अभी लोग दामिनी कांड को भूले भी नहीं थे कि एक और शर्मनाक वाक्या हो गया (गुड़िया)। ना जाने क्या हो गया है दिल्ली वालों को, बल्कि अकेली दिल्ली ही क्यूँ, हमारे समाज में ऐसे अपराधों की वृद्धि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही जा रही है। फिर क्या दिल्ली, क्या मुंबई और क्या बिहार, इस कदर संवेदन हीन हो गया है इंसान कि उसकी सोचने समझने शक्ति जैसे नष्ट ही हो गयी है। शर्म आनी चाहिए इस पुरुष प्रधान देश के पुरुषों को जो इस कदर गिर गए हैं कि एक पाँच साल की मासूम बच्ची तक को नहीं बख़्शा गया। हालांकी ऐसा पहली बार नहीं हुआ है पहले भी इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं। खास कर दामिनी कांड के बाद तो जैसे अपराधियों ने इस बात की घोषणा ही कर दी है, कि हम नहीं रुकेंगे, जो बन पड़े वो कर लो।
समझ नहीं आता आखिर कहाँ जा रहे हैं हम ? एक वक्त था पहले, जब कभी ऐसा कोई किस्सा सुनने में आता था, तो ऐसा लगता था कि सेक्स के वशीभूत होकर नशे की हालत में किसी से यह अपराध हो गया होगा। क्यूंकि अक्सर पीकर बहक जाते हैं लोग, लेकिन फिर भी इस तरह के घिनौने अपराध कम ही सुनने को मिला करते थे। मगर आज तो इस तरह के समाचार जैसे रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन गए हैं। जिन्हें पढ़कर और सुनकर ऐसा लगता है कि यदि एक दिन भूल से भी ऐसा हो गया ना कि किसी भी समाचार पत्र में इस तरह की कोई खबर ही न हो, तो शायद खाना ही हज़म नहीं होगा।
सेक्स के लिए ऐसी घटनाओं का होना समझ आता है, लेकिन एक छोटी सी मासूम बच्ची के साथ यह वहशीपन करने के पीछे भला क्या कारण हो सकता है? आखिर कहाँ गलती हो रही है हमसे, जो आज के नव युवक इस कदर बहक रहे हैं कि अपनी हवस मिटाने के लिए उन्हें बस शरीर की जरूरत है। फिर चाहे वह विकसित हो या ना हो, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे तो यह हवस का कारण भी नहीं लगता। मेरी समझ से तो यह एक विकृत मानसिकता है जो दिनों दिन जंगल में लगी आग की तरह फैलती जा रही है। एक बीमारी एक महामारी की तरह जिसका इलाज होना बहुत ज़रूरी है और वो तभी हो सकता है। जब कुछ एक कारणो पर सख्ती बरती जाये।
समाज और कानून एक होकर आगे बढ़े और इस घिनौनी मानसिकता का इलाज करें। जैसे समाज को चाहिए कि एक जुट होकर ऐसे दरिंदों के खिलाफ आवाज उठाएँ और पीड़िता और उसके परिवार को यह होसला दें कि वह इस समाज में अकेले और असहाय नहीं है। बल्कि पूरा समाज उनसे सहानुभूति रखता है और उन्हें इंसाफ दिलाने में उनके साथ है और कानून को चाहिए कि ऐसे अपराधों को गंभीरता से लें और अपने सोये हुये ईमान को जगाकर जनता की मदद करें, साथ ही अपराधी को जनता के सामने ही कड़ी से कड़ी सज़ा दें। ताकि अन्य आपराधिक मानसिकता वाले लोगों में कानून के प्रति एक डर पैदा हो सके और जनता को क़ानून पर भरोसा बरक़रार रहे और कोई भी दरिंदा किसी भी महिला या बच्ची की अस्मिता से खेलने से पहले 100 बार नहीं बल्कि लाखों बार सोचे।
मगर आज जो हालात हैं, उन्हें देखते हुए तो बस यही लगता है कि यह तो बस ख़्वाबों और ख्यालों की बातें हैं। क्यूंकि सच का चेहरा उतना ही भयानक है, जितनी किसी झूठ की खूबसूरती हुआ करती है। वर्तमान हालातों को देखते हुए अब कानून का मुंह देखना नासमझी होगी। अब तो महिलाओं को ही खुद कोई सशक्त कदम उठाना होगा। तभी कुछ होगा या हो सकता है। बस अब बहुत हो गया पीड़ित बनकर इस अंधे कानून के आगे रोना धोना और इंसाफ के लिए गिड़गिड़ाना। अब रोने की नहीं बल्कि रुलाने की बारी है, फिर चाहे कानून को ही हाथ में क्यूँ ना लेने पड़े। अब अपने लिए खुद ही लड़ने का वक्त आ गया है, फिर एक बार झाँसी की रानी को जगाने का वक्त आ गया है। अब करो या मरो वाली स्थिति उत्पन्न हो चली है दोस्तों, अब चूड़ियों से सजे हाथों में हथियार सजाने का वक्त आ गया है। क्यूंकि अब चूड़िया खुद नहीं पहननी है हमें, बल्कि उनको पहनाना है जो ऐसे घृणित और अमानवीय काम को अंजाम देने के बाद पुरुषार्थ का दंभ भरा करते है। अब उनको यह दिखाने और समझाने का वक्त आ गया है कि पुरुषार्थ का अर्थ बलात्कार करना नहीं होता। बल्कि हर नारी का सम्मान करना होता है और उसके मान सम्मान की रक्षा करना होता है। उस पर अत्याचार करना फिर चाहे वो घरेलू हिंसा हो या बलात्कार जैसे गंभीर मुद्दे पुरुषार्थ को नहीं दर्शाते, बल्कि एक पुरुष की कायरता को दर्शाते है।
