न “रूप कि रोये और भाग्य कि खाये” वैसा ही कुछ हुआ उस बेचारी के साथ भी जिसने कभी अंजाने में भी किसी का दिल न दुखाया होगा सिवाय रोड छाप मजनुओं के J जिस ने अपने गायन और न्रत्य के बल पर हजारों पुरस्कार दिलाये होंगे अपने कॉलेज को आज उसी कॉलेज में खुद बहुत बदनाम है वो, जिसका कभी नाम हुआ करता था। क्यूँ और क्या हुआ उसके साथ ऐसा, कोई ठीक तरह से नहीं जानता मगर प्यार करने की सज़ा ऐसे भी हो सकती है यह उसने खुद भी कभी नहीं सोचा होगा कॉलेज के बाहर एक लड़का हमेशा उसका इंतज़ार किया करता था। एक क्या उसके तो हजार दीवाने थे। जो घंटों कॉलेज के बाहर खड़े होकर उसका इंतज़ार किया करते थे। बस एक नज़र उसे देखने के लिए मगर उन मैं से एक था जिसके साथ वो अकसर जाया आया करती थी। देखने वालों को बहुत आश्चर्य हुआ करता था कि अपने से दुगनी उम्र के लड़के के साथ उस के संबंध कैसे हो सकते है। लोग यही सोच-सोच कर परेशान रहा करते थे मगर शायद ही कोई हो जिसने यह जान ने का प्रयास किया हो की वो लड़का आखिर है कौन और उस का उस लड़के के साथ क्या संबंध है। बस साथ जाते आते देखा नहीं की लोगों के दिमाग में हमेशा एक ही घँटी बजती है की हो न हो यह उस का BOY FRIEND ही होगा।
थोड़ी देर के लिए यह मान भी लिया जाये कि यह सच भी है तो उस में हर्ज ही क्या है, मगर उस के साथ भी वही हुआ जो सदियों से होता चला आया है। सब से पहले हमेशा की तरह ही एक नारी पर ही चरित्र को लेकर सवाल उठाये जाते है। उस पर भी उठाये गए आखिर क्यूँ ? महज़ इस लिए की हमारा समाज एक पुरुष प्रधान समाज है जो आज तक कभी एक नारी को समझ ही नहीं सका है और न ही जिसने कभी किसी नारी को समझ ने का प्रयास ही किया है। माता सीता के सत्ययुग से लेकर आज तक नारी की जो दशा तब थी वही आज भी है वो तो फिर भी सत्ययुग था और यह तो कलियुग है कहने वाले कहते हैं इस युग में जो भी बुरा हो वो काम है मगर नारी की दशा तब भी ऐसी ही थी आज भी ऐसी ही है और शायद हमेशा ऐसी ही रहेगी।
मगर उस की कहानी सुनकर अफ़सोस तो इस लिए होता है। क्योंकि जिस तरह उसके चाहाने वाली लड़कीयों कि कमी नहीं थी पूरे कॉलेज में ठीक उसी तरह उस से जल ने वालों की भी कोई कमी नहीं थी पूरे कॉलेज में उन्ही लड़कीयों ने उन्ही लोगों ने उस बेचारी से उस के खुल कर जीने का अधिकार छीन लिया और उस के बारे में न जान कैसे-कैसे गंदी बातों का प्रचार प्रसार किया गंदी बातें भी ऐसी की सुनकर शर्म आ जाये सामने वाले को की शादी किए बिना ही उस के 2-3 गर्भपात हो चुके है। जिसके बारे में सुन कर भी यक़ीन नहीं आता की वो ऐसी हो सकती है या उस ने ऐसा कुछ किया होगा मगर वो कहते है न की
“झूठ को भी चिल्ला-चिल्ला कर सौ बार बोलने पर तो वो भी सच लागने लगता है”
यह कोई नहीं जानता की इस बात में कितना सच है और कितना झूठ मगर एक बार बदनामी फ़ेल जाये तो फिर लाख कोशिश करने के बाद भी नाम नहीं होता इसलिए लोग बदनामी से डरते है। उस बेचारी को इस क़दर बदनाम किया कुछ लोग ने कि उसको अपनी सफ़ाई देने तक का मौक़ा भी नहीं मिला और हार कर उसे कालेज छोड़ना ही पड़ा।
क्या यही परिणाम होना चाहिए था एक सदगुण संपन्न कहलाने वाली लड़की का जिसे कभी सारे लोगों ने गुणों की खान समझा जिसके जैसा बन्ने और दिखने का प्रयास किया करते थे लोग अचानक उस के बारे में मनगढ़ंत कहानी सुन ने मात्र से ही उसके सारे गुण एक ही झटके में भूल गए लोग, अगर यही दुनिया का इंसाफ़ है, तो सदगुण समापन्न होने से अच्छा है कि एक आम आदमी, आदमी से इंसान बन जाये वही बहुत है। इंसानियत के लिए.... जय हिन्द ....