Friday, 24 March 2023

नवरात्र और मैं ~



मार्च का महीना यानी हिंदू नववर्ष का प्रारम्भ जो माता रानी जगत जननी माँ अम्बे के आशीर्वाद के साथ प्रारम्भ होता है। यानी "गुड़ी पड़वा" अर्थात "चैत्र नवरात्र" का प्रथम दिवस और पूरे नो दिन धूम मचाने के बाद हमारे हम सब के प्रिय श्री राम लला का जन्मोत्सव और क्या ही शुभ शगुन चाहिए नववर्ष के आरंभ के लिए. यूँ तो साल में चार नवरात्र आते है मगर मुझे इस विषय में अब तक कोई जानकारी नहीं थी जैसे 
1. शारदीय नवरात्र 
2. गुप्त नवरात्र 
3. चैत्र नवरात्र 
4. गुप्त नवरात्र 
ऐसा माना जाता है कि मंत्र तंत्र और सिद्धि प्राप्ति के लिए इन "गुप्त नवरात्रों" का विशेष महत्व है. पर ऐसा कोई ज़रूरी नहीं है कि ऐसा कुछ करना हो तो ही आप यह नवरात्र मनाए इन्हें भी कोई भी मना सकता है अर्थात बाकी नवरात्रों की तरह साधारण पूजन आदि इन नवरात्रों में भी कि जासकती है. ठीक इसी तरह हर महीने "महाशिवरात्रि" जिसे "मासिक शिवरात्रि" भी कहते हैं हर माह ती है. यह भी मुझे पता नहीं था, यह जानकारी मुझे शिवपुराण सुनने और पढ़ने के बाद प्राप्त हुई. दोस्तों मैं मध्यप्रदेश की रहने वाली हूँ. जहाँ सभी त्यौहारों को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. फिर चाहे वह किसी भी धर्म का त्यौहार ही क्यों ना हो. मैंने भी हर त्यौहार को खूब हर्षोल्लास के साथ मनाया है. लेकिन फिर भी मेरा अनुभव यह कहता है कि एक स्त्री के लिए त्यौहारों का जो महत्व है या यूँ कहिये कि त्यौहारों का जो असली मजा है वह केवल माता पिता के संरक्षण में ही आता है. विवाह उपरांत नहीं, क्यूंकि फिर तो जैसे सारा मजा रसोई घर के चुल्ले में ही फुक जाता है. कम से कम सयुंक्त परिवार में तो ऐसा ही होता है और रही बात एकल परिवारों कि तो होली, दिवाली जैसे त्यौहार तो वह भी परिवार के संग ही मनाना पसंद करते है. बाकि तो आजकल स्विग्गी और ज़ोमेट्टो वालों ने घर के बने खाने या पकवानों कि एहमियत पहले ही खत्म कर दी है, तो आगे कुछ कहना ही बेकार है. खैर वह मुद्दा अलग है. आज तो मैं बात कर रही हूँ अपने जीवन के उन सुनहरे दिनों की जब गन्नू भईया अर्थात हमारे प्यारे "गणपति बाप्पा" के जन्मदिन से जो त्यौहार शुरु होते थे तो दिवाली तक मन एक अलग ही ऊर्जा से भरा रहता था. 
विशेष रूप से शारदीय नवरात्र को लेकर तो पागल ही हो जाया करते थे सब, झाँकियां देखने जाना, माता रानी के दर्शन के लिए घंटों लाइन में खड़े रहना, प्रसाद के लिए मरे जाना. मेले का आनन्द जम के उठाना चाट पकोड़ी पालकी का झूला, लॉटरी के टिकट, जो आज तक कभी नहीं लगा पर फिर भी दस बीस रुपए से अधिक लेने की अनुमति नहीं होती थी. कितना सुकून, कितना आनंद था इन छोटी छोटी खुशियों में, और तो और घर में माता रानी की भक्ति से सकारात्मक ऊर्जा का घर घर विचरना, सुबह शाम की आरती में शामिल होना सिर्फ मेवे के प्रसाद के लिए क्यूंकि नवरात्री में विशेष रूप से मम्मी पंच मेवा का भोग लगाया करती थी. घर में हवन सामग्री और धुपबत्ती की महक जैसे हर रोज जीवन में एक अदबुद्ध रस का संचार कर दिया करती थी. उन दिनों व्रत करने का बहुत मन किया करता था मगर अनुमति नहीं हुआ करती थी. ना उन दिनों घर में मांसाहार बनेगा ना कोई बाहर जाकर खायेगा. जैसी हिदायतें भी बहुत सख्ती के साथ दी जाती थी और सभी उसका नियम पूर्वक पालन भी किया करते थे सच वो समय ही कुछ ओर था. 
ऐसे में अधिकतर लोग दशहरे का इंतजार किया करते थे. बाकि वर्णों का तो पता नहीं लेकिन कायस्थ बंधुओ के यहाँ तो ज्यादा तर ऐसा ही होता था. तब यह सुन सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ करता था कि लोग,  लोंग पर, तुलसी के पत्ते पर, केवल चाय पर, व्रत कैसे रख लिया करते थे...! तब मम्मी कहती थी कि यदि श्रद्धा सच्ची हो तो खुद माता रानी आपको हिम्मत देती है और उन दिनों आपको बिलकुल भी भूख नहीं लगती. जबकि आप अपने लिए छोड़कर पूरे घर के लिए भोजन बनाते हो पर तब भी आपका मन भोजन के प्रति नहीं लालाचाता. पहले तो इस बात पर यकीन नहीं होता था. लेकिन फिर जब शादी के बाद खुद यह व्रत रखे,  तो बिलकुल वही अनुभव हुआ जो मम्मी ने कहा था और आज भी यह प्रथा कायम है. वैसे तो माता रानी के सभी नवरात्र अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं. लेकिन उन सब में यह "चैत्र नवरात्रोन" का विशेष महत्त्व है. यह उन दिनों समझ में नहीं आता था क्यूंकि इन नवरात्रो के समय अधिकांशतः वार्षिक परीक्षा हुआ करती थी तो ज्यादा कुछ जोश ओखरोष या हर्षोल्लास महसूस नहीं होता था.  उपर से स्पीकर पर बजते भजन से पढ़ाई में और मन नहीं लगता था. 
लेकिन त्यौहार मानाने का जोश कभी खत्म नहीं होता था. एक वो दिन थे और एक आज के दिन है. जब हर त्यौहार को मनाने की सिर्फ औपचारिकता ही शेष रह गयी है. विशेष रूप से उन घरों में जहाँ बेटियाँ नहीं है ,सिर्फ बेटे ही हैं. वहाँ कब कौन सा त्यौहार आया और आकर चला गया का पता ना पहले कभी चल पाता था ना आज चल पाता है.सच बेटियों से ही घर घर कहलाता है.