कुछ लोग ऐसी कोई पोस्ट लिखते समय "जागो नारी जागो" जैसे जुमलों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन मैं आज इसका उल्टा लिखूँगी "जागो पुरुषों जागो" इस से पहले कि दुनिया भर की सभी नारियां हर एक पुरुष को शक की नज़र से देखना आरंभ कर दें, तुम खुद ही अपने समूह में झांक कर "भेड़ की खाल में छुपे भेड़ियों" को पहचानो और उन्हें सजा देकर अपनी पहचान बनाओ वरना जिस तेज़ी से वर्तमान हालातों में महिलाओं और बच्चियों पर जुल्म हो रहे है। ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब शरीफों को भी शक की नज़र से देखा जाएगा। क्यूंकि वर्तमान हालातों के चलते महिलाओं के मन में पुरुषों के प्रति एक डर भर दिया है। जिसके चलते अब लोग अपने अपनों पर ही विश्वास करने से डरने लगे हैं, तो फिर परायों की तो बात ही क्या...
अरे तुम ने भगवान राम जैसे मर्यादा पुरुषोतम की सर जमीन पर जन्म लिया है और किसी का नहीं तो कम से कम उनका तो लिहाज़ करो। अगर इतना ही घमड़ है तुम्हें अपने पुरुषार्थ पर, अपने बाहुबल पर तो उसका इस्तेमाल अपने देश की तरक्की के लिए क्यूँ नहीं करते? अपने अपनों की सुरक्षा के लिए क्यूँ नहीं करते? बेगुनाह मासूम औरतों और बच्चियों पर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना देकर भला कौन से पुरुषार्थ का दंभ भरते हो तुम ? और क्या मिल जाता है भला तुम्हें यह घिनौने काम को अंजाम देकर? क्या ऐसी झूठी जीत पर अपने अहम को संतुष्ट करते हो तुम...!!! या फिर पचा नहीं पा रहे हो, एक स्त्री का यूं तुम्हारे साथ-साथ कदम दर कदम चलना और आसमान की ऊंचाइयों को छु लेना। क्या महज़ अपनी इस एक कुंठा को संतुष्ट करने के लिए ईर्ष्या और बदले की आग में जल रहे अपने स्वः की संतुष्टि कर रहे हो तुम ? या फिर अपने अहम को एक झूठा दिलासा देने के लिए किया करते हो तुम यह कुकर्म ??? ताकि अब भी खुद को दिलासा दे सको कि यह समाज अब पुरुष प्रधान समाज न रहकर धीरे-धीरे ही सही मगर स्त्री प्रधान हो चला है जो तुम से देखा नहीं जा रहा है।
अगर उपरोक्त कथन में लिखी यह अंतिम पंक्तियाँ ही तुम्हारे जीवन की सच्चाई है तो उठो, अपनी आँखों के साथ-साथ अपना दिमाग भी खोलो और सोचो यह दुनिया, यह समाज सबके लिए हैं और जब ईश्वर ने सभी को समान रूप से बनाया है तो भला स्त्री और पुरुष में भेद करने वाले हम कौन होते हैं। क्यूंकि स्त्री और पुरुष तो एक ही सिक्के के दो पहलुओं की तरह है। एक के बिना दूसरा पहलू हमेशा अधूरा था, अधूरा है और अधूरा ही रहेगा। यदि नारी न होगी तो तुम भी न होगे। इसलिए हर एक नारी का सम्मान करो, कोई नारी यह नहीं चाहती कि तुम उसे देवी बनाकर पूजो, बल्कि वह तो केवल इतना चाहती है कि उसे भी एक इंसान समझ कर जीने दो। उसे भी उसके हिस्से का आकाश दो, पंख फैलाने के लिए। उसे भी एक स्व्छंद माहौल दो, खुली हवा में सांस लेने के लिए। उसे भी खुलके जीने दो ज़िंदगी, देखने दो यह दुनिया अर्थात "जियो और जीने दो" की तर्ज़ पर चलो और एक बार फिर इस दुनिया को स्वर्ग बना दो जहां किसी को किसी से कोई डर न हो। अगर कुछ हो तो अमन हो, चैन हो, प्यार का पैगाम हो। जहां हर औरत, हर स्त्री, हर माता, हर बहन एवं हर बेटी की आँखों में हर पुरुष के प्रति केवल मान हो सम्मान हो। डर ना हो। जय हिन्द।